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रिश्तों की गर्माहट
जब से मानव सभ्यता इस दुनिया में आई है शायद तभी से रिश्ते भी अस्तित्व में हैं, रिश्ते मतलब कि एक दूसरे से किसी भी प्रकार से जुड़ना, रिश्ता कैसा भी हो, रिश्ते में गर्माहट बहुत जरूरी है। रिश्ते भी कई प्रकार के हैं, खून के रिश्ते याने कि रिश्तेदार, दोस्त जो साथ पढ़ते हैं या काम करते हैं, मानसिक दोस्त जो फ़ेसबुक या ब्लॉग के कारण दोस्त बने।
जब से घर के बाहर हूँ तो रिश्तेदारी और दोस्ती में जाना वाकई बहुत कम होता है, पर जब भी जाता हूँ तो मिलने में कसर भी नहीं छोड़ते, यथासंभव सभी से मिलकर आते हैं, कभी भी ऐसा नहीं लगता कि हम वर्षों के बाद मिल रहे हैं, बातें में भी कभी इन चीजों का जिक्र नहीं होता।
हाँ पर जैसे जैसे उम्र के साथ परिपक्व हो रहे हैं, वह परिपक्वता वहाँ नहीं दिखती, क्योंकि हमारी उम्र तो वहाँ ठहरी हुई है, इतनी आत्मीयता से मिलना और बातचीत होना, आज की भागती दौड़ती दुनिया में दिल को बहुत सुकून देता है।
मानसिक दोस्तों से कभी भी चैटिंग करें या फ़ोन पर बात करें, उनसे बात करके कभी ऐसा लगता ही नहीं है कि हम इनसे कभी मिले नहीं हैं, हमें ऐसा लगता है कि संबंध कुछ ज्यादा ही प्रगाढ़ है, हम उनसे इतने सहजता से बतियाते हैं जैसे हम पता नहीं कितने दिन साथ गुजारे हों।
इस बार जो कुछ साक्षात अनुभव हुआ वह यह था कि मैं अपनी बहन से लगभग ८ वर्ष बाद मिल पाया और पहले हमारी बातें किसी और विषय पर केंद्रित होती थी, और अब बातों का विषय स्वाभाविक रूप से बदल गया था, हम दोनों को ही आश्चर्य हो रहा था, कि वक्त के साथ साथ हमारी सोच भी बदलती जाती है, परंतु रिश्तों की गर्माहट बरकरार है, इतन वर्षों बाद मिलकर हम अंतरतम तक भीग लिये।
बचपन की परिपक्वता..
परिवार गर्मी की छुट्टियों में घर गया हुआ है, यही दिन होते हैं जब हम अकेले होते हैं और बेटेलाल अपने दादा दादी और नाना नानी का भरपूर स्नेह पाते हैं। बेटेलाल सुबह से रात तक अपने हमउम्र दोस्तों के साथ खेलने में व्यस्त होते हैं, वहाँ उनकी भरपूर मंडली है, और यहाँ बैंगलोर में गिनेचुने एक या दो और वे भी किसी ना किसी गतिविधि मॆं व्यस्त होते हैं । अभी बेटेलाल का क्रिकेट प्रेम सर चढ़कर बोल रहा है, शाम पाँच बजे से जो गली क्रिकेट शुरू होता है तो अँधेरा होने तक चलता रहता है। बचपन में तो हम इतना खेलने के बाद खाना खाने के बाद स्ट्रीट लाईट की रोशनी में खेलते थे। पर भला हो नगर निगम का कि उसने हमारे घर के आसपास बड़ी स्ट्रीट लाईट नहीं लगाई है।
क्षिप्रा नदी में शाम के समय नाव के मजे लेते हुए बेटेलाल
यही दिन होते हैं बच्चों के मजे के जब गर्मी की छुट्टियों में मौज होती है और दोस्तों में कोई भेदभाव नहीं होता कि तू किसका बेटा है, क्या करता है और भी पता नहीं क्या क्या… आजकल बड़े शहरों में हमने देखा है कि दोस्त भी हैसियत देखकर बनाते हैं, बड़ा अजीब लगता है यह सामाजिक बदलाव, जो कि कहीं ना कहीं बच्चों के लिये खालीपन भरता है।
