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शीघ्र सेवानिवृत्ति [क्यों ?] [Early Retirement Why ?]
शीघ्र सेवानिवृत्ति क्यों ? [Early Retirement Why ?]
जब कार्य स्थल पर कठिनाईयाँ आने लगती हैं, तो बहुत से लोग इस स्थिती से पलायन करने के लिये शीघ्र सेवानिवृत्ति के लिये सोचने लगते हैं, परिवार का यह मानना होता है। परंतु आजकल की बदली हुई कार्य की परिस्थितियों को हमारे परिवार नहीं समझ पा रहे हैं , कि कितने दबाब में कार्य करना होता है, जब निजी कंपनियाँ ज्यादा रुपया देती हैं तो हरेक रुपये के एवज में निचोड़ कर काम भी लेती हैं। परिवार को लगता है कि हमारा पुत्र ज्यादा रुपया कमाकर वैभवशाली जीवन निर्वाह कर सकता है, परंतु अगर हम उस पुत्र की मनोस्थिती समझें तो शायद उसकी कार्य करने की परिस्थितियों को समझने में असमर्थ होंगे। क्योंकि जो कार्य आजकल की पीढ़ी कर रही है, जैसे कर रही है वह परिवार के बुजुर्ग समझ ही नहीं सकते, क्योंकि उन्होंने वैश्विक तौर तरीकों से कभी कार्य ही नहीं किया है और न ही उतनी क्षमता का प्रदर्शन किया है। इसका मतलब यह नहीं है कि उनकी क्षमताओं में कोई कमी थी, परंतु उन्हें उन कार्य परिस्थितियों का अंदाजा ही नहीं है।
शीघ्र सेवानिवृत्ति एक ऐसा विषयवस्तु और जीवनचर्या है जो कि आज के युवा को बहुत पसंद आ रहा है। शीघ्र सेवानिवृत्ति क्यों लिया जाये ? और इसके बाद करें क्या ? ये सब सवाल होते हैं, हमारे परिवार के बड़े बुजुर्गों के, जिनकी सोच को रुढिवादी बोला जा सकता है, परंतु बेकार नहीं, क्योंकि उन्हें जिंदगी का अनुभव होता है और सोच परिपक्व होती है। हाँ वो हमारे इस शीघ्र सेवानिवृत्ति के निर्णय से एकदम सहमत तो नहीं होंगे, परंतु उन्हें बदली हुई परिस्थितियों को समझाया जा सकता है।
कितने लोग नौकरी या व्यापार अपनी खुशी से करते हैं और कितने लोग इसे मजबूरी से करते हैं, करना कुछ चाहते हैं परंतु कुछ ओर ही कर रहे होते हैं। जैसे किसी की इच्छा तो वैज्ञानिक बनने की होती है परंतु बन जाते हैं पत्रकार, या बैंकर या कुछ ओर । बस इस प्रकार से केवल अपने जीवन यापन के लिये जिस भी क्षैत्र में मौका मिल जाता है उसी में कार्य करने लगते हैं, फ़िर भले ही मन मारकर कार्य कर रहे होते हैं।
नौकरी या व्यापार क्यों करते हैं ?
