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जेद्दाह में सप्ताहांत, टैक्सीवाले की बातें, निराला में भोजन, मुशर्रफ़ और एमग्रांड कार (Weekend in Jeddah, Taxiwala, Lunch In Nirala, Musharraf and Emgrand Car)

    जेद्दाह में अभी लगभग ५० डिग्री तापमान चल रहा है कहने के लिये केवल ५० डिग्री है परंतु रेगिस्तान होने के कारण ये बहुत ही भयंकर वाली गर्मी पैदा होती है, ऊपर से हरियाली नहीं है। कहीं भी जाना हो टैक्सी में ही जाना पड़ता है, आज फ़िर टैक्सी करके निराला रेस्टोरेंट जाना तय किया।
    होटल से निकल लिये और टैक्सी रोकी, निराला रेस्टोरेंट का बताया और चल दिये मात्र १० रियाल, निराला रेस्टोरेंट यहाँ जेद्दाह में बहुत प्रसिद्ध है और अपने बेहतरीन स्वाद के लिये जाना जाता है। जैसे ही टैक्सी में बैठे आगे पेट्रोल पंप पर उसने अपनी टैक्सी रोकी और कहा पेट्रोल लेना है, पेट्रोल ना होने की लाल बत्ती बार बार दिख रही थी, १८ रियाल दिये पेट्रोल पंप कर्मचारी को और ४० लीटर पेट्रोल डाल दिया गया, टैक्सीवाले का नाम सैफ़ुल्ला था और बंदा पाकिस्तान से था, कहने लगा कि यहाँ देखिये ४१ हलाला का एक लीटर पेट्रोल मिलता है और १८ रियाल में टैंक फ़ुल हो गया। साथ में १.५ लीटर पानी की बोतल और पसीना पोंछने के लिये टिश्यु पेपर का १ बॉक्स फ़्री। इतने में ही उसके पास फ़ोन आ गया (जी हाँ यहाँ पेट्रोल पंपों पर मोबाईल फ़ोन पर बात करने की पाबंदी नहीं है, पता नहीं भारत में किसने लगाई), पंजाबी भाषा में बात करने लगा, इतना समझ में आया कि किसी ने मुर्गी पकाई है और वह पंद्रह बीस मिनिट में खाने पहुँच जायेगा।
    टैक्सीवाले ने बताना शुरु किया कि पाकिस्तान में १०३ रुपया पेट्रोल था अभी सरकार ने १० रुपये कम किये हैं, हमारे मित्र ने कहा जरदारी को हटा दिया, तो उनका कहना था कि सारे हुक्मरान ऐसे ही हैं, बस पैसा खा जाते हैं, भ्रष्टाचार करते हैं और अवाम को मरने के लिये छोड़ देते हैं, सारा पैसा अपनी जेब में रख लेते हैं जैसे अल्लाह के पास सारा पैसा लेकर जायेंगे।
    जब मुशर्र्फ़ का शासन था तब बहुत अच्छा था, यह चुनाव जो हैं पाकिस्तान के लिये नहीं बने हैं, पाकिस्तान तो सैनिक शासन में ही खुश रहता है, आज पाकिस्तान के अधिकतर जगहों पर २२ घंटे बिजली नहीं आती, जब मुशर्रफ़ थे तब एक मिनिट के लिये भी बिजली नहीं जाती थी। वाप्टा (बिजली विभाग का दफ़्तर) में यह हालात थे मुशर्रफ़ के आने के पहले कि केवल २५% कर्मचारी चढ्ढी बनियान में बैठे रहते थे और बाकी के बचे हुए घर पर ही रहते थे और मुफ़्त की तन्ख्वाह खाते थे। जैसे ही मुशर्रफ़ का शासन आया, उन्होंने सेना की टुकड़ियाँ सारे सरकारी महकमे में भेजी और कहा देखो क्या काम चल रहा है और अगर काम नहीं हो रहा है तो काम करवाओ।
    जब सेना वाप्टा पहुँची तो देखा कि सारे कर्मचारी हाजिर ही नहीं हैं, तो सेना के अफ़सरान ने कहा, कल सारे कर्मचारी यहाँ यूनिफ़ार्म में उपस्थित होने चाहिये नहीं तो बस छुट्टी समझो। इस तरह से सारे सरकारी महकमों को ठीक किया गया। अब लोकतंत्र की बहाली के बाद वापिस से वही पुराना हाल हो गया है।
    हम लोग पाकिस्तान से यहाँ आकर मजदूरी करके, टैक्सी चलाकर पेट पाल रहे हैं और हुक्मरान हमारे हिस्से का पैसा अपनी जेब में भरे जा रहे हैं। जब सारे देशों से मदद आयी तो उस मदद को भी हुक्मरानों ने अपने घर में भर लिया और पाकिस्तान की जनता उससे महरूम रह गई। जब सऊदी सरकार ने भी मदद की पेशकश की तो हुक्मरान ने कहा आप मदद भेज दीजिये हम गरीबों में मदद भिजवा देंगे, तो यहाँ की सरकार ने कहा कि मदद हम सीधे गरीबों को देना चाहते हैं, और यहाँ से सेना मदद लेकर गई और सीधे पाकिस्तान की गरीब जनता को मदद दी गई, सही मायने में केवल यही मदद जनता के पास पहुँची, बाकी तो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई, यहाँ रेल्वे की हालत यह है कि चंद ट्रेनें ही चलती हैं, बस बंद होने की कगार पर है।
    आगे टैक्सी ड्राईवर का कहना था,  साहब आपका भारत तो बहुत अच्छा है, कम से कम सरकार मीडिया और कोर्ट के पास अधिकार तो हैं, उनके पास पॉवर तो है।
    हमारा रेस्टोरेंट आ गया था सप्ताहांत का माहौल था, यहाँ वेज और नॉनवेज दोनों मिलता है, हम तो वेज ही खाते हैं और यहाँ की दाल, आलू मैथी और रोटियाँ बहुत पसंद आईं, और कुल्फ़ी के तो क्या कहने, एकदम बेहतरीन।
    आते समय वहीं रेस्टोरेंट के पास कालीन की दुकान थी, जिसमें हमें तुर्की का कालीन बहुत अच्छा लगा, बहुत ही अच्छी कारीगरी वाला नीले रंग में, परंतु वह हमारे मित्र को पसंद आ गया, तो हमने कहा आप ले लीजिये और दुकानवाले को कहा कि हमारे लिये एक ऐसा ही मंगवा दीजिये अगले १-२ दिन में आकर ले जायेंगे।
    आते समय टैक्सी वाला बता रहा था कि सऊदी में अभी एम्ग्रांड चाईना की नई कार आई है, ३९,००० रियाल में सबसे अच्छा मॉडल है और कैमरी की सेल्स को इस गाड़ी ने पीटकर रख दिया है, आगे एक लेपटॉप भी दिया है, गाड़ी इतनी बड़ी है कि मर्सीडिज भी कहीं नहीं लगती, बहुत शान-शौकत वाली गाड़ी है।
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    हमारा होटल आ चुका था हमने १० रियाल चुकाये और फ़तूरा (बिल) लेकर उतर गये। सोचने लगे कि अगर यही गाड़ी भारत में आ गई तो लगभग ३-४ लाख की होगी, अभी तो ट्राफ़िक की यह हालत है बाद में क्या होगी।