बेटेलाल के साथ क्रिकेट खेलने वालों में उनका एक साथी जो कि उनके साथ रोज ही खेलता था, एक शाम एक दुर्घटना में नहीं रहा, मेरे बेटे ने मुझे फ़ोन पर बताया – “डैडी, वह हमारे साथ खेलता था, और रात नौ बजे वो जो बिल्डिंग बन रही है उसकी तीसरी मंजिल से उसका पैर फ़िसल गया और नीचे गिर गया, मेरे दोस्त ने बताया कि जब वह गिरा तो उसके सिर के पास बहुत सारा खून बह रहा था और उसके पापा मम्मी एकदम अस्पताल ले गये, पर डैडी वह नहीं बचा, उसकी डैथ हो गई” और फ़िर वह चुप हो गया ।
फ़िर थोड़े अंतराल के बाद बोला “डैडी, अब मैं आपकी बातें माना करूँगा, मैं ध्यान से सड़क पार करूँगा, ध्यान से खेलूँगा, आप बिल्कुल चिंता मत करना” उस रात बेटेलाल मम्मी का हाथ पकड़कर सोये और थोड़ी थोड़ी देर में सहम रहे थे, बेटेलाल के मन पर दोस्त की मौत का बहुत असर हुआ था।
इतनी छोटी उम्र में दोस्त की मौत ने हमारे बेटे को पता नहीं कहाँ से इतनी परिपक्वता दे दी, बेटा एकदम से बड़ा हो गया। बेटे को किसी को खोने का मतलब समझ में आ रहा है, जो कल तक उससे हाथ मिलाकर खेलता था, आज वह उसे कहीं दिखाई नहीं दे रहा और वह अब कभी नहीं आयेगा।
आधुनिक संचार क्रांति एवं संचार के नए आयाम, इंटरनेट, ई-मेल, डॉट कॉम (वेबसाइट) – निबंध
सिंहपुरी के पास मित्र से वार्तालाप
दृश्य – हम घर से महाकाल अपनी बाईक पर जा रहे थे, गोपाल मंदिर से निकलते ही सिंहपुरी के पास हमारे एक पुराने मित्र मिल गये जो हमारे साथ एम.ए. संस्कृत में पढ़ते थे, अब पंडे हैं ।
मित्र – और देवता क्या हाल चाल हैं ?
हम – ठीक हैं, आप बताओ कैसे क्या चल रिया है ?
मित्र – बस भिया महाकाल की छाँव में गुजार रिये हैं.
हम – अरे भिया असली जीवन के आनंद तो नी आप लूट रिये हो, अपन तो बस झक मार रिये हैं, इधर उधर दौड़ के, रोटी के चक्कर में निकले थे.. और चक्कर बढ़ता ही जा रिया है।
मित्र – अरे देवता असली मजे तो जिंदगी के आप ले रिये हो, कने कहां कहां घूम रिये हो, बड़ी सिटी में रह रिये हो, और अपने को तो ऐसे दृश्य स्वप्न में भी नी दिखाई दे, ऐसे दृश्यों में रह रिये हो
हम – अरे नहीं भई ! बस देखने में लगता है, कम से कम आप महाकाल की छाँव में तो मजे से रह रिये हो, और महाकाल रोजी रोटी का इंतजाम भी कर ही रिये हैं, आपके लिये, अपना क्या है, यहाँ आके तो बेरोजगार ही हैं, आपके जैसे कोई अपण मंत्र थोड़े ही फ़ूँक सकें हैं।
मित्र – हा हा, अरे देवता सबको दूसरे की थाली में ही घी ज्यादा लगे है, आओ कभी घर पर आओ, इतमिनान से बातें होंगी, अब नये घर में शिफ़्ट हो गये हैं, वहीं पुराने घर के पास है, और पुराना घर ठीक करवा दिया है तो अब यजमान वहीं रुकते हैं, तो यजमानों को परेशानी भी नी होती।
हम – सही है, आपका कार्यक्रम
मित्र – किधर जा रिये हो ?
