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निवेश के लिये सोने के सिक्के या गहने की जगह गोल्ड ईटीएफ़ खरीदें।

       निवेश के लिये सोने के सिक्के  खरीदने से अच्छा है कि इसका ईटीएफ़ खरीदें जो कि सोने के बाजार भाव में ही मिलता है जैसे कि कोटक गोल्ड, रिलायंस गोल्ड और जब भी निवेश का रिटर्न चाहिये उसे बेच सकते हैं, और यह आपके डीमैट अकाऊँट में रहता है, इससे आपके मेकिंग चार्जेस बचते हैं जो कि १५० रुपये प्रति ग्राम रहते हैं।

       जैसे कि २ ग्राम सोने का सिक्का निवेश के लिये खरीदते हैं तो वह ३५०० रुपये का मिलता है और कोटक गोल्ड खरीदते हैं तो वह ३१५० रुपये का मिलेगा और जो भी ब्रोकरेज होगा जो कि लगभग ५० रुपये होगा। अब जब आपको सोने का रिटर्न चाहिये तो जब आप वह सिक्का बेचेंगे तो लगभग १५० रुपये प्रति ग्राम या इससे ज्यादा भी वापसी के समय ज्वैलर काटा लेगा परंतु अगर कोटक गोल्ड बेचेंगे तो केवल ब्रोकरेज ही देना होगा। फ़िर आप चाहें तो वह धन अपने उपयोग में लें या फ़िर उससे सोना खरीदकर गहने बनवा लें।

      गोल्ड ईटीएफ़ आप हर महीने एक शेयर भी खरीद सकते हैं जो कि सोने के एक ग्राम मूल्य के बराबर होता है। और चाहे तो बाद में बेच दें जब गहने बनवाने लायक सोना आपके पास हो जाये।

“कालिदास और मेघदूतम के बारे में” श्रंखला खत्म, आपके विचार बतायें

                   यह कड़ी कालिदास और मेघदूतम के बारे में की आखिरी कड़ी थी। कृप्या बतायें क्या आगे भी इसी तरह की कुछ और किताबों पर कड़ियां पढ़ना पसंद करेंगे तो मैं उस की तैयारी करता हूँ। अभी पढ़ी गई किताबों में है त्रिविक्रमभट्ट रचित “नलचम्पू” और शिवाजी सामंत की “मृत्युंजय”। पढ़ना जारी है – “Rich Dad Poor Dad”, पढ़ने के इंतजार में हैं “The Alchemist”|

दीपों के त्यौहार दीपावली पर आप सब को बहुत बहुत शुभकामनाएँ।

शेयर बाजार का विश्लेषण – पिछली दीपावली से इस दीपावली तक, और इस दीपावली से अगली दीपावली तक.. आगे भविष्य में बाजार जगमग होगा।

      पिछली दीपावली पर शेयर बाजार और इस दीपावली पर शेयर बाजार में बहुत अंतर है, पिछली दीपावली पर निवेशक बाजार में बहुत कुछ गँवा चुके थे और शेयर बाजार अपने लगभग न्यूनतम स्तर पर था। इस बार बाजार में चारों तरफ़ रौनक ही रौनक है, मंदी के दिन छट चुके हैं, बाजार अच्छे तरह के संकेत दे रहा है। सोना चांदी भी अपने उच्चतम स्तर पर हैं।

      ई फ़र्स्ट ग्लोबल के शंकर शर्मा (हम इनके बहुत बड़े पंखे (फ़ैन) हैं) के मुताबिक  पिछले साल रियलिटी सेक्टर ने अच्छा किया जितना कि उम्मीद नहीं थी। FMCG सेक्टर ने भी अच्छा किया है। और इस साल FMCG, ऑटो सेक्टर से बहुत उम्मीद है । बाजार को नई ऊँचाई पर जाने के लिए रिलायंस ग्रुप का झगड़ा निपटना बहुत जरुरी है, रिलायंस इंडस्ट्रीज जल्दी ही अपने नये नवीनतम स्तर पर पहुँचते हुए देख सकते हैं जो कि ३५०० रुपये हो सकता है, तो कुछ शेयरों के लिये उनका कहना है कि बाजार को अपने उच्चतम स्तर पर जाने के लिये उनको भी अपने नये स्तरों को छूना होगा जैसे कि TCS १२०० रुपये, इन्फ़ोसिस ३५०० रुपये, विप्रो ९०० रुपये।