छुट्टियाँ शुरू और बैंगलोर से कर्नाटक एक्सप्रेस

कल से हमारी छुट्टियाँ शुरू हो रही हैं और कल बैंगलोर से कर्नाटक एक्सप्रेस से निकल रहे हैं, वापस बैंगलोर आने तक धौलपुर, वृन्दावन, मथुरा, आगरा, ग्वालियर और उज्जैन जाना हो रहा है।

इस बार ऑनलाईन रहने के लिये फ़ोन के जीपीआरएस के साथ साथ टाटा फ़ोटोन भी ले कर जा रहे हैं, अगर ट्रेन के डिब्बे में बराबर चार्जिंग की सुविधा हुई तो काफ़ी पढ़ना होगा और अगर चार्जिंग की सुविधा पिछली बार जैसी हुई तो फ़िर भगवान ही मालिक है।

कुछ किताबें रख ली गई हैं और उम्मीद है कि इस यात्रा के दौरान इन किताबों को निपटा दिया जायेगा और भरभर कर ज्ञान ले लिया जायेगा।

खूब सोया जायेगा, खूब खाया जायेगा और खूब मजा किया जायेगा।

राधे बिहारी और महाकाल का नाम लेकर कल से यात्रा पर निकल रहे हैं।

दलालों का शहर मुंबई (City of Brokers, Mumbai)

मुंबई छोड़े अब १ साल से अधिक हो गया है कुछ बातों में मुंबई की बहुत याद आती है और कुछ बातों से मुंबई से कोफ़्त भी होती है, जैसे कि दलालों का शहर मुंबई है। मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है और रियल इस्टेट में हर जगह ब्रोकर याने कि दलालों का बोलबाला है। आजकल क्या मैं तो बरसों से मुंबई में देख रहा हूँ मुंबई में दल्लों का धंधा चोखा है।
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आपको फ़्लेट किराये पर लेना हो या खरीदना हो हरेक जगह ब्रोकरों का राज है। मुझे अच्छे से याद है जब मैंने मुंबई आखिरी बार फ़्लेट किराये पर लिया था तब तक ब्रोकर लोग किरायेदार से एक महीने का किराया ब्रोकर के रूप में लेते थे और ११ महीने का कान्ट्रेक्ट होता है। ११ महीने बाद अगर उसी फ़्लेट को रिनिवल करवाना है तो उसके लिये भी एक महीने का किराया ब्रोकरेज के रूप में देना पड़ता था।
आज ही छोटे भाई से बात हो रही थी तो पता चला कि अब ब्रोकरेज याने कि दलाली फ़्लेट लेने के लिये दो महीने की लेने लगे हैं और रिनिवल पर एक महीने का किराया ब्रोकरेज के रूप में लिया जा रहा है। वहाँ मुंबई में आम आदमी तो कमाने के लिये गया है और ये ब्रोकर बैठे हैं लूटने के लिये। प्रशासन भी आँख मूँदे पड़ा है। बेचारा बाहर का आदमी आयेगा तो उसे तो परिवार के रहने के लिये घर चाहिये ही, और सब अपने परिवार को अच्छी जगह पर रखना चाहते हैं, तो मजबूरी में ब्रोकरेज भी देते हैं।
अगर बात अब आंकड़ों में की जाये, १ बीएचके याने कि लगभग ४६५ स्क्वेयर फ़ीट का फ़्लेट का किराया कांदिवली पूर्व में लगभग १८,००० से २१,००० रूपये है, अब किरायेदार को ब्रोकरेज के तौर पर कम से कम ३६,००० रूपया तो ब्रोकर को ही देना है और यह एग्रीमेंट मकान मालिक के साथ ११ महीने का होता है, और एग्रीमेंट रजिस्टर्ड होता है, उस रजिस्ट्रेशन का खर्च आधा आधा मकान मालिक और किरायेदार को वहन करना होता है जो कि ब्रोकर लगभग ७,००० रूपया लेते हैं। तो आधा हो गया ३,५००। ११ महीने के बाद फ़िर से बड़े किराये के साथ ब्रोकर का ब्रोकरेज भी बढ़ जाता है।
और ब्रोकर तो मुंबई में कुकुरमुत्ते की तरह हैं, हर गली हर चौराहों पर ब्रोकर मिलेंगे, ये ब्रोकर हरेक तरह का सहारा लेते हैं और गुंडई करने से भी बाज नहीं आते।
हमने अनुमान लगाया था कि अगर ब्रोकर के पास कम से कम ऐसे १०० ग्राहक भी हैं तो उसकी वर्ष भर की कमाई कम से कम १८ लाख रूपये है, और अधिक तो अब क्या बतायें ये तो आप खुद अनुमान लगा लें।
पता नहीं कब सरकार चेतेगी और आम आदमी को मुंबई से ब्रोकर से मुक्ति मिलेगी। वैसे अब बैंगलोर में भी ब्रोकरों का धंधा काफ़ी अच्छा हो चला है, धीरे धीरे मुंबई की बयार यहाँ पर भी बह रही है। इसलिये हम तो ब्रोकरों का शहर कहते हैं मुंबई को।
ऐसे बहुत ही कम मकान मालिक हैं जो कि अपने फ़्लेट बिना किसी ब्रोकर की सहायता के देते हैं, ऐसे फ़्लेट सुलेखा.कॉम, मैजिकब्रिक्स.कॉम, ९९एकर्स.कॉम और ओएलएक़्स.इन पर ढूँढे जा सकते हैं, अगर किस्मत अच्छी हुई तो जिस समय आप फ़्लेट ढूँढ़ रहे हैं उस समय आपको कोई फ़्लेट इन वेबसाईट पर मिल जाये और आप अपनी गाढ़ी कमाई का कुछ हिस्सा बचा सकें।

