Tag Archives: अनुभव

पेट्रोल पंप पर हो रही लूट से कैसे बचे हम

  कल ऑफिस से आते समय सोचा कि गाड़ी में पेट्रोल भरवा लिया जाये, पर कोहरा इतना जबरदस्त था कि जाने की इच्छा होते हुए भी सोचा कि कल सुबह पेट्रोल भरवा लिया जायेगा। और फिर नाईट्रोजन भी टायरों में चैक करवानी थी, और नाईट्रोजन के हवा वाला पंप केवल सुबह 9 से शाम 8 बजे तक खुलता है। इसलिये भी यह निर्णय लिया गया कि कल सुबह ही भरवा लिया जाये क्योंकि उस समय रात के 10 बज रहे थे।

     सुबह तैयार होकर कुछ कागजों की स्पाइरल बाईंडिंग करवानी थी, तो उनको बाईंडिंग के लिये देकर पेट्रोल भरवाने के लिये चल पड़े, हाईवे की और पास में ही पेट्रोल पंप हैं, पर इस जयपुर हाईवे पर कब कितना समय लग जाये कह नहीं सकते इसलिये शहर के अंदर ही लगभग 3 किमी दूर पेट्रोल पंप पर ही हमेशा से पेट्रोल भरवाते हैं।
    एच.पी. का पेट्रोल पंप हमें हमेशा से ही अच्छा लगता है, कारण पता नहीं परंतु हम शुरू से ही एच.पी. से पेट्रोल लेते आये हैं। हमने पेट्रोल पंप पर कहा कि पेट्रोल भरना, ये पेट्रोल गाड़ी है, कह देना ठीक होता है, उन्हें थोड़े ही ध्यान रहता है कि पेट्रोल गाड़ी है या डीजल, और हमने फ्यूल के ढक्कन पर लिखवा भी नहीं रखा है, फिर पेट्रोल भरने के पहले हमें 0 रीडिंग पढ़वा दी गई, और हम अपने बेटे के साथ बात में मस्त हो गये। थोड़ा समय ही बीता था कि देखा इतनी देर में तो 25 लीटर पेट्रोल भर सकता है, और अभी तक केवल 4.5 लीटर ही हुआ था, सो हमें कहा गया कि 300 रू. का करके फिर से शुरू करते हैं, कभी कभी मशीन धीरे चलती है, हमने कहा ठीक है, हम फिर से बेटेलाल से बात करने लग गये, फिर ध्यान आया कि कितना पेट्रोल भर गया है देख तो लें। देखा कि 900 रू. का भर चुका है, फिर लगभग 25.5 लीटर पेट्रोल भर गया फुल टैंक। हमने पूछा कि कितना बिल हुआ, हमें कहा गया कि 1900 रूपया हुआ, 300रू पहले का और 1600 रू. बाद का, हमने अपना HDFC Bank Credit Card स्वाईप करने को दे दिया।
    इधर हम मन ही मन गणित कर रहे थे कि गाड़ी में लगभग 33-35 लीटर की टंकी है और पहले से ही पेट्रोल के कांटे के हिसाब से लगभग 7 लीटर पेट्रोल होगा तो इन्होंने 30 लीटर पेट्रोल कैसे भर दिया, पीछे लाईन लंबी थी, सो हमें कहा गया कि जब तक स्वाईप होकर आपका क्रेडिट कार्ड आता है, तब तक आप थोड़ा आगे हो जायें, हम गाड़ी लेकर वहीं पर नाईट्रोजन टायरों में चैक करवाने लगे, हमें पहले हाथ से बनाया हुआ बिल दिया, तो हमें शक हुआ, कि हमेशा तो ये लोग मशीन का बिल देते हैं, और हमारा मन ही मन गणित भी ठीक नहीं हो रहा था, सो हमने उनसे कहा कि मुझे तो मशीन का बिल ही चाहिये, जब मुझे मशीन का बिल दिया तो एक 300 रू. का और दूसरा 1605 रू. का था, हमने ध्यान से दोनों बिलों को देखा तो पेट्रोल पंप की लूट या कर्मचारियों की लूट समझ आ गई।
    300 रू. के बिल पर समय अंकित था 10.26 और 1605 रू. के बिल पर 10.24, दोनों बिलों के अटेंडरों के नाम भी अलग थे, दोनों बिलों पर भरने वाली मशीन का आई.डी. भी होता है, वह भी अलग अलग था, इस विश्लेषण तक नाईट्रोजन भर चुकी थी, हमने गाड़ी रिवर्स करी, पार्किंग करके बेटेलाल को साथ लिया और मैनेजर के केबिन की और चल दिये, तो पता चला कि मैनेजर अभी तक आये नहीं हैं, वहाँ खड़े एक व्यक्ति ने कहा कि मैं सुपरवाईजर हूँ बताईये क्या समस्या है, उसे हमारी बात में तर्क लगा, उसने दोनों बिल ले लिये और पीछे हमारी गाड़ी का नंबर लिखा, हमने अपना मोबाईल नंबर भी लिखवाया और कहा कि मैनेजर से हमारी बात करवाईयेगा, उसने चुपचाप हमें 300 रू. नगद वापस कर दिये।
    चाहते तो हम पेट्रोल पंप वाले को लंबा नाप सकते थे, परंतु हमने अपनी सतर्कता से अपनी मेहनत की कमाई को लुटने से बचा लिया। आप भी आगे से ध्यान रखियेगा कि कहीं आप भी तो ऐसी लूट का शिकार नहीं हो रहे हैं।

