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तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – ४ [जैसे देवलोक में आ गये हों..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 4)

हम जैसे ही तिरुपति से तिरुमाला के लिये निकले तो बहुत ही ज्यादा ट्राफ़िक था मुंबई की भाषा में बोले तो गर्दी थी, ड्राईवर का नाम अब्दुल था, और अच्छी खासी हिन्दी बोलता और समझता है, उतना ही उसका तमिल और तेलुगू पर अधिकार है। अब्दुल ने हमें बताया कि आज रविवार है और इस कारण बहुत भीड़ है, लोग दूर दूर से आते हैं, सप्ताहांत पर तो बहुत ही ज्यादा भीड़ रहती है, याने कि भक्तों का सैलाब रहता है।

जब हम तिरुपति आ रहे थे, तब भी हमने बहुत सारे लोगों को सड़क के किनारे पैदल चलते हुए देखा था जो कि तिरुपति की ओर जा रहे थे, तब अब्दुल ने बताया कि ये सब लोग पैदल ही बालाजी के दर्शन करने जा रहे हैं। हमने उन सबकी भक्ति को दिल से नमन किया।

तिरुपति से निकलते हुए तिरुपति देवस्थानम की बहुत ही बड़ी इमारत देखी जिसमें वहाँ से आप बायोमेट्रिक वाले टिकट ले सकते हैं, और वहाँ रुक भी सकते हैं, यह देवस्थानम की तरफ़ से भक्तों के लिये तिरुपति में सुविधा है।

जैसे जैसे तिरुपति से बाहर निकल रहे थे, तिरुमाला की ओर बढ़ रहे थे, मनोहारी दृश्य आते जा रहे थे, और इतना साफ़ शहर देख रहे थे और आश्चर्य कर रहे थे कि भारत में भी इतना साफ़ शहर मौजूद है। बहुत ही अच्छा रखरखाव है प्रशासन का, यह देखकर अच्छा लगा। पैदल चलने वालों के लिये अलग से फ़ुटपाथ बना हुआ था, जिस पर पैदल यात्री जा रहे थे, हमारे दायीं तरफ़ पहाड़ियाँ थीं, हम वह नजारा देख ही रहे थे कि दूर से हमें भव्य द्वार नजर आया, हमें अब्दुल ने बताया कि यह यहाँ का टोल नाका है, जहाँ पर चैकिंग होती है कि आपके पास नशेयुक्त पदार्थ तो नहीं है जैसे कि बीड़ी, सिगरेट, शराब, गुटका इत्यादि। सघन तलाशी होती है पूरी टैक्सी की और हमारी भी, अच्छा लगा कि इतनी चैकिंग होती है जिससे कोई भी नशेयुक्त पदार्थ तो कम से कम नहीं ले जा पायेगा। वहाँ पर लगभग आठ टोल बने हुए थे, और २५ रुपये का टोल था।

सबसे अच्छी बात यह है कि तिरुपति से तिरुमाला जाने का मार्ग अलग और आने का मार्ग अलग है, क्योंकि बहुत ही घुमावदार सड़कें हैं और बहुत सारे घाट पार करना होते हैं।

थोड़ा सा आगे बड़े तो हम तिरुमाला के पर्वत श्रेणी में दाखिल हो चुके थे, बहुत सारी बसें एक के पीछे एक थीं सरकारी। बहुत ही ज्यादा घुमावदार सड़के हैं, मजा भी आ रहा था और पेट में गुदगुदी भी हो रही थी। जैसे जैसे हम तिरुमाला की ओर जा रहे थे, वैसे वैसे हम बादलों के बीच में होते जा रहे थे, पास के सारे नजारे बहुत ही अद्भुत लग रहे थे, ऐसा लग रहा था कि हम देवलोक में आ गये हैं। थोड़ा सा और ऊपर जाने पर दबाब महसूस हुआ जैसा कि हवाई यात्रा के दौरान महसूस होता है। हरियाली और बादलों के बीच हमारी यात्रा चल रही थी, सड़क पर हमेशा एक तरफ़ पहाड़ की दीवार और दूसरी तरफ़ खाई मिली, सुरक्षा की दृष्टि से खाई की तरफ़ बड़े पत्थरों की दीवार और लोहे की गर्डर लगायीं हुई थी।

जैसे जैसे हम बालाजी के नजदीक आते जा रहे थे वैसे वैसे प्राकृतिक दृश्य मनोरम होते जा रहे थे।

कुछ मनोरम दृश्य देखिये –

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तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – ३ [चैन्नई से निकले तड़के ३ बजे..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 3) [Started from Chennai in early morning 3am..]

