Monthly Archives: June 2013

अपने भविष्य के लिये अपने वित्तीय पक्ष को कैसे मजबूर करें.. एक दिलचस्प वार्ता अपने परम मित्र के साथ..

   अभी दो दिन के लिये हम सप्ताहांत में उज्जैन आये तो हमने अपने बहुत पुराने सुख के साथी (मित्र के वाक्य) को याद किया और वो एकदम हमारे पास आ गये। वे हमारे उन मित्रों में से हैं जिनके साथ हमने अपनी जिंदगी के बहुत से यादगार पल गुजारे हैं।

   जब बात ऐसे ही चलने लगी तो कहने लगे यार कुछ समझ नहीं आता कि निवेश कैसे किया जाये, कहाँ किया जाये, किस तरह से किया जाये। हमने कहा आजकल तो सारी चीजें ऑनलाईन उपलब्ध हैं, क्यों नहीं तुम ऑनलाईन ले लेते, मित्र ने कहा कि ये सब तुम्हारे लिये बहुत आसान है, अपने लिये नहीं, और नेट पर वित्तीय लेनदेन (Financial Transactions) हमें ठीक नहीं लगता है। हमने कहा कि हम तो अधिकतर यही कोशिश करते हैं कि ज्यादा से ज्यादा ऑनलाईन लेनदेन कर लें, जिससे इधर उधर आने जाने की असुविधा से बच सकें।

    अब आई मुद्दे की बात, किस कैसे निवेश करें, हमने कहा सबसे पहले आपको यह समझना होगा कि आपकी जरूरतें क्या हैं, आपके क्या गोल हैं, जिसके लिये आपको निवेश करना है, तो वह अपने पूरे भोलेपन से बोले – “अरे भाई यह सब तो हम पहली बार सुन रहे हैं, अपना तो दिमाग सुनकर ही चकरा रहा है, जरा खुलकर समझाओ” ।

    हमने कहा देखो व्यक्ति के जीवन में कुछ गोल्स होते हैं जिन्हें उसे अपने वित्तीय जीवन में पा लेना चाहिये अगर निवेश में थोड़ा अनुशासन और नियमितता हो तो यह सारे गोल्स पाना बहुत ही आसान हैं । हमने कहा आमतौर पर व्यक्ति के जीवन में ५ गोल्स होते हैं –

१. कार

२. घर

३. बच्चों की पढ़ाई

४. बच्चों की शादी

५. सेवानिवृत्ति

    आप अपने लिये और भी गोल्स बना सकते हैं, अपनी जरूरतों के अनुसार और बचत को नियमित रूप से बढ़ाते जायें, जैसे कि अगर आप अपने वित्तीय जीवन की शुरूआत में २ हजार रूपये बचत कर रहे हैं, तो कोशिश करें कि हर वर्ष याद हर दूसरे वर्ष उस बचत में वृद्धि करें और अपने गोल्स को जल्दी से जल्दी पा लें।

    अब हमारे मित्र बोले कि चलो अब यह तो समझ में आया, अब हमें यह भी बताओ कि हम हमारी बेटी के लिये १५ वर्ष बाद १५ लाख रूपया चाहते हैं जो कि उसे पढ़ाई में काम आयें, तो कितना और कैसे निवेश करें ?

    हमने कहा भाई तुमको लगभग ३५०० रूपये हर महीने १५ वर्ष तक जमा करने होंगे, यह हम तुमको तब बता रहे हैं जबकि तुम अगर सिप के द्वारा म्यूचयल फ़ंड में जमा करते हो, और हम औसतन ११% के रिटर्न के हिसाब से बता रहे हैं, परंतु बाजार के प्रदर्शन से हम इतना तो कहते हैं कि कम से कम तुमको १५% रिटर्न मिलेगा जो कि लगभग २४ लाख रूपया होता है। अगर जोखिम नहीं लेना है तो थोड़ा ज्यादा निवेश हर माह करना होगा और उसे रिकरिंग डिपोजिट में जमा करते जाओ।

    अब हमारे मित्र बोले कि चलो हम ३५०० रूपया हर माह जमा करेंगे, कैसे करें यह और बताओ, हमने कहा कि जिस भी बैंक में तुम्हारा बचत खाता है उसे बैंक में चले जाओ और उनसे कहो कि मुझे २ म्यूचयल फ़ंड की सिप लेनी है –

१. २००० रूपये प्रतिमाह की IDFC Premium Fund – Growth – Direct

२. १५०० रूपये प्रतिमाह की HDFC Top 200 – Growth – Direct

    अब तुम पहली बार म्यूचयल फ़ंड में निवेश कर रहे हो तो पहली बार बैंक तुमसे KYC का फ़ॉर्म भरवायेगा और फ़िर म्यूचयल फ़ंड की सिप शुरू हो जायेगी।

    और भी बहुत सी बातें हुईं, जानकारियों पर बहुत ही अच्छी बातें हुईं.. जो अगली कुछ और पोस्टों में..

सकारात्मक और नकारात्मक खबरें समाचार चैनलों पर..

