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जब बेटा अपने माता पिता को अपने साथ गाँव से शहर ले जाने की जिद करता है, तो पिता के शब्द अपने बेटे के लिये – डॉ. राम कुमार त्रिपाठी कृत “शिखंडी का युद्ध” कहानी “वानप्रस्थ”

पिछले दिनों जब हम उज्जैन प्रवास पर थे तब हमने डॉ. राम कुमार त्रिपाठी कृत “शिखंडी का युद्ध” पढ़ी थी जिसकी एक कहानी “वानप्रस्थ” से ये कुछ शब्दजाल बहुत ही अच्छे लगे। और मन को छू गये।
जब बेटा अपने माता पिता को अपने साथ गाँव से शहर ले जाने की जिद करता है, तो पिता के शब्द अपने बेटे के लिये –
थोड़ी देर बाद माँ के आंसू कम हुए तो बोली, ’बेटे, तुम्हें कैसे समझाऊँ अपने भीतर की बात। तुम्हारे पिताजी ही तुम्हें अच्छी तरह समझा सकते हैं। उनकी बातें तो पूरी तरह से मैं नहीं समझती, लेकिन इतनी जरुर समझती हूँ कि तुमसे वे बहुत ज्यादा प्यार करते हैं, मुझ से कहीं अधिक क्योंकि वे हमेशा मुझे समझाते रहते हैं कि
“अगर हम लोगों का लगाया हुआ वृक्ष आज इतना बड़ा हो गया है कि अपना फ़ल खिलाकर अनेकों को तृप्त कर सकता है, अपनी छाया में अनेकों को विश्राम दे सकता है, तो क्या हम लोगों को उस पेड़ से चिपके रहना चाहिये ? कदापि नहीं ? उचित तो यही होगा कि हर क्षण हर घड़ी उसकी रक्षा के लिए तत्पर रहना चाहिये ताकि उसकी डाली पर किसी दुष्ट की कुल्हाड़ी न चले और उसकी छाया घट न जाए। हम लोग तो अब चौथेपन में आ चुके हैं। अभी का जीवन वानप्रस्थ की तरह व्यतीत करना चाहिए था, अत: जंगल न सही घर ही में रहना है, किंतु एकाकी। अपने लगाये पेड़ से दूर। उसकी छाया से दूर ताकि जीवन के अंतिम क्षणों में उसकी हल्की छाया भी कल्पतरु की छाया लगे, हल्का स्पर्श भी अमृत-सा लगे और उसकी तना का रंचमात्र आलिंगन भी अनंत ब्रह्मांड का आलिंगन बन जाये।”

उज्जैन की प्रसिद्ध चीजों के बारे में, हमारे मित्र “बल्लू” का एस.एम.एस

हमारे प्रिय मित्र ने एक एस.एम.एस. भेजा था जिसमें उज्जैन की वो लगभग सारी चीजें हैं जिससे हरेक उज्जैनवासी का लगाव हो न हो पर हमारे मित्र मंडल का लगाव बहुत है आप भी पढ़िये उज्जैन की प्रसिद्ध चीजों के बारे में, और यकीन मानिये अगर आप उज्जैन में रहते हैं और नीचे लिखी एक भी चीज को नहीं जानते हैं तो निकल पड़ें, और ढूँढें, और सूचि को पूरा करें –

हमारे मित्र बल्लू का एस.एम.एस. बल्लू हम मित्र को प्यार से बोलते हैं ।

वो महाकालेश्वर का मंदिर
वो टेकड़ी की चढ़ाई
वो भोलागुरु के गुलाबजामुन
वो टॉप एन टाऊन की आईसक्रीम
वो क्षीरसागर स्टेडियम के मैच
वो विक्रमवाटिका की हरियाली
वो जैन की कचौरी
वो पेटिस लक्ष्मी बेकरी वाला
वो नरेन्द्र टाकीज की मूवीज
वो श्री की फ़ेक्टरी
वो शहनाई की शादियाँ
वो गंगा बेकरी के पेस्ट्री
वो बस स्टैंड का पोहा
वो मद्रासी का डोसा
वो आनंद की चाट
वो ओम विलास का समोसा
वो इस्कॉन की रौनक
वो सर्राफ़े की गलियाँ
वो ऐरोड्रम का सन्नाटा
वो राजकुमार की दाल
वो मामा की दुकान का पान
वो बल्लू की दोस्ती
यही सब तो है हमारे उज्जैन की शान

भारत के विभिन्न भागों में कार ड्राइविंग :-

मनीष हाड़ा उवाच


भारत के विभिन्न भागों में कार ड्राइविंग :-

* एक हाथ स्टियरिंग व्हील पर,दूसरा हार्न पर.

