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बच्चों के शार्टब्रेक मॆं खाने के लिये क्या दिया जाये, स्कूल ने नोटिस निकाला

    बेटेलाल ने जब से स्कूल जाना शुरु किया है तब से उनके शार्ट ब्रेक और लंच के नाटक फ़िर से शुरु हो गये हैं। रोज जिद की जाती है कि मैगी, पास्ता, पिज्जा या बर्गर दो। हम बेटेलाल को रोज मना करते हैं, मगर कई बार तो जिद पर अड़ लेते हैं, सब बच्चे लाते हैं, और एक आप हैं कि मुझे इन चीजों के लिये मना करते हैं। हमने कितनी ही बार समझाया कि बेटा मैगी, पास्ता, पिज्जा ठंडे हो जाने पर बुल्कुल अच्छे नहीं लगते और स्वास्थ्य के लिये हानिकारक भी होते हैं। इस तरह से लगभग रोज की कहानी हो चली थी। और इस बात से लगभग सभी अभिभावक परेशान रहते हैं।
    शार्ट ब्रेक में अलग अलग चीजें दिया करते हैं अलग तरह के बिस्किट तो कभी उनकी कोई मनपसंदीदा नमकीन या मिठाई और खाने में रोटी सब्जी या परांठा सब्जी। पर बेटेलाल हैं कि कहते हैं उन्हें रोटी सब्जी नहीं मैगी दिया करें, पास्ता दिया करें। पैरेंट्स टीचर मीटिंग के दौरान स्कूल में उनकी मैडम ने हमें पहले ही मना कर दिया था कि बच्चों को यह सब चीजें नहीं दिया करें। परंतु बच्चे हैं कि मानते ही नहीं, घर पर इतनी जिद करते हैं और आसमान सिर पर उठा लेते हैं।
    दो दिन पहले बेटेलाल की स्कूल की वेबसाईट पर नोटिस में शार्ट ब्रेक में मेनू आ गया, जिसमें हर दिन का मेन्यू निश्चित है। अब बेटेलाल को समझा रहे हैं कि बेटा अभी भी मान जाओ नहीं तो स्कूल वाले अब लंच का भी मेन्यू दे देंगे फ़िर क्या करोगे ?
    हमेशा लंच बॉक्स में सब्जी बची हुई आती है, अब देखते हैं कि इस सबका क्या असर होता है। अभिभावक कितना भी समझा लें परंतु बच्चों को समझ में नहीं आता, अगर शिक्षक स्कूल में बोले तो वह बच्चों के लिये पत्थर की लकीर होता है।
    पहले कक्षा में ही लंच करना होता था, अब थोड़ी बड़ी कक्षा में आ गये हैं तो उनकी क्लॉस टीचर बच्चों को स्कूल के छोटे बगीचे में लंच करने ले जाती हैं और लंच करने के बाद टिफ़िन वापिस अपनी क्लॉस में रखकर फ़िर से बच्चे बगीचे में खेलने आ जाते हैं। बेटेलाल के मुँह से यह सब बातें सुनने के बाद अपने स्कूल के दिन याद आ जाते हैं।

३७ घंटे का लंबा सफ़र और अब बांके बिहारी के दर्शन

    आखिरकार ३७ घंटे का लंबा सफ़र कल सुबह खत्म हुआ और थकान तो बिल्कुल थी ही नहीं, बिल्कुल भी नहीं। शायद बहुत वर्षों बाद इतना सोये और आत्मचिंतन का समय मिला। एक तरह से इसके लिये रेल्वे की कर्नाटक एक्सप्रेस के ए.सी. २ के उस डिब्बे को भी धन्यवाद ज्ञापित होना चाहिये अगर उसके प्लग में पॉवर आती तो पूरा समय हम लेपटॉप पर ही बिता देते। अच्छा हुआ कि पॉवर नहीं थी।

    और इतने आराम के बाद भरपूर ऊर्जा का एहसास हुआ, जैसा कि आमतौर पर होता है कि हर सफ़र के बाद जिंदगी के कुछ पाठ सीखने को मिलते हैं, इस बार भी मिले। वह अब अगली किसी पोस्ट में लिखेंगे, भरपूर ऊर्जा से युक्त जब हमने अपने ट्रेन के सफ़र का अंत ग्वालियर में किया और बस स्टैंड की तरफ़ बड़े तो गर्मी के तलख मिजाज का अहसास हो गया, हालांकि उस समय सुबह के ५.३० बजे थे और गर्मी के तेवर देखते ही बन रहे थे, हम ए.सी. से निकलने के बाद पसीने में तर हो रहे थे। बस स्टैंड पहुँचते ही चंबल के लोगों की तल्खी का अंदाज दिखने लगा।

