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मुंबई की बस के सफ़र के कुछ क्षण… बेस्ट के ड्राईवर का गुस्सा.. बाबा..

     घर से आज ९.२५ पर निकल पाया तो लगा कि शायद अपनी बस आज छूट जायेगी, सोचा कि अब तो अगली बस ९.५० की ही मिलेगी, परंतु हाईवे पर पहुँचते ही अपनी तो बाँछें खिल गई, क्योंकि जबरदस्त ट्रॉफ़िक था, कोई गाड़ी अच्छे से किसी से टकरा गई थी। और तीन तीन बस ट्रॉफ़िक में फ़ँसी हुई थीं जिसमें सबसे पीछे वाली बस अपनी थी, फ़िर से ड्राईवर से मुस्कराहट का आदान प्रदान हुआ और उन्होंने आगे से ही चढ़ने का इशारा किया परंतु सभ्यता से हम बस के पीछे वाले दरवाजे से चढ़ लिये।

    बस में आज भीड़ कुछ कम थी, और ठीक ठाक तरीके से खड़े होने की जगह मिल गयी थी, पर थोड़ी देर में ही भीड़ का दबाब बड़ने लगा और जाने पहचाने चेहरे नजर आने लगे, अपना मोबाईल निकाला और निम्बज्ज में लॉगिन किया कि ट्विटर पर नया क्या है, गूगल चैट, याहू चैट और स्कायपी पर कितने और कौन कौन ऑनलाईन हैं, कुछ चैटिंग पर काम की बातें भी कर ली गईं, कुछ देर बाद ही हमें एक सीट मिल गई और हम इत्मिनान से मोबाईल पर ही इकोनोमिक्स टाईम्स पढ़ने लगे।

    बस में भीड़ का दबाब बड़ता ही जा रहा था, दो लाईन से तीन लाईन और एक चौथी लाईन आने जाने वालों की लगी थी, बिल्कुल पैक हो चुकी थी बस.. थोड़ी ही देर में स्टॉप आते जाते और बस यात्रियों को उतारकर और लेकर आगे बढ़ती रहती।

    बस एक स्टॉप पर से निकली और सिग्नल पर खड़ी हो गई, तो कुछ दो लोग पीछे से दौड़ते हुए आये और आगे वाले दरवाजे से चढ़ लिये, तो ड्राईवर बहुत नाराज हुआ, और इन दोनों पर चिल्लाने लगा बोला कि पीछे दरवाजे से चढ़ो, तो दो लोगों में से एक तो उतर गया पर एक आदमी उतरने को तैयार ही नहीं था, और वह गाली गलौच पर उतर आया, तब तक बस थोड़ा आगे निकल चुकी थी, तो बस ड्राईवर ने बस उधर ही रोकी और बस का इंजिन बंद कर दिया और बोला कि जब तक ये आदमी नहीं उतरेगा तब तक बस आगे नहीं जायेगी, ऊफ़्फ़ ये तो उस आदमी ने हद्द ही कर दी बोला कि नहीं उतरुँगा, तब बस में से सभी लोग उस आदमी के लिये चिल्लाने लगे और कुछ टपोरियों वाली भाषा में ही शुरु हो गये। कुछ लोग कहने लगे “लेट हो रहा है”, “गर्मी बहुत हो रही है”, तो इतने में एक लड़की का कमेंट आया कि मुंबई में सारी बसें ए.सी. होनी चाहिये, यहाँ इतनी सड़ी गर्मी होती है। आखिरकार वह आदमी उतरा और बस ड्राईवर ने बस इंजिन चालू किया तब जाकर राहत महसूस हुई।

    रोज ही ऐसा कोई न कोई वाकया हो जाता है। कि बस.. लिखना तो बहुत कुछ है पर बस अब ओर नहीं…

बस स्टॉप पर तीन लड़कियों की बातें

बस स्टॉप पर तीन लड़कियाँ बस के इंतजार में बैठी हुई थीं, सप्ताहांत की खुशी तो थी ही तीनों के चेहरे पर, साथ ही चुहलबाजी भी कर रही थीं।

तभी एक मोटर साईकिल स्टॉप के आगे आकर रुकी और वह लड़का किनारे जाकर रुक गया, हेलमेट उतारा और किसी का इंतजार करने लगा, बाईक भी कोई अच्छी सी ही लग रही थी, पर तभी उन तीनों लड़कियों की आवाज चहकने लगी, एक बोली “देख क्या बाईक है”, दूसरी बोली, “अरे नहीं मोडिफ़ाईड बाईक है, आजकल येइच्च फ़ैशन है, ओरिजिनल का जमाना नहीं है, जो पसंद आये लगा डालो”

सोचने लगा कि लड़कियाँ क्या क्या सोचती हैं, जिस बाईक की ओर लड़कों का ध्यान नहीं जाता वह बाईक लड़कियों की बातों का केन्द्र है।

तभी एक लड़की के मोबाईल पर फ़ोन आ गया, अब इधर की तरफ़ जो बातें सुनाई दे रही थीं, वे इस प्रकार थीं –

“किधर है तू”

“क्या बोलता है”

“अच्छा तू आरेला है मेरे कू लेने को”

तब समझ में आया कि लड़के का फ़ोन है।

“किधर मिलूँ, जिधर तू सिगरेट लेता है, पानी पुरी वाले खड़ेले हैं, अरे मैं उधरीच हूँ रे”

“तू आ न”

तभी एक लड़की की बस आ गई, वह तुरंत दौड़कर सड़क पर गई और बस स्टॉप तक आने का इंतजार करने लगी, जेब से कान कौवे (हैंड़्स फ़्री) निकाले और कान में ठूँस लिये, मुंबई की रफ़्तार में इन कानकौवों का बहुत महत्व है, आधी से ज्यादा मुंबई कानकौवे कान में ठूँसे हुए नजर आते हैं, केवल अपनी दुनिया में मस्त और व्यस्त”

