Category Archives: अनुभव

अगर मुझे मेरी कार बेचनी होती तो क्विकर नेक्सट के फायदे बहुत हैं

    कार सबका सपना होता है, कभी मेरा भी था । बीतते समय के साथ हम चीजों के लायक हो जाते हैं याने कि नालायक से लायक हो जाते हैं। हाँ पहले कभी कार वाकई हर किसी के लिये सपना होता था पर आजकल तो कार खरीदना बहुत ही आसान हो गया है, अब तो कोई भी कार लोन पर खरीद सकता है, पहले तो कार लोन मिलना भी बैंक से मुश्किल होता था, पर आजकल तो निजी फाइनेंस कंपनियों के बाजार में आने से लोन का मिलना बहुत ही आसान हो गया है।
    जब मैं बैंगलोर में था तब थोड़े दिन तो मैंने बिना किसी वाहन के अपना काम चलाया, कभी वोल्वो में तो कभी किसी सहकर्मी से लिफ्ट लेकर, पर ऐसा सब कैसे कितना दिन चलता तो आखिरकार वाहन खरीदने का निश्चय कर ही लिया गया और फिर शुरू हुआ दौर कि कौन सा वाहन लिया जाये, चार पहिया या दो पहिया । पर बैंगलोर के यातायात ने हमें चार पहिया न खरीदने को मजबूर कर दिया और दो पहिया वाहन खरीदा गया । मजे की बात यह रही कि बैंगलोर में दो पहिया वाहन खरीद कर हम वाकई मजे में रहे।
    पर जब हम बैंगलोर से अब गुड़गाँव आये, तो पहले दस दिन में ही पता चल गया कि यहाँ अपना काम दो पहिया वाहन से काम नहीं चलने वाला है, यहाँ तो चार पहिया वाहन ही खरीदना होगा, इसलिये पहले चार पहिया वाहन चलाना सीखा गया और साथ ही नई कार कौन सी खरीदी जाये, उसके लिये बाजार में, दोस्तों से बहुत चर्चा की गई । फिर क्विकर पर भी देखा गया कि कोई अच्छी सी कार मिल जाये परंतु उस समय हमें कोई कार नहीं मिली। तो आखिरकार हमने बाजार से ही नई कार खरीद ली और अब कार चलाते हुए लगभग 8 महीने हो गये हैं और लगभग 8000 किमी कार चला भी चुके हैं, अब फिर से नई कार ही खरीदने की सोच रहा हूँ कि अगर क्विकर पर बेचूँगा तो इस कार के मुझे कितने रूपये मिलेंगे, मैंने क्विकर पर जाकर सबसे पहला अपना एकाऊँट लॉगिन किया और अपनी कार की जानकारी डालकर MSP देखा कि सबसे अच्छा क्या भाव मिल सकता है और फिर हम क्विकर पर विज्ञापन लगा देते हैं।
    क्विकर नेक्सट की खूबी यह है कि अपना मोबाईल नंबर सार्वजनिक नहीं होता है नंबर की निजता बनी रहती है और कोई भी खरीददार केवल चैट के जरिये बिना अपना मोबाईल नंबर सार्वजनिक किये बिना ही संपर्क कर सकते हैं। चैट की खूबी यह है कि अपने समय के अनुसार आप चैट का जबाब दे सकते हैं, पर फोन आने पर हमें अपने कार्य में विघ्न उत्पन्न होता है।  हम कोई बात फोन पर करने के बाद भूल भी जाते हैं, क्विकर पर चैट का इतिहास हमेशा हमारे पास उपलब्ध रहता है, तो मैं तो केवल हरेक के द्वारा माँगी गई जानकारी को कॉपी पेस्ट ही करता । जब भी कोई फोटो के लिय बोलता तो उसी समय कार के सामने जाकर फोटो खरीद कर भेज देता।
    हाँ मैंने नई कार सेडान पसंद की है, पर कौन सी अभी यह राज है, क्योंकि अभी बाजार में और भी नई कारें आ रही हैं, तो
अपने को चुनने का और मौका मिल जायेगा।

बच्चों को सुलाने के लिये क्या क्या नहीं करना पड़ता है

    बच्चों को शौच निवृत्ति सीखने में समयलगता है और इसका प्रशिक्षण उन्हें घर में ही दिया जाता है, पर अगर बच्चे बहुत ही
छोटे हों तो शौच निवृत्ति का प्रशिक्षण देना मुश्किल ही नहीं असंभव है, पुराने जमाने किसी भी तरह की अन्य सुविधा उपलब्ध नहीं थी तो पोतड़ों से ही काम चलाना पड़ता था, तो बच्चों की और माँ की नींद पूरी ही नहीं हो पाती थी, और अगर सोते समय बच्चे ने शौच कर दी तो फिर माँ के लिये और भी मुश्किल होती थी क्योंकि फिर से बच्चे को सुलाना ही एक बहुत बड़ा काम होता है।
    आधुनिक तकनीक ने हमें पेम्पर डाइपर के रूप में उपहार दिया है, डाइपर बच्चों के शौच निवृत्त होने पर भी उन्हें गंदगी में अपनी नई तकनीक के कारण अहसास ही नहीं होने देता है और वे अपने खेलने में या सोने में व्यस्त रहते हैं। इस तरह से बच्चे और माँ अपना सोना, खेलना बिना किसी अनचाही बाधा के निरंतर रखते हैं।
    बच्चों को सुलाना भी एक बहुत बड़ा काम है, कुछ लोगों को बहुत मजा आता है तो कुछ को चिढ़, पर हाँ बच्चे के माता पिता कभी नहीं चिढ़ते आखिरकार वह बच्चा भी तो उनका ही है, बच्चे को सुलाने के लिये बहुत जतन करने पड़ते हैं, मैं अपने बेटे को अपने गले लगाकर कंधे पर लेकर उसे कभी लोरी सुनाता था तो कभी अपने मनपसंदीदा गाना जिससे मेरे बेटे को गाने के बारे में समझ भी आ जाये, कहा जाता है कि बचपन में या गर्भ में बच्चे जिन बातों को सुनते हैं उसके प्रति उनका विशेष लगाव होता है, इसीलिये मैं कभी कभी मंत्र भी सुनाया करता था।

बेटे को अपने हाथ से थपकी देते समय ध्यान रखता था कि मेरी हथेली थोड़ी से पिरामिड जैसी हो, जिससे बेटे का पिया हुआ दूध बाहर न आ जाये, पिरामिड जैसी हथेली से थपथपाने से पीठ पर जब थपथपाहट होती है तो थप्प करके आवाज आती है और हवा साथ होती है, जिससे बच्चे को आराम का अहसास होता है। बेटे को लोरी, गाने और मंत्र सुनकर बहुत ही सुकून की नींद आती थी। मैंने जब भी बेटे को ऐसे सुलाया तो देखा कि बेटा बिल्कुल शांत हाथ पैर सीधे करके सोता था और अपनी पूरी नींद करके ही उठता था।
    कई बार दोनों हाथों की गोदी में लेकर बारी-बारी से दायें बायें हिलाकर सुलाया, इससे बेटा झूले का आनंद प्राप्त कर सो
जात था, या फिर खुद ही आलथी पालथी में बैठ गये और बेटे को गोदी में लिटा लिया और सिर पर ओर बालों को एक हाथ से सहलाते रहे और दूसरे हाथ से धीरे धीरे सीने पर थपथपाते रहे, अगर लगता है कि पैर में दर्द है तो पैरों को हल्के हाथों से दबा दिया जिससे बेटा कभी भी आधी नींद में पैर के दर्द के कारण नहीं उठता था, बहुत ही आराम से प्रसन्न मुद्रा में सोते रहता था । मैंने जब भी बेटे को ऐसे सुलाया तो कई बार नींद में उसे किलकारी मारते तो कभी हँसते देखा।
पेम्पर डाइपर लगाकर कैसे बच्चे कैसे खुश रहते हैं, यह इस वीडियो में देख सकते हैं –
 

पाँच काम बिल्कुल बेफिकर उमरभर करना चाहता हूँ

    हर कोई चाहता है कि हमेशा बेफिकर उमरभर रहे पर ऐसा होता नहीं है, सब जगह मारामारी रहती है, कोई न कोई फिकर हमेशा जान को लगी ही रहती है, और उस फिकर की फिकर में हम अपने जीवन में जो कुछ करना चाहते हैं, वो सब भूल जाते हैं या यूँ भी कह सकते हैं कि पेट की आग के आगे अपने शौकों को तिलांजली देनी पड़ती है । काश कि हम जीवनफर
बेफिकर रहें तो मैं ये पाँच काम बिल्कुल बेफिकर उमरभर करना चाहता हूँ, जिससे मुझे ये पाँच काम बहुत ही महत्वपूर्ण लगते हैं और ये मेरे लिये हमेशा ही प्राथमिकता भी रही है।
1. गैर सरकारी संगठन शुरू करना – महाकाल के क्षैत्र उज्जैन में एक गैर सरकारी संगठन की स्थापना करना, जिसकी मुख्य गतिविधियाँ हों – 
 