होगेन्नाकल जलप्रपात अप्रितम सौंदर्य (Hogenakkal Fall)

    होगेन्नाकल जलप्रपात  अप्रितम प्राकृतिक सौंदर्य से ओत प्रोत है, कावेरी नदी की अथाह जलराशि देखते ही बनती है। चारों तरफ़ कल कल बहता जल, कहीं बिल्कुल शांत तो कहीं अपनी अल्हड़ जवानी से रंगा हुआ तेज धारा के साथ फ़ुहारों को आसमान में उड़ाता हुआ।
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    बैंगलोर से लगभग २२० किमी. की दूरी पर है होगेन्नाकल, जहाँ कृष्णागिरी, धरमपुरी होते हुए जाया जा सकता है। सड़क बहुत अच्छी है, केवल २ – ३ किमी ही ठीक नहीं है। सड़क मार्ग से जाते हुए दोनों तरफ़ प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है, कभी चावल के खेत तो कहीं मक्का याने के भुट्टे के, और हर तरफ़ नारियल के पेड़ों की छटा तो देखते ही बनती थी। दोनों ओर पहाड़ियों ने रास्ते को और सुंदर बना दिया था। जब हाईवे से होगेन्नाकल जलप्रपात के लिये मुड़ते हैं, तो थोड़े आगे ही एक चौराहे पर मशहूर तस्कर वीरप्पन को मुठभेड़ में मारा गया था,  लगभग ४ घंटे में हम होगेन्नाकल जलप्रताप पहुँच गये। हमारे चालक महोदय को दक्षिण भारत की अच्छी खासी जानकारी थी।
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    होगेन्नाकल जलप्रपात का रास्ता तमिलनाडु से है, और कर्नाटक की तरफ़ वाले जलप्रपात के लिये वहाँ से खास तरह की नाव जो कि टोपले की तरह होती है, उससे जाना पड़ता है, बारिश के कारण कावेरी अपने भरपूर उफ़ान पर थी, और उस नाव पर हमें ज्यादा भरोसा नहीं था, इसलिये नाव की सवारी न करने का ही फ़ैसला किया।
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    हम मुख्य जलप्रपात की ओर बड़ चले जो कि तमिलनाडु राज्य की सीमा मॆं आता है और एक मुख्य जलप्रपात कर्नाटक की सीमा मॆं भी है, वैसे लगभग १५-२० जलप्रपात कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों राज्यों की सीमा में आते हैं। एक साथ इतने सारे जलप्रपातों को एक साथ देखना सुखद अनुभूति देता  है, प्राकृतिक सौंदर्य से लकदक पहाड़ी क्षैत्र घूमने में आनंदित थे और जलराशि का आनंद ले रहे थे।
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    जल अपनी रफ़्तार से जगह जगह हिलोरे मार रहा था और बीच में पत्थर के पहाड़ और बड़े बड़े पत्थर उन हिलोरों में बाधा बन रहे थे जो कि अभूतपूर्व दृश्य उपस्थित कर रहा था। लोग अपने आप को उस अप्रितम जलराशि में जाने के लोभ का संवरण नहीं कर पा रहे थे और सभी लोग जलराशि की और खिंचे जा रहे थे, सभी अपने अपने तरह से जगह जगह जलक्रीड़ा में मग्न थे। हम भी अपने पैरों को कावेरी के जल में डूबोकर उस वातावरण के आनंद में डूब गये और बहती हुई जलराशि की मधुर ध्वनि अपनी और आकर्षित कर रही थी।
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    जलप्रपात को देखने के बाद और जलराशि के संपूर्ण रस का आस्वादन करने के बाद जब वापिस से किनारे जाने की बारी आई तो इस बार हमने नाव से जाना निश्चित किया और उसी विशेष नाव जो कि टोपले के आकार की थी, उसमें बैठकर गये। पहले बैठते समय डर लगा परंतु जब तक किनारे पहुँचे तब तक थोड़ा डर कम हो चुका था।
    होगेन्नाकल में बहुत सारी छोटी छोटी रसोईयाँ बनी हुई हैं, और बैठने के लिये जगह भी बनी हुई हैं, रसोई से खाना खा सकते हैं, परंतु शुद्ध शाकाहारी की उम्मीद नहीं की जा सकती । यहाँ का मुख्य भॊजन मछली ही है, जहाँ देखो वहाँ तली हुई मछली मिल रही थी, लोग चख भी रहे थे। जैसे जैसे दोपहर होते जा रही थी, तमिलनाडु अपनी गर्मी का पूरा अहसास करवा रहा था।
    होगेन्नाकल एक छोटा सा गाँव है, पर जलप्रपात ने इस क्षैत्र को पूर्ण व्यवसायिक बना दिया है और जहाँ देखो वहाँ छोटे छोटे टिकट लगा दिये हैं, होगेन्नाकल में एन्ट्री का ३० रूपये और पुलिस वाले को ५० रूपये देना ही होते हैं, वरना ये लोग गाड़ी को आगे जाने ही नहीं देते हैं। जलप्रपात पर जाने के लिये दो तीन जगह ५ रूपये प्रति व्यक्ति टिकट और कैमरे के लिये एक जगह १० रूपये का टिकट देना होता है।
    होगेन्नाकल का विकास अभी जारी है और अभी वहाँ के गाँव वाले अभी मुनसिब दाम ही लगा रहे हैं, परंतु जिस तेजी से व्यवसायिकरण बड़ रहा है वे भी कब तक बचेंगे।
    बैंगलोर लौटते समय अड्यार आनंद भवन में खाना खाया, जो कि असल तमिलनाडु का स्वाद है। आनंद भवन बैंगलोर से लगभग ८० किमी दूर है।