फ़िर वो लड़की जिसका फ़ोन आया था, वह भी बॉय करके चल दी सड़क क्रॉस कर सिगरेट के ठिये पर, जहाँ उसका बॉय फ़्रेंड आने वाला है।

तीसरी लड़की वो भी शायद बस का ही इंतजार कर रही थी, परंतु जैसे ही ये दोनों लड़कियाँ गईं, वो वहाँ से उठकर पैदल ही चल दी, दूसरी तरफ़, समझ नहीं आया कि जब बस पकड़ने आये थे तो दो लड़कियाँ पैदल ही क्यों चली गईं।

वहीं ठिठोली करता हुआ एक समूह खड़ा था जिसमें दो लड़के और दो लड़कियाँ थे, लड़कियों के हाथ में सिगरेट थी और बिल्कुल नशा करने के अंदाज में मस्ती से सिगरेट के कश उड़ा रही थी.. हमारी आधुनिक संस्कृति..

आज घर आते आते बहुत सारी बसों पर एगॉन रेलिगेयर के जीवन बीमा वाले उत्पादों के विज्ञापन देखकर खुशी हुई कि चलो ये तो अच्छा काम हो रहा है।

आखिर इतना बड़ा सरकारी तंत्र रेल्वे कब सुधरेगा..

    गुस्सा होना स्वाभाविक है, जब आपको तत्काल कहीं जाना हो और टिकट न मिले, तो तत्काल का सहारा लेते हैं, रेल्वे ने यह सुविधा आईआरसीटीसी के द्वारा भी दे रखी है, परंतु ८ बजे सुबह जैसे ही तत्काल आरक्षण खुलता है वैसे ही इस वेबसाईट की बैंड बज जाती है, सर्विस अन- अवेलेबल का मैसेज इनकी वेबसाईट पर मुँह चिढ़ाने लगता है।

    कई बार तो बैंक से कई बार पैमेन्ट हो जाने के बाद भी टिकट नहीं मिल पाता है क्योंकि पैमेन्ट गेटवे से वापिस साईट पर आने पर ट्राफ़िक ही इतना होता है कि टिकट हो ही नहीं पाता है, वैसे अगर टिकट नहीं हुआ और बैंक से पैसे कट गये तो १-२ दिन में पैसे वापिस आ जाते हैं, परंतु समस्या यह है कि ऑनलाईन टिकट मिलना बहुत ही मुश्किल होता है।

    सुबह ८ बजे से ८.४५ – ९.०० बजे तक तो वेबसाईट पर इतना ट्राफ़िक होता है कि टिकट तभी हो सकता है जब आपकी किस्मत बुलंद हो। वैसे आज किस्मत हमारी भी बुलंद थी जो टिकट हो गया वरना तो हमेशा से खराब है, इसके लिये पहले भी जाने कितनी बार रेल्वे को कोस चुके हैं।

    करीबन २ महीने पहले से एजेन्टों के लिये व्यवस्था शुरु की गई कि वे लोग जिस दिन तत्काल खुलता है उस दिन ९ बजे से टिकट करवा सकेंगे याने कि सुबह ८ से ९ बजे तक केवल आमजनता ही करवा पायेगी, परंतु इनकी इतनी मिलीभगत है कि जब सीजन होता है तब इनके सर्वर ही डाऊन हो जाते हैं, न घर बैठे आप साईट से टिकट कर सकते हैं और न ही टिकट खिड़की से, पर जैसे ही ९ बजते हैं, स्थिती सुधर जाती है, ये सब धांधली नहीं तो और क्या है।

    टिकट खिडकी पर जाकर टिकट करवाना मतलब कि अपने ३-४ घंटे स्वाहा करना। सुबह ४ बजे से लाईन में लगो, तब भी गारंटी नहीं है कि टिकट कन्फ़र्म मिल ही जायेगा, लोग तो रात से ही अपना बिस्तर लेकर टिकट खिड़की पर नंबर के लिये लग जाते हैं, और टिकट खिड़की वाला बाबू अपने मनमर्जी से टिकट करेगा, उसका प्रिंटर बंद है तो परेशानी, उसके पास खुल्ले न हो तो और परेशानी, जब तक कि पहले वाले यात्री को रवाना नहीं करेगा, अगले यात्री की आरक्षण पर्ची नहीं लेगा, और जब तक कि ये सब नाटक होगा, बेचारा अगला यात्री उसको कोसता रहेगा क्योंकि तब तक उसे कन्फ़र्म टिकट नहीं वेटिंग का टिकट मिलेगा।

    क्या इतना बड़ा सरकारी तंत्र रेल्वे अपना आई.टी. इंफ़्रास्ट्रक्चर ठीक नहीं कर सकता है, या उसके जानकारों की कमी है रेल्वे के पास, तो रेल्वे आऊटसोर्स कर ले, कम से कम अच्छी सुविधा तो मिल पायेगी।

जाती है इज्जत तो जाने दो कम से कम भारत की इज्जत लुटने से तो बच जायेगी

    आज सुबह के अखबारों में मुख्य पृष्ठ पर खबर चस्पी हुई है, कि दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी के दौरान ही एक बन रहा पुल गिर गया, और २७ घायल हुए।

    इस भ्रष्टाचारी तंत्र ने भारत की इज्जत के साथ भी समझौता किया और भारत माता की इज्जत लुटने से का पूरा इंतजाम कर रखा है, ऐसे हादसे तो हमारे भारत में होते ही रहते हैं, परंतु अभी ये हादसे केंद्र में हैं, क्योंकि आयोजन अंतर्राष्ट्रीय है, अगर यही हादसा कहीं ओर हुआ होता तो कहीं खबर भी नहीं छपी होती और आम जनता को पता भी नहीं होता।