यू.पी.

* एक हाथ स्टियरिंग व्हील पर, दूसरा खिड़की से बाहर.

पंजाब

* एक हाथ स्टियरिंग व्हील पर, दूसरा अखबार पर,पाँव एक्सीलेटर पर.

तमिलनाडु

* दोनों हाथ स्टियरिंग व्हील पर,आँखें बंद, दोनों पाँव ब्रेक पर.

बिहार

* दोनों हाथ इशारे करते हवा में, दोनों पाँव एक्सीलेटर पर, सिर पिछली सीट के सवार से बात करने के लिए एक सौ अस्सी के अंश पर घूमा हुआ.

हरियाणा

* एक घुटना स्टियरिंग व्हील पर,एक हाथ पेसेंजर सीट पर बैठी गर्ल फ्रेंड की पीठ पर, दूसरा उसके गिरहबान में, दूसरा पाँव दक्षता से बारी-बारी एक्सीलेटर, क्लच,ब्रेक पर.

इंदौर.

* एक हाथ हार्न पर-वहां नहीं तो खिड़की से बाहर -दूसरा गियर स्टिक पर,एक कान स्टीरियो सुनता,दूसरा मोबाइल सुनता,एक पाँव एक्सीलेटर पर,एक क्लच पर,ब्रेक पर कोई नहीं,दोनों आँखें बाजू में स्कूटी चलाती लड़की पर.

धार में आपका स्वागत है

गूढ़ ज्ञान :- हमारे मित्र का उवाच –

मनीष हाड़ा उवाच (द्वितीय)

गूढ़ ज्ञान :-

* फैसला करूँ या न करूँ, ये फैसला है; फैसला कर न सकूँ, ये नाकामी है.
* बेवकूफ अगर अनगिनत हों तो उनकी ताक़त को कम कर के आंकना नादानी है.
* कृत्रिम बुद्धिमत्ता स्वाभाविक मूर्खता का मुकाबला नहीं कर सकती.
* आपके चारों ओर हाहाकार है,लेकिन आप शांत हैं तो इसका मतलब है कि स्थिति की गंभीरता आपके पल्ले नहीं पड़ी है.
* किसी चीज पर लिखा हो कि एक ही साइज़ सबको फिट आता है तो इसका मतलब है वो किसी को फिट नहीं होगा.
* इतना आसान कोई काम नहीं होता कि उसे बिगाड़ा न जा सके.
* खुद न करना पड़े तो कोई काम नामुमकिन नहीं होता.
* अगर आप कामयाब नहीं होते,तो इस बात के सारे सबूत नष्ट कर देना ही श्रेयस्कर होता है कि आपने कोशिश की थी.
* अगर आप कुशल कार्यकर्ता हैं तो सबसे ज्यादा काम आपके पल्ले पड़ेगा, आप अतिकुशल कार्यकर्ता हैं तो ज्यादा काम से पल्ला झाड़ने की जुगत आप यक़ीनन कर लेंगे.

इसी का नाम दुनिया है : हमारे मित्र का उवाच –

हमारे मित्र हैं, जिनसे वर्षों हो चुके हैं मिले हुए उनके उवाच ( मनीष हाड़ा उवाच J

इसी का नाम दुनिया है :

* कोई दूसरा चमचागिरी करे तो वो जी-हुजूरी है,हम करें तो वो उच्चाधिकारी के लिए सम्मान है.
*
कोई दूसरा टिप न दे तो वो कंजूस है,हम टिप न दें तो हम पैसे की कीमत समझने वाले हैं.
*
कोई दूसरा “आउट” हो जाये तो वो पी के उधम मचाने वाला गैर-जिम्मेदार शख्स है,उन्ही हालत मैं हम पार्टी की जान हैं.
*
कोई दूसरा कहीं लेट पहुंचे तो वो वक़्त का पाबन्द नहीं, हम वक़्त के गुलाम थोड़े ही हैं.
*
कोई दूसरा मुंह फाड़े तो उसे अपनी जुबान पर काबू नहीं है,हम ऐसा करें तो इसलिए क्योंकि हम मुक्त संवाद में आस्था रखते हैं.
*
कोई दूसरा नुक्ताचीनी करे तो वो खुन्दकी है,हम ऐसा करें तो हम पारखी निगाह रखते हैं.
*
कोई दूसरा कोई नुकसान करे तो वो गैर-जिम्मेदार है,उसे कमाना नहीं पड़ता न, वही नुकसान हम करें तो आखिर गलती इंसान से ही होती है.
*
कोई दूसरा चुगली करता है, हम वही कहते हैं जो सच है.

