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क्यों हमारा मन अशांत होता है जब कोई अपना हमसे रुठ जाता है… एक विश्लेषण… क्यों हमारी कार्य क्षमता अपने आप खत्म हो जाती है…

    यह बात में कई सालों से सोच रहा हूँ कि हमारा मन क्यों अशांत होता है जब कोई अपना हमसे रुठ जाता है। या कोई अपना बीमार होता है या उसे कोई परेशानी होती है।

    हमें कोई परेशानी नहीं होती है परंतु फ़िर भी मन अशांत रहता है किसी कार्य में मन नहीं लगता है, स्वस्थ्य होते हुए भी शरीर अस्वस्थ्य जैसा लगने लगता है, दिल तो बैठ ही जाता है और किसी अनहोनी की आशंका से हमेशा धाड़ धाड़ हथौड़ा बजता रहता है।

    हमारी कार्य करने की क्षमता अपने आप खत्म हो जाती है, भूख लगनी बंद हो जाती है, नींद नहीं आती है, सिर भारी रहने लगता है, उल्टी जैसा होता है और भी पता नहीं क्या क्या, सभी नहीं लिख पाऊँगा।

    प्यार किसी अपने से हो यह जरुरी नहीं, जहाँ आत्मिक जुड़ाव होता है वहाँ पर भी यही होता है, वो आत्मिक जुड़ाव किसी इंसान से भी हो सकता है, किसी भौतिकवादी वस्तु से भी हो सकता है।

    जिससे हम आत्मिक रुप से जुड़े होते हैं, जिससे हम सच्चा प्यार करते हैं, जिसे हम खुश देखना चाहते हैं, जो हमारी रग रग में बसा होता है, जिसे हमारा रोम रोम पुकारता है। यह सब उसके लिये होता है, क्योंकि कहीं न कहीं हमें कुछ खोने का डर होता है।

    और जैसे ही वह डर खत्म हो जाता है, सब अपने आप ठीक हो जाता है, कार्य करने की क्षमता आ जाती है जोश के साथ कार्य करने लगते हैं, जोर से भूख लगने लगती है, गहरी नींद आती है।

आपके साथ भी ऐसा होता है क्या …..

हाँ हम भी इन्सान हैं, अपनी कमजोरियों को सुनना हमें भी अच्छा नहीं लगता बुरा लगता है

हाँ हम भी इंसान हैं भले ही किसी से भी कितना भी प्यार करें पर बुरा तो लगता है भले ही वह बोले हमें या दुनिया का कोई ओर व्यक्ति।

कोई भी अपनी कमजोरियों को सुनना पसंद नहीं करता है और अपनी कमजोरियों को सब छुपाते हैं मैं कोई भगवान तो नहीं हूँ जो अपनी कमजोरियों के सामने आने पर असहज महसूस न करुँ। गुस्सा आना तो स्वाभाविक है, और ऐसे कितने लोग होंगे जो ऐसी परिस्थिती में अपने ऊपर काबू रख पाते होंगे। शायद कोई नहीं।

बढ़ती महत्वाकांक्षाएँ रिश्तों में दरारें भी ला सकती हैं और अपनापन खत्म भी कर सकती हैं, इंसान को अपनी इच्छाएँ सीमित ही रखनी चाहिये कि अगर कोई इच्छा अगर पूरी भी न हो तो ज्यादा दुख न हो।

हमने तो अपने जीवन के शुरुआत से कभी भी अपनी इच्छाओं की अभिव्यक्ति ही नहीं की, जो मिलता गया बाबा महाकाल का आशीर्वाद से होता गया। और आज भी केवल उतनी ही चीजों की जरुरत महसूस होती हैं, जो कि जिंदा रहने के लिये बहुत जरुरी होती हैं। क्योंकि विलासिता का जीवन न हमें रास आया और भगवान न करे कि हमें विलासिता देखनी भी पड़े।

सभी बुराईयों की शुरुआत की लकीर विलासितापूर्ण जीवन से ही शुरु होती है, जब इंसान की आँखों पर पट्टी बँध जाती है, और वह केवल और केवल अंधे होकर भागता रहता है, जो कि उसका है ही नहीं, केवल क्षणिक सुख के लिये।

