Yearly Archives: 2011
पिटने को तैयार रहें, भारत में अराजकता पैर पसार चुकी है ।
कल पटियाला हाऊस कोर्ट के सामने जो भी हुआ अन्ना के समर्थकों के साथ उससे प्रशासन और भारत सरकार का संदेश साफ़ है कि आम जनता और अन्ना के समर्थक पिटने को तैयार रहें, वे सीधे नहीं पीट सकते हैं तो कुछ गुंडे जिनको सरकार ने शह दी है या फ़िर उनके ही हैं, वे जनता को पीट सकते हैं, और इसका सीधा मतलब है कि भारत में अराजकता पैर पसार चुकी है।
अब जनता या तो पिटने को तैयार रहे या फ़िर प्रशासन और इन गुंडों के खिलाफ़ खुद ही लठ्ठ लेकर तैयार रहे। क्योंकि प्रशासन की जाँच का हश्र तो सभी जानते हैं, जाँच चलती रहेगी और इन गुंडों पर केस चलते रहेंगे।
नाम भी श्रीराम का लिया है, वे श्रीराम जो कि समाज के लिये आदर्श हैं, मर्यादा पुरूषोत्तम हैं, पिता के वचन के लिये वनवास स्वीकार लिया । धिक्कार है ऐसे लोगों पर जो श्रीराम के नाम पर सेना का निर्माण कर रहे हैं और श्रीराम के नाम का गलत उपयोग कर रहे हैं।
हरी मिर्च वाली धनिये की चटनी का स्वाद (Taste of Green Chilli Chutney)
हरी मिर्च वाली धनिये की चटनी बचपन से खाते आ रहे हैं, पहले जब मिक्सी घर में नहीं हुआ करती थी तब सिलबट्टे पर मम्मी या पापा चटनी पीसकर बनाते थे, अभी भी अच्छे से याद है कि थोड़ा थोड़ा पानी पीसने के दौरान डालते थे और चटनी बिल्कुल बारीक पिसती थी, अच्छी तरह से याद है कि उस समय धनिया पत्ती की एक एक पत्ती तोड़कर पीसने के लिये रखते थे, एक भी धनिये का डंठल नहीं गलती से भी नहीं छूटता था। मसाला धनिया, मिर्च, ट्माटर को ओखली में डालकर मूसल से कूटते थे और फ़िर सिलबट्टे पर चटनी को पिसा जाता था।
बाद में मिक्सी घर पर आ गई तो उसी में चटनी बनने लगी और धनिया पत्ती पहले की तरह ही तोड़ी जाती, बिना डंठल के, पर एक बार चटनी हम बना रहे थे तो धनिया पत्ती तोड़ने में बहुत आलस आता था, कि एक एक पत्ती तोड़ते रहो और फ़िर चटनी बनाओ, हमने धनिया की गड्डी धोई और चाकू से पीछे की जड़ें काटकर नजर बचाकर धनिये की चटनी बना डाली, घर में बहुत शोर हुआ कि लड़का बहुत आलसी है और आज चटनी में धनिये के डंठल भी डाल दिये, अब हम तो समय बचाने की कोशिश में नया प्रयोग कर दिये थे, पर फ़िर उसी में इतना स्वाद आने लगा कि हमारी विधि से ही चटनी घर में बनाई जाने लगी।
चटनी भी मौसम के अनुसार स्वाद की बनाई जाती थी, साधारण धनिये की, पुदीना पत्ती के साथ, कैरी के साथ । मसाले में नमक, लाल मिर्च डालते थे फ़िर बाद में हींग और जीरा का प्रयोग भी होने लगा। प्याज और लहसुन के साथ भी चटनी का स्वाद परखा गया।
हरी मिर्च तीखे के अनुसार कम या ज्यादा डालते हैं, अभी थोड़े दिनों पहले बहुत तीखी चटनी खाने की इच्छा हुई तो खूब सारी मिर्च डाल दी तो उस चटनी में से एक चम्मच चटनी भी नहीं खा पाये। अब सोचा कि कम मिर्च की चटनी बनायें तो पता चला कि मिर्च ही इतनी तीखी है कि ५-६ मिर्च में तो बहुत तीखा हो जाता है। बचपन की याद है ७-८ मिर्च में भी चटनी इतनी तीखी नहीं होती थी तो लाल मिर्च डालते थे।