    हमने अपने होटल को बोल कर टैक्सी आरक्षित कर ली, शनिवार ६ फ़रवरी को, पहले ही हमें बहुत थकान हो रही थी, और फ़िर जब कार्यक्रम बनाया तो पता चला कि अगर तड़के निकलेंगे तो ठीक रहेगा और सब ठीक प्रकार से होगा। हमने सुबह ३ बजे निकलने का कार्यक्रम पक्का किया।

    रात को नींद भी पूरी न हो पाई और फ़िर सुबह उठने की चिंता अलग हमने सुबह ढ़ाई बजे का अलार्म अपने मोबाईल में लगाया और होटल के रिशेप्सन पर भी अलार्म लगवा दिया। कब सोये और कब होटल वाले का फ़ोन आ गया लगा कि उसने गलत टाईम का अलार्म लगा दिया है। जब घड़ी देखी तो पता चला कि समय सुबह के २.२२ हो रहा है और टैक्सी आ चुकी है। हम फ़टाफ़ट तैयार हुए, नहाये (जी हाँ हमारी आदत है कि अगर कहीं भी बाहर जायेंगे तो बिना नहाये हमसे जाते नहीं बनता, इसलिये तड़के नहाये।)।

    हमारे दो सहकर्मी भी हमारे साथ थे, जो कि हमारे सहयात्री भी थे इस यात्रा में। हालांकि हम ५-६ साल पहले एक बार दर्शन करके जा चुके थे इसलिये हमें कुछ कुछ याद था। चैन्नई से बाहर निकलते  ही हमने टैक्सी को मद्रासी ढ़ाबे पर रुकवाया और चाय पी, हमने अपने होटल वाले को विशेष रुप से कहा था कि ड्राईवर को हिन्दी आनी चाहिये और उसे सभी जगह का पता भी होना चाहिये।

    यहाँ चाय बनाने का ढ़ंग भी निराला है, और चाय हमेशा तैयार रहती है, पर हमेशा ताजी, बनी बनायी नहीं। चाय की पत्ती का बर्तन अलग होता है अपने मग्गे जैसा और उसमें एक लंबी से छलनी रखते हैं, जिसमें चाय पत्ती रहती है और मग्गे में पानी जो कि चाय का हो जाता है, अलग से गिलास में शक्कर डालकर थोड़ी से चाय का अर्क इस छलनी में से गिलास में डालते हैं, और फ़िर थोड़ा सा दूध डालकर उसे एक मग से अल्टी पल्टी करते हैं। बस हो गयी चाय तैयार। इतनी सुबह उस ढ़ाबे पर २-३ बड़े बड़े परात भरकर अलग अलग तरह की मिठाईयाँ रखी हुई थीं, हमें बहुत आश्चर्य हुआ कि रात को मिठाई कौन खाता होगा। पर वहाँ तो खाने वाले भी मौजूद थे, तब ड्राईवर बोला कि पास ही इंडस्ट्रियल एरिया है इसलिये यहाँ ये मिठाई है जो कि मजदूर खाते हैं, यहाँ मजदूर उड़ीसा और बिहार से आते हैं।

    खैर चाय पीकर हमने वापिस अपनी यात्रा शुरु की, थोड़ी देर में ही हमें नींद ने अपने आगोश में ले लिया और जब आँख खुली तो देखा कि रेनिगुंटा आ चुका है, जो कि रेल्वे से पहुँचने का स्थान है। सुबह के ६.३० बजे थे, यहाँ से तिरुपति १५ कि.मी. था, वहाँ लगे रास्ते के निर्देशों से पता चला कि यहीं पर २.५ कि.मी. पास ही तिरुपति का विमानतल है। हम आधे घंटे में ही तिरुपति पहुँच गये और फ़िर एक बार चाय पी, कड़क जिससे अपनी आँख पूरी खुल जाये। क्योंकि अब सप्तगिरी का सफ़र शुरु होने वाला था, तिरुमाला का सफ़र, बालाजी का सफ़र।

    तिरुपति में इन छ: सालों में बहुत ही बदलाव आ गया था, जगह जगह बड़ी बड़ी इमारतें, चौड़ी सड़कें, समय के साथ सब कुछ बदल गया। सब इतना व्यावसायिक हो गया है कि दिल बहुत बैचेन हो उठा। केवल इन छ: सालों में इतना कुछ बदल गया। वैसे यही हालत उज्जैन की भी हो गई है, सब व्यावसायिक हो गया है। परंतु हम तो बालाजी के दर्शन करने को आये थे, इसलिये “ऊँ वैंकटेश्वराय नम:” बोलकर आगे बढ़ चले।