अ.     बच्चों की ऊर्जा को सकारात्मक रूख देना, जिससे बच्चे अपनी ऊर्जा का उपयोग अपनी मनपसंदीदा गतिविधियों में कर पायें और अपने शौक को पहचान कर जुनून में बदल पायें।
आ.  आधुनिक श्रम केक्षैत्र में हमारे आजकल के नौजवान खासकर गाँव के नौजवान जो इंजीनियरिंग या कोई और
पढ़ाई नहीं कर पाये, उनकी प्रतिभा को निखारकर उन्हें आधुनिकतम तकनीक के बारे में जानकारी देना और उनका मार्गदर्शन करना, जिससे वे अपने जीवन स्तर को उच्चगुणवत्ता के साथ जी पायें और समाज को नई दिशा दे पायें।
इ.   निजी वित्त से संबंधित परिसंवाद गाँव गाँव आयोजित करना जिससे छोटी जगहों के लोग भी आजकल बाजार में उपलब्ध जटिल वित्तीय उत्पादों में निवेश कर पायें और एजेन्टों द्वारा किसी भी तरह के उत्पादों के खरीदे जाने से बच सकें।

2. किताबें पढ़ना – किताबें पढ़ने के बहुत शौक है, हर वर्ष बहुत सारी किताबें खरीद लेता हूँ, और नई किताबें अधिकतर तभी लेती हूँ जब पास में रखी किताबें पढ़ चुका होता हूँ, कोशिश रहती है कि महीने में कम से कम एक किताब तो पढ़ ही ली जायें,
मुझे हिन्दी की साहित्यिक किताबें पढ़ना बहुत भाता है, अभी हाल ही में लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जीवनी
सरदार और आचार्य विष्णु प्रभाकर की जीवनी का प्रथम भाग पंखहीन पढ़ा है, अभी तक की पढ़ी गई किताबों में सर्वश्रेष्ठ किताब सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय की शेखर एक जीवनी लगी । 

3.   कहानी और नाटक लिखना लिखना अपने आप को अंदर से जानना होता है और जब कोई हमें पढ़ता है तो वह हमें अंदर तक जान लेता है, हम क्या बताना चाहते हैं, कैसे शब्दों को ढ़ालते हैं, पात्रों को कैसे रचते हैं, कैसे हम पाठक को अपनी भाषाशैली से और विभिन्न सामाजिक उदाहरणों से प्रभावित करते हैं, कई पाठकों के लिये कुछ किताबें उनके जीवन की धुरी हो जाती हैं, इस तरह की कहानियाँ और नाटक मैं अपने पाठकों के लिये लिखना चाहता हूँ। 
4. महाकाल की आरती के नित्य दर्शन करना – जब होश सँभाला तब पाया कि बाबा महाकाल की अनन्य भक्ति में कब मैं घुलमिल गया हूँ, कब ये मेरी जीवनशैली में इतना घुलमिल गया कि मैं उस भक्ति में पूरा डूब चुका हूँ, पता ही नहीं चला। मेरे जीवन के इस दौर में भी मैं भले ही उज्जैन से इतनी दूर हूँ पर बाबा महाकालेश्वर में मन इतना रमा हुआ है कि मैंने कब बाबा महाकाल का ब्लॉग बना दिया और फिर उस ब्लॉग पर फोटो भी गाहे बगाहे अपलोड करता रहता हूँ कि मेरे साथ ही साथ उनको भी दर्शन हों जो महाकाल से जुड़ना चाहते हैं। महाकाल की आरती बहुत ही भव्य और आनंदमयी होती हैं, मैं अपना तन मन सब भूल जाता हूँ, कई वर्षों पहले संझा आरती में लगभग रोज ही मैं बाबा महाकाल की आरती में घंटे बजाता था, और निश्चय ही यह सौभाग्य बाबा महाकाल की असीम कृपा के कारण ही मुझे प्राप्त हुआ होगा। हालांकि आजकल भक्तों को यह सेवा करना निषेध कर दिया गया है। 
5. हैकर बनना – जब डायलअप इंटरनेट का दौर था, तब हमने पहली बार हैकिंग की शुरूआत की थी, चुपके से दूसरे के घर से उसका आई.पी. लेते थे और फिर हमारे पास एक हैकिंग सॉफ्टवेयर था जिससे हम उसके कम्प्यूटर को नियंत्रित कर लेते थे, और हमारा मित्र बेबस सा देखता रह जाता था। हैकिंग में बहुत कुछ नया करने को है, जिससे हम आधुनिक सुरक्षा प्रणाली को और मजबूत बनाने में सहयोग कर सकते हैं। 
 

आसुस जेनफोन मोबाईल जिसमें हैं मेरी वेलेन्टाइन के सारे गुण

    सभी को ऐसी प्रेमिका चाहिये होती है जो दुनिया से जुदा हो, अलग हो, सुन्दर हो, अप्रितम हो, दिलकश हो, नाजनीन हो, पतली हो, लंबे बाल हों और भी न जाने क्या क्या !! वक्त बदल रहा है वैसे ही प्रेमिका की परिभाषा भी बदल रही है और कुछ
लोग तो हर वेलन्टाईन पर नयी प्रेमिका के साथ दिखाई देते हैं, खैर जो है उसे वैसा ही रहने देते हैं, हम दुनिया को बदलने की कोशिश न ही करें, क्योंकि यह नितांत व्यक्तिगत मामला है और हमें उस बारे में बात नहीं करनी चाहिये, क्योंकि वाकई यह बात कुछ लोगों के ऊपर बिल्कुल सटीक होती है।
 वैसे मेरी नई प्रेमिका है आसुस जेनफोन A601CG Gold और इसके मुख्य पाँच कारण हैं – 

1.    सुनहरा रंग – जी हाँ सुनहरा रंग आखिर दिखने में अच्छा लगता है, दूर से ही आकर्षण पैदा करता है, कहीं भी दूर से ही कोई भी देखकर पहचान सकता है। और मुझे तो दूर से ही देखकर लगने लगता है कि वाह मेरी प्रेमिका मुझे दिख रही है, और वह भी बिल्कुल केवल मेरी क्योंकि इस रंग का कोई और फोन कहीं भी किसी के पास मिलेगा ही नहीं और दूसरे की प्रेमिका से रश्क तभी होता है जब उसमें कुछ खास होता है। और कोई भी देखकर ही कहे कि भाई ये तो उसकी प्रेमिका है। 

2.    पतला और अच्छा दिखना – मोबाईल तो वही अच्छा होता है जिसे कोई भी परिचित देखे और कम से कम एक बार अपने हाथ में लिये बिना न रह सके, और अपरिचित लालच भरी नजरों से देखता रहे, कि एक बार जेब में हम मोबाईल रखें तो वह केवल इस बात का इंतजार करता रहे कि कब ये जेब से फोन निकाले और कब उसके दर्शन हों। आसुस जेनफोन को इस तरह से तैयार किया गया है कि यह तकनीक और बनावट का एक सम्पूर्ण मिश्रण है। 

3.    13 एवं 2 मेगापिक्सेल का कैमरा – जब मैं तैयार होऊँ तो मैं कैसा दिखूँगा, वह मैं कैमरे की नजरों से देखना पसंद करता हूँ, और जब मैं किसी का भी फोटो खींचू तो कम से कम पिक्सेल टूटें और फोटो सुस्पष्ट, दोष रहित हो । वीडियो चैटिंग में तो यह किसी भी तरह से बेमिसाल होगा, लोग मेरी वीडियो क्वालिटी देखकर ही सोचते रहेंगे कि मैं आखिरकार कौन सा फोन उपयोग में लाता हूँ कि मेरी वीडियो इतनी साफ है

 4.    16 जीबी आंतरिक और 64 जीबी बाहरी मैमोरी – आजकल बहुत ही बड़े बड़े एप्प बाजार में आ रहे हैं, और बाहरी मैमोरी में स्टोर होने से फोन की गति अत्यंत धीमी हो जाती है, पर इस फोन में 16 जीबी आंतरिक मैमोरी होने से फोन की गति तीव्र रहती है, और किसी भी कार्यवाही की प्रतिक्रया काफी तेज होती है। यहाँ तक कि इस फोन की स्क्रीन 6 इंच है पर किसी भी एप का गतिप्रदर्शन लाजबाब होता है

 5.    3300 mAh बैटरी और 3 जी – आजकल की भागती दौड़ती जिंदगी में जैसे हम अपने आप को सोकर चार्ज करते हैं वैसे ही फोन को भी उसकी जरूरत होती है, पर हमारी बैटरी से इस फोन की बैटरी जबरदस्त ताकतवर है और 6 इंच का फोन और लगातार 3 जी के उपयोग होने के बावजूद इसकी बैटरी काफी चलती है और कभी भी बीच में धोखा नहीं देती है। 

