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शेविंग के बिना बहुत कुछ खोना पड़ जाता है (Better to Shave)

    आमतौर पर शेविंग करना भी एक शगल होता है, कोई रोज शेविंग करता है और कोई एक दिन छोड़कर, कुछ लोग मंगलवार, गुरूवार और शनिवार को शेविंग नहीं करते हैं । शेविंग करने से चेहरा अच्छा लगने लगता है और अपना आत्मविश्वास भी चरम पर होता है। केवल शेविंग करने से ही कुछ नहीं होता उसके बाद और पहले भी बहुत सारी क्रियाएँ होती हैं, जो शेविंग के कार्यक्रम को सम्पूर्ण करती हैं।
    शेविंग न करने से कुछ बड़े बड़े नुक्सान भी हो जाते हैं, यहाँ एक किस्सा बयान करना जरूरी है, जो कि हमारे सामने हमारे ही कार्यालय में हमने घटित होते देखा हुआ है। एक प्रोग्रामर था जो कि जबरदस्त प्रोग्रामिंग करता था, केवल उनका रहन सहन और बात करने के सलीका उनकी लिये नकारात्मक था, पर कई बार बात करने के बाद हमने सोचा कि चलो इन्हें कुछ सिखाया जा सकता है और हमने ओर हमारे कुछ सहकर्मियों ने उन्हें कपड़े पहनने के सलीकों के बारे में समझाया और उन्होंने सीख भी लिया।
    पर केवल कपड़े पहनने से कुछ नहीं होता, समस्या जस की तस थी क्योंकि वे रोज शेविंग करके नहीं आते थे, कहते थे कि शेविंग अपने से रोज नहीं होती है, केवल आलस्य के प्रमाद में वे रोज बेतरतीब कार्यालय आते थे, उनका काम जबरदस्त था, जब वर्ष के आखिर में रेटिंग की बारी आई तो हर किसी को अच्छे मूल्यांक मिलने की उम्मीद होती है, उनकी टीम को भी उनके अच्छे मूल्यांक की उम्मीद थी, पर जब मूल्यांक उन्हें बताये गये तो वे सामान्य थे जबकि काम में उनकी दक्षता बहुत अच्छी थी, तो उनके प्रबंधन ने उन्हें बोला कि  जाओ पहले अपना चेहरा शीशे में देखकर आओ, तो उसे मजाक लगा। परंतु प्रबंधन ने उन्हें कहा कि यह मजाक नहीं है, तो वह प्रोग्रामर शीशे में चेहरा देखकर आया तो प्रबंधन ने उनसे पूछा कि आपने शीशे में क्या देखा, वह बोला कि कुछ खास नहीं, तब प्रबंधन ने कहा कि आपका सब कुछ ठीक है, एक बात को छोड़कर कि आप आकर्षक नहीं दिखते हैं, आप कभी कभी शेविंग करते हैं, जो कि कंपनी की कार्यशर्तों की प्रमुख शर्तों में एक है, इसलिये आपको साधारण मूल्यांक दिया गया है।
   उस प्रोग्रामर को बाद में शेविंग का महत्व पता लगा और उसे शेविंग न करने का बहुत बड़ा जुर्माना भी अपने कैरियर के एक वर्ष में अच्छे मूल्यांक न मिलने के रूप में सहना पड़ा।
This post is a part of #WillYouShave activity at BlogAdda in association with Gillette
उस प्रोग्रामर ने तत्काल ही फ्लिपकार्ट से शेविंग किट के रूप में कुछ चीजें मँगवा लीं।

डर के आगे जीत है (Rise above Fear !)

     जीवन संघर्ष का एक और नाम है, जिसमें हमें हर चीज सीखनी पड़ती है, फिर भले ही वह चाव से हो या मजबूरी में । हाँ एक बात है कि जब हमें कोई चीज नहीं आती तो हमें ऐसे  लगता है कि यह चीज सीखना कितना दुश्कर कार्य है और हमें उस चीज को सीखने में, जीवन में उतारने में अपने अंदर के डर से सामना करना पड़ता है। जो भी अपने अंदर के डर से जीत गया बस वही अपने जीवन में किसी भी कार्य में सफल हो पाया है। ऐसे ही माऊँटेन ड्यू का डर के आगे जीत है स्लोगन याद आ जाता है।