टाटा बोल्ट के संग टाटा बोल्ट के एरिना में (Get Set Bolt)

    रविवार की सुबह सुहानी थी, ओस न के बराबर थी, बरबस ही वातावरण आनंदमयी होने लगा था, क्योंकि हम टाटा की नई कार बोल्ट देखने महसूस करने शिप्रा मॉल में प्रवेश कर चुके थे। पहले हमें कारों के बारे में ज्यादा कुछ समझ नहीं आता था, परंतु जब से कार चलाने लगे हैं तब से कारों में कुछ ज्यादा ही रुचि है। कार के गुणों को अच्छे से समझ पाते हैं। लाल रंग की टाटा बोल्ट कार देखकर मन तरंगित हो उठा।
    टाटा बोल्ट कार के रूप और बनावट को देखकर मन ललचा गया, इस कार के बारे में सुना बहुत था, और यह भारत में 20 जनवरी को लोकार्पण है। टाटा बोल्ट के मुख्यत: पाँच चीजें अच्छी लगीं –
शिप्रा मॉल गाजियाबाद में टाटा बोल्ट एरिना में हम टाटा बोल्ट के साथ
  1. टाटा बोल्ट के बनावट की उत्कृष्टता देखते ही बनती है, बाजार में अपने प्रतियोगियों से टक्कर लेने के लिये इसकी साज सज्जा जबरदस्त है। बोनट के आगे की काली ग्रिल कार को सुँदर बनाती हैं। इसके 15 इंच के 8 एलॉय व्हील वाले टायर देखते ही बनते हैं। पीछे ग्लास और दरवाजे के बीच एक विनायल स्टीकर काले रंग का सी पिलर इफेक्ट देता है। 
  2. आंतरिक साज सज्जा बहुत अच्छी है, अंदर बहुत जगह है, और यह एक ऐसी हैचबैक कार है जिसमें 5 लोग आराम से बैठ सकते हैं वह भी बिना फँसे।
  3. गियर देखकर तो मेरा मन लालायित हो उठा था, बिल्कुल स्टिक जैसा गियर और रेवोट्रोन 1.2 लीटर टर्बो इंजिन, रेवोट्रोन 1.2 लीटर इंजिन में 4 सिलेंडर और यह 89 बीएचपी अपने सर्वोत्तम पॉवर पर देता है और 140 एनएम का अधिकतम टॉर्क देता है, यह पाँच रफ्तार गियर वाला इंजिन अधिकतम 17.6 किमी. का माईलेज देता  है।
  4. जबरदस्त 8 स्पीकर वाला हरमन एन्टरटेनमेंट सिस्टम लगा हुआ है, जिसमें नेविगेशन और वीडियो भी देखा जा सकता है, सिस्टम टच स्क्रीन है, ब्लूटूथ इनबिल्ट है केवल अपने फोन को ब्लूटूथ पर पेयर करना है और टाटा बोल्ट मोबाईल में बदल जायेगी, स्टेयरिंग व्हील पर दिये गये आवाज के नियंत्रण से आप हरमन के सारे फंक्शन बोल कर भी पूरे कर सकते हैं, मसलन एफ.एम. रेडियो के स्टेशन बदलना, किसी को कॉल करना इत्यादि।
  5. टाटा बोल्ट को चलाने के तीन मोड हैं, और कार स्टार्ट होने पर अपने आप यह सिटी मोड में चलता है, डेश बोर्ड पर ही हरमन के नीचे इको और स्पोर्ट के बटन दे रखे हैं, इको बटन दबाने से टाटा बोल्ट का इंजिन इको मोड में चलने लगेगा और कम आर.पी.एम. के साथ चलने लगेगी और माईलेज बड़ जायेगा, जैसे ही इसको स्पोर्ट मोड में डालेंगे, टाटा बोल्ट का वही इंजिन शक्तिशाली हो जायेगा और कार चलाने का अनुभव ही बदल जायेगा। 

 “This post is a part of the Get. Set. Bolt. activity at BlogAdda.”

विष्णु प्रभाकर की पंखहीन पढ़ते हुए कुछ भाव, मीरापुर, किताबों को शौक और डाकुओं के किस्से

    “पंखहीन” कल से शुरू की, विष्णु प्रभाकर के लिखे गये बचपन के किस्से खत्म ही नहीं होते कभी ये बाबा के किस्से कभी चाचा के तो कभी दादी के किस्से, बीच में डाकुओं के किस्से, और फिर ये सब किस्से बड़े परिवार के मध्य रहने के अनुभव हैं, उनकी लिखी गई भाषा और लिखा गया देशकाल से मैं बहुत अच्छी तरह से सुपरिचित हूँ, इसलिये भी मैं अपने आप को इन सभी किस्से कहानियों के मध्य ही पा रहा हूँ,    और फिर ये किस्से कहानी मीरापुर के हैं, जहाँ मेरी बुआजी ब्याही थीं और अब भी वहीं रहती हैं, क्योंकि विष्णु प्रभाकर जी का पूरा खानदान मीरापुर में ही रहता था, मीरापुर के बारे में बहुत सी बातों को जाना, वहाँ की प्रसिद्ध रामलीला के बारे में पहली बार जाना, रामराज्य, जानसठ के बारे में अधिक जाना, उनकी उत्पत्ति के बारे में जाना।

