तुम कहाँ कहाँ से आती हो …. मेरी कविता …… विवेक रस्तोगी

तुम कहाँ कहाँ से आती हो

कभी मेरे लेपटॉप के कीबोर्ड से

कभी मेरे उदात्त्त मन से

कभी दुखभरे दिल से

कभी उमंग भरे मन से

कभी मेरी अलमारी के अंदर से

कभी मेरे तकिये के नीचे से

कभी मेरे बेटे के जबां से

कभी बारिश की बूँदों से

कभी ठंडे पानी से नहाते हुए

कभी सोते समय कभी उठते समय

कभी डोर से उतरती हुई

कभी डोर से चढ़ती हुई

पर जब तुम आती हो

तो ऐ “कविता”

सबके होश उड़ाती आती हो।

चांसलर सिगरेट के कसैलेपन से विल्स तक का सफ़र और ऐश की परिभाषा…

    चांसलर सिगरेट लेकर टेकरी के पीछे छुपते हुए दोनों साईकिल से जाते थे…… किसी पहाड़ी में छिपकर रोज वो चांसलर सिगरेट जो गहरे चाकलेटी रंग की होती थी…थोड़ी मीठी सी लगती थी … पर दो-चार कश लेने के बाद फ़िर कड़वी लगने लगती थी… क्यों वो बाद में पता चला .. सिगरेट तो पीनी आती नहीं थी ….. पहले कश में ही सिगरेट का फ़िल्टर अपनी जीभ से गीला कर देते थे और फ़िर वो कसैलापन मुँह में चढ़ता ही जाता ।

    सिगरेट के जलते हुए सिरे को देखते हुए उस सिगरेट को खत्म होते देखते थे… सिगरेट का धुआँ और उसकी तपन शुरु में असहनीय होती थी… बाद में पता चला कि जब सिगरेट जलती है और जो आग उस सिगरेट को ऐश में बदलती है उसका तापमान १०० डिग्री होता है… पहली बार हमारे भौतिकी विज्ञान के प्रोफ़ेसर ने बताया था कि इसे ऐश कहते हैं…

    हम तब तक जिंदगी के मजे लेने को ही ऐश समझते थे, पर उस दिन हमें असलई ऐश समझ आई कि सिगरेट की राख जो कि जिंदगी को भी राख बना देती है, उसे ऐश कहते हैं… पता था कि ऐश करना अच्छी बात नहीं है… परंतु बहुत देर बाद समझ में आई ये बात…

    एक मित्र था कालिया कहता था कि किसी भी नये शहर में जाओ तो सिगरेट और दारु से दांत काटे मित्र बड़ी ही आसानी से बन जाते हैं, किसी भी पान की गुमटी को अपना अडडा बना लो और फ़िर देखो …. जब शहर बदला तो यही फ़ार्मुला अपनाया और चांसलर छोड़ विल्स के साथ बहुत से दोस्त बनाये…

    अब लगता है वो ऐश खत्म होने से अच्छी दोस्ती खत्म हो गई, लोग आपस में बात करने के लिये समय नहीं निकाल पाते… कम से कम ऐश करते समय आपस में पाँच मिनिट बतिया तो लेते हैं…

पर क्या करे हम ऐश करना छोड़ चुके हैं…. पर वो चांसलर का कसैलापन अभी भी याद है…

नई सुबह का इंतजार है ….. मेरी कविता …… विवेक रस्तोगी

नई सुबह का इंतजार है

जो मेरे जीवन को महका देगी

जो मेरे मन को लहका देगी

नई परिभाषा होगी

नयापन सा होगा

हिम्मत से सारोबार होगा

नवचेतन मन नये आयाम

नई पृथ्वी नई हवा

सब कुछ अलग होगा

और मैं भी कुछ नया सा !!!

हमारे घर में नया मेहमान आया है… :) :D

    आज शाम को हमारे घर में एक नया मेहमान आया है, बिटिया आई है, मेरे छोटे भाई शलभ को आज बिटिया की प्राप्ति हुई, बहु दिल्ली में ही थी और भाई शाम की फ़्लाईट पकड़ कर दिल्ली पहुँचा है।

    कितना रोमांचकारी पल होता है पिता बनने का, उससे बात करने से ही पता चल रहा था, जब बिटिया इस दुनिया में आई तो हमारा भाई फ़्लाईट में था, तो हमने तुरंत एक एस.एम.एस. कर दिया … [Congrats Dad !! bitiya ghar me aayi hai, khushiya lai hai :)]

    जब भाई के प्लेन दिल्ली में उतर गया तो जैसे ही मोबाईल खोला हमारा एस.एम.एस. मिलने से उसे पता चला और तब तक तो हम लगभग सभी अपने परिचितों को एस.एम.एस. या फ़ोन कर चुके थे।

    घर पर बात हुई तो मम्मी बोली कि अब तो ताऊ बन गये हो, और घर में बिटिया आई है, अब घर में रक्षाबंधन का त्यौहार भी मना करेगा। हम खुशी के मारे कुछ बोल ही नहीं पा रहे थे। बहुत ही सुन्दरतम एहसास होता है घर में नये मेहमान आने का और वो भी प्यारी बिटिया रानी के आने का।

गपोड़ी बेटेलाल की गप्प के किस्से १८०७२०१०

शाम को पार्क में घुमाने ले गये तो बेटेलाल की गप्प सुनिये –

हमारे स्कूल में रोज कराटॆ करवाते हैं और कराटे करवाते हुए २ किमी दौड़ते हैं।

मैंने पूछा और कराटॆ मॆं फ़र्स्ट कौन आता है, तो बोले “कराटे में नहीं दौड़ में, हमेशा मैं फ़र्स्ट आता हूँ, और हमारे सर इतना तेज दौड़ते हैं, तब भी मेरे पीछे रह जाते हैं”

“फ़िर दौड़ ४० किमी की हो जाती है और ४० किमी की दौड़ खत्म होते ही ७० किमी की हो जाती है, फ़िर नदी आ जाती है, तो सर कहते हैं कि उड़ के पार कर लो”

मैंने पूछा “उड़के !”

