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तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – १० [श्रीकालाहस्ती शिवजी के दर्शन..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 10)[Darshan of ShrikalaHasti Shiva…]

    श्रीकालाहस्ती शिवजी की स्थली है, जो कि बहुत ही प्राचीन और भव्य मंदिर है, मैंने शायद आज तक इतना भव्य प्राचीन मंदिर कहीं देखा होगा। स्थापत्य का तो बेजोड़ नमूना है।

    श्रीकालाहस्ती एक छोटा सा गाँव है, जहाँ स्वर्णमुखी नदी बहती है। तिरुपति से श्रीकालाहस्ती तकरीबन ४५ कि.मी. है और करीब एक घंटा लगता है। यहाँ पर भी भगवान के नाम की लूट मची हुई है।

    श्रीकालाहस्ती में आते ही  वहाँ का नजारा मन मोहने वाला था, मंदिर के पार्श्व में पहाड़ी थी, और मंदिर का गुंबद दक्षिण भारतीय स्टाईल का सफ़ेद रंग में चमक रहा था, जो तालमेल था वह गजब ही था।

    जैसे ही हम मंदिर के बाहर पहुँचे तो देखा कि वहाँ इतना बड़ा मंदिर होने के बाबजूद कोई आधिकारिक जूता चप्पल स्टैंड नहीं था, बस अपनी चरणपादुकाएँ भगवान भरोसे छोड़ कर चल दिये।

    मंदिर का प्रवेशद्वार बहुत भव्य है और अंदर जाते ही देखते हैं, कि भारी भीड़ लगी हुई है क्योंकि वह राहु-केतु काल था शाम ४ से ६.३० बजे तक का काल। और वहाँ लिखा हुआ था, राहु-केतु पूजा २५० रुपयों में। स्पेशल पूजा १५०० रुपयों में। सब जगह रुपयों का इतना महत्व देखकर यह तो समझ में आ गया कि यहाँ मंदिर के नाम पर जनता को खूब लूटा जा रहा है।

    हमने निश्चय किया कि हम कोई टिकट नहीं खरीदेंगे और फ़्री दर्शन करेंगे क्योंकि दर्शन के लिये ज्यादा भीड़ नहीं लग रही थी। हम चल दिये फ़्री दर्शन के लिये। मंदिर की भव्यता देखते ही बन रही थी, हम जैसे ही दर्शन के  लिये शुरु हुए सबसे पहले गणपति जी के दर्शन हुए, बहुत ही सुन्दर मूर्ती थी, इतनी सुन्दर मूर्ती हमने आज तक देखी नहीं थी, फ़िर तो जितनी भी मूर्तियों को देखा सब एक से बढ़कर एक थीं, जब हम शिवजी के मंदिर की ओर बड़ते चल रहे थे, तभी एक शिवजी का का सस्त्रशिवलिंग रुप दिखाई दिया, काफ़ी अद्भुत था यह शिवलिंग हमने पहली बार ऐसा शिवलिंग देखा था, और बहुत ही मनमोहक था। हम तो धन्य हो गये शिव के इस रुप के दर्शन करके। हम पहुँच चुके थे, श्रीकालाहस्ती के गर्भगृह के द्वार पर, हमें बाहर से ही दर्शन करने पड़े क्योंकि अंदर केवल १५०० रुपये वाले ही दर्शन कर सकते थे। वाह री माया तेरे खेल निराले, हमने बाहर से ही दर्शन किये पर बाबा के यहाँ माया का खेल देखकर मन खिन्न हो उठा। श्रीकालाहस्ती एक वायुलिंग है और शायद ही हमने ऐसा शिवलिंग कहीं देखा होगा, हम तो धन्य हो गये उनके दर्शन करके। जय श्रीकालाहस्ती।

    फ़िर जब हम बाहर की ओर आ रहे थे, तो देवी देवताओं की एक से एक बेजोड़ मूर्तियों के दर्शन हो रहे थे । एक मूर्ति बाबा कालभैरव की थी, बहुत ही प्राचीन और अतिसुन्दर पहले बार हमने बाबा कालभैरव की ऐसी मूर्ती देखी थी मन प्रसन्न हो गया।

    जब हम मंदिर के बाहर आने लगे तो देखा कि वहाँ दीपदान हो रहा है, बहुत सारे लोग एक साथ दीपदान कर रहे हैं, एक स्टैंड बना हुआ था, जहाँ पर लोग दीपदान कर रहे थे। बहुत ही सुन्दर और अनुपम दृश्य था।

    जब हम मंदिर से बाहर निकल रहे थे, तो देखते जा रहे थे कि ऊपर पहाड़ी से पटाखों की आवाज आ रही थी और किसी की सवारी आ रही थी, जब तक हम बाहर पहुँचे तब तक सवारी हमारे सामने आ चुकी थी, नंदी महाराज आगे थे बहुत ही सुन्दर उनकी सज्जा की गई थी, और श्रीकालाहस्ती उनके पीछे पालकी पर थे, हम तो बाबा के दर्शन करकर धन्य हो गये। इंसानों ने मंदिर में दर्शन नहीं करने दिये तो बाबा ने बाहर आकर खुद ही दर्शन दे दिये। फ़ोटो हम खीच नहीं पाये क्योंकि मोबाईल मंदिर में निषेध है इसलिये मोबाईल हम टैक्सी में छोड़ आये थे। पर मन मोह लिया इस दृश्य ने।

    दर्शन कर चल दिये हम वापिस अपनी टैक्सी की ओर वापिस चैन्नई जाने के लिये, चैन्नई अब हमारे लिये तकरीबन १४० कि.मी. था ये दूरी हमने तय की तकरीबन तीन घंटे में, शाम छ: बजे निकले और नौ बजे गंतव्य पहुँच गये।