वहीं मीरापुर को महाभारतकाल से जोड़कर बताया गया है, और यह कौरव राज्य का भाग बताया गया है, मीरापुर के चारों और चार मंदिर और तालाब हैं, उनकी उत्पत्ति के बारे में बताया गया है, कैसे नाम बिगड़ जाते हैं, फिर भले ही वह जगह हो, मंदिर हो या इंसान हो।

उनके खानदान को “हकलों के खानदान” के नाम से जाना जाता था, वे बताते हैं कि उनके खानदान में उनकी पीढ़ी तक पिछली सात पुश्तों से कोई न कोई हकलाता था, तो उनके खानदान का नाम हकलों का खानदान हो गया। प्रभाकरजी ने अपने किताबों से प्रेम होने के बारे में बताया है कि उन्हें यह शौक घर से ही लगा, उनके पिताजी की चावल की दुकान थी और वे अपने ग्राहक से इतने प्रेम से बात करते थे कि ग्राहक कपड़ा, बर्तन सभी चीजें उनकी दुकान से ही खरीदना चाहते, तो वे खुद तो नहीं बेचते थे पर सब चीजों के दुकान पर ही बुलवा देते थे। चावल, तंबाकू के टोकरे के साथ ही एक टोकरा और होता था, वह था किताबों का टोकरा, जिसमें “चंद्रकान्ता”, “चंद्रकान्ता संतति”, “भूतनाथ” और “राधेश्याम की रामायण” जैसी अद्भुत किताबें होती थीं।

प्रभाकर जी कहते हैं कि इन किताबों से ही उन्होंने कल्पना के पंखों पर बैठ कर उड़ना सीखा। वे अपने पिताजी के पढ़ने के शौक के बारे में बताते हैं वह भी रोमांचक है, जब उनकी शादी हुई तो उन्हें पता लगा कि उनकी पत्नी पढ़ी-लिखी हैं, वे तब तक बहीखाते की भाषा ही जानते थे, तुरत पण्डित जी के पास पहुँचकर बोले मुझे सात दिनों में हिन्दी पढ़ानी होगी और उन्होंने हिन्दी सीख ली। फिर उनका निरंतर अध्ययन जारी रहा।

पढ़ने के बाद अपने पिताजी के स्वभाव को विश्लेषण कर प्रभाकरजी लिखते हैं कि इस अध्ययन और पूजापाठ ने उन्हें जहाँ कुछ मूल्य दिये, वहाँ उनके अन्तर के सहज स्नेह-स्रोत को सोख लिया । वे अवहेलना की सीमा तक तटस्थ हो गये।

आज इतना ही, सोचा था कि एक छोटा सा फेसबुक स्टेटस लिखूँगा, पर लिखने बैठा तो पूरी एक पोस्ट ही बन गई, इसी लिखने को ही तो शायद ब्लॉगिंग कहते होंगे ।

मेलबोर्न में पर्यटन (Visit Melbourne)

     मेलबार्न आज से तीन वर्ष जाने के कार्यक्रम लगभग तय था, किंतु अंतिम क्षणों में हमारा जाना नहीं हो पाया, तब हमने बहुत सी चीजों को बारे में पता किया था, कि मेलबोर्न में कहाँ फ्लेट लेना है, मेलबोर्न में रहने पर कितना खर्चा आयेगा, मेलबोर्न में भारतीय तरीके का भोजन तैयार करने की सामग्री कहाँ मिलेगी, इत्यादि। साथ ही यह भी पता लगाया था कि क्या क्या चीजें घूमने के लिये हैं, मेलबोर्न में पर्यटक कहाँ कहाँ जाना चाहते हैं।

हमें ये तीन पर्यटन स्थल बहुत ही अच्छे लगे थे, और हम इन जगहों पर घूमने जाना चाहते थे –
Hot air balloon – गर्म गुब्बारे में घूमने का अपना ही मजा है, और बादलों के बीच जब बिना किसी दीवार के हम आसमान में होंगे तो उसका रोमांच जबरदस्त होगा । 

 The Great Ocean Road – यह 220 कि.मी. का जबरदस्त हाईवे है, जिसका अधिकतर रास्ता समुद्र के किनारे बना हुआ है, और कुछ रास्ता घने जंगलों के मध्य से भी गुजरता है, इस पर लंबी ड्राईव का आनंद ही कुछ और होना चाहिये। 

City circle tram – उस समय मैं गूगल की त्रिआयामी मैप सुविधा का लाभ लेकर मेलबोर्न घूमा करता था, जहाँ मेरा ऑफिस होना था, उसके सामने ट्राम की पटरियाँ देखकर सुखद लगा था, कि यह अनुभव भी एक अलग ही तरह का होगा, हमने कभी भी ट्राम में बैठने का आनंद नहीं उठाया था, तो अब उठाना चाहते हैं।
पाठकों आपके लिये एक सवाल जिसके सर्वोत्तम उत्तर को मिलेगा मेलबोर्न पर्यटन केन्द्र की और से  एक गिफ्ट वाऊचर, आज ही बतायें
Which of these places would you want to visit in Melbourne and why?”.