महाकाल स्थित श्रीनागचंद्रेश्वर नागपंचमी और हमारी यादें

    महाकाल स्थित तृतिय मंजिल पर नागचंद्रेश्वर का मंदिर है, जो कि ऐतिहासिक है और महाकाल जितना ही पुरातन है। नागचंद्रेश्वर की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह वर्ष में केवल २४ घंटे के लिये याने के नाग पंचमी के दिन ही खुलता है।
    धार्मिक मान्यता है कि यहाँ तक्षक का वास है। और हमने कई लोगों के मुंह से सुना भी है कि उन्होंने सफ़ेद नाग का जोड़ा यहाँ देखा है, हर वर्ष किसी न किसी के मुंह से यह सुनते आये हैं, कहते हैं कि नागपंचमी के दिन सफ़ेद नाग का जोड़ा और एक सफ़ेद कबूतर यहाँ दर्शन करने को आते हैं और फ़िर अंतर्धान हो जाते हैं, पता नहीं कितनी सच्चाई है। लोग कहते हैं और धार्मिक मान्यता है इसलिये हम नकार भी नहीं सकते हैं।
    जब उज्जैन में थे तो लगभग हर वर्ष बिना नागा नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने जाते थे। कभी भी ५-६ घंटे की लाईन से कम में दर्शन नहीं हुए, पर हम हमेशा बहुत खुश रहते थे। आखिरी बार हम अपनी माताजी के साथ स्पेशल दर्शन का टिकट लेकर गये थे तो भी लगभग १ घंटा लग गया था।
   जब हम पढ़ते थे तो सभी दोस्त आपस में मजाक करते थे, और एक दूसरे के घर पर जाकर बाहर से आवाज लगाते थे “पिलाओ साँप को दूध”।
   नाग पंचमी के दिन सुबह से ही सँपेरों की लाईन लगी रहती थी और “पिलाओ साँप को दूध” की आवाजें सुनाई देती थीं।
    आज फ़िर नागपंचमी के अवसर पर हम अपने ब्लॉगर दोस्तों को आवाज लगाते हैं –  “पिलाओ साँप को दूध” ।

रेलयात्रा में अनजाने लोगों से यादगार मुलाकातें और उनकी ही सुनाई गई एक कहानी… (My Railway Journey..)

    रेलयात्रा करते हुए अधिकतर अनजाने लोगों से अलग ही तरह की बातें होती हैं, जिसमें सब बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं, और लगभग हर बार नयी तरह की जानकारी मिलती है।

    इस बार कर्नाटक एक्सप्रेस से जाते समय एक स्टेशन मास्टर से मुलाकात हुई जो कि अपने परिवार के साथ ७ दिन की छुट्टी के लिये अपने गाँव जा रहे थे। घर में सबसे बड़े हैं और अपने चचेरे भाईयों को उनके भविष्य के बारे में महत्वपूर्ण राय देते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि उनके भाई उनके मार्गदर्शन को मानते भी हैं और उनके मार्गदर्शन पर चलते हुए दो भाई सरकारी नौकरी में भी लग गये हैं, अब उन्हें तीसरे की चिंता है।

    ऐसे ही बातें चल रहीं थीं तो उन्होंने एक बहुत ही अच्छी छोटी सी कहानी सुनाई, कि अच्छे लोगों के साथ ही हमेशा बुरा क्यों होता है और हम यह भी सोचते हैं कि फ़लाना कितने बुरे काम करता है परंतु भगवान उसको कभी सजा नहीं देते।

    एक गाँव में दो दोस्त रहते थे और शाम के समय पगडंडी पर घूम रहे थे, पहला वाला दोस्त बहुत ईमानदार और नेक था और दूसरा दोस्त बेहद बदमाश और बुरी संगत वाला व्यक्ति था। तभी एक मोटर साईकिल से एक आदमी निकला तो उसकी जेब से एक १००० रूपये का नोट गिर गया। तो पहला दोस्त दूसरे से बोला कि चलो जिसका नोट गिरा है उसे मैं जानता हूँ, उसे दे आते हैं। दूसरा दोस्त बोला कि अरे नहीं बिल्कुल भी नहीं ये हमारी किस्मत का है इसलिये यहाँ उस आदमी की जेब से गिरा है, यह नोट उस आदमी की किस्मत में नहीं था, हमारी किस्मत में था, चल दोनों आधा आधा कर लेते हैं, ५०० रूपये तुम रखो और ५०० रूपये मैं रखता हूँ।

    पहले दोस्त ने मना कर दिया कि मैं तो ऐसे पैसे नहीं रखता तो दूसरा दोस्त बोला कि चल छोड़ मेरी ही किस्मत में पूरे १००० रूपये लिखे हैं, पर फ़िर भी पहला दोस्त उसे समझाता रहा कि देखो ये रूपये हमारे नहीं हैं, हम उसे वापिस लौटा देते हैं। परंतु दूसरा दोस्त मानने को तैयार ही नहीं होता है।

    चलते चलते अचानक पहले वाले दोस्त को पैर में कांटा लग जाता है और वह दर्द से बिलबिला उठता है। और दूसरा दुष्ट दोस्त १००० रूपये का नोट हाथ में लेकर नाचता रहता है।

    पार्वती जी शिव जी के साथ यह सब देखती रहती हैं। और शिव जी से शिकायत करती हैं कि यह कैसा न्याय है प्रभु, जो सीधा साधा ईमानदार है उसको मिला कांटा और जो दुष्ट और पापी है उसे मिला १००० रूपया। शिव जी पार्वती जी को बोलते हैं, ये सब मेरे हाथ में नहीं है, इसका हिसाब किताब तो चित्रगुप्त के पास रहता है। पार्वती जी कहती है कि प्रभु मुझे इनके बारे में जानना है आप चित्रगुप्त को बुलवाईये। चित्रगुप्त को बुलाया जाता है, और प्रभु उनसे कहते हैं, बताओ चित्रगुप्त इन दोनों दोस्तों के बारे में पार्वती जी को बताओ।