    हमें बैंगलोर में कभी भी कार की जरूरत महसूस नहीं हुई, वहाँ हम बाईक से ही काम चलाते थे, और बैंगलोर के व्यस्त यातायात में हमें ऐसा लगता था कि जो सफर हम बाईक से ऑफिस का 40 मिनिट में करते थे वही सफर कार से 2 घंटे में होता, तो हमने सोचा कि बाईक से ही काम चलाते हैं, पर हाँ कार को चलाते हुए लोगों देखकर उनकी हिम्मत की मन ही मन दाद देता था। सोचता था कि जब मुझे बाईक चलाने में इतना डर लगता है, तो कार चलाने के लिये इनको कितना डर लगता होगा।
    जब मैं इस वर्ष गुड़गाँव आया तो देखा कि मेरा ऑफिस हाईवे पर पड़ता है और बाईक से आना जाना बिल्कुल सुरक्षित नहीं है, तो कार लेना अब हमारी मजबूरी बन गया था, पर हमें चलानी आती नहीं थी और कार की जरूरत बहुत ज्यादा महसूस होने लगी थी । 
 डर के आगे जीत है का तमिल वीडियो
    हमने ड्राईविंग स्कूल से कार चलानी सीखी, पहले दिन हमारे ट्रेनर ने हमें जैसे ही ड्राईविंग सीट पर बैठने को कहा हमारा डर हम पर हावी होने लगा और हाथ काँपने लगे, तो ट्रेनर ने कहा कि आज और कल दो दिन आप केवल स्टेयरिंग व्हील और एक्सीलेटर पर ही चलाओगे, जब गाड़ी पहली बार शुरू की तो डर हम पर हावी हो रहा था, ऐसा लग रहा था कि जब केवल स्टेयरिंग व्हील और एक्सीलेटर सँभालने में ही इतनी मशक्कत है तो गियर बदलना, क्लच और ब्रेक कैसे करेंगे । साथ ही पीछे और बगल से आने वाले वाहनों का भी ध्यान रखना पड़ता है।
  तीसरे दिन से हमें ब्रेक भी सँभालने को दे दिया तो अब हमें स्टेयरिंग व्हील, एक्सीलेटर और ब्रेक तीनों चीजें सँभालना भारी पड़ने लगा, पर फिर भी हिम्मत को बाँधकर रखा और अपने डर को अपने पर हावी नहीं होने दिया। पाँचवे दिन से हमें गियर और क्लच भी सँभालने को दे दिया गया, अब हमें पूरी गाड़ी को अपने नियंत्रण में रखने की जिम्मेदारी थी, और केवल तीसरे गियर तक चलाने की परमीशन थी, हमने भी अपने डर को काबू में रखा और सोचा कि अगर डर गये तो कार कैसे चलायेंगे, 15 दिन हमने कार सीखी और सोलहवें दिन हमने अपनी कार की डिलीवरी ली और पहले ही दिन 40 किमी चलाई, दूसरे दिन ही कार एक जगह मोड़ते समय ठुक गई, पर हमने सोचा कि अभी डर गये तो कभी कार नहीं चला पायेंगे, हमने कार चलाना जारी रखा और सड़क के ऊपर कार चलाने के डर को मात दे दी अब तक हम कार लगभग 5500 किमी चला चुके हैं, जिसमें यमुना एक्सप्रेस हाईवे पर दो बार सफर के मजे भी ले चुके हैं, अधिकतम रफ्तार हमने 130 को छुआ है।
हम तो यही कह सकते हैं कि हिम्मत बाँधकर रखो तभी डर के आगे जीत है ।

दोस्तों के साथ दोस्तों में विशेषण के साथ बात किये बने आत्मीयता नहीं आती (Communication between friends is important for friendship)

    दोस्तों के साथ कॉलेज के दिनों के बिताये दिन कुछ अलग ही होते हैं, कोई किसी की बात का बुरा नहीं मानता और फिर बाद में भले ही कोई कितना बड़ा आदमी बन जाये पर कॉलेज के दिनों के साथियों से तो पुराने अंदाज और पुराने तरीके से ही बात की जाती है। कुछ लोग बदल जाते हैं और वे लोग दोस्त कहलाने के लायक नहीं होते, उनसे हाथभर की दूरी बनाये रखे जाना चाहिये कि जिससे वक्त पड़ने पर उनको गले लगाने की जगह, लप्पड़ या लात रसीद की जा सके। जिससे उनको उनका पूरा खानदान याद आ जाये ।
    जब भी बातें करते हैं तो माँ बहन और गद्दी के विशेषणों के बिना बात ही नहीं होती है, पर दोस्तों से बात करने का मजा भी तब ही है और जब तक विशेषण न हो, लगता ही नहीं कि पक्के दोस्त हैं, यकीन मानिये जितनी ज्यादी नंगाई दोस्तों के साथ हो, उतनी ही पक्की दोस्ती होती है। फुल ऑन देसी हिन्दी भासा में पता नहीं कहाँ कहाँ के किस्से कहानी कहते थे। और पता नहीं कभी मालवी भाषा तो कभी निमाड़ी भाषा और कभी भोपाली जुमलों का इस्तेमाल विशेषण के रूप में किया जाता, उन सबमें विशेष रस आता था, आज भी उन्हीं दोस्तों के साथ उन विशेषणों के द्वारा विशेष रस का आनंद लिया जाता है, बस अब अंतराल कम नहीं बहुत कम हो गया है।
    भोपाली विशेषणों में तो आनंद ही कुछ और है, कई बार तो प्योर भोपाली विशेषणों के लिये आज भी पुराने घनिष्ठ दोस्तों को फोन लगाकर पान खिलवाकर वे विशेषण सुनने के आनंद ही कुछ और होते हैं, एक हमारे मित्र थे वे तो साली, भाभी और पता नहीं कहाँ कहाँ के रिश्तों के साथ रस लेकर किस्से कहानियों को जोड़ देते थे। आज भी कई बार कहीं कोई अपना कॉलेजियाना यार मिल जाता है तो पता नहीं कहाँ से पुराने जुमले जुबान पर से फिसल पड़ते हैं, और पुराने दिनों की यादें वीडियो बनकर नंगी आँखों में उभर आती है, सारी की सारी वीडियो फिल्म बनकर सामने हमारी मुख गंगा से बह निकलती है। और वीडियो भी देसी जबान में बोला जाता है तो आज भी हम लोग हँस के चार हो जाते हैं।
    जीवन के इन चार दिनों में वैसे ही रिश्तों की बागडोर सँभालना मुश्किल होता है और अगर जीवन में कहीं न कहीं हलकट अंग्रेजी भाषा में कहें चीप न बनें तो आप जीवन के आनंद में सारोबार हो ही नहीं सकते । आत्मीयता भी तभी आती है, जब दोस्तों के बीच कोई दुराव छुपाव नहीं हो, बस दोस्ती के बीच में कुछ और न लाया जाये और अपने दोस्त के लिये हमेशा एक आवाज पर खड़ा हो जाया जाये तो इससे बेहतरीन बात और कोई हो ही नहीं सकती है।

