Category Archives: अध्ययन

सकारात्मक और नकारात्मक खबरें समाचार चैनलों पर..

थोड़ा समय मिला तो समाचार देखे,

एक पट्टी घूम रही थी.. (निजी समाचार चैनल पर)
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मदद करने वाली पंचायतों का उत्तराखंड सरकार सम्मान करेगी ।
अभी तक तबाही से उबरे भी नहीं हैं, बचाव कार्य पूरे भी नहीं हुए हैं और इनके राजनीति चालू हो गई है।

जनता बचाव कार्य से खुश नहीं . (निजी समाचार चैनल पर)
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यहाँ पर दो तीन परिवार को समाचार चैनल लेकर बैठा हुआ था, जिनके खुद के परिजन इस आपदा का शिकार हुए, वे सरकार को बद इंतजामी के लिये कोस रहे थे.. जैसे टीवी चैनल कोपभवन ही बन गया हो। ( यहाँ कोसने की जगह क्या ये लोग वहाँ आपदा प्रबंधन में अपने स्तर पर मदद नहीं कर सकते थे, और किसी और के अपने को बचा नहीं सकते थे).. टीवी एंकर तो अपने चेहरे पर इतना अवसाद लिये बैठा था, जैसे उसे वाकई बहुत दुख हुआ हो ।

बचाव कार्य बहुत अच्छा है (सरकारी दूरदर्शन चैनल पर)
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सरकारी चैनल राज्यसभा और डीडी न्यूज पर दिखाया जा रहा था, किस तरह लोगों को बचाया जा रहा है, और एक ग्रामीण बचाव कार्य से खुश था उसका अनुभव टीवी पर दिखाया गया, जिससे लगा कि शायद निजी चैनल वालों का सरकार से बैर है।

सरकारी चैनल पर बचाव के बारे में सकारात्मक बातें दिखायीं जा रही हैं, जिनसे हर्ष होता है, परंतु वहीं निजी सरकारी चैनल नकारात्मक बातें दिखायीं जा रही हैं, जिनसे मन अवसादित होता है, निजी चैनल तो वही दिखाते हैं जो जनता देखना चाहती है और सरकारी चैनल वह दिखाते हैं जो सरकार जनता को दिखाना चाहती है, या एक पहलू यह भी हो सकता है कि तथ्यों का असली चेहरा शायद सरकारी लोग दिखा पाते हों, क्योंकि नकारात्मक बातें कहने वाले बहुत मिल जायेंगे परंतु सकारात्मक बातें कहने वाले बहुत कम, मतलब कि सरकारी समाचार चैनल वालों को सकारात्मक खबरें बनाने का दबाब तो रहता ही है, और उसके लिये ऐसे लोगों को ढूँढ़ना और भी दुष्कर कार्य होता होगा, यह तो एंकरों का क्षैत्र है इसके बारे में वही लोग अच्छे से बता सकते हैं, अपना डोमैन तो है नहीं, कि अपन अपने अनुभव पर विश्लेषण ठेल दें।

डीडी वन पर जो ऐंकर थे उन्हें पहले कहीं किसी निजी न्यूज चैनल पर समाचार पढ़ते हुए और इस तरह की समीक्षाओं/वार्ताओं में जोर जोर से चिल्लाते हुए देखा है, उनके हाथ चलाने के ढंग से ही समझ में आ रहा था कि वे अपने शो का नियंत्रण किसी ओर को देना ही नहीं चाहते हैं, और ना ही किसी की सुनना चाहते हैं, बस सब वही बोलें जो वे सुनना चाहते हैं या यूँ कहें कि अपने शब्द दूसरे के मुँह में डालने की कोशिश कर रहे हों।

मन ही मन सोचा कि इनको क्या ये भी अपने कैरियर के लिये इधर से उधर स्विच मारते होंगे, जहाँ अच्छा पैसा और पद मिला अच्छा काम मिला उधर ही निकल लिये, फ़िर थोड़े दिनों बाद कहीं और किसी निजी समाचार चैनल पर नजर आ जायेंगे।

पर यह तो समझ में आया सकारात्मक और नकारात्मक खबरों का असर बहुत होता है, तो इस मामले में हमें सरकारी समाचार चैनल बहुत पसंद आया, श्रेय इसलिये देना होगा कि उनको ग्राऊँड लेवल पर जाकर बहुत काम करना पड़ता है और निजी चैनल वालों के लिये यह बहुत आसान है क्योंकि नकारात्मक कहने के लिये एक ढूँढों हजार मिलते हैं।

शिक्षा काल की दोस्ती भविष्य में..

    गुरू द्रोण और द्रुपद दोनों ने एक साथ महर्षि अग्निवेश के आश्रम में धनुर्वेद की शिक्षा प्राप्त की, तब दोनों अच्छे मित्र हुए..

