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जीवन में सफलता के लिये पहली बार मुँबई परिवार के साथ जाने का कठिन निर्णय

    जीवन में सफलता के लिये घर का अहम रोल होता है। घर वह होता है जहाँ हमारे माता पिता साथ रहते हैं और प्यार होता है। घर केवल चार दीवारी नहीं होता, चार दीवारी तो मकान होता है, जहाँ न अपने होते हैं और न ही प्यार होता है। मकान में लोग केवल रहते हैं पर घर में लोग जीवन को मजे लेते हुए जीते हैं। बचपन से ही इस शहर से उस शहर घूमते रहे पर कभी मकान में नहीं रहे, हमेशा पापा मम्मी के साथ घर में रहे, जहाँ भी जाते हम शहर के उस मौहल्ले या कॉलोनी में रच बस जाते। जब दूसरे शहर जाने का समय होता तो आँखें भीग आती थीं, फिर से एक नये शहर में जिंदगी शुरू करना बहुत कठिन होता है, फिर से अपने मित्र बनाना, पड़ोसियों से तालमेल बैठाना। यही अनुभव जीवन भर काम भी आता है, हम लोग इंसान को पहचानने लगते हैं। जीवन के कटु पलों से हम अपने में बहुत सी बातें सीख जाते हैं और वक्त के पहले ही काफी बड़े हो जाते हैं।
    जब तक घर में मम्मी पापा के साथ रह सकते थे रहे, फिर हमें नौकरी के चलते मुँबई अपने परिवार के साथ आना पड़ा, कुछ दिन अकेले ही व्यतीत किये और मुँबई को जाना समझा, मुँबई सपनों का शहर है, बचपन से ही फिल्मों को देखते हुए बड़े हुए हैं, और हम मुँबई को फिल्मनगरी के नाम से जानते हैं, ऐसा लगता था कि जब मुँबई जायेंगे तो फिल्मी कलाकार हमारा स्वागत करने सड़क पर उतर आयेंगे, खैर सपने तो सपने ही होते हैं। मुँबई संघर्ष का दूसरा नाम है, जहाँ रहने के लिये ठिकाना ढ़ूँढ़ना उतना ही मुश्किल है जितना कि मुँबई लोकल में अपने आप के जगह ढ़ूँढ़ पाना। पर हाउसिंग.कॉम ने हमारा काम बेहद ही आसान कर दिया। लेपटॉप पर ही फोटो देखकर, जगह के बारे में जान लेते थे और फिर वहाँ फ्लैट देखने जाना है या नहीं यह निर्णय करते थे।
    हमने अपने जीवन में परिवार याने कि घरवाली और बेटेलाल के साथ पहली बार अपनी जड़ से अलग होने की मजबूरी में सोची थी, हमें घर चलाने का अनुभव तो बिल्कुल भी नहीं था, पर हाँ घर में रहते हुए बहुत कुछ सीखा था, और नये शहर में जाना, जहाँ पूरा शहर ही अपने लिये अनजान है, जब नौकरी ही वहाँ करनी थी तो रहना भी वहीं था, यह मेरे जीवन का सबसे
बड़ा निर्णय था, जीवन में अपने कैरियर के लिये आगे बढ़ने के लिये मैंने यह कठिन निर्णय ले लिया।
    पहली बार परिवार के साथ बाहर रहने जा रहे थे, तो घर के सारे समान की सूचि बनाई गई उसके लिये बजट भी बनाया गया, और फिर एक एक करके हम धीरे धीरे सारी चीजों को व्यवस्थित तरीकों से करते गये और हमारा घर एक सप्ताह में ही जम गया, जब रहने लगे तो जिन जिन चीजों के बारे में लगता कि नहीं है तो अपनी सूचि में जोड़ते जाते और सप्ताहांत में जाकर ले आते, इस प्रकार से हमारे पास घर में जरूरत की लगभग सारी चीजें हो गईं। और वह सूचि अब हमेशा हम अपने साथ ही रखते हैं, किसी भी नई जगह जाने पर यह सूचि बड़े काम
की होती है। और इसी एक निर्णय के कारण हम अच्छी प्रगति भी कर पाये।

वेन्चरसिटी आई.टी. की प्रतिभाओं को निखार देगा (Venturesity will create history in IT Job Market)

     अब तक नौकरी पाने के लिये हम रिज्यूमे सीवी तैयार करते हैं, पर आज के इस कठिन दौर में जहाँ कंपनियाँ अच्छे लोगों को रिज्यूमें से भी तलाश पाने में असफल हैं वहीं कुछ अच्छे लोग जो कि साक्षात्कार में बहुत अच्छा नहीं कर पाते हैं परंतु काम में वे वाकई बहुत ही जबरदस्त होते हैं, इन्नोवेटिव होते हैं, तकनीकी की बारीकियों को अच्छे से जानते हैं और उन  तकनीकी से कैसे फायदे लेना है, यह उन्हें बहुत ही अच्छी तरह से पता होता है। अच्छे लोगों को कई बार ज्यादा टेलेन्टेड होने का भी हर्जाना भुगतना पड़ता है, कि जो भी साक्षात्कार ले रहा होता है, उसे उस विषय पर कम जानकारी होती है, जबकि साक्षात्कार देने वाले को ज्यादा तो भी उसका पत्ता कट होने के चांसेस बहुत ही ज्यादा होते हैं, क्योंकि सभी जगह लोग ईमानदार नहीं होते, कहीं न कहीं इस प्रतियोगी दौर में गला काट प्रतियोगिता में ये सब फायदे नुक्सान होते रहते हैं।