    कुछ फ़ोटो श्रीकालहस्ती के देखिये जो हमने जाते समय निकाले –

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सूर्यास्त                                            मंदिर और उसके पार्श्व में पहाड़ी

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मंदिर और उसके पार्श्व में पहाड़ी                          सूर्यास्त

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तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – ९ [आन्ध्रा भोजन, माँ पद्मावती के दर्शन, लड्डू ..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 9)[Andhra Food, Maa Padmavati Darshan and laddu…]

जैसे ही तिरुपति पहुंचे एक सुन्दर सी मूर्ति ने हमारा स्वागत किया।

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    फ़िर हमने अपने ड्राईवर अब्दुल को कहा कि चलो अब कुछ अच्छा सा खाना खिलवा दो, तो वो एक विशुद्ध आन्ध्रा स्टाईल थाली वाले होटल में लेकर गया। जहाँ पर केले के पत्ते पर खाना परोसा गया। जिसमें चावल मुख्य भोजन और साथ में सांभर, दाल, दो तरह की सब्जी और एक चटनी थीं, साथ में पापड़ था। हम भी बिल्कुल ठॆठ देसी श्टाईल में शुरु हो गये मतलब हाथ से, वाह क्या स्वाद था। वैसे हमारा मानना है कि जहाँ जाओ वहाँ का खाना खाओ तो ज्यादा अच्छा मिलेगा बनिस्बत कि हर जगह नार्थ का खाना ढ़ूंढ़ते रहो, और अगर मिले भी तो टेस्ट ऐसा कि बाद में सोचो कि इससे अच्छा तो चावल ही खा लेते।

    फ़िर वहाँ से चल दिये पद्मावती मंदिर, जो कि लक्ष्मी माता का मंदिर है, मान्यता है कि बालाजी के दर्शन करने के बाद माँ लक्ष्मी के दर्शन पद्मावती मंदिर में करने चाहिये।  यह मंदिर तिरुपति में थोड़ा बाहर की ओर बना है, लगभग ६ किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ पर लूट मची हुई थी, पार्किंग जो कि सड़क के किनारे ही बनी हुई थी, उसके भी ३० रुपये वसूल लिये गये। खैर यह तो आजकल लगभग सभी धार्मिक स्थलों पर होता है।

    फ़िर देखा कि यहाँ भी स्पेशल दर्शन वाली व्यवस्था है, टिकट १० के स्पॆशल दर्शन, ४० में शीघ्र दर्शनम, २०० रुपये में २ व्यक्ति तत्काल दर्शन। मंदिर के काऊँटर पर ही एक व्यक्ति मिल गया जो हमसे बोला कि मैं आपको २०० वाले दर्शन करवा देता हूँ, अगर आप काऊँटर से टिकट लोगे तो ४०० रुपये लगेंगे, पर मुझे आप ३०० ही देना। मैंने उससे पूछा कि हमें टिकट तो मिलेगा न, और टिकट के पैसे कौन रखेगा, तो वो ठग महाधूर्त हँसकर बोला कि टिकट के पैसे तो मेरी जेब में ही जायेंगे और आपके सौ रुपये भी बचेंगे। यह सब बातें मंदिर के सुरक्षाकर्मियों के सामने हो रही थीं, उन्हें भी सब पता है, शायद इसमें उनका भी हिस्सा रहता होगा। मन भर आया भगवान के यहाँ इतना भ्रष्टाचार देखकर, कि इंसान जिससे अपनी रोजी रोटी चला रहा है, उसको भी धोखा खाने से बाज नहीं आ रहा है।

    हमने ४० वाले टिकट लिये और दर्शन के लिये चल दिये, उसमें भी फ़टाफ़ट दर्शन हो गये और माँ पद्मावती के दिव्य दर्शन मिले। वहाँ पर भी पुजारी का ध्यान प्रसाद और फ़ूलमालाओं में नहीं भक्तों से नोट बटोरने में था, अगर भक्त नोट दानपेटी में डालने जा रहा होता तो पुजारी हाथ लगाकर उसे अपनी मुठ्ठी में कर लेते, कितना बड़ा धोखा कर रहे हैं ये लोग हमारे साथ भी, और उनके नाम पर भी जिनके नाम की ये माला जप करते हैं, जिन देवी की आराधना करते हैं।

    फ़िर हमने अपने २ लड्डू प्राप्त किये और चल दिये वापिस अपनी टैक्सी की और। मन खिन्न हो आया इतना पाखंड और इतना भ्रष्टाचार देखकर।

    अब हम चल दिये श्रीकालाहस्ती की ओर, जो कि राहु-केतु की विशेष पूजा और कालसर्पयोग पूजा के लिये प्रसिद्ध है।

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तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – ८ [चढ़ावे की गिनती, प्रसादम, लड्डू ..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 8)[Offering Count, prasadam and laddu…]

    वहीं सामने (हुंडी के) एक छोटा सा मंदिर ओर था, जिसमें परिक्रमा के बाद एक पत्थर नीचे टेबलनुमा चीज पर रखा था, जिसपर लोग अपनी मनोकामनाएँ लिख रहे थे, शायद पूरी भी होती होंगी।

    फ़िर वहीं हुंडी के सामने सीढ़ियों पर हम बैठ गये, अच्छी खिली हुई धूप थी, टकलाने के बाद धूप बहुत ही अच्छी लग रही थी, वैसे भी ठंड के मौसम में धूप सेंकने का आनंद बहुत दिनों बाद मिला था, क्योंकि पिछले ४ सालों से मुंबई में रह रहे हैं और ठंड की आदत खत्म हो गयी है। कुल्लू मनाली, रोहतांग और मनिकर्ण साहिब गये थे, तबही ठंड देखे थे।