    चित्रगुप्त कहते हैं पहला दोस्त जो कि इस जन्म में पुण्यात्मा ईमानदार है, पिछले जन्म में महापापी दुष्ट था, इसकी तो बचपन में ही अकालमृत्यु लिखी थी, परंतु अपने कर्मों के कारण इसके बुरे कर्मों के फ़लों का नाश हो गया और आज जो इसे कांटा चुभा है वह इसके पिछले जन्मों में किये गये बुरे कर्मों का अंत था, अब इसके पुण्य इसके साथ ही रहेंगे।

    पार्वती जी बोलीं – चित्रगुप्त जी दूसरे दोस्त के बारे में बताईये। चित्रगुप्त कहते हैं दूसरा दोस्त पिछले जन्म में बहुत पुण्यात्मा और ईमानदार था परंतु इस जन्म में महापापी दुष्टात्मा है, अगर यह इस जन्म में भी पुण्यात्मा होता तो इसे तो राजगद्दी पर बैठना था, परंतु दुष्ट है इसलिये आज इसका पिछले जन्मों का पुण्य खत्म हो गया और इसे राजगद्दी की जगह १००० रूपयों से ही संतोष करना पड़ रहा है। और अब इसके पाप इसके खाते में लिखे जायेंगे।

बैंगलोर की वोल्वो परिवहन व्यवस्था (Bangalore’s Volvo Bus Transportation Facility)

    रोज सुबह ऑफ़िस जाना और वापिस आना, सब अपने सुविधानुसार करते हैं। वैसे ही हम भी सरकार की वोल्वो बस का उपयोग करते हैं, बैंगलोर में सरकार ने वोल्वो की बस सुविधा इतनी अच्छी है कि अपनी गाड़ी लेने का मन ही नहीं करता है। यहाँ वोल्वो का नाम “वज्र” दे रखा है। चूँकि हम मुंबई में लंबे समय रह चुके हैं तो २०-२५ मिनिट चलना अपने लिये कोई बड़ी बात नहीं और वह भी मुंबईया रफ़्तार से, इसलिये कहीं भी आने जाने के लिये वोल्वो का ही उपयोग करते हैं।

    वोल्वो बसों की निरंतरता भी अच्छी है लगभग हर ५-१० मिनिट में व्यस्त रूट की वोल्वो बस उपलब्ध है, कुछ रूट ऐसे भी हैं जहाँ निरंतरता ३० मिनिट से १ घंटे तक की है। टिकट की कीमत भी कम से कम १० रूपये और अधिकतम ४५ रूपये है, यदि दिन भर में ज्यादा यात्रा करनी है तो ८५ रुपये का दिन भर का पास खरीद सकते हैं, जिसमें वोल्वो समेत लगभग सभी बैंगलोर लोकल वाली बसों में यात्रा कर सकते हैं। इस पास से केवल वायु वज्र और बैंगलोर राऊँड बसों में यात्रा नहीं कर सकते हैं। पूरे महीने का पास भी है, जो कि बहुत ही सस्ता पड़ता है, लगभग १३५० रूपयों का, जिसमें किसी भी रूट पर कितनी भी बार पूरे महीने में यात्रा की जा सकती है।

    आरामदायक सीट होने के साथ ही वातानुकुलित होना इस वोल्वो बस की विशेषता है, और अगर आप अपने साथ अपना सूटकेस या बैग भी ले जा रहे हैं तो उसके लिये अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जाता है। इसमें दोनों दरवाजों पर चालक का नियंत्रण रहता है, टिकट देने के लिये कुछ कंडक्टरों के पास हैंडहैल्ड मशीन होती है, जिस पर टिकट कहाँ से कहाँ तक के लिये दिया जा रहा है और उसका शुल्क टंकित रहता है। ज्यादातर चालक परंपरागत टिकट देते हैं, वोल्वो के स्टॉप कम होते हैं, और बहुत ही कम समय में अधिक गति पकड़ना इसकी विशेषता है। सड़कें अच्छी होने की वजह से झटके नहीं लगते और अगर कहीं सड़क ठीक ना भी हो तो भी इसके शॉक अप अच्छॆ हैं, झटके नहीं लगते हैं।

    गंतव्य बोर्ड पर लिखा होता है जो कि इलेक्ट्रॉनिक होता है, जिस पर बस का नंबर और स्थान लिखा होता है, यह कन्न्ड़ और आंग्ल भाषा मॆं होता है। वोल्वो में एक चौंकाने वाली बात हमॆं पता चली कि इसमॆं गियर आटोमेटिक होते हैं, केवल एक्सीलेटर और ब्रेक होता है। बिल्कुल बड़ी लेडीज टूव्हीलर जैसी, बस यह चार पहियों की होती है। इसलिये जब चालक ब्रेक मारता है तो जोर का झटका लगता है, जो कि गियर वाली गाड़ियों में बहुत कम लगता है।

    वैसे वोल्वो बस चालक कहीं पर भी रोक लेते हैं, अगर यात्री चढ़ाने होते हैं पर उतारने के लिये केवल बस स्टॉप पर ही रोकते हैं। सबसे अच्छी बात कि इन बसों में सीटों के लिये कोई आरक्षण नहीं होता। वोल्वो बस से जितनी ज्यादा कमाई होगी उतना ही ज्यादा कमीशन कंडक्टर और चालक को मिलता है, इसलिये चालक और कंडक्टर दोनों ही ज्यादा यात्रियों को लेने के चक्कर में रहते हैं। जिससे बेहतरीन सेवा तो मिलती ही है अपितु यात्री अपने गंतव्य पर जल्दी पहुँच जाते हैं।