नौकरी या व्यापार करने का मुख्य उद्देश्य होता है, “पैसा कमाना”। और भी उद्देश्य होते हैं जो कि इस प्रकार हो सकते हैं – समाज में अपनी पहचान बनाना, अपनी प्रतिभा से सबको कायल करना, वैभवशाली जीवन शैली को जीना, अपने को संतुष्ट करना, और भी बहुत कुछ।
आखिर कब तक करें –
जैसी जीवनशैली से आप संतुष्ट हों और उस जीवनशैली में ही मजे में जीवन जी सकें और अपने बच्चों और निर्भर सदस्यों का भविष्य निखार सकें।
परंपरागत तौर पर ५५ से ६५ वर्ष तक की उम्र सेवानिवृत्ति की मानी जाती है, क्योंकि उस समय आय का एकमात्र साधन घर का मुखिया ही होता था, या फ़िर आय कम होती थी। परंतु अब बदली हुई परिस्थितियों में आय भी बड़ी है, जीवन स्तर भी बड़ा है। पहले सेवानिवृत्ति पर जितना धन सेवानिवृत्त को मिलता था उससे कहीं ज्यादा धन तो आज की पीढ़ी ३५ वर्ष की उम्र में जमा कर लेती है। तो उस धन को निवेश कर आराम से शीघ्र सेवानिवृत्ति का मजा ले सकते हैं, परंतु कोई इस विषय पर नहीं सोचता है, और मशीनी तरीके से पूरी जिंदगी निकाल देते हैं।
अगर जीवन यापन के लिये जरुरी रकम हमें मिलती रहे तो अपने रहन सहन और घर खर्च की चिंता के बगैर हम अपने मन पसंदीदा कार्य को कर सकते हैं।
परंतु भविष्य के प्रति अनिंश्चिंत होकर बिना योजना के वह कार्य करता रहता है। योजना बनाने से सुदृढ़ भविष्य का निर्माण कर सकते हैं, और अपने परिवार और समाज को सही दिशा में बड़ा सकते हैं। जितना समय हम ज्यादा रुपया कमाने में देंगे, उससे कहीं ज्यादा हम अपने परिवार और समाज के लिये समय देने की प्रतिबद्धता कर दे सकते हैं। और अपने राष्ट्र का एक उज्जवल भविष्य निर्माण कर सकते हैं।
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कल खबर सुनी कि २५ वर्ष के बाद यूनियन कार्बाइड का फ़ैसला न्यायालय ने दे दिया है, वो २ दिसंबर की काली रात एकदम गहरी स्याह हो उठी जब इस जहरीली गैस ने भोपाल को अपने आगोश में ले लिया था, और आज फ़िर ऐसा लगा कि वापिस वही गैस पूरे देश में फ़ैल गई है, और जिनके पास दिल हैं वे सभी लोग घुटकर मरे जा रहे हैं। मेरा भारत महान, उसके नेता और न्यायपालिका महान !!!
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माइक्रोसॉफ़्ट का बग “मौत की काली स्क्रीन” समाधान ढूँढ़ रहे हैं, Black Screen of Death
हमारा लेपटॉप फ़ँस गया Black Screen of Death के चुंगल में, उपाय ढूँढ़ रहे हैं। यह एक बग है जो कि माइक्रोसॉफ़्ट के OS में होता है। इसमें लोगिन स्क्रीन के बाद काली स्क्रीन दिखाई देती है, और हमारा विस्टा कोई भी गतिविधी करने से मना कर देता है। जब कल अपना लेपटॉप खोला तो ये वाला बग आया हमारे OS में, अब गूगल पर अपने डेस्कटॉप में इसका समाधान ढ़ूँढ रहे हैं।
कुछ गंभीर चिंतन [लेपटॉप, गर्मी, लेखन की विषयवस्तु, ब्लॉगरी, अधूरापन]
