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इंडियाप्लाजा की अच्छे ऑफ़रों पर घटिया सर्विसेस (Bad services on Great offers by Indiaplaza.com)
लगभग एक सप्ताह होने आया इंडियाप्लाजा से ईमेल पर एक ऑफ़र आया था, और ऑफ़र बहुत अच्छा लगा, मैंने सोचा कि इससे अच्छी डील और कहीं नहीं मिलेगी, तो फ़टाफ़ट ऑनलाईन ऑर्डर कर दिया।
इसके पहले भी कई अन्य साईटों पर ऑनलाईन ऑर्डर कर चुके हैं, तो उसका अनुभव पहले से ही था, उसके मुकाबले इंडियाप्लाजा के साथ खरीदारी का अनुभव बहुत ही खराब रहा।
जैसे ही हमने भुगतान किया एक नया पेज खुला जिस पर ट्रांजेक्शन रिफ़ेरेन्स नंबर दिया गया, यह तो अच्छा हुआ कि हमने उसे पीडीएफ़ बनाकर सहेज लिया, जो कि मैं अधिकतर ऑनलाईन ट्रांजेक्शन करने के बाद करता हूँ, और तब तक सहेज कर रखता हूँ जब तक कि समान मुझे मिल नहीं जाता है। इधर ट्रांजेक्शन पूरा हुआ नहीं कि हमने सोचा कि अब ईमेल से संपूर्ण जानकारी भेज दी गई होगी। परंतु कोई ईमेल इंडियाप्लाजा की तरफ़ से नहीं आया। हमने सोचा शायद थोड़ी देर बाद आयेगा, परंतु ईमेल न आना था और न ही आया ।
दो दिन पहले एक ईमेल इंडियाप्लाजा से ईमेल आया कि शिपिंग में देरी हो रही है और कल शिपिंग होगी, हमने सोचा कि चलो इंडियाप्लाजा वालों ने इतना तो ध्यान रखा कि देरी के लिये ईमेल लिख दिया। खैर अभी तक तो हमें समान नहीं मिला है और न ही कोई अन्य ईमेल देरी के लिये मिला है।
अगर किसी अन्य ऑनलाईन साईट पर ऑर्डर किया होता तो वे बिल के साथ साथ कूरियर का रिफ़रेन्स नंबर भी ईमेल कर देते हैं। जिससे आप कूरियर ऑनलाईन ट्रेक कर सकते हैं।
उम्मीद है कि एक दो दिन में समान मिल जाना चाहिये, आगे टिप्पणी में बताते हैं कि कब समान आता है।
बैंकों के अकाऊँट नंबर पोर्टेबिलिटी भारतीय रिजर्व बैंक के लिये आसान नहीं होगी (Bank Account Number Portability will not be easy task for RBI)
क्या ब्लॉग / नेट से पैसे कमाना वाकई आसान है ? (Earning money by Blog / Net is really Simple ?)
एक सीट की हार से तूफ़ान का अंदाजा लगाईये..नहीं तो बहुत देर हो जायेगी
सरकार की तरफ़ से बयान आया है कि केवल एक सीट की हार से सरकार की कार्यप्रणाली आंकना ठीक नहीं है। चलो हम भी इस बात से सहमत हैं कि एक सीट की हार से किसी की हार जीत का पैमाना तय नहीं होता है, परंतु जनता का रूख लगता है कि कांग्रेस भांप नहीं पा रही है, कि उनका सफ़ाया तय है, क्योंकि जो भ्रष्टाचार के खिलाफ़ मुहीम चल रही है उसमें कांग्रेस सबसे बड़ा रोड़ा अटका रही है, अभी लोकपाल बिल पास करना केवल उनके पाले में आता है।
अण्णा की टीम और अण्णा खुद कांग्रेस के विरोध में सड़क पर उतर आये हैं, और जो नकारात्मक दृष्टिकोण जनता के बीच में रख रहे हैं, उसे कांग्रेस को सकारात्मक दृष्टिकोण में बदलना असंभव नजर आ रहा है। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जिन्होंने १० वर्ष शासन किया और तानाशाही जैसा माहौल पैदा कर दिया। तब मजबूरी में जनता को भाजपा को चुनना पड़ा, उस समय मध्यप्रदेश में भाजपा की स्थिती ऐसी थी कि वह किसी को भी कोई सी भी सीट से टिकट दे देती तो वह जीत जाता। और यह हुआ भी, उस समय भी इन मुख्यमंत्रीजी ने हाईकमान को कहा था कि कांग्रेस की जीत तय है, जबकि सतही स्तर की सुगबुगाहट ये भांप ही नहीं पाये। और जनता ने कांग्रेस को धूल चटाकर इतिहास रच दिया। तब इन मुख्यमंत्री महोदय ने चुनाव के पहले बोला था कि अगर कांग्रेस हार गई तो वे अगले १० वर्ष तक कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे।
