यह बात में कई सालों से सोच रहा हूँ कि हमारा मन क्यों अशांत होता है जब कोई अपना हमसे रुठ जाता है। या कोई अपना बीमार होता है या उसे कोई परेशानी होती है।
हमें कोई परेशानी नहीं होती है परंतु फ़िर भी मन अशांत रहता है किसी कार्य में मन नहीं लगता है, स्वस्थ्य होते हुए भी शरीर अस्वस्थ्य जैसा लगने लगता है, दिल तो बैठ ही जाता है और किसी अनहोनी की आशंका से हमेशा धाड़ धाड़ हथौड़ा बजता रहता है।
हमारी कार्य करने की क्षमता अपने आप खत्म हो जाती है, भूख लगनी बंद हो जाती है, नींद नहीं आती है, सिर भारी रहने लगता है, उल्टी जैसा होता है और भी पता नहीं क्या क्या, सभी नहीं लिख पाऊँगा।
प्यार किसी अपने से हो यह जरुरी नहीं, जहाँ आत्मिक जुड़ाव होता है वहाँ पर भी यही होता है, वो आत्मिक जुड़ाव किसी इंसान से भी हो सकता है, किसी भौतिकवादी वस्तु से भी हो सकता है।
जिससे हम आत्मिक रुप से जुड़े होते हैं, जिससे हम सच्चा प्यार करते हैं, जिसे हम खुश देखना चाहते हैं, जो हमारी रग रग में बसा होता है, जिसे हमारा रोम रोम पुकारता है। यह सब उसके लिये होता है, क्योंकि कहीं न कहीं हमें कुछ खोने का डर होता है।
और जैसे ही वह डर खत्म हो जाता है, सब अपने आप ठीक हो जाता है, कार्य करने की क्षमता आ जाती है जोश के साथ कार्य करने लगते हैं, जोर से भूख लगने लगती है, गहरी नींद आती है।
आपके साथ भी ऐसा होता है क्या …..