    हमारे यहाँ के अधिकारी बोल रहे हैं कि ये महज एक हादसा है और कुछ नहीं, बाकी सब ठीक है, पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम के आयोजन में इतनी बड़ी लापरवाही ! शर्मनाक है। हमारे अधिकारी तो भ्रष्ट हैं और ये गिरना गिराना उनके लिये आमबात है, पर उनके कैसे समझायें कि भैया ये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नहीं चलता, एक तो बजट से २० गुना ज्यादा पैसा खर्चा कर दिया ओह माफ़ कीजियेगा मतलब कि खा गये, जो भी पैसा आया वो सब भ्रष्टाचारियों की जेब में चला गया। मतलब कि बजट १ रुपये का था, पर बाद में बजट २० रुपये कर दिया गया और १९.५० रुपये का भ्रष्टाचार किया गया है।

    अब तो स्कॉटलेंड, इंगलैंड, कनाडा, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया ने भी आपत्ति दर्ज करवाना शुरु कर दी है, पर हमारे भारत के सरकारी अधिकारी और प्रशासन सब सोये पड़े हैं, किसी को भारत की इज्जत की फ़िक्र नहीं है, सब के सब अपनी जेब भरकर भारत माता की इज्जत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, अरे खुले आम आम आदमी के जेब से कर के रुप में निकाली गई रकम को भ्रष्टाचारी खा गये वह तो ठीक है, क्योंकि आम भारतीय के लिये यह कोई नई बात नहीं है, परंतु भारत माता की इज्जत को लुटवाने का जो इंतजाम भारत सरकार ने किया है, वह शोचनीय है, क्या हमारे यहाँ के नेताओं और उच्च अधिकारियों का जमीर बिल्कुल मर गया है।

    आस्ट्रेलिया के एक मीडिया चैनल ने तो एक स्टिंग आपरेशन कर यह तक कह दिया है कि किसी भी स्टेडियम में बड़ी मात्रा में विस्फ़ोटक सामग्री भी ले जाई जा सकती है, और ये उन्होंने कर के बता भी दिया है, विस्फ़ोटक सामग्री दिल्ली के बाजार से आराम से खरीदी जा सकती है और चोर बाजार से भी।

    अगर यह आयोजन हो भी गया तो कुछ न कुछ इसी तरह का होता रहेगा और हम भारत और अपनी इज्जत लुटते हुए देखते रहेंगे, और बाद में सरकार सभी अधिकारियों को तमगा लगवा देगी कि सफ़ल आयोजन के लिये अच्छा कार्य किया गया, और जो सरकार अभी कह रही है कि खेलों के आयोजन के बाद भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही करेगी, कुछ भी नहीं होगा। उससे अच्छा तो यह है कि कॉमनवेल्थ खेल संघ सारी तैयारियों का एक बार और जायजा ले और बारीकी से जाँच करे और सारे देशों की एजेंसियों से सहायता ले जो भी इस खेल में हिस्सा ले रहे हैं, अगर कमी पायी जाये तो यह अंतर्राष्ट्रीय आयोजन को रद्द कर दिया जाये।

    हम तो भारत सरकार से विनती ही कर सकते हैं कि क्यों भारत और भारतियों की इज्जत को लुटवाने का इंतजाम किया, अब भी वक्त है या तो खेल संघ से कुछ ओर वक्त ले लो या फ़िर आयोजन रद्द कर दो तो ज्यादा भद्द पिटने से बच जायेगी, घर की बात घर में ही रह जायेगी।

टीपीए क्या होता है, मेडिक्लेम में टीपीए के इंटिमेशन को लेकर नियामक की खामियाँ या उच्च स्तर की मिलीभगत (What is TPA ? Intimation related problem with TPA)

रमेश और टी.पी.ए. के बारे में पहले की पोस्ट यहाँ चटका लगाकर पढ़िये।

टीपीए कौन सा हो, यह जानना भी जरुरी है मेडिक्लेम लेते समय, बीमा नियामक की लगाम भी जरुरी है टीपीए पर (Choose right TPA for Claim Settelment)

इस लेख पर डॉ. महेश सिन्हाजी ने पूछा था कि टीपीए क्या होता है ?
    टीपीए याने कि थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर, जो कि बीमा कंपनियों से संबद्ध रहते हैं, और बीमा दावे से भुगतान तक की प्रक्रिया को निपटाते हैं। जैसे कि अगर किसी सरकारी या गैर सरकारी कंपनी से मेडिक्लेम लिया तो उसके दावे और भुगतान के लिये दो प्रक्रियाएँ हैं –
१. बीमा कंपनी का खुद का टीपीए हो, याने कि आंतरिक टीपीए, बीमा कंपनी खुद ही दावे और भुगतान की प्रक्रिया निपटाये।
२. बीमा कंपनी आईआरडीए से अधिकृत टीपीए को यह कार्य दे दे, जैसे ही मेडिक्लेम लिया तो पॉलिसी में ही टीपीए का नाम और उसके प्रधान कार्यालय का नाम पता आता है, साथ ही कैशलेस कार्ड के पीछे टीपीए का स्थानीय कार्यालय का पता, फ़ोन नं. और फ़ेक्स की जानकारी होती है।
    यानि कि जिस बीमा कंपनी से आपने मेडिक्लेम लिया उसकी जिम्मेदार पॉलिसी आपको देने के बाद खत्म और वह चाहकर भी बीमित की मदद नहीं कर सकती।
    आईआरडीए के अंतर्जाल पर टीपीए की सूची भी मिलती है, ज्यादा जानकारी के लिये आप टीपीए सूची पर चटका लगाकर देख सकते हैं।
 