सिलबट्टे पर चटनी पीसने से बैठकर मेहनत करनी होती थी, परंतु मिक्सी में वह सब मेहनत खत्म हो गई, आँखों में जो मिर्च की चरपराहट होती होगी उसका अहसास ही आँखों में पानी ला देता है। अब तो चटनी बनाते समय आँखों में चरपराहट का पता नहीं चलता है। मिक्सी में तो चटनी बनाते समय बीच में दो बार चम्मच घुमाई और चटनी २-३ मिनिट में बन जाती है, हो सकता है कि चटनी उतनी ही बारीक पिसती हो जितनी कि सिलबट्टे पर, अब याद नहीं, और अब सिलबट्टा है नहीं कि पीसकर देख लें। पर हाँ गजब की तरक्की की है, पहले सिलबट्टे पर पीसने में चटनी का बनने वाला समय कम से कम ३० मिनिट का होता था और अब ज्यादा से ज्यादा ५ मिनिट का होता है।
पर यह तो है कि सिलबट्टे की चटनी का स्वाद अब मिक्सी वाली चटनी में नहीं आता ।
ऑनलाईन भुगतान के लिये ग्राहक का विश्वास रेल्वे ने दिया है (Railway created faith in consumers for online payment and delivery)
पारिवारिक समय का कत्ल कर रहे है अंतर्जाल और फ़ेसबुकिया दोस्त (Facebook and Internet are killing family time)
अभी कुछ समय से अपने ऊपर ही विश्लेषण कर रहा हूँ कि एक बार लेपटॉप पर कुछ थोड़ा सा कार्य लेकर बैठे तो कार्य तो खत्म हो गया, किंतु बाकी का समय फ़ेसबुक, ट्विटर या ब्लॉग पढ़ने में निकल जाता है, और यह समय किस तेजी से भागता है, यह तो सिस्टम ट्रे की घड़ी और सामने दीवार पर लगी घड़ी दोनों बताते रहते हैं।
वर्षों पहले बचपन की सुनहली तस्वीर सामने आती है, जब न बुद्धुबक्सा था न अंतर्जाल तक पहुँचाने वाला ये तकनीकी यंत्र नहीं था, तब लगभग सभी परिवार अपने आप में बेहद मजबूती से बंधे हुए थे, और सबको एक दूसरे के दुख सुख का अहसास होता था, पता होता था। सामाजिक मूल्यों की परिभाषा अलग होती थी और अब सामाजिक मूल्यों की परिभाषा में बदलाव सहज ही देखा जा सकता है।
कल फ़ेसबुक पर बहुत सारे दोस्तों को जो कि केवल फ़ेसबुक दोस्त थे, जो इसलिये बना लिये गये थे कि उनके और हमारे कुछ कॉमन दोस्त थे, हटा रहे थे। दोस्तों की इतनी भीड़ देखकर दंग था और उनके द्वारा जारी किये गये स्टेटसों को भी देखकर, कुछ तो केवल अपनी भड़ास ही निकाल रहे थे और कुछ केवल समय का कत्ल कर रहे थे, तो हमने सोचा कि ऐसे समय का कत्ल करने वाले दोस्तों से पीछा छुड़ाना ज्यादा ठीक होगा, ठीक है थोड़ा सा अपना पारिवारिक समय का कत्ल होगा।
पीछा छुड़ाने से यह फ़ायदा तो होगा जो वाकई में दोस्त हैं उनके दुख सुख में शामिल तो हो सकेंगे उनकी वर्तमान गतिविधियों को देख तो सकेंगे। कल इतने समय फ़ेसबुक पर शायद पहली बार मैंने वक्त गुजारा और देखा कि कुछ लोग तो केवल दोस्त बनाने की होड़ में लगे हैं और सार्वाधिक दोस्त बनाने की होड़ में लगे हैं। केवल अपने मन को तृप्त करने के लिये ?
समय आ गया है कि थोड़ा अपने समय का कत्ल करके ऐसी चीजों से बचा जाये और बेहतरीन समय प्रबंधन कर परिवार को उचित समय दिया जा सके।
बदलते हुए गरबे और डांडिया..