थोड़ा समय मिला तो समाचार देखे,

एक पट्टी घूम रही थी.. (निजी समाचार चैनल पर)
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मदद करने वाली पंचायतों का उत्तराखंड सरकार सम्मान करेगी ।
अभी तक तबाही से उबरे भी नहीं हैं, बचाव कार्य पूरे भी नहीं हुए हैं और इनके राजनीति चालू हो गई है।

जनता बचाव कार्य से खुश नहीं . (निजी समाचार चैनल पर)
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यहाँ पर दो तीन परिवार को समाचार चैनल लेकर बैठा हुआ था, जिनके खुद के परिजन इस आपदा का शिकार हुए, वे सरकार को बद इंतजामी के लिये कोस रहे थे.. जैसे टीवी चैनल कोपभवन ही बन गया हो। ( यहाँ कोसने की जगह क्या ये लोग वहाँ आपदा प्रबंधन में अपने स्तर पर मदद नहीं कर सकते थे, और किसी और के अपने को बचा नहीं सकते थे).. टीवी एंकर तो अपने चेहरे पर इतना अवसाद लिये बैठा था, जैसे उसे वाकई बहुत दुख हुआ हो ।

बचाव कार्य बहुत अच्छा है (सरकारी दूरदर्शन चैनल पर)
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सरकारी चैनल राज्यसभा और डीडी न्यूज पर दिखाया जा रहा था, किस तरह लोगों को बचाया जा रहा है, और एक ग्रामीण बचाव कार्य से खुश था उसका अनुभव टीवी पर दिखाया गया, जिससे लगा कि शायद निजी चैनल वालों का सरकार से बैर है।

सरकारी चैनल पर बचाव के बारे में सकारात्मक बातें दिखायीं जा रही हैं, जिनसे हर्ष होता है, परंतु वहीं निजी सरकारी चैनल नकारात्मक बातें दिखायीं जा रही हैं, जिनसे मन अवसादित होता है, निजी चैनल तो वही दिखाते हैं जो जनता देखना चाहती है और सरकारी चैनल वह दिखाते हैं जो सरकार जनता को दिखाना चाहती है, या एक पहलू यह भी हो सकता है कि तथ्यों का असली चेहरा शायद सरकारी लोग दिखा पाते हों, क्योंकि नकारात्मक बातें कहने वाले बहुत मिल जायेंगे परंतु सकारात्मक बातें कहने वाले बहुत कम, मतलब कि सरकारी समाचार चैनल वालों को सकारात्मक खबरें बनाने का दबाब तो रहता ही है, और उसके लिये ऐसे लोगों को ढूँढ़ना और भी दुष्कर कार्य होता होगा, यह तो एंकरों का क्षैत्र है इसके बारे में वही लोग अच्छे से बता सकते हैं, अपना डोमैन तो है नहीं, कि अपन अपने अनुभव पर विश्लेषण ठेल दें।

डीडी वन पर जो ऐंकर थे उन्हें पहले कहीं किसी निजी न्यूज चैनल पर समाचार पढ़ते हुए और इस तरह की समीक्षाओं/वार्ताओं में जोर जोर से चिल्लाते हुए देखा है, उनके हाथ चलाने के ढंग से ही समझ में आ रहा था कि वे अपने शो का नियंत्रण किसी ओर को देना ही नहीं चाहते हैं, और ना ही किसी की सुनना चाहते हैं, बस सब वही बोलें जो वे सुनना चाहते हैं या यूँ कहें कि अपने शब्द दूसरे के मुँह में डालने की कोशिश कर रहे हों।

मन ही मन सोचा कि इनको क्या ये भी अपने कैरियर के लिये इधर से उधर स्विच मारते होंगे, जहाँ अच्छा पैसा और पद मिला अच्छा काम मिला उधर ही निकल लिये, फ़िर थोड़े दिनों बाद कहीं और किसी निजी समाचार चैनल पर नजर आ जायेंगे।

पर यह तो समझ में आया सकारात्मक और नकारात्मक खबरों का असर बहुत होता है, तो इस मामले में हमें सरकारी समाचार चैनल बहुत पसंद आया, श्रेय इसलिये देना होगा कि उनको ग्राऊँड लेवल पर जाकर बहुत काम करना पड़ता है और निजी चैनल वालों के लिये यह बहुत आसान है क्योंकि नकारात्मक कहने के लिये एक ढूँढों हजार मिलते हैं।

मुंबई में बगीचा, ज्यूस..

    मुंबई में आये हुए आज लगभग २२ दिन पूरे हो गये, अभी तक इधर से उधर भागाभागी, आपाधापी मची हुई थी, मुंबई को समझने में ही इतना समय निकल गया । नई जगह नये लोग नया प्रोजेक्ट बहुत कुछ समझने के लिये होता है । वैसे मुंबई अपने लिये नई नहीं है, परंतु अब जिधर रहते हैं वह उपनगर नया है, आसपास के बगीचों का भी पता नहीं था।

    अब धीरे धीरे सब पता चल रहा है। अब जिस नई जगह आये हैं, वहीं सामने ही २ बगीचे हैं, एक तो बिल्कुल हाईवे पर ही है, जिसे पिछले दिनों हुए आतंकवादी हमले में शहीद पुलिस वाले के नाम पर बनाया गया है, या यूँ भी कह सकते हैं कि खाली पड़ी जगह का अच्छा सदुपयोग कर लिया गया है, बगीचे का एक चक्कर लगभग ४०० मीटर का होता है।