    फ़िर वापिस मुख्य द्वार से बाहर की ओर निकले, उल्टे हाथ की ओर जाना था, वहीं पर बालाजी के यहाँ आये हुए चढ़ावे की गिनती होती है, ये जेल जैसा एक लंबा सा रास्ते के साथ जाता हुआ गलियरे में बनाया गया है, जिसमें हुंडी में और दानपेटी में आई हुई रकम और आभूषणों को आप देख सकते हैं, कम से कम २५ लोग छँटाई और गिनाई का काम करते हैं, जहाँ आप देख सकते हैं, पहले कुछ लोग केवल नोट सीधा करने का कार्य करते हुए मिलेंगे, फ़िर नोट अलग अलग करेंगे, जैसे १०००, ५००, १००, ५०, २०, १०, ५, २, १। फ़िर आगे वाले लोग उनकी गड्डी बनायेंगे और रखते जायेंगे। कितने ही डॉलर भी थे और कितनी ही अलग अलग करंसी।

    अवधारणा है कि हुंडी में लोग बालाजी का हिस्सा डालते हैं, जी हाँ यह सच है, वहीं के एक व्यक्ति ने मुझे बताया था, कि लोग बालाजी को अपने व्यापार में पार्टनर बनाते हैं, और जितना भी हिस्सा तय होता है, वह बालाजी के पास देने आते हैं, अब भला खुद ही सोचिये जिसके व्यापार के पार्टनर खुद बालाजी हों, उसके व्यापार में भला कभी हानि या परेशानी हो सकती है।

    वहीं आगे लिखा था मुफ़्त प्रसादम, हम भी उधर ही लाईन में लगकर चल दिये। वहाँ पर एक बड़ा सा कमरा जो कि लोहे की राडों से बना हुआ था, और उसमें पीतल के बड़े बड़े बर्तनों में हलुआ, और चावल बने हुए रखे थे, शुद्ध घी ऊपर तैरता हुआ नजर आ रहा था। दोनों तरफ़ एक एक पंडित कागज के दोनों में प्रसाद भक्तों को दे रहे थे। दोने में शुद्ध घी से बने हुए गुड़ में पगे हुए चावल थे, दोने हालांकि छोटे थे, और प्रति व्यक्ति केवल एक ही दोना मिल रहा था, जो भी एक से ज्यादा दोनों के लिये बोल रहे थे, किसी को दे रहा था तो किसी को झिड़क रहा था, नीचे चलते हुए चिपचिप हो रही थी, क्योंकि लोग खाते हुए गिरा भी रहे थे, हमने पूरे मजे लेते हुए वह प्रसाद उदरस्थ किया, और दिल से बालाजी को नमन कर यह अवसर देने के लिये धन्यवाद दिया। वहीं हाथ धोने के लिये बहुत सारे नल लगे हुए हैं, वहीं हाथ धोकर, निकल पड़े मंदिर के परकोटे से बाहर की ओर जहाँ लिखा था, कि लड्डू के लिये टीटीडी देवस्थानाम का रास्ता, हम उधर ही चल पड़े।

    परकोटे से सटा हुआ लंबा सा गलियारा है, जहाँ लोगों की बहुत भीड़ थी, लड्डू लेने जाने वालों की भी और लेकर आने वालों की भी। वहीं पर बालाजी को बेचने वाले ओह माफ़ कीजियेगा उनकी तस्वीरें और किताबें और भी पता नहीं क्या क्या। हम सबको अनदेखा करते हुए लड्डू लेने के लिये चल दिये,  जो कि गलियारा खत्म होते ही दायीं ओर जाने पर सामने एक बड़ा सा हाल दिखता है, जहाँ लिखा हुआ भी है, लड्डू प्रसादम, १० की लाईन अलग, ५० की अलग, ३०० की अलग, वीआईपी की अलग, वाह री माया। सब अलग बैंको के काऊँटर थे, जहाँ लड्डू मिल रहे थे। लड्डू के साथ लड्डू का कवर फ़्री नहीं था, उसके लिये अलग से दो रुपये शुल्क देय है। हमने भी अपनी जेब से दो रुपये शुल्क दिया और कवर में लड्डू रखकर हमें दे दिये गय। पूरे वातावरण में लड्डुओं की महक, मन तो बस लड्डुओं में ही रम गया था। वैसे भी पुरानी कहावत है कि अगर किसी का दिल जीतना है तो “रास्ता पेट से होकर जाता है”। अगर लड्डू अच्छा है तभी तो आप बालाजी वापिस आने का सोचेंगे, भले ही दर्शन के लिये नहीं पर लड्डू के लिये जरुर।

    वापिस आते हुए फ़िर वही गलियारा पड़ा और हमने भी बालाजी की हिन्दी की एक कॉमिक्स और इतिहास की किताब ली। वहीं बायीं ओर बहुत बड़ा कुण्ड है जहाँ पर लोग नहाते भी हैं, फ़िर हम चल दिये मंदिर के बाहर की ओर, बहुत बड़ा मैदान पार करने के बाद, सीढ़ियाँ आईं, वहाँ पर नारियल और कपूर बिक रहा था, वहाँ पर नारियल और कपूर बालाजी को चढ़ाया जाता है, मतलब होम किया जाता है, वहाँ पर बहुत सारे नारियल एक साथ होम हो रहे थे। वह नजारा देखते ही बनता था, चारों ओर कपूर की गंध माहौल में थी।

