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तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – ५ [केश बालाजी को अर्पित किये..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 5)[Tonsur at Balaji…]

    हम मनोरम प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते हुए तिरुमाला पहुँच गये, हाँ एक बात और कहीं भी अपनी टैक्सी न रोकें क्योंकि सड़कें बहुत घुमावदार हैं, और दुर्घटना होने का बहुत डर रहता है। और एक बात जब तिरुपति टोल से निकलते हैं तो आपको अपना सामान कन्वेयर बेल्ट वाली एक्सरे मशीन से निकालना पड़ता है और अगर वहाँ के सुरक्षाकर्मियों को शक होगा तो वो समान की खोलकर तलाशी लेंगे।
    तिरुपति पहुँचकर सबसे पहले हमने अब्दुल (टैक्सी ड्राईवर) का नंबर मोबाईल और कागज पर लिख लिया। यहाँ पार्किंग फ़्री है उसका कोई पैसा नहीं देना पड़ता है। हमें बाल देने थे तो हमने अब्दुल को बोला कि पहले हमें बता दो के बाल कहाँ देने हैं और मंदिर का शीघ्र दर्शनम टिकट कहाँ मिलेगा। उसने टैक्सी स्टैंड पर लगाकर हमें दिखाने आने लगा, तभी एक ठग टाईप का आदमी आया और कहने लगा कि आपको बाल देने हैं तो मैं सब बन्दोबस्त करवा देता हूँ, ढ़ाई सौ रुपये में बाल के साथ साथ तैयार होने के लिये कमरा भी दिलवा दूँगा। पर हमने उसे अपनी लठ भाषा बोलकर भगा दिया।
    फ़िर हम चल दिये अब्दुल के पीछे पीछे, हम अपने साथ एक जोड़ी वस्त्र और नहाने का समान लेकर आये थे जिसे साथ में लेकर हम उसके साथ चल दिये। अब्दुल तकरीबन ६० से ज्यादा बार यहाँ आया हुआ था तो उसे बहुत ही अच्छॆ से सब चीजें पता थीं। उसने हमें बताया कि यहाँ देवस्थानम है, यहाँ मुफ़्त में बाल दिये जाने की व्यवस्था है, जो कि तिरुपति देवस्थानम की ओर से दी जाती है, वहाँ अपने जूते उतारकर जाना पड़ता है।
    हम जैसे ही लाईन में लगे तो चलते ही गये, हाल के पहले हमें एक टोकन दिया गया और आधी ब्लेड, अंदर हाल में पहुँचे तो देखा कि बहुत सारे नाई वहाँ बैठे हुए हैं, और हमारे टोकन पर जिस नाई का नंबर लिखा हुआ था, हम भी उसके सामने लाईन में जाकर खड़े हो गये। तो उसे लगा कोई साहब आदमी आ गये हैं, उसने हमारे आगे वाले ५ लोगों को बाईपास कर हमें पहले बाल देने के लिये बैठा लिया, पानी से बाल गीले किये और जो आधा ब्लेड हमें दिया गया था, उससे हमारी हजामत बनाना शुरु कर दी, फ़िर हमसे पूछा कि दाढ़ी भी करनी है, हमने हाँ में अपनी गर्दन हिला दी, तो दाढ़ी भी बना दी गई। फ़िर धीरे से बोला पैसा दो न, हमने पहले घूरकर उसकी तरफ़ देखा, फ़िर भी बोला पैसा दो न, हमने चुपचाप अपनी जेब से दस रुपये का नोट निकाला और उसे थमा दिया, तो मुँह बनाते हुए उसने रख लिया। तभी देखा कि एक आदमी वहाँ आया और वे टोकन इकट्ठे करने लगा तो जितने भी नाई थे सबने अपने अपने टोकन दिये और साथ में दस दस के दो या तीन नोट भी रिश्वत के तौर पर पकड़ा रहे हैं। सबसे टोकन इकट्ठे करने के बाद हाल के बाहर एक कंप्यूटर लगा हुआ है जहाँ पर बारकोड रीडर से उन टोकनों को पंच किया जा रहा था, और जो दस दस के नोट बीच में से निकल रहे थे, उन्हें अपनी जेब में रखता जा रहा था। हम तो उन लोगों की बेशर्मी को देख रहे थे कि देवस्थान पर रिश्वत का नंगा नाच कर रहे हैं, और कोई भी इन लोगों के विरुद्ध बोलने वाला नहीं है। और अगर किसी को बोलो भी तो हिन्दी या अंग्रेजी न जानने का नाटक करने लगेंगे।
    फ़िर वहीं से नीचे जाने का रास्ता था, जहाँ नहाने की व्यवस्था थी, महिलाओं और पुरुषों के लिये अलग अलग गुसलखाने बने हुए हैं और गरम पानी भी उपलब्ध था, क्योंकि तिरुपति में अच्छी खासी ठंड थी।
    हम वहीं तैयार हुए और अपना समान लेकर चल दिये अपनी टैक्सी की ओर अपना समान रखने के लिये । वैसे वहाँ पर अमानती समान घर उपलब्ध है, वहाँ पर भी समान रख सकते हैं। पर हमें दर्शन करने के बाद फ़िर बहुत लंबा घूमकर इस स्थान पर आना पड़ता इसलिये हमने टैक्सी में ही हमने अपना समान रखना उचित समझा।
कुछ और चित्र देखिये –
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    पहले चित्र में देखिये बालाजी का मंदिर दिखाई देता है, और दूसरे चित्र में वहीं पास में ही एक मंदिर में चबूतरे पर बैठकर वहाँ की स्थानीय भाषा में भजन हो रहे थे, हालांकि हमें बोल समझ में तो नहीं आ रहे थे परंतु, बहुत ही आकृष्ट कर रहे थे।