    कुछ दिनों से जाना शुरू किया है, अब बगीचे के भी अभ्यस्त होते जा रहे हैं, रोज ही घूमने वालों के चेहरे अब जाने पहचाने से लगते हैं, यहाँ तक कि कुछ लोग जो बस स्टॉप पर खड़े होते हैं, उनके चेहरे भी रोज ही देखने को मिलते हैं, मुंबई की यही खासियत है, सब मिनिट मिनिट के हिसाब से होता है, एक एक मिनिट कीमती है। यहाँ पर सबका अपना समय है और उनके समय के हिसाब से अपनी घड़ी मिलाई जा सकती है।

    बगीचा बढ़िया है, बैंचें भी लगी हुई हैं, घूमने के लिये फ़ुटपाथ बनाया गया है, और एक ही दिशा में चलने की इजाजत है, अगर विपरीत दिशा में घूमने लगे तो सुरक्षाकर्मी तत्काल उठकर अनुशासित कर देते हैं। बगीचे के बाहर ही एक ज्यूस वाली आंटी बैठती हैं, जिनके पास तरह तरह के डिब्बे में ज्यूस होते हैं।

    हमने पूछ ही लिया कि ये कौन से ज्यूस हैं, और इनकी क्या कीमत है, हमें बताया कि नीम, करेला, आँवला, लौकी, मौसम्बी, आम नाम तो और भी बताये थे हम भूल गये, पहले कड़वे वाले ज्यूस मिलाकर देती हैं फ़िर थोड़े से मीठे वाले ज्यूस और फ़िर १-२ चम्मच अंकुरित चना और मूँग, और कीमत मात्र १५ रूपये। सब घर का ही बना होता है, इसलिये ठीक ही लगता है।

    सेहत के लिये घूमना जरूरी है, और सुबह शाम ज्यूस पर जिंदा रहें तो शायद वजन अच्छा खासा कम हो सकता है।

ब्लॉगिंग के ९ वें वर्ष में प्रवेश..

आज दोपहर २.२२ समय को हमें ब्लॉग लिखते हुए ८ वर्ष पूर्ण हो जायेंगे और सफ़लता पूर्वक ९ वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। इन ८ वर्षों में बहुत से अच्छे दोस्त ब्लॉगिंग के कारण मिले हैं, केवल ब्लॉगिंग के कारण ही लगभग हर शहर में कहने के लिये अपनी पहचान है।

४-५ वर्ष पहले जब मुंबई में थे तब बहुत से ब्लॉगरों से मिलना हुआ फ़िर बैंगलोर के ब्लॉगरों से भी मिलना हुआ ।

बीते वर्षों में हमने कविताएँ, संस्मरण, आलोचनाएँ, जीवन के अनुभव, विचार, वित्त विषय पर लेखन ऐसी बहुत सारे विविध विषयों पर लेखन सतत जारी रहा। कभी लेखन में विराम लग जाता तो कभी लेखन क्रम में चलता रहता।

आज लगता है वाकई क्या हम अच्छा लिखते हैं, जो इतने सारे लोग पढ़ रहे हैं या केवल मजबूरी में पढ़ रहे हैं। सोचते हैं कि अब कुछ जरूरी चीजें जो छूट गई हैं, उन पर ध्यान दिया जाये, ब्लॉगिंग और फ़ेसबुक से थोड़ा किनारा किया जाये।

जुहु गोविंदा रेस्त्रां, समुद्र का किनारा, अमिताभ का घर और बुलेट ।

    सुबह मित्र को फ़ोन किया कि इस सप्ताहांत का क्या कार्यक्रम है, उनसे मैं शायद ३ वर्षों बाद मिल रहा था और ये मित्र मेरे आध्यात्मिक जीवन में बहुत महत्व रखते हैं। ये आध्यात्म को इतने गहरे से समझना और किसी और की जरूरत को समझने वाले मैंने वाकई बहुत ही कम लोग देखे हैं। उन्होंने कहा कि मैं ऑफ़िस से सीधा आपको लेने आ रहा हूँ फ़िर जुहु इस्कॉन स्थित गोविंदा रेस्त्रां में आज दोपहर का भोजन ग्रहण किया जायेगा।

    दोपहर में बिल्कुल समय पर हमारे मित्र हमें लेने आ गये और फ़िर amitabhहम चल दिये जुहु, एक सिग्नल पर हमारे मित्र ने बताया कि यह सामने जो घर है युगपुरूष अमिताभ बच्चन का घर है, तो सहसा ही अमिताभ का चेहरा आँखों के सामने घूम गया और अभी हाल ही में आई फ़िल्म बॉम्बे टॉकीज के अमिताभ बच्चन के ऊपर फ़िल्माये गये दृश्य याद हो आये। फ़िर लगा व्यक्ति कितना भी सफ़ल हो, परंतु रहना तो उसे धरती पर ही है और रहना भी घर में ही है, बस वह जिन ऐश्वर्य का सुख भोग सकता है वह हर कोई नहीं भोग सकता ।

  iskcon-juhu-govindas-01  गलियों में से होते हुए हम गोविंदा रेस्त्रां की तरफ़ बड़ रहे थे, इतने में तेज बारिश आ गई, मौसम खुला हुआ था, तेज धूप निकली हुई थी। मुंबई में यही खासियत है कब बारिश आ जाये कोई भरोसा नहीं। हम गोविंदा रेस्त्रां पहुँच चुके थे, वहाँ दरवाजे पर हमारी और समान की सुरक्षा जाँच हुई और हम रेस्त्रां में दाखिल हुए, संगमरमर की सीढ़ियों से होते हुए एक विशाल हॉल में आये जहँ  बैठने के लिये सोफ़े लगे हुए थे, जिनसे यह प्रतीत होता था, कि यहाँ पर प्रतीक्षारत लोगों को बैठाया जाता है, जब रेस्त्रां में जगह नहीं होती होगी। यहाँ दोपहर का भोजन ३.३० तक होता है।