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    बालाजी दर्शन तिरुमाला पर होते हैं, जो कि तिरुपति से सात पहाड़ दूर है, तिरुपति रेल्वे से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। और अगर कहीं और से आ रहे हैं, तो रेनुगुंटा स्टेशन आपको पड़ेगा जहाँ से तिरुपति मात्र १५ कि.मी. है।
    तिरुपती चैन्नई से लगभग १४० कि.मी. है और बैगलोर से लगभग २६० कि.मी.। बैंगलोर से भी पैकेज टूर उपलब्ध हैं जैसे कि चैन्नई से, वहाँ से आन्ध्राप्रदेश टूरिज्म, कर्नाटक टूरिज्म और निजी ट्रेवल्स की सुविधाएँ ले सकते हैं, और अगर बड़ा ग्रुप है तो अपनी टैक्सी ज्यादा अच्छा विकल्प है।
    अगर तिरुपति में रुकना है तो आप ऑनलाईन कमरे का आरक्षण करवा सकते हैं, वैसे वहाँ नि:शुल्क कमरे भी उपलब्ध हैं और डोरमेट्री भी नि:शुल्क उपलब्ध है।
    तिरुपति से तिरुमाला तकरीबन १७ कि.मी. है, यहाँ वोल्वो बसों का जाना प्रतिबंधित है। तिरुपति से बस स्टैंड से तिरुमाला की बस पकड़ सकते हैं, टिकट है २८ रुपये जो कि हर दो मिनिट में उपलब्ध है। मंदिर देवस्थानम ट्रस्ट की ओर से भी एक बस चलती है जो कि फ़्री सर्विस है, वह हर आधे घंटे में उपलब्ध है। अगर आप अपनी टैक्सी या टैम्पो ट्रेवलर से जा रहे हैं तो तिरुमाला उसी से जा सकते हैं।
    अगर सुंदरसन दर्शन करना है तो उसके लिये आपको ५० रुपये का टिकिट तिरुपति रेल्वे स्टेशन के पास काऊँटर से मिलेगा, और अगर बैंगलोर या चैन्नई से आ रहे हैं, तो तिरुपति देवस्थानम के कार्यालयों से जाकर ले सकते हैं। ५० रुपये का टिकट तिरुमाला में नहीं मिलता है। वहाँ केवल ३०० रुपये का शीघ्रदर्शन टिकट ही मिलता है, जो कि केवल तिरुमाला में ही मिलता है, यह टिकट और किसी भी शहर में उपलब्ध नहीं है और न ही इस टिकट की ऑनलाईन बुकिंग होती है।
    निकट का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा चैन्नई है और घरेलू हवाई अड्डा तिरुपति है।
    तिरुमाला में किसी भी ठग का शिकार न बनें वहाँ पर तमिल, तेलेगु, हिन्दी और अंग्रेजी में सभी तरह के संदेश लिखे हुए हैं, किसी से कुछ भी पूछने की जरुरत नहीं पड़ती है।
    तिरुपति विश्व का दूसरा सबसे बड़ा धनी देवस्थान है, वहाँ पर भक्तों के लिये सभी सुविधाएँ मुफ़्त उपलब्ध हैं या फ़िर बहुत ही कम दामों पर। लूट तो हर जगह होती है, बस जरुरत है तो आपको ऐसे लोगों से बचने की। तिरुमाला में बसें लगातार चलती रहती हैं, जिससे आप एक स्थान से दूसरे स्थान जा सकते हैं, ये भी मुफ़्त हैं, और बसें भी विशेष प्रकार की हैं, जैसे भगवान का खुद का रथ हो।
    तिरुपति से तिरुमाला पैदल भी जा सकते हैं, यह तकरीबन १४ कि.मी. है, अगर आप के पास सामान है तो तिरुपति में जहाँ से पैदल यात्रा शुरु करते हैं, वहाँ देवस्थानम के लगेज काऊँटर पर आप अपना सामान जमा करवा सकते हैं, और जब आप तिरुमाला पहुँचेंगे तो वहाँ लगेज काऊँटर से अपना समान वापिस ले सकते हैं। यह दूरी तय करने में ४-५ घंटे लगते हैं। पैदलयात्रियों के लिये सभी तरह की सुविधाएँ उपलब्ध हैं, जगह जगह पीने का पानी उपलब्ध है, शौचालय हैं, आराम करने के लिये शेड उपलब्ध हैं, सुरक्षा के लिये जगह जगह कर्मी तैनात हैं। जरुरी उदघोषणाएँ समय समय पर होती रहती हैं। पूरे रास्ते चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध हैं। नाश्ते के लिये केंटीन भी पूरे रास्ते में उपलब्ध हैं।

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तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – १ [कैसे जायें चैन्नई से..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 1) [How to go from Chennai..]

तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – १ [कैसे जायें चैन्नई से..] (Hilarious Moment of Deity Darshan at Tirupati Balaji.. Part 1) [How to go from Chennai..]

    पिछले १५-२० दिनों से बालाजी जाने का कार्यक्रम बना रहे थे, परंतु बना ही नहीं पा रहे थे, काम का जोर इतना है कि कार्यक्रम बनाने का मौका ही नहीं मिल पा  रहा था, फ़िर इस शुक्रवार को तिरुपति बालाजी के दर्शन करने के सभी संभावनाओं की खोज की। वैसे हमारी आदत है कि हम जब कभी कहीं घूमने का कार्यक्रम बनाते हैं, तो सारी जानकारी पहले से ही एकत्रित कर लेते हैं, कब कौन सी जानकारी काम आ जाये, पता नहीं होता पर हाँ जब घूमने जाते हैं, तब लगता है कि अच्छा किया जो सारी जानकारी जुटा ली थी।