    कुछ समय पहले की ही बात है मेरे एक मित्र जो कि एक बेहद महत्वपूर्ण तकनीक (TIBCO) पर काम करते हैं, जिसे कि आई.टी. इंडस्ट्री में नीच (niche) स्किल के रूप में जाना जाता है, मैंने अपने एक परिचित से उनका सीवी एक अच्छी एम.एन.सी. में रेफर करवाया, उनका चयन हो ही जाना चाहिये था क्योंकि हमारे मित्र उस तकनीकी पर कई वर्षों से काम कर रहे थे, पर साक्षात्कार के दौरान ही उन्हें पता चल गया कि जो उनसे बात कर रहा है उसके पास इस तकनीक की विशेषज्ञता नहीं है, और अगले ही कॉल में उसे रिजेक्ट कर दिया गया कि टेक्नीकल पैनल साक्षात्कार क्लियर नहीं कर पाये, जबकि हमारे मित्र का कहना था कि मैं उस तकनीक पर कई वर्षों से काम कर रहा हूँ और मुझे किसी भी हालत में रिजेक्ट नहीं किया जा सकता है और जो मुझसे बात कर रहे थे उन्हें उस तकनीकी का कोई अनुभव ही नहीं था, हमने बाद में पता किया तो पता चला कि वे अकेले ही उस कंपनी में उस तकनीकी विधा के महारथी हैं और किसी और को लाकर वे अपनी पहचान खोना नहीं चाहते थे।
    किसी भी जॉब के लिये पहला सौपान साक्षात्कार ही होता है और अधिकतर इंडस्ट्री में लोग एक दूसरे को जानते हैं, और केवल इसीलिये भी रैफेरल सिस्टम का जमकर उपयोग होता है, जिससे जिस भी जॉब के लिये वे रिसोर्स को ले रहे हैं वह जाँचा परखा हो, पर इस सिस्टम में पारदर्शिता नहीं है। और इस क्षैत्र में भी बदलाव आने की जरूरत थी। आज एक पुराने कलीग ने फेसबुक पर चैटिंग में हमें http://www.venturesity.com वेन्चरसिटी के बारे में बताया ।
    हमें वेन्चरसिटी का कंपनियों के जॉब हायरिंग के लिये अपनाया गया तरीका बेहद ही पसंद आया, इससे एक तो बाजार में नया क्या चल रहा हैं, पता चलता है, हैंड्सऑन प्रैक्टिस भी हो जाता है, आप खुद ही अपना आंकलन कर सकते हैं, कहाँ सुधार करना है, आप किस क्षैत्र में अच्छा कर रहे हैं यह भी आपको पता चल जाता है, सबसे बड़ी बात है कि इस अनुभव से आपको बहुत कुछ नया सीखने को मिलता है, जो कि दैनिक रुटीन के कार्यों में नहीं सीख पाते हैं। जो सबसे अच्छी तरह से काम कर पाता है, कंपनी उसका चयन कर लेती है, इस तरह कंपनी को अच्छा जाँचा परखा रिसोर्स मिल जाता है और रिसोर्स को भी अपने ऊपर आत्मविश्वास होता है।
    वैसे भी जिस तेजी से बाजार का परिदृश्य बदल रहा है, उससे नयी विधाओं का बाजार में आना भी जरूरी है और इससे बाजार को और प्रतिभाओं को अपने आप को परखने की क्षमता बड़ेगी।

जिंदगी अगर दूसरा मौका दे तो (Second Chance in Life)

जिंदगी में सबकी अपनी अपनी तमन्नाएँ होती हैं पर बहुत ही कम लोग अपनी तमन्नाओं के अनुसार काम कर पाते हैं, सबको अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के लिये, अपने उत्तरादायित्व पूरे करने के लिये, अपने सपनों के अरमानों को कहीं अपने दिल में दफन करना पड़ते हैं, पर बीच बीच में कहीं न कहीं ये अपने सपने कहीं न कहीं झलक ही आते हैं, पूरा समय न पढ़ने में दे पाते हैं और न ही लिखने में, बहुत ही कम समय मिलता है पढ़ने और लिखने के लिये, पाँच दिन अपने ऑफिस में व्यस्त रहते हैं और बाकी के दो दिन परिवार के लिये।
अगर मुझे वो काम करने हों जो मैंने आगे के लिये छोड़ रखे हैं, क्योंकि मैं अभी वे काम नहीं कर पा रहा हूँ, वे इस प्रकार हैं –

जिंदगी अगर दूसरा मौका दे तो –

कविताएँ  कहानियाँ लिखूँ
किसी ने सही ही कहा है कि जितना पढ़ोगे उतना ही अच्छा लिखोगे, और उतना ही गहराई से सोच पाओगे, जिंदगी को सही मायने से समझ पाओगे, अपनी समझ को सुलझा पाओगे, लिखते तो हैं पर वह स्तर नहीं आता जो स्तर आना चाहिये, जिसे हम अच्छा कह पायें।
थियेटर करूँ
किसी जमाने में बहुत शौक था स्टेज थियेटर करने का, न दिन का ध्यान रहता था, न रात का, बस कभी डॉयलाग याद करता था तो कभी अपनी अभिनय निखारने के लिये पता नहीं क्या क्या तरीके अपनाता था, खासकर जब पेट से आवाज निकालने का अभ्यास करता था तो पेट पर जोर पड़ते ही मुझे दस्त लग जाते थे, अभिनय भी वह कला है जिसे निखारने के लिये बहुत मेहनत करना पड़ती है।
पर्सनल फाईनेंस के लिये सेमिनार करूँ
मेरे पास पर्सनल फाईनेंस से संबंधित बहुत सारी चीजें हैं जो कि बहुत से लोगों को नहीं पता है, यहाँ तक कि आयकर की धाराओं के तहत कितनी और कैसे बचत की जाये यह भी नहीं पता
है, कितना बीमा लेना चाहिये, लक्ष्य कैसे निर्धारित करें, मिलने वालों को तो फायदा मिलता ही है, पर चाहता हूँ कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को फायदा मिले।
This post is a part of the #SecondChance
activity at BlogAdda
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”.