    रेस्त्रां अंदर से बहुत अच्छी तरह से सुसज्जित था और बहुत सारे लोग govinda-sभोजन से तृप्त हो रहे थे। यहाँ पर खाना बफ़ेट होता है, विभिन्न प्रकार के सलाद, पकोड़े, चाट  पनीर की सब्जियाँ, रोटी, चावल, रायता और मिठाईयाँ उपलब्ध थीं। खाना बहुत ही स्वादिष्ट था, साथ में फ़लों का रस, केहरी पना और मठ्ठा भी परोसा जा रहा था। खाने के बाद में आइसक्रीम का प्रबंध भी था। और इस सबके लिये एक व्यक्ति के खाने का खर्च ३५०/- खाने के हिसाब से हमें ठीक लगा । हालांकि अगर आजकल के आधुनिक बफ़ेट रेस्त्रां में और महँगा होता है परंतु यहाँ खाने का स्वाद, गुणवत्ता एवं इतने प्रकार की खाद्य पदार्थ के सामने  आधुनिक रेस्त्रां का टिकना मुश्किल है। खैर यह तो अपनी अपनी पसंद है।

    भोजन से तृप्त होकर हम बाहर निकले और हमारे मित्र ने पूछा कि जुहु बीच चलोगे, हमने कहा बिल्कुल चलो हमें लहरों की आवाज सुनने का सुखद आनंद लेना है, मचलती और वेगों से आती लहरों को देखना है, वहाँ से पैदल ही हम जुहु बीच की और चल दिये मुश्किल से ५ मिनिट में हम जुहु बीच पर थे, प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य को मानव किस तरह से नष्ट करता है, जुहु बीच इसका जीवंत उदाहरण है, बीच पर जहाँ तक देखो वहाँ तक कचरा और पोलिथीन बिखरे पड़े थे। जोड़े कहीं ना कहीं एकांत ढूँढ़ रहे थे। बहुत से युगल हाथों में हाथ डाल बीच पर समुद्र के किनारे टहल रहे थे। जो पहली बार आये थे समुद्र देखने वे और कुछ मनमौजी लोग समुद्र के पानी में भीगने गये हुए थे। पता नहीं इतने गंदे पानी में कैसे भीग सकते हैं, अगर समुद्र का पानी साफ़ हो तो नहाने का अपना अलग मजा है। बीच पर समुद्र के पास शांति से थोड़ा समय बिताने के बाद वापस जाना निश्चय किया गया।

    समय साथ में बिताना था, तो हम मित्र के फ़्लेट में उनके साथ ही चल दिये, खाने के बाद का नशा अब चेहरों पर दिखने लगा था, सोचा थोड़ा लोट लगा ली जाये और फ़िर बातें की जायेंगी, खैर बातें तो जारी ही थीं। थोड़ी देर आराम करने के बाद अचानक ही एक मित्र के बारे में बात होने लगीं, वे भी पास ही में रहते थे। उनसे फ़ोन पर बात की गई और उनके यहाँ जाने का निश्चय किया गया। हमारे मित्र ने हमसे कहा Bulletआप अब हमारी बुलेट से चलो, और आप ही बुलेट चलाओ। हमने कहा कि हमने तो वर्षों पहले बुलेट चलाई थी, तो पता नहीं चला पायेंगे या नहीं। हमारे मित्र बोले आप चिंता मत करो, आराम से चला पाओगे। हमने भी बुलेट की सवारी की और देखा कि बुलेट में भी बहुत सारे आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध करवा दी गई हैं। अब केवल बटन दबाने पर भी बुलेट शुरू हो जाती है और बुलेट की आवाज मन को सुहाती है। बुलेट की सवारी राजा सवारी कहलाती है। आदमी बुलेट पर ही असली जवाँ मर्द दिखता है, लोग उसी की और देखते हैं, बहुत सारे बदलाव बुलेट चलाने के दौरान महसूस हुए, पर वर्षों बाद ऐसा लगा कि वाकई बुलेट ही असली दोपहिया सवारी है।

    अपने दूसरे मित्र के घर पहुँचे जो हमारे पारिवारिक मित्र हैं, वहाँ बातों का जो दौर चला, समय का पता ही नहीं चला, हमने मित्रों से विदा ली, हमारे मित्र ने कहा इधर ही रुक जाओ, हमने कहा, नहीं हम जहाँ रुके हैं वह भी पास ही है तो हम वहीं जाते हैं। (जब हम खाना खाने के बाद मित्र के घर लोटने पहुँचे तो देखा कि उनके यहाँ गद्दे नहीं हैं, वे तो चटाई पर ही सोते हैं, वे पक्के भक्त आदमी हैं, हमारी परेशानी को समझ उन्होंने हमारे लिये उनके पास रखी रजाई को चटाई पर बिछाकर थोड़ा गद्देदार बनाने का प्रयास किया, हम भी लोट लिये, परंतु आरामतलब शरीर १० मिनिट से ज्यादा नहीं लेट सका) और हमने उनसे कहा कि कामना तो गद्दे पर सोने की ही है, इसलिये भी जाना ही चाहिये।