    उस समय द्रुपद ने द्रोण से कहा था .. “प्रिय द्रोण, तुम मेरे अत्यंत प्रिय मित्र हो, जब मैं आने पिता की राजगद्दी पर बैठूंगा, उस समय मेरे राज्य का तुम भी उपभोग करना । मेरे भोग, वैभव और सुख सब पर तुम्हारा अधिकार होगा।”

    धनहीन अवस्था में द्रोण जब द्रुपद के पास मदद की आस लेकर गये तब द्रुपद राजगद्दी पर आसीन हो चुके थे, तब द्रुपद ने द्रोण से घृणापूर्वक कहा “आश्रम का जीवन समाप्त हो चुका। गुरू आश्रम में बहुत विद्यार्थी साथ रहते, खेलते और शिक्षा प्राप्त करते हैं। मगर दरिद्र धनवान का, मूर्ख विद्वान का और कायर शूरवीर का मित्र नहीं हो सकता ।”

    उपरोक्त कथा से दोस्ती के एक और रूप का पता चलता है । जिसमें दोस्ती नाम मात्र की नहीं है, दोस्त जो राजा बन चुका है उसका घमंड दिखाई पड़ता है। और इस तरह की दोस्ती आजकल बहुतायत में देखी जा सकती है, खासकर पढ़े लिये नौजवान पीढ़ी में ।

    दोस्ती के ऐसे रूप युग युग से देखने में आ रहे हैं, आज भी देखने में आते हैं, दोस्ती जो शिक्षा के काल में पल्लवित होती है वह धीरे धीरे भौतिक वस्तुओं और पद की भेंट चढ़ जाती है। यहाँ दोस्ती केवल तभी रह सकती है जबकि मित्रों के बीच आपस में बहुत प्रेम हो, भौतिक वस्तुओं और पद की लालसा ना हो। आपस का फ़ायदा एक अलग बात है, परामर्श भी एक अलग बात है, परंतु केवल फ़ायदे के लिये मित्रता बनाये रखना शायद बहुत दुष्कर होता है।

    हमारे आज भी ऐसे मित्र हैं जो बचपन से हैं और इन सब चीजों से दूर हैं, इसे खुशनसीबी ही कही जायेगी। आज भी उनके बीच जाकर मन प्रसन्न हो जाता है। दोस्ती निभाना बहुत कठिन और तोड़ना बहुत आसान होता है।

    दोस्तों में आपस में जो तालमेल होता है वह शायद ही कहीं देखने को मिलता है, दोस्तों को हमारी अधिकतर गुप्त बातें पता होती हैं, हमारे सुख दुख में सबसे पहले दोस्त ही खड़े होते हैं, रिश्तेदार बाद में आते हैं।

    जो द्रुपद जैसे दोस्त होते हैं ऐसे लोगों का वाकई में दोस्त ना होना अच्छा है। परंतु कुछ बहुत अच्छे दोस्ती के उदाहरण भी हैं जैसे कृष्ण और सुदामा । कृष्ण जी ने खुद अपने हाथों से सुदामा जी के पैर धोये थे और इतना सम्मान दिया कि सुदामा व्याकुल हो उठे थे।

बिना पेन कार्ड के म्यूचयल फ़ंड माइक्रो निवेश सुविधा (Without PAN !!! Invest in Micro Investment Facility)

    बिना पेन कार्ड के म्यूचयल फ़ंड में निवेश करना बहुत मुश्किल है, वह भी जब से नियामक ने KYC के नियम म्यूचयल फ़ंड खरीदने के लिये लागू कर दिये हैं, तब २०११ में नियामक ने म्यूचयल फ़ंड खरीदने के लिये जिन लोगों के पास पेन कार्ड नहीं थे उन लोगों के लिये नियामक ने माइक्रो निवेश सुविधा उपलब्ध करवाई ।

    अभी हाल ही में रिलायंस म्यूचयल फ़ंड ने भी माइक्रो निवेश सुविधा (Micro Investment Facility) उपलब्ध करवाई है, जो कि बाजार में १४ जून से आम निवेशक के लिये उपलब्ध है।

     माइक्रो निवेश सुविधा के तहत निवेशक वर्षभर में ज्यादा से ज्यादा केवल ५०,००० रूपये का निवेश कर सकता है, फ़िर भले ही वह निवेश सिप (SIP – Systematic Investment Plan) या फ़िर एक मुश्त (LumpSum Investment) हो, पर कुल मिलाकर दोनों या एक निवेश ५०,००० रूपयों से ज्यादा नहीं होना चाहिये। और यह ५०,००० रूपये अप्रैल से मार्च के मध्य ही निवेशित होने चाहिये, याने कि अगर किसी को अपना निवेश जारी करना है तो उसे वित्तीय वर्ष का पालन करना होगा ।

    इस सुविधा को केवल वही निवेशक ले सकेगा जिसके पास अधिकृत रूप से पेन कार्ड नहीं है, और अगर अगर निवेशक उस वित्तीय वर्ष के मध्य में इस योजना से निकास करता है तो वह उस ५०,००० रूपये की लिमिट में नहीं आयेगा।

