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रूपये की विनाशलीला देखने के लिये तैयार हैं ?

    आजकल सब और चर्चा में डॉलर और रूपया है और जब से रूपया १०० रूपया पौंड को पार किया है तब से पौंड भी चर्चा में है। कल ही एक परिचित से बात हो रही थी, तो वे कहने लगे कि हमारे भारत पर तो ब्रिटिश का शासन था फ़िर हमारे ऊपर यह डॉलर क्यों हावी है, हमारे विनिमय तो पौंड में होना चाहिये। हमने उन्हें समझाया कि डॉलर को विश्व में मानक मुद्रा का दर्जा मिला हुआ है, डॉलर से लड़ने के लिये यूरोपीय देशों ने यूरो मुद्रा की शुरूआत की थी, नहीं तो उन्हें सब जगह डॉलर से उस देश की मुद्रा का विनिमय करना पड़ता था। अब उन्हें यूरो मुद्रा का विनिमय यूरोपीय देशों में नहीं करना पड़ता है।

    डॉलर क्यों पटकनी दे रहा है रूपये को, यह समझने की कोशिश करें तो लुब्बा लुआब यह है कि हमने आयात ज्यादा किया और निर्यात कम किया, याने कि विदेशी मुद्रा जो कि मानक मुद्रा डॉलर है वह हमारे खजाने से ज्यादा गई और मानक मुद्रा डॉलर हमारे खजाने में कम आई, खैर इस बात का ज्यादा मायने भी नहीं है क्योंकि डॉलर हमारे रूपये के मुकाबले अभी ओवररेटेड है, अगर वाकई असली दाम इसका देखा जाये तो लगभग २० रूपये होना चाहिये। और डॉलर अभी तीन गुना ज्यादा दाम पर व्यापार कर रहा है।

Rupees vs USD

USD Vs INR

    हमारी जीडीपी याने कि सकल घरेलू उत्पाद लगातार कम होती जा रही है, हमने पिछले ९ वर्षों में  मान लो कि रत्न आभूषण ५०० अरब डॉलर के आयात किये और लगभग ३५० करोड़ के रत्न आभूषण हमने निर्यात किये तो हमें पिछले ९ वर्षों में लगभग १५० करोड़ का विशुद्ध घाटा हुआ है। इसी प्रकार पेट्रोलियम और गैस में जमकर घाटा हुआ है, कुछ अंदरूनी कलह के कारण और कुछ व्यापारिक प्रतिष्ठानों की जिद के कारण । भारत विश्व में उत्पादित सोने और पेट्रोल के बहुत बड़े भाग  का उपयोग करता है।

    स्वतंत्रता के बाद से भारत का रूपया कभी राजनैतिक कारणों से तो कभी व्यापारिक कारणों से तो कभी आर्थिक नीतियों से मात खाता आया है, हमारे भारत के पास बेहतरीन काम करने वाले लोग हैं, बेहतरीन वैज्ञानिक हैं, पर उन्हें भारत के लिये उपयोग करने के लिये ना ही राजनैतिक इच्छाशक्ति है और ना ही आर्थिक जगत की इच्छाशक्ति है। अगर कुछ और बड़ी कंपनियाँ भारत की बाहर व्यापार करने लगें तो डॉलर की नदियों का मुख भारत की और होगा।

    अधिकतर अंतर्राष्ट्रीय कंपनियाँ अपने लाभ का एक बड़ा हिस्सा मानक मुद्रा याने कि डॉलर में विनिमय कर भेज देती हैं। हम भारतवासियों को भी समझना होगा कि हमें घरेलू उत्पादों का ज्यादा उपयोग करना चाहिये, जिन उत्पादों से डॉलर बाहर जा रहा है, उन उत्पादों को उपयोग करने से बचना चाहिये।

    मुद्रा गिरने से हमारे भारत के आर्थिक हालात बेहद खराब हो सकते हैं, इसका सीधा असर बैंक में बड़े बड़े ऋण पर पड़ेगा, बाहर पढ़ने वाले विद्यार्थियों पर पड़ेगा ये दो बड़े भार होंगे हमारी अर्थव्यवस्था पर, वैसे ही राष्ट्रीयकृत बैंकें ४ % से ज्यादा एन.पी.ए. याने कि जो ऋण डूब चुके हैं, से लड़ रही हैं, और अब यह व्यक्तिगत मुश्किलें बड़ाने वाला दौर होगा, अर्थव्यवस्था पर इसका सीधा असर कुछ ही दिनों में दिखना शुरू हो जायेगा, जब पेट्रोलियम पदार्थों के भाव आसमान छूने लगेंगे तो इसका सीधा असर हमारी दैनिक उपयोग की वस्तुओं पर पड़ते देर नहीं लगेगी। जब रूपया ३३% गिर चुका है तो अब पेट्रोलियम के भाव में ३३% की तेजी का अंदाजा लगा ही सकते हैं। सरकार भी कब तक राजनैतिक कारणों से रूपये के गिरने के कारण महँगाई से जनता को बचा पायेगी, और अगर यह भार जनता पर नहीं डाला गया तो भारत के खजाने पर सीधा असर पड़ेगा।

    हमारा कैश इन्फ़्लो तो उतना ही रहने वाला है वह तो डॉलर के महँगे होने से या रूपये के गिरने से ज्यादा नहीं होने वाला है, तो अब भविष्य के संकेत ठीक नहीं है, जितनी बचत अभी तक कर लेते थे, अब वह बचत भी बहुत कम होने वाली है। अभी भी अगर इस पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो रूपये की विनाशलीला देखने के लिये तैयार रहना होगा।

घर बैठे, शेयर बाजार से कमायें २५००० से ७५००० रूपये–क्या है यह !! (Earn 25000 to 75000 per month from Share Market, How ?)