    जब इतनी जबरदस्त मोबाईल फोन रूपी मेरी प्रेमिका होगी तो अपना रंग और ढंग भी बदल जायेगा, दुनिया देखेगी कि वो देखो आसुस जेनफोन A601CG Gold उसकी वेलेन्टाइन है।

हम यह फोन यहाँ http://www.flipkart.com/asus से खरीदने वाले हैं । 

 

विष्णु प्रभाकर का प्रेम पत्र अपनी पत्नी सुशीला के लिये

 प्रेम पत्र बहुत पढ़े लिखे हैं आज विष्णु प्रभाकर की किताब पंखहीन पढ़ते हुए उनका एक प्रेम पत्र मिला जिसे उन्होंने अपनी पत्नी सुशीला को लिखा है –

रानी
    सोचता हूँ जो हुआ क्या वह सत्य है ? सवेरे उठा तो जान पड़ा जैसे स्वप्न देखा हो।  लेकिन आँखे जो खोलीं तो प्रकाश ने उस सारे स्वप्न को सत्य के रूप में प्रत्यक्ष कर दिखाया। अब भी कभी कभी हृदय में कोई सुना जाता है – जिसे तुम स्वप्न कहते हो वह स्वप्न का पार्थिव रूप है।  मैं उसे भूल ने सकूँगा ।
    प्रिय! रात 9-27 पर जब मैं हिसार पहुँचा तो तुम स्टेशन पर जाने के लिए तैयार हो रही होगी। शायद तुमको मेरा ध्यान भी होगा। मैं न जाने कितनी बार चौंक पड़ा था। ऐसा मालूम हुआ जैसे तुमने आकर मेरे वक्षस्थल पर अपना सर टिका दिया है। मेरे दोनों हाथ धीरे धीरे ऊपर उठे लेकिन सुशीला! वहाँ कौन था। अपनी छाती को दबाकर ही मैं काँप उठा।
    भद्रे अब 6.38 का समय है। तुम अपने घर के बहुत करीब पहुँच रही होगी। तुम्हें रह-रहकर अपने माँ-बाप और बहिन से मिलने की खुशी हो रही होगी लेकिन रानी! मेरा जी भर रहा है। आँसू रास्ता टटोल रहे हैं। इस सुने आँगन में मैं अकेला बैठा हूँ। ग्यारह दिन में घर की क्या हालत हुई वह देखते ही बनती है। कमरे में एक-एक अंगुल गर्दा जमा है। पुस्तकें निराश्रित पत्नी-सी अलस-उदास जहाँ-तहाँ बिखरी हैं। अभी-अभी कपड़े सम्भाल कर तुम्हें खत लिखने बैठा हूँ परन्तु कलम चलती नहीं। दो शब्द लिखता हूँ और मन उमड़ पड़ता है। काश! तुम मेरे कन्धे पर सिर रखकर बैठी होती और मैं लिखता चला जाता पृष्ठ पर पृष्ठ। लो रानी पृष्ठ लिखने में 15 मिनिट समाप्त हो गए। एक बच्चा अभी अभी मेरे पास आ बैठा है पर वह पढ़ना नहीं जानता। इसी से बेखबर मैं लिख रहा हूँ। होल्डर भी नया है। रुकता है। क्या करुँ देवी ? इतनी उद्विग्नता मुझे रुचती नहीं।
    रानी! चलते समय तुमने कहा था कि तुम में जो त्रुटियाँ मैंने देखी हों वे लिख दूँ। प्रिये! कमी संसार के प्रत्येक प्राणी में है। पूर्ण तो केवल वही एक है। तो भी हम अपनी कमी को और उसके कारण को जानें तो जीवन की दुरुहता बहुत कुछ कम हो जाती है। तुम्हारा यह विचार सुन्दर है।  परमेश्वर करे तुम इन भावों को बनाये रखो। लेकिन त्रुटियाँ मैं क्यों लिखूँ, यह भी मैं नहीं समझता। उनको जानना भी तुम्हारा काम है। देवी! हृदय का मंथन करो तो रस पाओगी। जीवन का मंथन करो तो उसकी दोनों साइड्स तुम्हारे सामने होंगी।
    एक बात कह दूँ प्रियेमुझे स्टडी करना बहुत कठिन है|  इस क्षण मैं कायर जान पड़ता हूँ दुसरे ही क्षण मेरी भावना सबको पराजित कर चलती है। तुमने सुना होगा इस विवाह के बाद मुझे लोगों ने कायर ही कहा है। उनका दोष भी क्या है ? पिछले सात साल से मैं बार-बार विद्रोह करता आ रहा था।  अब एकदम उस सबमिशन से ने चौंके तो ठीक ही है। मुझे कोई नहीँ जानता। तुम भी, मुझे डर है न जाने सकोगी । यही शंका है जिसे मैं कभी-कभी वे बातें कह देता हूँ जिससे तुम्हें दुख हुआ होगा। मैं अब भी कहता हूँ कि मेरा विवाह नहीँ होता तो ज्यादा ठीक था। तुम्हारे प्रति मुझे कोई शिकायत अभी क्या हो
सकती है
?  फिर भी रानी! मुझे नजदीक से पढ़ो। सहानुभूति से पढ़ो। मुझसे कुछ न कहलवाओ। आप ही सोच समझ कर काम कर लो तो ठीक है। नहीं तो ये दुनिया है। कलह, असफलता और पीड़ा सब हम-तुम पावेंगे।
     पीड़ा में भी मुझे सुख होगा। पर तुम नष्ट हो जाओगी। समझती हो न शीला। मैंने जन्म से लेकर आज तक दुख और पीड़ा को अपना साथी बनाये रखा है। अब भी नहीँ डरुंगा लेकिन मेरे किसी अपराध का दर्द तुम पाओ यह मेरी दृष्टि में सबसे बड़ा पाप है। पाप से मुझे प्रेम है लेकिन वह मुझे मिले, तुम्हें नहीँ। किसी से घबराना मत रानी!
    ओह रानी! क्या तुम डर गईं? नहीं, नहीं, श्रद्धा और विश्वास को तुम भूलो मत। ऐसा करो ये दोनोँ तत्व कभी भी हमारे  साथ न छोड़ें। जिस दिन श्रद्धा तुम खो दोगी उसी दिन तुम्हारा पतन आरम्भ हो जाएगा ।
    मेरी रानी! क्या तुम सच ही मुझसे प्रेम करती हो ? इसका उत्तर खूब शान्ति से जब तुम – 1. अपने माता-पिता के घर में खूब व्यस्त हो। 2. भाई-बहिन घुल-मिलकर बातें कर रे हैं. 3. अपनी सखी के सौभाग्य पर कोई चर्चा चल रही हो या तुम बिलकुल एकान्त में बैठी हो तब सोचना, मैं दावे से कहता हूँ उत्तर तुम्हें मिलेगा। सच-सच लिख देना। उसी एक प्रश्नोत्तर पर सारा जीवन निर्भर रहेगा।  सत्य के लिये साहस की जरूरत है। मैं तुमसे एक ही प्रार्थना करता हूँ रानी! कभी भी कोई बात मुझसे छिपाना मत । मेरे हृदय की अधिष्ठात्री देवी, ऐसा तुम करोगी तो दुनिया तुम्हें सदा-सदा याद रखेगी।
    जानती हो प्रिये मैं एक निर्धन व्यक्ति हूँ। गरीबी मुझे मिली है यही बात नहीं, गरीबी मेरा व्रत भी है। (शीला) इसे तुम्हें सदा
याद रखना है। यदि निर्धनता से प्रेम न हो, यदि आवश्यकता पड़ने पर मेरे साथ कन्धे-से-कन्धा मिलाकर, भूखे-प्यासे रहकर तुम खेत में काम करने की शक्ति न रखती हो तो तुम मुझसे कह देना। अपने मन को दुखी मत करना। तब मैं तुम्हारी व्यवस्था कर दूँगा। लेकिन कहता हूँ यह सब ठीक न होगा। क्या तुम समझी मेरी रानी सोचोगी कि माँ-बाप ने क्या सोचकर ऐसे व्यक्ति से मेरा पल्ला बाँधा। मैं भी कहता हूँ यह तुम्हारा दुर्भाग्य ही है। तुम्हारा ही क्या, न जाने कितनी लड़कियाँ इस दुर्भाग्य का शिकार हो जाती हैं। तुम भी उन्हीं सें से एक हो लेकिन अब इस दुर्भाग्य को सौभाग्य में पलट सको तो क्या होगा
जानती हो ?
    शीला रानी 7-10 का टाइम है। तुम घर पहुँच गई होगी। बड़े प्रेम से आँखों में आँशू भर कर अपने गुरुजनों, परिजनों और मित्रजनों से मिल रही होगी। आँसुओं की दो बूंदे मेरे लिए भी बचा रखना । क्यों..
    और क्या लिखूँ ? तुम्हैं लिखना भी क्या समाप्त होगा उसकी सीमा मैंने नहीं देखी। परन्तु शीला-सेवा में जो शक्ति हो वह इस भावुकता में नहीं है। प्रेम प्रतिदान चाहता है नहीं मिलता है तो वह प्रतिशोध लेता है।  मित्रों के बीच में जब शंका पैदा हो जाती है तो वे सबे बड़े दुश्मन बन जाते हैं। मेरा मन अब उचट रहा है प्रिये लिख नहीं सकता। जीवन में पहली बार ही तो ऐसा पत्र लिखा है, इससे झिझक भी तो है, कहीं तुम कह न बैठो एक अपरिचित को ऐसा पत्र तुम कैसे लिख सके। शीला, क्या हम अपरिचित हैं? बताओगी प्रिये!
    मेरी रानी! मैं चाहता हूँ तुम्हें बिल्कुल भूल जाऊँ। समझूँ तुम बहुत बदसूरत, फूहड़ और शरारती लड़की हो। मेरा-तुम्हारा कोई सम्बन्ध नहीं । लेकिन विद्रोह तो और भी आसक्ति पैदा करता है। तब क्या करूँ? मुझे डर लगता है। मुझे उबार लो नहीं तो पतन के उस खड्ड में जा गिरूँगा जहाँ किसी को मेरी किरच भी ढ़ूँढ़े न मिलेगी।
    शीला देवी! सुनना चाहती हो तो सुन लो, तुम मेरी हो, मैं तुम्हें प्रेम करता हूँ… लेकिन नहीं, मैं बिल्कुल भी प्रेम करना
नहीं चाहता। यह पूरुष है चो नारी की अपूर्णता मिलाकर सम्पूर्ण बन जाना चाहता है। बोलो प्रिये
! क्या तुम उसे अपने नजदीक आने दोगी या ठुकरा दोगी।
    आज्ञा तो रानी मैं अब उठूँ। स्नान और भोजन की व्यवस्था करनी है। पानी आ गया है। भोजन के लिए भूख नहीं। बस ठीक है।
    कल तक कर्फ्यू आर्डर था परन्तु मैं 10 बजे से पहले ही घर आ गया था। स्टेशन पर मामाजी और एक दो फ्रेंड आ गए थे। यहाँ गरमी काफी है, हाथ पसीने से तर हैं पर तुम्हारा खत बचाने के लिए एक और कागज रख लिया है। सोचता हूँ कल की तरह पंखा लेकर तुम मेरे पास बैठी होती।
    सुशीला! तुम्हारी बहुत-सी बातें मुझे आश्चर्य में डालने वाली हैं। कभी-कभी तुम उतना संयम धारण करती हो कि बस हद है। कभी-कभी इतनी भोली जान पड़ती हो कि देवी के समान। कभी-कभी इतनी चंचल हो उठती हो कि मैं घबरा गया और कभी इतनी चतुर कि मैं तुमसे डरने लगा हूँ। शायद वैसे ही मैं कहता हूँ रानी! ये सब भावनाएँ हैं जो तुमसे मैं छिपाऊँगा नहीं पर इसका मतलब यह नहीं कि तुम डरो या रोओ। ऊँहूँ, केवल अपने को जानो। जिसने अपने को जाना उसने जग जाना।
    और रानी! उपदेश समझो या याचना; एक बात याद रखो अपने मत पर दृढ़ रहो और दूसरों के प्रति विनयी।
    अच्छा तुम्हारी जय बनी रहे रानी! भिखारी को दरवाजे से कोरा न लौटा देना। कुछ न दे सको तो दया-दृष्टि से देख-भर लेना जिससे उसकी सूखी हड्डियों में रक्तकण चमक आएँगे और आगे बढ़ सकेगा।
    मेरे पत्रों को फाड़ना मत। अच्छा, सबको नमस्ते कहना और सरलाजी से कहना कि जीजी की याद में इतना रोना ठीक नहीं। लो होल्डर की स्याही खत्म हुई। विदा, रानी। अनेक प्रेम-चुम्बनों के साथ विदा।
तुम
अगर बना सको तो तुम्हारा ही
विष्णु
और
भी
कैलाश
ने तुम्हें पुस्तक दी होगी। विवाह-सम्बन्धी सब बातें समझकर पढ़ लेना।
विष्णु