    यह सुविधा केवल व्यक्तिगत, एन आर आई, अल्पवयस्क संरक्षक के साथ, एकल स्वामित्व वाले व्यवसाय एवं संयुक्त खाते को उपलब्ध है। पहले खातेधारी के पास पेन कार्ड नहीं होना आवश्यक शर्त है । अन्य श्रेणियाँ जैसे PIO, HUF, QFI, Non-Individuals इस सुविधा का उपयोग नहीं कर सकते हैं।

म्यूचल फ़ंड क्या करें, क्या न करें ? (Mutual Funds DOS and DON’TS)

    माइक्रो निवेश सुविधा में निवेश करने के लिये निवेशक को निम्न दस्तावेज निवेशक सुविधा केन्द्र पर जमा करने होंगे –

१. साधारण आवेदन पत्र

२. PAN Exempt KYC Reference No (PEKRN) acknowledgement issued by KRA. For more details click here

    यहाँ निवेशक को ध्यान रखना चाहिये कि वह एक वित्तीय वर्ष में केवल ५० हजार रूपये ही निवेश कर सकता है।

micro investment facility

    ऊपर दिये गये उदाहरण में एक्स महाशय एकमुश्त और सिप के जरिये एक वित्तीय वर्ष में जो निवेश कर रहे हैं, वह ५०,००० रूपये से कम है इसलिये यह वैधानिक है, परंतु वाय महोदय का निवेश एक वित्तीय वर्ष में ५०,००० रूपयों से ज्यादा हो रहा है इसलिये इनका आवेदन पत्र ही अस्वीकार कर दिया जायेगा।

और उसका घर का सपना, सपना ही रह गया

     एक किस्सा बताते हैं, एक बार नौकरीशुदा आदमी ने सोचा चलो अपने गृहनगर में नये फ़्लैट बन रहे हैं, और अपनी पहुँच में हैं तो क्यों ना उसमें एक फ़्लैट ले लिया जाये, पता लगाया गया बंदा भारत के दूसरे कोने में रहता था, उसने अपने पापा को कहा कि आप इसके बारे में पता कीजिये, पापा ने कहा कि उसका एक दलाल है जो कि अपने वो किराने वाली दुकान वाले का भाई ही है, और वह कह रहा है कि १० लाख में मिल जायेगा, और पूरे १० लाख पर लोन भी हो जायेगा और उसने १ बीएचके ५०,००० रूपये देकर पापा के मार्फ़त फ़्लैट बुक करवा लिया ।

सपनोम का घर

     जब वह बंदा एक महीने बाद अपने गृहनगर गया तो जब उसने दलाल और बिल्डर से बात की तो पता चला कि लोन तो केवल ७.६५ लाख पर ही होगा, बाकी तो ब्लैक में देना है, मतलब कि लगभग २.३५ लाख जेब से लगाने होंगे, बंदे ने कहा कि मेरे पास तो केवल १० लाख का २०% याने कि २ लाख रूपये हैं, और एक पैसा ऊपर देने के लिये नहीं है, और आपने बुक करवाते समय पूरी जानकारी नहीं दी। तो बिल्डर और दलाल दोनों ने कहा कि आप चिंता मत करो आपको २.३५ लाख का पर्सनल लोन दिलवा देंगे, बंदे ने कहा भई गृहऋण का ब्याज होता है १० % और पर्सनल लोन का ब्याज होता है १५-१६%, ये ऊपर का ५-६% कौन भुगतने वाला है, मैं तो यह ऊपर का ब्याज नहीं दूँगा, तो दलाल और बिल्डर दोनों भड़क गये कि एक तो हम आपको ऋण दिलवा रहे हैं और आप नाटक कर रहे हैं ।

सपनो का घरहोमलोन

     उस बंदे की अपने गृहनगर में बहुत सी बैंकों में अच्छी पहचान भी थी और बैंक वालों से दोस्ती भी थी, जब वह अपने बैंक के मैनेजर दोस्तों से मिला तो पता चला कि अभी तक इस बिल्डर को किसी भी राष्ट्रीयकृत और निजी बैंक ने एनओसी नहीं दी है, और उन्होंने बताया कि बिल्डर ऐसे ही प्रोजेक्ट के नाम पर पैसा बाजार से उठाते हैं और बैंक से ऋण दिलवा कर लोगों को फ़ँसवा देते हैं, फ़िर २-३ फ़्लोर बनाकर बिल्डिंग बनाना बंद कर देते हैं और अधिकतर ऋण की किश्तें जो कि बैंक से उन्हें लेनी होती हैं, वे इस प्रकार रखते हैं कि २-३ फ़्लोर तक ही उनके पास सारी रकम आ जाये। एक बार सारी रकम आ जाती है तो ये लोग भाग लेते हैं और जनता को अच्छा खासा चूना लगा देते हैं। इस तरह के बहुत सारे केस हो चुके हैं, और जनता को पता ही नहीं चल पाता है।