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तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – ४ [जैसे देवलोक में आ गये हों..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 4)

हम जैसे ही तिरुपति से तिरुमाला के लिये निकले तो बहुत ही ज्यादा ट्राफ़िक था मुंबई की भाषा में बोले तो गर्दी थी, ड्राईवर का नाम अब्दुल था, और अच्छी खासी हिन्दी बोलता और समझता है, उतना ही उसका तमिल और तेलुगू पर अधिकार है। अब्दुल ने हमें बताया कि आज रविवार है और इस कारण बहुत भीड़ है, लोग दूर दूर से आते हैं, सप्ताहांत पर तो बहुत ही ज्यादा भीड़ रहती है, याने कि भक्तों का सैलाब रहता है।

जब हम तिरुपति आ रहे थे, तब भी हमने बहुत सारे लोगों को सड़क के किनारे पैदल चलते हुए देखा था जो कि तिरुपति की ओर जा रहे थे, तब अब्दुल ने बताया कि ये सब लोग पैदल ही बालाजी के दर्शन करने जा रहे हैं। हमने उन सबकी भक्ति को दिल से नमन किया।

तिरुपति से निकलते हुए तिरुपति देवस्थानम की बहुत ही बड़ी इमारत देखी जिसमें वहाँ से आप बायोमेट्रिक वाले टिकट ले सकते हैं, और वहाँ रुक भी सकते हैं, यह देवस्थानम की तरफ़ से भक्तों के लिये तिरुपति में सुविधा है।

जैसे जैसे तिरुपति से बाहर निकल रहे थे, तिरुमाला की ओर बढ़ रहे थे, मनोहारी दृश्य आते जा रहे थे, और इतना साफ़ शहर देख रहे थे और आश्चर्य कर रहे थे कि भारत में भी इतना साफ़ शहर मौजूद है। बहुत ही अच्छा रखरखाव है प्रशासन का, यह देखकर अच्छा लगा। पैदल चलने वालों के लिये अलग से फ़ुटपाथ बना हुआ था, जिस पर पैदल यात्री जा रहे थे, हमारे दायीं तरफ़ पहाड़ियाँ थीं, हम वह नजारा देख ही रहे थे कि दूर से हमें भव्य द्वार नजर आया, हमें अब्दुल ने बताया कि यह यहाँ का टोल नाका है, जहाँ पर चैकिंग होती है कि आपके पास नशेयुक्त पदार्थ तो नहीं है जैसे कि बीड़ी, सिगरेट, शराब, गुटका इत्यादि। सघन तलाशी होती है पूरी टैक्सी की और हमारी भी, अच्छा लगा कि इतनी चैकिंग होती है जिससे कोई भी नशेयुक्त पदार्थ तो कम से कम नहीं ले जा पायेगा। वहाँ पर लगभग आठ टोल बने हुए थे, और २५ रुपये का टोल था।