      इस दीपावली से अगली दीपावली तक FMCG,  ऑटो और एयरलाईन्स सेक्टर को बहुत अच्छा बताया है साथ ही हीरो होंडा और बजाज ऑटो को सबसे अच्छा निवेश बताया है।

        टेलीकॉम सेक्टर में हाथ न डालने की सलाह दी गई है, इस सेक्टर की स्थिती को डॉटकाम के बूम जैसा बताया गया है कि टेलीकॉम में वही हालत होने वाली है उससे दूर रहें।

      अगले सालों में २०% का चक्रवर्ती रिटर्न मिलने का भरोसा है। फ़ेयर वैल्यू इंडेक्स १३००० माना है। फ़िर भी बाजार को अच्छा बताया है।

       दलाल स्ट्रीट जनरल मैग्जीन ने पिछले साल दीपावली पर जो पोर्टफ़ोलियो खरीदने के लिये सलाह दी थी इस दीपावली पर लगभग ६७% रिटर्न मिला है। जिसमें मारुति, एल एन्ड टी, इमामी, हनीवैल ऑटो, अरेवा टी एन्ड डी, क्रिसिल, नेस्ले इंडिया, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, एचडीएफ़सी, ऐशियन पेन्टस, सन फ़ार्मा थे।

        इस बार दीपावली के पोर्टफ़ोलियो में सीईएससी, एचसीसी, एल एन्ड टी, एम्फ़ेसिस, ओरिंयंट पेपर, रेनबेक्सी, एस आर एफ़, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, सिन्डिकेट बैंक, ट्यूलिप टेलिकॉम और कोलगेट पामोलिव में निवेश करने की सलाह दी गई है।

     सभी तरह से भविष्य में बाजार के प्रति अच्छी संभावनाएँ बतायी जा रही हैं, मंदी की स्थिती से बाजार निकल रहा है।

    सोने ने १५% का रिटर्न दिया है आगे उम्मीद इससे भी अच्छी है। चाँदी १७००० से २७००० हो गई है और भविष्य में भी लोग चाँदी अच्छे से काटेंगे।

कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ४१

परिणतशरच्चन्द्रिकासु – भारतवर्ष में छ: ऋतुओं होती हैं। उसमें शरद का समय अश्विन और कार्तिक मास होता है, जैसा कि स्पष्ट किया गया है कि यक्ष के शाप का अन्त कार्तिक शुक्ल एकादशी को होगा तभी उसका अपनी प्रिया से मिलना सम्भव होगा, तब शरद ऋतु का ढलना स्वाभाविक ही है। क्योंकि कार्तिक की समाप्ति पर शरद़् भी समाप्त हो जाती है इसलिए कवि का कथन कि “ढली हुई शरद़् ऋतु

की चाँदनी वाली रातें” इसमें कोई असंगति नहीं बैठती।


सान्तर्हासम़् – यक्षिणी ने किसी रात सोते समय स्वप्न में यक्ष को किसी अन्य रमणी के साथ रमण करते देखा, तो वह एक दम जाग जाती है और यह देखकर कि उसे वह अपने गले लगाये हुए है तो कुछ लज्जित-सी होती है और अपनी गलती पर मन ही मन हँसी भी आती है।

कितव – जो नायक किसी अन्य में अनुरक्त हो और प्रकृत नायिका में भी बाहरी तौर पर अनुराग दिखलाये और गुप्तरुपेण उसका अप्रिय करे वह शठ कहलाता है। यहाँ यक्षिणी  स्वप्न में यक्ष को किसी अन्य स्त्री के साथ देखकर उसे कितव (शठ) कहकर सम्बोधित करती है।

अभिज्ञानदानात़् – अभीज्ञान कहते हैं पहिचान का चिह्न अथवा निशानी। यक्ष मेघ को अभिज्ञान के रुप में एक ऐसा रहस्य बताता है जो यक्ष और यक्षिणी को ही पता है, उस रहस्य को सुनकर यक्षिणी जान जायेगी कि इस मेघ को यक्ष ने ही भेजा है।