अब पिछली पोस्ट से आगे –
    रमेश ने फ़िर सप्ताह भर इंतजार करने के बाद वापिस से टीपीए को फ़ोन लगाया कि हमारे स्वास्थ्य बीमा भुगतान का क्या हुआ और हमें चैक कब तक मिलेगा। टीपीए के कार्यालय से जबाब मिला कि आपने बीमार होने पर हमें याने कि टीपीए को इसकी जानकारी (Intimation) नहीं दी थी, इसलिये आपका दावा रिजेक्ट कर दिया गया है। तब टीपीए को बताया गया कि हमने आपके दिये हुए फ़ैक्स नंबर पर २४ घंटों के अंदर ही इंटीमेशन फ़ैक्स कर दी थी और बाद में आपके कार्यालय में इंटीमेशन की एक प्रति स्पीडपोस्ट से भी भेजी है, साथ ही सरकारी बीमा कंपनी को भी इंटीमेशन दी है।
    पर टीपीए कार्यालय से जबाब मिला कि हमें आपकी तरफ़ से कोई फ़ैक्स नहीं मिला और न ही कोई स्पीड पोस्ट, तो रमेश ने उन्हें बताया कि हमारे पास फ़ैक्स की ओके रिपोर्ट है, जो कि वापिस से आपको फ़ैक्स कर रहे हैं, तो पता चला कि टीपीए कार्यालय ने वह फ़ैक्स की ओके रिपोर्ट भी मानने से इंकार कर दिया क्योंकि उस ओके रिपोर्ट पर टीपीए कार्यालय का फ़ैक्स नंबर प्रिंट नहीं था, तो रमेश ने उनसे कहा कि अभी जो ओके रिपोर्ट की ओके रिपोर्ट आयी है उसमें भी आपका फ़ैक्स नंबर नहीं है। अब टीपीए ने बोला कि आप साबित कीजिये कि आपने हमें इंटीमेशन दी थी, तो रमेश ने अपनी बीमा कंपनी में बात की तो वहाँ से बताया गया कि उन्होंने भी इंटीमेशन फ़ैक्स की है और कभी भी टीपीए को किये गये फ़ैक्स की ओके रिपोर्ट में कभी भी उनका फ़ैक्स नंबर नहीं आता है,टीपीए ने फ़ैक्स मशीन में ही कोई गड़बड़ी कर रखी है, और साथ ही जो प्रति रमेश ने बीमा कंपनी को भेजी थी वो उनके आवक रजिस्टर में चढ़ी हुई है, और साथ ही बीमा कंपनी ने भी स्पीड पोस्ट से टीपीए को जानकारी (Intimation) भेजी है, जो कि उनके जावक रजिस्टर में चढ़ी हुई है।
    जब टीपीए कार्यालय को यह जानकारी दी गई तो वहाँ से कहा गया कि इंटिमेशन की कॉपी जो कि बीमा कंपनी ने प्राप्त की थी, उनके सील और साईन के साथ वाली इंटीमेशन की कॉपी फ़ैक्स करिये और एक फ़ोटोकॉपी स्पीडपोस्ट के द्वारा भेजिये। फ़ैक्स करने के बाद टीपीए कार्यालय से फ़ोन करके पक्का कर लिया कि फ़ैक्स मिल गया है और बीमा कंपनी द्वारा भी अधिकारी अधिकृत पत्र उनको भेजा जा रहा है।
    इसी बीच रमेश ने टीपीए को इंटिमेशन के बारे में टीपीए और आईआरडीए से जानकारी ली तो बहुत सी खामियाँ नजर आईं।
 
    टीपीए को इंटिमेशन – टीपीए के स्थानीय कार्यालय आपातकाल की स्थिती में २४ घंटों के अंदर इंटिमेशन फ़ैक्स करना होता है और फ़िर फ़ोन पर इस बाबद पक्का कर लिया जाये कि उन्हें इंटिमेशन मिल गई है। अगर पहले से ही किसी चिकित्सा को प्लॉन किया गया है तो भर्ती करने के पहले टीपीए को इंटिमेशन देकर स्वीकृति ले ली जाये।
 
    खामियाँ – जब रमेश ने टीपीए से पूछा कि हमने आपको इंटिमेशन दी पर हमें इसकी प्राप्ति रसीद नहीं मिली और फ़ैक्स की ओके रिपोर्ट पर भी आपका फ़ैक्स नंबर नहीं है, दो महीने बाद जब हम भुगतान के लिये दावा करेंगे तो आप इंटिमेशन न करने को लेकर हमारा केस रिजेक्ट कर सकते हैं और इंटिमेशन दिया है इसे साबित करने को कह सकते हैं। जब उनसे इस बाबत जबाब मांगा गया तो कार्यालय का जबाब था कि प्राप्ति की रसीद का कोई प्रावधान नहीं है। फ़िर रमेश ने उनसे टीपीए में उनसे संबद्ध उच्च अधिकारी का फ़ोन नंबर मांगा ताकि इस स्थिती को स्पष्ट किया जा सके परंतु टीपीए कार्यालय ने किसी भी उच्च अधिकारी का नंबर देने से मना कर दिया।
    रमेश ने हैदराबाद स्थित आईआरडीए कार्यालय को फ़ोन किया और उनके अधिकारियों से टीपीए को इंटीमेशन के संबंध में जानकारी चाही गई तो उनके भी हाथ बंधे हुए ही नजर आये, वहाँ से भी यही जबाब मिला कि आपके पास फ़ैक्स की ओके रिपोर्ट और कूरियर या स्पीड पोस्ट की रसीद रखना चाहिये। उन्हें कहा गया कि फ़ैक्स की ओके रिपोर्ट में टीपीए का फ़ैक्स नंबर नहीं आता है, तो आईआरडीए के अधिकारी कुछ भी कहने की स्थिती में नहीं थे। और कूरियर और स्पीडपोस्ट से इंटीमेशन में टीपीए यह कहकर क्लेम रिजेक्ट कर सकता है कि २४ घंटों के अंदर सूचित नहीं किया गया, इस पर भी आईआरडीए के अधिकारी कुछ भी कहने की स्थिती में नहीं थे, बस इतना ही कहा गया कि हम इसमें आपकी कोई सहायता नहीं कर सकते हैं, इसके लिये आपको संबद्ध बीमा लोकापाल से संपर्क करना होगा।
    मेडिक्लेम के लिये बीमा कंपनियाँ इतने रुपये लेती हैं परंतु टीपीए के लिये आईआरडीए का कोई भी दिशा निर्देश साफ़ नहीं है, या तो काफ़ी उच्च स्तर पर मिलीभगत है या फ़िर आईआरडीए और बीमा कंपनियों को यह साफ़ नहीं है कि टीपीए के लिये क्या दिशा निर्देश होना चाहिये। बीमा लोकापाल को या नियामक को टीपीए से संबंधित दिशा निर्देशों पर ध्यान देकर इन कमजोरियों को दूर किया जाना चाहिये।
    यहाँ पर टीपीए है हैरिटेज हैल्थ प्राईवेट लिमिटेड, कोलकाता और बीमा कंपनी है यूनाईटेड इंडिया इंश्योरेन्स।
    अब भी अगर कुछ नहीं होता है तो रमेश इस गंदे सिस्टम से लड़ाई का मन बना चुका है, जिसके तहत पहले वह बीमा लोकापाल, भोपाल में शिकायत दर्ज करवायेगा और फ़िर एक इस संबद्ध में जनहित याचिका।