    दिल्ली जाने वाली बस में धौलपुर के लिये बैठे, बस थी एम.पी. रोडवेज की जो कि बहुत ही ज्यादा घाटॆ में चल रही है और या तो बंद होने वाली है या हो चुकी है, पूरी जानकारी नहीं है। सरकारें कोई सी भी आ जायें पर घाटे में चलने वाले उपक्रमों का हाल वही रहता है, कोई रेड इंक को बदलना ही नहीं चाहता है।

    हम भी एम.पी. रोडवेज की बस में ही चढ़ लिये पीछॆ ही राजस्थान रोडवेज की बस थी, दोनों बसों में देखते ही जमीन आसमान का अंतर पता चल रहा था, कहाँ एम.पी. की खटारा बस और कहाँ राजस्थान की ए.वन. नई दुल्हन सी चमचमाती मोटर। खैर एम.पी. का सपोर्ट करते हुए हम चढ़ लिये। और एक घंटे की जगह दो घंटे में धौलपुर पहुँच गये।

आज बांके बिहारी के दर्शन के लिये निकल रहे हैं, वृन्दावन धाम।

॥ जय बांके बिहारी लाल की ॥

प्रवीण पाण्डे जी के ब्लॉग पोस्ट का फ़ायदा और xBox काइनेक्ट

    ब्लॉग से नुकसान तो शायद कम ही होंगे पर फ़ायदे बहुत हैं। प्रवीण पांडे जी ने अपने ब्लॉग में कुछ दिनों पहले xBox काइनेक्ट का विवरण लिखा था और मैं पिछले तीन वर्षों से लगभग इसी तरह की चीज ढूँढ़ रहा था, जब मुंबई में था तो Wii का गेमिंग कन्सोल देखा था परंतु उसमें खेलने के लिये एक रिमोट को पकड़ना होता था, जो कि मुझे पसंद नहीं था।

    हाथ में रिमोट न चाहने का कारण था हमारे बेटेलाल, क्यूँकि अगर फ़ेंक दिया बज गया बैंडबाजा महँगे गेमिंग कन्सोल का, इसलिये कुछ ऐसी तकनीक वाला कन्सोल चाहिये था जिसमें बिना रिमोट पकड़े खेल सकें, इसी बीच माइक्रोसॉफ़्ट ने xBox के साथ काइनेक्ट बाजार में उतारा परंतु इसके बारे में हमने कहीं सुना नहीं था। सुना तो प्रवीण जी के ब्लॉग से, ब्लॉग का हमारे लिये एक फ़ायदा ।

    प्रवीण जी से xBox के बारे में पूरी जानकारी ली और एक शोरूम में जाकर डेमो भी देख लिया, बस हमको भा गया, कीमत हालांकि कुछ ज्यादा थी परंतु जैसी चीज अपने को चाहिये हो मिल जाये तो कीमत मायने नहीं रखती है।

    इसी बीच हमारे छोटे भाई का अमेरिका जाना हो गया, और हमने ऑनलाईन वहाँ का भाव देखा तो लगभग ४० प्रतिशत रुपयों की बचत हो रही थी तो हमने अपने भाई को बोला कि हमारे लिये एक xBox ले आओ, हमारा xBox मई के दूसरे सप्ताह में हमारे पास आ गया। पर अब समस्या यह थी कि xBox का पॉवर एडॉप्टर अमेरिका वाला था जो कि 110 – 130 वोल्ट होता है और यह भारत में नहीं चल सकता था।

    अमेरिका का पॉवर एडॉप्टर भारत में कैसे चलेगा गूगल में बहुत ढूँढ़ा, कई प्रकार के समाधान मिले, कि अमेरिका से भारत का पॉवर कन्वर्टर ले लो जिसमें एक ट्रांसफ़ॉर्मर लगा होता है और चल जायेगा, हम लेकर भी आये परंतु काम नहीं बना, फ़िर गूगल पर ढूँढ़ा गया, तो पता चला कि इस समस्या से केवल हम ही दो-चार नहीं हो रहे हैं, इस समस्या से बहुत सारे लोग ग्रसित हैं।

    इस बाबत हमने एक बड़े शोरूम पर भी पूछताछ की तो उन्होंने हमें एक मोबाईल नंबर दिया और कहा कि आपकी समस्या का समाधान यहाँ हो जायेगा, हमने फ़ोन किया तो पता चला कि ये किसी निजी दुकान का नंबर था जो कि चीन निर्मित थर्ड पार्टी पॉवर एडॉप्टर बेचते हैं और उसकी केवल टेस्टिंग वारंटी है, और उसकी कीमत हमें लगभग ३२०० रूपये बताई गई और बताया गया कि लगभग ३०० लोग उनसे खरीद चुके हैं।