     मैनेजर मित्र की बातें अक्षरश: सत्य थीं, क्योंकि बैंक से ऋण लेने का फ़्लो बिल्डर ने दिया था वह बिल्कुल वैसा ही था केवल २ फ़्लोर बनने के पहले ही वह सारा पैसा बैंक से लेता, और भाग लेता ।

     अब उस बंदे ने निश्चय किया कि वह इस फ़्लैट को नहीं लेगा और अपने पैसे उन्हें वापिस करने के लिये कहेगा जो कि उसने बुकिंग के नाम पर दिये थे, परंतु उन्होंने पैसे देने से मना कर दिया और कहा कि आप अपनी तरफ़ से कैंसिल कर रहे हैं, इसलिये एक भी पैसा वापिस नहीं मिला । हालांकि उस बंदे के भी अच्छे कॉन्टेक्ट्स थे परंतु उसने सोचा कि यह केस लीगल तरीके से ही लड़ा जाये, क्योंकि उसके अभिभावक उसके गृहनगर में अकेले रहते थे।

     तब उसने अपने कुछ ब्लॉगर मित्रों की सहायता से मार्गदर्शन प्राप्त किया और बिल्डर और दलाल की शिकायत कलेक्टर और एस.पी. ऑफ़िस में की, जब वह बंदा कलेक्टर से मिलने गया तो कलेक्टर ने कहा कि अगर हमें भी आज फ़्लैट खरीदना है तो ब्लैक में पैसा देना ही होगा, बंदे को कलेक्टर की बात सुनकर बहुत आघात लगा। फ़िर भी वह कलेक्टर और एसपी ऑफ़िस में अपने आवेदन पर आवक लेकर आ गया और फ़िर वह तो वापिस अपनी नौकरी के लिये चला गया, उसने अपने पापा को फ़िर एक सप्ताह बाद कहा कि फ़िर से उसी आवेदन की फ़ोटोकॉपी करवाकर उस पर फ़िर से आवक ले आये और उस पर लिख दे Reminder 1 फ़िर Reminder 2 भी भिजवाया और एक सप्ताह बाद ही तहसीलदार की कोर्ट से नोटिस आ गया।

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     तहसीलदार की कोर्ट में वादी तरफ़ से कोई उपस्थित नहीं हुआ परंतु दलाल खुद से आगे होकर आया और कहा कोर्ट के बाहर ही सैटलमेंट कर लेते हैं, और आधे रूपये में कोर्ट के बाहर सैटलमेंट कर लिया, वह भी इसलिये कि अभिभावकों को परेशानी होती। नहीं तो उसे उसके पूरे पैसे वापिस जरूर मिल जाते, परंतु कुछ चीजें होती हैं जो पैसे से बढ़ कर होती हैं।

     उस बंदे ने २५ हजार केवल यह समझकर सीखने के लिये खर्च कर दिये कि फ़्लैट लेने के पहले क्या चीजें जरूरी हैं और जरूरी चीजें पहले ही पता कर ली जायें, जब पैसा एक नंबर में कमाया जाता है तो फ़िर २ नंबर में क्यों दिया जाये। खैर उसका घर का सपना, सपना ही रह गया ।

निवेशको के हित में सेबी और AMFI का EUIN

    सेबी के परिपत्र CIR/IMD/DF/21/2012 दिनांक १२ सितंबर २०१२ के अनुसार एवं AMFI के विभिन्न दिशानिर्देशों के अनुसार अब म्यूचयल फ़ंड खरीदते समय निवेशक को आवेदन पत्र / ट्रांजेक्शन रिक्वेस्ट पर Employee Unique Identification Number (EUIN) और डिस्ट्रीब्यूटर एवं सबडिस्ट्रीब्यूटर का AMFI Registration Number (“ARN”) क होना सुनिश्चित कर लेना चाहिये।

    EUIN को लागू करने का उद्देश्य है कि निवेशक के हित की रक्षा करना, यह म्यूचयल फ़ंड के गलत जानकारी देकर बेचने पर पर रोक लगाने के लिये कारगार कदम होगा, EUIN से किस व्यक्ति ने म्यूचयल फ़ंड उत्पाद निवेशक को बेचा है, उसकी जानकारी दर्ज हो जायेगी और निवेशक की शिकायत की स्थिती में किस कर्मचारी ने उत्पाद बेचा था, पता लग सकेगा।

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    EUIN ७ नंबर का एक विशिष्ट नंबर होगा, जो कि AMFI द्वारा दिया जायेगा, और यह उन हरेक संबंधित कर्मचारी / रिलेशनशिप मैनेजर / सैल्स वाले के लिये दिया जायेगा, जो भी निवेशक से म्यूचयल फ़ंड उत्पाद को बेचने की बातें करते हैं / बेचते हैं । EUIN का होना अब जरूरी हो गया है, जब भी निवेशक म्यूचयल फ़ंड उत्पाद खरीदें, हमेशा EUIN का ध्यान रखें।