अब कॉल से बेहतर है क्विकर NXT (Quikr NXT is best then taking calls)

    नो फिकर बेच क्विकर ये पंचलाईन तो सभी ने सुनी होगी, अभी कुछ ही वर्ष हुए हैं क्विकर को ऑनलाईन बाजार में आये पर जितनी तेजी से इस वेबसाईट ने अपनी जगह बनाई है, शायद ही उतनी तेजी से कोई और वेबसाईट अपनी जगह बना पाई। पहले हम अपनी पुरानी चीजों को बेचने के लिये केवल कबाड़ी वाले पर ही निर्भर रहते थे, जान पहचान वाले कम ही लोग उपयोग की हुई चीजों को लेते थे, और वह चीज हमें या तो सस्ते में ही कबाड़ी को बेचने के लिये मजबूर होना पड़ता था या फिर वह वस्तु पड़े पड़े ही कबाड़ हो जाती थी।
    जब क्विकर नहीं था तब मैंने पता नहीं कितनी ही वस्तुओं को कबाड़ होते देखा है, मेरी पुरानी साईकिल, पुराना वाटर प्यूरिफॉयर, हीटर जिन्हें हमने कबाड़ से बचाने के लिये गमला बना दिया। और वे सब हमें इसलिये हटाने पड़े क्योंकि हमें उसकी जगह कोई और अच्छी तकनीक वाली चीज उपयोग में लाना था, अगर वे सब सामान बिक जाता तो निश्चित ही किसी न किसी का कम बजट में काम हो गया होता और हमें भी कम ही सही पर कुछ मदद तो नई वस्तुएँ खरीदने में मिलती ही । पर उस समये पहुँच भी कम ही आस पास वालों तक ही होती थी।
    आज क्विकर ने इंटरनेट युग में चार चाँद लगा दिये हैं, अब किसी भी पुरानी चीज को बेचने के लिये कबाड़ी या किसी एजेन्ट की जरूरत नहीं पड़ती है, बस क्विकर पर विज्ञापन लगाया और फटाफट से फोन आने शुरू, अपनी सारी जानकारी फोटो के साथ दे दो और फिर कहीं भी घूमते रहो, और ऐसा भी नहीं कि 24 घंटे घर पर बैठे रहो कि कब खरीददार आ जाये पता नहीं, और हम घर पर न हों तो नुक्सान हो जाये, अब तो खरीददार फोन करके आता है।
    अब मैंने अपनी बाईक को बेचना है तो फिर से मैंने क्विकर की सेवायें ली हैं, अपनी बाईक का फोटो लगा दिया और जरूरी जानकारी भी साथ में दे दी है, ये है कि बाजार में मैकेनिक इसके कम दाम बता रहे थे पर क्विकर पर उससे कहीं अधिक के ऑफर मिल रहे हैं।
    जब से Quikr NXT आया है तब से थोड़ा आसानी हो गई है, मैं अधिकतर से काल लेने से बचता हूँ और चैट से ही काम लेना पसंद करता हूँ
  1. क्योंकि ऑफिस में अधिकतर मीटिंग्स में व्यस्त होते हैं, तो जैसे ही समय मिलता है तो हम चैट का जबाव दे सकते हैं, पर फोन नहीं कर सकते ।
  2. ऑफिस में आसपास वाले लोगों को उनके काम में फोन पर बात करने से बाधा पहँचती है।
  3. हँसी का पात्र नहीं बनना पड़ता है, लोग हमेशा से ही दूसरों का मजाक उड़ाते हैं कि बाईक बेचने के लिये क्या एक ही तरह के सवालों के जबाब देता रहता है और कुछ न करते हुए भी शर्मिंदगी का पात्र बनना पड़ता है।
  4. एक बार किसी को सवाल का जबाव दे दिया तो फिर से टाईप करने  की जगह केवल कॉपी पेस्ट से ही काम चल जाता है।
  5. मोबाईल पर चैट किसी को दिखती भी नहीं है और जो काम कर रहे होते हैं, उससे ध्यान नहीं भटकता है और फोन पर बात करने से ध्यान बँटता है।

आईये मिलकर ढ़ूँढे अपनी कठिनाईयाँ और विकास के रास्ते

   
   