हम – महाकाल जा रिये हैं, सोचे जितने दिन हैं बाबा के दर्शन रोज कर लें, मन को तृप्त कर लें
मित्र – चलो मैं भी उधर ही जा रिया हँ, वो पंडित गुरू से मिलवा दूँगा तो दर्शन में कोई समस्या नहीं होगी, रोज वीआईपी जैसे आओ और वीआईपी जैसे ही निकल जाओ
हम – मित्र हम वीआईपी नहीं हैं, भगवान के सामने तो सब एक जैसे हैं, ये ऊआईपी और वीआईपी तो अपण लोग माने हैं, जब भगवान के घर जाने का नंबर आये नी तो ये ही वीआईपी लोग लाईन तोड़कर पीछे भागेंगे कि अभी इतनी जल्दी भगवान के घर नी जाना
मित्र – देवता तुम सुधरोगे नी.. देख लो भीड़ ज्यादा है
हम – जय महाकाल !! जैसी बाबा की इच्छा.. फ़िर मुलाकात होगी
और हम बाईक चालू करके फ़िर निकल लिये ।
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सिंहपुरी – उज्जैन में एक स्थान जहाँ अधिकतर कट्टर ब्राह्मण रहते हैं और धर्म की रक्षा के लिये तन मन धन से समर्पित हैं ।
देवता – संबोधन है, सम्मान के लिये
वर्षा ऋतु – बच्चों के लिये निबंध
इस मौसम में छोटे-छोटे जीव-जंतु जो गर्मी के मारे जमीन के नीचे छिप जाते हैं, बाहर निकल जाते हैं। मेंढ़क की टर्र-टर्र की आवाज सुनाई पड़ने लगती है। आकाश में प्राय: बादल छाये रहते हैं।
वित्तगुरु वित्तीय जानकारियाँ हिन्दी भाषा में
वर्षा ऋतु का आनंद लेने के लिये लोग पिकनिक मनाते हैं। गाँवों में सावन के झूलों पर युवतियाँ झूलती हैं। वर्षा ऋतु में ही रक्षा बंधन, तीज आदि त्योहार आते हैं। इस ऋतु में अनेक बीमारियाँ भी फ़ैल जाती हैं।
आधुनिक श्रम में पिछड़ते कर्मचारी
प्रदेश की मुख्य सहकारी बैंक (अपेक्स बैंक) में KYC के कारण जाना हुआ, अब हमारे पिताजी चूँकि बात कर रहे थे, इसलिये हमने आगे रहकर बात करना उचित नहीं समझा। KYC के लिये जब पिताजी बात करके आये तो उसने साफ़ मना कर दिया और कहा कि अगले महीने आईये, उन्होंने जोर दिया तो उसने मैनेजर के केबिन की ओर इशारा कर दिया । हम चल दिये पिताजी के साथ, उनका भी वही जबाब था, कि अगले महीने आईये अभी KYC नहीं हो पायेगा । अब हम आगे आये और हमने कहा KYC अभी लेने में क्या समस्या है, तो उनका पारा चढ़ गया, फ़िर हम चुप हो गये, क्योंकि पिताजी इस बैंक के बहुत पुराने ग्राहक हैं। फ़िर से हमने कहा अच्छा अभी आप KYC नहीं ले रहे हैं तो कम से कम KYC का फ़ॉर्म तो दे दीजिये, तब जाकर उन्होंने चपरासी को घंटी बजाकर बुलाया और अहसान कर देने वाले अंदाज में कहा कि इन्हें KYC का फ़ॉर्म दे दीजिये । हमारी इच्छा तो हो रही थी कि इन मैनेजर साहब को अच्छे से बैंकिंग के नियम और कानून सिखा दिये जायें, परंतु फ़िर भी चुप रहे.. सोचा हम तो इनको नियम सिखा जायेंगे, फ़िर ये पीछे पिता जी को पता नहीं कौन कौन से नियम बताकर तंग करेंगे।