    ऐसे ही हवाईअड्डा बैंगलोर से लगभग ४५ कि.मी. दूर स्थित है, और वायुवज्र वोल्वो सेवा लगभग बैंगलोर के हर हिस्से को जोड़ती है और इसका अधिकतम किराया १८० रुपये है, समान रखने के लिये अलग से स्टैंड बनाये गये हैं, इन बसों की निरंतरता कम है और लगभग हर रूट पर १ घंटे का अंतराल है। हवाई अड्डे से बैंगलोर आने के लिये टैक्सियों की सुविधा भी है, जो कि १५ रुपये कि.मी. से मीटर से चलती हैं, इनमें रात्रि के लिये कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जाता है। अगर बस टर्मिनल तक आयें तो कुछ टैक्सियाँ जो कि बैंगलोर जा रही होती हैं, उनसे मोलभाव किया जा सकता है और अधिकतम ३५० रूपये में बैंगलोर पहुँचा जा सकता है, जबकि मीटर वाली टैक्सी मॆं मीटर से किराया देना होता है जो कि दूरी पर निर्भर करता है अगर आप ४५ कि.मी. जा रहे हैं तो लगभग ७५० रूपयों का मीटर बनता है।

    ऑफ़िस जाने के लिये बहुत सारी कंपनियों में कैब / बस की सुविधा भी रहती है, और अगर आपको कहीं जाना है तो कंपनी की कैब / बस को हाथ देने में बुराई नहीं है वे लंबी दूरी के भी केवल १० रूपये लेती हैं, क्योंकि वे अपने कंपनी के कर्मियों को छोड़कर वापिस जा रही होती हैं।

    बैंगलोर के यातायात परिवहन के बारे में इतनी जानकारी शायद बहुत है। एक बात और गूगल मैप पर जब आप Get Direction by Public Transport ढूँढ़ते हैं तो यह वज्र और वायु वज्र बसों की जानकारी देती है, जिससे आपको पता चलता है कि उस रूट पर कौन सी बस से आप सफ़र कर सकते हैं। बैंगलोर की सभी बसों के बारे में अधिक जानकारी www.bmtcinfo.com पर Route Search से भी ले सकते हैं।

आगरा में ताजमहल जूते खरीदने के लिये जाना.. (Purchased Shoes from Tajmahal, Agra)

    वृन्दावन से मथुरा होते हुए सीधे आगरा निकल पड़े और सोचा गया कि पहले ताजमहल पर अपनी खरीदारी कर फ़िर परिचित के घर मिलने जायेंगे।

    दोपहर में सूर्य देवता अपने पूरे क्रोध पर थे और ताजमहल पहुँचकर तो उनका प्रकोप देखते ही बनता था, दोपहर के २ बजे थे फ़िर भी पर्यटकों का तांता लगा हुआ था।

    जी हाँ हम ताजमहल खरीदारी करने गये थे ना कि ताजमहल देखने, ताजमहल बहुत बार देख चुके हैं और इतनी कड़ी धूप में इतनी चलने की भी श्रद्धा नहीं थी। गाड़ी पार्किग के पास मीना बाजार है और उसके आगे जायें तो एक और बाजार पड़ता है जो कि उत्तरप्रदेश हैंडलूम्स का है, जहाँ सरकारी दुकानें हैं, संगमरमर से बने समानों की, बिस्तर,  चमड़े के जूते यहाँ की विशेषता है।  दो वर्ष पूर्व हमने यहाँ से चमड़े का एक जूता लिया था जो कि हमने लगभग हर मौसम में पहना और जितनी बुरी तरह से उपयोग कर सकते थे किया, परंतु मजाल उस जूते को कुछ हुआ हो, वह अब भी वैसा ही है, जैसे कि नया ही लिया हो।

    जूते की खासियत है कि यहाँ केवल भेड़ और ऊँट के चमड़े के ही जूते मिलते हैं, और टिकाऊ इतने कि अच्छी अच्छी कंपनियाँ भी शर्मा जायें। और जब मन भर जाये तो इन जूतों को वापिस कर दीजिये और कीमत का ५०% आपको वापिस मिल जायेगा।

तांगे में (आगरा) ऊँट गाड़ी आगरा

    इस बार हमने बिना लैस के जूते खरीदे और एक जोधपुरी चप्पल भी खरीदी, जब एक बार समान उपयोग कर लिया तो फ़िर विश्वास जम ही जाता है। जब हम जूते खरीद रहे थे तो और भी लोग जूते देख रहे थे, परंतु वही विश्वास वाली बात है कि इतनी जल्दी कोई थोड़े ज्यादा रुपयों की चीजें खरीदने की हिम्मत नहीं करता । खैर पिछली बार हमने २५५० रुपये के जूते लिये थे इस बार १५५० रुपये के जूते और ९५० रुपये की जोधपुरी चप्पल खरीदी। जो कि वुड्लैंड जैसी कंपनी के जूते चप्पलों से सस्ती और टिकाऊ है, आराम के मामले में बीस ही है। अच्छी बात यह है कि आप पैमेन्ट क्रेडिट कार्ड से भी कर सकते हैं।

    गर्मी के मारे बुरा हाल था तो आने जाने का तांगा कर लिया गया और वापिस पार्किंग पर आने पर कंचे वाली बोतल का सोडा गटागट पिया गया, थोड़ा तरोताजगी लगी तो फ़िर चल दिये परिचित के यहाँ, उसके पहले उपहार खरीदने निकल पड़े सदर की और, वहाँ पहुँचकर घरवाली तो चल दी उपहार खरीदने और हम चल दिये कुछ ठंडा पीने और खाने, हमने और बेटेलाल ने मिलकर ठंडा खा पीकर गर्मी भगाने की कोशिश की।

    शाम को परिचित के घर से मिलकर फ़िर एक बार आगरा बाजार में आये और गमछा खरीदा, फ़िर शाम के भोजन के लिये डोमिनोस पिज्जा गये, इच्छा तो रामबाबू के परांठे खाने की थी, परंतु समय की कमी के चलते पिज्जा से काम चलाया गया और फ़िर फ़टाफ़ट चल दिये आगरा कैंट रेल्वे स्टेशन।