सबसे अच्छी बात यह है कि तिरुपति से तिरुमाला जाने का मार्ग अलग और आने का मार्ग अलग है, क्योंकि बहुत ही घुमावदार सड़कें हैं और बहुत सारे घाट पार करना होते हैं।

थोड़ा सा आगे बड़े तो हम तिरुमाला के पर्वत श्रेणी में दाखिल हो चुके थे, बहुत सारी बसें एक के पीछे एक थीं सरकारी। बहुत ही ज्यादा घुमावदार सड़के हैं, मजा भी आ रहा था और पेट में गुदगुदी भी हो रही थी। जैसे जैसे हम तिरुमाला की ओर जा रहे थे, वैसे वैसे हम बादलों के बीच में होते जा रहे थे, पास के सारे नजारे बहुत ही अद्भुत लग रहे थे, ऐसा लग रहा था कि हम देवलोक में आ गये हैं। थोड़ा सा और ऊपर जाने पर दबाब महसूस हुआ जैसा कि हवाई यात्रा के दौरान महसूस होता है। हरियाली और बादलों के बीच हमारी यात्रा चल रही थी, सड़क पर हमेशा एक तरफ़ पहाड़ की दीवार और दूसरी तरफ़ खाई मिली, सुरक्षा की दृष्टि से खाई की तरफ़ बड़े पत्थरों की दीवार और लोहे की गर्डर लगायीं हुई थी।

जैसे जैसे हम बालाजी के नजदीक आते जा रहे थे वैसे वैसे प्राकृतिक दृश्य मनोरम होते जा रहे थे।

कुछ मनोरम दृश्य देखिये –

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तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – ३ [चैन्नई से निकले तड़के ३ बजे..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 3) [Started from Chennai in early morning 3am..]

    हमने अपने होटल को बोल कर टैक्सी आरक्षित कर ली, शनिवार ६ फ़रवरी को, पहले ही हमें बहुत थकान हो रही थी, और फ़िर जब कार्यक्रम बनाया तो पता चला कि अगर तड़के निकलेंगे तो ठीक रहेगा और सब ठीक प्रकार से होगा। हमने सुबह ३ बजे निकलने का कार्यक्रम पक्का किया।

    रात को नींद भी पूरी न हो पाई और फ़िर सुबह उठने की चिंता अलग हमने सुबह ढ़ाई बजे का अलार्म अपने मोबाईल में लगाया और होटल के रिशेप्सन पर भी अलार्म लगवा दिया। कब सोये और कब होटल वाले का फ़ोन आ गया लगा कि उसने गलत टाईम का अलार्म लगा दिया है। जब घड़ी देखी तो पता चला कि समय सुबह के २.२२ हो रहा है और टैक्सी आ चुकी है। हम फ़टाफ़ट तैयार हुए, नहाये (जी हाँ हमारी आदत है कि अगर कहीं भी बाहर जायेंगे तो बिना नहाये हमसे जाते नहीं बनता, इसलिये तड़के नहाये।)।

    हमारे दो सहकर्मी भी हमारे साथ थे, जो कि हमारे सहयात्री भी थे इस यात्रा में। हालांकि हम ५-६ साल पहले एक बार दर्शन करके जा चुके थे इसलिये हमें कुछ कुछ याद था। चैन्नई से बाहर निकलते  ही हमने टैक्सी को मद्रासी ढ़ाबे पर रुकवाया और चाय पी, हमने अपने होटल वाले को विशेष रुप से कहा था कि ड्राईवर को हिन्दी आनी चाहिये और उसे सभी जगह का पता भी होना चाहिये।

    यहाँ चाय बनाने का ढ़ंग भी निराला है, और चाय हमेशा तैयार रहती है, पर हमेशा ताजी, बनी बनायी नहीं। चाय की पत्ती का बर्तन अलग होता है अपने मग्गे जैसा और उसमें एक लंबी से छलनी रखते हैं, जिसमें चाय पत्ती रहती है और मग्गे में पानी जो कि चाय का हो जाता है, अलग से गिलास में शक्कर डालकर थोड़ी से चाय का अर्क इस छलनी में से गिलास में डालते हैं, और फ़िर थोड़ा सा दूध डालकर उसे एक मग से अल्टी पल्टी करते हैं। बस हो गयी चाय तैयार। इतनी सुबह उस ढ़ाबे पर २-३ बड़े बड़े परात भरकर अलग अलग तरह की मिठाईयाँ रखी हुई थीं, हमें बहुत आश्चर्य हुआ कि रात को मिठाई कौन खाता होगा। पर वहाँ तो खाने वाले भी मौजूद थे, तब ड्राईवर बोला कि पास ही इंडस्ट्रियल एरिया है इसलिये यहाँ ये मिठाई है जो कि मजदूर खाते हैं, यहाँ मजदूर उड़ीसा और बिहार से आते हैं।