    बाजार में कई वर्षों से देख रहे हैं, लोग / कंपनियाँ आती हैं और दावा करती हैं कि एस.एम.एस. और ईमेल के द्वारा हम दिन में इतने कॉल देंगे, और इससे आप शेयर बाजार से बहुत सारा धन कमा सकते हैं । शेयर बाजार में लोग इनके चंगुल में फ़ँस भी जाते हैं, क्योंकि सभी लोग जल्दी से जल्दी धन कमा लेना चाहते हैं। पर अगर किसी से पूछो कि धन कमाकर क्या करेंगे तो उनके पास केवल जबाब होता है कि ऐश करेंगे, ऐश में क्या करेंगे वे नहीं बता पाते हैं।
    हम अपने मुख्य बिंदु पर बात करते हैं, क्या वाकई एस.एम.एस. / ईमेल पर आई टिप्स से पैसा कमाया जा सकता है ? शायद हाँ भी और नहीं भी !! इसका जबाब वाकई बहुत मुश्किल है, बाजार में सबसे मुख्य होता है समय के साथ चलना, जिसने जरा सी भी चूक की, फ़िर भले ही वह एक मिनिट की ही हो, उसे भरपूर घाटा उठाना पड़ सकता है और हो सकता है कि इस गलती से उसे भरपूर फ़ायदा भी मिल जाये।
    एस.एम.एस. में मुख्यत: इक्विटि (Equity) के नाम के साथ खरीदने या बेचने का रेट भेजा जाता है, टार्गेट भेजा जाता है और स्टॉप लॉस भेजा जाता है। लोग केवल टार्गेट पर ध्यान देते हैं स्टॉप लॉस कभी भी नहीं लगाते हैं, कम से कम मैंने तो बहुत ही कम लोगों को स्टॉप लॉस का उपयोग करते देखा है। जो समझदार होते हैं वे इन एस.एम.एस. टिप्स को लेते जरूर हैं, परंतु अपने अनुभव से अपने पैसे को बाजार में लगाते हैं। क्योंकि ये एस.एम.एस. भेजने वाली कंपनियाँ बहुत छोटे छोटॆ अक्षरों में अपने दस्तावेजों में लिखती हैं, कि होने वाली लाभ या हानि की जिम्मेदारी कंपनी की नहीं होगी, यह निवेशक (Investor) का व्यक्तिगत निर्णय है। कंपनी लीगल तरीके से साफ़ बच निकलती हैं।
    आजकल कई कंपनियाँ ट्विटर और फ़ेसबुक पर भी अपडेट कर रही हैं, परंतु जरूरत है अपने अनुभव से ही निवेश करने की, ये कंपनियाँ तो निवेशक (Investor) से मोटी रकम (Charges) वसूलती हैं और अलग हो जाती हैं, परंतु निवेशक (Investor) इनके बिछाये जाल में फ़ँस जाता है। कई समाचार पत्रों में हमने विज्ञापन देखा है कि “घर बैठे, शेयर बाजार से कमायें २५००० से ७५००० रूपये” (Earn 25000 to 50000 per month from Share Market, How ?), परंतु यह इतना आसान भी नहीं है, जितना कि विज्ञापन पढ़ने के बाद लगता है।
    सेबी को अब इन कंपनियों के मोबाईल कॉल और एस.एम.एस. खंगालने की आजादी मिली है, अब देखते हैं कि सेबी कैसे बहुत सारी छद्मवेशी कंपनियों पर क्या कार्यवाही करती है, जो कि बिना किसी विश्लेषण (Analysis) के निवेशकों (Investors) को चूना लगा रही हैं, वैसे भी अगर इन कंपनियों को बाजार की इतनी जानकारी होती है तो खुद ही फ़्यूचर ऑप्शन (Future Options) में पैसा (Fund) लगाकर धन कमा लें, क्यों बाजार में जानकारी बेचें ? कुछ लोग फ़ँस जाते हैं और कुछ लोग इनके चंगुल से बचे रहते हैं ।
    आगे इस बारे में कोई भी कदम उठायें तो सोच समझ कर उठायें, किसी की कॉल १०० प्रतिशत सही नहीं हो सकती, क्योंकि वह बाजार में इतना सारा धन लगाकर किसी भी एक शेयर को ऊपर नीचे नहीं कर सकता है यह केवल और केवल व्यक्तिगत निवेशक (Investor) के लिये जोखिम (Risk) है।

कुछ लम्हें.. लिफ़्ट, संवाद, अखबार और समय

    सुनहली सुबह को उठकर नित्यक्रम से निवृत्त होकर, घूमने के लिये प्रकृति के बीच निकल पड़ना, प्रकृति के बीच घूमने का एक अपना ही अलग आनंद होता है, जब मैं अपने अपार्टमेंट के फ़्लेट से बाहर निकलता हूँ तो वहाँ केवल चार फ़्लेट, दो लिफ़्ट और एक सीढ़ियों के दरवाजे होते हुए भी हमेशा सन्नाटा ही पसरा हुआ पाता हूँ, सीढ़ियों से उतरने की सोचता नहीं, क्योंकि आठ माला उतरने से अच्छा है कि लिफ़्ट से ही उतर लिया जाये, वैसे ही आने में भी । कई बार सोचता हूँ कि अगर लिफ़्ट का अस्तित्व ना होता तो मुँबई में क्या केवल चार माले के घर ही होते, तब इतनी सारी बाहर से आई हुई जनता कैसे और कहाँ रहती, परंतु कुछ चीजों ने जिंदगी के कई प्रश्नों को हल कर दिया है।

    अपार्टमेंट से बाहर पहुँचते ही, झट से सुरक्षाकर्मी सलाम ठोंकता है और हम छोटे वाले दरवाजे से होते हुए हाईवे पर आ जाते हैं, दरवाजे के बाहर सीधा हाईवे ही है, सड़क पार एक छोटा सा उद्यान है, जहाँ सुबह लोग अपनी कैलोरी जलाने आते हैं, पर फ़िर भी वहाँ एकांत का सन्नाट पसरा हुआ है, यहाँ पर फ़िर भी लोग सुबह एक दूसरे को देखकर मुस्करा लेते हैं, सुप्रभात, जय राम जी की कह लेते हैं, पर कई शहरों में तो आपस में रोज देखने के बाद भी कभी कोई संवाद ही नहीं होता, संवाद पता नहीं किस घुटन में जीता है, जहाँ आपस में या खुद में ही लगता है कि शायद संवाद मौन है, और मौन ही संवाद है।