सहकारी बैंको का उद्धार हमारे पैसों से, लुटाओ खजाना हमारी आँखों के सामने ही (Bailing Out Cooperative Banks)

    5 नवंबर 2014 को केन्द्रीय मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद ने लगभग 2,375 करोड़ रूपयों की सहायता 23 केन्द्रीय सहकारी बैंकों को देने की टीवी पर घोषणा की। केन्द्रीय सहकारी बैंकों का जाल पूरा भारत में विस्तारित है। इन 23 केन्द्रीय सहकारी बैंकों में से 16 बैंकें उत्तर प्रदेश, 3 जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र में, 1 पश्चिम बंगाल में हैं । मंत्री जी का कहना है कि यह कदम छोटे निवेशकों के हितों के लिये उठाया गया है । एक कैबिनेट मीटिंग में इतनी बड़ी राशि जो कि भारत की जनता की मेहनत की गाढ़ी कमाई से टैक्स के रूप में सरकार के पास आती है, से देना निश्चित किया गया । इसमें कुछ हास्यासपद नियम बैंकों के लिये बनाये गये हैं, जैसे कि 15 प्रतिशत की विकास दर होना चाहिये, खराब ऋणों को 2 वर्ष में आधा वसूल कर लेंगे। इन दोनों का होना लगभग नामुमकिन है, क्योंकि केन्द्रीय सहकारी बैंकें राजनैतिक हितों को भी साधती हैं।
    एक बड़े अखबार के मुताबिक तो 45 सहकारी बैंकों के ऊपर भारतीय रिजर्व बैंक अर्थदंड भी लगा सकता है, जिसमें से 23 सहकारी बैंकों के पास तो बैंकिंग का लाइसेंस भी नहीं है और 4 प्रतिशत पूँजी-पर्याप्तता का अनुपात जो कि लगभग 2100 करोड़ रूपये होता है, वह भी नहीं है। ये 23 सहकारी बैंके वही लगती हैं, जिनका उद्धार हमारे द्वारा दिये गये टैक्स के पैसे से होना  है।
    सरकार का यह निर्णय बहुत ही असंवेदनशील और उनके काम करने के तरीके का खौफनाक नमूना है, सरकार द्वारा ऋणों के वापस न आने के कारणों को अनदेखा करना निश्चित ही चिंता का विषय है। केन्द्रीय सहकारी बैंकों में राजनैतिक घुसपैठ और उनके द्वारा प्रबंधन में मनमानी करना किसी से छुपा नहीं है और यही कारण है कि अशोध्य ऋणों (Irrecoverable loans) की ज्यादा संख्या का कारण राजनैतिक व्यक्ति का ऋण से जुड़ा होना है, जो कि जानबूझकर बकायादार (Wilful Defaulters) रहते हैं।
    इसके परिणाम स्वरूप, सहकारी बैंकों पर नियंत्रण ठीक न होना और दीवालिया होना व्यवस्था के लिये चेतावनी है। बदकिस्मती से अधिकतर लोगों को इन बैंकों के खराब नियंत्रण के बारे में पता ही नहीं होता है, जो कि अक्सर ही छोटे निवेशकों को अधिक ब्याज दरों से लुभाते हैं। मजे की बात यह है कि इन केन्द्रीय सहकारी बैंकों में बैंकिंग से संबंधित निर्णयों में राजनैतिक हित हावी रहते हैं, और सरकार के नियमों के मुताबिक सभी बैंकों में एक लाख रूपयों तक के निवेश को DICGC (Deposit Insurance and Credit guarantee Corporation)  द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाती है। जिसमें ये केन्द्रीय सहकारी बैंकें भी शामिल हैं।
    यहाँ पर यह उद्घृत करना जरूरी है कि केतन पारिख के द्वारा 2000-2001 में माधवपुरा मर्केंटाइल सहकारी बैंक में की गई धोखाधड़ी के बाद पहले की भाजपा सरकार एन.डी.ए. के शासनकाल (1999-2004) में भारतीय रिजर्व बैंक को लचीला रुख अपनाने के कहा और DICGC (Deposit Insurance and Credit guarantee Corporation) को अपने नियमों को  शिथिल करने के लिये कहा गया। माधवपुरा मर्केंटाइल सहकारी बैंक के प्रबंधन ने घोटालेबाज केतन पारिख को 1000 करोड़ रूपयों को ऋण सारे नियम ताक पर रख कर बैंक को बर्बाद कर दिया। जबकि DICGC (Deposit Insurance and Credit guarantee Corporation) के नियमों के मुताबिक निवेश पर किये गये बीमा का भुगतान केवल बैंक के दीवालिया होने की स्थिती में ही किया जा सकता है। उस समय भाजपा के बड़े शक्तिशाली नेता को शांत करने के लिये माधवपुरा मर्केंटाइल सहकारी बैंक की स्थिती को अपवादस्वरूप बताकर हजारों करोड़ों रूपयों को भुगतान कर दिया गया। और उस समय की लगभग समाप्त सी हो चुकी मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भी कोई विरोध नहीं किया। वाकई भारत के वित्तीय निवेशकों के लिये वह दिन बहुत ही बुरा होगा अगर वापिस से इस तरह का कोई बड़ा सहकारी बैंक घोटाला सामने आता है और भाजपा सरकार ने पहले ही इन केन्द्रीय सहकारी बैंकों को आश्रय देने का निर्णय ले लिया है बनिस्बत कि इन केन्द्रीय सहकारी बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंकों के सीधे सरल और स्पष्ट नियंत्रण और निरीक्षण में दिया जाता।
    हमारे पैसों से इन केन्द्रीय सहकारी बैंकों को मदद देना सरकार के अच्छे शासन प्रणाली और साफ सुथरे प्रबंधन के संकेत नहीं हैं और उस सुधार बदलाव के भी जिसका वादा हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी किया था।