    ऐसे ही एक और समाधान मिला कि स्टेप अप / स्टेप डाऊन ट्रासफ़ॉर्मर का उपयोग करें, हमने अपने पास की इलेक्ट्रिक दुकान को इसे लाने के लिये बोल भी दिया।

    जब xBox के अंतर्जाल पर घूम रहे थे तो भारत का उपभोक्ता सेवा का फ़ोन नंबर मिला और हमने माइक्रोसॉफ़्ट को फ़ोन किया तो उन्होंने xBox से संबंधित जानकारी ली और हमने पॉवर एडॉप्टर संबंधी समस्या माइक्रोसॉफ़्ट के सामने रखी तो उपभोक्ता सेवा अधिकारी ने हमसे कहा कि आप चिंता न करें हम आपकी समस्या का समाधान करेंगे। आपने अमेरिका से xBox खरीदा है तो क्या हुआ, हम आपको भारत का पॉवर एडॉप्टर कंपनी की गुड विल के लिये कॉम्लीमेंटरी देंगे, और आप अपना अमेरिका वाला पॉवर एडॉप्टर भी अपने पास रखें जब अमेरिका जायें तब उसका उपयोग करें, उनका इस बाबत ईमेल भी तुरंत ही मिल गया और ५ दिनों में ही हमें माइक्रोसॉफ़्ट से पॉवर एडॉप्टर भी मिल गया, हमने चलाकर भी देख लिया, और इस प्रकार माइक्रोसॉफ़्ट ने हमारी समस्या का समाधान कर दिया।

जय हो प्रवीण जी की और जय हो माइक्रोसॉफ़्ट वाले बिल्लू भैया की।

क्या बच्चों को होस्टल में नहीं डालना चाहिये ? (Should not put children in Hostel ?)

    “बच्चे मन के सच्चे सारे जग के राजदुलारे, ये वो नन्हे फ़ूल हैं जो भगवान को लगते प्यारे”, बच्चों के ऊपर लिखा गया बहुत पुराना गीत याद आ गया । जिसमें उनके मन को भी बताया गया है कि बच्चे मन के सच्चे होते हैं और उनका मन दर्पण की तरह साफ़ होता है कोई कपट नहीं कोई लालच नहीं।

    कल फ़िल्म “हरे कृष्णा हरे राम” देख रहा था तो आखिरी में जैनिस उर्फ़ जसबीर (जीनत अमान) का संवाद देवानंद से दिखाया गया है, जिसमें जैनिस का एक संवाद कि “मुझे घर की जगह होस्टल मिला”। बहुत गहरे तक उतर गया कि आखिर होस्टल क्यूँ ?

    क्या होस्टल में बच्चे ज्यादा पढ़ते हैं या माता पिता यह सोचकर भेज देते हैं कि कम से कम उनकी तरफ़ से पढ़ाई लिखाई करवाने की जिम्मेदारी खत्म, केवल फ़ीस भरी और बोर्डिंग में डाल दिया। होस्टल या बोर्डिंग में डालने की और भी कोई वजह हो सकती है। खैर मुझे तो समझ में नहीं आती केवल इसके कि बच्चे जो बोर्डिंग में रहते हैं, वो बचपन से ही भला बुरा समझने लगते हैं, और जो घर में रहते हैं वे धीरे धीरे जिंदगी के अनुभवों से सीखते हैं।

    बोर्डिंग में रहने वाले बच्चों का जीवन बिल्कुल संयमित होता है, समय पर सारे कार्य करने होते हैं और घर पर रहने वाले बच्चों के लिये आजादी रहती है वे कुछ भी कर सकते हैं, वे दीन दुनिया और सामाजिकता में अपने आप को लबालब पाते हैं, और बोर्डिंग में रहने वाले बच्चों को यह सब तो नहीं मिल पाता पर जो हम उम्र बच्चों का साथ और अपने ही कक्षा के बच्चों से मस्ती करने को मिलती है वो घर वाले बच्चों को नहीं मिल पाती।

    हमारे एक परिचित हैं उन्होंने एक प्रसिद्ध स्कूल में अपने बच्चे को डालने की सोची कि बोर्डिंग भी है और फ़ीस भी बहुत थी, स्कूल भी काफ़ी अच्छा था, परंतु अंतिम समय पर माता पिता अपने दिल के हाथों मजबूर हो गये और बच्चे को बोर्डिंग में नहीं डाला।

    तो क्या बोर्डिंग में डालने वाले माता पिता अपने बच्चों से प्यार नहीं करते ? ऐसा तो कतई नहीं है, और मैं भी इस बात से सहमत नहीं हूँ परंतु ऐसी क्या चीज है जो माता पिता को बोर्डिंग में डालने पर मजबूर करती है ? विश्लेषण की आवश्यकता है ?