मेरे छोटे पहलवान के फ़ोटो, उसकी फ़ुटबॉल के फ़ोटो और मेरी एक किताब

मेरे छोटे पहलवान का फ़ोटो





मेरे छोटे पहलवान का फ़ुटबॉल के साथ फ़ोटो

पहलवान की फ़ुटबॉल के फ़ोटो

मेरी एक किताब जो कि अधूरी है.. पढ़ना


सुबह का अलार्म अच्छा लगता है क्या “किर्र किर्र” ? आप भी बताईये अपने अनुभव…. ? हमने तो इस पर विजय प्राप्त कर ली :)

रोज सुबह उठने के लिये अलार्म की आवाज अच्छी लगती है क्या ?
अलार्म की “किर्र किर्र” किसे अच्छी लगती है, जब हमने सुबह घूमने जाने का निर्णय लिया था तब तो अलार्म दुश्मन जैसा जान पड़ता था कि “हाय” अभी तो मीठी नींद चल ही रही थी, अभी तो सोये ही थे और ये मुआ अलार्म बज पड़ा और जैसे ही अलार्म की किर्र किर्र कान में पड़ती, हम उसका टेंटुआ ऐसा दबाते कि जैसे किसी दुश्मन का दबाते हों, पर ये मुआ अलार्म तो रोज ही बजता जाता है। अगर दुश्मन का टेंटुआ दबाते तो वो शायद ही उठ पाते पर ये अलार्म जान पर ही आ पड़ता है।
अब धीरे धीरे अलार्म की जरुरत खत्म हो गयी है, हमारी जैविक घड़ी अब सक्रिय हो गई है। इसलिये अब अलार्म का “किर्र किर्र” करने का भाने या न भाने का संबंध ही खत्म हो गया है।
अब हमारी तो जैविक घड़ी अपनी सक्रियता से चल रही है, और हम तो अलार्म बजने के पहले ही उठ पड़ते हैं।
आप बताईये अपने अनुभव कि कैसा अनुभव है अलार्म का ….?

उच्च रक्ताचाप, चाय बिस्किट, चाय की नाट और पेट पर अत्याचार

    रोज की दिनचर्या बदलती जा रही है सुबह की सैर और दवाईयाँ जीवनचर्या में शामिल हो गई है। बिना मसाले की सब्जियाँ, बिना घी की रोटी, अचार बंद, पापड़ बंद, मिठाईयाँ बंद, नमकीन बंद, तला हुआ बंद सब कुछ बंद, ये डॉक्टर है या क्या, सब कुछ बंद कर दिया, अब न खाने में स्वाद है और न ही खाने की इच्छा होती है, हम भी पक्के हैं कार्य के दिनों में यह सब पालन करते हैं और बाकी के दो दिन जमकर यही सब उड़ा लेते हैं।

    अगर बाकी के दो दिन भी पूरा वही खाना खा लिया तो बस समझो कि अपन तो बहुत ही जल्दी सन्यासी होने वाले हैं, अरे जब कुछ खाना ही नहीं है तो नौकरी किसलिये करनी है, मजा में अपने शहर में जाकर ताजी हवा में रहें, इस महानगरी की दौड़ा दौड़ी से तो निजात मिलेगी।

    दिनभर में चाय ४-५ आ जाती है पर अब हम २ पर टिक गये हैं, और चाय वाले समय अपनी सीट से गायब होने में ही अपनी भलाई समझते हैं। या फ़िर ये है कि आधी चाय ले ली जाये अब आती है तो मना तो करते नहीं बनता ना। क्योंकि चाय की नाट बुरी होती है।