    आईये मिलकर ढ़ूँढे अपनी कठिनाईयाँ और विकास के रास्ते जो मैं सुबह की चाय के साथ लिख रहा हूँ गलत नहीं लिखूँगा, आजकल ट्विटर और फेसबुक पर हम अगर किसी एक दल के लिये कुछ लिख देते हैं तो हमें अपने वाले ही विकास विरोधी बताकर लतियाना शुरू कर देते हैं। पर हम भी अपना संतुलन ना खोते हुए संयमता बरतते हैं, दिक्कत यह है कि विकास की लहर वाले लोग जबाव देने की जगह हड़काने लगते हैं। क्या वाकई उन्हें लगता है कि इससे सारी दिक्कतें दूर हो जायेंगी, या वाकई उन्हें यह लगता है कि सब ठीक चल रहा है, खैर अब हम क्या बतायें ये तो मानव मन की गहराईयाँ हैं, जो अच्छा लगता है वही पढ़ना चाहता है, वही लिखना चाहता है, वही बोलना चाहता है और वही दूसरों से सुनना चाहता है।
    बाकी सब तो व्यंग्य हैं, पर आज सुबह उठकर हमने सोचा कि वाकई हमें उनका पक्ष भी जानना चाहिये, कि हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा, क्या मुझे रोजमर्रो के कामों में कोई आसानी हुई या वही सब पुरानी परेशानियाँ अभी भी झेलनी पड़ रही हैं।
महँगाई – यह तो सुरसा की मुँह है, बड़ती ही जा रही है, दूध आज से 4 वर्ष पहले बैंगलोर में 21 रू. किलो मिलता था, आज वही दूध 42 रू. हो गया है, अब तो बैंगलोर छोड़े मुझे समय हो
गया, हो सकता है और भी ज्यादा हो गया हो। यहाँ गुड़गाँव में खुला दूध 42 से 46 रू. ली. मिलता है और पैक वाला 44 से 50 रू ली. मिलता है। यहाँ तो मेरी जेब कट ही रही है। न सब्जी के दामों में कमी है न दालों के।
चिकित्सा – थोड़े दिनों पहले बेटेलाल बहुत ज्यादा बीमार थे, पता नहीं कितने डॉक्टरों के चक्कर काटे और जाने कितने टेस्ट करवाये, लूट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि डॉक्टरों की फीस कम से कम 500 रू. हो गई है और साधारण से टेस्ट के भी 100 – 500 रू. तक वसूले जा रहे हैं, और उनमें भी शुद्धता नहीं है दो अलग अलग लैबों की रिपोर्ट भी अलग आती है, किसी स्थापित मानक का उपयोग नहीं किया जाता है। जबकि हम सरकार को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों कर देते हैं, पर हमें सीधे कोई फायदा नहीं है, यहाँ एक बात का उल्लेख करना चाहूँगा मेरे प्रोजेक्ट से अभी एक बंदा ब्रिटेन से वापस आया तो बोलो कि वहाँ अगर कर लेते हैं तो वैसी सुविधाएँ भी हैं, लिये गये पूरे पैसे का पाई पाई का उपयोग होता है, केवल फोन कर दो तो दो तरह की सुविधाएँ उपलब्ध हैं, पहला तो कि आपको कुछ समस्या हो गई है तो तत्काल एम्बूलेन्स आयेगी और वहीं तात्कालिक  सहायता उपलब्ध करवाकर अगर जरूरत है तो अस्पताल भी ले जायेगी, दूसरी आप फोन करके डॉक्टर से मिलने का समय सुनिश्चित कर सकते हैं, जो कि स्वास्थय बीमे में ही कवर होता है।
सरकारी कार्य – कुछ दिनों पहले अपनी बाईक के कागजों से संबंधित कार्य था, सोचा कि शायद हम सीधे ही करवा पायें, एक छुट्टी भी बर्बाद की और कोई काम भी नहीं हुआ, अगले दिन सुबह एक एजेन्ट को ही पकड़ना पड़ा जैसा कि स्वागत कक्ष पर बैठे बाबू ने कहा, क्योंकि वहाँ पुलिस का कोई सर्टिफिकेट बनवाना पड़ता है, और वहाँ बिना पहचान के काम नहीं होता है, हमें पता नहीं क्या क्या कागजात लाने को बोले गये थे, हमने सब दिखाये पर काम न हुआ, एजेन्ट ने हमसे 300 रू इसी बात के लिये और सर्टिफिकेट बनवा लाया, हमारे जाने की जरूरत भी नहीं पड़ी। क्यों नहीं यह सारा कार्य ऑनलाईन करके जनता को सरकारी मशीनरी की कठिनाईयों से मुक्ती दे दी जाती है। किसी भी सरकारी कार्यालय में जाओ तो पता चलता है कि बिना पैसे के कोई काम नहीं होता है।
ऑटो पुलिस – न ऑटो वाले मीटर से चलते हैं और न ही पुलिस वाले उन्हें कुछ बोलते हैं, हर जगह जाम की स्थिती है।
ट्रॉफिक जाम – पता नहीं कितने हजारों घंटों को नुक्सान ट्रॉफिक जाम में हो जाता है, क्यों नहीं ऐसा बुनियादी ढाँचा बनाया जाता है कि ट्रॉफिक की समस्या से निजात मिले, क्यों नहीं सड़कों को अगले 10 वर्ष बाद की दूरदर्शिता के साथ बनाया जाता है। और पेट्रोल का नुक्सान तो होता ही है।
पेट्रोल – की बात आई तो यह बात करना भी उचित होगा कि जब क्रूड ऑइल जब महँगा था तो पेट्रोल का भाव 86 रू. ली. तक था, पर आज आधे से भी कम है तो भी पेट्रोल का भाव 62 रू. क्यों है, जब पेट्रोल डीजल के भाव बड़ रहे थे, तब तो सभी ने अपने किराये बढ़ा दिये, अब जब कम हो रहे हैं, तो उसका फायदा हमें क्यों नहीं मिल रहा है।
बिजली – इस पर तो अनर्गल वार्तालाप किये जा रहे हैं, कि कई बिजली की कई कंपनियाँ होने से सस्ती हो जायेंगी, अगर ऐसा है तो रेल्वे को भी कई कंपनियों के हाथों में दे दीजिये, बसों में कई कंपनियों की बसें विभिन्न रूट पर चलती हैं पर कहीं कोई सस्ती सेवा उपलब्ध नहीं है, वैसे भी यह सब सरकार के हाथ नहीं है, यह बिजली नियामक तय करते हैं, पता नहीं सरकार जनता को उल्लू क्यों समझती है।
रेल्वे – जब भी मैं घर जाने का प्रोग्राम बनाता हूँ तो टिकट ही उपलब्ध नहीं होते, क्यों न सफर करने वाली आबादी के अनुसार रेल्वे को डिजायन किया जाये, हम यह नहीं कहते कि बुलेट ट्रेन न चलाई जाये वह तो भविष्य की जरूरत है परंतु उससे पहले हमें कम से कम आजकल के टिकट तो मयस्सर होने चाहिये, अगर बुलेट ट्रेन भी आ गई और बुनियादी सुविधाओं का अभाव है तो फिर कैसे उसका भी भरपूर उपयोग भारतवासी कर पायेंगे और अगर संयोग से टिकट मिल भी जाता है तो सुविधाओं में कमी महसूस होती है।
शिक्षा – हम सरकारी स्कूल में पढ़े, तब भी निजी स्कूल थे, परंतु यह कह सकते हैं कि कम से कम सरकारी स्कूलों का स्तर आज से बहुत अच्छा था, मैंने तो आज भी कई सरकारी स्कूल देखें हैं जो निजी स्कूलों से काफी अच्छे हैं, परंतु वे सरकारी प्रयास नहीं है, वह तो किसी प्रधानाध्यापक की मेहनत और कड़ाई के कारण है। सरकारी स्कूल और निजी स्कूल की फीस में जमीन आसमान का अंतर है, ज्यादी फीस देने का यह मतलब नहीं है कि अच्छी शिक्षा मिल रही है, या अच्छा माहौल मिल रहा है, केवल हम अपने बच्चे को अच्छे सहयोगी दे पा रहे हैं, जिनके माता पिता इतनी फीस दे पाने में समर्थ हैं, उनके साथ पढ़ पा रहा है हमारा बच्चा, पर निजी स्कूलों में पढ़ाने वालों का शैक्षिक स्तर सरकारी स्कूल से बदतर है, सरकारी स्कूलों के अच्छे शैक्षिक स्तर वाले गुरूओं को सब जगह घसीट लिया जाता है, उनका सही तरीके से उपयोग नहीं हो जाता और न ही उनके ऊपर दबाव होता है।
    हैं तो और भी बहुत सारी चीजें जिनकी चर्चा में करना चाहता हूँ पर जिनकी बातें मैंने यहाँ की हैं और अगर आपको लगता है कि यह केवल मेरे साथ भेदभाव हो रहा है तो आप ही बतायें कि आपकी जिंदगी पर कोई असर पड़ा हो तो मैं भी आपकी तरह ही सोचने की कोशिश करूँ।