सच्चाई छिपाना क्यों ? हम नहीं तो कोई और बता देगा !!

    जवानी अल्हड़ होती है, अल्हदा होती है, सुना तो बहुत था पर जिया अपने ही में । जवानी में वो हर काम करने की इच्छा होती है जो सामाजिक रूप से बुरे माने जाते हैं, और उस समय वाकई वे सब काम कर भी लिये जाते हैं, अपने किये पर छोभ, पछतावा कुछ नहीं होता है, बस अपनी मनमर्जी का किये जाओ । कोई टोके तो बहुत ही बुरा लगता है, जल्दी ही बुरा मान जाते हैं, काम सारे गलत करेंगे पर रोकना टोकना किसी का मंजूर नहीं है, जैसे अपनी ही सरकार हो और खुद ही उस सरकार के पैरोकार हैं।
  
    पिता जी का ट्रांसफर अभी नये शहर में हुआ ही था और हमने उस नये शहर में अपना पहला कदम कॉलेज की और बढ़ाया। अब नया शहर था तो न कोई दोस्त था और न ही कोई हमदम, तो कॉलोनी में ही कुछ आस पड़ोस के लड़कों  से दोस्ती हो गई, पिताजी को ऑफिस में उनके सहकर्मियों ने चेताया भी कि आपका लड़का गलत लड़कों के साथ रहता है, और यह खबर हमारे पास भी आ गई थी, हमारे ही मन मस्तिष्क के द्वारा, हमें उनके साथ रहते ही समझ आ गया था कि ये जो हरकतें करते हैं, वह सब हम नहीं कर पायेंगे और हमारा रास्ता जुदा होगा। पर गर्मियों की छुट्टियों में तो हमें कोई नया दोस्त नहीं मिलता, पर हमने उनके साथ रहना कम कर दिया।
    कॉलेज शुरू हो चुका था, जवानी का खून उबाल मार रहा था, नये दोस्त मिले। सबके अपने अपने शौक होते हैं, वैसे ही साधारणतया कॉलेज में दोस्ती होती है, ऐसे ही हमारी भी कई दोस्तियाँ शौक के मुताबिक हो गईं, और कुछ मनचले दोस्त भी थे जो हर समय केवल हँसाते और गुदगुदाते थे। अब तक हम कॉलेज में अच्छे खासे रम चुके थे, हमने कॉलोनी के दोस्तों के साथ लगभग अपना नाता तोड़ ही लिया था, क्योंकि हमें अब अपने कॉलेज के दोस्त मिल गये थे। पर यह उन कॉलोनी के दोस्तों को रास नहीं आया।
 
    एक दिन हर शाम के समय सूरज जैसे रोज ढलता है, वैसे ही ढलने की कगार पर था, लालिमा चारों और फैली हुई थी, कॉलोनी के दोस्त लोग बाहर सड़क पर क्रिकेट खेल रहे थे, पर उनके मनोमस्तिष्क में क्या चल रहा है, हम उससे अनजान थे, हमें हमारी साईकिल के हैंडल पर हाथ रखकर रोक लिया गया, और किसी भी बात को लेकर झगड़ा करना था, सो बात करना शुरू कर झगड़ा शुरू कर दिया गया, बात अब हाथापाई तक आ चुकी थी, जितने पड़े उससे ज्यादा हमने भी दिये, बस अंतर यह था कि उनके लिये जबाबी हमला अप्रत्याशित था, क्योंकि कोई भी उनके खिलाफ कभी भी कुछ बोला नहीं था, और विरोध नहीं किया था। हम अकेले थे और वे पूरी क्रिकेट टीम थी, देखा कि अब अकेले ऐसे लड़ना मुश्किल होगा, तो सामने के घर में पेलवान के घर में दो हाकियाँ टंगी रहती थीं, दौड़कर उन्हें उतारा और उससे अकेले ही पूरी क्रिकेट टीम से भिड़ लिये, पर थोड़ी ही देर में कॉलोनी में आग की भाँति खबर फैल गई और लोग इकट्ठे होने लगे तो पूरी क्रिकेट टीम मौके से भाग ली।
    अब घर तो जाना ही था, शाम की सच्चाई हम नहीं बताते तो कोई और जाकर हमारे घर पर बताता तो और बात बिगड़ जाती, घर में इस झगड़े को लेकर पता नहीं क्या रूख अपनाया जाता। सो हमने सोचा कि बेहतर है कि सच्चाई घर पर बता दी जाये और हमने घर पर जाकर सच्चाई अपने पापा मम्मी को बता दी, मन से बहुत बड़ा बोझ उतर चुका था, क्योंकि सारी दुनिया भले गलत समझे पर अगर पालक हमारी भावनाओं को समझ जायें तो हमें दुनिया में और कुछ नहीं चाहिये। केवल इसके लिये ही किनले का यह विज्ञापन अच्छा लगता है, जहाँ पिता अपनी बेटी की गलती को माफ कर, उसे खुश कर देता है और बेटी को धर्मसंकट से निकाल लेता है और पिता के आँख के आँसू सारी कहानी बयां कर ही रहे हैं।