    वापिस आकर पसीने में भीगे हुए, ताजा अखबार और दूध की थैली खुद ही दरवाजे से उठाकर लाते हैं,  फ़िर अपने फ़्लेट में डाइनिंग टेबल की कुर्सियों को खींचकर पहले जूते मोजे उतारते हैं और फ़िर रोज की तरह पंखा चालू करना भूल गये होते हैं तो पंखा चालू करके, अपने पसीने पर गर्वित होते हुए अखबार पढ़ने लगते हैं, जैसे पसीना बहाकर पता नहीं किस पर अहसान करके आये हैं। अखबार भी क्या चीज है, जरा से पन्नों में दुनिया भर की खबरें भरी होती हैं, पर खबरें केवल वही होती हैं जो मीडिया हमें पढ़ाना चाहता है, हमारे भारत विकास की खबरें कहीं नहीं हैं, या भारत को विकास की और कैसे अग्रसर कैसे किया जाये, परिचय भी नहीं है जो लोग विकास का कार्य कर रहे हैं, पता नहीं कैसा अखबार है, बस इनमें उन्हीं लोगों का जिक्र है जो कुछ ना कुछ लूट रहे हैं, या लूटने की तैयारी कर रहे हैं। मुझे तो अब इन खबरों से ऊबकाई आने लगती है।

    तैयार होकर ऑफ़िस जाने का समय हो गया है, बारिश में लेदर के जूते पहनने का मन नहीं करता, आखिर महँगे जो आते हैं, बारिश में सैंडल में ही जाना ठीक लगता है, जिसको जो समझना हो समझे । अपार्टमेंट से बाहर निकलते ही फ़िर वही मुंबई की चिल्लपों कहीं मुलुन्ड वाली बस तो कहीं वाशी जाने वाली बस, अब हम जिधर जाते हैं उधर की बस मिलना मुश्किल होता है, तो ऑटो ही पकड़ना होता है और ऑटो पकड़ना भी एक युद्ध ही होता है, जितने भी यात्री वहाँ खड़े होते हैं, सब पहचान के होते हैं और आपस में एक दूसरे को जानते हैं, अगर उसी तरफ़ वे यात्रा कर रहे होते हैं तो खुशी खुशी उन्हें ड्रॉप भी कर देते हैं, पता नहीं मुंबई में ऐसी क्या चीज है जो आदमी को बदल देती है, शायद समय !! क्योंकि समय की सबके पास कमी है और सब अपने समय का सदुपयोग करना चाहते हैं ।

केवल आपने खुद को ही सुरक्षित कर रखा है या परिवार को भी..

    अब आगे मित्र से बात जारी रही, हमने पूछा अब एक बात बताओ कि आपने आपातकाल के लिये क्या व्यवस्था कर रखी है, वह बोला अरे अपने एक इशारे पर सारे काम हो जाते हैं, हमने कहा भई हकीकत की धरातल पर उतर आओ और सीधे सीधे साफ़ शब्दों में बताओ, अगर बीमारी का क्षण आ गया या फ़िर मान लो बीमारी ऐसी है कि चिकित्सालय में भी ना रहना पड़े और चिकित्सक ने घर पर ५०  दिन का आराम बता दिया या मान लो बिस्तर पर एक वर्ष तक रहना पड़ा, उस दिशा में क्या करोगे, क्योंकि आपको वेतन के साथ तो ५० दिन की छुट्टी मिलना मुश्किल है, आप वेतन के साथ ज्यादा दिन की छुट्टी पर नहीं रह सकते, तब आप अपने परिवार का खर्च कैसे उठाओगे ?

family     मित्र ने कहना शुरू किया कि बीमारी के लिये हमने मेडिक्लेम ले रखा है और दूसरी स्थिति के लिये हमने कभी सोचा ही नहीं कि ऐसा भी हो सकता है या यह भी कह सकते हैं कि हमें इस स्थिति से कैसे निपटा जा सकता है हमें पता नहीं। वैसे हमें लगता है कि हमें इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। हमने कहा भाई परिस्थितियाँ कभी किसी को बताकर इंतजार करवाकर नहीं आतीं, बेहतर है कि हम उन परिस्थितियों का आकलन करके पहले से ही उसकी व्यवस्था करके रख लें, ताकि हम उन परिस्थितियों से बेहतर तरीके से निपट सकें।

     अब मित्र ने कहा कि अच्छा यह बताओ कि कैसे निपटा जा सकता है ? हमने उनसे पूछा कि ये बताओ तुमने मेडिक्लेम कितना ले रखा है, वे बोले हमने अपना मेडिक्लेम २ लाख रूपये का ले रखा है। हमने पूछा और परिवार का मेडिक्लेम, वे बोले नहीं परिवार का मेडिक्लेम नहीं ले रखा है, हमने उनसे कहा कि आपातकाल केवल तभी नहीं आता जब खुद बीमार हों, परिवार का कोई भी सदस्य बीमार हो सकता है तो बेहतर है कि परिवार के लिये एक मेडिक्लेम लो जिसमें सारे सदस्य बीमित हों।

     हमने कहा कि आप कम से कम ५ लाख का फ़ैमिली फ़्लोटरfamily-floaters मेडिक्लेम बीमा लो, आजकल वैसे ५ लाख भी कम पड़ते हैं, पर फ़िर भी आपात स्थिति से निपटने के लिये बहुत हैं, फ़ैमिली फ़्लोटर मेडिक्लेम का फ़ायदा यह है कि परिवार के चारों सदस्य ५ लाख से बीमित हैं और चारों में से कोई भी एक ५ लाख तक फ़ायदा उठा सकता है या फ़िर एक से ज्यादा सदस्य भी, बस चारों सदस्य मिलकर ५ लाख तक का ही चिकित्सकीय व्यय से बीमित हैं और उससे ज्यादा लेना है तो उसके लिये आजकल टॉप अप सुविधा भी उपलब्ध है, जो कि आप हर वर्ष अपने हिसाब से कम ज्यादा कर सकते हैं।

     अब आगे बतायेंगे कि कैसे दूसरी स्थिति से निपटा जाये “चिकित्सक ने घर पर ५० दिन का आराम बता दिया और करना भी जरूरी है, उस दिशा में क्या करोगे ?” क्या आपने भी कभी सोचा है ? तो बताइये ?