    हमने फ़िर ड्राईवर अब्दुल को एस.टी.डी. से फ़ोन लगाया कि हम टैक्सी पर पहुँच रहे हैं तुम आ जाओ। बहुत जोर से भूख लगने लगी थी, परंतु यह निश्चय किया गया कि खाना तिरुपति जाकर खायेंगे।

    जब तक अब्दुल आता तब तक हमने फ़िर एक कड़क कॉफ़ी पी, और कुछ धार्मिक खरीददारी की। तब तक ड्राईवर अब्दुल भी आ गया और हम चल दिये तिरुपति की ओर।

    फ़िर घुमावदार सड़कें और चारों ओर हरियाली एक तरफ़ खाई, एक तरफ़ पहाड़ी। आते हुए लोग दिख रहे थे, जो कि पैदल यात्री थे, तिरुपति से पैदल बालाजी आ रहे थे, कुछ फ़ोटो हमने टैक्सी में से लिये, एक जगह हमने टैक्सी रुकवाई कि चलो हम फ़ोटो खींच लें, एक फ़ोटो सेशन हो जाये। देखिये फ़ोटो –

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    आखिरी फ़ोटो में देखिये जैसे ही जैसे तिरुपति नजदीक आने लगा, वहाँ का हमने एक फ़ोटो ले लिया।

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तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – ७ [बालाजी के दिव्य दर्शन..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 7)[Balaji Amazing Darshan…]

    तभी हमारे पास की एक ओर लाईन  खोल दी गई लोग धड़ाधड़ उसमें से हमसे भी आगे जाने लगे तो हमें बहुत कोफ़्त हुई कि ये क्या हो रहा है पर वो वापिस घूमकर हमारे पीछे लगे तो हमें पता चला कि अब इस लाईन में लगने की जगह नहीं है इसलिये इस लाईन को बंद कर एक रेलिंग छोड़ दूसरी रेलिंग खोल दी गई है। हमारे पास में फ़िर एक दक्षिण भारतीय फ़ैमिली खड़ी हुई, पास वाली रेलिंग में, जिनकी बहुत ही प्यारी सी बिटिया साथ में थी, और सबसे ज्यादा हमें उसके वस्त्रों ने आकर्षित किया उसने बहुत ही सुन्दर सफ़ेद कलर का सिल्क का फ़्राक पहना था, जिसमें स्वर्ण के धागे की बोर्डर थी। वहाँ हमने जितनी भी महिलाएँ देखीं सब सिल्क ही धारण किये हुए थीं। कई महिलाओं ने भी केश दान किये थे, उनको देखना कुछ अजीब सा लग रहा था।

    थोड़ा आगे बड़े तो वहीं पर फ़िर एक मोबाईल काऊँटर था, कि अगर किसी के पास अगर मोबाईल हो तो उसे वह वहाँ जमाकर सकता था। सुरक्षा व्यवस्था ठीक थी, और धार्मिक स्थलों जैसी सुरक्षा चाक चौबंद नहीं थी। फ़िर हमने ३०० रुपये का टिकट लिया जिस पर लिखा था कि प्रति व्यक्ति दो लड्डू मिलेंगे। जो कि टीटीडी के काऊँटर से १२ घंटे के अंदर आप ले सकते हैं। तिरुपति बालाजी के ये लड्डू विश्वभर में प्रसिद्ध हैं।

    जैसे ही पहला बैरिकेड पार किया टिकट का एक हिस्सा फ़ाड़ लिया गया और वहीं पर देवस्थानम के गुंबद का छोटा सा मॉडल बना हुआ रखा था। फ़िर बेरिकेड्स के रास्ते धीरे धीरे आगे बड़ने लगे। नीचे पहुँचे तो वहाँ रास्ते में ही कमरे जैसे बनाये हुए हैं, जिसमें बैठने के लिये बैंच लगा रखी हैं, जिस पर बैठकर सुस्ता सकते हैं जब तक कि वहाँ का दरवाजा नहीं खुल जाता।

    इस तरह कम से कम दस दरवाजों से गुजरना पड़ा। फ़िर एक लंबा सा गलियारा आया और फ़िर बिल्कुल खुला हिस्सा जहाँ पर एक पुल से देवस्थानम की ओर जाना था, यहाँ सुन्दरसन दर्शन और मुफ़्त दर्शन वालों की लाईन साथ में ही लगी हुई थी, अब अंतर यह था कि वे लोग खड़े थे और हम लोग फ़टाफ़ट आगे बड़ते जा रहे थे। जल्दी ही बालाजी के मुख्य मंदिर का द्वार आ रहा था। मुख्य द्वार के पहले एक अजीब सी बात देखने को मिली कि मंदिर की दीवार बहुत ही प्राचीन थी और उसमें पत्थरों के बीच लोग पैसे घुसा देते हैं, और पैसे भी पूरे घुसे हुए थे, और कुछ सिक्के तो बहुत सालों से अंदर हैं ऐसा प्रतीत हो रहा था। शायद पत्थर भी अपनी थोड़ा ऊपर नीचे होते होंगे इसलिये फ़ंसे हुए सिक्के भी तिरछे हो चुके थे, जिनके निकलने की कोई उम्मीद भी नहीं है।

    मंदिर का मुख्य द्वार आ चुका था, वहीं पर पानी का छोटा सा स्रोता जैसा था, जिससे अपने पांव शुद्ध हो जायें। और फ़िर बिल्कुल सामने मुख्य मंदिर था, जहाँ तिरुपति बालाजी विद्यमान हैं। बिल्कुल ऐसा लगा कि स्वर्ग में आ गये हों, पूरा मंदिर स्वर्ण जड़ित है, स्वर्ण की आभा से सब दमक रहा है, हम अपने को भूल चुके थे, और गोविंदा गोविंदा कह रहे थे।