शेविंग के बिना बहुत कुछ खोना पड़ जाता है (Better to Shave)

    आमतौर पर शेविंग करना भी एक शगल होता है, कोई रोज शेविंग करता है और कोई एक दिन छोड़कर, कुछ लोग मंगलवार, गुरूवार और शनिवार को शेविंग नहीं करते हैं । शेविंग करने से चेहरा अच्छा लगने लगता है और अपना आत्मविश्वास भी चरम पर होता है। केवल शेविंग करने से ही कुछ नहीं होता उसके बाद और पहले भी बहुत सारी क्रियाएँ होती हैं, जो शेविंग के कार्यक्रम को सम्पूर्ण करती हैं।
    शेविंग न करने से कुछ बड़े बड़े नुक्सान भी हो जाते हैं, यहाँ एक किस्सा बयान करना जरूरी है, जो कि हमारे सामने हमारे ही कार्यालय में हमने घटित होते देखा हुआ है। एक प्रोग्रामर था जो कि जबरदस्त प्रोग्रामिंग करता था, केवल उनका रहन सहन और बात करने के सलीका उनकी लिये नकारात्मक था, पर कई बार बात करने के बाद हमने सोचा कि चलो इन्हें कुछ सिखाया जा सकता है और हमने ओर हमारे कुछ सहकर्मियों ने उन्हें कपड़े पहनने के सलीकों के बारे में समझाया और उन्होंने सीख भी लिया।
    पर केवल कपड़े पहनने से कुछ नहीं होता, समस्या जस की तस थी क्योंकि वे रोज शेविंग करके नहीं आते थे, कहते थे कि शेविंग अपने से रोज नहीं होती है, केवल आलस्य के प्रमाद में वे रोज बेतरतीब कार्यालय आते थे, उनका काम जबरदस्त था, जब वर्ष के आखिर में रेटिंग की बारी आई तो हर किसी को अच्छे मूल्यांक मिलने की उम्मीद होती है, उनकी टीम को भी उनके अच्छे मूल्यांक की उम्मीद थी, पर जब मूल्यांक उन्हें बताये गये तो वे सामान्य थे जबकि काम में उनकी दक्षता बहुत अच्छी थी, तो उनके प्रबंधन ने उन्हें बोला कि  जाओ पहले अपना चेहरा शीशे में देखकर आओ, तो उसे मजाक लगा। परंतु प्रबंधन ने उन्हें कहा कि यह मजाक नहीं है, तो वह प्रोग्रामर शीशे में चेहरा देखकर आया तो प्रबंधन ने उनसे पूछा कि आपने शीशे में क्या देखा, वह बोला कि कुछ खास नहीं, तब प्रबंधन ने कहा कि आपका सब कुछ ठीक है, एक बात को छोड़कर कि आप आकर्षक नहीं दिखते हैं, आप कभी कभी शेविंग करते हैं, जो कि कंपनी की कार्यशर्तों की प्रमुख शर्तों में एक है, इसलिये आपको साधारण मूल्यांक दिया गया है।
   उस प्रोग्रामर को बाद में शेविंग का महत्व पता लगा और उसे शेविंग न करने का बहुत बड़ा जुर्माना भी अपने कैरियर के एक वर्ष में अच्छे मूल्यांक न मिलने के रूप में सहना पड़ा।
This post is a part of #WillYouShave activity at BlogAdda in association with Gillette
उस प्रोग्रामर ने तत्काल ही फ्लिपकार्ट से शेविंग किट के रूप में कुछ चीजें मँगवा लीं।

बेटेलाल के साथ छुट्टियों का जादुई अहसास (Magic of my kid on vacations)

    बच्चों केसाथ छुट्टियों पर जाना ही बेहद सुकूनभरा अहसास होता है, और बच्चे छुट्टियों कोअपनी शैतानी और असीमित ऊर्जा से छुट्टियों को यादगार बना देते हैं। बच्चों को कितना भी बोलो पर वे कहीं पर भी और कभी भी चुपचाप नहीं बैठ सकते, पता नहीं उनकी इस असीमित ऊर्जा को स्रोत क्या होता है। बच्चे अपनी मस्ती से छुट्टियों में जादू भर देते हैं और ये यादें हमेशा अंतर्मन में ऐसे रहती हैं कि अभी ही उन्होंने मस्ती की हो। बच्चे वे सब कर लेते हैं, जो हम बड़े झिझक के कारण नहीं कर पाते हैं।
    मैंने कुछ दिनों के लिये छुट्टियों पर गोवा जाने का कार्यक्रम बनाया था, तो हमारे बेटेलाल ने पहले ही अपनी सूचि बनाना शुरू कर दी थी, कि गोवा से क्या क्या लाना है और अपने दोस्तों के साथ मिलकर नेट पर ढ़ूंढ़ते थे कि कहाँ कहाँ घूमना है, कहाँ खाना अच्छा है और कैसे घूमना है। पूरे प्लेन में केवल यही उत्साहीलाल लग रहे थे, कि जैसे गोवा केवल इनके घूमने के लिये ही बनाया हो, और बाकी सब तो झक मारने जा रहे हैं। बेटेलाल की छुट्टियों का उत्साह देखते ही बनता था। मुझसे कैमरे से फोटो खींचना, वीडियो बनाना सब सीख लिया था।
Calangute beach Goa
Evening Snaks at Marriott Goa
Fort Aguada in Goa