    गूगल महाराज को याद किया तो बहुत सारी जानकारी मिल गई, चैन्नई से बहुत सारे पैकेज टूर उपलब्ध हैं। जिसमें वोल्वो एसीबस, एसीबस, साधारण बस और आईआरसीटीसी व टैक्सी के विकल्प मिले।

    हम अपने कार्य में फ़िर व्यस्त हो गये और फ़िर शनिवार को इस बारे में चिंता हो गई कि कार्यक्रम तय करना पड़ेगा, हमने सभी विकल्पों को देखा और फ़ोन लगाना शुरु कर दिया।

    सबसे अच्छा पैकेज टूर आंध्रप्रदेश टूरिज्म का है, जिसमें वे शाम ६.३० बजे चैन्नई से चलते हैं और तकरीबन रात ११ बजे तिरुपति पहुँज जाते हैं, फ़िर एक शेयरिंग रुम दे देते हैं, जिसमें २-३ लोग रुक सकते हैं, अगर आप समूह में हैं तो कोई समस्या ही नहीं है, आपको अपने समूह के लोगों के साथ ही कमरा मिल जायेगा। सुबह जल्दी उठना होगा क्योंकि तड़के ४ बजे बस से तिरुमाला की ओर रवाना होना होता है, तकरीबन सुबह ५.१५ बजे तक आप तिरुमाला पहुँच जायेंगे और फ़िर अगर आपको बाल देना है तो बाल देकर आप नहाकर तैयार हो जायें, और फ़िर ३०० रुपये का शीघ्र दर्शन टिकट जो कि इस पैकेज में ही शामिल है, से बालाजी के दर्शन जल्दी से मतलब १-२ घंटे में कर पायेंगे। बालाजी के दर्शन के पश्चात इस टूर में तिरुपति में पद्मावती मंदिर और शिवजी के प्रसिद्ध मंदिर श्रीकालाहस्ती भी दर्शन करवाते हैं। और शाम ६ बजे के तकरीबन वापिस चैन्नई पहुँच जाते हैं। इस टूर की कीमत १३०० रुपये है। इसमें रात का खाना, सुबह का नाश्ता, ३०० रुपये का शीघ्रदर्शनम टिकट और रात को ठहरने की व्यवस्था शामिल है। यहाँ २-३ दिन पहले तक टिकट आरक्षण आसानी से मिल जाता है, उसके बाद मिलना मुश्किल होता है। यहाँ चैन्नई में इनका ऑफ़िस है, टी.नगर में कैनरा बैंक के पास, फ़ोन नंबर है – o44-65439987, यह पैकेज ऑनलाईन आरक्षण में उपलब्ध नहीं है। आपको यहाँ जाकर ही आरक्षण करवाना होगा।

    एक और टूर पैकेज आंध्रप्रदेश टूरिज्म का है जिसमॆं वे सुबह ५ बजे निकलते हैं और ५० रुपये का स्पेशल दर्शन का टिकट से दर्शन करवाते हैं, लौटते समय पद्मावती मंदिर के दर्शन करवाते हुए रात ११ बजे तक चैन्नई वापिस आते हैं। इस टूर की कीमत १०५० रुपये है। इसमें सुबह का नाश्ता, दोपहर का खाना और ५० रुपये का विशेष दर्शन टिकट शामिल है।

    और भी बहुत सारे निजी ट्रेवल कंपनियाँ पैकेज टूर उपलब्ध करवाती हैं, जिसमें अधिकतर का पैकेज १२०० रुपये का है जो कि टेम्पो ट्रेवलर में लेकर जाते हैं और सुबह ५ बजे निकलते हैं रात ११ बजे तक वापिस आते हैं, इसमें सुबह का नाश्ता, दोपहर का खाना और ३०० रुपये का शीघ्र दर्शन टिकट शामिल होता है। पर ये केवल तिरुपति बालाजी और पद्मावती मंदिर ले जाते हैं।

     परंतु आंध्रप्रदेश टूरिज्म का पैकेज सबसे अच्छा है और सुविधाएँ भी। अगर आप इतनी दूर आ रहे हैं तो श्रीकालाहस्ती मंदिर जरुर जायें, मेरा यह दावा है कि आपने ऐसा मंदिर शायद ही कभी देखा होगा, विशाल, भव्य और प्राचीन।

    साधारण बस से भी जा सकते हैं जिससे ४-५ घंटे लगते हैं और अपने आप यह सब व्यवस्था कर सकते हैं, जिसमें अच्छी खासी बचत की संभावना है, क्योंकि बस का टिकिट भी ज्यादा नहीं है और सब कुछ बहुत ही कम दामों पर उपलब्ध है।