घर के पास ही दुर्गापूजा का पांडाल लगा है, तो पहले ही दिन पूजा में हो आये, जाकर देखा तो इतना बड़ा पांडाल और इतनी सी मूर्ती, खैर अब मुंबई की आदतें इतनी जल्दी भी नहीं जायेंगी। गरबा और डांडिया का तो कहीं आस पास पता ही नहीं है और अगर है भी तो इतनी दूर वह भी रात १० बजे से शुरू होता है और पूरी तरह से व्यावसायिक, जहाँ गरबा के मैदान में जाने का टिकट है, वह भी ५०० रुपये से शुरु।
पहले झाबुआ में थे तो वहाँ असली गरबे का रंग चढ़ा था, और जो गरबे वहाँ देखे और खेले थे वह गरबे और डांडिया बस यादें बनकर रह गये हैं। झाबुआ में लगभग हर कॉलोनी में गरबे डांडिया रास का आयोजन होता था, और सभी लोग गरबे में शिरकत किया करते थे। और कहीं पर भी किसी भी जगह डांडिया खेलने की आजादी होती थी, जरूरी नहीं होता था कि कोई शुल्क दिया जाये या वहीं के रहवासी हों।
परंतु अब तो हर जगह गरबे और डांडिया ने व्यावसायिक रूप ले लिया है, डांडिया दुर्गामाता की आराधना करने का ही एक स्वरूप माना जाता है, परंतु आराधना भी अब सामान्य वयक्ति के बस की बात नहीं रह गई है।
आज भी अच्छॆ से याद है हमारे महाविद्यालय में कार्यालय में कार्यरत राठौड़ साहब इतना अच्छा गरबा गाते थे कि उनकी माँग दूर दूर तक होती थी, जैसे माँ का आशीर्वाद हो उनके ऊपर, उनका सबसे अच्छा गायन लगता था पारंपरिक गरबे पर “पंखिड़ा ओ पंखिड़ा “।
आजकल पारंपरिक गरबे के गाने तो सुनने को मिलते ही नहीं हैं, आजकल फ़िल्मी गानों पर गरबा होता है। खैर पता नहीं कि झाबुआ में भी अब गरबे का स्वरूप व्यावसायिक हो गया हो, परंतु हाँ पुराने दिन तो याद आते ही हैं।
जिंदगी की अनमयस्कता से बाहर आने की कोशिश..
आज बहुत दिनों बाद लिखने की कोशिश कर रहा हूँ, पता नहीं परंतु ऐसा लग रहा था कि दिमाग के साथ साथ लेखन पर भी विराम लग चुका है। खैर अपनी जिंदगी की अनमयस्कता से बाहर आ चुका हूँ और अब वापिस से पटरी पर आने की कोशिश जारी है। न कुछ पढ़ने का मन होता था न लिखने का, यूँ कहें कि कुछ करने का मन नहीं होता था तो ज्यादा ठीक होगा। न किसी से मिलने का, अगर मजबूरी में मिल भी लिये तो मन मारकर मिल लेते कि सामने वाले को बुरा न लगे। खैर जिंदगी में हर तरह के दौर आते हैं, जिसमें सभी तरह की घटनाएँ घटित होती रहती हैं।
जब जिंदगी बेपटरी हो जाती है तो किसी की भूख मर जाती है और किसी को ज्यादा भूख लगती है, हम दूसरे तरह के निकले, इतनी भूख लगती कि जो सामने आता खा जाते। बस खाते रहो और अपने चिंतन की गहराई में गोते लगाते रहो। कभी ऐसा लगता कि मोटापा ज्यादा बढ़ता जा रहा है, परंतु कुछ अपने से ज्यादा मोटों को देखकर थोड़ी चिंता कम होती कि चलो अपने अभी इससे तो कम हैं। खैर यह तो मन को मनाने की बात है परंतु चिंता का विषय भी है, खैर अब दिनचर्या को ठीक करने का प्रयत्न जारी है।
इसी बीच एक अच्छी और ठीक ठाक खबर यह रही कि एक और बीमा लिया तो उन्होंने पूरे शरीर की जाँच करवाई तो अपने शरीर के सारे पुर्जे बराबर पाये गये और उसमें हमें उत्तीर्ण कर दिया गया। खासकर टीमटी में तो दौड़ाकर और चलाकर और फ़िर हृदय को आराम मिलने तक जो प्रक्रिया रही तो हृदय की पूरी जाँच हो गई।
अब फ़िर से लेखन में नियमितता आ पायेगी, ऐसी उम्मीद है, इसी बीच बहुत सारे वित्तीय लेख पढे और बहुत सारे वित्तीय विषयों और प्रबंधन विषयों पर विश्लेषण भी किया अगर वे या कुछ मेरे शब्दों में ढ़ल पाये तो जल्दी ही पोस्ट ठेलायमान होगी।