 

Goa Marriott Swimming pull
Harsh at Marriott Room Goa

 

on the wall of Marriott of Goa
    गोवा हम रिसॉर्ट में पहुँचे तो वहाँ के स्वागत को देखकर ही अचंभित थे, और जब हमें गोवा की वाईन के बारे में जानकारी दी जा रही थी तो एक बंदा ट्रे में बीयर लेकर आया तो सबसे पहले बीयर हाथ में लेकर चीयर्स करने लगे कि मैं भी बड़ों की कोल्डड्रिंक पियूंगा, तो बेयरे ने कहा कि आप के लिये दूसरी बोतल है आप यह वाली मत लें, तब जाकर हमारी साँसों में साँस आई।
    जब हमें कमरा दिखाया जा रहा था, तो कहने लगे कि हम यहीं रहते हैं, यहाँ कितना अच्छा लग रहा है, तरणताल में पड़े रहो और समुँदर का नजारा देखते रहो, और बेटेलाल कोई भी ट्यूब लेकर तरणताल में मौज करने के लिये उतर पड़ते, हम बाहर से ही देखते रहते तो एक दिन बोले अब अंदर आकर तो देखो कितना मजा आता है, हम तरणताल में उतरे तो वाकई अनुभव मजेदार था।
    अगले दिन समुद्रतट पर घूमने गये थे, तो बेटेलाल बहुत उत्साहित थे, हालांकि मुँबई में रहने के दौरान कई बार समुद्रतट के मजे ले चुके थे, पर हमें बोले कि गोवा की तो बात ही कुछ और है, और कपड़े उतार कर निकर में ही रेत और पानी के मध्य मस्ती के आलम को जबरदस्त माहौल बनाया और कुछ ही देर में अपने ही हमउम्र बच्चों के साथ वहाँ मस्ती का आनंद उठाने लगे। हमने कभी ऐसी मस्ती का माहौल नहीं देखा था, बेटेलाल हमसे उनके साथ आने की जिद करने लगे तो हम भी उनकी मस्ती में सारोबार हो, रेत और समुँदर के पानी में डूब लिये ।
    बेटेलाल को तो बस हर जगह कैसे मजे लें, इसमें विशेषज्ञता हासिल है। और उनकी इसी मस्ती से भारी पल भी मस्ती के रंग में रंग जाते हैं। यह यात्रा और अनुभव क्लबमहिन्द्रा के टैडी
ट्रैवलॉग
के लिये लिखा गया है।

दोस्तों के साथ दोस्तों में विशेषण के साथ बात किये बने आत्मीयता नहीं आती (Communication between friends is important for friendship)

    दोस्तों के साथ कॉलेज के दिनों के बिताये दिन कुछ अलग ही होते हैं, कोई किसी की बात का बुरा नहीं मानता और फिर बाद में भले ही कोई कितना बड़ा आदमी बन जाये पर कॉलेज के दिनों के साथियों से तो पुराने अंदाज और पुराने तरीके से ही बात की जाती है। कुछ लोग बदल जाते हैं और वे लोग दोस्त कहलाने के लायक नहीं होते, उनसे हाथभर की दूरी बनाये रखे जाना चाहिये कि जिससे वक्त पड़ने पर उनको गले लगाने की जगह, लप्पड़ या लात रसीद की जा सके। जिससे उनको उनका पूरा खानदान याद आ जाये ।
    जब भी बातें करते हैं तो माँ बहन और गद्दी के विशेषणों के बिना बात ही नहीं होती है, पर दोस्तों से बात करने का मजा भी तब ही है और जब तक विशेषण न हो, लगता ही नहीं कि पक्के दोस्त हैं, यकीन मानिये जितनी ज्यादी नंगाई दोस्तों के साथ हो, उतनी ही पक्की दोस्ती होती है। फुल ऑन देसी हिन्दी भासा में पता नहीं कहाँ कहाँ के किस्से कहानी कहते थे। और पता नहीं कभी मालवी भाषा तो कभी निमाड़ी भाषा और कभी भोपाली जुमलों का इस्तेमाल विशेषण के रूप में किया जाता, उन सबमें विशेष रस आता था, आज भी उन्हीं दोस्तों के साथ उन विशेषणों के द्वारा विशेष रस का आनंद लिया जाता है, बस अब अंतराल कम नहीं बहुत कम हो गया है।
    भोपाली विशेषणों में तो आनंद ही कुछ और है, कई बार तो प्योर भोपाली विशेषणों के लिये आज भी पुराने घनिष्ठ दोस्तों को फोन लगाकर पान खिलवाकर वे विशेषण सुनने के आनंद ही कुछ और होते हैं, एक हमारे मित्र थे वे तो साली, भाभी और पता नहीं कहाँ कहाँ के रिश्तों के साथ रस लेकर किस्से कहानियों को जोड़ देते थे। आज भी कई बार कहीं कोई अपना कॉलेजियाना यार मिल जाता है तो पता नहीं कहाँ से पुराने जुमले जुबान पर से फिसल पड़ते हैं, और पुराने दिनों की यादें वीडियो बनकर नंगी आँखों में उभर आती है, सारी की सारी वीडियो फिल्म बनकर सामने हमारी मुख गंगा से बह निकलती है। और वीडियो भी देसी जबान में बोला जाता है तो आज भी हम लोग हँस के चार हो जाते हैं।
    जीवन के इन चार दिनों में वैसे ही रिश्तों की बागडोर सँभालना मुश्किल होता है और अगर जीवन में कहीं न कहीं हलकट अंग्रेजी भाषा में कहें चीप न बनें तो आप जीवन के आनंद में सारोबार हो ही नहीं सकते । आत्मीयता भी तभी आती है, जब दोस्तों के बीच कोई दुराव छुपाव नहीं हो, बस दोस्ती के बीच में कुछ और न लाया जाये और अपने दोस्त के लिये हमेशा एक आवाज पर खड़ा हो जाया जाये तो इससे बेहतरीन बात और कोई हो ही नहीं सकती है।