सकारात्मक और नकारात्मक खबरें समाचार चैनलों पर..

थोड़ा समय मिला तो समाचार देखे,

एक पट्टी घूम रही थी.. (निजी समाचार चैनल पर)
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मदद करने वाली पंचायतों का उत्तराखंड सरकार सम्मान करेगी ।
अभी तक तबाही से उबरे भी नहीं हैं, बचाव कार्य पूरे भी नहीं हुए हैं और इनके राजनीति चालू हो गई है।

जनता बचाव कार्य से खुश नहीं . (निजी समाचार चैनल पर)
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यहाँ पर दो तीन परिवार को समाचार चैनल लेकर बैठा हुआ था, जिनके खुद के परिजन इस आपदा का शिकार हुए, वे सरकार को बद इंतजामी के लिये कोस रहे थे.. जैसे टीवी चैनल कोपभवन ही बन गया हो। ( यहाँ कोसने की जगह क्या ये लोग वहाँ आपदा प्रबंधन में अपने स्तर पर मदद नहीं कर सकते थे, और किसी और के अपने को बचा नहीं सकते थे).. टीवी एंकर तो अपने चेहरे पर इतना अवसाद लिये बैठा था, जैसे उसे वाकई बहुत दुख हुआ हो ।

बचाव कार्य बहुत अच्छा है (सरकारी दूरदर्शन चैनल पर)
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सरकारी चैनल राज्यसभा और डीडी न्यूज पर दिखाया जा रहा था, किस तरह लोगों को बचाया जा रहा है, और एक ग्रामीण बचाव कार्य से खुश था उसका अनुभव टीवी पर दिखाया गया, जिससे लगा कि शायद निजी चैनल वालों का सरकार से बैर है।

सरकारी चैनल पर बचाव के बारे में सकारात्मक बातें दिखायीं जा रही हैं, जिनसे हर्ष होता है, परंतु वहीं निजी सरकारी चैनल नकारात्मक बातें दिखायीं जा रही हैं, जिनसे मन अवसादित होता है, निजी चैनल तो वही दिखाते हैं जो जनता देखना चाहती है और सरकारी चैनल वह दिखाते हैं जो सरकार जनता को दिखाना चाहती है, या एक पहलू यह भी हो सकता है कि तथ्यों का असली चेहरा शायद सरकारी लोग दिखा पाते हों, क्योंकि नकारात्मक बातें कहने वाले बहुत मिल जायेंगे परंतु सकारात्मक बातें कहने वाले बहुत कम, मतलब कि सरकारी समाचार चैनल वालों को सकारात्मक खबरें बनाने का दबाब तो रहता ही है, और उसके लिये ऐसे लोगों को ढूँढ़ना और भी दुष्कर कार्य होता होगा, यह तो एंकरों का क्षैत्र है इसके बारे में वही लोग अच्छे से बता सकते हैं, अपना डोमैन तो है नहीं, कि अपन अपने अनुभव पर विश्लेषण ठेल दें।

डीडी वन पर जो ऐंकर थे उन्हें पहले कहीं किसी निजी न्यूज चैनल पर समाचार पढ़ते हुए और इस तरह की समीक्षाओं/वार्ताओं में जोर जोर से चिल्लाते हुए देखा है, उनके हाथ चलाने के ढंग से ही समझ में आ रहा था कि वे अपने शो का नियंत्रण किसी ओर को देना ही नहीं चाहते हैं, और ना ही किसी की सुनना चाहते हैं, बस सब वही बोलें जो वे सुनना चाहते हैं या यूँ कहें कि अपने शब्द दूसरे के मुँह में डालने की कोशिश कर रहे हों।

मन ही मन सोचा कि इनको क्या ये भी अपने कैरियर के लिये इधर से उधर स्विच मारते होंगे, जहाँ अच्छा पैसा और पद मिला अच्छा काम मिला उधर ही निकल लिये, फ़िर थोड़े दिनों बाद कहीं और किसी निजी समाचार चैनल पर नजर आ जायेंगे।

पर यह तो समझ में आया सकारात्मक और नकारात्मक खबरों का असर बहुत होता है, तो इस मामले में हमें सरकारी समाचार चैनल बहुत पसंद आया, श्रेय इसलिये देना होगा कि उनको ग्राऊँड लेवल पर जाकर बहुत काम करना पड़ता है और निजी चैनल वालों के लिये यह बहुत आसान है क्योंकि नकारात्मक कहने के लिये एक ढूँढों हजार मिलते हैं।

शिक्षा काल की दोस्ती भविष्य में..

    गुरू द्रोण और द्रुपद दोनों ने एक साथ महर्षि अग्निवेश के आश्रम में धनुर्वेद की शिक्षा प्राप्त की, तब दोनों अच्छे मित्र हुए..