    खैर चाय पीकर हमने वापिस अपनी यात्रा शुरु की, थोड़ी देर में ही हमें नींद ने अपने आगोश में ले लिया और जब आँख खुली तो देखा कि रेनिगुंटा आ चुका है, जो कि रेल्वे से पहुँचने का स्थान है। सुबह के ६.३० बजे थे, यहाँ से तिरुपति १५ कि.मी. था, वहाँ लगे रास्ते के निर्देशों से पता चला कि यहीं पर २.५ कि.मी. पास ही तिरुपति का विमानतल है। हम आधे घंटे में ही तिरुपति पहुँच गये और फ़िर एक बार चाय पी, कड़क जिससे अपनी आँख पूरी खुल जाये। क्योंकि अब सप्तगिरी का सफ़र शुरु होने वाला था, तिरुमाला का सफ़र, बालाजी का सफ़र।

    तिरुपति में इन छ: सालों में बहुत ही बदलाव आ गया था, जगह जगह बड़ी बड़ी इमारतें, चौड़ी सड़कें, समय के साथ सब कुछ बदल गया। सब इतना व्यावसायिक हो गया है कि दिल बहुत बैचेन हो उठा। केवल इन छ: सालों में इतना कुछ बदल गया। वैसे यही हालत उज्जैन की भी हो गई है, सब व्यावसायिक हो गया है। परंतु हम तो बालाजी के दर्शन करने को आये थे, इसलिये “ऊँ वैंकटेश्वराय नम:” बोलकर आगे बढ़ चले।

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तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – 2 [कैसे जायें भारत के किसी भी हिस्से से..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 2) [How to come from any part of india..]