    ट्रेन से भी जा सकते हैं, आईआरसीटीसी का पैकेज टूर भी उपलब्ध है १ दिन का जिसमें वे सप्तगिरी एक्सप्रेस से सुबह ले जाते हैं और तिरुपति बालाजी और पद्मावती मंदिर के दर्शन करवाकर रात ९ बजे तक चैन्नई पहुँच जाते हैं। यह पैकेज रेल टूरिज्म की साईट पर उपलब्ध है, पर अगर सप्ताहांत पर जाने का कार्यक्रम है तो पहले से ही आरक्षण करवाना होगा, क्योंकि बहुत ही जल्दी इसका आरक्षण खत्म हो जाता है। इसमें इसमें सुबह का नाश्ता, दोपहर का खाना और ५० रुपये का विशेष दर्शन टिकट शामिल है। और इसकी कीमत है ९०० रुपये।

    पर हम बहुत देर कर चुके थे हमें किसी भी पैकेज टूर में टिकट नहीं मिला तो हमने कार्यक्रम बनाया कि हम टैक्सी करके जाते हैं, और हम टैक्सी करके तड़के ३ बजे चैन्नई से निकल गये, तिरुपति बालाजी के दर्शन के लिये। हमने इतनी जानकारी जुटा ली थी कि हमें कोई तकलीफ़ न हो। हमारा कार्यक्रम  था, तिरुपति बालाजी, पद्मावती मंदिर और श्रीकालाहस्ती के दर्शन और रात तक वापसी।

ताजा खबर यह है कि हम तिरुमाला हो आये हैं, तिरुपति बालाजी, पद्मावती और काला हस्ती के दर्शन

आज की ताजा खबर बस यही है कि हम तिरुपति बालाजी, पद्मावती और काला हस्ती (वायु शिवलिंग) के दर्शन कर आये हैं।

वैसे मैं एक बार पहले जा चुका हूँ, परंतु यह सब जानकारी मुझे देने के लिये मैं अपने मित्र राम को विशेष धन्यवाद देता हूँ।

जल्दी ही बहुत सारी जानकारी आपको पढ़ने को मिलेगी, इस सब के बारे में।

चैन्नई में कल का रात्रि भोजन और आसपास के वातावरण के कुछ चित्र से अपने जहन में बीती जिंदगी का कोलाज बन गया…

    कल का रात्रि भोजन जो कि फ़िर हमने सरवाना भवन में किया, माफ़ कीजियेगा बहुत से ब्लॉगर्स को हमने इसका नाम याद करवा दिया है, और केवल इसके लिये ही वो चैन्नई आने को तैयार हैं।

    जब हम पहुँचे तो पहले से ही इंतजार की लाईन लगी थी क्योंकि बैठने की जगह बिल्कुल नहीं थी, हमने लिखवा दिया कि भई हमारा भी नंबर लगा दो। पीछे वेटिंग में पाँच लोगों का बहुत बड़ा परिवार (बड़ा इसलिये कि आजकल तो हम दो हमारा एक का कान्सेप्ट है।) और उनके पीछे दो लड़के हमारी ही उम्र के होंगे और साथ में उनके साथ एक वृद्धा थीं। पहला हमारा ही नंबर था, जैसे ही एक टेबल खाली होने वाली थी वैसे ही वेटर ने हमें उस टेबल का अधिकार हमें इशारा करके दे दिया। जो उस टेबल पर बैठे थे वो भाईसाहब हाथ धोने गये थे तब तक वेटर उनका बिल लेकर आ गया और उनको खड़े खड़े ही पेमेन्ट भी देना पड़ा और वापस छुट्टे आने का इंतजार भी करना पड़ा।

    पर हम अपनी कुर्सी पर ऐसे धँस गये थे बिल्कुल बेशर्म बनकर कि हमें कोई मतलब ही नहीं है, हालांकि अगर ये हमारे साथ होता तो बहुत गुस्सा आता और शायद इस बात पर हंगामा खड़ा कर देते। जब हम इंतजार की लाईन में खड़े थे तभी मेन्यू कार्ड लेकर क्या खाना है वो देख लिया था जिससे बैठकर सोचने में समय खराब न हो क्योंकि बहुत जोर से भूख लगी थी।

    आर्डर दे दिया गया, जहाँ हम बैठे थे उसी हाल के पास में ही खड़े होकर खाने की व्यवस्था थी, सेल्फ़ सर्विस वाली। हमारी टेबल के पास ही एक टेबल पर एक लड़की पानी बताशे खा रही थी, तो बताशा उसने जैसे ही मुँह में रखा, तो मुँह खुला ही रह गया, क्योंकि बताशा एक बार के खाने के चक्कर में उसके मुँह में फ़ँस गया था, उसने कोशिश की पर कुछ नहीं हुआ फ़िर अंतत: अपने हाथ से बताशा मुँह के अंदर करना पड़ा ये सब देखकर हमें अपने पुराने दिन याद आ गये, जब हम अपने उज्जैन में चौराहे पर पानी बताशे वाले के यहाँ खड़े होकर बड़े बड़े बताशे निकालने को कहते थे कि मुँह में फ़ँस जाये। और हम सारे मित्र लोग बहुत हँसते थे।