    उस समय द्रुपद ने द्रोण से कहा था .. “प्रिय द्रोण, तुम मेरे अत्यंत प्रिय मित्र हो, जब मैं आने पिता की राजगद्दी पर बैठूंगा, उस समय मेरे राज्य का तुम भी उपभोग करना । मेरे भोग, वैभव और सुख सब पर तुम्हारा अधिकार होगा।”

    धनहीन अवस्था में द्रोण जब द्रुपद के पास मदद की आस लेकर गये तब द्रुपद राजगद्दी पर आसीन हो चुके थे, तब द्रुपद ने द्रोण से घृणापूर्वक कहा “आश्रम का जीवन समाप्त हो चुका। गुरू आश्रम में बहुत विद्यार्थी साथ रहते, खेलते और शिक्षा प्राप्त करते हैं। मगर दरिद्र धनवान का, मूर्ख विद्वान का और कायर शूरवीर का मित्र नहीं हो सकता ।”

    उपरोक्त कथा से दोस्ती के एक और रूप का पता चलता है । जिसमें दोस्ती नाम मात्र की नहीं है, दोस्त जो राजा बन चुका है उसका घमंड दिखाई पड़ता है। और इस तरह की दोस्ती आजकल बहुतायत में देखी जा सकती है, खासकर पढ़े लिये नौजवान पीढ़ी में ।

    दोस्ती के ऐसे रूप युग युग से देखने में आ रहे हैं, आज भी देखने में आते हैं, दोस्ती जो शिक्षा के काल में पल्लवित होती है वह धीरे धीरे भौतिक वस्तुओं और पद की भेंट चढ़ जाती है। यहाँ दोस्ती केवल तभी रह सकती है जबकि मित्रों के बीच आपस में बहुत प्रेम हो, भौतिक वस्तुओं और पद की लालसा ना हो। आपस का फ़ायदा एक अलग बात है, परामर्श भी एक अलग बात है, परंतु केवल फ़ायदे के लिये मित्रता बनाये रखना शायद बहुत दुष्कर होता है।

    हमारे आज भी ऐसे मित्र हैं जो बचपन से हैं और इन सब चीजों से दूर हैं, इसे खुशनसीबी ही कही जायेगी। आज भी उनके बीच जाकर मन प्रसन्न हो जाता है। दोस्ती निभाना बहुत कठिन और तोड़ना बहुत आसान होता है।

    दोस्तों में आपस में जो तालमेल होता है वह शायद ही कहीं देखने को मिलता है, दोस्तों को हमारी अधिकतर गुप्त बातें पता होती हैं, हमारे सुख दुख में सबसे पहले दोस्त ही खड़े होते हैं, रिश्तेदार बाद में आते हैं।

    जो द्रुपद जैसे दोस्त होते हैं ऐसे लोगों का वाकई में दोस्त ना होना अच्छा है। परंतु कुछ बहुत अच्छे दोस्ती के उदाहरण भी हैं जैसे कृष्ण और सुदामा । कृष्ण जी ने खुद अपने हाथों से सुदामा जी के पैर धोये थे और इतना सम्मान दिया कि सुदामा व्याकुल हो उठे थे।

और उसका घर का सपना, सपना ही रह गया

     एक किस्सा बताते हैं, एक बार नौकरीशुदा आदमी ने सोचा चलो अपने गृहनगर में नये फ़्लैट बन रहे हैं, और अपनी पहुँच में हैं तो क्यों ना उसमें एक फ़्लैट ले लिया जाये, पता लगाया गया बंदा भारत के दूसरे कोने में रहता था, उसने अपने पापा को कहा कि आप इसके बारे में पता कीजिये, पापा ने कहा कि उसका एक दलाल है जो कि अपने वो किराने वाली दुकान वाले का भाई ही है, और वह कह रहा है कि १० लाख में मिल जायेगा, और पूरे १० लाख पर लोन भी हो जायेगा और उसने १ बीएचके ५०,००० रूपये देकर पापा के मार्फ़त फ़्लैट बुक करवा लिया ।

सपनोम का घर

     जब वह बंदा एक महीने बाद अपने गृहनगर गया तो जब उसने दलाल और बिल्डर से बात की तो पता चला कि लोन तो केवल ७.६५ लाख पर ही होगा, बाकी तो ब्लैक में देना है, मतलब कि लगभग २.३५ लाख जेब से लगाने होंगे, बंदे ने कहा कि मेरे पास तो केवल १० लाख का २०% याने कि २ लाख रूपये हैं, और एक पैसा ऊपर देने के लिये नहीं है, और आपने बुक करवाते समय पूरी जानकारी नहीं दी। तो बिल्डर और दलाल दोनों ने कहा कि आप चिंता मत करो आपको २.३५ लाख का पर्सनल लोन दिलवा देंगे, बंदे ने कहा भई गृहऋण का ब्याज होता है १० % और पर्सनल लोन का ब्याज होता है १५-१६%, ये ऊपर का ५-६% कौन भुगतने वाला है, मैं तो यह ऊपर का ब्याज नहीं दूँगा, तो दलाल और बिल्डर दोनों भड़क गये कि एक तो हम आपको ऋण दिलवा रहे हैं और आप नाटक कर रहे हैं ।

सपनो का घरहोमलोन

     उस बंदे की अपने गृहनगर में बहुत सी बैंकों में अच्छी पहचान भी थी और बैंक वालों से दोस्ती भी थी, जब वह अपने बैंक के मैनेजर दोस्तों से मिला तो पता चला कि अभी तक इस बिल्डर को किसी भी राष्ट्रीयकृत और निजी बैंक ने एनओसी नहीं दी है, और उन्होंने बताया कि बिल्डर ऐसे ही प्रोजेक्ट के नाम पर पैसा बाजार से उठाते हैं और बैंक से ऋण दिलवा कर लोगों को फ़ँसवा देते हैं, फ़िर २-३ फ़्लोर बनाकर बिल्डिंग बनाना बंद कर देते हैं और अधिकतर ऋण की किश्तें जो कि बैंक से उन्हें लेनी होती हैं, वे इस प्रकार रखते हैं कि २-३ फ़्लोर तक ही उनके पास सारी रकम आ जाये। एक बार सारी रकम आ जाती है तो ये लोग भाग लेते हैं और जनता को अच्छा खासा चूना लगा देते हैं। इस तरह के बहुत सारे केस हो चुके हैं, और जनता को पता ही नहीं चल पाता है।

     मैनेजर मित्र की बातें अक्षरश: सत्य थीं, क्योंकि बैंक से ऋण लेने का फ़्लो बिल्डर ने दिया था वह बिल्कुल वैसा ही था केवल २ फ़्लोर बनने के पहले ही वह सारा पैसा बैंक से लेता, और भाग लेता ।