न साथ कुछ लाये हैं न लेकर जायेंगे, खाली हाथ आये थे, खाली हाथ जाना है, फ़िर भी इस नश्वर संपत्ति का मोह, वो भी इतना अधिक नहीं होना चाहिये, अपने मन की इस गंदगी को अपने मन के खोह में ही छिपाकर रखना चाहिये, ऐसी खोह में जिसे कोई देख न सके।

केवल अपने पास इतना रखना चाहिये कि अपनी जिंदगी आराम से निकल जाये, ज्यादा मोह भी बुराई की जड़ है। हमेशा अपनी हद में रहना चाहिये, जिससे आप को पता रहे कि आप किसी का मन नहीं दुखा रहे हैं, और अपनी मर्यादा की सीमा का उल्लंघन भी नहीं कर रहे हैं।

क्या खोया क्या पाया अपनी अभी तक की जिंदगी में…. अपना खुद का निजी हिसाब किताब..

आज ऐसे ही अपनी बीती हुई जिंदगी का मतलब निजी हिसाब किताब कर रहे थे। तो हमने पाया कि बहुत कुछ हमने खोया है और बहुत कुछ पाया है।

और शायद जो खोया है अब हमें मिल भी नहीं सकता है और जो हमने पाया है कभी भी हमसे छिन सकता है या खो सकता है, शायद यह सभी के साथ होता है।

जो खोया है वह है हमने अपनों के करीब रहने का सुख, खुद के लिये समय और परिवार के लिये नितांत निजी समय, पर अपने खुद में इतना उलझ गये हैं कि ये सब बेमानी हो गया है। और जो मिला वो है अपने आप की दुनिया, नेट की दुनिया, जिसे हम कभी भी खो सकते हैं। वैसे तो इस नश्वर शरीर का भी कोई भरोसा नहीं है, परंतु प्यार तो हो ही जाता है।

इसीलिये तो भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है इस दुनिया को “दुखालयम”, मतलब कि दुखों का घर। इस भौतिक दुनिया में दुखों के बिना जीवन संभव नहीं है।

खैर हमने खोया भगवान की भक्ति को भी, पर फ़िर भी उनके प्यारे भक्तों के मधुर धुनों और बातों को सुनते रहते हैं, नेट से शायद हमने सबसे अच्छी चीज यही पायी है। हम भले ही कितनी दूर हों पर भगवान की मधुर बातें उनके चर्चाकारों द्वारा की गई हमारे पास सभी जगह उपलब्ध हैं।

शायद बाहरी तौर पर केवल इतना ही प्रकट कर सकते हैं, क्योंकि और ज्यादा हम बताना नहीं चाहते हैं। खोते तो सभी हैं और पाते भी सभी हैं, हम कोई अनोखे थोड़े ही हैं, ये तो बस माया का खेल है। अगर कुछ बताना चाहें अपने खोये पाये के बारे में तो अवश्य टिप्पणी में बतायें।

दिल और मन का विश्लेषण, आपके ऊपर क्या हावी रहता है, दिल या मन। दिल तो पागल है दिल दीवाना है / मन तो पागल है मन दीवाना है… (An Analysis of your Internal thoughts..)

    दिल जो केवल वही बात मानने को तैयार होता है जो कि व्यक्ति आत्मिक रुप से ग्रहण कर सकता हो, और उससे किसी को दुख नहीं पहुंचता हो, जो दिल चाहता है वह अगर उसे नहीं मिलता हो तो भी वह संतुष्ट रहता है कि चलो शायद अपना नहीं था।

     मन जो केवल वही बात मानता है जिसे मन चाहता है, जो कि व्यक्ति बाहरी रुप से ग्रहण करता है, फ़िर उससे किसी को कितनी भी चोट लगती हो उससे मन को कोई फ़र्क नहीं पड़ता है, अगर चाही वस्तु मन को नहीं मिली तो हमें बहुत बुरा लगता है और असंतुष्ट असहज रहता है। मन जो चाहता है हासिल करना चाहता है, फ़िर चाहे वह बुरा हो या भला, इससे मन को कोई फ़र्क नहीं पड़ता है।