मेरी जिंदगी के कुछ लम्हे … (मामा का मतलब, दो माँ, बोल अब मैं तेरा क्या करुँ)… My life my experience

रात को घर लौटते समय प्रोफ़ेसर कॉलोनी की सड़क पर घुप्प अँधेरे  में से होकर चले जा रहे थे, और मस्ती करते हुए तीनों निकले जा रहे थे, पतझड़ का मौसम था तो पेड़ों के पत्ते सड़क पर बिछे हुए थे, और तीनों के स्पोर्ट्स शूज से उन पत्तों के कुचलने की आवाजों से वह वीरान कॉलोनी और वह सन्नाटा उनकी गप्पों के साथ अजीब सी कर्कश ध्वनि पैदा कर रहा था।

इतने में ही पुलिया के पास थोड़ी लाईट नजर आई, और वहाँ पर एक बुलेट खड़ी थी और तीन चार लोग बैठे थे, सिगरेट के धुएँ के छल्ले दूर से ही नजर आ रहे थे, लगा कि लौंडे लपाटे हैं जो प्रोफ़ेसर कॉलोनी के वीरान सन्नाटे में बीयर और सिगरेट पीने आये हैं, बात सही भी निकली, तीन के हाथ में हेवर्ड्स १०००० बीयर की बोतल थी और चौथे के हाथ में ऐरिस्ट्रोकेट व्हिस्की का अद्धा, पानी की बोतल और गिलास भी।

देखा तो पता चला कि शाहरोज अपने दोस्तों के साथ बैठकर मजा मस्ती कर रहा है, दीपक जो कि उसका खास दोस्त था और भी दो दोस्त… जिन्हें मैं पहचानता नहीं..

जब तक हम उनके पास पहुँचे तब तक सब ठीक था, पर हमारे पास पहुँचते पहुँचते दीपक के चेहरे का रंग बदलने लगा था, उसने तीनों को रोका और पूछा कि “क्यों बे इधर से क्यों आ रहे हो,और किधर जा रहे हो”

तो राकू थोड़ा हड़बड़ाया और बोला “तेरे को इससे मतलब, चल निकल”

अब दीपक खड़ा हुआ और बोला “अबे ओ कॉलेज की नई फ़सल, नाके से पॉलिटेक्निक के पास सुट्टा मार कर आ रहे हो ना ?”

राकू “तो तेरे को क्या ..”

दीपक “और स्साले कमीने तू ही है न जो क…? को छेड़ता है, परेशान करता है”

राकू को देखकर अब तो ऐसा लगा कि जैसे काटो तो खून नहीं..

दीपक “बोल स्साले बोल, अब निकाल आवाज.. तेरी तो मा…..?”

राकू “तेरे को क्या, अपन किसी के साथ भी कुछ करेगा तो क्या स्साले तेरे को जबाब देना पड़ेगा, क्या तूने पूरे गाँव का ठेका ले रखा है”

दीपक “अबे क…? की माँ मेरी बहन है, और तो मैं उसका हुआ मामा, समझा, मतलब समझाऊँ”

राकू के कान से शुन्य सी सांय सांय आवाज आने लगी ऐसा लगा कि कान अपने आप ही एक हजार डिग्री के तापमान के हो गये हों।

दीपक “मामा का मतलब, दो माँ, बोल अब मैं तेरा क्या करुँ”

राकू बेचारा क्या बोलता चुपचाप गर्दन झुकाकर खड़ा रहा ।

दीपक बोला “और सुन राकू अगर आज के बाद  तू उसके आसपास नजर आया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा”

अपुन कुछ बोला नहीं, क्योंकि मुझे पता था कि यह सब चमकाईटिस का ड्रामा है।

शाहरोज खड़ा हुआ और अपुन के पास चलता हुआ आया और आँख मारते हुए बोला “चल निकल, कल मिलते हैं”

कभी कभी अपने दोस्तों को ऐसी चमकाईटिस भी देनी पड़ती है, नहीं तो स्साले बर्बाद हो जायेंगे, इन मायाओं के चक्कर में पड़कर…