    इस प्रकार अपने मित्रों से मिलकर उनके साथ समय बिताकर आत्मा तृप्त हो गई।

जीवन की कठिनाइयों में परिवार का साथी बीमा

    जीवन बहुत कठिन है और जीवन में कई तरह की कठिनाइयाँ पल familyपल पर आपका इंतजार करती हैं, जिससे जूझते हुए हम जीवन को सुखद एवं सफ़ल बनाते हैं। जीवन में कई आपातकाल भी आते हैं, जहाँ ना अपने काम आते हैं और ना ही पराये काम आते हैं। इसके लिये हमें खुद ही तैयारी करनी पड़ती है, सोचना पड़ता है, योजना बनानी पड़ती है।

    मनुष्य के जीवन के आपातकाल कौन से होते हैं, आपातकाल मुख्यत:money उसे कह सकते हैं, जब आप वाकई कठिनाई में हों और कोई रास्ता ना सूझ रहा हो और उस समय अपना / पराया कोई सहायता नहीं करने आता । सुख में तो सभी आपके साथ हैं परंतु दुख में कोई दूर दूर तक नहीं दिखता ।

जीवन की सबसे ज्यादा कठिनाई के क्षण होते हैं –

insurance१. मौत

२. बीमारी

३. दुर्घटना

    इन तीनों ही स्थिति में परिवार टूट जाता है और कहीं ना कहीं सहारा ढूँढ़ता है, और इन तीनों से परिवार को केवल बीमा से सुरक्षित किया जा सकता है ।

१. मौत

 

२. बीमारी

 

३. दुर्घटना

सावधि जीवन बीमा (Term Insurance)

Mediclaim Insurance / Critical Insurance

Personal Accidental Insurance

   इस प्रकार उपरोक्त कठिनाइयों से बीमा द्वारा परिवार को सुरक्षित किया जा सकता है। एवं साथ में परिवार को आपातकाल के लिये इनका उपयोग भी बताना चाहिये। जिससे परिवार बीमे का सही उपयोग कर पाये और उस आपातकाल वाले कठिन क्षणों में बीमे से उसे साहस बँधे, क्योंकि अधिकतर आपातकाल में धन की कमी बहुत महसूस होती है और आजकल महँगाई सर चढ़कर बोल रही है।

शिक्षा काल की दोस्ती भविष्य में..

    गुरू द्रोण और द्रुपद दोनों ने एक साथ महर्षि अग्निवेश के आश्रम में धनुर्वेद की शिक्षा प्राप्त की, तब दोनों अच्छे मित्र हुए..

    उस समय द्रुपद ने द्रोण से कहा था .. “प्रिय द्रोण, तुम मेरे अत्यंत प्रिय मित्र हो, जब मैं आने पिता की राजगद्दी पर बैठूंगा, उस समय मेरे राज्य का तुम भी उपभोग करना । मेरे भोग, वैभव और सुख सब पर तुम्हारा अधिकार होगा।”

    धनहीन अवस्था में द्रोण जब द्रुपद के पास मदद की आस लेकर गये तब द्रुपद राजगद्दी पर आसीन हो चुके थे, तब द्रुपद ने द्रोण से घृणापूर्वक कहा “आश्रम का जीवन समाप्त हो चुका। गुरू आश्रम में बहुत विद्यार्थी साथ रहते, खेलते और शिक्षा प्राप्त करते हैं। मगर दरिद्र धनवान का, मूर्ख विद्वान का और कायर शूरवीर का मित्र नहीं हो सकता ।”

    उपरोक्त कथा से दोस्ती के एक और रूप का पता चलता है । जिसमें दोस्ती नाम मात्र की नहीं है, दोस्त जो राजा बन चुका है उसका घमंड दिखाई पड़ता है। और इस तरह की दोस्ती आजकल बहुतायत में देखी जा सकती है, खासकर पढ़े लिये नौजवान पीढ़ी में ।

    दोस्ती के ऐसे रूप युग युग से देखने में आ रहे हैं, आज भी देखने में आते हैं, दोस्ती जो शिक्षा के काल में पल्लवित होती है वह धीरे धीरे भौतिक वस्तुओं और पद की भेंट चढ़ जाती है। यहाँ दोस्ती केवल तभी रह सकती है जबकि मित्रों के बीच आपस में बहुत प्रेम हो, भौतिक वस्तुओं और पद की लालसा ना हो। आपस का फ़ायदा एक अलग बात है, परामर्श भी एक अलग बात है, परंतु केवल फ़ायदे के लिये मित्रता बनाये रखना शायद बहुत दुष्कर होता है।

    हमारे आज भी ऐसे मित्र हैं जो बचपन से हैं और इन सब चीजों से दूर हैं, इसे खुशनसीबी ही कही जायेगी। आज भी उनके बीच जाकर मन प्रसन्न हो जाता है। दोस्ती निभाना बहुत कठिन और तोड़ना बहुत आसान होता है।