ऐसे ही कुछ भी, कहीं से भी यात्रा वृत्तांत भाग – ८ [बच्चों की चिल्लपों पूरी ट्रेन में, और एक ब्लॉगर से मुलाकात] आखिरी भाग
पहला भाग, दूसरा भाग, तीसरा भाग, चौथा भाग, पाँचवा भाग, छठा भाग, सातवां भाग
ट्रेन में हमारे बेटेलाल को खेलने के लिये अपनी ही उम्र का एक और दोस्त अपने ही कंपार्टमेंट में मिल गया, और क्या मस्ती शुरु की है, दोनों एक से बढ़कर एक करतब दिखाने की कोशिश कर रहे थे। पूरा डब्बा ही बच्चों से भरा हुआ था, लग रहा था कि अभी स्कूल की छुट्टियाँ चल रही हैं।
ट्रेन में बैठते ही हमारे बेटेलाल को भूख लगने लगती है चाय पीने की इच्छा होने लगती है, उस वक्त तो कुछ भी खिला लो पता नहीं उनके पेट में कौन घुसकर बैठ जाता है।
बेटेलाल अपने दोस्त के साथ मस्ती में मगन थे, फ़िर शौक चर्राया कि अपर बर्थ पर जायेंगे, तो बस फ़ट से अपर बर्थ पर चढ़ लिये, उनके दोस्त के मम्मी और पापा हमसे कहते रहे कि अरे गिर जायेगा, हम बोले हमने ट्रेंड किया है चिंता नहीं कीजिये नहीं गिरेगा। तो बस उसकी देखा देखी उनके दोस्त भी अपर बर्थ पर जाने की जिद करने लगे, उनके पापा ने चढ़ा तो दिया पर उनका दिल घबरा रहा था, अपर बर्थ पर जाने के बाद तो दोस्त की भी हालत खराब हो गई, वो झट से नीचे आने की जिद करने लगा, तो बेटेलाल ने खूब मजाक उडाई। फ़िर वो भी नीचे आ गये आखिर उनके दोस्त जो नीचे आ गये थे। बस फ़िर रुमाल से पिस्टल बनाकर खेलना शुरु किया फ़िर तकिये से मारा मारी। एक और लड़का जो कि देहरादून से आ रहा था और इंदौर जा रहा था, बोला कि इन बच्चों में कितनी एनर्जी रहती है जब तक जागते रहेंगे तब तक मस्ती ही चलती रहती है और मुँह बंद नहीं होता। काश अपने अंदर भी अभी इतनी एनर्जी होती।
खैर फ़िर खाना शुरु किया गया, और फ़िर बेटेलाल को पकड़ कर अपर बर्थ पर ले गये कि बेटा अब बाप बेटे दोनों मिलकर सोयेंगे। फ़िर उन्हें २-३ कहानी सुनाई पर सोने का नाम नहीं लिया, बोले कि लाईट जल रही है, पहले उसे बंद करवाओ, तो लाईट बंद करवाई फ़िर तो २ मिनिट भी नहीं लगे और सो लिये। हम फ़िर नीचे उतर कर आये और बर्थ खोलकर बेडरोल व्यवस्थित किया और बेटेलाल को मिडिल बर्थ पर सुलाकर, और अपने बेग की टेक लगा दी जिससे गिरे नहीं। और सोने चल दिये क्योंकि सुबह ५ बजे उज्जैन आ जाता है। रात को एक बार फ़िर नींद खुली तो देखा कहीं ट्रेन रुकी हुई है, पता चला कि ट्रेन ३ घंटे देरी से चल रही है, और किसी पैसेन्जर ट्रेन के लिये इस एक्सप्रेस ट्रेन को रोका गया है। हम फ़िर सो लिये सुबह छ: बजे हमारे बेटेलाल की सुप्रभात हो गई, और फ़िर चढ़ गये हमारे ऊपर कि डैडी उठो सुबह हो गई, उज्जैन आने वाला है देखा तो शाजापुर आने को अभी समय था, हमने कहा बेटा सोने दो और खुद भी सो जाओ या खिड़की के पास बैठकर बाहर के नजारे देखो। हम तो सो लिये पर बेटेलाल ने अपनी माँ की खासी परेड ली। सुबह साढ़े सात हमारे बेटेलाल फ़िर जोर से चिल्लाये डैडी उज्जैन आ गया, हमने कहा अरे अभी नहीं आयेगा, अभी तो कम से कम आधा घंटा और लगेगा, तो नीचे से हमारी घरवाली और आंटी दोनों बोलीं एक स्वर में “उज्जैन आ गया है”, अब तो हम बिजली की फ़ुर्ती से नीचे उतरे और फ़टाफ़ट समान उठाकर उतर लिये।