     अब उस बंदे ने निश्चय किया कि वह इस फ़्लैट को नहीं लेगा और अपने पैसे उन्हें वापिस करने के लिये कहेगा जो कि उसने बुकिंग के नाम पर दिये थे, परंतु उन्होंने पैसे देने से मना कर दिया और कहा कि आप अपनी तरफ़ से कैंसिल कर रहे हैं, इसलिये एक भी पैसा वापिस नहीं मिला । हालांकि उस बंदे के भी अच्छे कॉन्टेक्ट्स थे परंतु उसने सोचा कि यह केस लीगल तरीके से ही लड़ा जाये, क्योंकि उसके अभिभावक उसके गृहनगर में अकेले रहते थे।

     तब उसने अपने कुछ ब्लॉगर मित्रों की सहायता से मार्गदर्शन प्राप्त किया और बिल्डर और दलाल की शिकायत कलेक्टर और एस.पी. ऑफ़िस में की, जब वह बंदा कलेक्टर से मिलने गया तो कलेक्टर ने कहा कि अगर हमें भी आज फ़्लैट खरीदना है तो ब्लैक में पैसा देना ही होगा, बंदे को कलेक्टर की बात सुनकर बहुत आघात लगा। फ़िर भी वह कलेक्टर और एसपी ऑफ़िस में अपने आवेदन पर आवक लेकर आ गया और फ़िर वह तो वापिस अपनी नौकरी के लिये चला गया, उसने अपने पापा को फ़िर एक सप्ताह बाद कहा कि फ़िर से उसी आवेदन की फ़ोटोकॉपी करवाकर उस पर फ़िर से आवक ले आये और उस पर लिख दे Reminder 1 फ़िर Reminder 2 भी भिजवाया और एक सप्ताह बाद ही तहसीलदार की कोर्ट से नोटिस आ गया।

Homeloan 1off the plan

     तहसीलदार की कोर्ट में वादी तरफ़ से कोई उपस्थित नहीं हुआ परंतु दलाल खुद से आगे होकर आया और कहा कोर्ट के बाहर ही सैटलमेंट कर लेते हैं, और आधे रूपये में कोर्ट के बाहर सैटलमेंट कर लिया, वह भी इसलिये कि अभिभावकों को परेशानी होती। नहीं तो उसे उसके पूरे पैसे वापिस जरूर मिल जाते, परंतु कुछ चीजें होती हैं जो पैसे से बढ़ कर होती हैं।

     उस बंदे ने २५ हजार केवल यह समझकर सीखने के लिये खर्च कर दिये कि फ़्लैट लेने के पहले क्या चीजें जरूरी हैं और जरूरी चीजें पहले ही पता कर ली जायें, जब पैसा एक नंबर में कमाया जाता है तो फ़िर २ नंबर में क्यों दिया जाये। खैर उसका घर का सपना, सपना ही रह गया ।

निवेशको के हित में सेबी और AMFI का EUIN

    सेबी के परिपत्र CIR/IMD/DF/21/2012 दिनांक १२ सितंबर २०१२ के अनुसार एवं AMFI के विभिन्न दिशानिर्देशों के अनुसार अब म्यूचयल फ़ंड खरीदते समय निवेशक को आवेदन पत्र / ट्रांजेक्शन रिक्वेस्ट पर Employee Unique Identification Number (EUIN) और डिस्ट्रीब्यूटर एवं सबडिस्ट्रीब्यूटर का AMFI Registration Number (“ARN”) क होना सुनिश्चित कर लेना चाहिये।

    EUIN को लागू करने का उद्देश्य है कि निवेशक के हित की रक्षा करना, यह म्यूचयल फ़ंड के गलत जानकारी देकर बेचने पर पर रोक लगाने के लिये कारगार कदम होगा, EUIN से किस व्यक्ति ने म्यूचयल फ़ंड उत्पाद निवेशक को बेचा है, उसकी जानकारी दर्ज हो जायेगी और निवेशक की शिकायत की स्थिती में किस कर्मचारी ने उत्पाद बेचा था, पता लग सकेगा।

whichmutualfund

    EUIN ७ नंबर का एक विशिष्ट नंबर होगा, जो कि AMFI द्वारा दिया जायेगा, और यह उन हरेक संबंधित कर्मचारी / रिलेशनशिप मैनेजर / सैल्स वाले के लिये दिया जायेगा, जो भी निवेशक से म्यूचयल फ़ंड उत्पाद को बेचने की बातें करते हैं / बेचते हैं । EUIN का होना अब जरूरी हो गया है, जब भी निवेशक म्यूचयल फ़ंड उत्पाद खरीदें, हमेशा EUIN का ध्यान रखें।

    निवेशकों को नया आवेदन पत्र का उपयोग करना चाहिये जिस पर ARN Code / Sub Brocker ARN Code / EUIN, Sub broker code (as allotted by ARN holder) उपलब्ध हो। नये आवेदन पत्र अगर आपके ब्रोकर के पास उपलब्ध नहीं हैं तो आप उन्हें कहिये कि म्यूच्यल फ़ंड की वेबसाईट पर उपलब्ध हैं, वहाँ से प्रिंट निकाल लें।

EUIN के बारे में मुख्य बातें –

१. ट्रांजेक्शन जिनके लिये EUIN होना चाहिये –

Purchases, Switches, and for Fresh Registrations of SIP / STP / Trigger STP / Dividend Transfer Plan.

२. ट्रांजेक्शन जिनके लिये EUNI की जरूरत नहीं है –

Ongoing SIP/ STP / SWP / STP Triggers (registered prior to June 1, 2013), Dividend Reinvestments, Bonus Units, Redemption, SWP Registration, Zero Balance Folio creation and installments under Dividend Transfer Plans .