यमुना नदी जो अब नाले में तब्दील हो चुकी है। आगरा का पुराना लोहे का पुल

आगरा के बाजार का एक दृश्य और बैनर ग्राहकों से निवेदन

जामा मस्जिद आगरा यह पूर्व के लगभग हर प्रदेश में देखने को मिलेगा।

    आगरा कैंट रेल्वे स्टॆशन पर हमारी गाड़ी के ड्राईवर बोले कि बाहर ही उतार देता हूँ अंदर पार्किंग शुल्क ले लेते हैं, हमने कहा ऐसे कैसे ले लेंगे चलो हम देखते हैं, क्या किसी को छोड़ने भी नहीं आ सकते, अपना समान उतारा और जब ड्राइवर गाड़ी चलाने को हुआ तो पार्किंग शुल्क देने को कहा गया, हमने कहा चलो यह बताओ कि तुम्हारा पार्किंग का एरिया क्या है और उसके क्या नियम हैं, चलो पुलिस थाने वहाँ जाकर बात करते हैं। पार्किंग वाला बंदा चुपचाप खिसक लिया।

    आगरा कैंट पहुँचे तो देखा कि अभी तो ट्रेन आने में १ घंटे का समय है और बाहर तो गर्मी के मारे हलकान हुए जा रहे हैं, तो समान एक जगह रख अपने परिवार को कहा कि हम देखकर आते हैं अगर उच्चश्रेणी प्रतीक्षालय मिलता है तो देखते हैं, और अच्छी बात यह हुई कि उच्चश्रेणी प्रतीक्षालय मिल भी गया और वातानुकुलन भी काम कर रहा था, रेल्वे की इतनी अच्छी सुविधाएँ देखकर बहुत अच्छा लगा।

खैर ट्रेन आई और लगभग ३० मिनिट लेट, हम चल दिये उज्जैन की और ।

ब्रजक्षैत्र के भोजन का आनंद और बच के रहें ब्रज के ठगों से भी..

    वृन्दावन में चाट और लस्सी का स्वाद अद्वितिय है, और ब्रजक्षैत्र का भोजन आज भी बेहद स्वादिष्ट होता है। हमने तकरीबन ३-४ बार लस्सी पी, जिसमें ऊपर से मलाई भी डाली जाती है और वह भी कुल्हड़ के गिलास में।

    जब निधिवन की ओर जाते हैं तो वहीं गोल चक्कर पर बहुत से गाईडनुमा लोग मिलते हैं, जो कि आपको बोलते हुए मिलेंगे कि आपको ३० रुपये मॆं ४ मंदिरों के दर्शन करवायेंगे, जिसमें से एक मंदिर में ये ठग ले जाते हैं। टाईल्स और चारों धाम के पुण्यों के नाम पर नकली रसीद और मीरा के भजनों के नाम पर लूटते हैं, इनसे सावधान रहें। हमसे भी यही कहा गया तो हमने १०० रुपये में अपना पीछा छुड़ाया, नहीं तो उनका तो कम से कम भाव ही १५००-१६०० रुपये का है, और कहते हैं कि जीवनभर एक घंटा आपके नाम का भजन होता रहेगा, यहाँ लगभग ३००० से ज्यादा मीराबाईयाँ रहती हैं, जो गाईड हमें मिला था वह तीन मंदिरों में दर्शन के बाद हमसे पैसा मांगकर भागने के चक्कर में था तो हमने उससे कहा कि भई चार मंदिर का बोला है, और जब तक चौथे मंदिर के दर्शन नहीं करवाते हम पैसे नहीं देंगे, ऐसे धार्मिक आस्था के खिलवाड़ करने वाले लुटेरों को उज्जैन मॆं भी देखते आ रहे हैं।

दक्षिण भारतीय शैली में मंदिरसेठ द्वारा बनवाया गया मंदिर का लकड़ी नक्काशी जैसा द्वार

परकोटे में मंदिरनक्काशी द्वार पर

बैकुण्ड द्वारमंदिर का लंबा गलियारा

मंदिर का बड़ा सा गलियारायह खंबा भी सोने का है

यह भी सोने का हैये भी सोने का है

विष्णुजी के दर्शन के पश्चातसोने का हाथी

हर्ष की कुछ शैतानियाँ

    हाँ यहाँ के बात और हर बात के बाद ये लोग बोलेंगे ताली बजाकर हँसिये तो जीवन भर हँसेंगे।

    जब मंदिरों के दर्शन हो गये और वक्त लगभग ११.३० हो चुका था, दोपहर की गर्मी से बेहाल थे, इतने बेहाल थे कि पैदल चलने की सोच भी नहीं पा रहे थे। इसलिये फ़िर से रिक्शे का सवारी के तौर पर उपयोग किया गया। पूरे वृन्दावन में बंदरों से सतर्क रहें, वे जूते, चप्पल, घड़ी, चश्मा, प्रसाद किसी पर भी हमला करके उसका भरपूर आनंद लेते हैं।

    एक ढ़ाबे पर चना मसाला, दाल और तंदूरी रोटियों का आनंद लिया गया, बहुत वर्षों बाद बाहर कहीं इतना स्वादिष्ट खाना खाया था। और उसके बाद फ़िर एक एक लस्सी का आनंद लिया गया। वक्त लगभग हो चला था दोपहर के १२ । हमारा मन मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के दर्शन करने का भी था पर १२ बजे से २ बजे तक जन्मभूमि के दर्शन बंद रहते हैं, और हमें आगरा में खरीदारी भी करनी थी और पारिवारिक मित्र के साथ मिलना भी था, तो हमने सोचा कि चलो अब सीधे आगरा चला जाये।

    गर्मी अपने भरपूर उफ़ान पर थी, और रास्ते में ऐसे बहुत सारे यातायात के साधन देखने को मिले जो वर्षों बाद देखे, जैसे कि जुगाड़, बैलगाड़ी, भैंसागाड़ी।

सुबह ही हाइवे पर जाम, बांके बिहारी जी और निधि वन के दर्शन.. (Darshan of Banke Bihari ji, Vrindavan)

    २९ तारीख का कार्यक्रम पहले से ही तय था, वृन्दावन, मथुरा और आगरा और आगरा से मालवा एक्सप्रेस से उज्जैन। सुबह ५ बजे ही टैक्सी को बुला लिया गया था और तय किया गया था कि भोर ठंडे ठंडे वृन्दावन पहुँच जायेंगे, क्योंकि आजकल धौलपुर का तापमान ४५ डिग्री के ऊपर ही चल रहा है और पत्थरों का क्षैत्र है इसलिये झुलसा देने वाली हवाएँ खूब चलती हैं। दोपहर को वहाँ यह हालत होती है कि जिसको जरूरत होती है वह भी बाहर नहीं निकलता है।