    दोस्तों में आपस में जो तालमेल होता है वह शायद ही कहीं देखने को मिलता है, दोस्तों को हमारी अधिकतर गुप्त बातें पता होती हैं, हमारे सुख दुख में सबसे पहले दोस्त ही खड़े होते हैं, रिश्तेदार बाद में आते हैं।

    जो द्रुपद जैसे दोस्त होते हैं ऐसे लोगों का वाकई में दोस्त ना होना अच्छा है। परंतु कुछ बहुत अच्छे दोस्ती के उदाहरण भी हैं जैसे कृष्ण और सुदामा । कृष्ण जी ने खुद अपने हाथों से सुदामा जी के पैर धोये थे और इतना सम्मान दिया कि सुदामा व्याकुल हो उठे थे।

बिना पेन कार्ड के म्यूचयल फ़ंड माइक्रो निवेश सुविधा (Without PAN !!! Invest in Micro Investment Facility)

    बिना पेन कार्ड के म्यूचयल फ़ंड में निवेश करना बहुत मुश्किल है, वह भी जब से नियामक ने KYC के नियम म्यूचयल फ़ंड खरीदने के लिये लागू कर दिये हैं, तब २०११ में नियामक ने म्यूचयल फ़ंड खरीदने के लिये जिन लोगों के पास पेन कार्ड नहीं थे उन लोगों के लिये नियामक ने माइक्रो निवेश सुविधा उपलब्ध करवाई ।

    अभी हाल ही में रिलायंस म्यूचयल फ़ंड ने भी माइक्रो निवेश सुविधा (Micro Investment Facility) उपलब्ध करवाई है, जो कि बाजार में १४ जून से आम निवेशक के लिये उपलब्ध है।

     माइक्रो निवेश सुविधा के तहत निवेशक वर्षभर में ज्यादा से ज्यादा केवल ५०,००० रूपये का निवेश कर सकता है, फ़िर भले ही वह निवेश सिप (SIP – Systematic Investment Plan) या फ़िर एक मुश्त (LumpSum Investment) हो, पर कुल मिलाकर दोनों या एक निवेश ५०,००० रूपयों से ज्यादा नहीं होना चाहिये। और यह ५०,००० रूपये अप्रैल से मार्च के मध्य ही निवेशित होने चाहिये, याने कि अगर किसी को अपना निवेश जारी करना है तो उसे वित्तीय वर्ष का पालन करना होगा ।

    इस सुविधा को केवल वही निवेशक ले सकेगा जिसके पास अधिकृत रूप से पेन कार्ड नहीं है, और अगर अगर निवेशक उस वित्तीय वर्ष के मध्य में इस योजना से निकास करता है तो वह उस ५०,००० रूपये की लिमिट में नहीं आयेगा।

    यह सुविधा केवल व्यक्तिगत, एन आर आई, अल्पवयस्क संरक्षक के साथ, एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय एवं संयुक्त खाते को उपलब्ध है। पहले खातेधारी के पास पेन कार्ड नहीं होना आवश्यक शर्त है । अन्य श्रेणियाँ जैसे PIO, HUF, QFI, Non-Individuals इस सुविधा का उपयोग नहीं कर सकते हैं।

म्यूचल फ़ंड क्या करें, क्या न करें ? (Mutual Funds DOS and DON’TS)

    माइक्रो निवेश सुविधा में निवेश करने के लिये निवेशक को निम्न दस्तावेज निवेशक सुविधा केन्द्र पर जमा करने होंगे –

१. साधारण आवेदन पत्र

२. PAN Exempt KYC Reference No (PEKRN) acknowledgement issued by KRA. For more details click here

    यहाँ निवेशक को ध्यान रखना चाहिये कि वह एक वित्तीय वर्ष में केवल ५० हजार रूपये ही निवेश कर सकता है।

micro investment facility

    ऊपर दिये गये उदाहरण में एक्स महाशय एकमुश्त और सिप के जरिये एक वित्तीय वर्ष में जो निवेश कर रहे हैं, वह ५०,००० रूपये से कम है इसलिये यह वैधानिक है, परंतु वाय महोदय का निवेश एक वित्तीय वर्ष में ५०,००० रूपयों से ज्यादा हो रहा है इसलिये इनका आवेदन पत्र ही अस्वीकार कर दिया जायेगा।

और उसका घर का सपना, सपना ही रह गया

     एक किस्सा बताते हैं, एक बार नौकरीशुदा आदमी ने सोचा चलो अपने गृहनगर में नये फ़्लैट बन रहे हैं, और अपनी पहुँच में हैं तो क्यों ना उसमें एक फ़्लैट ले लिया जाये, पता लगाया गया बंदा भारत के दूसरे कोने में रहता था, उसने अपने पापा को कहा कि आप इसके बारे में पता कीजिये, पापा ने कहा कि उसका एक दलाल है जो कि अपने वो किराने वाली दुकान वाले का भाई ही है, और वह कह रहा है कि १० लाख में मिल जायेगा, और पूरे १० लाख पर लोन भी हो जायेगा और उसने १ बीएचके ५०,००० रूपये देकर पापा के मार्फ़त फ़्लैट बुक करवा लिया ।