वहीं पीछे सारा लिपिक स्टॉफ़ कंप्यूटर से मगजमारी कर रहा था और उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था, हरेक लिपिक और अधिकारी के साथ एक जवान लड़का बैठा था जो कि उनके बैकअप जैसा काम कर रहा था, अधिकारी और क्लर्क तो केवल कुर्सी पर बैठे थे और वे स्टूल पर बैठे लड़के उनका काम कर रहे थे और उनको समझाते जा रहे थे कि हो क्या रहा है। आज की इस तरह की स्थिती देखकर उन पढ़े लिखे बेरोजगार नौजवानों की याद आई जो इधर उधर मारे मारे फ़िर रहे हैं, उनमें ये सारे स्किल डेवलप किये जा सकते हैं, परंतु उनको कोई मौका नहीं मिल रहा है क्योंकि इन अधिकारियों और लिपिकों को भी तो नहीं हटाया जा सकता है, संस्थाओं को भी थोड़ा स्ट्रिक्ट बनना होगा, जिससे ऐसे कर्मचारियों के स्किल डेवलप किये जा सकें और उन्हें अच्छी तरह से उपयोग में लिया जा सके । नहीं तो इस तरह के मानवीय श्रम की आवश्यकता वाकई में अब नहीं है, कहने में अच्छा नहीं लगता परंतु बेहतर है कि अगर ये लोग जिस तरह का कार्य करने के लिये रखे गये हैं और नहीं कर पा रहे हैं तो ऐसे लोगों के प्रति संस्था को अच्छे स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम समय समय पर चलाने चाहिये।
निकालना कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि जो आधारभूत स्किल्स उनके पास हैं वह हम नई पीढ़ी में नहीं मिल सकते, उनसे केवल तकनीकी दक्षता की उम्मीद की जा सकती है, पर जो आधारभूत स्किल्स हैं, वे अनुभव और कठोर परिश्रम से ही प्राप्त किये जा सकते हैं । संस्थाओं को अपने कर्मचारियों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम और भी परिष्कृत करने की आवश्यकता है।
अब डाकघर की १,५५,००० शाखाएँ कोर बैंकिंग से जुड़ने वाली हैं, यह परियोजना शुरू हो चुकी है, और यह विभिन्न क्षैत्रों में शुरू भी हो चुकी है। अब देखना यह है कि डाकघर स्किल डेवलपमेंट की समस्या से कैसे निपटेगा ।
बैंकों को चूना कौन लगा रहा है.. बड़े बकायेदार या होम लोन और शिक्षा लोन वाले..
आज एक समाचार देखा निजी बैंक को एक कंपनी ने फ़र्जीवाड़े प्रोजेक्ट में ३३० करोड़ का चूना लगाया, उस कंपनी ने बैंक को एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट दी कि हम बीबीसी के सारे वीडियो २ डी से ३ डी करने वाले हैं तो उसके लिये हमें उपकरण खरीदने हैं । कंपनी वाले बंदे ने एक बीबीसी वाले बंदे से बैंक को मिलवा भी दिया और बैंक इस प्रोजेक्ट के लिये फ़ायनेंस करने को तैयार हो गया। अब बैंक ने पुलिस को रिपोर्ट किया कि फ़लानी कंपनी ने उन्हें ३३० करोड़ का चूना लगा दिया। अब अपने गले तो यह बात उतरी नहीं क्योंकि बैंक जब भी फ़ाईनेंस देता है तो सारी जानकारी कंपनी से संबंधित ले लेता है, और भले ही आदमी कितने फ़र्जी दस्तावेज बना ले पर कहीं न कहीं पकड़ा ही जाता है।
अगर सरकारी बैंक होता तो शायद यह कह सकते थे कि हाँ भई इसके समझ में नहीं आया होगा परंतु बैंक के दिये गये टार्गेट पूरे करने के चक्कर में या कहें किसी अधिकारी ने अपनी सक्षमता दिखाने के उद्देश्य से यह सब कर दिया। अब बाद में पुलिस ने जब जाँच की तो पाया कि अरे यह तो एक नजर में देखने पर ही फ़र्जी कार्यक्रम लग रहा है । अब यह समझ में नहीं आता कि यह फ़र्जी बातें बैंक को क्यों समझ में नहीं आयीं। उस समय तो शायद अधिकारी या तो ऊपर से फ़ाइनेंस करने के दबाब में आ गये या फ़िर अपना फ़ायदा भी देख लिया।