मैं भी आम आदमी हूँ

      जी हाँ मैं भी आम आदमी हूँ, जो आम आदमी कहता है वह मुझे सीधे दिल पर लगता है, क्योंकि वे वाकई वही बातें करते हैं जो मुझ जैसे आम आदमी की जरूरत हैं। आजकल हल्ला काट रहे हैं कि केजरीवाल बिजनेस क्लाम में सफर कर दुबई गये, मैं ज्यादा गहराई में न जाते हुए केवल इतना कहना चाहूँगा कि अगर मुझे भी कोई अन्य बिजनेस क्लास का टिकट देगा तो मैं मना नहीं करूँगा, और खुशी खुशी बिजनेस क्लास का सफर तय करूँगा। हालांकि एक बार मैं भी एक बार एयर लाईंस की गलती के कारण बिजनेस क्लास में दुबई से मुँबई तक सफर कर चुका हूँ। पर अगर इकोनोमी में भी मुझे टिकट खरीद कर सफर करना हो तो कम से कम सौ बार सोचना पड़ता है। अगर केजरीवाल के किसी सम्मान के लिय बुलाया गया है तो या तो टिकट उन्होंने दिया है या फिर उनके किसी दोस्त ने स्पांसर किया है, तो इस बात पर हल्ला क्यों ?
    क्या हमारे विपक्षी दलों के नेता जो आरोप प्रत्यारोप भी बिजनेस क्लास में सफर नहीं करते हैं ? या वे यह नहीं देख पा रहे हैं कि आम आदमी कैसे विलास कर सकता है, भले ही वह स्पांसर हो ?
    विपक्षी दल आम आदमी पर पता नहीं कैसे कैसे आरोप लगाते रहते हैं, अभी सुबह ही एक केन्द्रीय सरकार के दल के एक नेता जी को बोलते सुना कि अगर बाहर से चुनाव लड़ने के लिये पैसा आयेगा तो फिर ये लोग बाहर के लोगों के लिये ही कार्य करेंगे ना कि भारत के लोगों के लिये, तो बहुत
ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है, अभी जब लोकसभा के लिये चुनाव हुए थे तब भी भारत की बड़े दलों को बहुत सारा चंदा मिला था, तो वे अपने सोर्स बताने में क्यों कोताही बरत रहे हैं, अगर वे आम आदमी के जैसे वाकई ईमानदार हैं तो वे भी ऐसा करके बताये, जनता ने तो केवल एक अच्छी मछली के नाम पर वोट डाला है, पर अब देश को भुगतना तो पूरे तालाब की गंदी मछलियों को पड़ रहा है। अगर हमारे प्रधानमंत्री जी भारत के बाहर से निवेश ला रहे हैं तो भारतीय सरकार भी तो विदेशी निवेशकों के हितों को ध्यान रखते हुए कार्य करेगी, तो अपनी बातों को छुपाते हुए क्यों दूसरे पर आरोप जड़ा जा रहा है।

अब आप नहीं बोलोगे तो मोंटू बोलेगा (Ab Montu Bolega)