कोहरा, डिफॉगर और कोहरे का अहसास

घर की छत से लिया कोहरे का फोटो
    आजकल अपनी सुबह थोड़ी देर से ही हो पाती है, उसके दो कारण हैं एक तो देर रात घर पहुँचना और दूसरा ठंड। जब बारिश होती है तो उस दिन कोहरा थोड़ा कम होता है, पर जबरदस्त कोहरे का आमंत्रण होता है, जब धूप आ जाती है, तो कोहरा कम होने की उम्मीद जग जाती है। कोहरा अकसर नदी नाले और खुली जगह जैसे कि जंगल में ज्यादा होता है, कोहरे में ही सड़क पर बीच में पोती गई सफेद लाईनों का महत्व पता चलता है, अभी तक कम से कम 2-3 बार इन सफेद लाईनों के सहारे ही गाड़ी चलाई है। कोहरा जब जबरदस्त होता है तो हम अपने मोबाईल पर जीपीएस चालू करके कार में लगा लेते हैं, तो कम से कम मोड़ और कहाँ तक पहुँच गये हैं पता चल जाता है। कई बार कोहरे में गाड़ी चलाने पर यह पता ही नहीं चलता कि आप किधर तक पहुँच गये हो।
घर की छत से लिया कोहरे का फोटो
    कोहरे के कारण कई बार हमने ट्विटर और फेसबुक पर डिफॉगर के बारे में जानना चाहा, तो अलग अलग राय मिलीं, पर सबसे अच्छी राय मिली ब्लॉगर मित्र काजल कुमार जी की, कि गाड़ी में हीटर चालू करके रखिये, तो काँच पर कोहरा नहीं जमेगा और आगे पीछे दोनों काँचों को साफ भी रखेगा। थोड़े दिनों पहले करोलबाग गये थे तो वहाँ केवल गाड़ी के काँच की एक दुकान है, वहाँ पूछा तो हमें बताया गया कि डिफॉगर वाला शीशा मिल तो जायेगा पर गाड़ी की वारंटी खत्म हो जायेगी, हमने सोचा कि छोड़ो जो होगा देखेंगे।
     खैर उस काँच वाले ने जाते जाते हमें एक नेक सलाह भी दी कि कोहरे में आप अपनी गाड़ी की डिफॉगर लाईट चालू रखें जिससे कम से कम आपको पाँच मीटर तो साफ दिखेगा, गाड़ी धीमे चलाईयेगा, दोनों तरफ के काँचों को थोड़ा सा खुला रखें और हीटर चालू रखें तो आपको पीछे काँच के डिफॉगर की कमी ही महसूस ही नहीं होगी।
    अब तो कोहरे में गाड़ी चलाने आदत सी हो गई है, तो अब कोहरे के होने और न होने का ज्यादा अंतर नहीं पड़ता है, कोहरे के अपने गणित होते हैं, पहली बार मैंने बिल्कुल बच्चों जैसे गाड़ी का पूरा काँच खोलकर हाथ बाहर निकालकर कोहरे का अहसास किया था, जब हाथ पूरा भीग गया तभी पता चला कि कोहरा क्या होता है, पता नहीं क्यों हर चीज को अनुभव करने की मानव-मन की इच्छा कब पूर्ण होगी।