मेरी जिंदगी के कुछ लम्हे…(पिटने दे साले को, बहुत लड़कियों को छेड़ने का कीड़ा है उसमें)… My life my experience

रुपेश दौड़ा दौड़ा आया और बोला “तुम दोनों यहाँ गुमटी पर बैठकर धुआँ उड़ा रहे हो और वहाँ इरशाद और उसके दोस्त प्रिंसीपल रुम के सामने अवनीश लम्बू को पटक पटक के मार रहे हैं, चलो जल्दी चलो, वो इरशाद तुमको देखकर ही उसे मारना बंद कर देगा।”

कान्हा बोला “चलो भाई उस इरशाद की तो ऐसी तैसी कर देते हैं”

अपुन बोला “नहीं, पिटने दे साले को, बहुत लड़कियों को छेड़ने का कीड़ा है उसमें, अच्छा है ठुकाई से निकल जायेगा।”

कान्हा झिड़ककर बोला “अबे कौन से जन्म का बदला निकाल रहा है, चल स्साले लम्बू को बचाते हैं, नहीं तो फ़ालतू में उसकी पसलियों की फ़िक्सिंग अपने को ही करवानी पड़ेगी”

अपुन बोला “तो ठीक है न उधर दोस्ती निभायेंगे। पन अभी बिल्कुल नहीं जाने का, मतलब नहीं जाने का”

कान्हा वो आधी सिगरेट एक ही कश में खींच गया। और लकड़ी के डंडे को पकड़कर खड़ा हो गया था, वही लकड़ी उस गुमटी का आधार थी, शायद उसे सिगरेट चढ़ गयी थी।

“स्साले तुझको कितनी बार समझाया कि एक कश में इतनी मत पिया कर, पन मानने का नहीं, करेगा तो अपने मन की।” अपुन बोला

रुपेश वहीं खड़ा खड़ा हम दोनों के चलने का इंतजार कर रहा था, पन अपुन भी गया नहीं। अपुन का उसूल तोड़ा था लम्बू, लड़कियों के पीछे भागने का नहीं, लड़कियों पर एक रूपया खर्चा नहीं करने का, लड़कियाँ पैसा खर्च करे तो ठीक, नहीं तो इस माया के चक्कर में बिल्कुल नहीं पड़ने का

खैर रुपेश का चेहरा देखकर अब रहा नहीं गया और अपुन बोला “चल, देखते हैं, इरशाद ने लम्बू की कितनी ठुकाई की है, और सुन अगर कोई कसर होगी तो अपुन पूरी कर देगा !” “आखिर लड़की का मामला है और लड़की के मामले में चुपचाप मार खा लेना चाहिये और समझदार दोस्तों को उस लफ़ड़े से दूर ही रहना चाहिये”

रुपेश की तरफ़ देखकर अपुन बोला “स्साले, लड़कियों का मामला होने पर पुलिस भी बहुत मारती है, और लोग भी दौड़ा दौड़ा कर मारते हैं”

जब तक हम तीनों कॉलेज के शटर वाले मैन गेट पर पहुँचते तब तक इरशाद एन्ड पार्टी लम्बू की ठुकाई करके निकल चुकी थी, और लम्बू वहीं पानी की टंकी पर अपना मुँह धो रहा था, अपुन को आते ही भड़ककर बोला “स्साले कैसे दोस्त हो, जब जरुरत हो तब काम नहीं आते”

अपुन बोला “देख लम्बू, मैं तेरे को पहले ही समझाया था कि झगड़ा बड़ेगा, बच के रहना, पन तेरे को तो मजनूँ का भूत चढ़ा था, तो जा साले पिट और बन मजनूँ”

लम्बू बोला “अबे ये ही दोस्ती है अपनी या इरशाद की दोस्ती निभा रहा था”

कान्हा बोला “ऐ चल ना ज्यादा नौटंकी मत कर अब तेरे को पहले ही बोला था कि लफ़ड़ा होएगा पन तेरी ठस बुद्धि में कुछ आये तो न !”, “चल गुमटी पर चाय पीते हैं, और इस बार तो पूरी छोटी फ़ोर स्क्वेयर को एक ही कश में खींच डालूँगा, पूरे नशे की ऐसी तैसी कर दी”

संतुष्टि कब किसे कहाँ हुई है, कोशिश एक खोज की ? (Satisfaction…)

    संतुष्टि बड़ी गजब की चीज है, किस को कितने में मिलती है इसका कोई मापद्ण्ड नहीं है और मजे की बात यह की इंसान को हरेक चीज में संतुष्टि चाहिये चाहे वह खाने की चीज हो या उपयोग करने की। इंसान जीवन भर अपनी इंद्रियों को संतुष्ट करने मॆं लगा रहता है। इंद्रियाँ शैतानी रुप लेकर इंसान से अपनी तृप्ती पूर्ण करती रहती हैं।

    किसी को केवल पेट भरने लायक अन्न मिल जाये तो ही संतुष्टि मिल जाती है, और प्रसन्न रहता है, पर इंसान की इंद्रियाँ बड़ी ही शक्तिशाली होती जा रही हैं, और केवल पेट भरने से आजकल कुछ नहीं होता, घर, गाड़ी, बैंक बैलेंस सब चाहिये, क्यों ? केवल इंद्रियों की संतुष्टि के लिये, अगर यह सब होगा तो गर्व नामक तरल पदार्थ की अनुभूति होती है ? पर इस सब में इंसान अपने भक्ति की संतुष्टि को भुल जाता है।

    वैसे भी संतुष्टि इंसान की इंद्रियों की ही देन है और उसकी सोच पर ही निर्भर करता है कि उसकी इंद्रियाँ उस पदार्थ विशेष की कितनी मात्रा मिलने पर तृप्त होती हैं, उस इंसान की जीवन संरचना का भी इंद्रियों पर विशेष प्रभाव होता है। केवल इंद्रियों की तृप्ति याने संतुष्टि के लिये इंसान बुरे कार्यों के लिए उद्यत होता है, अगर इंद्रियाँ तृप्त होंगी तो बुरे कार्य भी नहीं होंगे।