टाटा ने सुनाई फ़िरंगियों को खरी खरी, अंतर है मानसिकता का, विकसित और विकासशील राष्ट्र का… (Tata in london)

    टाटा समूह के प्रमुख रतन टाटा ने कल लंदन में फ़िरंगियों को खरी खरी सुनाई, कि फ़िरंगी लोग ज्यादा काम नहीं करना चाहते और काम करने की इच्छाशक्ति की कमी है।

    अगर शाम को मीटिंग चल रही है और वह छ: बजे तक चलने वाली है तो लोग ५ बजे यह कहकर निकल लेंगे कि हमारी ट्रेन का समय हो गया है और अब हमें घर जाना है, यह घर जाने का समय है।

    सिंगूर का उदाहरण देते हुए बताया कि लगभग ८५% प्लांट तैयार था पर समस्या को देखते हुए गुजरात में नैनो कार का प्लांट लगाया गया और सारे उपकरणों को भी सिंगूर से गुजरात लाया गया और समय पर उत्पादन शुरू किया गया। सारी कानूनी कागजी कार्यवाही भी समय से कर ली गई। अगर यही बात लंदन में की जाये कि प्लांट की जगह समस्या के कारण आखिरी समय पर बदलना है तो यहाँ के प्रबंधन के हाथ पैर फ़ूल जायेंगे और कानूनी कागजी कार्यवाही का हवाला देकर जगह नहीं बदल पायेंगे। फ़िरंगियों की काम करने की इच्छाशक्ति में कमी है और बहुत गहरी निराशा फ़िरंगियों में भरी हुई है।

    ये तो समाचार था परंतु इसके पीछे क्या कारण हैं, वे टाटा ने नहीं सोचे होंगे क्योंकि उनको तो भारत के कर्मचारियों के साथ काम करने की आदत है जो कि वक्त पड़ने पर लगातार अपने काम के समय से भी ज्यादा काम कर सकते हैं। और वाकई कई बार उत्पादन कंपनियों में इसकी जरूरत भी होती है।

    इसके पीछे मानसिकता का बहुत बड़ा अंतर है, भारत विकासशील राष्ट्र है, भारत में बेरोजगारी है, और भारतीय रुपये का मूल्य जानते हैं, उन्हें पता है कि अगर काम ठीक चलेगा तो सब ठीक चलेगा और अगर काम ठीक नहीं चलेगा तो कुछ ठीक नहीं चलेगा।

    पर फ़िरंगियों का देश विकसित देशों की श्रेणी में आता है और उन्हें ज्यादा काम करने की आदत भी इसीलिये नहीं है और करना भी नहीं चाहते हैं क्यूँकि उनको इसकी जरूरत नहीं है, फ़िरंगी लोग Work Life Balance का फ़ार्मुला अपनाते हैं, कि सबको बराबर समय दिया जाये, और अपने समय का सही तरीके से उपयोग करते हैं।

    भले ही टाटा ने फ़िरंगियों की दो बड़ी कंपनियों को खरीद लिया है परंतु उनके प्लांट में काम तो उनसे ही करवाना है, इसलिये टाटा को शायद उनकी इन आदतों को भी स्वीकारना होगा और भारतियों से उनकी तुलना करना बंद करनी होगी। अभी भारत को विकसित देश की श्रेणी में आने के लिये भारी मश्क्कत का सामना करना है।

    विकसित देश की श्रेणी में आने के लिये राजनैतिक इच्छाशक्ति चाहिये जो कि भारत की सरकार में नहीं है, उद्योंगों को बढ़ावा देने के लिये सरकार को नियम शिथिल करना होंगे और भ्रष्टाचार का खात्मा करना होगा।  अगर इतना ही हो गया तो भारत के विकसित देशों की श्रेणी में आने से कोई नहीं रोक सकता।

     हमारी अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत है और भारत दुनिया में बहुत बड़ा बाजार है, तभी तो अमेरिका की कंपनियाँ भारत में अपनी दुकानें खोलने को मरी जा रही हैं, पर भारत को अभी अमेरिकी दुकानों की जरूरत नहीं है, पहले भारत अंदर से अपने को सुधार ले फ़िर हालात यह होंगे कि फ़िरंगियों और अमेरिकी धरती पर भारतीय दुकानों के परचम लहरायेंगे।

इकोनोमिक टॉइम्स (Economics Times) और टॉइम्स ऑफ़ इंडिया (Times of India) में वित्तीय प्रबंधन पर लिखी जाती है ब्लॉगों से चुराई हुई सामग्री ?