लेपटॉप पर विन्डोज का हिन्दी सुविधा भी चालू कर ली है, परंतु उसका कीबोर्ड रेमिंग्टन है, क्या हम उसे फ़ोनोटिक में उपयोग कर सकते हैं ? अगर कोई यह बता दे तो अपना एक माह का समय रेमिंग्टन सीखने से बच जायेगा।
अब यह संकल्प भी लिया है कि हर महीने कम से कम एक पुस्तक तो पढ़नी ही है, और अपने मोबाईल पर पीडीएफ़ पढ़ने में थोड़ी तकलीफ़ होती है तो अमेजन किंडल फ़ायर लेने की आग मन में लगी हुई है परंतु अब सोचा जा रहा है कि भौतिक रूप से किताबों को ही पढ़ा जाये और अपनी अलमारी को ही भरा जाये।
सॉफ़्टवेयरों सावधान बयान देने पर अवमानना का नोटिस मिल सकता है
पिछली पोस्ट आखिरकार कम्प्यूटर से वायरस निकलने को सहमत हुए के बाद सदन हरकत में आ गया और जैसे ही कम्प्यूटर को बिजली मिली और बूट हुआ, वैसे ही रैम ने ऑफ़िस सॉफ़्टवेयर पर आरोप लगाया कि कार्य धीमा होने का कारण रैम को करार दिया जा रहा है, जबकि रैम ने आरोप लगाया है कि ऑफ़िस सॉफ़्टवेयर का धीमा प्रदर्शन चलने का कारण वायरस है जो कि उसके अंदर घुसपैठ कर गया है और इसके लिये एन्टीवायरस की जरूरत है।
रैम ने अपने ऊपर आरोप लगाने पर सदन में विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव रखा और सदन में उसे पारित कर दिया गया नहीं तो कल नोटपैड और वर्डपैड्र जैसे छोटे सॉफ़्टवेयर जो कि खुद के ही घर के हैं वे भी आरोप लगाने लगेंगे।
तो सारे सॉफ़्टवेयरों सावधान, अगर किसी ने भी हार्डवेयर पर आरोप लगाया तो सदन में विशेषाधिकार का प्रस्ताव पारित किया जा सकता है।
ये अलग बात है कि कैश मैमोरी ने प्रोसेसर की कूलिंग पर ही सवाल खड़े कर दिये हैं, ज्ञात रहे कि प्रोसेसर कम्प्यूटर राष्ट्र के प्रथम नागरिक हैं, परंतु रैम की इतनी हिम्मत कहाँ कि कैश मेमोरी के खिलाफ़ प्रथम नागरिक को सफ़ेद हाथी कहने पर विशेषाधिकार हनन कर सदन में अवमानना का नोटिस जारी करने की हिम्मत हो।
होगेन्नाकल जलप्रपात अप्रितम सौंदर्य (Hogenakkal Fall)
आखिरकार कम्प्यूटर से वायरस निकलने को सहमत हुए
पिछले ६४ वर्षों से कम्प्यूटर में वायरसों ने अपनी पैठ बना ली थी और घूस तंत्र जबरदस्त तरीके से तैयार कर लिया था, पर आखिर कार आम सॉफ़्टवेयर और हार्डवेयर की जबरदस्त माँग और अनशन के मद्देनजर सभी घूसखोर डिवाईसों ने आश्वासन दिया है कि इसके लिये एक एन्टीवायरस तैयार किया जायेगा।
जब कम्प्यूटर बनाया गया था तब उसमें बहुत कम चीजें थीं पर जैसे जैसे जरूरत पड़ती गई, वैसे वैसे नई डिवाइसों के अविष्कार होते गये जैसे सीडी, डीवीडी, पेनड्राईव, माऊस इत्यादि। अविष्कार तो इनका किया गया था कि ये आम आदमी की जरूरतों को पूरा करेंगे और कम्प्यूटर को पूर्ण सहयोग करेंगे, उस समय यह न सोचा गया था कि ये सभी घूस नामक वायरस से प्रभावित हो जायेंगे। सोचा गया था कि कोई सा भी ऑपरेटिंग सिस्टम होगा उनके साथ सहयोग करेंगे।
परंतु कालांतर में घूसखोरी बड़ती गई और अब ये हालात हो गये थे कि सीडी ड्राईव रीड करने के पहले घूस मांगती है, डीवीडी ड्राईव सीडी रीड करने से मना कर देती है, कह देती है कि लैंस ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, परंतु घूस पकड़ाते ही सारे लैंस अपने आप ठीक हो जाते हैं और फ़्लॉपी भी रीड करने को तैयार करने को हो जाती है ये डीवीडी ड्राईव । भले ही फ़्लॉपी लगाने की जगह नहीं हो परंतु फ़्लॉपी रीड करने का भी वादा कर लेगी ये डीवीडी ड्राईव। पेनड्राईव ने डाटा कॉपी करने से मना कर दिया, पेनड्राईव कहती है कि पहले घूस दो नहीं तो मैं कम्प्य़ूटर को करप्ट दिखने लगूँगी, तो हम कहते चिंता मत कर हम तुझे फ़ोर्मेट कर देंगे, तो पेनड्राइव हँसकर बोली कि तुम्हारा डाटा चला जायेगा जो पहले से तुमने मेरे अंदर स्टोर कर रखा है, चुपचाप घूस दे दो और अपना काम करो, नहीं तो करना फ़िर मेहनत, फ़िर डाटा के लिये भागते रहना इधर उधर।