प्लेटफ़ॉर्म नंबर ६ पर आने की जगह आज रेल्वे ने हम पर कृपा करके ट्रेन को प्लेटफ़ॉर्म नंबर १ पर लगाया था, तो हमारी तो बांछें खिल गईं, बस फ़िर बाहर निकले तो ऑटो करने की इच्छा नहीं थी, तांगे में जाने को जी चाह रहा था, पर एक ऑटो वाला पट गया, तो तांगे को मन मसोस कर छोड़ ऑटो में चल दिये।
दो दिन जमकर नींद निकाली गय़ी यहाँ तक कि दोस्तों को भी नहीं बताया कि हम उज्जैन में हैं। फ़िर किसी तरह तीसरे दिन घर से निकले भरी दोपहर में दोस्तों से मिले फ़िर सुरेश चिपलूनकर जी से मिले और बहुत सारी बातें की। फ़िर चल दिये घर क्योंकि महाकाल जाना था, हमारा महाकाल जाने का प्रिय समय रात को ९.३० बजे का है, क्योंकि उस समय बिना भीड़ के अच्छे से दर्शन हो जाते हैं, और नदी भी अच्छी लगती है, रामघाट पर। फ़िर वहाँ कालाखट्टा बर्फ़गोला और आते आते छत्री चौक पर फ़ेमस कुल्फ़ी। उसके एक दिन पहले ही शाम परिवार के साथ घूमने गये थे तो पानी बताशे और फ़्रीगंज में फ़ेमस कुल्फ़ी खाई थी।
चौथे दिन याने कि १९ मई को वापिस हमें मुंबई की यात्रा करनी थी और हम वापिस मुंबई चल दिये अवन्तिका एक्सप्रेस से, अपनी उज्जैन छोड़कर जहाँ हमारी आत्मा बसती है, जहाँ हमारे प्राण लगे रहते हैं, केवल पैसे कमाने के लिये इस पुण्य भूमि से दूर रह रहे हैं। बहुत बुरा लगता है। जल्दी ही वापिस उज्जैन जाने की इच्छा है, इस बारे में भी सुरेश चिपलूनकर जी से विस्तृत में बात हुई।
मुंबई आते हुए भी बहुत सारी घटनाएँ हुई और लोग भी मिले परंतु कुछ खास नहीं, सुबह ५.३० पर ट्रेन बोरिवली पहुँच गय़ी और हम ऑटो पकड़कर १० मिनिट में अपने घर पहुँच गये। इस तरह हमारी लंबी यात्रा अंतत: सुखद रही।
कुल यात्रा २५२५ किलोमीटर की तय की गई।
ऐसे ही कुछ भी, कहीं से भी यात्रा वृत्तांत भाग – ७ [कुछ चित्र मेरी यात्रा के, धौलपुर, उज्जैन रामघाट, महाकाल नंदीगृह और विजयपथ उपन्यास]
धौलपुर स्टेशन के कुछ और फ़ोटो जिसमें हमारे “लाल” लाल रंग के कपड़ों में नजर आ रहे हैं, इन्हें श्टाईल में फ़ोटो खिंचाने का बहुत शौक है।
स्टेशन के कुछ फ़ोटो और ट्रेन में बैठने के बाद के कुछ फ़ोटो…
उज्जैन रामघाट के कुछ फ़ोटो, मतलब नदी किनारे, जहाँ सिंहस्थ पर पैर रखने की जगह नहीं होती है।
महाकाल मंदिर उज्जैन के नंदीगृह में खींचा गया फ़ोटो
विजयपथ उपन्यास जो कि इस बात उज्जैन प्रवास पर हमने पढ़ा। ओमप्रकाश कश्यप जी इसके लेखक हैं और आपका ब्लॉग भी है।
ऐसे ही कुछ भी, कहीं से भी यात्रा वृत्तांत भाग – ६ [मोबाईल का अलार्म, मवाली दंपत्ति की असलियत सामने आई]
जारी….