    इकोनोमिक टॉइम्स (Economics Times) और टॉइम्स ऑफ़ इंडिया (Times of India) बहुत सारे लोग पढ़ते होंगे। सोमवार को इकोनोमिक टॉइम्स में वेल्थ (Wealth) और ऐसे ही टॉइम्स ऑफ़ इंडिया (Times of India) में भी आता है, जिसमें वित्तीय प्रबंधन के बारे में बताया जाता है, पिछले दो महीनों से लगातार इन दोनों अखबारों को पढ़ रहा हूँ, तो देखा कि वित्तीय प्रबंधन पर लिखी गई सारी सामग्री वित्तीय ब्लॉगों से उठायी गई है, और ब्लॉगों पर लिखी गई सामग्री को फ़िर से नये रूप से लिखकर पाठकों को परोसा गया है।

    अखबार को सोचना चाहिये कि पाठक वर्ग बहुत समझदार हो गया है, और अगर उनके लेखक अपनी रिसर्च और अपने विश्लेषण के साथ नहीं लिख सकते तो उनकी जगह ब्लॉगरों को ही लेखक के तौर पर रख लेना चाहिये। शायद अखबार के मालिकों और उनके संपादकों को यह बात पता नहीं हो।

    पर यह कितना सही है कि मेहनत किसी और ने की और उसके दम पर इन अखबार के लेखक अपनी रोजीरोटी चलायें। कहानी को थोड़ा बहुत बदल दिया जाता है, पर जो सार होता है वह वही होता है जो कि असली लेख में होता है।

    जो पाठक वित्तीय ब्लॉग पढ़ते होंगे, वे इसे एकदम समझ जायेंगे। इस बारे में मेरी चैटिंग भी हुई एक वित्तीय ब्लॉगर से तो उनका कहना था कि “ब्लॉगर क्या करेगा, ये तो अखबार को सोचना चाहिये, विषय कोई मेरी उत्पत्ति तो है नहीं, कोई भी लिख सकता है, बस मेरी ही पोस्ट को अलग रूप से लिख देया है”।

    कुछ दिन पहले मेरी बात एक वित्तीय विशेषज्ञ और  वित्तीय अंतर्जाल चलाने वाले मित्र से हो रही थी, उनसे भी यही चर्चा हुई तो वो बोले कि उन्होंने मेरे ब्लॉग कल्पतरू पर जो लेख पढ़े थे और जिस तरह से लिखा था, बिल्कुल उसी तरह से अखबार ने लिखा था, और आपकी याद आ गई। तो मैंने उनसे कहा कि ब्लॉगर कर ही क्या सकता है, यह तो इन बेशरम अखबारों को सोचना चाहिये, और उन लेखकों को जो चुराई गई सामग्री से अपनी वाही वाही कर रहे हैं।

    पहले बिल्कुल मन नहीं था इस विषय पर पोस्ट लिखने का परंतु जब मेरी कई लोगों से बात हुई तो लगा कि कहीं से शुरूआत तो करनी ही होगी, नहीं तो न पाठक को पता चलेगा और ना ही अखबारों के मालिकों और संपादकों को, तो यह पोस्ट लिखी गई है उन अखबारों के लिये जो चुराई हुई सामग्री लिख रहे हैं और उनको पता रहना चाहिये कि पाठक प्रबुद्ध है और जागरूक भी।

अब स्पीक एशिया ऑनलाईन SpeakAsiaOnline.com का क्या होगा ? लालच की पराकाष्ठा कर दी ।

पहली पोस्ट – स्पीक एशिया ऑनलाईन संभावित बड़ा घोटाला तो नहीं (Probable Scam SpeakAsiaOnline.com !!)

    मेरी पहली पोस्ट स्पीक एशिया ऑनलाईन SpeakAsiaOnline.com पर १७ अप्रैल को थी, इससे पहले तो मैंने इस कंपनी के बारे में कुछ सुना भी नहीं था। खैर अब मछली मगरमच्छ हो गई है और अब सब उसका क्रेडिट लेने में लगे हैं।

    जबकि अक्टूबर में मनीलाईफ़ पत्रिका ने इनके व्यवसाय के बारे में आपत्ति जताते हुए लिखा था कि रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया, आर्थिक अन्वेषण ब्यूरो क्या सो रहे हैं ?

    खैर अब तो सबके सामने सच आ ही गया है, १ महीने पहले इस कंपनी के पास ९ लाख लोग थे और १ महीने में ही १० लाख लोगों को जोड़ लिया है। सोचिये अब यह संख्या बढ़कर १९ लाख हो गई है।यह तो लालच और बिना कुछ करे कमाने की हम भारतियों की पराकाष्ठा है।

    कई ऐसे लोगों को देखा जो कि ४-५ हजार की निजी नौकरी कर रहे थे और जैसे तैसे अपना घर चला रहे थे, उन्होंने लाख रुपये स्पीक एशिया ऑनलाईन SpeakAsiaOnline.com में लगाकर ४० हजार कमाने के ख्बाब देखे और अब कंपनी के ऊपर मीडिया और सरकार का दबाब पड़ने लगा है, अगर स्पीक एशिया ऑनलाईन SpeakAsiaOnline.com गायब हो गई तो इन लोगों के लाख रुपये कौन लौटायेगा और सबसे बड़ी बात क्या इनको आसानी से वापिस नौकरी मिल पायेगी। आज यह घोटाला लगभग 1900 करोड़ रुपये का हो चुका है।