समाज में आवारा हवाओं के रुख

(स्टेज पर हल्की रोशनी और, एक कोने में फोकस लाईट जली होती हैं और खड़ी हुई लड़की बोलती है)
    मैं एक लड़की जिसे इस समाज में कमजोर समझा जाता है, और वहीं पाश्चात्य समाज में लड़की को बराबर का समझ के उसकी सारी इच्छाओं का सम्मान किया जाता है। जब से घर से बाहर निकलना शुरू किया है तब से ही मैंने नजरों में फर्क समझना शुरू कर दिया है, पता नहीं कैसे, शायद भगवान ने लड़कियों को छठी इंन्द्रीय की समझ देकर हमें अच्छी और बुरी नजरों
में फर्क करना सिखाया है। कुछ लोग हमारा दुपट्टा थोड़ा से खिसकने पर भी अपनी बहिन या बेटी मानकर हमें आँखों से ही आगाह कर देते हैं, पर ऐसे लोग समाज ने कम ही बनाये हैं। अधिकतर लोग दुर्दांत भेड़िये होते हैं जिन्हें तो बस अपनी आँखों में लड़की गरम माँस का लोथड़ा लगती है, कब मौका मिले और कब वे उसे उठायें और कच्चा ही खा जायें। लड़की जितनी असुरक्षित बाहर है उतनी ही घर में, जितने भी वहशीपन के किस्से सामने आते हैं, वे जान पहचान वालों के ज्यादा होते हैं।
    कुछ ऐसी ही मेरी कहानी है, जब मैंने घर से निकलना शुरू किया तो एक मजनूँ बाँके लाल ने मेरा पीछा करना शुरू किया, जल्दी ही पता चला कि वह मजनूँ मेरे घर के पास ही दो घर छोड़ कर रहता है। पता नहीं कहाँ से एक पुरानी कहावत याद आ गई, डायन भी सात घर छोड़ती है, पर यह मजनूँ तो तीसरे घर में ही..
    मेरी त्योरियाँ हमेशा चढ़ी ही रहती थीं, जिससे कभी उसकी बात करने की हिम्मत तो नहीं हुई पर मैं अंदर ही अंदर दिल में इतनी घबराती हुई आगे बढ़ती थी जिसे मैं बता नहीं सकती।
    एक दिन वह मजनूँ घर के चौराहे पर ही खड़ा था और मैं अपनी साईकिल से घर की और बड़ी जा रही थी,  मुझे वह पढ़ा लिखा लगता था, सलीके से पहने हुए कपड़ों में जँचता भी था। पर किसी का अच्छा लगना ही तो सबकुछ नहीं होता, मेरा ध्यान तो केवल और केवल पढ़ाई की ओर लगा हुआ था, आखिर किसी और तरफ ध्यान लगाने की न मेरी उम्र थी और न ही कोई वजह।
    मेरी साईकिल को किसी अज्ञात सी शक्ति ने रोका, पता नहीं एकदम क्या हुआ कि मेरी साईकिल रुक गई, जबकि मैंने न ब्रेक लगाया और न ही साईकिल की चैन उतरी थी।
सीन
    आवाज आई – मैं आपको पसंद करने लगा हूँ। तब मेरे ध्यान मेरी साईकिल के हैंडल को पकड़े हुए उसी मजनूँ की तरफ गई। वह मजबूती से मेरी साईकिल का हैंडल पकड़े हुए खड़ा था और मैं उसकी इस हिमाकत से अंदर तक हिल गई, समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ । मैं चुपचाप थी और साईकिल को पैडल मारकर आगे जाने की कोशिश करने लगी, पर मेरी साईकिल मेरा साथ नहीं दे रही थी, मैंने अपनी पूरी ताकत बटोरकर उससे कहा मेरी साईकिल छोड़िये और मुझे घर जाने दीजिये, ऐसी बदतमीजी करते हुए क्या आपको शर्म नहीं आती है ?”
    वह बोला – शर्म तो आती है, पर क्या करें ये कमबख्त दिल है कि मानता नहीं, और यह बदतमीजी नहीं, हम तो आपसे मोहब्बत का इजहार कर रहे हैं, जब तक आपको हम बतायेंगे
नहीं आपको पता कैसे चलेगा
    हम घबराते हुए बोले – देखिये हमें ये बकवास नहीं सुननी है, और हमसे फालतू की बातों में हमारा वक्त बरबाद मत कीजिये, हम पढ़ाई करते हैं और हमें आप परेशान कर रहे हैं
(स्टेज पर हल्की रोशनी और एक कोने में फोकस लाईट में लड़की बोलती हुई)
    इस तरह से उस दिन तो हम किसी तरह से अपने आप को बचाकर घर आ गया, घर पर इस घटना का हमने कोई जिक्र नहीं किया, अगर हम घर पर इस घटना का जिक्र करते तो शायद पापा और मम्मी घबरा जाते और उनको हमारी कुछ ज्यादा ही फिक्र हो जाती।
सीन
    शाम को वही लड़का फिर से हमारे घर पर आया हुआ देखकर हमें परेशानी महसूस हुई, वह अपनी बहिन के साथ मम्मी के पास आया हुआ था, उसकी बहिन मम्मी से स्वेटर बुनने की कुछ तरकीबें सीख रही थी। हमने वहीं पर रखे हुए अपने कंप्यूटर को चालू किया और फेसबुक चालू कर अपने स्टेटस देखने लगे।
    वह लड़का हमारे पास आकर बोला अरे वाह आप तो फेसबुक और ट्विटर दोनों का उपयोग करती हैं, आप तो तकनीक के साथ कदम ताल मिलाकर चलती हैं, वैसे हम भी तकनीकी का काफी उपयोग करते हैं, अब जब आप सामाजिक ताने बाने में खुद को व्यस्त रखती हैं तो हमें भी अपने आप को रखना होगा, क्यों नहीं आप हमें फेसबुक पर दोस्त बना लेती हैं, तो आपके विचार हमें पता चलते रहेंगे और हमारे आपको ?”
    हमने कहा जी बहुत बहुत धन्यवाद, हमें अपने विचार केवल अपने दोस्तों तक ही पहुँचाने होते हैं, किसी भी अजनबी को हम अपने विचार बताना पसंद नहीं करते हैं, और खासकर उनको तो बिल्कुल भी नहीं जिन्हें सड़क पर साईकिल का हैंडल पकड़कर लड़कियों को रोकने की आदत हो, अच्छा ये बताओ कि तुमने यह बदतमीजी आज तक कितनी लड़कियों के साथ की है ?”
    वह लड़का बोला आप उसे बदतमीजी का नाम मत दीजिये, वह तो हम केवल आपको अपने दिल का हाल बता रहे थे, कि कैसे हम आपके पीछे पागल हैं और हममें इतनी हिम्मत भी है कि आपको बाजार में रोककर अपने दिल के हाल से रूबरू भी करवा सकते हैं, काश कि आप हमारे दिल के हाल के सुनकर हमारी हालत पर रहम खायें” हमने कहा अपने दिल का हाल उसे सुनाईये जो सुनना चाहता है, हमें न सुनवाईये, अगर हमें ज्यादा परेशान किया तो आपको चप्पलों और लप्पड़ों के साथ अपना भविष्य गुजारना होगा, कहीं ऐसा न हो कि हमारी मोहब्बत में आपका जनाजा निकल जाये, आपकी बेहतरी इसी में है कि आप हमें परेशान न करें और हमारे रास्ते से हमेशा जुदा ही रहें
    वह लड़का बोला चलो हम आपके घर तक तो आ ही गये हैं, धीरे धीरे आपके फेसबुक ट्विटर और दिल तक भी पहुँच ही जायेंगे, देखते हैं कि आप कब हमें अपनाते हैं
(लाईट कम होती है और लड़की पर फोकस होता है, लड़की संवाद कहती है –)
    जी तो मेरा ऐसे कर रहा था कि उसका मुँह वहीं तोड़कर उसे उसकी नानी याद दिला दूँ पर पता नहीं मेरे अंदर की हिम्मत इतनी भी नहीं रही थी कि मैं वहीं बैठी अपनी मम्मी और उसकी बहिन को उस लड़के की बदतमीजी के बारे में बता पाऊँ, पता नहीं ऐसी हिम्मत के लिये लड़कियों को क्या खाना चाहिये, जिससे वक्त रहते कम से कम ऐसे मजनुओं को जबाव तो दे
पायें और अपनी कमजोरी को उनका हथियार न बनने दें।
मैं कमजोर
नहीं हूँ, बहुत हिम्मती हूँ
बस समाज से,
परिवार से, उनके लिये ही डरती हूँ
सारा डर केवल
हमारे हिस्से में क्यों लिखा है
क्यों इन
आवारा हवाओं पर समाज का काबू नहीं है
कब ये आवारा
हवाएँ हमें छूने से परहेज करेंगी
आखिर कब इन
हवाओं का रुख बदलेगा
आखिर कब समाज
की दीवारें इन्हें रोकेंगी
कब ये हवाएँ
साफ होंगी
और कब इन
हवाओं से घुटन खत्म होगी
कब ये हवाएँ
बदलेंगी,
और कब हम
साँस ले पायेंगे ।