    इंसान को जीने के लिये चाहिये क्या दो वक्त की रोटी और तन ढ़कने के लिये कपड़ा, और भगवान ने हर इंसान के हाथों को इतनी ताकत प्रदान की है कि वह अपने लिये खुद यह सब कमा सके। परंतु इंसान ने अपनी ग्रंथियों के पदार्थों की संतुष्टि के लिये दूसरों की रोटी पर भी अधिकार करना शुरु कर दिया, अब हमें केवल रोटी की चिंता नहीं होती, हमें चिंता होती है ऐश्वर्य की, पर इंसान की ग्रंथियाँ यह नहीं समझ रहीं कि ऐश्वर्य पाने के चक्कर में वह कितने लोगों की रोटी ग्रन्थी की संतुष्टि से दूर कर रहा है।

    कहाँ ले जायेगी इंद्रियों की तृप्ति के लिये यह संतुष्टि हमें अपने जीवन में यह तो हम भी नहीं जानते ? परंतु इतना तो है कि अगर सही दिशा में सोचा जाये तो कभी न कभी तो खोज के निष्कर्ष पर पहुँचेगें। खोज जारी है अनवरत है… वर्षों से… हम भी उसका एक छोटा सा हिस्सा हैं…

टीपीए कौन सा हो, यह जानना भी जरुरी है मेडिक्लेम लेते समय, बीमा नियामक की लगाम भी जरुरी है टीपीए पर (Choose right TPA for Claim Settelment)

    रमेश ने मेडिक्लेम ले लिया और खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित महसूस करने लगा, टीपीए क्या होता है, कौन सा टीपीए होना चाहिये, यह सब न उनको उनके बीमा एजेन्ट ने बताया न उन्होंने जानने की कोशिश की, उन्हें लगा व्यक्तिगत मेडिक्लेम से अच्छा फ़ैमिली फ़्लोटर मेडिक्लेम पॉलिसी अच्छी है।

    रमेश का सोचना बिल्कुल सही है कि फ़ैमिली फ़्लोटर मेडिक्लेम पॉलिसी अच्छी है, क्योंकि उस बीमा राशि का उपयोग परिवार का कोई भी व्यक्ति कर सकता है। और फ़ैमिली फ़्लोटर में कैशलेस स्कीम ली जिसके लिये उन्होंने कुछ ज्यादा प्रीमियम भी दिया, कि जब भी आपात स्थिती आयेगी तो कम से कम उन्हें अपनी जेब से भुगतान नहीं करना होगा।

    एक दिन रमेश को कुछ समस्या हुई, और उन्हें आपात स्थिती मॆं अस्पताल में भर्ती करना पड़ा, रमेश ने अपने टीपीए को २४ घंटे के अंदर ही खबर कर दी परंतु उनके टीपीए ने कैशलेस का फ़ायदा देने से इंकार कर दिया, वह भी बिना कारण बताये। रमेश को कहा गया कि आप अभी अपने खर्चे पर इलाज करवाईये और बाद में क्लेम करिये, तब भुगतान कर दिया जायेगा। रमेश विकट परिस्थिती में फ़ँस चुका था, क्योंकि ये टीपीए  वाला झंझट उसे पता ही नहीं था, और उसके पास उतना नगद भी नहीं था, पर जैसे तैसे करके उसने इलाज के लिये नकद जुटा लिया और इलाज करवा लिया।

    पॉलिसी के नियमानुसार उन्होंने निर्धारित समय में सारे कागजात उन्होंने टीपीए को भेज दिये और अपने क्लेम के भुगतान का इंतजार करने लगे, पर उनकी राह शायद उतनी आसान नहीं थी। टीपीए से क्लेम का भुगतान १५ से ४५ दिन में हो जाना चाहिये जो कि आई.आर.डी.ए. का नियम है, परंतु बहुत ही कम क्लेम में ऐसा होता है। साधारणतया: टीपीए द्वारा बहुत परेशान किया जाता है या फ़िर क्लेम का भूगतान देने से मना कर दिया जाता है या फ़िर क्लेम भुगतान में बहुत सारी चीजों का भुगतान रोक दिया जाता है।

    रमेश को कागजात जमा करवाये लगभग डेढ़ महीना गुजर गया परंतु क्लेम का भुगतान नहीं आया और न ही टीपीए की तरफ़ से कोई जानकारी का पत्र कि उन्हें कोई जानकारी चाहिये या देरी होने की वजह । रमेश ने अपने एजेन्ट से बात की तो उसने भी हाथ खड़े कर दिये, क्योंकि एजेन्ट के हाथ में भी कुछ नहीं था, क्लेम तो टीपीए को पास करना था। रमेश ने टीपीए के फ़ोन नंबर हासिल किये और संपर्क साधा, तो पता चला कि फ़ाईल अभी डॉक्टर के पास से ही नहीं आयी है, उन्हें एक सप्ताह का इंतजार करने को कहा गया, और बताया गया कि अगर उन्हें किसी कागजात की जरुरत होगी तो बता दिया जायेगा।

    टी.पी.ए. से ४५ दिन बाद रमेश को यह जबाब मिला है, उनकी मुश्किलों का दौर अभी खत्म नहीं हुआ है, परंतु उन्होंने इस विषय में बीमा कंपनी के प्रबंधक से बात की, तो प्रबंधक ने उन्हें बताया कि व्यक्तिगत मेडिक्लेम में इनहाऊस टीपीए होता है तो क्लेम का भुगतान १५-३० दिन में ही हो जाता है और चूँकि यह लोकल होता है तो बीमाधारक बीमा कंपनी में जाकर पूछताछ कर सकता है और प्रगति की जानकारी ले सकता है।