ऐसे ही बड़े बड़े लूट वाले फ़ाइनेंस बहुत हो रहे हैं, अगर आम आदमी फ़ाइनेंस लेने जायेगा तो उसे फ़ाइनेंस लेने में अपने पुरखे याद आ जायेंगे, परंतु ये कंपनी वाले लोग बड़ी आसानी से इनके साथ “सैटिंग” करके सब ले जाते हैं।
सरकार कहती है कि जिन लोगों ने ऋण नहीं चुकाया है उन पर कार्यवाही होगी, उनके नाम उजागर होंगे, चौराहों पर बोर्ड पर नाम लगवा दिये जायेंगे, मुनादी करवायी जायेगी। ये होते हैं छोटे लोन वाले लगभग १ से १० लाख जिनके ऊपर बकाया है, परंतु जो बड़े बकायेदार हैं उनके ऊपर इस तरह की कार्यवाही करने से हर कोई डरता है, उनको भी तो ऐसे ही बदनाम करना चाहिये, जिससे आम जनता को पता चले कि कितना पैसा कितने बड़े बड़े लोग खाकर बैठे हैं।
बैंकिग में ऋण बकायेदारी रकम में अगर देखें तो लगभग ९०% ऋण इस तरह के बड़े बड़े फ़ाइनेंस की हैं और बाकी आम आदमी जो शिक्षा ऋण, गृह ऋण, कार ऋण, निजी ॠण इत्यादि जो बैंक बड़ी मुश्किल से देते हैं, उनका १०% होता है, परंतु बैंक इस १०% के चक्कर में पड़ा रहता है, अगर उतनी ही मेहनत ये ९०% ऋण वालों के साथ की जाये तो वहाँ से बैंक को ज्यादा वसूली हो सकती है।
जन्मदिन के बहाने.. अनुभव की कीमत..
तीन दिन पहले जन्मदिन था, दुख था कि जीवन का एक वर्ष कम हो गया और खुशी इस बात की कि आने वाला कल सुहाना होगा । कुछ लिखने की इच्छा थी परंतु समयाभाव के कारण लिखना मुमकिन नहीं हुआ, फ़ेसबुक पर जन्मदिन की शुभकामनाओं के इतने मैसेज मिले कि दिल प्रसन्न हो गया, इतने लोगों की शुभकामनाओं से दिल खुशियों से लबरेज हो गया।
आज फ़ेसबुक के जमाने में आमने सामने बधाई देने वाले तुलनात्मक रूप से कम होते हैं, परंतु इस बार ऐसा नहीं रहा, यह भी एक बहुत सुखांत क्षण था कि जितने फ़ेसबुक दोस्तों ने जन्मदिन की बधाई दी उससे ज्यादा हमें परोक्ष रूप से दोस्तों की शुभकामनाएँ मिलीं, बाकी फ़ोन और चैटिंग वाले दोस्त भी शुभकामनाएँ देने वालों में रहे ।
मन में सुबह से ही नई उमंग और जीवन के लिये नई तरंग थी, सोचे हुए तरीके से पूरा दिन व्यतीत हुआ, मन में अजब संतोष भी था कि इस वर्ष की जीवन की बाधाओं को अच्छे से महसूस किया और सही तरीके से चुनौतियों का सामना किया ।
अगले वर्ष की जीवन की बाधाओं से लड़ने के लिये पिछले एक वर्ष का अनुभव बहुत काम आयेगा, पकी उम्र का अनुभव पुराने अनुभवों पर भारी पड़ता है, यह अनुभव भी बीते वर्ष हमने महसूस किया, पकी उम्र के अनुभव की कीमत ज्यादा होती है और इस अनुभव को क्रियान्वयन में लाने के लिये कीमत भी ज्यादा चुकाना होती है।
एक बात और सीखी है कि जो अनुभव या उपयोग में आने वाली छोटी छोटी बातें होती हैं वह हर किसी के लिये उतनी ही छोटी नहीं होतीं, वही छोटी बातें किसी और के लिये बहुत बड़ी और महत्वपूर्ण होती हैं, तो जीवन की सीख है कि हरेक चुनौती को महत्व देना चाहिये, और उसे जितने अच्छे से सुलझा सकें उतना ही अनुभव का रंग गाढ़ा होने लगता है।