कील मुँहासे और जवानी का फूटना

    हम अपनी त्वचा के लिये बहुत सजग होते हैं, त्वचा सुँदर दिखे, निखार आये, इसके लिये पता नहीं क्या क्या जतन करते रहते हैं। कोई मुल्तानी मिट्टी लगाता है तो कोई खीरा, और कोई संतरे के छिलके अपने गालों पर ज्यादा चमक के लिये रगड़ता है। हम सर्दियों में चेहरे पर बादाम का तेल लगाते हैं, जो कि किसी भी कोल्ड क्रीम या विंटर क्रीम से कहीं ज्यादा अच्छा होता है। सर्दियों में चेहरा फटता भी नहीं और चमक बरकरार रहती है।
 
     कील मुँहासे अक्सर 15-16 वर्ष की उम्र से होना शुरू होते हैं, हमारे यहाँ स्कूल और कॉलेज में दूसरे लोग कील मुँहासे वाले चेहरों को देखकर कहते थे कि ताजी जवानी फूटी है, अक्सर
कील मुँहासे को हमारे समाज में जवानी से जोड़कर लिया जाता है। जब कील मुँहासे चेहरे पर होते हैं तो कहीं न कहीं ये आत्मविश्वास भी कम करते हैं ।
    मुझे अच्छे से याद है कि मुझे कील मुँहासे 16 वर्ष की उम्र में चेहरे पर आ गये थे, और अचानक ही मुझे किसी भी समूह में न जाने की इच्छा होती है, और न ही किसी से मिलने की इच्छा होती थी, ऐसे लगता था कि मेरे चेहरे पर कुछ ऐसा लग रहा है, जो न मुझे पसंद है और न ही किसी दूसरे को पसंद है, कोई कहता कि यह खून साफ नहीं होने के कारण होते हैं, कोई कहता कि ये चेहरा बराबर न धोने के कारण हुआ है, कुछ तो यहाँ तक कहते थे कि ये लौंडे लौंडियों में जवानी अंकुरित होने के लक्षण होते हैं।
हमें जो कारण समझ में आये थे वे हैं –
1)   चेहरे की सफाई बराबर न रखना – जब भी कोई मुँहासा कसमसाते हुए फोड़ते तो उसके अंदर की गंदगी और कील चेहरे पर ही दूसरी जगह लगने से बचना चाहिये, हाथों के अपनी पेंट शर्ट से न पोंछकर हाथ साबुन से धोने चाहिये, वैसे ही चेहरा भी धोना चाहिये।
2)    प्रदूषण के कारण – प्रदूषण के कारण हमारे चेहरे के रोमछिद्र बंद हो जाते हैं, और शरीर की गंदगी पसीने के रूप में नहीं निकल पाती है तो यह कील मुँहासों का रूप धारण कर लेती है।
3)   तैलीय त्वचा – मेरी त्वचा तैलीय है, जब भी ज्यादा तेल चेहरे पर लगे, उसे रूमाल से साफ कर लेना चाहिये, और नहीं तो प्योर एक्टिव नीम फेश वॉश से चेहरा अच्छे से धो लेना चाहिये, इसमें नीम होने के कारण यह चेहरे के सारे कीटाणुओं को तो मार ही देता है, साथ ही नीम की विशेषता है कि वह गंदगी को अच्छे से काट देता है।
    कील मुँहासों को फोड़ने के लिये हम हमेशा अपने साथ रुई रखते थे, जिससे इनसे निकलने वाली गंदगी चेहरे पर कहीं और न लगे और जल्दी मुँह न धोना पड़े, और वह रुई कचरे के डिब्बे के हवाले कर देते थे और हमेशा घर हो या बाहर स्वच्छता का ध्यान रखते थे।
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नफरत है वेबसाईट्स फोरमों से जो पासवर्ड भेजते हैं