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फ़ोटो गूगल सर्च से ढ़ूंढ कर लगाये हैं।

   बहुत भीड़ थी, जैसे जैसे मंदिर में अंदर की ओर जा रहे थे, भीड़ का दबाब बड़ता जा रहा था। रेलिंग के बीच फ़ँसे हुए हम लोग आगे जा रहे थे, बालाजी बिल्कुल हमारे सामने थे, हम एकटक देखे जा रहे थे, मात्र १ या २ मिनिट होते हैं चलते हुए ही दर्शन करने होते हैं, हम भी अपने हाथ ऊपर करके गोविंदा गोविंदा करते हुए दर्शन लाभ ले रहे थे, हम भूल गये थे कि हम भीड़ में हैं, पूरे मनोयोग से बालाजी में ध्यानमग्न थे, बालाजी हमारे सामने थे, सबसे आनंददायक क्षण थे ये जीवनकाल के। रोम रोम भक्ति में डूबा हुआ था, सामने हल्की सी टिमटिमाती रोशनी में बालाजी के दर्शन से हम धन्य हो गये।

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फ़ोटो गूगल सर्च से ढ़ूंढ कर लगाये हैं।

    हम जैसे ही बाहर निकले हमारे ठीक दायीं ओर एक द्वार था, जिस पर ताला लगा हुआ था और लाख की सील लगी हुई थी, जिस पर लिखा था, वैकुण्ठ द्वार, जो कि केवल वैकुण्ठ चतुर्दशी और उसके अगले दिन ही खुलता है। फ़िर वहीं पास में बैठकर हम मंदिर के गुंबद को बाहर से निहारने लगे। भला स्वर्ग में से भी किसी के जाने की इच्छा होती है। वहाँ और भी मंदिर थे, उनमें भी दर्शन किये।

    वहीं पर लक्ष्मीजी की एक मूर्ती थी लोग उस पर अपना पर्स, नोट छूकर अपने को धन्य मान रहे थे, बेचारे सुरक्षाकर्मी उन्हें भगाभगाकर परेशान थे। वहीं फ़िर बालाजी की हुंडी थी, जिसमें लोग अपना हिस्सा बालाजी को देते हैं। हमने कई लोगों को देखा जो बड़ी रकम भी डाल रहे थे, और अपने को धन्य मान रहे थे। सब अपनी श्रद्धा अनुसार हुंडी कर रहे थे।

    हुंडी एक बड़ा सा पात्र जैसा होता है, जिसमें बालाजी के लिये चढ़ावा डाला जाता है, जो कि एक बड़े सफ़ेद कपड़े से घड़े जैसी आकृति का पात्र होता है।

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फ़ोटो गूगल सर्च से ढ़ूंढ कर लगाये हैं।

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तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – ६ [शीघ्र दर्शनम की लाईन में..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 6)[In quick darshan Que…]

    अपना मोबाईल बंद करके टैक्सी में अपने बैग में ही रख छोड़ा, फ़िर चल पड़े तिरुपति बालाजी देवस्थानम दर्शन करने के लिये। अपने सैंडल भी टैक्सी में ही रख दिये केवल कुछ नकद और क्रेडिट कार्ड लेकर चल दिये।

    ध्यान रखें पर्स, बेल्ट इत्यादि चीजें न ले जायें तो बेहतर होगा, यहाँ किसी भी मंदिर में इलेक्ट्रानिक उपकरण और मोबाईल ले जाना निषेध है। इसलिये पहले ही इन सब चीजों को हटा दें। जिससे अगर गलती से भी चली जायें तो खोने का या लॉकर में रखने की दिक्कतों से बच सकते हैं। फ़िर हमने अपनी टैक्सी के पास ही फ़ोटो खिंचवा लिया।

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    बहुत जोर से पेट में चूहे कूद रहे थे, तो पार्किंग के पास ही शापिंग कॉम्पलेक्स में इडली, बड़ा और सांभर चटनी मिल गये, थोड़ा खाया तृप्ति मिल गई।

    फ़िर चल पड़े वापिस उसी रास्ते पर जिधर केश देने के लिये हाल में गये थे, रास्ते में छोटी छोटी दुकानें लगी हुई थीं। वहीं पर तिरुपति देवस्थानम ट्रस्ट की मुफ़्त भोजनशाला भी थी। और वहीं एक और बोर्ड लगा हुआ था, कि लोकल, एसटीडी काल करने के लिये इधर जायें, व्यवस्था देवस्थानम की ओर से है, एवं इसका कोई शुल्क नहीं है।

    तिलक लगाने वाले बहुत सारे लोग घूम रहे थे जो कि बालाजी की स्टाईल में तिलक लगा रहे थे। वहीं पास ही टोपियों की दुकान भी थी, जो नये नये टकले हुए थे, जिनके लिये टकलाना नया अनुभव था, उन्हें ठंड लग रही थी। हालांकि हम भी टकलाने के मामले में पुराने तो नहीं थे परंतु नये भी नहीं थे। इसलिये टकलाना बहुत ही अच्छा लग रहा था।