    आईआरडीए ने बहुत सारी कंपनियों को टीपीए का लाईसेंस दिये हैं और आप अपना बीमा करवाने से पहले यह जान लें कि कौन सी टीपीए अच्छा है जो कि क्लेम का भुगतान समय पर करता है, तो आप अपना टीपीए खुद भी चुन सकते हैं, पर अच्छा यही होगा कि बीमा कंपनी और बीमा प्लॉन चुनते समय  देख लें अगर इनहाऊस टीपीए है तो बहुत ही अच्छा है, इनहाऊस टीपीए वाली कुछ कंपनियाँ आईसीआईसीआई लोम्बार्ड, स्टार हेल्थकेयर इत्यादि। जिससे आप मेडिक्लेम से सुरक्षित भी रहें और क्लेम का भुगतान भी समय पर मिले।

    अब अगली बार जब भी मेडिक्लेम का नवीनीकरण करवायें तब इस संदर्भ में पूरी जानकारी प्राप्त करें और उचित बीमा कंपनी से उचित बीमा लें, कौन सा बीमा लेना है यह सबकी अपनी अपनी परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

    वैसे सरकारी बीमा कंपनियाँ टीपीए का विरोध कर रही हैं, क्योंकि बीमा कंपनियाँ केवल बीमा जारी करने तक की प्रक्रिया में ही शामिल होती हैं, कब क्लेम किया गया और कब उसका भुगतान कर दिया गया यह उनको पता बाद में चलता है जब टीपीए से क्लेम भुगतान का पत्र बीमा कंपनियों के पास पहुँचता है। ये टीपीए कंपनियाँ, इसके पीछे बहुत बड़ा खेल चला रही हैं, और बीमा कंपनियों को करोड़ों का चूना भी लगा रही हैं, मेडिक्लेम बीमा के क्षेत्र में बीमा कंपनियाँ इसी कारण से ३००% की हानि में हैं, बीमा नियामकों को इस तरफ़ ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है, नहीं तो जल्दी ही बीमा कंपनियाँ मेडिक्लेम करने से कतराने लगेंगी।

१५ अगस्त के संदर्भ में – वन्दे मातरम और स्वतंत्रता दिवस के सही मायने क्या हम नई पीढ़ी तक पहुँचा पा रहे हैं ? [On the occasion of 15th August….]

    आज स्वतंत्रता दिवस है, भारत को आजाद हुए आज ६३ वर्ष हो चुके हैं, पर महत्वपूर्ण और ज्वलंत प्रश्न यह है कि क्या हम वन्दे मातरम और स्वतंत्रता दिवस के सही मायने नई पीढ़ी तक पहुँचा पा रहे हैं ?

    जब बच्चे स्कूल में १५ अगस्त को स्कूल में भारत का तिरंगा नहीं फ़हरायेंगे और साथ में देशभक्ति से ओतप्रोत गीत और माहौल नहीं मिलेगा तो कैसे उम्मीद करेंगे कि ये भारत की नई पीढ़ी तक देशभक्ति का संदेश पहुँच रहा है। जब तक स्कूल की रैली में झंडे पकड़कर “वन्दे मातरम” “भारत माता की जय” नहीं बोलेंगे, तब तक कैसे ये हमारी नई पीढ़ी स्वतंत्रता और वन्दे मातरम  के सही मायने कैसे सीख पायेगी।

    मुझे याद है कि मैंने जब से होश सम्हाला है तब से कॉलेज से बाहर निकलने के बाद भी जब भी मौका मिलता तो हमेशा परेड ग्राऊँड पर जाकर स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राष्ट्र के सम्मान में समारोह में शरीक होता रहा हूँ।

    क्या उम्मीद रखें हम अपनी नई पौध से, किस देशभक्ति की उम्मीद रखें हम इस नई पीढ़ी से, जबकि आज के स्वतंत्रता के मायने नई पीढ़ी के लिये “इंडिपेन्डेन्स डे” की ५० % से ७०‍ % तक की सेल होती है। सारे अखबारों में पन्ने “इंडिपेन्डेन्स डे सेल” से अटे पड़े हैं, परंतु कहीं भी यह नहीं मिलेगा कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने कैसे ये स्वतंत्रता पाई और कैसे वे लोग ये स्वतंत्र आकाश में रह पा रहे हैं।

    जिस तेजी से हमारी नई पौध वापिस से पाश्चात्य संस्कृति की ओर अग्रसर है तो उनसे देशभक्ति की उम्मीद लगाना गलत है। जिस तेजी से पाश्चात्य देशों से आ रही वस्तुएँ हमारी दैनिक उपभोग में आती जा रही हैं और हम हमारी दैनिक उपभोग की वस्तुओं को भूलते जा रहे हैं। जो बच्चे बचपन से जैसा परिवार में देखते आते हैं, उनके संस्कार भी वैसे ही होते हैं।

    आईये हम अपनी नई पीढ़ी को देशभक्ति के सही मायने समझायें और आजादी की कीमत बतायें, नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब हमारी नई पौध की ऊँगली हमारे ऊपर होगी। उन्हें पता होना चाहिये कि शहीद चंद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली क्यों मारी थी, क्या जज्बा था उनका खुद को गोली मारने की पीछे…., उन्हें पता होना चाहिये कि महात्मा गांधी और सरदार पटेल का क्या योगदान था, नई पौध को आजादी के लिये योगदान देने वालों के बारे में पता होना चाहिये ।

जय हिंद !!!

ये गीत सुनिये मेरा पसंदीदा – “दिल दिल हिन्दोस्तां” फ़िल्म “यादों के मौसम”