    आजकल इंटरनेट का युग है, जहाँ पर आप कई जगह सूचना ढ़ूँढ़ने या पाने के लिये कई वेबसाईट्स पर जाते हैं। लगभग 60 प्रतिशत वेबसाईट्स आपकी पहचान अपने साथ रखना चाहती हैं, फिर भले ही वह वेबसाईट फोरम हो या कोई अन्य सूचना देने वाली वेबसाईट। और फिर इनमें से कई वेबसाईट्स आपके ईमेल बॉक्स में अनाप शनाप स्पॉम ईमेल भेजते रहते हैं, और हमारे कई मिनिट इस तरह के ईमेल को पढ़ने के बाद हटाने में बर्बाद हो जाते हैं।
    अधिकतर वेबसाईट्स पहचान के नाम पर इकठ्ठे की गई सूचना के आधार पर आपको ईमेल सत्यापित करने के लिये ईमेल पर लिंक या कोई कोड भेजते हैं, और फिर से आपको एक ईमेल मिलता है, जिसमें कि धन्यवाद का संदेश होता है, यूजर नेम और साथ में होती है वह सूचना जिसके दिये जाने का मुझे सबसे ज्यादा ऐतराज होता है वह है पासवर्ड और मेरी सारी निजी जानकारी, जैसे कि मेरा पूरा नाम, आई.डी.कार्ड नंबर, जन्मदिनाँक, राष्ट्रीयता, पोस्टल कोड, फोन नंबर, वर्तमान पता, ईमेल पता और कहते हैं कि इस ईमेल को सँभाल कर रखिये जो कि बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है। इस तरह की ईमेलों में अक्सर This message was sent from a notification-only email address that does not accept incoming email. Please do not reply to this message  या फिर ** This is an auto-generated email. Please do not reply to this email.**  ऐसे कुछ लिखा होता है । पासवर्ड लिखने की जगह वे वहाँ पासवर्ड वापस से जनरेट करने की लिंक साथ में लगा दें, तो वह बेहतर होगा।
    अगर मेरी यह सारी जानकारी किसी को जाने अनजाने मिल जाये तो वह मेरे लिये कई मुश्किलें खड़ी कर सकता है, कई बार किसी परिचित को अपनी निजी कम्प्यूटिंग डिवाईस देना होती है, और अधिकतर इस तरह की हरकतें भी उन्हीं के द्वारा की जाती हैं, पता नहीं परिचितों को क्या जानने की इच्छा होती है, कि वे इस तरह की हरकतें करते हैं। हालांकि मेरे साथ अभी तक ऐसा नहीं हुआ है, क्योंकि मैं इस बारे में बहुत ज्यादा सावधानी रखता हूँ।
    मैं मोजिला फॉयरफॉक्स ब्राउजर का उपयोग करता हूँ, जिसमें कि वे वेबसाईट जो मेरे वित्तीय जीवन को प्रभावित करती हैं, मैं उन्हें हमेशा ही प्राईवेट ब्राऊजिंग (Private Browsing) enable by Ctrl+Shift+P में खोलता हूँ, और अगर किसी को अपनी पर्सनल डिवाईस देनी भी पड़े तो मैंने उसके लिये लेपटॉप पर एक अलग लॉगिन बना रखा है, जिससे मेरा सारा डाटा सुरक्षित भी रहता है, और मेरे किसी भी ईमेल की एक्सेस भी उसमें नहीं होती है।

पेट्रोल पंप पर हो रही लूट से कैसे बचे हम

  कल ऑफिस से आते समय सोचा कि गाड़ी में पेट्रोल भरवा लिया जाये, पर कोहरा इतना जबरदस्त था कि जाने की इच्छा होते हुए भी सोचा कि कल सुबह पेट्रोल भरवा लिया जायेगा। और फिर नाईट्रोजन भी टायरों में चैक करवानी थी, और नाईट्रोजन के हवा वाला पंप केवल सुबह 9 से शाम 8 बजे तक खुलता है। इसलिये भी यह निर्णय लिया गया कि कल सुबह ही भरवा लिया जाये क्योंकि उस समय रात के 10 बज रहे थे।

     सुबह तैयार होकर कुछ कागजों की स्पाइरल बाईंडिंग करवानी थी, तो उनको बाईंडिंग के लिये देकर पेट्रोल भरवाने के लिये चल पड़े, हाईवे की और पास में ही पेट्रोल पंप हैं, पर इस जयपुर हाईवे पर कब कितना समय लग जाये कह नहीं सकते इसलिये शहर के अंदर ही लगभग 3 किमी दूर पेट्रोल पंप पर ही हमेशा से पेट्रोल भरवाते हैं।
    एच.पी. का पेट्रोल पंप हमें हमेशा से ही अच्छा लगता है, कारण पता नहीं परंतु हम शुरू से ही एच.पी. से पेट्रोल लेते आये हैं। हमने पेट्रोल पंप पर कहा कि पेट्रोल भरना, ये पेट्रोल गाड़ी है, कह देना ठीक होता है, उन्हें थोड़े ही ध्यान रहता है कि पेट्रोल गाड़ी है या डीजल, और हमने फ्यूल के ढक्कन पर लिखवा भी नहीं रखा है, फिर पेट्रोल भरने के पहले हमें 0 रीडिंग पढ़वा दी गई, और हम अपने बेटे के साथ बात में मस्त हो गये। थोड़ा समय ही बीता था कि देखा इतनी देर में तो 25 लीटर पेट्रोल भर सकता है, और अभी तक केवल 4.5 लीटर ही हुआ था, सो हमें कहा गया कि 300 रू. का करके फिर से शुरू करते हैं, कभी कभी मशीन धीरे चलती है, हमने कहा ठीक है, हम फिर से बेटेलाल से बात करने लग गये, फिर ध्यान आया कि कितना पेट्रोल भर गया है देख तो लें। देखा कि 900 रू. का भर चुका है, फिर लगभग 25.5 लीटर पेट्रोल भर गया फुल टैंक। हमने पूछा कि कितना बिल हुआ, हमें कहा गया कि 1900 रूपया हुआ, 300रू पहले का और 1600 रू. बाद का, हमने अपना HDFC Bank Credit Card स्वाईप करने को दे दिया।
    इधर हम मन ही मन गणित कर रहे थे कि गाड़ी में लगभग 33-35 लीटर की टंकी है और पहले से ही पेट्रोल के कांटे के हिसाब से लगभग 7 लीटर पेट्रोल होगा तो इन्होंने 30 लीटर पेट्रोल कैसे भर दिया, पीछे लाईन लंबी थी, सो हमें कहा गया कि जब तक स्वाईप होकर आपका क्रेडिट कार्ड आता है, तब तक आप थोड़ा आगे हो जायें, हम गाड़ी लेकर वहीं पर नाईट्रोजन टायरों में चैक करवाने लगे, हमें पहले हाथ से बनाया हुआ बिल दिया, तो हमें शक हुआ, कि हमेशा तो ये लोग मशीन का बिल देते हैं, और हमारा मन ही मन गणित भी ठीक नहीं हो रहा था, सो हमने उनसे कहा कि मुझे तो मशीन का बिल ही चाहिये, जब मुझे मशीन का बिल दिया तो एक 300 रू. का और दूसरा 1605 रू. का था, हमने ध्यान से दोनों बिलों को देखा तो पेट्रोल पंप की लूट या कर्मचारियों की लूट समझ आ गई।
    300 रू. के बिल पर समय अंकित था 10.26 और 1605 रू. के बिल पर 10.24, दोनों बिलों के अटेंडरों के नाम भी अलग थे, दोनों बिलों पर भरने वाली मशीन का आई.डी. भी होता है, वह भी अलग अलग था, इस विश्लेषण तक नाईट्रोजन भर चुकी थी, हमने गाड़ी रिवर्स करी, पार्किंग करके बेटेलाल को साथ लिया और मैनेजर के केबिन की और चल दिये, तो पता चला कि मैनेजर अभी तक आये नहीं हैं, वहाँ खड़े एक व्यक्ति ने कहा कि मैं सुपरवाईजर हूँ बताईये क्या समस्या है, उसे हमारी बात में तर्क लगा, उसने दोनों बिल ले लिये और पीछे हमारी गाड़ी का नंबर लिखा, हमने अपना मोबाईल नंबर भी लिखवाया और कहा कि मैनेजर से हमारी बात करवाईयेगा, उसने चुपचाप हमें 300 रू. नगद वापस कर दिये।
    चाहते तो हम पेट्रोल पंप वाले को लंबा नाप सकते थे, परंतु हमने अपनी सतर्कता से अपनी मेहनत की कमाई को लुटने से बचा लिया। आप भी आगे से ध्यान रखियेगा कि कहीं आप भी तो ऐसी लूट का शिकार नहीं हो रहे हैं।