    वहीं पर ३०० रुपये के शीघ्र दर्शनम टिकट का बोर्ड दिखा जो हमारा मार्गदर्शन कर रहा था, हम भी बोर्ड देखते हुए चले जा रहे थे। फ़िर एक सुरक्षाकर्मी को हमने पूछा कि और कितना दूर है, वो बोला और आगे जाईये और पहली लाईन में लग जाईये। वहाँ सेवक भी खड़े थे, जैसे ही हम वहाँ पहुँचे फ़िर से हमने उनसे पूछ लिया कि भैया यह ३०० रुपये के टिकट वाली लाईन ही है न, वो बोले बिल्कुल लग जाईये लाईन में। हम सबसे पीछे लगे थे लाईन में। हमने पूछा कि कितना समय लगेगा, तो वो सेवक जी बोले आज रविवार का दिन है, और बहुत भीड़ है, १-२ घंटे में दर्शन हो जायेंगे। हम लाईन में लग लिये, और महामंत्र “हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे” का जाप करने लगे। कुछ लोग “ऊँ वेंकटेश्वराय नम:” का जाप कर रहे थे, कुछ समूह में लोग थे जो “गोविंदा गोविंदा” कहकर ध्यान आकर्षित कर रहे थे। पास की लाईन ५० रुपये के सुन्दरसन टिकट की लाईन थी, बड़ी ही जल्दी आगे बड़ रही थी, पर हमें बताया गया कि यहाँ केवल दिख रहा है कि ये जल्दी जल्दी आगे जा रहे हैं पर इनको दर्शन के लिये ५-६ घंटे लगने वाले हैं।

    हमारे आगे लाईन में एक फ़ैमिली थी, जो कि दक्षिण भारतीय थे और पीछे हिन्दी भाषी फ़ैमिली थी उससे लगा कि दिल्ली तरफ़ के हैं। हम आसपास का वातावरण के साथ साथ लोगों को महसूस भी कर रहे थे और महामंत्र का जाप भी कर रहे थे। तभी पास में से ५-६ टकले लोगों की टोली याने कि जिन्होंने केशदान किये थे निकले जो अलग ही लग रहे थे, क्योंकि उन्होंने सर पर चंदन लगाया हुआ था। और सिर पीले रंग से अलग ही चमक रहे थे। हमें तो उनको देखकर ही ठंड लगने लगी क्योंकि चंदन में ठंडक होती है, और वातावरण में पहले ही इतनी ठंडक थी। ऊपर प्लास्टिक की चद्दरों का शेड था जिसमें से सूर्य भगवान की हल्की सी तपिश आ रही थी, बड़ा अच्छा लग रहा था।

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तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – ४ [जैसे देवलोक में आ गये हों..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 4)

हम जैसे ही तिरुपति से तिरुमाला के लिये निकले तो बहुत ही ज्यादा ट्राफ़िक था मुंबई की भाषा में बोले तो गर्दी थी, ड्राईवर का नाम अब्दुल था, और अच्छी खासी हिन्दी बोलता और समझता है, उतना ही उसका तमिल और तेलुगू पर अधिकार है। अब्दुल ने हमें बताया कि आज रविवार है और इस कारण बहुत भीड़ है, लोग दूर दूर से आते हैं, सप्ताहांत पर तो बहुत ही ज्यादा भीड़ रहती है, याने कि भक्तों का सैलाब रहता है।

जब हम तिरुपति आ रहे थे, तब भी हमने बहुत सारे लोगों को सड़क के किनारे पैदल चलते हुए देखा था जो कि तिरुपति की ओर जा रहे थे, तब अब्दुल ने बताया कि ये सब लोग पैदल ही बालाजी के दर्शन करने जा रहे हैं। हमने उन सबकी भक्ति को दिल से नमन किया।

तिरुपति से निकलते हुए तिरुपति देवस्थानम की बहुत ही बड़ी इमारत देखी जिसमें वहाँ से आप बायोमेट्रिक वाले टिकट ले सकते हैं, और वहाँ रुक भी सकते हैं, यह देवस्थानम की तरफ़ से भक्तों के लिये तिरुपति में सुविधा है।

जैसे जैसे तिरुपति से बाहर निकल रहे थे, तिरुमाला की ओर बढ़ रहे थे, मनोहारी दृश्य आते जा रहे थे, और इतना साफ़ शहर देख रहे थे और आश्चर्य कर रहे थे कि भारत में भी इतना साफ़ शहर मौजूद है। बहुत ही अच्छा रखरखाव है प्रशासन का, यह देखकर अच्छा लगा। पैदल चलने वालों के लिये अलग से फ़ुटपाथ बना हुआ था, जिस पर पैदल यात्री जा रहे थे, हमारे दायीं तरफ़ पहाड़ियाँ थीं, हम वह नजारा देख ही रहे थे कि दूर से हमें भव्य द्वार नजर आया, हमें अब्दुल ने बताया कि यह यहाँ का टोल नाका है, जहाँ पर चैकिंग होती है कि आपके पास नशेयुक्त पदार्थ तो नहीं है जैसे कि बीड़ी, सिगरेट, शराब, गुटका इत्यादि। सघन तलाशी होती है पूरी टैक्सी की और हमारी भी, अच्छा लगा कि इतनी चैकिंग होती है जिससे कोई भी नशेयुक्त पदार्थ तो कम से कम नहीं ले जा पायेगा। वहाँ पर लगभग आठ टोल बने हुए थे, और २५ रुपये का टोल था।

सबसे अच्छी बात यह है कि तिरुपति से तिरुमाला जाने का मार्ग अलग और आने का मार्ग अलग है, क्योंकि बहुत ही घुमावदार सड़कें हैं और बहुत सारे घाट पार करना होते हैं।