    दोपहर को खाना लेकर जाते हैं, मजे में खाना खाते हैं पर समस्या शुरु होती है ४बजे के बाद, लोगों को भूख लगने लग जाती है और चिप्स, बिस्किट और नमकीनों के पैकेट अपनी डेस्क पर ही खुलने शुरु हो जाते हैं, और हम अपने क्यूबिकल वालों को देखते रहते हैं, सोचते रहते हैं कि ये मुए कितनी कैलोरी खाते हैं, जैसे मेरी बंद हो गई है इन सबकी बंद हो जायेगी एक दिन।

    चिप्स के पैकेट या नमकीन के पैकेट लाकर बिल्कुल हमारे सामने ला देंगे और फ़िर मुस्कराते हुए चिढ़ाते हुए कहेंगे ले लो विवेक एक या दो से कुछ नहीं होगा और अगर गलती से अपना ईमान डोल गया तो बस क्यूबिकल की दूसरी साईड से आवाज आ जायेगी विवेक हाई बी.पी. है क्या कर रहे हो ?सबकी सोची समझी साजिश जैसी लगती है। परंतु क्या करें हम तो बेचारे हो जाते हैं।

    लिखने में ब्रेक हो गया था हमारे पारिवारिक मित्र के यहाँ रात्रिकालीन भोजन पर गये थे जहाँ दबाकर दाल ढ़ोकली और खरबूजे का पना खाया गया। विशेषकर आज बहुत दिनों बाद दो चीजें भोजन में मिली एक तो घी और दूसरी मसाला युक्त भुनी हुई हरी मिर्चें

    फ़िर शाम को ऑफ़िस से निकले तो गेट के बाहर ही कितने ही स्टॉल वाले खड़े रहते हैं, अब नाम हमसे बताया नहीं जायेगा नहीं तो यह पोस्ट पढ़ने के बाद हमारे उपर इल्जाम लगने लग जायेंगे कि खूब ऐश चल रही है और भी बहुत कुछ फ़लाना ढ़िमकाना …। फ़िर भीकाजी फ़ूडजंक्शन पड़ता है और समोसे आलूबड़े और भी गरम व्यंजनों की खुश्बुओं से अप्रभावित हुए बिना हम निकल लेते हैं सिग्नल के पास मूवी टाईम की ओर ऑटो पकड़ने के लिये, परंतु बीच में फ़िर एक सूखी भेलपूरी वाला मिल जाता है तो हम ५ रुपये में एक भेलपूरी ले लेते हैं ये सोचते हुए कि इसमें तो तला गला कुछ है नहीं खाया जा सकता है। कभी कभी उसके आगे भी रुक जाते हैं जहाँ एक पानी बताशे वाला है और इस बात पर तो हमारे एक मित्र ने घर पर शिकायत भी कर दी थी और खूब हंगामा हुआ था, और वह आज भी हमें धमकी दे देता है कि घर पर बोल दूँगा। पर फ़िर भी हम पर कोई असर नहीं है।

    “दाल ढ़ोकलीहमने बहुतायत में खा ली है और हमारा पेटेंट डायलॉग बोल देते हैं कि आज पेट पर अत्याचार कर दिया है, इसलिये यहीं विराम देते हैं। बाकी किसी ओर दिन… जब खाने पर लिखने का मन होगा ।

मुंबई महानगरी में मित्रों के आपसी रिश्तों की गर्मी जो कि मोबाईल और मिलने से भी ज्यादा जरुरी है .. और चोकोलावा केक… यम्मी

    रोज ही जिंदगी दौड़ती जा रही है, अपनी रफ़्तार से । कहने को तो मुंबई में रहते हैं, रफ़्तार जिंदगी की देखते ही बनती है, गर कभी रफ़्तार से छुट्टी मिल जाये तो मानो लॉटरी खुल गयी हो । सप्ताहांत पर पूर्ण विश्राम और अपने पारिवारिक मित्रों के साथ मेलजोल। पर एक बात है मुंबई में सामाजिक दायरा खत्म सा होता दिखता है, हमारे बहुत सारे मित्र हैं, जिसमें सभी श्रेणी के मित्र हैं जिगरी, लंगोटिया, नौकरी के दौरान जिनसे मन मिले इत्यादि।