    जब हम कहते हैं कि अपने दिल के बात बताऊँ तो वह एक सच्ची बात होती है, परंतु जब हम मन की बात करते हैं तो वह हमारे ऊपरी आवरण के अहम को संतुष्ट को करने वाली बात करते हैं।

    अगर दिल की बात पूरी नहीं होती है तो हमें बुरा नहीं लगता है, कि चलो कोई बात नहीं कहकर अपना दिल बहला लेते हैं। परंतु अगर मन की बात पूरी नहीं होती है तो गहरी टीस हमेशा मन के किसी कोने में पलती रहती है और धीरे धीरे अहम के रुप में परिवर्तित होती जाती है।

    दिल और मन कहने को हम एक रुप में ही कहते हैं, परंतु दोनों के कर्म और सोच बिल्कुल अलग हैं, दिल अगर साधु प्रकृति का है तो मन दुष्ट प्रकृति का है।

    दिल और मन का विश्लेषण कैसा लगा, आपके ऊपर क्या हावी रहता है, दिल से बताईयेगा मन से नहीं।

    तभी तो मैं कहता हूँ कि दिल तो पागल है दिल दीवाना है / मन तो पागल है मन दीवाना है…

चैन्नई में भी कम लूट नहीं है.. लुटने वाला मिलना चाहिये..

जैसा कि आमतौर पर सभी शहरों में होती है लूट वैसी ही लूट चैन्नई में भी है, अब अभी समझ नहीं पा रहे हैं कि लूट कम है कि ज्यादा है, हमें तो ये पता है कि लूट, लूट ही होती है, चाहे वह कम हो या ज्यादा।
यहाँ पर ऑटो मीटर से चलाने का रिवाज ही नहीं है, हमें अपने गंतव्य तक जाने के लिये रोज ही मगजमारी करना पड़ती है, रोज इन ऑटो वालों से उलझना पड़ता है, जितनी दूरी का ये लोग यहाँ ८० रुपये मांगते हैं, उतनी दूर मुंबई में मीटर से मात्र १५-१८ रुपये में जाया जा सकता है।
अब और देखते हैं कि कौन कौन लूट मचा रहा है, क्योंकि टैक्सी वालों के भाव भी बहुत ज्यादा हैं, प्रीपैड टैक्सी अगर २८० रुपये लेती है तो बाहर अगर आप टैक्सी से मोलभाव करने जायेंगे तो वो ८५० रुपये से कम में नहीं मानेगा।
चारों तरह लूट मची है, लूट सके तो लूट !!!!

कमजोर ह्रदय वाले न देखें अगले साल (२०१०) की छुट्टियों का कैलेन्डर देखकर सदमा लग सकता है…..

    आज सुबह हम अगले साल की छुट्टियों का जायजा ले रहे थे, वह भी राज्यवार क्योंकि हमें हर राज्य की छुट्टियों पर और बैंकों के अवकाश और हड़ताल की तारीखों का ध्यान रखना होता है, तो हमने पाया कि अगले साल २०१० में तकरीबन ७-८ छुट्टियाँ ऐसी हैं जो सप्ताहांत पर आ रही हैं, तो इतनी छुट्टियाँ तो कम हो गईं साल २०१० में, और हमें भी बहुत सदमा लगा क्योंकि हमारा ह्रदय भी बहुत कमजोर है।

   पर हाँ कुछ छुट्टियाँ ऐसी भी हैं जो लंबा सप्ताहांत देंगी जैसे कि होली, दीपावली पर केवल कुछ से हमें कहाँ संतोष होने वाला है। 🙂

    अब बात करें २००९ की तो यह साल छुट्टिधारियों के लिये बहुत अच्छा रहा है, क्योंकि लगभग हर त्यौहार या तो सोमवार या शुक्रवार को पड़ा था तो एक लंबा सप्ताहांत मिल गया था, जैसे कि अब आने वाली २५ दिसंबर की छुट्टियों को ही ले लीजिये । केवल तीन छुट्टियाँ लीजिये और २५ दिसंबर से ३ जनवरी तक मौज करिये – २५ दिसंबर क्रिसमस, २६,२७ दिसंबर सप्ताहांत, २८ दिसंबर मौहर्रम, २९,३०,३१ की छुट्टी लेना पड़ेगी, १ जनवरी नववर्ष, २,३ जनवरी फ़िर सप्ताहांत, तो पूरे दस दिन के मजे। ले लीजिये इस साल मजे अगले साल तो कोई छुट्टी नहीं है इस तरह की –