थोड़ा सा आगे बड़े तो हम तिरुमाला के पर्वत श्रेणी में दाखिल हो चुके थे, बहुत सारी बसें एक के पीछे एक थीं सरकारी। बहुत ही ज्यादा घुमावदार सड़के हैं, मजा भी आ रहा था और पेट में गुदगुदी भी हो रही थी। जैसे जैसे हम तिरुमाला की ओर जा रहे थे, वैसे वैसे हम बादलों के बीच में होते जा रहे थे, पास के सारे नजारे बहुत ही अद्भुत लग रहे थे, ऐसा लग रहा था कि हम देवलोक में आ गये हैं। थोड़ा सा और ऊपर जाने पर दबाब महसूस हुआ जैसा कि हवाई यात्रा के दौरान महसूस होता है। हरियाली और बादलों के बीच हमारी यात्रा चल रही थी, सड़क पर हमेशा एक तरफ़ पहाड़ की दीवार और दूसरी तरफ़ खाई मिली, सुरक्षा की दृष्टि से खाई की तरफ़ बड़े पत्थरों की दीवार और लोहे की गर्डर लगायीं हुई थी।

जैसे जैसे हम बालाजी के नजदीक आते जा रहे थे वैसे वैसे प्राकृतिक दृश्य मनोरम होते जा रहे थे।

कुछ मनोरम दृश्य देखिये –

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    बालाजी दर्शन तिरुमाला पर होते हैं, जो कि तिरुपति से सात पहाड़ दूर है, तिरुपति रेल्वे से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। और अगर कहीं और से आ रहे हैं, तो रेनुगुंटा स्टेशन आपको पड़ेगा जहाँ से तिरुपति मात्र १५ कि.मी. है।
    तिरुपती चैन्नई से लगभग १४० कि.मी. है और बैगलोर से लगभग २६० कि.मी.। बैंगलोर से भी पैकेज टूर उपलब्ध हैं जैसे कि चैन्नई से, वहाँ से आन्ध्राप्रदेश टूरिज्म, कर्नाटक टूरिज्म और निजी ट्रेवल्स की सुविधाएँ ले सकते हैं, और अगर बड़ा ग्रुप है तो अपनी टैक्सी ज्यादा अच्छा विकल्प है।
    अगर तिरुपति में रुकना है तो आप ऑनलाईन कमरे का आरक्षण करवा सकते हैं, वैसे वहाँ नि:शुल्क कमरे भी उपलब्ध हैं और डोरमेट्री भी नि:शुल्क उपलब्ध है।
    तिरुपति से तिरुमाला तकरीबन १७ कि.मी. है, यहाँ वोल्वो बसों का जाना प्रतिबंधित है। तिरुपति से बस स्टैंड से तिरुमाला की बस पकड़ सकते हैं, टिकट है २८ रुपये जो कि हर दो मिनिट में उपलब्ध है। मंदिर देवस्थानम ट्रस्ट की ओर से भी एक बस चलती है जो कि फ़्री सर्विस है, वह हर आधे घंटे में उपलब्ध है। अगर आप अपनी टैक्सी या टैम्पो ट्रेवलर से जा रहे हैं तो तिरुमाला उसी से जा सकते हैं।
    अगर सुंदरसन दर्शन करना है तो उसके लिये आपको ५० रुपये का टिकिट तिरुपति रेल्वे स्टेशन के पास काऊँटर से मिलेगा, और अगर बैंगलोर या चैन्नई से आ रहे हैं, तो तिरुपति देवस्थानम के कार्यालयों से जाकर ले सकते हैं। ५० रुपये का टिकट तिरुमाला में नहीं मिलता है। वहाँ केवल ३०० रुपये का शीघ्रदर्शन टिकट ही मिलता है, जो कि केवल तिरुमाला में ही मिलता है, यह टिकट और किसी भी शहर में उपलब्ध नहीं है और न ही इस टिकट की ऑनलाईन बुकिंग होती है।
    निकट का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा चैन्नई है और घरेलू हवाई अड्डा तिरुपति है।
    तिरुमाला में किसी भी ठग का शिकार न बनें वहाँ पर तमिल, तेलेगु, हिन्दी और अंग्रेजी में सभी तरह के संदेश लिखे हुए हैं, किसी से कुछ भी पूछने की जरुरत नहीं पड़ती है।
    तिरुपति विश्व का दूसरा सबसे बड़ा धनी देवस्थान है, वहाँ पर भक्तों के लिये सभी सुविधाएँ मुफ़्त उपलब्ध हैं या फ़िर बहुत ही कम दामों पर। लूट तो हर जगह होती है, बस जरुरत है तो आपको ऐसे लोगों से बचने की। तिरुमाला में बसें लगातार चलती रहती हैं, जिससे आप एक स्थान से दूसरे स्थान जा सकते हैं, ये भी मुफ़्त हैं, और बसें भी विशेष प्रकार की हैं, जैसे भगवान का खुद का रथ हो।
    तिरुपति से तिरुमाला पैदल भी जा सकते हैं, यह तकरीबन १४ कि.मी. है, अगर आप के पास सामान है तो तिरुपति में जहाँ से पैदल यात्रा शुरु करते हैं, वहाँ देवस्थानम के लगेज काऊँटर पर आप अपना सामान जमा करवा सकते हैं, और जब आप तिरुमाला पहुँचेंगे तो वहाँ लगेज काऊँटर से अपना समान वापिस ले सकते हैं। यह दूरी तय करने में ४-५ घंटे लगते हैं। पैदलयात्रियों के लिये सभी तरह की सुविधाएँ उपलब्ध हैं, जगह जगह पीने का पानी उपलब्ध है, शौचालय हैं, आराम करने के लिये शेड उपलब्ध हैं, सुरक्षा के लिये जगह जगह कर्मी तैनात हैं। जरुरी उदघोषणाएँ समय समय पर होती रहती हैं। पूरे रास्ते चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध हैं। नाश्ते के लिये केंटीन भी पूरे रास्ते में उपलब्ध हैं।