    निवेशकों को नया आवेदन पत्र का उपयोग करना चाहिये जिस पर ARN Code / Sub Brocker ARN Code / EUIN, Sub broker code (as allotted by ARN holder) उपलब्ध हो। नये आवेदन पत्र अगर आपके ब्रोकर के पास उपलब्ध नहीं हैं तो आप उन्हें कहिये कि म्यूच्यल फ़ंड की वेबसाईट पर उपलब्ध हैं, वहाँ से प्रिंट निकाल लें।

EUIN के बारे में मुख्य बातें –

१. ट्रांजेक्शन जिनके लिये EUIN होना चाहिये –

Purchases, Switches, and for Fresh Registrations of SIP / STP / Trigger STP / Dividend Transfer Plan.

२. ट्रांजेक्शन जिनके लिये EUNI की जरूरत नहीं है –

Ongoing SIP/ STP / SWP / STP Triggers (registered prior to June 1, 2013), Dividend Reinvestments, Bonus Units, Redemption, SWP Registration, Zero Balance Folio creation and installments under Dividend Transfer Plans .

३. उपरोक्त १ नंबर में बताये गये ट्रांजेक्शन EUIN के लिये १ जून २०१३ से प्रभावकारी हैं, जिसमें किसी भी मोड से ट्रांजेक्शन किया गया हो केवल निम्न प्रकार के ट्रांजेक्शनों को छोड़कर, जिनके लिये यह १ अगस्त २०१३ से प्रभावकारी होगा –

  • Mobile / SMS based transactions.
  • Transactions received through the Stock Exchange Platform.

अगर इसके बारे में और ज्यादा जानकारी चाहिये तो आप अपनी म्यूचयल फ़ंड कंपनी की वेबसाईट और उनके टोलफ़्री नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं।

घर बैठे वेद की शिक्षा

     “धर्मो रक्षति रक्षत:” अर्थात धर्म की रक्षा से ही सबकी रक्षा होती है, अगर हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म हमारी रक्षा करेगा ।

     वेदों को बहुत करीब से जानने की बहुत ही तीक्ष्ण इच्छा थी, और वेदों को पढ़ना कहाँ से शुरू किया जाये बहुत देखा, बहुत सोचा, फ़िर कल्याण के दो माह पहले के अंक में वेदों के ऊपर बहुत ही सार रूप मेंimage एक अच्छा लेख पढ़ा। तो हमने ऋगवेद पढ़ना शुरू किया, परंतु ऋचाओं की संस्कृत इतनी कठिन है, या यूँ कह सकते हैं कि इस मूढ़ को समझ नहीं आईं, तो सोचा पहले संस्कृत व्याकरण ठीक की जाये और उसके बाद वेदों का पाठ किया जाये, क्योंकि अनुवाद में असली अर्थ समझ नहीं आता है, अनुवाद तो किसी व्यक्ति द्वारा किया गया उस ऋचा का अनुमोदन है, जो समझने में भी कठिन होता है। तो अब पाणिनी व्याकरण पढ़ने की शुरूआत की, हमारे पास एक किताब रखी थी “कारक प्रकरणम”, अभी व्याकरण ठीक करने की शुरूआत यहीं से की है, हालांकि यह ठीक नहीं है, हमारी एक पुरानी किताब शायद उज्जैन में रखी है, तो उसका अभाव खल रहा है। अब साथ में “चरक संहिता” भी पढ़नी शुरू की, “चरक-संहिता” की संस्कृत भी कठिन है परंतु फ़िर भी बहुत कुछ समझ में आ रहा है, हिन्दी अनुवाद से काफ़ी मदद मिल रही है।

image    इसी बीच वेदों के लिये उपयुक्त स्थान ढूँढ़ते रहे और अभी भी ढूँढ़ रहे हैं, क्योंकि वेदों में लिखा है कि वेद केवल गुरू की वाणी से ही समझे जा सकते हैं, पढ़कर नहीं समझे जा सकते हैं। फ़िर हमें ध्यान आया कि हम यत्र तत्र सर्वत्र ढूँढ़ मचा रहे हैं, और हमने उज्जैन को तो भुला ही दिया, क्योंकि वहाँ संस्कृत के बड़े बड़े प्रतिष्ठान उपस्थित हैं, जो भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने का दुष्कर कार्य कर रहे हैं ।