    और उसी शाम जब मैं फेसबुक स्टेटस देख रही थी कि एक नये दोस्त का नोटिफिकेशन दिखा, मैं हमेशा दोस्त बनाने के पहले प्रोफाईल की जाँच पड़ताल जरूर कर लेती हूँ, और उस दिन भी की तो देखा, पाया कि वही लड़का है जो मुझे परेशान कर रहा है, मैंने उसे दोस्त नहीं बनाया और तभी मैंने अपने ट्विटर पर एक नया फॉलोअर देखा यह भी वही था, मैंने झट से उस प्रोफाईल को भी ब्लॉक किया। जिंदगी अपनी रफ्तार से चल ही रही थी, कुछ दिन गुजरे ही थे कि मेरी जिंदगी के ठहरे हुए पानी में फिर से किसी ने कंकर मारकर मेरी जिंदगी को उलट पुलट कर दिया। मेरी सहेली ने बताया कि उसी लड़के ने मेरे कुछ फोटो किसी ने फेसबुक पर डाल दिये हैं, बात अब बिगड़ने लगी थी, मैंने निश्चय किया कि मैं अपने मम्मी और पापा को आज सब कुछ बता दूँगी, और फिर बेहतर है कि हम इस समस्या से मिलजुलकर लड़ें।
सीन
    पापा ने उस लड़के को बुलाकर बहुत समझाया बेटा हम और आप बहुत ही सभ्य घरों से ताल्लुक रखते हैं, और क्यों तुम मेरी बेटी को इस तरह से परेशान कर रहे हो, इससे नाहक ही सब परेशान हो रहे हैं और मेरी बेटी भी अपनी पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पा रही है, बहुत ही ज्यादा मानसिक आघात तुमने दे दिया है, हमारी बेटी को हमने बहुत नाजों से पाला है, उसके पढ़लिख कर कुछ बनने के अरमान हैं, और तुम अब उन सपनों को पाने में बाधा बन रहे हो
    उस लड़के ने कहा अंकल जी, मैं तो केवल दोस्ती करना चाह रहा था, कि कोई अच्छा दोस्त हमारा भी हो, हमने तो कभी नहीं चाहा कि हमारे दोस्त के अरमान पूरे न हों, हम भी चाहते
हैं कि उसके सपने पूरे हों, हम कभी भी परेशान नहीं करेंगे
    पापा ने कहा तो फिर मेरी बेटी के जो फोटो तुमने फेसबुक और ट्विटर पर डाल रखे हैं, क्या वह भी परेशान करने के लिये नहीं हैं, मैं तुम्हारी इस हरकत को किस नजरिये से देखूँ
    उस लड़के ने कहा वह तो मैंने केवल इसलिये डाल रखे हैं कि ये नहीं दिखे तो कम से कम मैं फोटो ही देख लूँ और अपने मन को तसल्ली दे दूँ
    पापा ने कहा अब तुम बदतमीजी पर उतर आये हो, एक तो चोरी और ऊपर से सीनाजोरी, अगर तुमने फोटो आज को आज ही नहीं हटाये तो मुझे पुलिस के पास जाना पड़ेगा, जब चार डंडे पड़ेंगे तो अपने आप तुम्हारे नये दोस्त बनाने के अरमान ठंडे पड़ जायेंगे
    उस लड़के ने कहा अरे! अंकल जी आप ना ज्यादा टेन्शन न लिया करो, वैसे  तो अब आपने इतनी बात कर ही दी है तो अब देखिये हम क्या करते हैं, आपकी बेटी के सारे फोटो तो हटा ही देंगे पर साथ ही हम परेशान करना भी बंद कर देंगे, हमें पुलिस की वर्दी से बहुत डर लगता है (व्यंग्य से कहते हुए)
    पापा ने गुस्से में कहा अब अगर मुझे तुम्हारी किसी भी हरकत की खबर लगी तो मैं तुम्हारे साथ क्या करूँगा, तुम्हें पता भी न चलेगा, तो बेहतर है कि आज के बाद कभी भी न घर के पास फटकना और न ही मेरी बेटी के पास” लड़का चला जाता है ।
(सुबह का सीन है, चिड़ियाओं के चहचहाने की आवाज आ रही है – )
    अगले दिन सुबह लड़की साईकिल पर अपने स्कूल का बैग लटकाये हुए जा रही है, तभी अचानक पास जाते स्कूटर पर हेलमेट पहने किसी लड़के ने उसके मुँह पर एक शीशी से तेजाब फेंक दिया।
    मैं जोर से चिल्लाई ये क्या है मेरे मुँह पर, ये जल क्यों रहा है, मुझे मेरे चेहरे पर इतना गर्म झाग क्यों लग रहे हैं, क्या किसी ने मेरे चेहरे पर मिर्ची फेंक दी है या कुछ और.. मेरा पूरा चेहरा जल रहा है.. झुलस रहा है
(स्टेज पर पीछे बहुत सी आग की लहरें दिखाते हैं)
(पीछे से सामूहिक कोलाहल अरे किसी ने तेजाब फेंक दिया है, तभी कोई पहचान गया अरे बिटिया चलो मैं तुम्हें अस्पताल ले चलता हूँ और घर पर भी खबर कर देता हूँ)
    रास्ते भर में यही सोचती रही कि क्यों ये तेजाब मुझ पर फेंका गया और क्यों मेरे लिये ये जलन है किसी को मेरे प्रति, बस बहुत तेज चिल्लाने की इच्छा हो रही थी, फफक फफक कर रोने
की इच्छा हो रही थी, किसी ने मेरे सारे सपनों को क्षणभर में ही कुचल दिया था। कहीं कोई दूर काश मेरे लिये भी कोई सपनीली दुनिया होती जहाँ मैं अपने सारे अरमानों और सपनों को पूरा कर सकती। यह केवल मेरा चेहरा ही नहीं मेरी आत्मा जल रही थी, जल के छलनी छलनी हो रही थी, क्यों ये सब हमें भोगना पड़ता है, किसी ने तेजाब का इस तरह का उपयोग क्यों करना शुरू किया, इतनी जलन कि मेरे चेहरे के रोम रोम से मेरे माँस के पल पल बहने का अहसास और तेज हो रहा था, अंदर तक उस तेजाब की आग भभक रही थी, और चारों तरफ बेचारी लड़की के सांत्वना वाले शब्दों को मैं सुन पा रही थी। ऊफ्फ मेरे चारों तरफ एक अजीब तरह की घुटन हो रही थी, तभी पापा मेरे पास आये और मैं उनके स्पर्श को पाकर ही फफक फफक कर रो पड़ी।
    पापा कह रहे थे बेटी मुझे तुम्हें इस तरह देखकर बहुत ही दुख हो रहा है, पता नहीं किसे हमारे से ऐसी दुश्मनी थी जिसने ये घिनौना काम किया है, ये केवल दिन दो दिन की जलन नहीं है, ये तो पूरे जीवन की पीड़ा है, अभी ये जख्म है, और हर जख्म धीरे धीरे ही सूखता है, मेरी प्यारी बेटी तुम इस जख्म से परेशान न होना, तुम्हें न ही किसी से लड़ने की जरूरत है और न ही किसी की सांत्वना की, मुझे पता है तुम बहुत बहादुर हो और कभी भी किसी से न हारने वाली हो, वीर वही होते हैं जो अपने आप में सिसक लें पर दुनिया को कानों कान खबर न होने दें, दुनिया वाले बस सोचते ही रहें कि आखिर इनके पास इतनी हिम्मत आती कहाँ से हैं, बेटी तुम्हें अपने सारे सपने सच करने हैं, ये तो हमारे लिये जिंदगी की परीक्षा है और हम इस परीक्षा को बहुत अच्छे से उत्तीर्ण करेंगे, बस तुम अपना साहस कम मत होने देना, तुम्हारा परिवार हमेशा ही तुम्हारे साथ है
(स्टेज पर गहन अंधकार है और मंच पर एक कोने में फोकस लाईट जलती है और अपने बारे में बताती है)
    मैं बस उस दिन को अपने जीवन का काला दिन मान कर भूलना चाहती हूँ, पर कभी कोई जख्म भी जीवन में भरा है। हाँ अगर समय की दवा न होती तो नासूर जरूर बन जाता है, पर मैंने अपने जख्मों पर समय का मल्हम कुछ इस तरह से लगाया कि मैं दीन दुनिया को भूल बैठी, हाँ मुझे ठीक होने में काफी समय लगा । काफी लोग सांत्वना भी देते थे, पर मुझे उन लोगों पर हँसी आती थी, कि सांत्वना की जरूरत मुझे नहीं उन्हें खुद को है, काश कि समाज को हम यह भी शिक्षा दे पाते, काश कि हम अपने घर के लड़कों को मानसिक रोगी बनाने से रोक सकते, काश कि ये दर्द और जला हुआ चेहरा जो किसी की शरारत या हिकारत को शिकार हुआ था, न होता ।
(पार्श्व में हल्की रोशनी होती है और ऑनलाईन बिजनेस करते हुए दिखाया जाता है, एक लेपटॉप और कुछ लोग ऑनलाईन ब्रांडिग की प्रेजेन्टेशन उस लड़की को दिखा रहे होते हैं, लड़की का चेहरा रूमाल से ढंका है)
    मैंने अपना पूरा समय और पूरी ऊर्जा अपने सपने अपने अरमानों को पूरा करने में लगा दी, और मैं बहुत ही अच्छे से अपने आप को फाईंनेशियली सैटल कर पाई हूँ, आज मुझे मेरे परिवार पर  गर्व है कि मैं उन्हीं लोगों के कारण अपना खुद का इतना बड़ा ऑनलाईन बिजनेस कर पाई हूँ। बस यहाँ दुख इतना ही है कि कोई मेरे चेहरे को नहीं जानता, मेरे बनाये हुए ब्रांड को जानते हैं। मेरी सफलता की कहानी पूरे समाज की सफलता की कहानी है।