सीन 1 – सब्जीमंडी में
    सुबह का सुहाना दिन शुरू ही हुआ था, और हम सब्जी लेने पहँच गये सब्जीमंडी, वहाँ जाकर सुबह सुबह हरी हरी ताजी सब्जियाँ देखकर मन प्रसन्न हो गया, सब्जी वाले बोरों में से सब्जियाँ निकाल रहे थे, और साथ ही उनकी फालतू की बची हुई डंडियाँ अपने ठेले के पास फेंकते जा रहे थे, हमने कहा भई ये कचरा ऐसे क्यों फेंक रहे हो, तो जवाब मिला कि और क्या करें, फिर ऐसे ही कचरे को कचरा साफ करने वाला ठेले में भरकर ले जायेगा, एकदम हममें मोंटू की आत्मा घुस गई, क्योंकि सामान्यत: हम कुछ भी कहने से बचते हैं, हमने कहा पता है तुम लोगों की इसी आदत के कारण लोग मॉल में सब्जी खरीदने जाते हैं, सब्जीमंडी जाना बंद कर दिया है, लोगों को सब्जीमंडी आना पसंद नहीं है क्योंकि तुम लोग ही इसे स्वच्छ नहीं रखते हो, क्या तुम लोग इस अतिरिक्त कचरे को ठीक ढ़ंग से ठिकाने नहीं लगा सकते हो, जिससे कि लोग वापिस से सब्जीमंडी में आना शुरू कर दें, क्यों नहीं आप लोग अपने पास एक बड़ा बंद ढक्कन का कचरे का डिब्बा नहीं रखते हैं, जिससे गंदगी तो कम से कम अपने पैर नहीं पसारेगी और लोगों को स्वच्छता मिलेगी, जिससे लोग सब्जीमंडी में आना शुरू हो जायेंगे, आपका भी धंधा अच्छा चलेगा और लोगों को भी फायदा होगा, उन्हें बात जँची और जब हम अगले सप्ताह सब्जीमंडी में गये तो कहीं भी गंदगी नहीं मिली, और देखा कि लोग भी अब धीरे धीरे सब्जीमंडी की ओर आने लगे हैं । तो देखा मोंटू के बोलने का कमाल !!
सीन – 2 – ट्रेन में
    काफी दिनों बाद में किसी लंबी यात्रा पर निकला। रात का समय था, लंबा सुहाना सफर शुरू ही हुआ था, कि रात्रीभोजन का समय हो चुका था, लोग अपने साथ लाया खाना या फिर पेंट्री से मँगाया गया खाना आनंदमय तरीके से खा रहे थे, मैंने सोचा कि यह संपूर्ण सामाजिक दृश्य है, किसी कूपे में कोई मिन्नत कर करके अपना खाना किसी और को भी खिला रहा है, तो कोई शांत बैठा खा रहा है और किसी कूपे में सब खाना खा रहे हैं, परंतु किसी को किसी से कोई वास्ता ही नहीं है, पर ट्रेन में बैठे हरेक व्यक्ति में एक समानता है, सब कचरा खिड़की से बाहर फेंककर हमारे भारत को अस्वच्छ कर रहे हैं, तभी मेरे अंदर मोंटू की आत्मा घुस आयी और लोगों से कहा कि आप खाना खाकर भारत को अस्वच्छ क्यों कर रहे हैं, तो लोगों का जवाब था कि उन्हें या तो पता ही नहीं है कि कचरे का करना क्या है और अगर पता भी है तो आलस के मारे कोई कचरे के डब्बे तक जाना नहीं चाहते, मैंने पूछा कि क्या आप घर पर भी जहाँ खा रहे होते हैं तो पास की खिड़की से बचा हुआ खाना ऐसे ही फेंक देते हैं, लोग वाकई समझ रहे थे और कचरे के डब्बे की ओर बड़ रहे थे।
    मोंटू स्ट्रेप्सिल का एक कैम्पेन है जिसके लिये यह पोस्ट लिखी गई है, मोंटू हमारे भीतर के अच्छे आदमी को बोलने को कहा गया है, कहीं भी कुछ गलत होते देखें तो एकदम से मोंटू #AbMontuBolega बन जायें, चुप न रहें। http://www.abmontubolega.com/ पर इस कैम्पेन के बारे में ज्यादा जानकारी ले सकते हैं, आप मोंटू के इस कैम्पेन में Strepsils के Facebook और Twitter पेज पर भी अधिक जानकारी ले सकते हैं।

स्पर्श की संवेदनशीलता (BringBackTheTouch)