    तभी हमारे सहकर्मी जो कि हमारे साथ थे कहा कि देखो उधर सिलेंडर देखो, तो उधर हमने देखा तो पाया कि एक सुंदर सी लड़की खड़ी थी, हमारा सहकर्मी बोलता है कि हमने सिलेंडर देखने को बोला है, लड़की नहीं। किसी जमाने में हम भी अपने दोस्तों के साथ यही किया करते थे, और बहुत मजा किया करते थे। अपने स्कूल कॉलेज के दिनों की बातें याद आ गईं।

    अगली टेबल पर एक छोटा परिवार (छोटा इसलिये कि वो हम दो हमारा एक कॉन्सेप्ट के थे) था जो कि खड़ा होकर खा रहा था। और अपने प्यारे दुलारे बेटे को गोल टेबल पर बैठा रखा था, और उसकी मम्मी पापा बड़े प्यार दुलार से अपने बेटे को अपने हाथों से खिला रहे थे। और साथ में प्यार भी करते जा रहे थे। हमें हमारे बेटे की याद आ गई, क्योंकि वो भी लगभग इतनी ही उम्र का है, और शैतानियों में तो नंबर वन है। कहीं भी चला जाये तो पता चल जाता है कि हर्षवर्धन आ गये हैं। होटल में तो बस पूछिये ही मत पूरा होटल सर पर रख लेंगे, होटल वाला अपने आप एक आदमी उसके पीछे छोड़ देता है, कि यह पता नहीं क्या शैतानी करने वाला है, और हम लोग अपना खाना मजे में खाकर बेटे को साथ में लेकर चल देते हैं, बेचारा होटल वाला भी मन में सोचता होगा कि ये हमारे यहाँ क्यों खाने आये हैं।

    आज हमें कुछ ज्यादा ही मोटे लोग नजर आये, तो समीर भाई “उड़नतश्तरी जी” की टिप्पणी याद आ गई, कि हमें तो खाने का फ़ोटू देखते ही वजन दो किलो बड़ गया, ध्यान रखें। मोटे लोगों को देखकर अनायास ही मुँह से निकल जाता है, ये देखिये अपना भविष्य। पर क्या करें बेशर्म बनकर उनको देखते रहते हैं।

    शाम को ही एक बिहारी की दुकान पर समोसा खा रहे थे, तो वहाँ पर एक बेहद मोटा व्यक्ति जलेबियाँ खा रहा था, कपड़े ब्रांडेड पहने हुआ था, और मजे में जलेबियाँ खाये जा रहा था, हम सोचने लगे कि ये तो हमसे लगभग तिगुना है फ़िर भी क्या जलेबियाँ सूत रहा है, तो बसे हम समोसे पर ही रुक गये और जलेबियों की ओर देखा भी नहीं, केवल उस मोटे व्यक्ति की ओर एक नजर देखकर चुपचाप सरक लिये।

    जब सरवाना भवन से खाकर निकले तो बिल्कुल पास में ही एक पान वाले भैया खोका लगाकर बैठते हैं, ५ दिन से हम इनके पर्मानेंट ग्राहक हैं, भैया जी इलाहाबाद के हैं और बहुत रसभरी प्यारी प्यारी बातें करते हैं पर तमिल पर भी उतना ही अधिकार है, जितना कि अपनी मातृभाषा पर, पर उनका टोन बिल्कुल नहीं बदला है, अभी भी ऐसा ही लगता है कि छोरा गंगा किनारे वाला ही बोल रहा है। उनसे हम अपना पान लगवाकर थोड़ी सी हिन्दी में मसखरी करके अपने रास्ते निकल लेते हैं। आज वे भी प्यार से बोले “बाबू आप भी हमारे मुल्क से लगते हो” हम भी बोल ही दिये “भई हम तो इलाहाबाद के दामाद हैं।” और चल दिये अपने ठिकाने की ओर…

चैन्नई में तीन हिन्दी ब्लॉगरों की मुलाकात.. साधक उम्मेद सिंह जी और पीडी से हुई बातों का ब्योरा..

   शनिवार ३० जनवरी को शाम को हमने उम्मेद सिंह जी से बात की और अगले दिन सुबह ८.३० बजे हमारे होटल में मिलना तय हुआ, फ़िर पीडी से बात हुई तो पीडी बोले हम तो कभी भी आ सकते हैं, आप चिंता न करें।

    सुबह हम लगभग ७ बजे उठे और रोज के उपक्रम से निवृत्त होकर चुके ही थे कि अचानक हमारा मोबाईल फ़ोन घनघनाया, फ़ोन किसी मोबाईल से था तो हमें लग गया जरुर साधक उम्मेद सिंह जी का फ़ोन है, बात हुई तो उधर से साधक उम्मेद सिंह जी की ही आवाज थी। उन्होंने कहा कि हम आपके साथ ज्यादा समय बिताना चाहते हैं जरा जल्दी आ जायें क्या, हमने कहा अरे आपका स्वागत है, बिल्कुल आ जाईये, तो साधक जी बोले फ़िर खोलिये आपके कमरे का दरवाजा हम सामने ही खड़े हैं।

    हमने कमरे का दरवाजा खोला तो साधक जी जैसे ही रुबरु हुए, वे बोले “अरे आप तो बहुत सुंदर हैं।”