वेन्चरसिटी आई.टी. की प्रतिभाओं को निखार देगा (Venturesity will create history in IT Job Market)

     अब तक नौकरी पाने के लिये हम रिज्यूमे सीवी तैयार करते हैं, पर आज के इस कठिन दौर में जहाँ कंपनियाँ अच्छे लोगों को रिज्यूमें से भी तलाश पाने में असफल हैं वहीं कुछ अच्छे लोग जो कि साक्षात्कार में बहुत अच्छा नहीं कर पाते हैं परंतु काम में वे वाकई बहुत ही जबरदस्त होते हैं, इन्नोवेटिव होते हैं, तकनीकी की बारीकियों को अच्छे से जानते हैं और उन  तकनीकी से कैसे फायदे लेना है, यह उन्हें बहुत ही अच्छी तरह से पता होता है। अच्छे लोगों को कई बार ज्यादा टेलेन्टेड होने का भी हर्जाना भुगतना पड़ता है, कि जो भी साक्षात्कार ले रहा होता है, उसे उस विषय पर कम जानकारी होती है, जबकि साक्षात्कार देने वाले को ज्यादा तो भी उसका पत्ता कट होने के चांसेस बहुत ही ज्यादा होते हैं, क्योंकि सभी जगह लोग ईमानदार नहीं होते, कहीं न कहीं इस प्रतियोगी दौर में गला काट प्रतियोगिता में ये सब फायदे नुक्सान होते रहते हैं।