    पहले हम लोग एक साथ बड़ा परिवार होता था, पर अब आजकल किसी न किसी कारण से परिवार छोटे होने शुरू हो गये हैं, पहले परिवार में माता पिता का भी एक अहम रोल होता था, परंतु आजकल हम लोग अलग छोटे परिवार होते हैं, और अपनी छोटी छोटी बातों पर ही झगड़ पड़ते हैं, पर पहले परिवार एक साथ रहने पर समझदारी से सारी बातों का निराकरण हो जाता था, छोटे झगड़े बड़ा रूप नहीं लेते थे।
    केशव और कला एक ऐसे ही जोड़े की कहानी है, जब तक वे संयुक्त परिवार के साथ रहे, तब तक जादुई तरीके से उनका जीवन सुखमय था, वे आपस में अंतर्मन तक जुड़े हुए थे। परंतु केशव को अच्छे कैरियर के लिये भारत से दूर विदेशी धरती पर जाना पड़ा, केशव और कला दोनों ही बहुत खुश थे, आखिरकार भारत से बाहर जाने का हर भारतीय दंपत्ति का सपना होता है, जो उनके लिये साकार हो गया था।
    यह पहली बार था जब वे संयुक्त परिवार से एकल परिवार में होकर रहने का अनुभव करने जा रहे थे, पहले पहल दोनों को बहुत मजा आया, परंतु जैसे जैसे दिन निकलते गये, केशव की व्यस्तता बड़ती गई, और कला घर में अकेले गुमसुम सी रहने लगी, केशव भले ही शाम को घर पर होता था, पर हमेशा ही काम में व्यस्त और यही आलम सुबह का भी था। ना ढंग से नाश्ता करना और ना ही भोजन, कला भी क्या बोलती, कई बार बोलने की कोशिश की परंतु, कुछ न कुछ कला को हमेशा बोलने से रोक लेता और कला रोज की भांति अपने में सिमटना शुरू हो जाती।
    हर चीज को किसी एक बिंदु तक ही सहन किया जा सकता है, वैसे ही कला का एकांत था, वह दिन कला और केशव के लिये मानो परीक्षा की घड़ी बनकर आया था, कला केशव के ऑफिस से आते ही उस पर टूट पड़ी, बिफर पड़ी, आखिर मेरे लिये समय कब है, क्या मैं यहाँ केवल और केवल कठपुतली बनकर रहने आई हूँ, मैं भी इंसान हूँ मुझे भी तवज्जो चाहिये, मुझे भी तुमसे बात करने के लिये तुम चाहिये, इस खुली हुई दुनिया में मैं अपने आप को कैद पाती हूँ और घुटन महसूस करती हूँ। केशव कला की बातों को बुत के माफिक खड़ा सुनता रहा, और उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, आखिरकार कला का एक एक शब्द सच था, ना उसके पास बात करने का समय था और ना ही कला को कला की बातें महसूस करने के लिये वक्त था।


    कला केशव के सामने फफक फफक कर रो रही थी, केशव धीमे धीमे कला के नजदीक गया और कला को अपनी बाँहों में भरकर गालों से गालों को सटाकर कह रहा था, बस कला मुझे समझ आ गया है कि मैं कहाँ गलत हूँ । अब आज से मेरा समय तुम्हारा हुआ, केशव के स्पर्श से कला का गुस्सा और अकेलापन क्षण भर में काफूर हो गया, स्पर्श के स्पंदन को कला और केशव दोनों ही महसूस कर रहे थे, कला और केशव दोनों ने आगे से अपना समय आपस में बिताने का निश्चय किया।

    ठंड में स्पर्श को बेहतरीन बनाने के लिये पैराशूट का एडवांस बॉडी लोशन बटर स्मूथ वाला उपयोग कीजिये, अमेजन पर यह ऑनलाईन उपलब्ध है ।
    यह कहानी #BringBackTheTouch http://www.pblskin.com/ के लिये हमने लिखी है । स्पर्श को आपस में महसूस करिये, जीवन में नई ऊर्जा मिलेगी।
इस वीडियो में निम्रत और पराम्ब्रता को स्पर्श की संवेदनशीलता को दर्शाते हुए देखिये, आपको स्पर्श के महत्वत्ता पता चलेगी – Watch the video to witness Nimrat and Parambrata #BringBackTheTouch.

स्वस्थ बच्चा ही खुशियों से भरा घर बना सकता है (A healthy child makes a happy home!)

    मुझे मेरा बचपन की बहुत सारी चीजें याद नहीं, पर मम्मी और पापा मेरा बहुत ही ख्याल रखते थे, शायद दुनिया में कोई ऐसे माता पिता होंगे जो बच्चों का ध्यान नहीं रखते होंगे, टमाटर खाओगे तो खून बढ़ेगा, गाजर भी सेहत के लिये अच्छी होती है, आँवले से आँखों की रोशनी तेज होती है, आँवले की अच्छी बात यह है कि किसी भी तरह से खाओ, उसके गुण कम नहीं होते, और जीभ पर आँवले का मीठा स्वाद हमेशा ही अच्छा लगता है। रोज एक काली मिर्च खाने से कभी बीमारी नहीं घेरती, यह एक घरेलू उपाय है, जो कभी दादी माँ का नुस्खा था।
 