उपचितरसा: प्रेमराशीभवन्ति – वियोग में अभिलाषा के बढ़ जाने पर स्नेह प्रेम के रुप में परिणत हो जाता है। रसरत्नाकार में संयोग की दर्शन, अभिलाषा, राग, स्नेह, प्रेम, रति और श्रृंगार ये सात अवस्थाएँ पृथक पृथक स्पष्ट की हैं –
प्रेक्षा दिदृक्षा रम्येषु तच्चिन्ता त्वभीलाषक:।
रागस्तासड़्गबुद्धि: स्यात्स्नेहस्तत्प्रवणाक्रिया॥
तद्वियोगऽसहं प्रेम, रतिस्तत्सहवर्तनम़्।
श्रृड़्गारस्तत्समं क्रीड़ा संयोग: सप्तधा क्रमात़्॥
अर्थात सुन्दर पदार्थ को देखने की इच्छा को प्रेक्षा, सुन्दर पदार्थ को पाने की चिन्ता को अभिलाष, सुन्दर पदार्थ के साथ संसर्ग की बुद्धि को राग, उसके लिए कार्य करने को स्नेह, उस पदार्थ के साथ होने वाले वियोग को न सहने को प्रेम, अभीष्ट पदार्थ के साथ रहने को रति और उसके साथ क्रीड़ा को श्रृंगार कहते हैं।



कुन्दप्रसवशिथिलम़् – कुन्द पुष्प चमेली के पुष्प को कहते हैं, यह पुष्प शाम को खिलता है और प्रात:काल मुरझा जाता है; अत: महाकवि ने विरह पीड़ित प्राणों को प्रात:कालीन चमेली के पुष्पों के समान कहा है।


ते विद्युता विप्रयोग: मा भूत़् – विद्युत को मेघ की पत्नी बताया गया है। श्लोकार्द्ध में मेघ के प्रति मंगल कामना की गयी है कि वह अपनी प्रिया से क्षण भर के लिए भी वियुक्त न हो। वास्तव में यक्ष ने अपनी प्रिया से वियोग सहा है और वह जानता है कि वियोग कितना कष्टकारक होता है। इस प्रकार मेघदूत मार्मिक मंगल-वाक्य के साथ समाप्त होता है।

धर्म प्रचार पर हंगामा हो रहा है हमारी ब्लॉग दुनिया में, इसे दूर करें !!!!! विरोध में सात दिन ब्लॉग पर पोस्ट पब्लिश नहीं करुँगा…

             सब जगह बस यही हंगामा हो रहा है क्या हो गया है हमारी ब्लॉग दुनिया को । अरे भई इन सबको नजरअंदाज कर दो और अपने काम पर लगे रहो, जब कोई इन्हें पढ़ेगा ही नहीं तो ये कैसी भी धार्मिक, घटिया, असहिष्णुता या सांप्रदायिक बातें कर लें कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। टिप्पणी में मोडरेशन का अधिकार प्रयोग करें, उसके लिये मोडरेशन लागू करने की जरुरत नहीं जहाँ धार्मिक विज्ञापनबाजी देखो वहीं उसका उपयोग कर लें। और जो मानसिक बीमार है उन्हें कितना भी ज्ञान दे दो, बेईज्जती कर दो उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। केवल इसका एक मात्र इलाज यह है कि इन लोगों के ब्लॉग पर न जायें, टिप्पणी देकर इनका और हौंसला न बढ़ायें। इनके ऊपर पोस्ट न लिखी जाये, और जहाँ भी इनकी टिप्पणी देखें उसकी भर्त्सना करें। जय हिंद

कुछ पोस्ट मैंने देखीं जिससे मन विचलित हो गया।

सलीम खान मै मुस्लिम धर्म अपनाना चाहती हूँ बशर्ते

मेरा ब्लॉग न हुआ कूड़ा घर हो गया हो उन्होंने चेलेंज के साथ १३ बार मेरे ब्लॉग पर गंदगी फैलाई

ये क्या हो रहा है?
हम तुम्हें गाली दें, तुम हमारे मुँह पे थूको
इस्लाम में महात्मा गाँधी जैसा कोई व्यक्तित्व क्यों नहीं होता

मन बहुत दुखी है और दुखते हुए मन से यह पोस्ट ठेल रहा हूँ इसके विरोध में सात दिन ब्लॉग पर पोस्ट पब्लिश नहीं करुँगा।

कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ४०

दीर्घयामा – यद्यपि यक्ष ने मेघ को सन्देश ग्रीष्म ऋतु के आषाढ़ मास में दिया है जबकि रात्रियाँ छोटी होती हैं, किन्तु विरहावस्था में जागरण व चिन्ता के कारण रात्रियाँ लम्बी प्रतीत होती हैं। इसलिए यक्ष की यह इच्छा कि रात्रि किसी तरह छोटी हो जाये, स्वाभाविक थी।

त्रियामा – रात्रि के तीन प्रहर माने हैं। एक प्रहर तीन घंटे का होता है। दिन और रात में आठ प्रहर माने जाते हैं। इस कारण दिन और रात्रि दोनों में चार

-चार प्रहर होने चाहिये परन्तु विद्वानों के अनुसार रात के आदि और अन्त में आधे-आधे प्रहरों को दिन में ग्रहण किया गया जाता है। इस प्रकार रात्रि में तीन प्रहर और दिन में पाँच प्रहर बचते हैं।


बहु विगणयन – जो व्यक्ति दु:ख में अपना धैर्य नहीं खोता, वह दु:ख के समय यह विचार करके कि आगे चलकर सुख प्राप्त होगा तो मैं ये-ये करुँगा, ऐसा सोचता रहता है। यही स्थिति यक्ष की है। वह भी शाप की समाप्ति पर जब अपनी प्रिया से मिलेगा तो उस समय क्या क्या करना है, ये योजनाएँ बनाता हुआ विरहकाल व्यतीत कर रहा है।

चक्रनेमिक्रमेण – इस पद से कवि ने लौकिक सत्य का उद़्घाटन किया है। जिस प्रकार रथ जब चलता है तो पहिये का किनारा जो भूमि को स्पर्श करता है, वह ऊपर चला जाता है और जो ऊपर होता है वह घूमते हुए नीचे आ जाता है। वैसे ही मनुष्यों की दशा में भी सुख, दु:ख आते हैं- कभी सुख आता है, तो कभी दु:ख।

भुजगशयनादुत्थिते – भारतीय परम्परा के अनुसार भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को शेषनाग शय्या पर क्षीरसागर में सोते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को उठते हैं। इस एकादशी को क्रमश: हरिशयनी एकादशी तथा हरिप्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। लोकभाषा में इन्हें देव सोनी ग्यास और देव उठानी ग्यास भी कहते हैं। इनके बीच के समय को “देव सोना” कहा जाता है। इसमें विवाहादि शूभ कार्य नहीं किया जाता उस समय भगवान की पूजा करनी चाहिये।

विरहगणितम़् – विरह काल में व्यक्ति अनेक बातें सोचता है कि अपने प्रिय अथवा प्रिया के मिलने पर ऐसे मिलूँगा, ऐसे रुठूँगा, ऐसे मनाऊँगा आदि। यक्ष व यक्षिणी भी यही सब बातें सोच रहे हैं कि मिलने पर वे इन्हें पूरी करेंगे।

कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ३९

धातुरागै: शिलायाम़् – अपनी प्रिया का चित्र बनाने के लिये विरही यक्ष के पास कोई सामग्री जैसे कागज, पैंसिल, रंग आदि नहीं थी। इसलिये वहाँ सुलभ गेरु को रंग के स्थान पर तथा पत्थर को कागज के स्थान पर प्रयुक्त करके अपनी प्रिया का चित्र बनाया।


दृष्टिरालुप्यते – यक्ष विरह की अग्नि में अत्याधिक पीड़ित है, इसलिये वह अपनी प्रिया का चित्र बनाता है और अपने आप को भी उसके पैरों में गिरकर उसे मनाता हुआ चित्रित करना चाहता है, किन्तु आँसुओं की अविरल धारा के कारण वह ऐसा नहीं कर पाता, आँसुओं से उसकी दृष्टि लुप्त
हो जाती है। वस्तुत: यहाँ कालिदास द्वारा वर्णित करुणा अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गयी है।


स्वप्नसंदर्शनेषु – सोये हुए पुरुष के ज्ञान को स्वप्न कहते हैं। प्राय: देखा जाता है कि जो भाव दिन में हमारे मन में जागृत होते हैं और वे पूर्ण नहीं होते, वे स्वप्न में पूर्ण होते हैं। यक्ष की भी स्थिति ऐसी ही है कि वह प्रिया मिलन के लिये उत्कण्ठित है, परन्तु दिन में मिलन सम्भव नहीं, तब रात्रि में स्वप्न में आलिंगन के लिये भुजाएँ फ़ैलाता है, किन्तु वहाँ प्रिया कहाँ ? वहाँ तो शून्याकाश है। उसकी इस दयनीय दशा को देखकर वन देवियाँ भी रो पड़ती हैं। स्वप्नदर्शन विरहकाल में मनोविनोद के चार साधनों में से तीसरा है।