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चैन्नई मरीना बीच पैदल ही नाप दिया…

    अभी परसों की ही बात है शाम को जरा जल्दी होटल आ गये तो सोचा चलो मरीना बीच ही घूम आते हैं, अपने होटल पर रेसेप्शन पर पूछा कि मरीना बीच किधर है और कितनी दूर है, तो जबाब मिला यहाँ से सीधा रोड मरीना बीच को ही जाता है, पर लगभग ३ किलोमीटर है, हमने कहा फ़िर तो पैदल ही जा सकते हैं, तो रेसेप्शनिस्ट हमारा मुँह देखने लगा कि इतनी दूर पैदल ही जा रहे हैं। हमने कहा अरे भई हमें आदत है हम निकल लेंगे पैदल ही।

    पैदल ही निकल लिये और पैदल जाने का एक और मकसद था कि कोई और खाने के लिये अच्छा सा रेस्त्रां मिल जाये, तो हमें फ़िर पास में ही सरवाना भवन मिल गया जो कि शायद चैन्नई का सबसे बड़ा उनका रेस्त्रां है। खैर करीबन आधे घंटे में हम मरीना बीच पहुंच गये, इतना बड़ा और लंबा मरीना बीच हम बहुत दिनों बाद देख रहे थे, मुंबई में तो जुहु बीच बहुत ही छोटा लगता है इसके सामने।

    समुद्र का पानी हमारे पास हिलोरे मारता हुआ आ रहा था, और हम भी रेत में नंगे पैर अपने सेंडल हाथ में लिये घूम रहे थे, बहुत मजा आ रहा था, ठंडी हवा थी, और लहरों का शोर।

    बहुत सारे स्टाल लगे हुए थे जिसमें कुछ पर मुंबई चाट और कुछ पर चैन्नई चाट लिखा था, पर हमारा वहाँ कुछ खाने का मन नहीं था तो वापिस हम चल दिये अमरावती रेस्त्रां के लिये, जहाँ फ़िर हमने वही आन्ध्रा स्टाईल चावल की थाली खाई। कुछ भी कहिये मन नहीं भरा वह थाली खाकर, अभी फ़िर खाने की तमन्ना है।

    अब किसी दिन फ़ुरसत से शाम के समय मरीना बीच जायेंगे और फ़िर शाम के समय के दीदार की बातें बतायेंगे।

दक्षिण भारतीय व्यंजन की स्वादिष्टता जिसमें तमिल और आन्ध्रा दोनों तरह के व्यंजन शामिल हैं.. अद्भुत स्वाद है यहाँ के खाने का.. चैन्नई में खाने का मेरा अनुभव..

    यहाँ चैन्नई में जब से आये हैं रोटी तो देखने को भी नहीं मिली है, शुरु दिन ही दोपहर के खाने में मिनी मील सरवाना भवन का खाया, सरवाना भवन जो कि दक्षिण भारतीय खाने की अंतर्राष्ट्रीय श्रंखला है। और यहाँ तरह तरह के दक्षिण भारतीय खाने उपलब्ध हैं।

    पहले दिन मिनी मील खाया जिसमें ३ तरह के चावल एक दही के साथ, दूसरा सांभर के साथ और तीसरा पता नहीं किसके साथ शीरा और ३-४ चटनियाँ।

    फ़िर शाम को खाना खाया आन्ध्रा की प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय श्रंखला अमरावती में आन्ध्रा थाली, जिसमें तीन तरह की सब्जियाँ, १ चटनी, सांभर, रसम, दही और आन्ध्रा का खास मसाला, और दो विशिष्ट अचार चावल के साथ, स्पेशल पापड़, सूखी लंबी लाल मिर्ची, और चावल के छोटे पापड़, खाने के बाद केला, आन्ध्रा की कोई एक प्रसिद्ध मिठाई और आन्ध्रा स्टाईल पान।

नीचे फ़ोटो देखिये पर मेरे मोबाईल कैमरे से –

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    खाने का तरीका भी विशिष्ट है, चावल में घी (आप जितना चाहे घी डलवा सकते हैं) और फ़िर आन्ध्रा का खास मसाला मिलाकर खाने पर अद्भुत स्वाद आता है। साथ में सब्जियाँ मिला सकते हैं। फ़िर खाने में ज्यादा इमली वाले सांभर से कम इमली वाली रसम और फ़िर दही से खान खत्म करते हैं, यहाँ बेधड़क आप अपने हाथ से खा सकते हैं, और जम के अपने हाथ चाट भी सकते हैं, क्योंकि यह यहाँ की संस्कृति में शामिल है, अगर आप चम्मच से खायेंगे तो मजा भी नहीं आयेगा। थाली का खाना अनलिमिटेड है जितना चाहें उतना ले सकते हैं।

    हमने यहाँ आकर बहुत चावल खाया पर कभी भारी नहीं लगा, शायद यहाँ का पानी वैसा है या फ़िर भौगोलिक स्थिती इस प्रकार है।

    सरवाना भवन में हमने अभी तक मिनी मील, प्याज का उत्तपम, सांभर चावल, टमाटर का सूप, मसाला डोसा, पाव भाजी, मिनि टिफ़िन जिसमें एक डोसा, ५ छोटी इडली, शीरा, सांभर, स्पेशल चावल और चटनियाँ होती हैं। सरवानन भवन की विशेषता है कि वहाँ की क्वालिटी, पर हाँ थोड़ी मात्रा कम होती है।

यहाँ की एक और विशेषता है कि खाना परोसा जायेगा केले के पत्ते लगाकर सीधे प्लेट में नहीं।