    हमें इसी बीच एक अच्छा पाठ्यक्रम मिल गया, वह है “घर बैठे वेद की शिक्षा”, यह पाठ्यक्रम महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन द्वारा संचालित है। इस पाठ्यक्रम में पत्राचार से लगभग ५० पाठ भेजे जायेंगे, और हर पाठ के बाद एक प्रश्नोत्तरी संलग्न है, इस पाठ्यक्रम की अवधि २ वर्ष की है, जिसमें हर छ: माह में १२ पाठ और अंतिम छ: माह में १४ पाठ भेजे जायेंगे, शिक्षा संस्था वेदो के प्रचार के लिये यह पाठ्यक्रम चला रहा है, इसलिये इसका शुल्क भी नाममात्र २५० रूपये प्रतिवर्ष ही रखा गया है। हर छ: माह में भेजे गये पाठों की प्रश्नोत्तरी भरकर वापिस महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन को अपने खर्चे से डाक द्वारा भेजनी होगी। यह पाठ्यक्रम हिन्दी एवं अग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है।

    पाठ्यक्रम में वेदों के बारे में जानकारी, संहिता उद्धरण, ब्राह्मणा, अरण्यका और उपनिषदों को हिन्दी एवं अंग्रेजी में विस्तार से दिया जायेगा ।

    ज्यादा जानकारी के लिये आप यहाँ लिख सकते हैं –

माननीय सचिव महोदय

महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रिय वेदविद्या प्रतिष्ठान,

प्राधिकरण भवन, द्वितीय माला, भरतपुरी, उज्जैन – ४५६०१० (म.प्र.)

ईमेल – [email protected]

    हमने ईमेल किया था, और प्रतिष्ठान की तरफ़ से तत्परता से ईमेल आ गया था। तो क्या विचार है अब घर बैठे वेदों को समझ लिया जाये।

सारे वेद ऑनलाईन आप यहाँ पढ़ सकते हैं http://www.sanskritweb.net/

फ़ोटो – महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रिय वेदविद्या प्रतिष्ठान की वेबसाईट से लिये गये हैं

मुँबई से बैंगलोर तक भाषा का सफ़र एवं अनुभव..

    करीबन ढ़ाई वर्ष पहल मुँबई से बैंगलोर आये थे तो हम सभी को भाषा की समस्या का सामना करना पड़ा, हालांकि यहाँ अधिकतर लोग हिन्दी समझ भी लेते हैं और बोल भी लेते हैं, परंतु कुछ लोग ऐसे हैं जो हिन्दी समझते हुए जानते हुए भी हिन्दी में संवाद स्थापित नहीं करते हैं, वे लोग हमेशा कन्नड़ का ही उपयोग करते हैं, कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हिन्दीभाषी जरूर हैं परंतु दिन रात इंपोर्टेड अंग्रेजी भाषा का उपयोग करते हैं, इसी में संवाद करते हैं।

    जब मुँबई गया था तब लगता था कि सारे लोग अंग्रेजी ही बोलते हैं, परंतु बैंगलोर में आकर अपना भ्रम टूट गया । कम से कम मुँबई में हिन्दी भाषा अच्छे से सुनने को मिल जाती थी, यहाँ भी मिलती है परंतु बहुत ही कम लोग उपयोग करते हैं। यहाँ के स्थानीय लोग हिन्दी भाषा का उपयोग मजबूरी में करते हैं क्योंकि आज बैंगलोर में लगभग ८०% लोग जो कि सॉफ़्टवेयर कंपनियों में हैं वे हिन्दी भाषी हैं, अगर स्थानीय लोग हिन्दी नहीं समझेंगे तो उनकी रोजी रोटी की समस्या हो जायेगी।

    अधिकतर दुकानदार हिन्दी अच्छी समझ लेते हैं और बोल भी लेते हैं, जब वे अपनी टूटी फ़ूटी हिन्दी में बोलते हैं तो अच्छा लगता है, रोष नहीं होता कि हिन्दी गलत बोल रहे हैं, खुशी होती है कि सीख रहे हैं, और सीखना हमेशा गलत से ही प्रारंभ होता है। हमने भी कन्नड़ के थोड़े बहुत संवाद सीख लिये हैं, जिससे थोड़ा आराम हो गया है। हम सुबह सुबह जब दूध लेने जाते हैं तो अगर बड़ा नोट देते हैं और कहते हैं “भैया, छुट्टा देना” बाद में अहसास होता है कि पता नहीं यह समझेगा भी कि नहीं, परंतु समझ लेता है तो अब आदत ही बन गई है।

    जब बैंगलोर आये थे, तो हमारे बेटेलाल बहुत ही हतप्रभ थे और कहते थे कि “डैडी ये कैसे इतनी प्रवाह में कन्नड़ बोल लेते हैं”, हमने कहा “जैसे आप हिन्दी प्रवाह में बोल लेते हैं, समझ लेते हैं, वैसे ही इनकी कन्नड़ मातॄभाषा है, ये बचपन से कन्नड़ के बीच ही पले हैं”, बेटेलाल की समझ में आ गया। पर बेटेलाल ने कभी कन्नड़ सीखने की कोशिश नहीं की। पहले एक महीना चुपचाप निकाला, हिन्दी में बात करने की कोशिश की परंतु नाकाम, छोटे बच्चे अधिकतर जो स्थानीय थे, वे या तो कन्नड़ समझते थे या फ़िर अंग्रेजी समझते थे। बेटेलाल को अंग्रेजी से इतना प्रेम था नहीं, क्योंकि मुँबई में हिन्दी से अच्छे से काम चल जाता था, और यहाँ बैंगलोर में आकर फ़ँस गये, कई बार बोले “डैडी चलो वापिस मुँबई चलते हैं, यहाँ बैंगलोर में अच्छा नहीं लग रहा ।” हमने कहा देखो बिना कोशिश के कुछ नहीं होगा। बस तो अगले दिन से ही फ़र्राटेदार अंग्रेजी शुरू हो गई।