    बालाजी दर्शन तिरुमाला पर होते हैं, जो कि तिरुपति से सात पहाड़ दूर है, तिरुपति रेल्वे से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। और अगर कहीं और से आ रहे हैं, तो रेनुगुंटा स्टेशन आपको पड़ेगा जहाँ से तिरुपति मात्र १५ कि.मी. है।
    तिरुपती चैन्नई से लगभग १४० कि.मी. है और बैगलोर से लगभग २६० कि.मी.। बैंगलोर से भी पैकेज टूर उपलब्ध हैं जैसे कि चैन्नई से, वहाँ से आन्ध्राप्रदेश टूरिज्म, कर्नाटक टूरिज्म और निजी ट्रेवल्स की सुविधाएँ ले सकते हैं, और अगर बड़ा ग्रुप है तो अपनी टैक्सी ज्यादा अच्छा विकल्प है।
    अगर तिरुपति में रुकना है तो आप ऑनलाईन कमरे का आरक्षण करवा सकते हैं, वैसे वहाँ नि:शुल्क कमरे भी उपलब्ध हैं और डोरमेट्री भी नि:शुल्क उपलब्ध है।
    तिरुपति से तिरुमाला तकरीबन १७ कि.मी. है, यहाँ वोल्वो बसों का जाना प्रतिबंधित है। तिरुपति से बस स्टैंड से तिरुमाला की बस पकड़ सकते हैं, टिकट है २८ रुपये जो कि हर दो मिनिट में उपलब्ध है। मंदिर देवस्थानम ट्रस्ट की ओर से भी एक बस चलती है जो कि फ़्री सर्विस है, वह हर आधे घंटे में उपलब्ध है। अगर आप अपनी टैक्सी या टैम्पो ट्रेवलर से जा रहे हैं तो तिरुमाला उसी से जा सकते हैं।
    अगर सुंदरसन दर्शन करना है तो उसके लिये आपको ५० रुपये का टिकिट तिरुपति रेल्वे स्टेशन के पास काऊँटर से मिलेगा, और अगर बैंगलोर या चैन्नई से आ रहे हैं, तो तिरुपति देवस्थानम के कार्यालयों से जाकर ले सकते हैं। ५० रुपये का टिकट तिरुमाला में नहीं मिलता है। वहाँ केवल ३०० रुपये का शीघ्रदर्शन टिकट ही मिलता है, जो कि केवल तिरुमाला में ही मिलता है, यह टिकट और किसी भी शहर में उपलब्ध नहीं है और न ही इस टिकट की ऑनलाईन बुकिंग होती है।
    निकट का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा चैन्नई है और घरेलू हवाई अड्डा तिरुपति है।
    तिरुमाला में किसी भी ठग का शिकार न बनें वहाँ पर तमिल, तेलेगु, हिन्दी और अंग्रेजी में सभी तरह के संदेश लिखे हुए हैं, किसी से कुछ भी पूछने की जरुरत नहीं पड़ती है।
    तिरुपति विश्व का दूसरा सबसे बड़ा धनी देवस्थान है, वहाँ पर भक्तों के लिये सभी सुविधाएँ मुफ़्त उपलब्ध हैं या फ़िर बहुत ही कम दामों पर। लूट तो हर जगह होती है, बस जरुरत है तो आपको ऐसे लोगों से बचने की। तिरुमाला में बसें लगातार चलती रहती हैं, जिससे आप एक स्थान से दूसरे स्थान जा सकते हैं, ये भी मुफ़्त हैं, और बसें भी विशेष प्रकार की हैं, जैसे भगवान का खुद का रथ हो।
    तिरुपति से तिरुमाला पैदल भी जा सकते हैं, यह तकरीबन १४ कि.मी. है, अगर आप के पास सामान है तो तिरुपति में जहाँ से पैदल यात्रा शुरु करते हैं, वहाँ देवस्थानम के लगेज काऊँटर पर आप अपना सामान जमा करवा सकते हैं, और जब आप तिरुमाला पहुँचेंगे तो वहाँ लगेज काऊँटर से अपना समान वापिस ले सकते हैं। यह दूरी तय करने में ४-५ घंटे लगते हैं। पैदलयात्रियों के लिये सभी तरह की सुविधाएँ उपलब्ध हैं, जगह जगह पीने का पानी उपलब्ध है, शौचालय हैं, आराम करने के लिये शेड उपलब्ध हैं, सुरक्षा के लिये जगह जगह कर्मी तैनात हैं। जरुरी उदघोषणाएँ समय समय पर होती रहती हैं। पूरे रास्ते चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध हैं। नाश्ते के लिये केंटीन भी पूरे रास्ते में उपलब्ध हैं।

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चैन्नई में कल का रात्रि भोजन और आसपास के वातावरण के कुछ चित्र से अपने जहन में बीती जिंदगी का कोलाज बन गया…

    कल का रात्रि भोजन जो कि फ़िर हमने सरवाना भवन में किया, माफ़ कीजियेगा बहुत से ब्लॉगर्स को हमने इसका नाम याद करवा दिया है, और केवल इसके लिये ही वो चैन्नई आने को तैयार हैं।

    जब हम पहुँचे तो पहले से ही इंतजार की लाईन लगी थी क्योंकि बैठने की जगह बिल्कुल नहीं थी, हमने लिखवा दिया कि भई हमारा भी नंबर लगा दो। पीछे वेटिंग में पाँच लोगों का बहुत बड़ा परिवार (बड़ा इसलिये कि आजकल तो हम दो हमारा एक का कान्सेप्ट है।) और उनके पीछे दो लड़के हमारी ही उम्र के होंगे और साथ में उनके साथ एक वृद्धा थीं। पहला हमारा ही नंबर था, जैसे ही एक टेबल खाली होने वाली थी वैसे ही वेटर ने हमें उस टेबल का अधिकार हमें इशारा करके दे दिया। जो उस टेबल पर बैठे थे वो भाईसाहब हाथ धोने गये थे तब तक वेटर उनका बिल लेकर आ गया और उनको खड़े खड़े ही पेमेन्ट भी देना पड़ा और वापस छुट्टे आने का इंतजार भी करना पड़ा।

    पर हम अपनी कुर्सी पर ऐसे धँस गये थे बिल्कुल बेशर्म बनकर कि हमें कोई मतलब ही नहीं है, हालांकि अगर ये हमारे साथ होता तो बहुत गुस्सा आता और शायद इस बात पर हंगामा खड़ा कर देते। जब हम इंतजार की लाईन में खड़े थे तभी मेन्यू कार्ड लेकर क्या खाना है वो देख लिया था जिससे बैठकर सोचने में समय खराब न हो क्योंकि बहुत जोर से भूख लगी थी।