तो बेटेलाल बोले “हाँ सर कहते हैं कि दोनों हाथों को पंख बनाकर उड़ाते हैं, और पैर से किक मारते हैं, तो उड़ने लगते हैं”

आज से गपोड़ी किस्से शुरु किये हैं। जिससे बचपन के किस्से जो हम भूल जाते हैं, वो लिखित में हमेशा मेरी पास यादें बनकर मेरे पास और आपके पास रहें।

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पॉवर-पैक जींस जिसकी जेब में 220 वोल्ट बिजली दौडती है

सोचिये अगर कोई जेबकतरा आपकी जींस की जेब में आपका पर्स निकालने के लिये हाथ डालता है तो उसे 22o वोल्ट का बिजली का झटका लगता है, जी हाँ यह विशेष जींस तैयार की है वाराणसी के हाईस्कूल फ़ेल नौजवान ने, जो कि विज्ञान के सामान्य सिद्धांत पर आधारित है।

जींस को तैयार किया है श्याम चौरसिया ने जो कि वाराणसी उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। यही नहीं वे कहते हैं कि अगर उनके अनुसार थोड़े से सुधार और किये जायें तो आपके सारे कपड़े ही “पॉवर-पैक” हो जायेंगे।

जिस भी कपड़े को “पॉवर-पैक” करना हो उसमें एक छोटी सी बैटरी से चलने वाली किट लगानी होगी।

श्याम चौरसिया का कहना है कि “जब मैंने यह तैयार की थी तो केवल जेबकतरों को ही ध्यान में रखा था, पर अगर इसे लड़्कियों की टी शर्ट और कपड़ों में भी लगा दें तो छेड़खानी के मामले रुक सकते हैं।”

अब अगर आपको लगता हो कि ये बैटरी से चलने वाला अविष्कार महँगा होगा, तो नहीं बिल्कुल नहीं केवल तीन सौ रुपये खर्च करने होंगे और अगर और उन्नत तकनीक चाहिये तो १०० रुपये ज्यादा खर्च करना होंगे।

ज्यादा जानकारी यहाँ पढ़ सकते हैं।

मेरे स्वप्न में, वही नदी क्यों आती है…. मेरी कविता …. विवेक रस्तोगी

बारबार मेरे स्वप्न में

वही नदी क्यों आती है

जो मुझे बुलाती है

कहती है कि आओ जैसे तुम पहले

मेरे पास आकर बैठते थे

वैसे ही पाँव डालकर बैठो,

अब तो तुम

समुंदर के पास हो

है बहुत विशाल

पर मुझे बताओ

कि कितनी बार उसने तुम्हें

अपने पास बैठने दिया

जैसे मैंने ??

क्योंकि शब्दों से मेरा जीवन जीवन्त है …. मेरी कविता … विवेक रस्तोगी

शब्दों से मेरा जीवन जीवन्त है

नहीं तो सुनसान रात्रि के

शमशान की सन्नाटे की गूँज है

सन्नाटे की सांय सांय में

जीवन भी कहीं सो चुका है

शमशान जाने को समय है

पूरी जिंदगी मौत से डरते हैं

शमशान जाने से डरते हैं

पर एक दिन मौत के बाद

सबको वहीं उसी सन्नाटे में

जाना होता है,

जहाँ रात को सांय सांय

हवा अपना रुख बदलती है

जहाँ रात को उल्लू भी

डरते हैं,

जहाँ पेड़ों पर भी

नीरवता रहती है

मैं जाता हूँ तो मुझे

मेरे शब्द जीवित कर देते हैं

क्योंकि शब्दों से मेरा जीवन जीवन्त है।

फ़िर भी मेरी सुबह और दिन भागते हुए शुरु होते हैं…..मेरी कविता … विवेक रस्तोगी

रोज सुबह भागते हुए

दिन शुरु होता है,

पर सुबह तटस्थ रहती है,

सुबह अपनी ठंडी हवा,

पंछियों की चहचहाट,

मंदिर की घंटियाँ,

मेरे खिड़्की के जंगले से आती भीनी भीनी

फ़ूलों की खुश्बु,

सब कुछ तो ताजा होता है

फ़िर भी मेरी सुबह और दिन

भागते हुए शुरु होते हैं।

तुम इतने भयानक क्यों थे..! … मेरी कविता … विवेक रस्तोगी

सिसकती खिड़्कियाँ

चिल्लाते दरवाजे

विलाप करते रोशनदान

चीखते हुए परदे

सब तुम्हारी याद दिलाते हैं

मेरे अतीत

तुम इतने भयानक क्यों थे !