    अब बेटेलाल का काम तो निकल पड़ा, अब समस्या आई तब जब घर के आसपास कुछ दोस्त बनें, वो भी स्थानीय पहले वे हिन्दी में बात करने से इंकार करते थे, परंतु उनके अभिभावकों ने समझाया कि इनकी हिन्दी अच्छी है, हिन्दी में बात करो और हिन्दी सीखो। पर हमारे बेटेलाल अपने दोस्तों से हिन्दी में संवाद करने को तैयार ही नहीं होते हैं, वे उनसे अंग्रेजी में ही बात करते हैं। खैर इसका हल हमने निकाला कि हम हिन्दी में बात करेंगे।

    कभी कभार अगर गलती से अंग्रेजी में घर पर बेटेलाल को कुछ बोल भी दिया तो सीधे बोलते हैं “डैडी, मैं बाहर तो अंग्रेजी ही बोलता हूँ, कम से कम घर में तो हिन्दी में बात करो, नहीं तो मैं हिन्दी भूल जाऊँगा तो क्या आपको अच्छा लगेगा ?”

    खैर अब बैंगलोर में मेरे लिये वह नयापन नहीं रह गया, अब यहाँ के अभ्यस्त हो गये हैं, जहाँ भी काम होते हैं अब पता चल गया है कि हिन्दी अधिकतर उपयोग होती है, और अगर हिन्दी ना समझ में आये तो अंग्रेजी से तो काम हो ही जायेगा ।

अध्याय १० से ( मगर मछली का ही रूप है )

गीता जी के अध्याय १० में भगवान कृष्ण अपना ऐश्वर्य बताते हैं, जहाँ मैं एक श्लोक पर रुक गया, क्योंकि अभी तक मगर को मैं मछली की तरह नहीं लेता था, परंतु यहाँ पर मगर को मछलियों में ही बताया गया है ।

पवन: पवतामस्मि राम: शस्त्रभृतामहम।

झषाणां मकरश्चास्मि स्त्रोतसामस्मि जाह्नवी ॥३१॥

अर्थात – समस्त पवित्र करने वालों में मैं वायु हूँ, शस्त्रधारियों में राम, मछलियों में मगर तथा नदियों में गंगा हूँ ।

यहाँ पर मगर के बारे में बताया गया है कि समस्त जलचरों में मगर सबसे बड़ा और मनुष्य के लिये सबसे घातक होता है । अत: मगर कृष्ण का प्रतिनिधित्व करता है ।

आचार्य चतुरसेन कृत “सोमनाथ” और मेरा दृष्टिकोण..

    आज आचार्य चतुरसेन कृत “सोमनाथ” उपन्यास खत्म हुआ, इस उपन्यास को पढ़ने के बाद कहीं ना कहीं मन और दिल आहत है, बैचेन है.. कैसे हमारे ही लोग जो कि केवल अपने कुछ स्वार्थों के लिये गद्दारी कर बैठे.. और आखिरकार जिन लोगों के लिये गद्दारी की गई, जिस वस्तु के लिये गद्दारी की गई.. वह भी उनसे दगा कर बैठी.. और जिन लोगों से गद्दारी की गई.. उन लोगों ने उन्हें छोड़ा भी नहीं..

    किसी ने जाति के नाम पर .. किसी ने स्त्री के प्रेम में .. किसी ने गद्दी के लिये .. किसी ने अपने स्वार्थ के लिये .. किसी ने अपने अपमान के बदले के लिये .. अपने ही देव अपने ही धर्म को कलुषित किया .. और दूसरे धर्म ने कुफ़्र और काफ़िर कहकर .. अनुचित ही धर्मों को और उसकी संस्कृतियों को तबाह किया..

    छोटी छोटी रियासतों में आपस की दुश्मनी ने गजनी के महमूद को सोमनाथ पर चढ़ाई के दौरान बहुत मदद की.. छोटे और बड़े साम्राज्यों ने अपनी आन बान और शान बचाने के लिये जिस तरह से गजनी के महमूद के आगे समर्पण कर दिया.. वह भारत के लिये इतिहास का काला पन्ना है.. और जिन्होंने अपने प्राण न्यौछावार कर .. मरते दम तक अपनी मातृभूमि की रक्षा की.. उन्होंने अपना नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अमिट स्यासी से लिखवा लिया है..