    आर्डर दे दिया गया, जहाँ हम बैठे थे उसी हाल के पास में ही खड़े होकर खाने की व्यवस्था थी, सेल्फ़ सर्विस वाली। हमारी टेबल के पास ही एक टेबल पर एक लड़की पानी बताशे खा रही थी, तो बताशा उसने जैसे ही मुँह में रखा, तो मुँह खुला ही रह गया, क्योंकि बताशा एक बार के खाने के चक्कर में उसके मुँह में फ़ँस गया था, उसने कोशिश की पर कुछ नहीं हुआ फ़िर अंतत: अपने हाथ से बताशा मुँह के अंदर करना पड़ा ये सब देखकर हमें अपने पुराने दिन याद आ गये, जब हम अपने उज्जैन में चौराहे पर पानी बताशे वाले के यहाँ खड़े होकर बड़े बड़े बताशे निकालने को कहते थे कि मुँह में फ़ँस जाये। और हम सारे मित्र लोग बहुत हँसते थे।

    तभी हमारे सहकर्मी जो कि हमारे साथ थे कहा कि देखो उधर सिलेंडर देखो, तो उधर हमने देखा तो पाया कि एक सुंदर सी लड़की खड़ी थी, हमारा सहकर्मी बोलता है कि हमने सिलेंडर देखने को बोला है, लड़की नहीं। किसी जमाने में हम भी अपने दोस्तों के साथ यही किया करते थे, और बहुत मजा किया करते थे। अपने स्कूल कॉलेज के दिनों की बातें याद आ गईं।

    अगली टेबल पर एक छोटा परिवार (छोटा इसलिये कि वो हम दो हमारा एक कॉन्सेप्ट के थे) था जो कि खड़ा होकर खा रहा था। और अपने प्यारे दुलारे बेटे को गोल टेबल पर बैठा रखा था, और उसकी मम्मी पापा बड़े प्यार दुलार से अपने बेटे को अपने हाथों से खिला रहे थे। और साथ में प्यार भी करते जा रहे थे। हमें हमारे बेटे की याद आ गई, क्योंकि वो भी लगभग इतनी ही उम्र का है, और शैतानियों में तो नंबर वन है। कहीं भी चला जाये तो पता चल जाता है कि हर्षवर्धन आ गये हैं। होटल में तो बस पूछिये ही मत पूरा होटल सर पर रख लेंगे, होटल वाला अपने आप एक आदमी उसके पीछे छोड़ देता है, कि यह पता नहीं क्या शैतानी करने वाला है, और हम लोग अपना खाना मजे में खाकर बेटे को साथ में लेकर चल देते हैं, बेचारा होटल वाला भी मन में सोचता होगा कि ये हमारे यहाँ क्यों खाने आये हैं।

    आज हमें कुछ ज्यादा ही मोटे लोग नजर आये, तो समीर भाई “उड़नतश्तरी जी” की टिप्पणी याद आ गई, कि हमें तो खाने का फ़ोटू देखते ही वजन दो किलो बड़ गया, ध्यान रखें। मोटे लोगों को देखकर अनायास ही मुँह से निकल जाता है, ये देखिये अपना भविष्य। पर क्या करें बेशर्म बनकर उनको देखते रहते हैं।

    शाम को ही एक बिहारी की दुकान पर समोसा खा रहे थे, तो वहाँ पर एक बेहद मोटा व्यक्ति जलेबियाँ खा रहा था, कपड़े ब्रांडेड पहने हुआ था, और मजे में जलेबियाँ खाये जा रहा था, हम सोचने लगे कि ये तो हमसे लगभग तिगुना है फ़िर भी क्या जलेबियाँ सूत रहा है, तो बसे हम समोसे पर ही रुक गये और जलेबियों की ओर देखा भी नहीं, केवल उस मोटे व्यक्ति की ओर एक नजर देखकर चुपचाप सरक लिये।