तरुकिसलयेषु – अश्रुबिन्दुओं का भूमि पर न गिरकर पत्तों पर गिरना साभिप्राय है; क्योंकि कहा जाता है कि महात्मा, गुरु और देवताओं का अश्रुपात भूमि पर होगा तो देशभ्रंश, भारी दु:ख और मरण भी निश्चय होगा।


तुषाराद्रिवाता : – वायु के मान्द्य, सौरभ और शीतलता ये तीन गुण होते हैं। हिमालय पर्वत की वायु में ये तीनों गुण पाये जाते हैं। ऐसी वायु को श्रंगार का उद्दीपक कहा जाता है। इसी कारण यह वायु विरही यक्ष को और अधिक उद्दीप्त करती है, जिस कारण उसे अपनी प्रिया की स्मृति हो आती है। वह इन पवनों को यह सोचकर स्पर्श करता है कि इन पवनों ने इससे पूर्व उसकी प्रिया के शरीर को भी स्पर्श किया है।

कुत्ता, शेर और बन्दर (कुत्ते का प्रबंधन Management)

एक दिन एक कुत्ता जंगल में रास्ता खो गया। तभी उसने देखा एक शेर उसकी तरह आ रहा है। कुत्ते की साँस रुक गय़ी। “आज तो काम तमाम मेरा!” उसने सोचा, फ़िर उसने सामने कुछ सूखी हड्डियाँ पड़ी देखीं, और आते हुए शेर की तरफ़ पीठ करके बैठ गया और एक सूखी हड्डी को चूसने लगा और जोर जोर से बोलने लगा “वाह ! शेर को खाने का मजा ही कुछ और है, एक और मिल जाये तो पूरी दावत हो जायेगी !”।
और उसने जोर से डकार मारी, इस बार शेर सोच में पड़ गया उसने सोचा “ये कुत्ता तो शेर का शिकार करता है! जान बचा कर भागो !”
और शेर वहाँ से जान बचा के भागा।
पेड़ पर बैठा एक बन्दर यह सब तमाशा देख रहा था, उसने सोचा यह मौका अच्छा है शेर को सारी कहानी बता देता  हूँ – शेर से दोस्ती हो जायेगी और उससे जिन्दगी भर के लिये जान का खतरा दूर हो जायेगा.. वो फ़टाफ़ट शेर के पीछे भागा।
कुत्ते ने बन्दर को जाते हुए देख लिया और समझ गया कि कोई लोचा है।उधर बन्दर ने शेर को सब बता दिया कि कैसे कुत्ते ने उसे बेवकूफ़ बनाया है। शेर जोर से दहाड़ा, “चल मेरे साथ अभी उसकी लीला खत्म करता हूँ” और बन्दर को अपनी पीठ पर बैठा कर शेर कुत्ते की तरफ़ लपका।
क्या आप सोच सकते हैं कि कुत्ते ने क्या आपदा प्रबंधन किया होगा!!!
कुत्ते ने शेर को आते देखा तो एक बार फ़िर उसकी तरफ़ पीठ करके बैठ गया और जोर जोर से बोलने लगा, “इस बन्दर को भेज के एक घंटा हो गया, साला एक शेर फ़ाँस के नहीं ला सका !”।

नैतिक शिक्षा –
ऐसे बहुत सारे बन्दर हमारे आसपास मौजूद हैं उन्हें पहचानने की कोशिश कीजिये।

कुछ बातें कवि कालिदास और मेघदूतम़ के बारे में – ३८

पवनतनयम़् – हनुमान के पिता का नाम पवन तथा माता का नाम अञ्जना था; इसलिए हनुमान को पवनपुत्र, वायुपुत्र, मारुति, आञ्जनेय भी कहते हैं। उन्होंने सौ योजन समुद्र को लाँघकर सीता का पता  लगाकर उन्हें राम की अँगूठी दी। जैसा व्यवहार हनुमान को देखकर सीता जी ने किया वैसा ही तुम्हें देखकर मेरी पत्नी करेगी। सीता और हनुमान को उपमान के रुप में प्रस्तुत करने से यक्ष-पत्नी का पातिव्रत्य और मेघ के दूत के गुण अभिव्यक्त होते हैं।