    खाने पीने में हम हमेशा मस्त रहे और हरेक सब्जी और फल खाते रहे, वैसे ही हमने अपने बेटेलाल को आदत डाली है, जिससे रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता अच्छी बनी रहे और हमेशा रोगों से दूर बने रहें, हमारे बेटेलाल खाने के बहुत आलसी हैं, केवल मूड होता है तो खाते हैं नहीं तो कुछ नहीं खाते, अभी पिछले महीने ही तकरीबन 15 दिनों तक ढंग से खाना नहीं खाया तो मौसमी वाईरल ने पकड़ लिया, जिससे हम सभी लोग 13 दिन तक परेशान रहे, क्योंकि अगर घर में बच्चा बीमार है तो कुछ भी ठीक नहीं लगता है, बच्चा खेलता रहे, स्वस्थ रहे तो पूरा घर खुश रहता है।
    जैसे हमें पापाजी ने च्यवनप्राश खाने की आदत डाली थी, हमारे बेटेलाल पहले च्यवनप्राश नहीं खाते थे परंतु जब धीरे धीरे रोज मुझे और पापाजी को खाते देखते तो उत्सुकतावश रोज ही थोड़ा थोड़ा खा लेते थे, अब हमारे बेटेलाल ने च्यवनप्राश को अपनी रोज की दिनचर्यो में शुमार कर लिया है, रोज सुबह च्यवनप्राश की एक चम्मच और रात को सोने के पहले हल्दी वाले दूध के साथ एक चम्मच खाते हैं।
    हमने 1-2 आयुर्वेदिक चीजें और शुरू कर दी जो कि स्वास्थ्य के लिये बहुत ही लाभदायक है, रोज सुबह शाम तुलसी का अर्क 10 एम.एल. एक गिलास पानी में मिलाकर पी जाते हैं, और रोज सुबह उठते ही एक चम्मच शंखपुष्पी, ब्राह्मी, बादाम, मिश्री और सौंफ को पीसकर बनाया गया चूर्ण चबा चबा कर खाते हैं । इस मिश्रण के खाने से दिमाग को ताकत मिलती है और दिनभर ऊर्जा बनी रहती है, तुलसी के अर्क से तुलसी की प्रतिरोधक क्षमता मिल जाती है, आजकल फ्लेट सिस्टम में तुलसी प्रचुर मात्रा में तो होती नहीं कि रोज सुबह शाम 2 4 पत्ती तोड़कर खा लीं, इसलिये हमें तो तुलसी के अर्क बहुत अच्छा लगा।
    पहले कभी ऐसे ही हमने सोचा था कि च्यवनप्राश घर पर बनाकर खायेंगे पर फिर हमने कभी भी च्यवनप्राश बनाने की मेहनत को देखकर कभी भी बनाने की चेष्टा नहीं करी। बाजार से जाकर च्यवनप्राश खा लेते थे, वही हमें आज भी ठीक लगता है, बेटेलाल को जमकर सलाद और फल  खिलाते हैं और खुद भी खाते हैं, जिससे शरीर में प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता बरकरार रहे। और घर में बेटेलाला केवल मस्तियाँ करते नजर आयें, हमेशा उनके हँसने खिलखिलाने की आवाज आये।
       यह पोस्ट इंडीब्लॉगर्स के हैप्पी अवर्स के लिये लिखी गई है, च्यवनप्राश के प्रतिरोधक क्षमता के बारे में यहाँ से ज्यादा जानकारी ले सकते हैं – https://www.liveveda.com/daburchyawanprash/.

बीमा आपको गलत तरीके से बेचा गया है, यह भी आपको साबित करना होता है (Are you the victim of Insurance or Financial Product Misselling)

     बीमा आपको गलत तरीके से बेचा गया है, यह भी आपको साबित करना होता है, नहीं तो कई बार बीमानियामक और बीमा लोकापाल भी आपकी कोई मदद नहीं कर सकते हैं ।

    एक ईमानदार सरकारी अधिकारी के बारे में बात करते हैं, लगभग 4 वर्ष पूर्व वे सेवानिवृत्त हुए ही थे और उन्हें लगभग 40 लाख रूपये निवेश करने थे, वे बहुत ही ईमानदार थे तो उनके पास इन रूपयों के अलावा और कुछ भी नहीं था, उनके निवेश करने के लक्ष्य साफ थे पहला नियमित आय और तीन वर्ष बाद उनकी बेटी की शादी के खर्च के लिये रकम चाहिये थी। एक निजी बैंक के बहुत ही अच्छे पॉलिसी बेचने वाले अधिकारी ने उन्हें यूनिट लिंक्ड बीमा प्लॉन याने कि यूलिप जिसमें कि इक्विटी का हिस्सा ज्यादा था, खरीदने के लिये प्रेरित किया और बैंक अधिकारी ने बताया कि यह बहुत ही सुरक्षित और बेहतरीन निवेश होगा, इससे आपकी जिंदगी बिल्कुल ही बदल जायेगी ।
  