    कुछ समय पहले की ही बात है मेरे एक मित्र जो कि एक बेहद महत्वपूर्ण तकनीक (TIBCO) पर काम करते हैं, जिसे कि आई.टी. इंडस्ट्री में नीच (niche) स्किल के रूप में जाना जाता है, मैंने अपने एक परिचित से उनका सीवी एक अच्छी एम.एन.सी. में रेफर करवाया, उनका चयन हो ही जाना चाहिये था क्योंकि हमारे मित्र उस तकनीकी पर कई वर्षों से काम कर रहे थे, पर साक्षात्कार के दौरान ही उन्हें पता चल गया कि जो उनसे बात कर रहा है उसके पास इस तकनीक की विशेषज्ञता नहीं है, और अगले ही कॉल में उसे रिजेक्ट कर दिया गया कि टेक्नीकल पैनल साक्षात्कार क्लियर नहीं कर पाये, जबकि हमारे मित्र का कहना था कि मैं उस तकनीक पर कई वर्षों से काम कर रहा हूँ और मुझे किसी भी हालत में रिजेक्ट नहीं किया जा सकता है और जो मुझसे बात कर रहे थे उन्हें उस तकनीकी का कोई अनुभव ही नहीं था, हमने बाद में पता किया तो पता चला कि वे अकेले ही उस कंपनी में उस तकनीकी विधा के महारथी हैं और किसी और को लाकर वे अपनी पहचान खोना नहीं चाहते थे।
    किसी भी जॉब के लिये पहला सौपान साक्षात्कार ही होता है और अधिकतर इंडस्ट्री में लोग एक दूसरे को जानते हैं, और केवल इसीलिये भी रैफेरल सिस्टम का जमकर उपयोग होता है, जिससे जिस भी जॉब के लिये वे रिसोर्स को ले रहे हैं वह जाँचा परखा हो, पर इस सिस्टम में पारदर्शिता नहीं है। और इस क्षैत्र में भी बदलाव आने की जरूरत थी। आज एक पुराने कलीग ने फेसबुक पर चैटिंग में हमें http://www.venturesity.com वेन्चरसिटी के बारे में बताया ।
    हमें वेन्चरसिटी का कंपनियों के जॉब हायरिंग के लिये अपनाया गया तरीका बेहद ही पसंद आया, इससे एक तो बाजार में नया क्या चल रहा हैं, पता चलता है, हैंड्सऑन प्रैक्टिस भी हो जाता है, आप खुद ही अपना आंकलन कर सकते हैं, कहाँ सुधार करना है, आप किस क्षैत्र में अच्छा कर रहे हैं यह भी आपको पता चल जाता है, सबसे बड़ी बात है कि इस अनुभव से आपको बहुत कुछ नया सीखने को मिलता है, जो कि दैनिक रुटीन के कार्यों में नहीं सीख पाते हैं। जो सबसे अच्छी तरह से काम कर पाता है, कंपनी उसका चयन कर लेती है, इस तरह कंपनी को अच्छा जाँचा परखा रिसोर्स मिल जाता है और रिसोर्स को भी अपने ऊपर आत्मविश्वास होता है।
    वैसे भी जिस तेजी से बाजार का परिदृश्य बदल रहा है, उससे नयी विधाओं का बाजार में आना भी जरूरी है और इससे बाजार को और प्रतिभाओं को अपने आप को परखने की क्षमता बड़ेगी।

जिंदगी अगर दूसरा मौका दे तो (Second Chance in Life)

जिंदगी में सबकी अपनी अपनी तमन्नाएँ होती हैं पर बहुत ही कम लोग अपनी तमन्नाओं के अनुसार काम कर पाते हैं, सबको अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के लिये, अपने उत्तरादायित्व पूरे करने के लिये, अपने सपनों के अरमानों को कहीं अपने दिल में दफन करना पड़ते हैं, पर बीच बीच में कहीं न कहीं ये अपने सपने कहीं न कहीं झलक ही आते हैं, पूरा समय न पढ़ने में दे पाते हैं और न ही लिखने में, बहुत ही कम समय मिलता है पढ़ने और लिखने के लिये, पाँच दिन अपने ऑफिस में व्यस्त रहते हैं और बाकी के दो दिन परिवार के लिये।
अगर मुझे वो काम करने हों जो मैंने आगे के लिये छोड़ रखे हैं, क्योंकि मैं अभी वे काम नहीं कर पा रहा हूँ, वे इस प्रकार हैं –

जिंदगी अगर दूसरा मौका दे तो –

कविताएँ  कहानियाँ लिखूँ
किसी ने सही ही कहा है कि जितना पढ़ोगे उतना ही अच्छा लिखोगे, और उतना ही गहराई से सोच पाओगे, जिंदगी को सही मायने से समझ पाओगे, अपनी समझ को सुलझा पाओगे, लिखते तो हैं पर वह स्तर नहीं आता जो स्तर आना चाहिये, जिसे हम अच्छा कह पायें।
थियेटर करूँ
किसी जमाने में बहुत शौक था स्टेज थियेटर करने का, न दिन का ध्यान रहता था, न रात का, बस कभी डॉयलाग याद करता था तो कभी अपनी अभिनय निखारने के लिये पता नहीं क्या क्या तरीके अपनाता था, खासकर जब पेट से आवाज निकालने का अभ्यास करता था तो पेट पर जोर पड़ते ही मुझे दस्त लग जाते थे, अभिनय भी वह कला है जिसे निखारने के लिये बहुत मेहनत करना पड़ती है।
पर्सनल फाईनेंस के लिये सेमिनार करूँ
मेरे पास पर्सनल फाईनेंस से संबंधित बहुत सारी चीजें हैं जो कि बहुत से लोगों को नहीं पता है, यहाँ तक कि आयकर की धाराओं के तहत कितनी और कैसे बचत की जाये यह भी नहीं पता
है, कितना बीमा लेना चाहिये, लक्ष्य कैसे निर्धारित करें, मिलने वालों को तो फायदा मिलता ही है, पर चाहता हूँ कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को फायदा मिले।
This post is a part of the #SecondChance
activity at BlogAdda
in association with MaxLife Insurance
”.

अब कॉल से बेहतर है क्विकर NXT (Quikr NXT is best then taking calls)

    नो फिकर बेच क्विकर ये पंचलाईन तो सभी ने सुनी होगी, अभी कुछ ही वर्ष हुए हैं क्विकर को ऑनलाईन बाजार में आये पर जितनी तेजी से इस वेबसाईट ने अपनी जगह बनाई है, शायद ही उतनी तेजी से कोई और वेबसाईट अपनी जगह बना पाई। पहले हम अपनी पुरानी चीजों को बेचने के लिये केवल कबाड़ी वाले पर ही निर्भर रहते थे, जान पहचान वाले कम ही लोग उपयोग की हुई चीजों को लेते थे, और वह चीज हमें या तो सस्ते में ही कबाड़ी को बेचने के लिये मजबूर होना पड़ता था या फिर वह वस्तु पड़े पड़े ही कबाड़ हो जाती थी।
    जब क्विकर नहीं था तब मैंने पता नहीं कितनी ही वस्तुओं को कबाड़ होते देखा है, मेरी पुरानी साईकिल, पुराना वाटर प्यूरिफॉयर, हीटर जिन्हें हमने कबाड़ से बचाने के लिये गमला बना दिया। और वे सब हमें इसलिये हटाने पड़े क्योंकि हमें उसकी जगह कोई और अच्छी तकनीक वाली चीज उपयोग में लाना था, अगर वे सब सामान बिक जाता तो निश्चित ही किसी न किसी का कम बजट में काम हो गया होता और हमें भी कम ही सही पर कुछ मदद तो नई वस्तुएँ खरीदने में मिलती ही । पर उस समये पहुँच भी कम ही आस पास वालों तक ही होती थी।
    आज क्विकर ने इंटरनेट युग में चार चाँद लगा दिये हैं, अब किसी भी पुरानी चीज को बेचने के लिये कबाड़ी या किसी एजेन्ट की जरूरत नहीं पड़ती है, बस क्विकर पर विज्ञापन लगाया और फटाफट से फोन आने शुरू, अपनी सारी जानकारी फोटो के साथ दे दो और फिर कहीं भी घूमते रहो, और ऐसा भी नहीं कि 24 घंटे घर पर बैठे रहो कि कब खरीददार आ जाये पता नहीं, और हम घर पर न हों तो नुक्सान हो जाये, अब तो खरीददार फोन करके आता है।
    अब मैंने अपनी बाईक को बेचना है तो फिर से मैंने क्विकर की सेवायें ली हैं, अपनी बाईक का फोटो लगा दिया और जरूरी जानकारी भी साथ में दे दी है, ये है कि बाजार में मैकेनिक इसके कम दाम बता रहे थे पर क्विकर पर उससे कहीं अधिक के ऑफर मिल रहे हैं।
    जब से Quikr NXT आया है तब से थोड़ा आसानी हो गई है, मैं अधिकतर से काल लेने से बचता हूँ और चैट से ही काम लेना पसंद करता हूँ
  1. क्योंकि ऑफिस में अधिकतर मीटिंग्स में व्यस्त होते हैं, तो जैसे ही समय मिलता है तो हम चैट का जबाव दे सकते हैं, पर फोन नहीं कर सकते ।
  2. ऑफिस में आसपास वाले लोगों को उनके काम में फोन पर बात करने से बाधा पहँचती है।
  3. हँसी का पात्र नहीं बनना पड़ता है, लोग हमेशा से ही दूसरों का मजाक उड़ाते हैं कि बाईक बेचने के लिये क्या एक ही तरह के सवालों के जबाब देता रहता है और कुछ न करते हुए भी शर्मिंदगी का पात्र बनना पड़ता है।
  4. एक बार किसी को सवाल का जबाव दे दिया तो फिर से टाईप करने  की जगह केवल कॉपी पेस्ट से ही काम चल जाता है।
  5. मोबाईल पर चैट किसी को दिखती भी नहीं है और जो काम कर रहे होते हैं, उससे ध्यान नहीं भटकता है और फोन पर बात करने से ध्यान बँटता है।

आईये मिलकर ढ़ूँढे अपनी कठिनाईयाँ और विकास के रास्ते

   
   