   फ़िर बहुत सारी बातें हुईं गीता, उपनिषद, धार्मिक, साहित्यिक, ब्लॉग जगत और जीवन सभी बातों पर साधकजी की गजब की पकड़ है।

    फ़िर अविनाश वाचस्पति जी को फ़ोन लगाया उस समय शायद वो उठे ही थे या हमने उठा दिया था, उनसे भी हमारी और साधकजी की बहुत बातें हुईं।

    साधकजी की ब्लॉग के तकनीकी पक्ष की बहुत सारी जिज्ञासाएँ थीं जिसे हमने शांत करने का प्रयास किया और उन्हें बताया कि हम कैसे विन्डोज लाईव राईटर उपयोग करते हैं, और इसमें क्या क्या सुविधाएँ उपलब्ध हैं, लिंक कैसे बनाते हैं, फ़ोटो कैसे लगाते हैं इत्यादि।

    तब फ़िर हमने वापस प्रशान्त उर्फ़ पीडी को फ़ोन लगाया तो वे बस उठे ही थे, हमने उन्हें अपना होटल का पता बताया तो पीडी बोले कि हम बस आधे पौने घंटे में पहुँचते हैं, वो बराबर पौने घंटे में आ पहुँचे फ़िर एक बार साधकजी और पीडी के साथ चर्चाओं का दौर शुरु हो गया। तब तक नाश्ते का समय हो चुका था और बहुत जोर से पेट में चूहे कूद रहे थे, तो जाने के पहले हमने बोला कि एक फ़ोटो खींचकर नुक्कड़ पर लगा देते हैं, और साधकजी ने अपनी छ: लाईने लिख दीं।

कुछ फ़ोटो हमारे लेपटॉप से –

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    फ़िर चल दिये पास ही स्थित सरवाना भवन वहाँ जाकर पहले रसगुल्ला और फ़िर इडली छोटी वाली जो कि प्लेट में १४ आती हैं और फ़िर कॉफ़ी, पर पीडी चाय कॉफ़ी नहीं पीते हैं।

    नाश्ता निपटाकर वापिस आये और थोड़ी देर बाहर की हवा में खड़े होकर आनंदित होकर बातें कर रहे थे। साधक जी को शाम को ही जयपुर निकलना था, तो वे हमसे विदा लेकर चल दिये फ़िर मिलने का वादा करके और फ़ोन पर बराबर संपर्क में रहने के बादे के साथ।

    मैं और पीडी वापिस कमरे में आये और फ़िर ब्लॉग जगत के बारे में बातें हो ही रही थीं और साथ में पीडी के मिनी लेपटॉप पर उनके फ़ोटो देख रहे थे, कि पाबला जी का फ़ोन आ गया और फ़िर पाबला जी से भी बातें हुईं, जो कि उन्होंने नुक्कड़ की पोस्ट देखकर ही लगाया था।

    बहुत सारी अपनी जिंदगी की बातें हुईं, फ़िर पीडी भी दोपहर को विदा लेकर चल दिये कि फ़िर जल्दी ही मुलाकात होगी।

चैन्नई मरीना बीच पैदल ही नाप दिया…

    अभी परसों की ही बात है शाम को जरा जल्दी होटल आ गये तो सोचा चलो मरीना बीच ही घूम आते हैं, अपने होटल पर रेसेप्शन पर पूछा कि मरीना बीच किधर है और कितनी दूर है, तो जबाब मिला यहाँ से सीधा रोड मरीना बीच को ही जाता है, पर लगभग ३ किलोमीटर है, हमने कहा फ़िर तो पैदल ही जा सकते हैं, तो रेसेप्शनिस्ट हमारा मुँह देखने लगा कि इतनी दूर पैदल ही जा रहे हैं। हमने कहा अरे भई हमें आदत है हम निकल लेंगे पैदल ही।

    पैदल ही निकल लिये और पैदल जाने का एक और मकसद था कि कोई और खाने के लिये अच्छा सा रेस्त्रां मिल जाये, तो हमें फ़िर पास में ही सरवाना भवन मिल गया जो कि शायद चैन्नई का सबसे बड़ा उनका रेस्त्रां है। खैर करीबन आधे घंटे में हम मरीना बीच पहुंच गये, इतना बड़ा और लंबा मरीना बीच हम बहुत दिनों बाद देख रहे थे, मुंबई में तो जुहु बीच बहुत ही छोटा लगता है इसके सामने।

    समुद्र का पानी हमारे पास हिलोरे मारता हुआ आ रहा था, और हम भी रेत में नंगे पैर अपने सेंडल हाथ में लिये घूम रहे थे, बहुत मजा आ रहा था, ठंडी हवा थी, और लहरों का शोर।

    बहुत सारे स्टाल लगे हुए थे जिसमें कुछ पर मुंबई चाट और कुछ पर चैन्नई चाट लिखा था, पर हमारा वहाँ कुछ खाने का मन नहीं था तो वापिस हम चल दिये अमरावती रेस्त्रां के लिये, जहाँ फ़िर हमने वही आन्ध्रा स्टाईल चावल की थाली खाई। कुछ भी कहिये मन नहीं भरा वह थाली खाकर, अभी फ़िर खाने की तमन्ना है।

    अब किसी दिन फ़ुरसत से शाम के समय मरीना बीच जायेंगे और फ़िर शाम के समय के दीदार की बातें बतायेंगे।

दक्षिण भारतीय व्यंजन की स्वादिष्टता जिसमें तमिल और आन्ध्रा दोनों तरह के व्यंजन शामिल हैं.. अद्भुत स्वाद है यहाँ के खाने का.. चैन्नई में खाने का मेरा अनुभव..