सपनोम का घर

     जब वह बंदा एक महीने बाद अपने गृहनगर गया तो जब उसने दलाल और बिल्डर से बात की तो पता चला कि लोन तो केवल ७.६५ लाख पर ही होगा, बाकी तो ब्लैक में देना है, मतलब कि लगभग २.३५ लाख जेब से लगाने होंगे, बंदे ने कहा कि मेरे पास तो केवल १० लाख का २०% याने कि २ लाख रूपये हैं, और एक पैसा ऊपर देने के लिये नहीं है, और आपने बुक करवाते समय पूरी जानकारी नहीं दी। तो बिल्डर और दलाल दोनों ने कहा कि आप चिंता मत करो आपको २.३५ लाख का पर्सनल लोन दिलवा देंगे, बंदे ने कहा भई गृहऋण का ब्याज होता है १० % और पर्सनल लोन का ब्याज होता है १५-१६%, ये ऊपर का ५-६% कौन भुगतने वाला है, मैं तो यह ऊपर का ब्याज नहीं दूँगा, तो दलाल और बिल्डर दोनों भड़क गये कि एक तो हम आपको ऋण दिलवा रहे हैं और आप नाटक कर रहे हैं ।

सपनो का घरहोमलोन

     उस बंदे की अपने गृहनगर में बहुत सी बैंकों में अच्छी पहचान भी थी और बैंक वालों से दोस्ती भी थी, जब वह अपने बैंक के मैनेजर दोस्तों से मिला तो पता चला कि अभी तक इस बिल्डर को किसी भी राष्ट्रीयकृत और निजी बैंक ने एनओसी नहीं दी है, और उन्होंने बताया कि बिल्डर ऐसे ही प्रोजेक्ट के नाम पर पैसा बाजार से उठाते हैं और बैंक से ऋण दिलवा कर लोगों को फ़ँसवा देते हैं, फ़िर २-३ फ़्लोर बनाकर बिल्डिंग बनाना बंद कर देते हैं और अधिकतर ऋण की किश्तें जो कि बैंक से उन्हें लेनी होती हैं, वे इस प्रकार रखते हैं कि २-३ फ़्लोर तक ही उनके पास सारी रकम आ जाये। एक बार सारी रकम आ जाती है तो ये लोग भाग लेते हैं और जनता को अच्छा खासा चूना लगा देते हैं। इस तरह के बहुत सारे केस हो चुके हैं, और जनता को पता ही नहीं चल पाता है।

     मैनेजर मित्र की बातें अक्षरश: सत्य थीं, क्योंकि बैंक से ऋण लेने का फ़्लो बिल्डर ने दिया था वह बिल्कुल वैसा ही था केवल २ फ़्लोर बनने के पहले ही वह सारा पैसा बैंक से लेता, और भाग लेता ।

     अब उस बंदे ने निश्चय किया कि वह इस फ़्लैट को नहीं लेगा और अपने पैसे उन्हें वापिस करने के लिये कहेगा जो कि उसने बुकिंग के नाम पर दिये थे, परंतु उन्होंने पैसे देने से मना कर दिया और कहा कि आप अपनी तरफ़ से कैंसिल कर रहे हैं, इसलिये एक भी पैसा वापिस नहीं मिला । हालांकि उस बंदे के भी अच्छे कॉन्टेक्ट्स थे परंतु उसने सोचा कि यह केस लीगल तरीके से ही लड़ा जाये, क्योंकि उसके अभिभावक उसके गृहनगर में अकेले रहते थे।

     तब उसने अपने कुछ ब्लॉगर मित्रों की सहायता से मार्गदर्शन प्राप्त किया और बिल्डर और दलाल की शिकायत कलेक्टर और एस.पी. ऑफ़िस में की, जब वह बंदा कलेक्टर से मिलने गया तो कलेक्टर ने कहा कि अगर हमें भी आज फ़्लैट खरीदना है तो ब्लैक में पैसा देना ही होगा, बंदे को कलेक्टर की बात सुनकर बहुत आघात लगा। फ़िर भी वह कलेक्टर और एसपी ऑफ़िस में अपने आवेदन पर आवक लेकर आ गया और फ़िर वह तो वापिस अपनी नौकरी के लिये चला गया, उसने अपने पापा को फ़िर एक सप्ताह बाद कहा कि फ़िर से उसी आवेदन की फ़ोटोकॉपी करवाकर उस पर फ़िर से आवक ले आये और उस पर लिख दे Reminder 1 फ़िर Reminder 2 भी भिजवाया और एक सप्ताह बाद ही तहसीलदार की कोर्ट से नोटिस आ गया।

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     तहसीलदार की कोर्ट में वादी तरफ़ से कोई उपस्थित नहीं हुआ परंतु दलाल खुद से आगे होकर आया और कहा कोर्ट के बाहर ही सैटलमेंट कर लेते हैं, और आधे रूपये में कोर्ट के बाहर सैटलमेंट कर लिया, वह भी इसलिये कि अभिभावकों को परेशानी होती। नहीं तो उसे उसके पूरे पैसे वापिस जरूर मिल जाते, परंतु कुछ चीजें होती हैं जो पैसे से बढ़ कर होती हैं।

     उस बंदे ने २५ हजार केवल यह समझकर सीखने के लिये खर्च कर दिये कि फ़्लैट लेने के पहले क्या चीजें जरूरी हैं और जरूरी चीजें पहले ही पता कर ली जायें, जब पैसा एक नंबर में कमाया जाता है तो फ़िर २ नंबर में क्यों दिया जाये। खैर उसका घर का सपना, सपना ही रह गया ।