   एक नजर २०१० के कुछ मुख्य अवकाशों की ओर जो सप्ताहांत पर पड़ रहे हैं –

त्यौहार दिनांक दिन
मिलाद उन नबी २७ फ़रवरी २०१० शनिवार
मई दिवस १ मई २०१० शनिवार
स्वतंत्रता दिवस १५ अगस्त २०१० रविवार
गणेश चतुर्थी ११ सितंबर २०१० शनिवार
गांधी जयंती २ अक्टूबर २०१० शनिवार
दशहरा १७ अक्टूबर २०१० रविवार
गुरुनानक जयंती २१ नवंबर २०१० रविवार
क्रिसमस २५ दिसंबर २०१० शनिवार

ग्लोबल वार्मिंग पर केवल नेपाल चिंतित है क्या… कुछ हमारा कर्त्तव्य है या नहीं… क्या हम अकेले कुछ कर सकते है….?

ग्लोबल वार्मिंग पर नेपाल के केबिनेट ने १७२०० फ़ीट ऊँचाई पर माऊँट एवरेस्ट काला पत्थर पर बैठक कर दुनिया का ध्यान अपनी और खींचा, दुनिया की सर्वोच्च शिखर चोटी के आधार शिविर के पास स्यांगबोचे में एक संवाददाता सम्मेलन में घोषणा पढ़ी, जिसके मुताबिक आपिनामा-गौरीशंकर क्षेत्र को नया संरक्षण क्षेत्र घोषित किया गया है। वहाँ पर उन्होंने संकेत दिया कि जलवायु परिवर्तन का मुद्दा न केवल पर्वतीय देशों और समुद्र तटों पर स्थित देशों से जुड़ा है बल्कि आम वैश्विक समस्या है।
नेपाल के प्रधानमंत्री ने कहा कि “हम दुनिया को यह संदेश देने आये हैं कि जलवायु परिवर्तन हिमालयी पट्टी और निचले इलाकों के १.३ अरब लोगों को प्रभावित करने जा रहा है।
हिमालय के ग्लेशियर कुछ दशकों में गायब हो सकते हैं और इससे एशिया के बड़े हिस्से को सूखे का सामना करना पड़ सकता है, जहाँ लाखों लोग हिमालय से निकलने वाली नदियों के ऊपर निर्भर करते हैं।
पर हम क्या कर रहे हैं, क्या हमें ग्लोबल वार्मिंग की तनिक भी चिंता है, लोग दशकों से बोल रहे हैं कि मुंबई डूब जायेगी पर इसके लिये किसी ने क्या कभी कुछ किया नहीं… किसी की इच्छाशक्ति ही नहीं है। क्या हम अकेले कुछ कर सकते हैं जिससे ग्लोबल वार्मिंग को रोकने में कुछ मदद मिले…. ।

Sigmatel चाईना मोबाईल में हिन्दी सपोर्ट उपलब्ध है।

आजकल मैं मोबाईल हैण्डसेट ढूँढ रहा हूँ जिसमें अच्छी क्षमता वाल वेब ब्राऊजर हो, हिन्दी का समर्थन हो, जावा का पूर्ण समर्थन हो, पर सीडीएमए (cdma) हो। कल ही मैं अपने एक मित्र से बात कर रहा था तो उन्होंने अपना खुद का एक हैंडसेट दिखाया जिसमें सब कुछ उपलब्ध था पर वह जीएसएम (gsm) था और चाईना का मोबाईल था सिग्माटेल। उन्होंने तकरीबन ८ माह पहले खरीदा था और बहुत ही बढ़िया चल रहा है। २ जीएसएम की सिम एक साथ उपयोग कर सकते हैं और उन्होंने खरीदा था मात्र ३००० रुपयों में।

 