३. उपरोक्त १ नंबर में बताये गये ट्रांजेक्शन EUIN के लिये १ जून २०१३ से प्रभावकारी हैं, जिसमें किसी भी मोड से ट्रांजेक्शन किया गया हो केवल निम्न प्रकार के ट्रांजेक्शनों को छोड़कर, जिनके लिये यह १ अगस्त २०१३ से प्रभावकारी होगा –

  • Mobile / SMS based transactions.
  • Transactions received through the Stock Exchange Platform.

अगर इसके बारे में और ज्यादा जानकारी चाहिये तो आप अपनी म्यूचयल फ़ंड कंपनी की वेबसाईट और उनके टोलफ़्री नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं।

NRN की Infosys में दूसरी पारी

    अभी कुछ दिनों पहले मुंबई आने के पहले एक दिन के लिये बैंगलोर में था तब नारायण मूर्ती जी को जिन्होंने बहुत करीब से देखा था, उनसे मुलाकात हुई, हालांकि यह मुलाकात व्यक्तिगत नहीं व्यावसायिक थी । उन्होंने बताया कि वे NRN को भगवान का दर्जा देते हैं, क्योंकि उनकी किसी से भी तुलना करना, अपमान करने जैसा है, किसी भी व्यक्ति द्वारा डेढ़ लाख कर्मियों में अपने खुद के गुणों को पोषित करना और उनके ऊपर कंपनी चलाना आज के इस युग में बहुत ही कठिन है, परंतु NRN ने करके बताया । उनकी बातों में ही समझ में आया कि वे नारायण मूर्ती जी को छोटे नाम NRN से बात कर रहे हैं ।

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    उन्होंने बताया कि जब NRN ने सेवानिवृत्ति ली थी, उस समय बोर्ड मीटिंग में उन्होंने मुख्य रूप से तीन बातें कहीं थीं –

१. सेवानिवृत्ति की आयु ६५ होनी चाहिये और इसके बाद कोई भी व्यक्ति इन्फ़ोसिस में कार्य नहीं करना चाहिये, हालांकि बोर्ड ने NRN पर ७० वर्ष तक की उम्र के लिये काम करने के लिये दवाब बनाया था।

२. NRN ने कहा कि वे कामथ को अपनी जगह लेकर आ रहे हैं और वे उनसे भी ज्यादा प्रभावशाली साबित होंगे, उन्हें कामथ से कई उम्मीदें हैं और इन्फ़ोसिस को कामथ एक नई दिशा देंगे और नई ऊर्जा के साथ कंपनी बाजार का प्रतिनिधित्व करेगी ।

३. इन्फ़ोसिस को कतई पारिवारिक कंपनी नहीं बनने देंगे और मैं अपने परिवार के किसी भी सदस्य को इन्फ़ोसिस में आने के लिये प्रेरित नहीं करूँगा।

     अब जब बोर्ड ने नया प्रस्ताव लाकर NRN को वापिस Infosys में बुलाया है, कि Infosys को NRN की बहुत जरूरत है तो NRN मना नहीं कर सके, कौन अपने सीचें हुए पौधे को जो बड़ा होकर विशाल वृक्ष बन चुका है, उसे सूख जाने देगा । मैं कुछ बोल ही रहा था तो उन्होंने टोक दिया और कहा कि ना हम NRN के खिलाफ़ कुछ बोलते हैं, ना बोल सकते हैं और ना ही हम दूसरों को इसके लिये बढ़ावा देंगे ।

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     फ़िर उन्होंने बोलना शुरू किया कि एक तरह से NRN का वापिस Infosys आना डेढ़ लाख कर्मियों के लिये बहुत अच्छा है, परंतु NRN के खुद के लिये वाकई बहुत कठिन होगा क्योंकि जो तीन बातें उन्होंने खुलेआम कहीं थीं और वे लगभग हर जगह दस्तावेजों में उपलब्ध हैं, अगर वे ही अपने पुराने ईमेल देखेंगे तो शायद उन्हें अच्छा नहीं लगेगा। जो तीन बातें उन्होंने कहीं थीं, वे तीनों ही NRN के लिये उलट पड़ीं, हालांकि NRN इन सबसे इतने ऊपर हैं कि कोई शायद ही कभी कुछ उन्हें कहेगा परंतु  NRN बहुत अच्छा महसूस नहीं कर रहे होंगे, हालांकि बाजार का रूख भी अभी साफ़ नहीं है कि NRN की Infosys में वापसी को बाजार कैसे लेगा, NRN आज बाजार के ब्रांड हैं, उनके दम पर ही Infosys इतना बड़ी कंपनी  बन पायी है। परंतु फ़िर भी जो भी NRN अब करना चाहते होंगे वह योजना अब आकार नहीं ले पायेगी क्योंकि उनके द्वारा उपजाया हुआ पौधा जो विशाल वृक्ष बन चुका है उन्हें बुला रहा है।

     अब NRN को Infosys में अंतरिम विश्लेषण के बाद ढूँढ़ना होगा कि उनके दिये हुए मूल्यों में कितनी हानि हुई है और उन मूल्यों को कंपनी में वापिस से स्थापित करने के लिये कितना समय लगेगा, यह तो आगे वक्त ही बतायेगा । Infosys में कितना इन्टर्नल डेमेज हुआ है यह भी वक्त के साथ पता चलेगा, बाजार भी NRN और Infosys को कैसे देखेगा और अब Infosys कैसे वापिस से नई ऊँचाईयों पर पहुँचेगी, यह भी भविष्य के गर्भ में है।

     हमारी NRN और Infosys दोनों को भविष्य के लिये मंगलकामनाएँ हैं, यही वह कंपनी है जिसने भारत में तकनीक के नये युग की शुरूआत की थी ।

*फ़ोटो इकोनोमिक टाइम्स एवं इंडिया आजतक से साभार लिया गया है ।

ग्रीष्म (गर्मी) ऋतु पर निबंध

    भारतवर्ष पर प्रकृति की विशेष कृपा है। विश्व में यही एक देश है, जहाँ वर्षा में छ: ऋतुओं का आगमन नियमित रूप से होता है। सभी ऋतुओं में प्रकृति की निराली छ्टा होती है और जीवन के लिये प्रत्येक ऋतु का अपना महत्व होता है।