आपने एबीएन अमरो बैंक से लोन लिया था
आज दोपहर छुट्टी होने पर भी कार्यालय के एक कॉन्फ़्रेंस कॉल पर थे, तभी घर के बीएसएनएल फ़ोन पर घंटी आना शुरू हो गई, हमने अपनी कॉल को म्यूट पर कर के लैंडलाईन उठाया तो सामने से बंदा कहता है कि “मैं चैन्नई से बोल रहा हूँ, मेरा नाम रमेश है” ।
इसी बीच मैंने उसे कहा एक मिनिट होल्ड करो, और मैं अपनी कॉन्फ़्रेंस कॉल में व्यस्त हुआ, २ मिनिट बाद फ़्री होने के बाद फ़िर चैन्नई वाले बंदे से मुखतिब हुआ, कुछ लोन की बातें करने लगा, तो मैंने उसे टरकाना चाहा कि भई हमें लोन वोन नहीं चाहिये ।
सामने से बंदा कहता है कि नहीं सर हम लोन नहीं दे रहे हैं, आपने एबीएन अमरो बैंक से लोन लिया था, हमने उसके लिये फ़ोन किया है, हमने तत्काल अपने बेटे को कहा “जरा कागज और पैन देना, इसकी जन्मकुंडली लिख लें” । जब कागज कलम आये तो हमने उससे पूछा कि “हाँ भाई अब आप अपना पूरा नाम बतायें”,
वह बोला “मेरा नाम रमेश ही है”,
मैंने कहा “अपना सरनेम भी बतायें”,
वह बोला “नहीं सर, केवल रमेश ही है”,
मैंने कहा “अच्छा तुमको किसी ने सरनेम नहीं दिया क्या ?”
अब तक वह घबरा चुका था, फ़िर हमने कहा “अच्छा ठीक है रमेश, अब अपना फ़ोन नंबर और पता बताओ” ।
वह बोला “सर आपने एबीएन अमरो बैंक से लोन लिया था, उसी के लिये आपको फ़ोन लगाया है”,
हमने कहा “तभी तो भैया आपका नाम पता ले रहे हैं, क्योंकि हम पहले ही आरबीएस बैंक से बहुत मगजमारी कर चुके हैं और अब तुमने फ़ोन किया है, तो अब बैंक और तुमको दोनों को हम कोर्ट में घसीटेंगे”,
वह बोला “सर एबीएन अमरो बैंक तो बंद हो चुका है, हम तो कोटक महिन्द्रा बैंक से बोल रहे हैं”
हमने कहा “अच्छा, तो हमारा लोन कोटक को बेच दिया गया है ?”
वह बोला “सर हम तो लोन की रिकवरी के लिये फ़ोन लगाये हैं”
हमने कहा “हम आपके ऑफ़िस में आकर लोन के रूपये देंगे, बस आप अपना और अपने ऑफ़िस का पता बता दीजिये”
वह बोला “सर हम आपके घर आ जायेंगे”
हमने कहा “बेटा अगर घर आ गये तो सीधे कृष्णजन्मभूमि पहुँचोगे”
अब वह और घबरा गया था ।
फ़िर हमने कहा “कि कितना लोन लिये हैं हम ?”
वह बोला “सर आपसे कुछ बातें पहले वेरिफ़ाय कर लेते हैं”
हमने कहा “बिल्कुल नहीं, पहले तो आपने फ़ोन लगाकर हमें डिस्टर्ब किया और अब वेरिफ़िकेशन करना है, आपने फ़ोन कैसे लगाया, पहले आपको व्यक्ति का वेरिफ़िकेशन करना चाहिये, उसके बाद फ़ोन लगाना चाहिये, इसका मतलब यह तो नहीं कि दुनिया में जितने भी विवेक रस्तोगी ने लोन लिये हैं, उसका मैं अकेला देनदार हूँ”
वह बोला “सर आप कभी कॉस्को कंपनी में काम किये हैं”
हमने कहा “बिल्कुल नहीं”
वह बोला “सर आप छ: साल पहले इस कंपनी में बैंगलोर में थे ?”
हमने कहा “भई, हम तो पहले मुँबई में थे”
वह बोला “सॉरी सर, गलती हो गई” और फ़ोन रख दिया ।
अब हम इस मामले को अभी यहीं रफ़ा दफ़ा कर रहे हैं, और अगर अगली बार फ़िर ऐसा कोई फ़ोन आया तो उसको पता नहीं कहाँ कहाँ लेकर जायेंगे, वह सोच भी नहीं पायेगा ।