    जब सरवाना भवन से खाकर निकले तो बिल्कुल पास में ही एक पान वाले भैया खोका लगाकर बैठते हैं, ५ दिन से हम इनके पर्मानेंट ग्राहक हैं, भैया जी इलाहाबाद के हैं और बहुत रसभरी प्यारी प्यारी बातें करते हैं पर तमिल पर भी उतना ही अधिकार है, जितना कि अपनी मातृभाषा पर, पर उनका टोन बिल्कुल नहीं बदला है, अभी भी ऐसा ही लगता है कि छोरा गंगा किनारे वाला ही बोल रहा है। उनसे हम अपना पान लगवाकर थोड़ी सी हिन्दी में मसखरी करके अपने रास्ते निकल लेते हैं। आज वे भी प्यार से बोले “बाबू आप भी हमारे मुल्क से लगते हो” हम भी बोल ही दिये “भई हम तो इलाहाबाद के दामाद हैं।” और चल दिये अपने ठिकाने की ओर…

कोलकाता के बंगाली डॉन क्यों नहीं होते…… ?

यह संस्मरण किसी भाषा या किसी क्षेत्र की बुराई नहीं करता है, और न ही इस मकसद से लिखा गया है, यह हमारे मित्र के साथ हुई एक सुखद याद है, संस्मरण है, किसी विवाद का विषय न बनायें, कोई बंगाली भाई बुरा न माने।

    हम पहले जिस कंपनी में कार्यरत थे उसी में एक लड़का कोलकाता से आया था, और हमारे ही कमरे में ठहरा था, उसे उसका मामा छोड़ने आया था, बंगालियों में प्रथा होती है कि अगर लड़का पहली बार बाहर जा रहा होता है तो कोई बड़ा छोड़ने जाता है। ऐसा उसने हमें बताया। हमने उससे कहा कि भई ये कंपनी का गेस्ट हाऊस है यहाँ तुम्हारे अंकल नहीं रुक सकते हैं। तो वो ऐसे ही हमसे बहस करने लगा। हमने उसे समझा दिया बेटा न तुम रह पाओगे और न तुम्हारे साथ तुम्हारे मामा। चुपचाप रह लो और इनको जल्दी से घर भेज दो, तुम्हारे घर वाले इनके लिये परेशान हो रहे होंगे।

    जब उसके मामा चले गये तब तो उसने बहुत ही परेशान कर दिया, बोलता क्या था और हमें समझता क्या था, वो बंगाली बाबू कहता था, हम रोटी खाता है और चाय भी खाता है, बस हमारे तो दिमाग की दही कर रखी थी।

    एक दिन ऐसे ही शाम को किसी बात पर गुस्सा आ गया अरे भई हमें नहीं उसे वो भी हमारे ऊपर। अंट शंट बोलने लगा, अब बेचारे को थोड़ी बहुत हिन्दी आती थी और अंग्रेजी भी ज्यादा नहीं आती थी। वैसे भी जब इंसान को गुस्सा आता है तो अपनी मातृभाषा में या जिस भाषा पर उसका ज्यादा अधिकार होता है, उसी में गाली बकने लगता है, अंट शंट बकने लगता है। बस हमें भी गुस्सा आ गया। हम उस समय ११वें माले पर रहते थे, कह अब एक भी शब्द निकाला तो “जहीं से नीचे फ़ेंक देंगे, चिल्लाता हुआ नीचे जायेगा और धप की आवाज आयेगी”। तो बस इतना हमारा कहना था कि वह तो और आगबबूला हो उठा, बोलता है कि हम भी ऐसा ही कुछ कर सकता हूँ।

     तो मैंने उससे मसखरी में ही पूछ लिया अच्छा बता तेरे बंगाल से आज तक कितने डॉन हुए हैं, मैं जहाँ का रहने वाला हूँ वहाँ के मैं गिनाता हूँ, क्योंकि अपनी तो अकल ही घुटने में है (समझ गये न कि मैं कहाँ का रहने वाला हूँ)। बोल अब बोलती बंद क्यों हो गयी, अबे बंगाली तो होते ही सीधे हैं, केवल जबान चलानी आती है परंतु हाथ चलाने में दम गुर्दे चहिये होते हैं, बस बंगाली बाबू बिल्कुल शांत।

    हमारे बंगाली मित्र बोलते हैं कि यह तो हमें भी नहीं पता कि कोलकाता के बंगाली डॉन क्यों नहीं होते….?