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      काल-क्रम से बसन्त ऋतु के बाद ग्रीष्म ऋतु आती है। भारतीय गणना के अनुसार ज्येष्ठ-आषाढ़ के महीनों में ग्रीष्म ऋतु होती है। इस ऋतु के प्रारम्भ होते ही बसन्त की कोमलता और मादकता समाप्त हो जाती है और मौसम गर्म होने लगता है। धीरे-धीरे गर्मी इतनी बढ़ जाती है कि प्रात: आठ बजे के बाद ही घर से बाहर निकलना कठिन हो जाता है। शरीर पसीने से नहाने लगता है, प्यास से गला सूखता रहता है, सड़कों पर कोलतार पिघल जाता है, सुबह से ही लू चलने लगती है, कभी – कभी तो रात को भी लू चलती है। गर्मी की दोपहर में सारी सृष्टि तड़प उठती है, छाया भी ढूँढ़ती है।
बैठि रही अति सहन बन, पैठि सदन तन माँह,
देखि दुपहरी जेठ की, छाअहौ चाहति छाँह ।
     एक और दोहे में कवि बिहारी कहते हैं कि ग्रीष्म की दोपहरी में गर्मी से व्याकुल प्राणी वैर-विरोध की भावना को भूल जाते हैं। परस्पर विरोध भाव वाले जन्तु एक साथ पड़े रहते हैं। उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है मनो यह संसार कोई तपोवन में रहने वाले प्राणियों में किसी के प्रति दुर्भावना नहीं होतीं । बिहारी का दोहा इस प्रकार है –
कहलाने एकत वसत, अहि मयूर मृग-बाघ।
जगत तपोवन सों कियो, दीरघ दाघ निदाघ।
     गर्मी में दिन लम्बे और रातें छोटी होती हैं। दोपहर का भोजन करने पर सोने व आराम करने की तबियत होती है। पक्की सड़कों का तारकोल पिघल जाता है। सड़कें तवे के समान तप जाती हैं –
बरसा रहा है, रवि अनल भूतल तवा-सा जल रहा।
है चल रहा सन-सन पवन, तन से पसीना ढ़ल रहा॥
     रेतीले प्रदेशों जैसे राजस्थान व हरियाणा में रेत उड़-उड़कर आँखों में पड़ती है। जब तेज आँधी आती है तो सर्वनाश का दृश्य उपस्थित हो जाता है। धनी लोग इस भयंकर गर्मी के प्रकोप से बचने के लिये पहाड़ों पर जाते हैं। कुछ लोग घरों में पंखे और कूलर लगाकर गर्मी को दूर भगाते हैं। भारत एक गरीब देश है। भारत की दो-तिहाई से अधिक जनसंख्या गाँवों में रहती है। बहुत से गाँवों में तो बिजली ही नहीं है। कड़कती धूप में किसानों को और शहरों में मजदूरों को काम करना पड़ता है। काम ना करेंगे तो भूखों मरने की नौबत आ जायेगी।
गर्मी दुखदायी है, परन्तु फ़सलें सूर्य की गर्मी  से ही पकती हैं। खरबूजे, आम, लीची, बेल, अनार, तरबूज आदि का आनन्द भी हम गर्मी में ही लेते हैं। फ़ालसे, ककड़ी और खीरे खाओ और गर्मी भगाओ। लस्सी और शरबत तो गर्मी के अमृत हैं। दोपहर को गली में कुल्फ़ी वाले को बच्चे घेर लेते हैं। मई व जून की जानलेवा गर्मी के कारण स्कूल बन्द हो जाते हैं। गर्मी में लोग आकाश को देखते हैं कि कब बादल आयें और छम-छम पानी बरसे। गर्मी के बाद जब ऋतुओं की रानी वर्षा ऋतु आती है तो वर्षा ऋतु का आगमन होता है। वर्षा के आने का कारण ग्रीष्म ऋतु ही होती है, क्योंकि गर्मी में नदियों, समुद्रों आदि का पानी सूखकर भाप के रूप में आकाश में जाता है और बादल बन जाता है। उन्हीं बादलों से वर्षा होती है।

ग्रीष्म ऋतु हमें कष्ट सहने की शक्ति देती है। इससे हमें प्रेरणा मिलती है कि मनुष्य को कष्टों और कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिये, बल्कि उन पर विजय प्राप्त करनी चाहिये और स्मरण रखना चाहिये कि जिस प्रकार प्रचण्ड गर्मी के बाद मधुर वर्षा का आगमन होता है, उसी प्रकार जीवन में कष्टों के बाद सुख का समय अवश्य आता है।

विज्ञान की कृपा से नगरवासी गर्मी के भयंकर कोप और रोष से बचने में अब लगभग सफ़ल हो गये हैं। बिजली के पंखे, कूलर, एयर कंडीशनर (वातानुकूलित साधन)  आदि से गर्मी के कष्ट को दूर भगाना सम्भव हो गया है। शीतल-पेय तथा आइस्क्रीम आदि का मजा ग्रीष्म में ही है।
ग्रीष्म में हमारे बहुत-से अनाज, फ़ल मेवे आदि पकते हैं। सैकड़ों प्रकार के फ़ूल खिलते हैं। बागों में आमों पर फ़ल लगते हैं। कोयलें बोलती हैं।
ग्रीष्म में दोपहर के समय सोने का बहुत मजा आता है। नहाने और तैरने का आनन्द भी ग्रीष्म में ही है।
वृक्षारोपण द्वारा गलियों, बाजारों, सड़कों और राजमार्गों पर शीतल छाया की व्यवस्था की जा सकती है। स्थान-स्थान पर शीतल जल के प्याऊ लगाकर तथा पशुओं के लिये खेल (जलकुँड) बनवाकर ग्रीष्म की प्यास बुझाने की व्यवस्था करते हैं। हमें ग्रीष्म के कोप से बचाव के लिये पहले से ही व्यवस्था कर लेनी चाहिये ।