अब आप नहीं बोलोगे तो मोंटू बोलेगा (Ab Montu Bolega)

सीन 1 – सब्जीमंडी में
    सुबह का सुहाना दिन शुरू ही हुआ था, और हम सब्जी लेने पहँच गये सब्जीमंडी, वहाँ जाकर सुबह सुबह हरी हरी ताजी सब्जियाँ देखकर मन प्रसन्न हो गया, सब्जी वाले बोरों में से सब्जियाँ निकाल रहे थे, और साथ ही उनकी फालतू की बची हुई डंडियाँ अपने ठेले के पास फेंकते जा रहे थे, हमने कहा भई ये कचरा ऐसे क्यों फेंक रहे हो, तो जवाब मिला कि और क्या करें, फिर ऐसे ही कचरे को कचरा साफ करने वाला ठेले में भरकर ले जायेगा, एकदम हममें मोंटू की आत्मा घुस गई, क्योंकि सामान्यत: हम कुछ भी कहने से बचते हैं, हमने कहा पता है तुम लोगों की इसी आदत के कारण लोग मॉल में सब्जी खरीदने जाते हैं, सब्जीमंडी जाना बंद कर दिया है, लोगों को सब्जीमंडी आना पसंद नहीं है क्योंकि तुम लोग ही इसे स्वच्छ नहीं रखते हो, क्या तुम लोग इस अतिरिक्त कचरे को ठीक ढ़ंग से ठिकाने नहीं लगा सकते हो, जिससे कि लोग वापिस से सब्जीमंडी में आना शुरू कर दें, क्यों नहीं आप लोग अपने पास एक बड़ा बंद ढक्कन का कचरे का डिब्बा नहीं रखते हैं, जिससे गंदगी तो कम से कम अपने पैर नहीं पसारेगी और लोगों को स्वच्छता मिलेगी, जिससे लोग सब्जीमंडी में आना शुरू हो जायेंगे, आपका भी धंधा अच्छा चलेगा और लोगों को भी फायदा होगा, उन्हें बात जँची और जब हम अगले सप्ताह सब्जीमंडी में गये तो कहीं भी गंदगी नहीं मिली, और देखा कि लोग भी अब धीरे धीरे सब्जीमंडी की ओर आने लगे हैं । तो देखा मोंटू के बोलने का कमाल !!
सीन – 2 – ट्रेन में
    काफी दिनों बाद में किसी लंबी यात्रा पर निकला। रात का समय था, लंबा सुहाना सफर शुरू ही हुआ था, कि रात्रीभोजन का समय हो चुका था, लोग अपने साथ लाया खाना या फिर पेंट्री से मँगाया गया खाना आनंदमय तरीके से खा रहे थे, मैंने सोचा कि यह संपूर्ण सामाजिक दृश्य है, किसी कूपे में कोई मिन्नत कर करके अपना खाना किसी और को भी खिला रहा है, तो कोई शांत बैठा खा रहा है और किसी कूपे में सब खाना खा रहे हैं, परंतु किसी को किसी से कोई वास्ता ही नहीं है, पर ट्रेन में बैठे हरेक व्यक्ति में एक समानता है, सब कचरा खिड़की से बाहर फेंककर हमारे भारत को अस्वच्छ कर रहे हैं, तभी मेरे अंदर मोंटू की आत्मा घुस आयी और लोगों से कहा कि आप खाना खाकर भारत को अस्वच्छ क्यों कर रहे हैं, तो लोगों का जवाब था कि उन्हें या तो पता ही नहीं है कि कचरे का करना क्या है और अगर पता भी है तो आलस के मारे कोई कचरे के डब्बे तक जाना नहीं चाहते, मैंने पूछा कि क्या आप घर पर भी जहाँ खा रहे होते हैं तो पास की खिड़की से बचा हुआ खाना ऐसे ही फेंक देते हैं, लोग वाकई समझ रहे थे और कचरे के डब्बे की ओर बड़ रहे थे।
    मोंटू स्ट्रेप्सिल का एक कैम्पेन है जिसके लिये यह पोस्ट लिखी गई है, मोंटू हमारे भीतर के अच्छे आदमी को बोलने को कहा गया है, कहीं भी कुछ गलत होते देखें तो एकदम से मोंटू #AbMontuBolega बन जायें, चुप न रहें। http://www.abmontubolega.com/ पर इस कैम्पेन के बारे में ज्यादा जानकारी ले सकते हैं, आप मोंटू के इस कैम्पेन में Strepsils के Facebook और Twitter पेज पर भी अधिक जानकारी ले सकते हैं।