    और जो लोग इससे कमा रहे हैं, वे मीडिया और सरकार का विरोध कर रहे हैं, कि स्पीक एशिया ऑनलाईन SpeakAsiaOnline.com एक तो भारत के बेरोजगारों को रोजगार दे रहा है और सभी लोग उसे बंद करवाने के पीछे पड़े हैं, और इन बेरोजगारों और लालची लोगों को क्या यह बात समझ में नहीं आती है,  कि ये मीडिया और सरकार केवल स्पीक एशिया ऑनलाईन SpeakAsiaOnline.com के पीछे ही क्यों पड़े हैं, और किसी कंपनी के पीछे क्यों नहीं। अगर स्पीक एशिया ऑनलाईन SpeakAsiaOnline.com बताये कि उनकी आमदनी का क्या जरिया है, और अपनी बैलेन्स शीट सबके सामने रखे तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा।

    अगर नेट और सर्वे से पैसे कमाना इतना ही आसान होता तो शायद नेट का उपयोग करने वाले लोग करोड़पति अरबपति हो चुके होते।

    अभी कुछ दिन पहले २ लाख लोगों को स्टॉकगुरुइंडिया ५०० करोड़ का चूना लगाकर गायब हो चुकी है, उनका व्यापार भी कुछ इनकी तरह से ही था।

    वैसे भी हिन्दुस्तान टाईम्स सिंगापुर जाकर स्पीक एशिया ऑनलाईन SpeakAsiaOnline.com के ऑफ़िस की पड़ताल आज कर चुका है, और वहाँ कुछ भी नहीं मिला है। और अब आयकर विभाग की भी आँख खुली है (चलो देर से ही सही, जब जागो तब सवेरा)।

संगीत विज्ञान के बारे में …

    संसार मे संगीत विज्ञान की सबसे पहली जानकारी सामवेद में उपलब्ध है। भारत में संगीत, चित्रकला एवं नाट्यकला को दैवी कलाएँ माना जाता है। अनादि-अनंत त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और शिव आद्य संगीतकार थे। शास्त्र-पुराणों में वर्णन है कि शिव ने अपने नटराज या विराट-नर्तक के रूप में ब्रह्माण्ड की सृष्टि, स्थिति और लय की प्रक्रिया के नृत्य में लय के अनंत प्रकारों को जन्म दिया। ब्रह्मा और विष्णु करताल और मृदंग पर ताल पकड़े हुए थे।

    विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती को सभी तार-वाद्यों की जननी वीणा को बजाते हुए दिखाया गया है। हिंदू चित्रकला में विष्णु के एक अवतार कृष्ण को बंसी-बजैया के रूप में चित्रित किया गया है; उस बंसी पर वे माया में भटकती आत्माओं को अपने सच्चे घर को लौट आने का बुलावा देने वाली धुन बजाते रहते हैं।

    राग-रागिनियाँ या सुनिश्चित स्वरक्रम हिन्दू संगीत की आधाराशिलाएँ हैं। छह मूल रागों की १२६ शाखाएँ-उपशाखाएँ हैं जिन्हें रागिनियाँ (पत्नियाँ) और पुत्र कहते हैं। हर राग के कम-से-कम पाँच स्वर होते हैं: एक मुख्य स्वर (वादी या राजा), एक आनुषंगिक स्वर (संवादी या प्रधानमंत्री), दो या अधिक सहायक स्वर (अनुवादी या सेवक), और एक अनमेल स्वर (विवादी या शत्रु)।

    छह रागों में से हर एक राग की दिन के विशिष्ट समय और वर्ष की विशिष्ट ॠतु के साथ प्राकृतिक अनुरूपता है और हर राग का एक अधिष्ठाता देवता है जो उसे विशिष्ट शक्ति और प्रभाव प्रदान करता है। इस प्रकार (१) हिंडोल राग को केवल वसन्त ऋतु में उषाकाल में सुना जाता है, इससे सर्वव्यापक प्रेम का भाव जागता है; (२) दीपक राग को ग्रीष्म ऋतु में सांध्य बेला में गाया जाता है, इससे अनुकम्पा या दया का भाव जागता है; (३) मेघ राग वर्षा ऋतु में मध्याह्न काल के लिये है, इससे साहस जागता है; (४) भैरव राग अगस्त, सितंबर, अक्तूबर महीनों के प्रात:काल में गाया जाता है, इससे शान्ति उत्पन्न होती है; (५) श्री राग शरद ऋतु की गोधुली बेला में गाया जाता है, इससे विशुद्ध प्रेम का भाव मन पर छा जाता है; (६) मालकौंस राग शीत ऋतु की मध्यरात्रि में गाया जाता है; इससे वीरता का संचार होता है।

