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आम पुराण, आम इतना स्वादिष्ट क्यों होता है?

धरती पर आम कैसे आया, क्यों आम फलों का राजा है, आम इतना स्वादिष्ट क्यों होता है?, इसके लिये यह आम पुराण हमारे मित्र देवेन्द्र कौशिक जी की अतिथि पोस्ट है।

💐💐ॐ हरि तत्सत 💐💐

द्वापरयुग और त्रेता युग के बाद धरती पर शुरू हुआ क्रेता युग…क्रेता युग में मनुष्य रस और स्वाद के लिए इतना ज्यादा ईर्ष्यालु हो गया कि स्वर्गलोक की सुख समृद्धि और ऐश्वर्य देख कर भी मनुष्य के मन में ईर्ष्या उठने लगी।
स्वर्गलोक के विरुद्ध मनुष्यों ने जगह जगह धरना प्रदर्शन शुरु कर दिया… देवताओं से ईर्ष्या के कारण धरती पर मनुष्यों द्वारा देवस्थानों के रास्ते रोकना, व्रत उपवास ना करना आदि का प्रचलन हो गया… यहाँ तक की पंडितों ने भी विधिवत पूजा के स्थान पर बिना धूप दीप की सांकेतिक पूजा करनी शुरू कर दी….

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3 idiots ( मुंबई लोकल के कैटल क्लास में एक विचारात्मक एवं रोचक वार्तालाप.. ) अतिथि पोस्ट

लेखक अपूर्व रस्तोगी मेरे छोटे भाई हैं और अभी ही उन्होंने अपना बी.टेक. (इलेक्ट्रानिक्स एन्ड इन्स्ट्रूमेन्टेशन) में किया है, और मरीन इंजीनियरिंग का कोर्स किया है, और अब मुँबई में नौकरी की तलाश कर रहे हैं। आजकल नौकरी की तलाश के साथ साथ वे इस्कॉन में गीता का सात दिन का कोर्स कर रहे हैं।

ये विचित्र घटना मेरे साथ मुंबई की लोकल ट्रेन मे हुई । समय था रात के १० बजे । मेरे बाई ओर दो सज्जन बैठे हुए थे  । और मेरे दाई ओर एक वृद्ध पुरुष बडे चाव से बिस्कुट का आनंद ले रहे थे । जो दो लोग मेरे बाई तरफ़ बैठे हुए थे उन्मे से एक सज्जन कहते हैं आजकल सर्दी मे भी बहुत गर्मी हो रही हैं, मैं अभी पूना से आ रहा हूँ और वहाँ भी बहुत गर्मी है इस बार । तो इस पर दूसरे सज्जन उनसे कहते है पर पूना में तो अच्छी ठंड पड़ती है भई, तो इस बार क्या हो गया । सज्जन का उत्तर आया “’ग्लोबल वार्मिंग’  मैने हाल ही मै एक फ़िल्म देखी जिसमे दिखाया गया है कि आने वाले समय मे इस धरती पर से सब कुछ समाप्त हो जायेगा, सिर्फ़ एक टापू बचता है अफ़्रीका मे” । मैने बडी उतसुकता भरी नजरों से उनकी तरफ़ मुड़ के देखा और सुनने लगा ।

पहले सज्जन (जो की एक मुस्लिम धर्म के अधेड उम्र के व्यक्ति हैं) कहते है “ये सब इंसान का ही करा- धरा है।  आज इंसान ने इतनी तरक्की कर ली है कि वो  अपने नैतिक मुल्यों एवं जिम्मेदरियों को  भूल चुका है। आज इंसान तभी अल्लाह को याद करता है जब उस पर कोई मुसीबत/परेशानी हो या उसे किसी चीज कि सख्त जरुरत हो। पर वो भूल जाता है कि अल्लाह सब देख रहा है, वो आपके हर कर्म का हिसाब रखता है, चाहे आप कहीं भी छुप जाये उसकी नजरो से नही बच सकते। आज लोग हज़ारो/ लाखों रुपया खर्चा करके हज़ को जाते है, पर किसी की मदद करने से कतराते है। पहले कोई भी व्यक्ति हमारे दर पे आता था, हम उसका हालचाल पूछ्ते थे, हो सके तो उसकी मदद भी कर देते थे , परंतु आज कोई अपने पडोसी से वास्त्ता नही रखता, बाहर के आदमी को तो भूल ही जाओ। अगर सड़क पर कोई दुर्घटना हो जाये तो लोग भीड़ का हिस्सा तो बन जाते हैं , पर कोई मदद को आगे नही आता।”