बैटरी भी अच्छी चल रही है। बस हिन्दी टाईप नहीं कर सकते, मैंने अपना ब्लाग खोलकर देखा तो बहुत ही अच्छी तरह से स्क्रीन पर प्रदर्शित हुआ। बस फ़िर हमने सोचा कि चलो चाईना सीडीएमए को खोजा जाये और निकल पड़े पालिका बाजार में वहाँ सीडीएमए का एकमात्र हैंडसेट था मेलबोन (melbon) का| जो कि सीडीएमए व जीएसएम दोनों को एक साथ समर्थन करता है मतलब आप दोनों की सिम एक साथ उपयोग कर सकते हैं। पर उसमें वो चाईनीज खूबियाँ नजर नहीं आईं जिसके लिये चाईनिज मोबाईल इतने प्रसिद्ध हो रहे हैं जैसे कि अच्छी क्वालिटी का कैमरा, ४-५ स्पीकर, टच स्क्रीन, बडी स्क्रीन और भी बहुत कुछ। भाव बताया गया ५८०० रुपये, इतना दाम सुनकर हमें उस दुकान पर रुका नहीं गया और हम पालिका बाजार से निकल लिये।

 

इंडियाटाईम्स शापिंग यह मोबाईल ५५०० रुपये में उपलब्ध करवा रही है और इस चाईनीज मेलबोन मोबाईल पर एक साल की वारंटी कंपनी दे रही है जो कि चाईना मोबाईल बाजार के इतिहास में पहली बार है।

 

मोबाईल हैंडसेट की ढूँढ जारी है।

इन.कोम (in.com) ओनलाईन गाने सुनने की बेहतरीन जगह (Ultimate site for to hear online songs)

वैसे तो यह साईट बहुत उपयोगी है, परंतु मैं इस साईट का उपयोग गाना सुनने के लिये करता हूँ। जब कभी जिस भी गाना सुनने की इच्छा होती है, in.com पर जाकर खोज के ऊपर म्यूजिक टैब दबाकर अपना मनपसंदीदा गाना लिखकर सर्च पर क्लिक कर दें, सामने उस गाने से संबंधित परिणाम होंगे। बस प्ले बटन दबाकर गाने का आनंद लीजिये। इसका बफ़रिंग बहुत ही बढ़िया है इसलिये ऐसा लगता है कि गाना लोकल ड्राईव से ही बज रहा है।

 

वैसे यहाँ कुछ हिन्दी रेडियो स्टेशन्स भी उपलब्ध हैं और आप अपनी पसंद की एलबम बनाकर उसे सुरक्षित भी कर सकते हैं।

ये कैसी शादी के बाद की आजादी, जो कुछ करना है वो पर्दे की पीछे करें, सार्वजनिक न करें।

अभी परसों ही में ट्रेन में यात्रा कर रहा था तो जिस केबिन में मेरी सीट थी, उस केबिन में एक परिवार जो कि नागपुर से सफ़र कर रहा था और उनका एक ६ साल का बेटा भी था। साइड लोअर व साइड अपर में एक नवविवाहित दंपत्ति थे। जो कि सबके सामने बड़ी ही अभद्र हरकतें कर रहे थे, खुलेआम एक दूसरे को चूम रहे थे और अश्लीलता की हरकतें कर रहे थे। परंतु बोले कौन ! क्योंकि कोई भी बोलना नहीं चाहता, मैं भी नहीं। क्योंकि इन लोगों को समझाने का कोई मतलब ही नहीं है।

जो परिवार मेरे पास बैठा था वो भी कनखियों से ये सब देख रहा था और बच्चे को अपने में बिजी रख रहे थे ताकि वो उनकी हरकतों पर ध्यान न दें परंतु वो बच्चा तो बड़ी गौर से वही सब देख रहा था और कुल मिलाकर वातावरण प्रदूषित हो रहा था। उस परिवार के सज्जन मुझसे बोले ये लोग क्यों थर्ड एसी में आये यही सब करना था तो सेकंड एसी में जाते कम से कम वहाँ पर्दा रहता है जो भी करते ये लोग उस पर्दे के पीछे कम से कम हमें तो दर्शक नहीं बनना पड़ता वो भी जबरदस्ती।

इस परिस्थिती ने वाकई यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगर आप शादी के बाद घूमने (हनीमून) जा रहे हो तो बाहर नैतिकता से रहें और जो कुछ करना है वो पर्दे की पीछे करें, सार्वजनिक न करें।