के कूप में उन्हें डाल दिया, इससे वे पुन: जीवन धारण करके उन देवताओं को पीड़ित करने लगे। तब फ़िर विष्णु और ब्रह्मा ने गाय और बछ्ड़ा बनकर त्रिपुर में प्रवेश करके उस रसकूपाऽमृत को पी लिया, तदन्तर शिव ने मध्याह्न में त्रिपुर-दहन किया।
हंसद्वारम़् – पौराणिक प्रसिद्धि के अनुसार वर्षा ऋतु में हंस मानसरोवर जाने के लिये क्रौञ्च रन्ध्र में से होकर जाया करता हैं। इसी कारण इसे ’हंस द्वार’ कहा जाता है।
भृगुपतियशोवर्त्म – परशुराम भृगु ने कुल में प्रमुख पुरुष माना जाता है, इसलिये इसे भृगुपति या भृगद्वह कहा जाता है। क्रौञ्चारन्ध्र को परशुराम के यश का मार्ग कहा जाता है। इस विषय में दो कथाएँ प्रचलित हैं –
क्रौञ्चरन्ध्रम़् – महाभारत में इसे मैनाक पर्वत का पुत्र बताया गया है। इसकी भौगोलिक स्थिती अस्पष्ट है।
तिर्यगायामशोभी – क्रौञ्च पर्वत का छिद्र छोटा है और मेघ बड़ा है; अत: उस छिद्र में से मेघ नहीं निकल पायेगा। उसमें से निकलने के लिये उसके तिरछा होकर जाने की कल्पना कवि ने विष्णु के वामन अवतार से की है। तिरछा होने पर उसका आकार लम्बा हो जायेगा, जिससे वह विष्णु के फ़ैले हुए पैर के समान प्रतीत होगा।