    तीन वर्ष होने पर निवेशक ने पाया कि उनका निवेश केवल 29 लाख रूपये रह गया है, जिसमें कि पहले तीन वर्षों में उनके यूलिप में से अच्छे खासे शुल्क बीमा कंपनी और बैंक ने वसूल कर लिये थे, और अगर वे उस पॉलिसी को सरेंडर करते तो केवल 14 लाख रूपये मिलते । उन सज्जन को लगा कि मेरे साथ धोखा हुआ है और बस ह्रदयाघात नहीं हुआ । और उन्होंने बैंक और बीमा कंपनियों को शिकायत करना शुरू की, परंतु बैंक और बीमा कंपनियाँ से उन्हें कोई जबाव नहीं मिला।
    आखिरकार उन्होंने बीमा लोकापाल के पास शिकायत करने के निश्चय किया और जब बीमा लोकापाल के पास उन्होंने शिकायत की तो प्रथमदृष्टया ही साबित हो गया कि यूलिप इन सज्जन को गलत तरीके से बेचा गया है और यह मिससेलिंग का केस है। पर मिससेलिंग को सिद्ध कैसे किया जाये ?  सौभाग्यवश उन सज्जन के पास यूलिप खरीदने के दौरान बताये गये सारे कैलकुलेशन और दस्तावेज जो कि बैंक और बीमा कंपनियों ने उन्हें दिया थे वे मौजूद थे, जिसमें कि उन्होंने दर्शाया हुआ था कि किस प्रकार से उनके निवेश को पंख लग जायेंगे और आने वाले समय में उनका निवेश सुरक्षित तरीके से बहुत ज्यादा हो जायेगा।
    और इन कैलकुलेशन और दस्तावेज के कारण बीमा कंपनी को उन सज्जन को पूरे पैसे लौटाने पड़े, पर ऐसे भाग्यशाली लोग कितने होंगे जो ये सारे कागज जिनको मिलते होंगे और वे सँभाल कर रखते भी होंगे, वैसे तो जो भी लोग मिससेलिंग करते हैं या इस तरह की गतिविधियों में लिप्त रहते हैं वे इस तरह के सारे कैलकुलेशन और दस्तावेज निवेशक के हाथों आने ही नहीं देते हैं, वे कोई सबूत छोड़ते नहीं हैं ।
ध्यान रखने योग्य बातें –
    जब भी कोई बीमा या वित्तीय उत्पाद खरीदें, हमेशा कैलकुलेशन और दस्तावेज अपनी मास्टर फाईल में सँभाल कर रखें, जिससे अगर बेचा गया उत्पाद आगे अच्छा नहीं करे तो ये कैलकुलेशन और दस्तावेज आपके मददगार साबित हों ।

अश्विन सांघी एवं जेम्स पीटरसन कृत – प्राईवेट इंडिया ( Private India – Book Review)

    अश्विन सांघी की एक किताब हमने पहले पढ़ी थी, उसका नाम था चाणक्य चांट, चाणक्य चांट को अश्विन ने बड़े ही रोमांचकारी तरीके से लिखा था, तभी हमने सोचा था कि अब अश्विन सांघी का अगली किताब प्राईवेटइंडिया आने वाली थी, जरूर पढ़ेंगे। हम किताब का ऑर्डर करने ही वाले थे कि ब्लॉगअड्डा का बुक रिव्यू प्रोग्राम का एक ईमेल आ गया, जिसमें प्राईवेट इंडिया किताब ब्लॉगअड्डा की तरफ से भेजा जा रहा था और हमें प्राईवेट इंडिया का रिव्यू लिखने के लिये कहा गया था । किताब तो बहुत पहले ही मिल गई थी, अच्छी बात य़ह थी कि किताब पर लेखक अश्विन सांघी के हस्ताक्षर थे। बस हमें पढ़ने के समय नही मिल पाया, कभी निजी तो कभी व्यावसायिक कार्यों में व्यस्त ही रहे। पर आखिरकार हमने 447 पेज का यह रोमांचकारी उपन्यास कल पूरा पढ़ लिया।
    फ्रंटपेज जबरदस्त आकर्षण वाला बनाया गया है, जिसमें मुंबई की प्रसिद्ध जगहों को दर्शाया गया है, और काला कोट पहने, नीचे सफेद बनियान पहने व्यक्ति दौड़ता हुआ दर्शाया गया है, जिससे पता चलता है कि व्यक्ति बदहवास भाग रहा है और मुंबई में किसी सनसनीखेज वारदात के बारे में इंगित करता है। फ्रंटपेज का रंग संयोजन भी इस किताब को आकर्षक बनाता है और बड़े अक्षरों में किताब का नाम लिखा होना उसके विषय को ज्यादा गहराई से दर्शाता है।
 
    जिस तरह से पुलिस पर माफिया की पकड़ दिखाई गई है, जिस तरह माफिया व पुलिस के काम करने का तरीका दर्शाया गया है, वह अप्रितम है, पर इसका अंधकारमय पक्ष यह है कि इसमें कई जगह उपन्यास में कहानी की पकड़ खत्म होती दिखती है, कब कहाँ कैसे क्या घटित हो रहा है, वह पता ही नहीं चलता है, पर फिर भी कहानी के कुछ आगे बढ़ने पर घटनाओं के बारे में अंदाजा लगता है, लिखने का तरीका जबरदस्त है, कुछ जगहों पर तो जानकारियों का भंडार भी मिल जाता है।
किताब में बीच बीच में कई रहस्यों को गढ़ने की कोशिश की गई है, कई जगह रोचकता और साहस के शब्दों से उपन्यास को और भी पठनीय बनाने की कोशिश की गई है, पर बीच बीच में फ्लेशबैक वाली कहानी पाठक को उपन्यास से दूर ले जाती है, फिर भी अधिकतर उपन्यास अंतिम पंक्ति तक रोचक बना रहता है, पाठक की लेखन शैली जबरदस्त है और कभी कभी अंग्रेजी के उपन्यास पढ़ने के बावजूद मुझे पढ़ने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई, कुछ नये शब्द और जानकारी ने मेरे ज्ञान को बढ़ाया।

आगे आने वाले उपन्यासों को पढ़ने की जिज्ञासा बनी रहेगी ।
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