आयुष्मान – यक्ष ने मेघ को छोटा भाई माना है; इसलिये मेघ को आयुष्मान संबोधित करता है। छोटों के लिये आयुष्मान का प्रयोग दीर्घजीवी

के अर्थ में होता है और बड़ों के लिये “प्रशस्त जीवन वाले” अर्थ में होता है।


अड़्गेनाड़्गम़् – इसके द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि यक्ष और यक्षिणी दोनों की ही शारीरिक और मानसिक स्थिती एक जैसी है। दोनों ही दुर्बल हो गये हैं, संतप्त हैं और आँसू बहाते हैं, मिलने के लिये व्याकुल हैं, आहें भरकर नम का दु:ख कुछ कम करते हैं। यक्ष तो वहाँ सामने ही स्थित है और वह अपनी प्रिया की भी वैसी ही कल्पना करता है।

तै: सड़्कल्पै: – वे-वे मनोरथ जिनका यक्ष ने संभोगकाल में अनुभव कर रखा था और वे मनोरथ अब उससे ह्रदय में विरह के कारण जागृत हो रहे हैं।

आननस्पर्शलोभात़् – इससे यह भाव झलकता है कि यक्ष को अपनी पत्नी से इतना अधिक प्रेम था कि उसके शरीर के स्पर्श के लिये कोई ना कोई बहाना ढूँढता रहता था और जो बात सबके सामने कह सकता, उसे धीरे से उसके कान में कहता था, जिससे उसके अंगों को स्पर्श करने का अवसर मिल जाये।

चण्डि – विप्रलम्भ श्रंगार निम्न भेदों से चार प्रकार का होता है – पूर्वराग, मान, प्रवास तथा करुण । मान कोप को कहते हैं जो प्रणय से अथवा ईर्ष्या  से उत्पन्न होता है। पति के अन्य स्त्री में आसक्ति देखकर या सुनकर स्त्रियों को ईर्ष्याजन्य मान होता है। यहाँ चण्डि पद से यह भाव झलकता है कि मैं तुम्हारे अंगों की समानता अन्य वस्तुओं में देखने का प्रयत्न कर रहा हूँ, इसलिये तुम कुपित हो जाओगी, किन्तु तुम्हारे कुपित होने की कोई बात नहीं है; क्योंकि उन वस्तुओं में किसी में भी तुम्हारी समानता नहीं मिलती।

नई पीढ़ी की भारतीय पुत्रवधु (आज की प्रगतिशील भारतीय महिला)

यह तो कटु सत्य है कि जब घर में लड़के की शादी होती है और नई बहू आती है, सब कुछ बदल जाता है।
नई बहू (आज की प्रगतिशील भारतीय महिला), का पति के घर में परंपरागत भारतीय तरीके से स्वागत किया जाता है।
जैसी कि उम्मीद थी, नई बहू ने भाषण दिया, “मेरे प्रिय परिवार, मैं आप सब का धन्यवाद देती हूँ कि मेरे नये घर और नये परिवार में आपने मेरा स्वागत किया, अब मेरे यहाँ आ जाने से आप यह मत समझियेगा कि मैं आपके जिन्दगी जीने के तरीके को, या आपकी दिनचर्या बदलूँगी।
“नहीं मैं ऐसा कभी नही करुँगी, लाखों सालों में भी नहीं”।
“बेटी इसका क्या मतलब है ?” ससुर जी ने पूछा ।
ससुर जी की और देखते हुए बोली “मेरा मतलब है कि…

जो भी अभी तक बर्तन धोता था वो उन्हे धोता रहे।

जो भी कपड़े धोता था वो ही धोता रहे।

जो भी खना पकाता था कृपया मेरे लिये रुके नहीं, और जो भी सफ़ाई करते है वे अपना काम करते रहें।

“तो बहुरानी फ़िर तुम यहाँ क्या करोगी ?” सास ने पूछा ।
“जहा तक मेरी बात है, मैं यहाँ आपके बेटे का मनोरंजन करने आयी हूँ !!!”