एक और क्रेडिट कार्ड (One More Credit Card)

    हमने क्रेडिट कार्ड (Credit Card) लगभग ६ वर्ष पहले उपयोग करना शुरू किया था, तब हमें ज्यादा जानकारी नहीं थी सैलेरी बैंक अकाँऊट (Salary Account) ने हमें क्रेडिट कार्ड (Credit Card) के लिये कहा तो हमने भी ले लिया।  क्रेडिट कार्ड (Credit Card) लेने के पहले इसके उपयोग और जीवनक्रम की पूर्ण जानकारी ले ली गई, उसका फ़ायदा यह है कि आज तक हमने लेटफ़ीस (Late Fees) और किसी भी तरह का अतिरिक्त शुल्क (Extra Charges on Credit Card) किसी भी क्रेडिटकार्ड (Credit Card) बैंक को नहीं दिया है।
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    क्रेडिटकार्ड की सबसे अच्छी सुविधा यह लगती है कि आप बैंक के धन को ५० दिन तक उपयोग में ला सकते हैं और आखिरी दिन के एक दिन पहले का बैंक के अपने अकाऊँट से ऑटो डेबिट सुविधा से जोड़ दें तो आपको ध्यान भी नहीं रखना होगा कि क्रेडिट कार्ड के भुगतान की आखिरी दिनांक क्या है । नहीं तो लेट होने पर क्रेडिट कार्ड बैंकों की ब्याज दर ३२ से ४८ प्रतिशत सालाना तक होती हैं, इसलिये हमेशा खरीददारी करते समय याद रखें कि आपको इस खरीद का भुगतान आज अपनी जेब से नहीं परंतु आज से ५० दिन बाद या उस क्रेडिट कार्ड के बिल के जीवनक्रम के अनुसार करना ही है।
    क्रेडिटकार्ड की क्रेडिट की लिमिट अधिकतर मासिक आय पर निर्भर करती है, हमने तो सबसे कम लिमिट करवा रखी है क्योंकि अधिक लिमिट मतलब अधिक खतरा.. खतरा खरीददारी से नहीं.. खतरा धोखे से चोरी से.. जितनी कम क्रेडिटकार्ड की लिमिट होगी उतनी ही कम जिम्मेदारी अपने ऊपर होगी।
    बीच में पिछले वर्ष एक क्रेडिटकार्ड बैंक ने फ़ोन करके कहा कि पहला वर्ष यह कार्ड मुफ़्त है और अगर आपको अच्छा लगे इसके फ़ीचर अच्छे लगें तो आप इसे ९९९ रूपये में नवीनीकरण करवा सकते हैं। हमने कार्ड ले लिया तो हमारा पुराना कार्ड का उपयोग बंद हो गया, केवल उस कार्ड का उपयोग पेट्रोल भरवाने तक ही सीमित रह गया और सारे लेने देन व्यवहार इस नये क्रेडिट कार्ड पर आ गये, इसका एक फ़ीचर जो हमें बेहद पसंद है वह है ५% कैश बैक। याने कि निर्धारित दुकानों से एक हजार के ऊपर खरीदारी करने पर ५% कैश बैक मिल जाता है, हमें यह कार्ड बहुत अच्छा लगा, और हमने इस वर्श इसका नवीनीकरण भी करवा लिया ।
    अभी पिछले महीने फ़िर एक क्रेडिट कार्ड कंपनी से फ़ोन आया कि यह आपके कंपनी के कर्मचारियों के लिये विशेष ऑफ़र है और लाईफ़ टाईम फ़्री कार्ड है, इसमें आपको हर १०० रूपये की खरीदारी पर १ रिवार्ड पाईंट मिलेगा जिसकी कीमत ७५ पैसे होगी उसे आप कैश में भी उपयोग कर सकते हैं या फ़िर जेपी एयर माईल्स खरीद सकते हैं । हमने फ़िर से सोचा और उनको मना कर दिया कि हमारे पास पहले से ही अच्छा कार्ड है और अब एक और कार्ड लेने का बिल्कुल मन नहीं है, परंतु कार्ड बेचने वाले भी बिल्कुल निपुण होते हैं, उन्होंने कहा “सर, इसमें मूवी भी एक पर एक टिकट फ़्री है”, हमने कहा “पर एक टिकट के पैसे तो देने ही पड़ेंगे ना !!, और हम मूवी नहीं देखते”, तो थकहार कर  कहा कि “आप देख लो थोड़े दिन उपयोग करके, फ़िर अच्छा नहीं लगे तो सरेंडर कर देना”, हमने फ़िर से सोचा और देखा कि शायद कहीं फ़ायदा है, तो यह कार्ड भी ले लिया।
    अब क्रेडिट कार्ड का बिल देखते हैं तो बिल की रकम कुछ ज्यादा ही लगती है परंतु जब एक एक ट्रांजेक्शन देखते हैं, तो पता चलता है कि फ़ालतू का खर्च कुछ भी नहीं है जिसे अगले महीने से ना किया जाये । हाँ यह है कि अब हम नकद में बहुत ही कम ट्रांजेक्शन करते हैं। अब नये कार्ड का उपयोग करके देखा जायेगा, कि वाकई कितना फ़ायदा होता है।