पहला भाग, दूसरा भाग, तीसरा भाग, चौथा भाग, पाँचवा भाग, छठा भाग, सातवां भाग
ट्रेन में हमारे बेटेलाल को खेलने के लिये अपनी ही उम्र का एक और दोस्त अपने ही कंपार्टमेंट में मिल गया, और क्या मस्ती शुरु की है, दोनों एक से बढ़कर एक करतब दिखाने की कोशिश कर रहे थे। पूरा डब्बा ही बच्चों से भरा हुआ था, लग रहा था कि अभी स्कूल की छुट्टियाँ चल रही हैं।
ट्रेन में बैठते ही हमारे बेटेलाल को भूख लगने लगती है चाय पीने की इच्छा होने लगती है, उस वक्त तो कुछ भी खिला लो पता नहीं उनके पेट में कौन घुसकर बैठ जाता है।
बेटेलाल अपने दोस्त के साथ मस्ती में मगन थे, फ़िर शौक चर्राया कि अपर बर्थ पर जायेंगे, तो बस फ़ट से अपर बर्थ पर चढ़ लिये, उनके दोस्त के मम्मी और पापा हमसे कहते रहे कि अरे गिर जायेगा, हम बोले हमने ट्रेंड किया है चिंता नहीं कीजिये नहीं गिरेगा। तो बस उसकी देखा देखी उनके दोस्त भी अपर बर्थ पर जाने की जिद करने लगे, उनके पापा ने चढ़ा तो दिया पर उनका दिल घबरा रहा था, अपर बर्थ पर जाने के बाद तो दोस्त की भी हालत खराब हो गई, वो झट से नीचे आने की जिद करने लगा, तो बेटेलाल ने खूब मजाक उडाई। फ़िर वो भी नीचे आ गये आखिर उनके दोस्त जो नीचे आ गये थे। बस फ़िर रुमाल से पिस्टल बनाकर खेलना शुरु किया फ़िर तकिये से मारा मारी। एक और लड़का जो कि देहरादून से आ रहा था और इंदौर जा रहा था, बोला कि इन बच्चों में कितनी एनर्जी रहती है जब तक जागते रहेंगे तब तक मस्ती ही चलती रहती है और मुँह बंद नहीं होता। काश अपने अंदर भी अभी इतनी एनर्जी होती।
खैर फ़िर खाना शुरु किया गया, और फ़िर बेटेलाल को पकड़ कर अपर बर्थ पर ले गये कि बेटा अब बाप बेटे दोनों मिलकर सोयेंगे। फ़िर उन्हें २-३ कहानी सुनाई पर सोने का नाम नहीं लिया, बोले कि लाईट जल रही है, पहले उसे बंद करवाओ, तो लाईट बंद करवाई फ़िर तो २ मिनिट भी नहीं लगे और सो लिये। हम फ़िर नीचे उतर कर आये और बर्थ खोलकर बेडरोल व्यवस्थित किया और बेटेलाल को मिडिल बर्थ पर सुलाकर, और अपने बेग की टेक लगा दी जिससे गिरे नहीं। और सोने चल दिये क्योंकि सुबह ५ बजे उज्जैन आ जाता है। रात को एक बार फ़िर नींद खुली तो देखा कहीं ट्रेन रुकी हुई है, पता चला कि ट्रेन ३ घंटे देरी से चल रही है, और किसी पैसेन्जर ट्रेन के लिये इस एक्सप्रेस ट्रेन को रोका गया है। हम फ़िर सो लिये सुबह छ: बजे हमारे बेटेलाल की सुप्रभात हो गई, और फ़िर चढ़ गये हमारे ऊपर कि डैडी उठो सुबह हो गई, उज्जैन आने वाला है देखा तो शाजापुर आने को अभी समय था, हमने कहा बेटा सोने दो और खुद भी सो जाओ या खिड़की के पास बैठकर बाहर के नजारे देखो। हम तो सो लिये पर बेटेलाल ने अपनी माँ की खासी परेड ली। सुबह साढ़े सात हमारे बेटेलाल फ़िर जोर से चिल्लाये डैडी उज्जैन आ गया, हमने कहा अरे अभी नहीं आयेगा, अभी तो कम से कम आधा घंटा और लगेगा, तो नीचे से हमारी घरवाली और आंटी दोनों बोलीं एक स्वर में “उज्जैन आ गया है”, अब तो हम बिजली की फ़ुर्ती से नीचे उतरे और फ़टाफ़ट समान उठाकर उतर लिये।
प्लेटफ़ॉर्म नंबर ६ पर आने की जगह आज रेल्वे ने हम पर कृपा करके ट्रेन को प्लेटफ़ॉर्म नंबर १ पर लगाया था, तो हमारी तो बांछें खिल गईं, बस फ़िर बाहर निकले तो ऑटो करने की इच्छा नहीं थी, तांगे में जाने को जी चाह रहा था, पर एक ऑटो वाला पट गया, तो तांगे को मन मसोस कर छोड़ ऑटो में चल दिये।
दो दिन जमकर नींद निकाली गय़ी यहाँ तक कि दोस्तों को भी नहीं बताया कि हम उज्जैन में हैं। फ़िर किसी तरह तीसरे दिन घर से निकले भरी दोपहर में दोस्तों से मिले फ़िर सुरेश चिपलूनकर जी से मिले और बहुत सारी बातें की। फ़िर चल दिये घर क्योंकि महाकाल जाना था, हमारा महाकाल जाने का प्रिय समय रात को ९.३० बजे का है, क्योंकि उस समय बिना भीड़ के अच्छे से दर्शन हो जाते हैं, और नदी भी अच्छी लगती है, रामघाट पर। फ़िर वहाँ कालाखट्टा बर्फ़गोला और आते आते छत्री चौक पर फ़ेमस कुल्फ़ी। उसके एक दिन पहले ही शाम परिवार के साथ घूमने गये थे तो पानी बताशे और फ़्रीगंज में फ़ेमस कुल्फ़ी खाई थी।
चौथे दिन याने कि १९ मई को वापिस हमें मुंबई की यात्रा करनी थी और हम वापिस मुंबई चल दिये अवन्तिका एक्सप्रेस से, अपनी उज्जैन छोड़कर जहाँ हमारी आत्मा बसती है, जहाँ हमारे प्राण लगे रहते हैं, केवल पैसे कमाने के लिये इस पुण्य भूमि से दूर रह रहे हैं। बहुत बुरा लगता है। जल्दी ही वापिस उज्जैन जाने की इच्छा है, इस बारे में भी सुरेश चिपलूनकर जी से विस्तृत में बात हुई।
मुंबई आते हुए भी बहुत सारी घटनाएँ हुई और लोग भी मिले परंतु कुछ खास नहीं, सुबह ५.३० पर ट्रेन बोरिवली पहुँच गय़ी और हम ऑटो पकड़कर १० मिनिट में अपने घर पहुँच गये। इस तरह हमारी लंबी यात्रा अंतत: सुखद रही।
कुल यात्रा २५२५ किलोमीटर की तय की गई।