टाटा बोल्ट के संग टाटा बोल्ट के एरिना में (Get Set Bolt)

    रविवार की सुबह सुहानी थी, ओस न के बराबर थी, बरबस ही वातावरण आनंदमयी होने लगा था, क्योंकि हम टाटा की नई कार बोल्ट देखने महसूस करने शिप्रा मॉल में प्रवेश कर चुके थे। पहले हमें कारों के बारे में ज्यादा कुछ समझ नहीं आता था, परंतु जब से कार चलाने लगे हैं तब से कारों में कुछ ज्यादा ही रुचि है। कार के गुणों को अच्छे से समझ पाते हैं। लाल रंग की टाटा बोल्ट कार देखकर मन तरंगित हो उठा।
    टाटा बोल्ट कार के रूप और बनावट को देखकर मन ललचा गया, इस कार के बारे में सुना बहुत था, और यह भारत में 20 जनवरी को लोकार्पण है। टाटा बोल्ट के मुख्यत: पाँच चीजें अच्छी लगीं –
शिप्रा मॉल गाजियाबाद में टाटा बोल्ट एरिना में हम टाटा बोल्ट के साथ
  1. टाटा बोल्ट के बनावट की उत्कृष्टता देखते ही बनती है, बाजार में अपने प्रतियोगियों से टक्कर लेने के लिये इसकी साज सज्जा जबरदस्त है। बोनट के आगे की काली ग्रिल कार को सुँदर बनाती हैं। इसके 15 इंच के 8 एलॉय व्हील वाले टायर देखते ही बनते हैं। पीछे ग्लास और दरवाजे के बीच एक विनायल स्टीकर काले रंग का सी पिलर इफेक्ट देता है। 
  2. आंतरिक साज सज्जा बहुत अच्छी है, अंदर बहुत जगह है, और यह एक ऐसी हैचबैक कार है जिसमें 5 लोग आराम से बैठ सकते हैं वह भी बिना फँसे।
  3. गियर देखकर तो मेरा मन लालायित हो उठा था, बिल्कुल स्टिक जैसा गियर और रेवोट्रोन 1.2 लीटर टर्बो इंजिन, रेवोट्रोन 1.2 लीटर इंजिन में 4 सिलेंडर और यह 89 बीएचपी अपने सर्वोत्तम पॉवर पर देता है और 140 एनएम का अधिकतम टॉर्क देता है, यह पाँच रफ्तार गियर वाला इंजिन अधिकतम 17.6 किमी. का माईलेज देता  है।
  4. जबरदस्त 8 स्पीकर वाला हरमन एन्टरटेनमेंट सिस्टम लगा हुआ है, जिसमें नेविगेशन और वीडियो भी देखा जा सकता है, सिस्टम टच स्क्रीन है, ब्लूटूथ इनबिल्ट है केवल अपने फोन को ब्लूटूथ पर पेयर करना है और टाटा बोल्ट मोबाईल में बदल जायेगी, स्टेयरिंग व्हील पर दिये गये आवाज के नियंत्रण से आप हरमन के सारे फंक्शन बोल कर भी पूरे कर सकते हैं, मसलन एफ.एम. रेडियो के स्टेशन बदलना, किसी को कॉल करना इत्यादि।
  5. टाटा बोल्ट को चलाने के तीन मोड हैं, और कार स्टार्ट होने पर अपने आप यह सिटी मोड में चलता है, डेश बोर्ड पर ही हरमन के नीचे इको और स्पोर्ट के बटन दे रखे हैं, इको बटन दबाने से टाटा बोल्ट का इंजिन इको मोड में चलने लगेगा और कम आर.पी.एम. के साथ चलने लगेगी और माईलेज बड़ जायेगा, जैसे ही इसको स्पोर्ट मोड में डालेंगे, टाटा बोल्ट का वही इंजिन शक्तिशाली हो जायेगा और कार चलाने का अनुभव ही बदल जायेगा। 

 “This post is a part of the Get. Set. Bolt. activity at BlogAdda.”