    आईये मिलकर ढ़ूँढे अपनी कठिनाईयाँ और विकास के रास्ते जो मैं सुबह की चाय के साथ लिख रहा हूँ गलत नहीं लिखूँगा, आजकल ट्विटर और फेसबुक पर हम अगर किसी एक दल के लिये कुछ लिख देते हैं तो हमें अपने वाले ही विकास विरोधी बताकर लतियाना शुरू कर देते हैं। पर हम भी अपना संतुलन ना खोते हुए संयमता बरतते हैं, दिक्कत यह है कि विकास की लहर वाले लोग जबाव देने की जगह हड़काने लगते हैं। क्या वाकई उन्हें लगता है कि इससे सारी दिक्कतें दूर हो जायेंगी, या वाकई उन्हें यह लगता है कि सब ठीक चल रहा है, खैर अब हम क्या बतायें ये तो मानव मन की गहराईयाँ हैं, जो अच्छा लगता है वही पढ़ना चाहता है, वही लिखना चाहता है, वही बोलना चाहता है और वही दूसरों से सुनना चाहता है।
    बाकी सब तो व्यंग्य हैं, पर आज सुबह उठकर हमने सोचा कि वाकई हमें उनका पक्ष भी जानना चाहिये, कि हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा, क्या मुझे रोजमर्रो के कामों में कोई आसानी हुई या वही सब पुरानी परेशानियाँ अभी भी झेलनी पड़ रही हैं।
महँगाई – यह तो सुरसा की मुँह है, बड़ती ही जा रही है, दूध आज से 4 वर्ष पहले बैंगलोर में 21 रू. किलो मिलता था, आज वही दूध 42 रू. हो गया है, अब तो बैंगलोर छोड़े मुझे समय हो
गया, हो सकता है और भी ज्यादा हो गया हो। यहाँ गुड़गाँव में खुला दूध 42 से 46 रू. ली. मिलता है और पैक वाला 44 से 50 रू ली. मिलता है। यहाँ तो मेरी जेब कट ही रही है। न सब्जी के दामों में कमी है न दालों के।
चिकित्सा – थोड़े दिनों पहले बेटेलाल बहुत ज्यादा बीमार थे, पता नहीं कितने डॉक्टरों के चक्कर काटे और जाने कितने टेस्ट करवाये, लूट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि डॉक्टरों की फीस कम से कम 500 रू. हो गई है और साधारण से टेस्ट के भी 100 – 500 रू. तक वसूले जा रहे हैं, और उनमें भी शुद्धता नहीं है दो अलग अलग लैबों की रिपोर्ट भी अलग आती है, किसी स्थापित मानक का उपयोग नहीं किया जाता है। जबकि हम सरकार को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों कर देते हैं, पर हमें सीधे कोई फायदा नहीं है, यहाँ एक बात का उल्लेख करना चाहूँगा मेरे प्रोजेक्ट से अभी एक बंदा ब्रिटेन से वापस आया तो बोलो कि वहाँ अगर कर लेते हैं तो वैसी सुविधाएँ भी हैं, लिये गये पूरे पैसे का पाई पाई का उपयोग होता है, केवल फोन कर दो तो दो तरह की सुविधाएँ उपलब्ध हैं, पहला तो कि आपको कुछ समस्या हो गई है तो तत्काल एम्बूलेन्स आयेगी और वहीं तात्कालिक  सहायता उपलब्ध करवाकर अगर जरूरत है तो अस्पताल भी ले जायेगी, दूसरी आप फोन करके डॉक्टर से मिलने का समय सुनिश्चित कर सकते हैं, जो कि स्वास्थय बीमे में ही कवर होता है।
सरकारी कार्य – कुछ दिनों पहले अपनी बाईक के कागजों से संबंधित कार्य था, सोचा कि शायद हम सीधे ही करवा पायें, एक छुट्टी भी बर्बाद की और कोई काम भी नहीं हुआ, अगले दिन सुबह एक एजेन्ट को ही पकड़ना पड़ा जैसा कि स्वागत कक्ष पर बैठे बाबू ने कहा, क्योंकि वहाँ पुलिस का कोई सर्टिफिकेट बनवाना पड़ता है, और वहाँ बिना पहचान के काम नहीं होता है, हमें पता नहीं क्या क्या कागजात लाने को बोले गये थे, हमने सब दिखाये पर काम न हुआ, एजेन्ट ने हमसे 300 रू इसी बात के लिये और सर्टिफिकेट बनवा लाया, हमारे जाने की जरूरत भी नहीं पड़ी। क्यों नहीं यह सारा कार्य ऑनलाईन करके जनता को सरकारी मशीनरी की कठिनाईयों से मुक्ती दे दी जाती है। किसी भी सरकारी कार्यालय में जाओ तो पता चलता है कि बिना पैसे के कोई काम नहीं होता है।
ऑटो पुलिस – न ऑटो वाले मीटर से चलते हैं और न ही पुलिस वाले उन्हें कुछ बोलते हैं, हर जगह जाम की स्थिती है।
ट्रॉफिक जाम – पता नहीं कितने हजारों घंटों को नुक्सान ट्रॉफिक जाम में हो जाता है, क्यों नहीं ऐसा बुनियादी ढाँचा बनाया जाता है कि ट्रॉफिक की समस्या से निजात मिले, क्यों नहीं सड़कों को अगले 10 वर्ष बाद की दूरदर्शिता के साथ बनाया जाता है। और पेट्रोल का नुक्सान तो होता ही है।
पेट्रोल – की बात आई तो यह बात करना भी उचित होगा कि जब क्रूड ऑइल जब महँगा था तो पेट्रोल का भाव 86 रू. ली. तक था, पर आज आधे से भी कम है तो भी पेट्रोल का भाव 62 रू. क्यों है, जब पेट्रोल डीजल के भाव बड़ रहे थे, तब तो सभी ने अपने किराये बढ़ा दिये, अब जब कम हो रहे हैं, तो उसका फायदा हमें क्यों नहीं मिल रहा है।
बिजली – इस पर तो अनर्गल वार्तालाप किये जा रहे हैं, कि कई बिजली की कई कंपनियाँ होने से सस्ती हो जायेंगी, अगर ऐसा है तो रेल्वे को भी कई कंपनियों के हाथों में दे दीजिये, बसों में कई कंपनियों की बसें विभिन्न रूट पर चलती हैं पर कहीं कोई सस्ती सेवा उपलब्ध नहीं है, वैसे भी यह सब सरकार के हाथ नहीं है, यह बिजली नियामक तय करते हैं, पता नहीं सरकार जनता को उल्लू क्यों समझती है।
रेल्वे – जब भी मैं घर जाने का प्रोग्राम बनाता हूँ तो टिकट ही उपलब्ध नहीं होते, क्यों न सफर करने वाली आबादी के अनुसार रेल्वे को डिजायन किया जाये, हम यह नहीं कहते कि बुलेट ट्रेन न चलाई जाये वह तो भविष्य की जरूरत है परंतु उससे पहले हमें कम से कम आजकल के टिकट तो मयस्सर होने चाहिये, अगर बुलेट ट्रेन भी आ गई और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है तो फिर कैसे उसका भी भरपूर उपयोग भारतवासी कर पायेंगे और अगर संयोग से टिकट मिल भी जाता है तो सुविधाओं में कमी महसूस होती है।
शिक्षा – हम सरकारी स्कूल में पढ़े, तब भी निजी स्कूल थे, परंतु यह कह सकते हैं कि कम से कम सरकारी स्कूलों का स्तर आज से बहुत अच्छा था, मैंने तो आज भी कई सरकारी स्कूल देखें हैं जो निजी स्कूलों से काफी अच्छे हैं, परंतु वे सरकारी प्रयास नहीं है, वह तो किसी प्रधानाध्यापक की मेहनत और कड़ाई के कारण है। सरकारी स्कूल और निजी स्कूल की फीस में जमीन आसमान का अंतर है, ज्यादी फीस देने का यह मतलब नहीं है कि अच्छी शिक्षा मिल रही है, या अच्छा माहौल मिल रहा है, केवल हम अपने बच्चे को अच्छे सहयोगी दे पा रहे हैं, जिनके माता पिता इतनी फीस दे पाने में समर्थ हैं, उनके साथ पढ़ पा रहा है हमारा बच्चा, पर निजी स्कूलों में पढ़ाने वालों का शैक्षिक स्तर सरकारी स्कूल से बदतर है, सरकारी स्कूलों के अच्छे शैक्षिक स्तर वाले गुरूओं को सब जगह घसीट लिया जाता है, उनका सही तरीके से उपयोग नहीं हो जाता और न ही उनके ऊपर दबाव होता है।
    हैं तो और भी बहुत सारी चीजें जिनकी चर्चा में करना चाहता हूँ पर जिनकी बातें मैंने यहाँ की हैं और अगर आपको लगता है कि यह केवल मेरे साथ भेदभाव हो रहा है तो आप ही बतायें कि आपकी जिंदगी पर कोई असर पड़ा हो तो मैं भी आपकी तरह ही सोचने की कोशिश करूँ।