अब ये बेचार चुनाव तो लड़ नहीं सकते क्योंकि जनता के बीच में बोल दिया था, और मध्यप्रदेश में कांग्रेस का बंटाढ़ार करने के बाद अब आजकल ये बेबी बाबा के मुख्य सलाहकार हैं, और अब ये केन्द्र स्तर पर कांग्रेस की लुटिया डुबाने में भरपूर योगदान दे रहे हैं, और तो और कांग्रेस में इनसे एक से एक बड़े वाले हैं जो कि लुटिया डुबाने में नंबर १ की होड़ में हैं।
यह कह दिया जाये कि लोकपाल बिल को न लाने से कांग्रेस अपने ताबुत में आखिरी कील ठोंक रहा है तो गलत नहीं होगा। अब भ्रष्टाचार पर इस लोकपाल बिल से कितना अंकुश लगेगा यह तो बिल पारित होने के बाद लागू होने पर ही पता चलेगा और तब इसमें शायद व्यवहारिक सुधारों की दरकार होगी।
पिटने को तैयार रहें, भारत में अराजकता पैर पसार चुकी है ।
कल पटियाला हाऊस कोर्ट के सामने जो भी हुआ अन्ना के समर्थकों के साथ उससे प्रशासन और भारत सरकार का संदेश साफ़ है कि आम जनता और अन्ना के समर्थक पिटने को तैयार रहें, वे सीधे नहीं पीट सकते हैं तो कुछ गुंडे जिनको सरकार ने शह दी है या फ़िर उनके ही हैं, वे जनता को पीट सकते हैं, और इसका सीधा मतलब है कि भारत में अराजकता पैर पसार चुकी है।
अब जनता या तो पिटने को तैयार रहे या फ़िर प्रशासन और इन गुंडों के खिलाफ़ खुद ही लठ्ठ लेकर तैयार रहे। क्योंकि प्रशासन की जाँच का हश्र तो सभी जानते हैं, जाँच चलती रहेगी और इन गुंडों पर केस चलते रहेंगे।
नाम भी श्रीराम का लिया है, वे श्रीराम जो कि समाज के लिये आदर्श हैं, मर्यादा पुरूषोत्तम हैं, पिता के वचन के लिये वनवास स्वीकार लिया । धिक्कार है ऐसे लोगों पर जो श्रीराम के नाम पर सेना का निर्माण कर रहे हैं और श्रीराम के नाम का गलत उपयोग कर रहे हैं।
ऑनलाईन भुगतान के लिये ग्राहक का विश्वास रेल्वे ने दिया है (Railway created faith in consumers for online payment and delivery)
पारिवारिक समय का कत्ल कर रहे है अंतर्जाल और फ़ेसबुकिया दोस्त (Facebook and Internet are killing family time)
अभी कुछ समय से अपने ऊपर ही विश्लेषण कर रहा हूँ कि एक बार लेपटॉप पर कुछ थोड़ा सा कार्य लेकर बैठे तो कार्य तो खत्म हो गया, किंतु बाकी का समय फ़ेसबुक, ट्विटर या ब्लॉग पढ़ने में निकल जाता है, और यह समय किस तेजी से भागता है, यह तो सिस्टम ट्रे की घड़ी और सामने दीवार पर लगी घड़ी दोनों बताते रहते हैं।
वर्षों पहले बचपन की सुनहली तस्वीर सामने आती है, जब न बुद्धुबक्सा था न अंतर्जाल तक पहुँचाने वाला ये तकनीकी यंत्र नहीं था, तब लगभग सभी परिवार अपने आप में बेहद मजबूती से बंधे हुए थे, और सबको एक दूसरे के दुख सुख का अहसास होता था, पता होता था। सामाजिक मूल्यों की परिभाषा अलग होती थी और अब सामाजिक मूल्यों की परिभाषा में बदलाव सहज ही देखा जा सकता है।
कल फ़ेसबुक पर बहुत सारे दोस्तों को जो कि केवल फ़ेसबुक दोस्त थे, जो इसलिये बना लिये गये थे कि उनके और हमारे कुछ कॉमन दोस्त थे, हटा रहे थे। दोस्तों की इतनी भीड़ देखकर दंग था और उनके द्वारा जारी किये गये स्टेटसों को भी देखकर, कुछ तो केवल अपनी भड़ास ही निकाल रहे थे और कुछ केवल समय का कत्ल कर रहे थे, तो हमने सोचा कि ऐसे समय का कत्ल करने वाले दोस्तों से पीछा छुड़ाना ज्यादा ठीक होगा, ठीक है थोड़ा सा अपना पारिवारिक समय का कत्ल होगा।
पीछा छुड़ाने से यह फ़ायदा तो होगा जो वाकई में दोस्त हैं उनके दुख सुख में शामिल तो हो सकेंगे उनकी वर्तमान गतिविधियों को देख तो सकेंगे। कल इतने समय फ़ेसबुक पर शायद पहली बार मैंने वक्त गुजारा और देखा कि कुछ लोग तो केवल दोस्त बनाने की होड़ में लगे हैं और सार्वाधिक दोस्त बनाने की होड़ में लगे हैं। केवल अपने मन को तृप्त करने के लिये ?