हमारी रेल संस्कृति

हमारे देश भारत में रेल का महत्व सर्वविदित है, नीचे दर्जे के अफसर से लेकर मंत्रियों संतरियों तक पद की मारामारी होती है अपने प्रभाव के लिये नहीं, उनका उद्देश्य तो सिर्फ धन कमाना है फिर भले ही वह रेलवे पुलिस का अदना सा सिपाही हो या टिकिट चेकर, कलेक्टर हो या फिर कोई बाबू हो या ऊपर ……… कहने की जरुरत नहीं आप खुद ही समझ जाइये आज भी मध्यमवर्गीय समाज इतना सक्षम नहीं हुआ है कि वातानुकुलित कोच में यात्रा कर सके वह तो सामान्य शयनयान में ही यात्रा करता है, फिर भले ही लालूजी ने “गरीब रथ” चला दिये हों, पर फिर भी मध्यमवर्गीय समाज की सोच वही रहेगी, वह भी सोचेगा क्यों आदत बिगाडें भले ही आप आरक्षण करवा लें परंतु आज भी कुछ मार्गों पर दुर्भाग्यपूर्ण स्थिती है कि कोई और ही आपकी सीट पर कब्जा किये मिलेगा, बेचारे टी.सी. का चेहरा देखकर ऐसा लगेगा कि यह तो उसके लिये भी चुनौती है उसके पास अधिकार तो कहने मात्र के लिये हैं टी.सी. की मेहनत और कर्त्तव्यता किसी को नहीं दिखती बस सभी लोग उसकी कमाई को देखते हैं तो अरे भैया कुछ पाने के लिये कुछ खोना तो पडता ही है भ्रष्टाचार व कार्य में अनियमितता तो सरकारी तंत्र का पर्याय बन गई है, और हमारी रेल भी तो सरकारी है रेल विभाग में भ्रष्टाचार के सामान्य दैनिक उदाहरण जो कि लगभग सभी के साथ बीतते हैं …
१. R.P.F. के सिपाही ने एक व्यक्ति को पटरी पार करने के जुर्म में पकडा और कहा मजिस्ट्रेट सजा सुनायेंगे, पर ये क्या सिपाही थाने पहुँचा तो अकेला, क्योंकि वह व्यक्ति तो इनकी जेब गर्म करके जा चुका था
२. रेल विभाग की खानपान सेवा चाय लीजिये ५ रु., खाना ३५ रु., चिप्स १२ रु., कोल्डड्रिंक २२ रु., की और टैरिफ कार्ड मंगाओ तो पता चलता है कि पेंट्री मैनेजर आता है और कहता है साब बच्चे से गलती हो गई क्योंकि सभी में २‍ या ३ रु. तक ज्यादा ले रहे हैं अच्छी कमाई करते हैं ये खानपान वाले भी
३. शादी का सीजन है और आरक्षण उपलब्ध नहीं है, वैसे तो आफ सीजन में भी नहीं मिलता, अगर हम आरक्षण खिडकी पर पूछेंगे तो जबाब मिलेगा वेटिंग है और वहीं खडे एजेन्ट से कहेंगे तो वह नजरों में आपको तोलकर आपकी कीमत बता देगा जो कि १०० से ८०० रु. तक होती है पर ३०० रुपये शायद सबका फिक्स रेट है और आपको आरक्षित सीट का टिकट मिल जायेगा भगवान जाने रेल विभाग ने कैसा साफ्टवेयर बनवाया है कि उसमें भी सेटिंग है
४. रेल का जनरल टिकट ले लिया और फिर पहुँच गये सीधे रेल पर तो आरक्षण के लिये मिलिये टी.सी. महोदय से, वो कहेंगे सीजन चल रहा है, सेवा पानी करना पड़ेगी और बेचारे वेटिंग वाले वेट करते रह जाते हैं अगला आदमी सेवापानी करके सीट पर काबिज हो जाता है
यह तो महज कुछ ही उदाहरण हैं, हमारी रेल अगर समय पर आ जाये तो गजब हो जाये, आती है हमेशा लेट और अब तो आदर हो गई है, और तो और खुद रेल विभाग को नहीं पता होता कि कितनी लेट है २० मिनिट कहते हैं आती है २घंटे में
हे भगवान मैं थक गया लिखते लिखते पर रेल की महिमा ऐसी है कि खत्म ही नहीं होती, यही तो है हमारी रेल संस्कृति …….