    यहाँ चैन्नई में जब से आये हैं रोटी तो देखने को भी नहीं मिली है, शुरु दिन ही दोपहर के खाने में मिनी मील सरवाना भवन का खाया, सरवाना भवन जो कि दक्षिण भारतीय खाने की अंतर्राष्ट्रीय श्रंखला है। और यहाँ तरह तरह के दक्षिण भारतीय खाने उपलब्ध हैं।

    पहले दिन मिनी मील खाया जिसमें ३ तरह के चावल एक दही के साथ, दूसरा सांभर के साथ और तीसरा पता नहीं किसके साथ शीरा और ३-४ चटनियाँ।

    फ़िर शाम को खाना खाया आन्ध्रा की प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय श्रंखला अमरावती में आन्ध्रा थाली, जिसमें तीन तरह की सब्जियाँ, १ चटनी, सांभर, रसम, दही और आन्ध्रा का खास मसाला, और दो विशिष्ट अचार चावल के साथ, स्पेशल पापड़, सूखी लंबी लाल मिर्ची, और चावल के छोटे पापड़, खाने के बाद केला, आन्ध्रा की कोई एक प्रसिद्ध मिठाई और आन्ध्रा स्टाईल पान।

नीचे फ़ोटो देखिये पर मेरे मोबाईल कैमरे से –

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    खाने का तरीका भी विशिष्ट है, चावल में घी (आप जितना चाहे घी डलवा सकते हैं) और फ़िर आन्ध्रा का खास मसाला मिलाकर खाने पर अद्भुत स्वाद आता है। साथ में सब्जियाँ मिला सकते हैं। फ़िर खाने में ज्यादा इमली वाले सांभर से कम इमली वाली रसम और फ़िर दही से खान खत्म करते हैं, यहाँ बेधड़क आप अपने हाथ से खा सकते हैं, और जम के अपने हाथ चाट भी सकते हैं, क्योंकि यह यहाँ की संस्कृति में शामिल है, अगर आप चम्मच से खायेंगे तो मजा भी नहीं आयेगा। थाली का खाना अनलिमिटेड है जितना चाहें उतना ले सकते हैं।

    हमने यहाँ आकर बहुत चावल खाया पर कभी भारी नहीं लगा, शायद यहाँ का पानी वैसा है या फ़िर भौगोलिक स्थिती इस प्रकार है।

    सरवाना भवन में हमने अभी तक मिनी मील, प्याज का उत्तपम, सांभर चावल, टमाटर का सूप, मसाला डोसा, पाव भाजी, मिनि टिफ़िन जिसमें एक डोसा, ५ छोटी इडली, शीरा, सांभर, स्पेशल चावल और चटनियाँ होती हैं। सरवानन भवन की विशेषता है कि वहाँ की क्वालिटी, पर हाँ थोड़ी मात्रा कम होती है।

यहाँ की एक और विशेषता है कि खाना परोसा जायेगा केले के पत्ते लगाकर सीधे प्लेट में नहीं।

चैन्नई में भी कम लूट नहीं है.. लुटने वाला मिलना चाहिये..

जैसा कि आमतौर पर सभी शहरों में होती है लूट वैसी ही लूट चैन्नई में भी है, अब अभी समझ नहीं पा रहे हैं कि लूट कम है कि ज्यादा है, हमें तो ये पता है कि लूट, लूट ही होती है, चाहे वह कम हो या ज्यादा।
यहाँ पर ऑटो मीटर से चलाने का रिवाज ही नहीं है, हमें अपने गंतव्य तक जाने के लिये रोज ही मगजमारी करना पड़ती है, रोज इन ऑटो वालों से उलझना पड़ता है, जितनी दूरी का ये लोग यहाँ ८० रुपये मांगते हैं, उतनी दूर मुंबई में मीटर से मात्र १५-१८ रुपये में जाया जा सकता है।
अब और देखते हैं कि कौन कौन लूट मचा रहा है, क्योंकि टैक्सी वालों के भाव भी बहुत ज्यादा हैं, प्रीपैड टैक्सी अगर २८० रुपये लेती है तो बाहर अगर आप टैक्सी से मोलभाव करने जायेंगे तो वो ८५० रुपये से कम में नहीं मानेगा।
चारों तरह लूट मची है, लूट सके तो लूट !!!!