    अभी २ दिन पहले ही हमने अपने एक मित्र को फ़ोन लगाया तो पता चला कि उनका मोबाईल व्यस्त है और आवाज आ रही है थोड़ा वेड़ानी काल करा। मोबाईल भी करो तो अपना कॉल वेटिंग पर, बात हो जाये वही बहुत है, मिलना तो दूर की बात है, और फ़िर यहाँ की सभ्यता सीख गये हैं कि अगर मोबाईल व्यस्त है तो अपने आप ही काट दिया जाये और फ़िर याद रखकर बाद में वापिस से बात की जाये या फ़िर उसका फ़ोन आ जाये, पर फ़ोन आ जाये तो बहुत ही धन्य हैं आप कि आपके मित्र ने इतनी व्यस्तता के बीच आपसे बात करना जरुरी समझा, फ़िर एक बात यह भी है कि जब वह फ़्री हो और आप व्यस्त हों तो फ़िर अपन फ़ोन काटते हैं और एस.एम.एस. करते हैं कि अभी व्यस्त हूँ, थोड़ी देर बाद कॉल करता हूँ और वापसी में मित्र का एस.एम.एस. आ जाता है ओके। तो अपने मित्रता के संबंधों में भी बहुत सारी चीजें आ गयी हैं। पर फ़िर भी केवल दिल की बात है कि घनिष्ठता कम नहीं हुई है, क्योंकि हम लोगों ने मतलब मित्रों ने आपस में बहुत सारे ऐसे पल बिताये हैं जो कि हमें बहुत करीब ले आये हैं और एक दूसरे की परेशानी समझते हैं। इन छोटी सी बातों का हमारे मधुर संबंधों में कोई फ़र्क नहीं पड़ता है।

    यहाँ मुंबई में रिश्ते भी समय सीमा के भीतर निपटा लिये जाते हैं जिससे दोनों पार्टी खुश, क्योंकि सभी का समय कीमती है।

    हमारे जिगरी मित्र से फ़ोन पर बात हो रही थी अरे वोही जिनका मोबाईल व्यस्त आ रहा था, उन्होंने अपने ऑफ़िस से फ़ोन किया था हमारे मोबाईल पर। तो बस हम भी बेतकल्लुफ़ हो लिये क्योंकि अपने पैसे भी नहीं लग रहे थे और अपने मित्र से दिल की बात भी कर रहे थे। वैसे भी आजकल फ़ोन पर बात करना बहुत ही सस्ता हो गया है, पहले फ़ोन पर बात करने के पहले सोच लेते थे कि केवल ५ मिनिट ही बात करेंगे पर अब मोबाईल की कॉल दर सस्ती हो गईं हैं तो अब उतना सोचना नहीं पड़ता और हाँ अवश्य ही आमदनी भी इसका एक कारण है।

    हमने मित्र को बोला कि आ जाओ शनिवार को हमारे यहीं रुकना और रविवार को निकल लेना। क्योंकि मिले हुए लगभग १ वर्ष से ज्यादा हो चुका है, महानगर में एक तरफ़ का समय किसी के यहाँ जाने का हमारे लिये तो कुछ ज्यादा ही लगता है, कि दूसरे शहर ही जा रहे हों। हमारा मानस जो दूसरे शहर का है वह तो बदल नहीं सकता है ना !!! हमारे मित्र बोले कि शनिवार को तो त्रैमासिक ऑडिट आ रहा है और रिव्यू भी है ४-५ मुश्टंडे हैडऑफ़िस से आ रहे हैं, सारी खबर लेने के लिये। तो शाम को ४-५ तो आराम बज जायेंगे, उसके बाद आ जाते हैं, हमने आगे रहकर मनाकर दिया कि अगर ८ बजे तक आओगे फ़िर क्या खाक करोगे यहाँ आकर, केवल खाना खाकर निकल लोगे, क्यों भला हम तुम्हें इतनी तकलीफ़ दें। क्योंकि रविवार को रुकने का पहले ही मना कर चुके थे, उनको उनकी श्रीमती को उनकी दीदी के घर ले जाना था, हमने सलाह दी थी कि अगले रविवार पर टलवा दिया जाये ये दीदी के यहाँ का कार्यक्रम तो हमारे मित्र बोले दादा !!! पिछले ४-५ रविवार से यही कर रहा हूँ, और अगर इस बार नहीं ले गये तो समझो कि शनिवार को ऑफ़िस में रिव्यू और रविवार को घर में !!!

फ़िर बात हुई कि चलो अब किसी और रविवार का कार्यक्रम बनाया जायेगा।

विशेष – कल डोमिनोज पिज्जा खाया गया था और वहाँ पर सभी को चोकोलावा केक बहुत पसंद आया, अगर चॉकलेट के शौकीन हों तो जरुर चखें।