बस में हमने सुनी दो टूटे दिलों की दास्तान…

    ऑफ़िस से आते समय रोज ही कोई न कोई नया वाकया पेश आता है और वह अपने आप में जिंदगी का बड़ा अनुभव होता है।

    पहले तो सामने वाली सीट पर एक लड़की बैठी थी, जो कि मोबाईल पर किसी से चहक कर बातें कर रही थी, उसके पास लेनोवो का IDEALPAD नाम का लेपटॉप का कवर और उसका बैग था, लेपटॉप अपनी नई पैकेजिंग में था और उसके ऊपर के टैग अभी तक उसी पर झूल रहे थे, वह लड़की अपने लेपटॉप के बारे मॆं ही किसी को बता रही थी, जो कि शायद उसका बहुत करीबी होगा जिससे वह खुशी बांट सकती थी। “देख एक समय वो था और एक समय यह है कि अब मैंने लेपटॉप तक ले लिया है, अच्छे दिन आ गये हैं, और मैं इस बात से बहुत खुश हूँ।”

    थोड़ी देर बात करने के बाद उस लड़की ने अपना आई.पोड कान में लगाया और अगले ही स्टॉप पर उतर गई।

    उसके बाद दोनों सीट खाली हों गई क्योंकि एक सीट पर तो वह लड़की खुद बैठी थी और दूसरी सीट पर उसका समान ।

    उसी स्टॉप से एक लड़का और लड़की चढ़े, दोनों संभ्रांत घर से लग रहे थे, और लड़की बहुत सुन्दर थी (सुन्दर लड़की की तारीफ़ करना कोई बुरी बात तो नहीं, मतलब कि सुन्दर कहना)। दोनों ने आकर्षक कपड़े पहने हुए थे, और उनकी बातें शुरु हुईं।

    पहले लड़का बोला कि “मैं पहले ३ हजार रुपये कमाता था और पंद्रह सौ रुपये जमाकर बाकी पंद्रह सौ से घर चलाता था और उसी समय वह मेरी जिंदगी में आई और मेरी जिंदगी में इस कदर शामिल हो गई, जैसे जिस्म से साँस । तभी उसकी जिंदगी में एक लड़का आया और उसके पास वह सब कुछ था जो मेरे पास नहीं था और वह उसके पास चली गई, मेरे दोस्तों ने मुझे बहुत समझाया था कि लड़कियों के चक्कर में मत पड़, पर जब आदमी का दिल मजबूर होता है तो  दिमाग चलना बंद हो जाता है।”

    लड़की ने ठंडी सांस भरी और कहा “ओह्ह्ह्ह”

    अब लड़की बोली “मैं और वह करीबन ४ साल पहले मिले थे और बहुत अच्छे मित्र थे, धीरे धीरे कब इतने पास आ गये पता ही नहीं चला, उसकी अच्छी नौकरी लग गई और वह टोरोंटो चला गया और मुझे बिसरा दिया, मुझे उसने अपनी जिंदगी से हर तरह से ब्लॉक कर दिया, अपने हर कॉन्टेक्ट को मिटा दिया, जो हमारे कॉमन फ़्रेंड्स थे उन तक को उसने ब्लॉक कर दिया और अपना नया मोबाईल नंबर नहीं दिया।””

    “पता नहीं किस बात पर वह मुझसे उखड़ा था और अगर ब्रेकअप करना ही था तो कम से कम मुझे बोला तो होता तो मैं भी मानसिक रुप से तैयार रहती, लेकिन उसने अपने लिये रास्ता खुला रखा और मुझे पता है कि जब जिंदगी में उसे कहीं भी मेरी जरूरत होगी तो वह फ़िर कोई नई अच्छी सी कहानी लेकर मेरे पास आयेगा और मनाने की कोशिश करेगा,  आखिरकार मैंने भी फ़ैसला लिया कि अब ब्रेकअप ही सही, और मैंने भी अपने सारे कॉन्टेक्ट्स उसके लिये ब्लॉक कर दिये हैं, अपना जीमैल का पता भी बदल दिया, पर ऐसा मेरी किस्मत में ही क्यूँ लिखा था”।

    दोनों बहुत ही रुआँसे और मायूस नजर आ रहे थे, वे बहुत धीमे बातें कर रहे थे परंतु फ़िर भी उनकी बहुत ही गोपनीय बातें सुन ही लीं, यह मेरी गलती है और वे दोनों बातें करते हुए सकुचा भी रहे थे, क्यूँकि वाकई अगर कोई परिचित सुन ले तो अच्छा नहीं लगेगा। उन दोनों की बातें इतनी दर्द से भरी हुईं थीं कि उनकी बातें न सुनने का निर्णय मेरे लिये असाध्य रहा।

    खैर मेरा बस स्टॉप आ गया और मैं उतर गया, उन दोनों को वोल्वो के काँच से देखते हुए उनके लिये दुआ करते हुए कि भगवान इन दुखी दिलों पर रहम की बारिश कर और उनके ऊपर कृपा कर।

ज्ञान, क्रोध और ईश्वर ….. योगी कथामृत .