वो तो भला हो रैम का जो आजकल घूस नहीं मांगती, रैम बेचारी को विन्डोज के भारीभरकम सॉफ़्टवेयरों ने इतना काम दे दिया है कि उसे सर उठाने की फ़ुरसत ही नहीं मिलती। यही हाल प्रोसेसर का है, बेचारा भाग भागकर कैलकुलेशन करता रहता है, और घूस के चक्कर में सोच ही नहीं पाता है, वैसे सही भी है जो मेहनत ज्यादा करता है उसी को ज्यादा काम भी दिया जाता है जिससे कम से कम संस्था की साख बची रहती है, ये तो मानेंगे कि रैम और प्रोसेसर के दम पर ही कम्प्यूटर संस्था की साख बची हुई है।
सबसे जबरद्स्त घूसखोर थी 1.44” की फ़्लॉपी ड्राईव, इतनी जबरदस्त कि अगर घूस न दी तो बिल्कुल काम ही नहीं करती थी यहाँ तक कि फ़्लॉपी अंदर तक लेने से मना कर देती थी, और तो और आलम यह था उसकी घूसखोरी का कि घूस खाने के बाद भी फ़्लॉपी पर रीड और राईट करने का अधिकार उसी का था, मर्जी होगी तो करेगी नहीं तो नमस्ते, पैसे भी गये और डाटा भी।
आखिरकार रैम और प्रोसेसर ने दम दिखाया और एकता जगाई और कम्प्य़ूटर के सारे आम पार्ट्स इकट्ठा हुए और उन्होंने अनशन शुरू कर दिया, परंतु कम्प्यूटर ने उनकी सुनने से मना कर दिया कह दिया कि हमारे पास एक्स्ट्रा रैम नहीं है हार्ड डिस्क नहीं है हम आपकी माँगे नहीं मान सकते और छोटे ब्यूरोक्रेट्स की तो बिल्कुल भी नहीं, पर कम्प्यूटर के आम पार्ट्स मानने को तैयार नहीं थे और उन्होंने मदरबोर्ड पर ही धरना देना शुरू कर दिया। कम्प्यूटर को लगा कि ये मान जायेंगे परंतु जब देखा कि प्रोसेसर से रैम तक निकलने वाले घूसखोरी मुहीम के आंदोलन में आम पार्ट्स की संख्या बड़ती ही जा रही है, तब जाकर कम्प्यूटर को चिंता हुई और उन्होंने अपने सदन को बुलाया और अनशनकारियों से बात करना शुरू की, तो कीबोर्ड और माऊस जो कि कम्प्यूटर की तरफ़ से बातें कर रहे थे वे जब मर्जी होती अनशनकारियों से बातचीत में धोखा देते, पर आम पार्ट्स के आंदोलनकारियों की संख्या देखकर आखिरकार कम्प्यूटर को झुकना ही पड़ा।
इसी बीच कई मध्यस्थ आये बहुत सारे व्यवसायी अपने अपने एन्टिवायरस लेकर आये परंतु अनशनकारियों की माँग थी कि ऐसा एन्टीवायरस बने जो कि किसी भी प्रकार के घूस के वायरस से निपटने में सक्षम हो, और आखिरकार कम्प्य़ूटर सदन में ध्वनिमत से घूस के एन्टीवायरस के लिये प्रस्ताव पारित हो गया है। अनशनकारियों का आंदोलन खत्म हो गया है। और चारों तरफ़ खुशियों का माहौल है, विन्डोज के सारे वर्शन खुश हैं कि अब मुझे काम करने के लिये ज्यादा जगह मिलेगी और इसी खुशी में विन्डोज ने अपना स्क्रीनसेवर चला दिया है जिसमें से रंगबिरंगी आतिशबाजी चालू है।
परंतु घूसखोरी चालू है, क्योंकि अभी तो एन्टीवायरस कौन सा हो और कैसे काम करेगा इस पर आखिरी मोहर कीबोर्ड और माऊस की समिती को लगाना है जो कि चारा, कैश रकम देना और २ जी जैसे बड़े बड़े घोटालों में लिप्त हैं। अब देखते हैं कि कौन सा एन्टीवायरस लाया जाता है और इस घूसतंत्र से निपटने में कितनी आसानी होती है और कम्प्यूटर अच्छी तरह से काम करने लगता है।