दूसरे सज्जन ( जो कि लगभग उन्ही कि उम्र के मराठी हिंदू हैं) कहते है “आप सच कह रहे है आज कल के लोग समझना ही नही चाहते हैं इस बात को।”

वृद्ध पुरुष जो मेरी दाईं ओर बैठे थे, अपना बिस्कुट का पैकिट समाप्त करने के बाद बोले “आजकल लोगों का अपने आप पर नियंत्रण नहीं है। वो अपने दौलत के नशे में चूर हो कर दूसरो का मजाक उडा रहा है। उदाहरण के तौर पर आप “विधु विनोद चोपड़आ” को ही ले लीजिये, एक दिन पहले खुद मीडिया के सामने खडे होकर बदतमीजी से बात करते है और जब उनहे लगता है कि मीडिया उन्हें या उनकी फ़िल्म की छवि को हानि पहुँचा सकती है तो चुपचाप आकर माफ़ी भी मांग ली। उनकी इस पब्लिसिटी स्टंट के कारण वो लेखक ’चेतन भगत’ अपने ही काम के लिये सम्मानित नही किया जा रहा है। हम सब लोग जानते है कि फ़िल्मी दुनिया कितना बडा छ्लावा है। आजकल ये लोग छोटी से छोटी बात को जनता के सामने इस तरह से रखते है ताकि इन की मार्केट वैल्यू बढ़ सके, ये कुछ भी करेंगे बस जनता इनकी तरफ़ खीची चली आये। ” “इसी तरह ’डीजीपी राठोड़’ को ले लीजिये ।” (उनकी बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि पीछे से पहले सज्जन बोले 

“पुलिस वालों की तो बात ही मत कीजिये जनाब। उनसे बडा रिश्वतखोर कोई नहीं। एक काम के लिये किसी को कैसे चक्कर लगवाने हैं ये कोई उनसे सीखे । एक हवलदार से लेकर ऊपर तक सभी भ्रष्ट हो चुके हैं। ये जितने भी बडे अफ़सर पकड़े जाते हैं  उनमें से कितनो को सजा हुई है आज तक। सब पैसे ले देकर मामला रफ़ा दफ़ा कर देते हैं। आज कल तो जज भी खरीद लिये जाते हैं, जनता जाये तो जाये कहाँ।”

तभी वो मराठी सज्जन बोलते हैं “हर जगह कुछ अच्छे लोग होते हैं और कुछ बुरे पर हमारे यहां भ्रष्टाचार बहुत तेजी से अपनी जड़े फ़ैला रहा है। पर हम लोग ये क्यों नही सोचते कि ऐसा होता क्यों है। क्या आपको पता है कि एक हवलदार की कितनी पगार है ४ हजार, ५ हजार ज्यादा से ज्यादा ६ हजार और इसमें हम चाहते है कि वो अपने परिवार का सारा गुजारा करे और लोगो के सारे काम भी पूरी ईमानदारी से करे। अरे उन लोगो से ज्यादा तो वो वेटर कमा लेता है, जो बार में काम करता है, जब लोग उसे टिप देते हैं तब तो कोई उससे ये नही पूछ्ता कि वो रिश्वत क्यों ले रहा है, पर लोग उसे खुशी खुशी पैसा देते है।” “क्यो हम इस समाज मे रहकर भी लोगो में  भेदभाव करना नही भूलते ?” “क्या होगा अगर हम पुलिस वालों की पगार बढ़ा दें तो ?” (कहीं न कहीं तो हम भी यही सोचते हैं।)

उनके इस प्रश्न के संदर्भ मे वो वृद्ध पुरुष मुस्करा के बोलते है कि “क्या आप जानते हो कि उनहे पगार कहाँ से मिलती है, हम जो टैक्स जमा करते है उससे, अगर आज की तारीख में हम इतना सारा पैसा सिर्फ़ टैक्स मे ही दे देंगे तो आदमी खुद कैसे खायेगा ?” “पैसा तो उन नेताओं से लेना चाहिये जो इसे स्विस बैंकों के लॉकरों मे दबाये बैठे हैं।”

तो क्या ये तीन लोग सही मायनो मे idiots हैं। क्या इन के द्वारा की गई मांगे गलत हैं?क्या आजकल लोगो मे ईमानदारी और जिम्मेदारी विलुप्त नहीं होती जा रही है ? सोचिये और इसकी गहराई को समझिये कि हम अपने आने वाली पीढ़ी को क्या दे रहे हैं ?                                          

“एक बेह्तर आज या अंधकार में डूबा कल”