    पुरातनकाल में जब राजाओं का शासन होता था.. तब की कूटनीति और राजनीतिक चालों में बहुत ही दम होता था.. जितने भी कूटनीतिज्ञ और राजनीतिक अभी तक मैंने इतिहास की किताबों में पढ़े हैं.. वे आज की दुनिया में देखने को नहीं मिलते हैं.. इसका मुख्य कारण जो इतिहास से समझ में आता है वह है ब्राह्मणों का उचित सम्मान और वैदिक अध्ययन को समुचित सहयोग ।

    सोमनाथ में चौहान, परमार, सोलंकी, गुर्जर आदि राजाओं का वर्णन जिस शूरवीरता से किया गया है, उससे क्षत्रियों के लिये हम नतमस्तक हैं.. परंतु वहीं जहाँ इन राजाओं के शौर्य और पराक्रम को देखने को मिलता है .. वहीं इनमें से ही कुछ लोगों द्वारा पीठ में छुरा घोंपने का भी काम किया..

    सोमनाथ पर आक्रमण और सोमनाथ को ध्वस्त करने के बाद जिस तरह से प्रजा को गुलाम बनाकर उनपर अत्याचार किये गये.. और शब्दचित्र रचा गया है.. बहुत ही मार्मिक है.. हरेक बात पर महमूद को कर चाहिये होता था.. क्योंकि वह भारत में शासन करने के उद्देश्य से नहीं आया था .. वह आया था केवल भारत को लूटने के लिये.. धार्मिक स्थलों को ध्वस्त करने के लिये और इस्लामिक साम्राज्य को स्थापित करने के लिये..

    गजनी का महमूद भले ही कितना भी शौर्यवान और पराक्रमी रहा हो.. परंतु यहाँ पर आचार्य चतुरसेन ने महमूद की कहानी को जो अंत किया है वह थोड़ा बैचेन कर देता है.. परंतु यह भी पता नहीं कि वाकई इस गजनी के महमूद का सत्य कभी सामने आ पायेगा ।

आत्मसंकल्प या बलपूर्वक

किसी भी कार्य को करने के लिये संकल्प चाहिये होता है, अगर संकल्प नहीं होगा तो कार्य का पूर्ण होना तय नहीं माना जा सकता है। जब भी किसी कार्य की शुरूआत करनी होती है तो सभी लोग आत्मसंकल्पित होते हैं, कि कार्य को पूर्ण करने तक हम इसी उत्साह के साथ जुटे रहेंगे।

परंतु असल में यह बहुत ही कम हो पाता है, आत्मसंकल्प की कमी के कारण ही दुनिया के ५०% से ज्यादा काम नहीं हो पाते, फ़िर भले ही वह निजी कार्य हो या फ़िर व्यापारिक कार्य । कार्य की प्रकृति कैसी भी हो, परंतु कार्य के परिणाम पर संकल्प का बहुत बड़ प्रभाव होता है।

कुछ कार्य संकल्प लेने के बावजूद पूरे नहीं कर पाने में असमर्थ होते हैं, तब उन्हें या तो मन द्वारा हृदय पर बलपूर्वक या हृदय द्वारा मन पर बलपूर्वक रोपित किया जाता है। बलपूर्वक कोई भी कार्य करने से कार्य जरूर पूर्ण होने की दिशा में बढ़ता है, परंतु कार्य की जो मूल आत्मा होती है, वह क्षीण हो जाती है।

उदाहरण के तौर पर देखा जाये कि अगर किसी को सुबह घूमना जरूरी है तो उसके लिये आत्मसंकल्प बहुत जरूरी है और व्यक्ति को अपने आप ही सुबह उठकर बाग-बगीचे में जाना होगा और संकल्पपूर्वक अपने इस निजी कार्य को पूर्ण करना होगा। परंतु बलपूर्वक भी इसी कार्य को किया जा सकता है, जिम जाकर, जहाँ ट्रेडमिल पर वह चढ़ जाये और केवल पैर चलाता जाये तो उसका घूमना जरूर हो जायेगा, परंतु मन द्वारा दिल पर बलपूर्वक करवाया गया कार्य है। किंतु वहीं बाग-बगीचे में घूमने के लिये आत्मसंकल्प के बिना घूमना असंभव है, क्योंकि तभी व्यक्ति के हाथ पैर चलेंगे। जब हाथ पैर चलेंगे, उत्साह और उमंग होगी तभी कार्य पूर्ण हो पायेगा।

कार्य पूर्ण होना जरूरी है, फ़िर वह संकल्प से हो या बलपूर्वक क्या फ़र्क पढ़ता है, संकल्प से कार्य करने पर आत्मा प्रसन्न रहती है, परंतु बलपूर्वक कार्य करने से आत्मा हमेशा आत्म से बाहर निकलने की कोशिश करती है।