समय आ गया है कि थोड़ा अपने समय का कत्ल करके ऐसी चीजों से बचा जाये और बेहतरीन समय प्रबंधन कर परिवार को उचित समय दिया जा सके।
गालों पर तिरंगा.. भ्रष्टाचार..जन्माष्टमी..इस्कॉन..और अमूल बेबी बॉय
शाम को घर से निकले कृष्णजी के दर्शन के लिये तो देखा कि घर के सामने ही चाट की दुकान पर युवाओं की भीड़ उमड़ी हुई है और चाटवाले भैया का हाथ खाली नहीं है, कहीं किसी नौजवान युवक और युवतियों के गालों पर तिरंगा बना हुआ है तो किसी ने तिरंगे रंग की टीशर्ट पहन रखी थी। सब भ्रष्टाचार का विरोध कर के आ रहे थे। बैंगलोर में भ्रष्टाचार का विरोध फ़्रीडम पार्क में हो रहा है जिसके बारे में आज बैंगलोर मिरर में एक समाचार भी आया है कि ऑटो वाले जमकर चाँदी काट रहे हैं, मीटर के ऊपर ५०-१०० रूपये तक माँगे जा रहे हैं और पुलिस वाले चुपचाप हैं और लोगों को कह रहे हैं कि यही तो इनके कमाने के दिन हैं।
बड़ा अजीब लगता है कि लोग ऑटो वालों के भ्रष्टाचार से परेशान हैं और ज्यादा पैसा लेना भी तो जनता के साथ भ्रष्टाचार है और उसके बाद जनता भ्रष्टाचार का विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, “मैं अन्ना हूँ।” और भी फ़लाना ढ़िकाना… पर खुद भ्रष्टाचार खत्म नहीं करेंगे, अरे भई जनता समझो कि भ्रष्टाचार खुद ही खत्म करना होगा।
यहीं घर के पास ही एक कन्वेंशन सेंटर में इस्कॉन बैंगलोर ने जन्माष्टमी के अवसर पर आयोजन किया था, आयोजन भव्य था। दर्शन कर लिये पर पता नहीं चल रहा था कि ये मधु प्रभू वाला इस्कॉन है या मुंबई इस्कॉन वाला, आपकी जानकारी के लिये बता दूँ कि मधु प्रभू वाले राजाजी नगर, विजय नगर वाले मंदिर का इस्कॉन संस्था ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहिष्कार किया हुआ है। इस्कॉन मुंबई ने बैंगलोर में शेषाद्रीपुरम में अपना एक मंदिर बनाया है और अब एच.बी.आर. लेआऊट में एक और मंदिर बन रहा है।
दर्शन करने के बाद महामंत्र “हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” का श्रवण किया और फ़िर चल दिये प्रसादम की और जहाँ पर हलवा और पुलैगेरा चावल थे दोनों ही अपने मनपसंद बस पेटभर कर आस्वादन किया गया।
घर आये फ़िर न्यूज चैनल देखे तो पता चला कि अन्ना फ़ौज से भगौड़े नहीं हैं जो कि थोड़े दिनों पहले शासन करने वाली राजनैतिक पार्टी के लोग बयान दे रहे थे। अब तो वे बेचारे किसी को मुँह दिखाने लायक भी नहीं रहे, अरे भई बोलो मगर यह तो नहीं कि जो आये मुँह में बोल डालो, सब के सब दिग्विजय सिंह से टक्कर लेने में लगे हैं। वैसे आजकल ये महाशय चुप हैं, और नौजवान अमूल बेबी बॉय मुँह में निप्पल लेकर बैठे हुए हैं, क्योंकि उनको पता है कि अगर उन्होंने अन्ना का नाम भी लिया तो उन्हें मिलेगा गन्ना ।
बेचारे बाबा नौजवानों को अपने साथ लाना चाहते थे और देखकर हर कोई दंग है कि ७४ वर्षीय अन्ना के साथ सारे नौजवान सड़क पर उतर आये हैं, मम्मी अमरीका गई है बाबा की निप्पल बदले कौन ?
भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फ़ूँकना होगा । (Fight against corruption)
आजकल कुछ ठीक नहीं लग रहा है, जो इस काल में देश और समाज में घटित हो रहा है वह सब ठीक नहीं हो रहा है। क्या बतायेंगे हम आने वाली पीढ़ी को कि कैसे भ्रष्टाचार का दीमक हमारे समाज, देश और अर्थव्यवस्था को चाट गया। सरकार और राजनैतिक दल अपना स्वार्थ साधने के लिये शांतिपूर्ण आंदोलनकारियों को विदेशी ताकत का हाथ बताने लगते हैं। क्या ऐसे लोगों को सरकार और उससे जुड़े पदों पर रहने का अधिकार है ?
क्या यह उसी तरह की क्रांति की तस्वीर भारत में उभर रही है जैसी कि सिंगापुर में १९७० के दशक में उकेरी गई थी, हमारी सरकार और राजनैतिक नुमाईंदे बैकफ़ुट पर हैं और जनता हावी होती जा रही है। क्या चुने हुए लोग इतने बेशरम हो गये हैं कि जनता की बात सुनना ही नहीं चाहते हैं, और अगर ऐसा है तो यह तो तय है कि अहिंसक तरीके से जनता आंदोलन कर रही है और अगर आंदोलन ऐसा ही चलता रहा तो सरकार का गिरना तय है, क्योंकि इससे एक बात तो साफ़ हो रही है कि सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ़ नहीं है और अगर है तो उसे मिटाने की प्रतिबद्धता सरकार में नहीं है।
खैर जनता कितना भी आंदोलन कर ले परंतु ये प्रशासनिक और सरकारी लोग वही करेंगे जो इनको करना होगा या आदेशित होगा। अगले चुनाव में क्या मुँह लेकर जनता के पास जायेंगे ? इससे अच्छा है कि जनता को ही अपने समूह बनाने होंगे और जो भ्रष्टाचार करे उसकी सरेआम बेईज्जती की जाये और मुँह काला कर गधे पर बैठाकर घुमाया जाये। परंतु हमारे संस्कार हमें इस बात की भी इजाजत नहीं देते, हमारे संस्कार कहते हैं कि अगले को सुधरने का पूरा मौका दिया जाना चाहिये।
अब तो जो होना है वह होना है, परंतु गांधीवादी युग से क्या हासिल होगा, जनता का विद्रोह अगर लीबिया जैसा हो गया तब सरकार क्या कर लेगी। जनता को अराजक बताकर अपनी पूरी ताकत इनको खत्म करने में लगा देगी। लेकिन भ्रष्टाचार खत्म करने के लिये कोई ठोस कदम उठाने कि बात नहीं करेगी।
कुछ बातें ठीक लग रही हैं जैसे इलेक्ट्रानिक मीडिया बराबर कवरेज दे रहा है और हो सकता है कुछ चैनलों को तो मजबूरी में टी.आर.पी. के चक्कर में ना चाहते हुए भी कवरेज देना पड़ रहा हो। कुछ बातें ठीक नहीं लग रही हैं क्या पुलिस वाले मानव ह्र्दय नहीं रखते या उनको सही गलत की समझ नहीं होती या फ़िर वे हमेशा अपने ऊपर भ्रष्टाचार का दाग लेकर घूमना चाहते हैं, जो कि सरकार की बातें मान रहे हैं, क्यों सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार के महाआंदोलन में साथ नहीं हैं।
हो सकता है कि आंदोलन के सूत्रधारों की रणनीति ठीक नहीं हो या एजेंडा थोड़ा सा भटका हुआ हो, परंतु है तो भ्रष्टाचार के खिलाफ़ ही, अगर आज उठे नहीं तो कभी उठ नहीं पायेंगे, भ्रष्टाचार मुक्त भारत देश बनाने का सपना साकार करने के लिये यह पहला कदम है, अभी तो इस राह में बहुत सारी क्रांतियाँ हैं।