ज्ञान –

“छोटे योगी, मैं देख रहा हूँ कि तुम अपने गुरु से दूर भाग रहे हो। उनके पास वह सब कुछ है जिसकी तुम्हें आवश्यकता है; तुम्हें उनके पास लौट जाना चाहिये।” आगे उन्होंने कहा, “पर्वत तुम्हारे गुरु नहीं बन सकते” – दो दिन पहले श्रीयुक्तेश्वरजी द्वारा प्रकट किया गया वही विचार।

“सिद्ध जन केवल पर्वतों में ही निवास करें, ऐसा कोई विधि का विधान नहीं है।” मेरी ओर रहस्यपूर्ण दृष्टि से देखते हुए वे कहते जा रहे थे : “भारत और तिब्बत के हिमालय शिखरों का सन्तों पर कोई एकाधिकार नहीं है। जिसे अपने अन्दर पाने का कष्ट न किया जाय, उसे शरीर को यहाँ -वहाँ ले जाने से प्राप्त नहीं किया जा सकता। जैसे ही साधक आध्यात्मिक ज्ञानलाभ के लिये विश्व के अंतिम छोर तक भी जाने को तैयार हो जाता है, उसक गुरु उसके पास ही प्रकट हो जाता है।”

मन ही मन मैं इस बात से सहमत हो गया।

“क्या तुम एक ऐसे छोटे-से कमरे की अपने लिये व्यवस्था कर सकते हो जिसका दरवाजा बंद कर तुम अन्दर एकान्त में रह सको ?”

“जी, हाँ ।” मेरे मन में यह विचार उभर आया कि ये सन्तवर इतनी विलक्षण गति से सामान्य स्तर की बातों से व्यक्तिगत स्तर पर उतर आते हैं।

“तो वही तुम्हारी गुफ़ा है।” योगिराज ने ज्ञान जगा देने वाली एक ऐसी दृष्टि मुझ पर डाली कि मैं उसे आज तक नहीं भूल पाया। “वही तुम्हारा पावन पर्वत है। वहीं तुम्हें ईश्वर की प्राप्ति होगी।”

उनके इन सरल शब्दों ने हिमालय के लिये मेरे मन में बैठी तीव्र आसक्ति एक पल में समाप्त कर दी। धान के एक दाहक खेत में मैं पर्वतों और अनंत बर्फ़ के स्वप्न से जाग गया।

क्रोध –

क्रोध केवल इच्छा के अवरोध से उत्पन्न होता है। मैं कभी दूसरों से कोई उपेक्षा नहीं रखता, इसलिये उनका कोई भी कार्य मेरी इच्छाओं के विपरीत नहीं हो सकता। मैं अपने किसी स्वार्थ के लिये तुम्हारा उपयोग कई नहीं करता; मैं तो केवल तुम्हारे सच्चे सुख में ही खुश हूँ।”

ईश्वर –

“इहलौकिक सुखों से हम कितनी जल्दी ऊब जाते हैं  ! भौतिक सुखों की कामनाओं का अन्त नहीं है; मनुष्य कभी पूर्ण तृप्त नहीं होता और एक के बाद दूसरे लक्ष्य के पीछे दौड़ता ही रहता है। सुख के लिये वह जिस “कुछ और” की खोज करता रहता है वह ’कुछ और’ ईश्वर ही है और केवल वही शाश्वत आनन्द प्रदान कर सकता है।

“बाह्य इच्छाएँ हमें अभ्यनतर के ’स्वर्ग’ से बाहर खींच लाती हैं; वे मिथ्या आनन्द देती हैं जो आत्मिक आनन्द का छद्म आभास मात्र है। खोया हुआ आनतरिक स्वर्ग दिव्य ध्यान के द्वारा शिघ्र ही पुन: प्राप्त किया जा सकता है। ईश्वर अकल्पित नित्य-नूतनता है, अत: हम कभी उससे ऊब नहीं सकते। परमानन्द अनन्त काल तक सदा के लिये आह्लादक विविधताओं से भरा हो उससे क्या कभी किसी का मन भर सकता है ?”

“अब समझ में आया गुरुदेव, कि सन्तों ने ईश्वर को अगाध क्यों कहा है। अमर जीवन भी ईश्वर को समझने के लिये पर्याप्त नहीं है।”