स्पर्श की संवेदनशीलता (BringBackTheTouch)

    पहले हम लोग एक साथ बड़ा परिवार होता था, पर अब आजकल किसी न किसी कारण से परिवार छोटे होने शुरू हो गये हैं, पहले परिवार में माता पिता का भी एक अहम रोल होता था, परंतु आजकल हम लोग अलग छोटे परिवार होते हैं, और अपनी छोटी छोटी बातों पर ही झगड़ पड़ते हैं, पर पहले परिवार एक साथ रहने पर समझदारी से सारी बातों का निराकरण हो जाता था, छोटे झगड़े बड़ा रूप नहीं लेते थे।
    केशव और कला एक ऐसे ही जोड़े की कहानी है, जब तक वे संयुक्त परिवार के साथ रहे, तब तक जादुई तरीके से उनका जीवन सुखमय था, वे आपस में अंतर्मन तक जुड़े हुए थे। परंतु केशव को अच्छे कैरियर के लिये भारत से दूर विदेशी धरती पर जाना पड़ा, केशव और कला दोनों ही बहुत खुश थे, आखिरकार भारत से बाहर जाने का हर भारतीय दंपत्ति का सपना होता है, जो उनके लिये साकार हो गया था।
    यह पहली बार था जब वे संयुक्त परिवार से एकल परिवार में होकर रहने का अनुभव करने जा रहे थे, पहले पहल दोनों को बहुत मजा आया, परंतु जैसे जैसे दिन निकलते गये, केशव की व्यस्तता बड़ती गई, और कला घर में अकेले गुमसुम सी रहने लगी, केशव भले ही शाम को घर पर होता था, पर हमेशा ही काम में व्यस्त और यही आलम सुबह का भी था। ना ढंग से नाश्ता करना और ना ही भोजन, कला भी क्या बोलती, कई बार बोलने की कोशिश की परंतु, कुछ न कुछ कला को हमेशा बोलने से रोक लेता और कला रोज की भांति अपने में सिमटना शुरू हो जाती।
    हर चीज को किसी एक बिंदु तक ही सहन किया जा सकता है, वैसे ही कला का एकांत था, वह दिन कला और केशव के लिये मानो परीक्षा की घड़ी बनकर आया था, कला केशव के ऑफिस से आते ही उस पर टूट पड़ी, बिफर पड़ी, आखिर मेरे लिये समय कब है, क्या मैं यहाँ केवल और केवल कठपुतली बनकर रहने आई हूँ, मैं भी इंसान हूँ मुझे भी तवज्जो चाहिये, मुझे भी तुमसे बात करने के लिये तुम चाहिये, इस खुली हुई दुनिया में मैं अपने आप को कैद पाती हूँ और घुटन महसूस करती हूँ। केशव कला की बातों को बुत के माफिक खड़ा सुनता रहा, और उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, आखिरकार कला का एक एक शब्द सच था, ना उसके पास बात करने का समय था और ना ही कला को कला की बातें महसूस करने के लिये वक्त था।


    कला केशव के सामने फफक फफक कर रो रही थी, केशव धीमे धीमे कला के नजदीक गया और कला को अपनी बाँहों में भरकर गालों से गालों को सटाकर कह रहा था, बस कला मुझे समझ आ गया है कि मैं कहाँ गलत हूँ । अब आज से मेरा समय तुम्हारा हुआ, केशव के स्पर्श से कला का गुस्सा और अकेलापन क्षण भर में काफूर हो गया, स्पर्श के स्पंदन को कला और केशव दोनों ही महसूस कर रहे थे, कला और केशव दोनों ने आगे से अपना समय आपस में बिताने का निश्चय किया।

    ठंड में स्पर्श को बेहतरीन बनाने के लिये पैराशूट का एडवांस बॉडी लोशन बटर स्मूथ वाला उपयोग कीजिये, अमेजन पर यह ऑनलाईन उपलब्ध है ।
    यह कहानी #BringBackTheTouch http://www.pblskin.com/ के लिये हमने लिखी है । स्पर्श को आपस में महसूस करिये, जीवन में नई ऊर्जा मिलेगी।
इस वीडियो में निम्रत और पराम्ब्रता को स्पर्श की संवेदनशीलता को दर्शाते हुए देखिये, आपको स्पर्श के महत्वत्ता पता चलेगी – Watch the video to witness Nimrat and Parambrata #BringBackTheTouch.