धौलपुर बस स्टैंडचंबल के बीहड़ चंबल बीहड़धौलपुर के जाम में

    घर से टैक्सी में बैठे और जैसे ही हाइवे पर पहुँचे तो देखा कि वहाँ तो जाम लगा हुआ है, यहाँ फ़ोर लेन का काम चल रहा है मगर सरकारी गति से, वहाँ पर ड्राईवर ने किसी से पूछा जाम कब से है और कहाँ तक है, तो उत्तर मिला जाम तो पिछले २-३ घंटे से है और एक भी गाड़ी आगे नहीं जा पाई है, और जाम खुलने में कम से कम ३-४ घंटे और लग जायेंगे। ड्राईवर ने वहीं पर फ़ुर्ती से गाड़ी घुमाई और चल दिया दूसरे रास्ते की ओर, गाड़ी घुमाने के दौरान एक बाहर की गाड़ी भी वहीं जाम में फ़ँसी हुई थी, उसने पूछा कि क्या कोई और रास्ता भी है, ड्राईवर बोला कि आगरा जा रहे हैं, आना है तो पीछे हो लो, परंतु वह परिवार नहीं आया, एक कारण क्षैत्रकाल का भी हो सकता है, क्यूँकि वह चंबल क्षैत्र है जहाँ के नाम से ही बाहर के लोगों की पुँगी बजी रहती है। खैर हमारी गाड़ी कच्चे रास्तों को पार करते हुए लगभग १० मिनिट में ही हाईवे पर पहुँच गई और 80-100 की रफ़्तार से बातें करने लगी।

कच्चा रास्ता धौलपुर का ६कच्चा रास्ता धौलपुर का कच्चा रास्ता धौलपुर का १कच्चा रास्ता धौलपुर का २ कच्चा रास्ता धौलपुर का ३कच्चा रास्ता धौलपुर का ४ कच्चा रास्ता धौलपुर का ५फ़ोटो सतीश पंचम श्टाईल में

    हम सीधे वृन्दावन जा रहे थे, इसलिये न आगरा रुके और ना ही मथुरा। सुबह लगभग 8.30 बजे हम वृन्दावन पहुँच गये, सबसे पहले गये बांके बिहारी जी के मंदिर वहाँ बांके बिहारी की छटा देखते ही बनती है। वहाँ प्रसाद चढ़ाया और दर्शनों का आनंद लिया। कई महिलायें बांके बिहारी के भजन गा रही थीं, मन भावभिवोर हो उठा था, जैसे वे महिलायें नाच रही थीं और बांके बिहारी को मना रही थीं, हम भी भजन में मगन थे और सामने बांके बिहारी के दर्शन थे, बांके बिहारी इतने सुन्दर हैं कि वहाँ से जाने की कभी इच्छा ही नहीं होती। प्रसाद में छोटे कुल्लड़ में खुरचन होती है जो कि बांके बिहारी का असली प्रसाद है।

बांके बिहारी के दर्शन के बाद लस्सी के साथबांके बिहारी के दर्शन के बाद

    दर्शनों के बाद गलियों में ही चाट पकौड़ी और लस्सियों की कतार से दुकानें हैं, कहीं भी खा लीजिये स्वाद सबका एक जैसा शुद्ध खालिस देसी घी का बना हुआ। हमने एक टिक्की ली और एक फ़ुल लस्सी, ब्रजक्षैत्र के खाने का तो गजब ही आनंद है, जहाँ माखनचोर खुद रहते हों वहाँ भला स्वाद की कोई कमी होगी, और दोगुना स्वाद होगा।

    वृन्दावन में मंदिरों की कमी नहीं है, हमने २-३ मंदिरों के दर्शन और किये और फ़िर हम चल दिये निधि वन की तरफ़. जहाँ संत हरदास ने बांके बिहारी जी की प्रतिमा को प्रकट किया था । निधिवन बांके बिहारी जी का प्रगट स्थल है, जहाँ पर वृन्द (तुलसी) और कदंब      के पेड़ आज भी हैं और पूरा वन क्षैत्र है। यहाँ पर जिस स्थान पर बांके बिहारी जी प्रगट हुए थे, उस जगह पलंग और उस पर बिस्तर है, जहाँ कहा जाता है कि आज भी रासबिहारी कृष्ण राधा रानी के साथ रास करते हैं, इस बात की पुष्टि मंदिर के पुजारी ने भी की, और बताया कि रात को यहाँ कोई नहीं रुकता न पंछी ना जानवर और ना आदमी, और अगर कोई रुकता भी है तो वह अगले दिन सुबह इस स्थिती में नहीं रहता कि किसी को कुछ बता सके, वह या तो मोक्ष को प्राप्त हो जाता है या फ़िर अंधा, बहरा या गूँगा हो जाता है। आज भी उस बिस्तर पर फ़ूल बिछाये जाते हैं जो कि सुबह दबे हुए मिलते हैं, जिससे ऐसा लगता है कि कोई उस बिस्तर पर आया था। हमने जोश जोश में यहाँ का फ़ोटो खींच लिया था और वहाँ कहीं लिखा भी नहीं था कि फ़ोटो लेना मना है, तो पुजारी ने बड़े प्रेम से बोला कि भैयाजी यह फ़ोटो काट दीजिये आप ही की भलाई के लिये बोल रहा हूँ, उस पुजारी ने इतने प्रेम से बोला और बांके बिहारी से जुड़ी बात थी तो हमने फ़ट से फ़ोटो अपने मोबाईल से हटा दिया मतलब काट दिया। लगभाग सभी मंदिरों में फ़ोटोग्राफ़ी वर्जित है।

निधिवन १निधिवन २ निधिवन ३निधिवन ४ निधिवन मेंनिधिवन राजक्षैत्र   बैकुण्ड द्वार लकड़ी दरवाजा वृन्दावन के एक मंदिर में वृन्दावन की गलियों में रिक्शे पर वृन्दावन में वृन्दावन में १ वृन्दावन में २ हाईवे पर

आगे का विवरण अगली पोस्ट में, लंबी होने से बोझिल होने लगेगी..

॥ बांके बिहारी लाल की जय॥