Tag Archives: आमहित

बहुत दिनों के बाद हिन्दी….

आज बहुत दिनों के बाद हिन्दी टाईप करने के लिये सिस्टम मिला है नहीं तो क्लाइंट साईट पर या तो टाईम नहीं होता या फिर सिस्टम में नया साफ्टवेयर संस्थापित करने के लिये पर्याप्त राइट्स नहीं होते हैं।

हमें यह‍ दिल्ली में पडे़ हुए पूरे 4 महीने होने आये हैं ओर अगले दो महीने और बाकी हैं मुंबई जाने के लिये। अच्छा यह रहा कि दिल्ली में ज्यादा गरमी नहीं पड़ रही है थोड़ा मौसम ठीक है, क्योंकि पहले ही बेमौसम बरसात हो चुकी है। पर वह्‍ मुंबई में बरसात अपना रंग दिखा रही है और हम वह लुत्फ़ नहीं ले पा रहे हैं।

यह्‍ तो दिनभर काम करने के बाद बस बिस्तर ही नजर आता है और ताजा समाचार या तो फोन पर घ़रवाली बताती है या फिर सुबह समाचार पत्र ।

रोज सुबह होटल में या तो बटर टोस्ट खा लो या फिर आलू परांठा, दोपहर में कनाट प्लेस में बनाना लीफ में साउथ इंडियन, पंजाबी ढाबे का प्योर तेल वाला पंजाबी खाना या फिर राजमा चावल। अब तो हालत यह हो गयी है कि घर का खाना खाने से हाजमा खराब हो जाता है। पर हां शाम को करोलबाग या चांदनीचौक चले जाओ तो दिल्ली की चाट का आनंद ले लो नहीं तो दिन मे छोले कुल्चे, दही भल्ले भी बुरे नहीं हैं।

दुनिया में बड़ी बड़ी खबरें हो गयीं पर हम उन पर चिंतन नहीं कर पाये वैसे भी चिंतन करके हम कर क्या लेते। जैसे कि कच्चे तेल का भाव 145 $ हो गया, शेयर मार्केट अपने निम्नतम स्तर पर, सोने का दाम आसमान पर, महंगाई और न्यूक्लियर मुद्दे पर लेफ्ट का बबाल, सरकार पर खतरा, अमरनाथ श्राईन बोर्ड भूमि विवाद इत्यादि । किंतु हां हम दुनिया से थोडे बहुत जुडे हुए हैं।

बहुत दिनों बाद लिखा है आज ही कैफे हिन्दी से डाउनलोड किया है, पहली बार लिख रहा हूं मात्राओं की गल्ती के लिये क्षमा चाहता हूं।

बाजार १८,००० की तरफ़, जोखिम में निवेशक

बाजार १८,००० की तरफ़ बढ गया है और अगर एक बार यह १८,००० को पार कर जाता है तो शायद यह २२,००० पर जाकर रुकेगी, पर इन सब गतिविधियों पर सरकार एवं सेबी को नजर रखना चाहिये कि कहीं छोटे निवेशक इसमें डूब न जायें। केवल वित्तमंत्री द्वारा चेतावनी जारी करने से काम नहीं चलेगा कि आम निवेशक ध्यान से निवेश करें, अरे निवेशक को पता है कि बाजार में जोखिम है पर उसके हितों की रक्षा करना सरकार का कर्तव्य है जिससे आम निवेशक जोखिम का सही आंकलन कर निवेश करने की हिम्मत करे ।

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हमारी रेल संस्कृति

हमारे देश भारत में रेल का महत्व सर्वविदित है, नीचे दर्जे के अफसर से लेकर मंत्रियों संतरियों तक पद की मारामारी होती है अपने प्रभाव के लिये नहीं, उनका उद्देश्य तो सिर्फ धन कमाना है फिर भले ही वह रेलवे पुलिस का अदना सा सिपाही हो या टिकिट चेकर, कलेक्टर हो या फिर कोई बाबू हो या ऊपर ……… कहने की जरुरत नहीं आप खुद ही समझ जाइये आज भी मध्यमवर्गीय समाज इतना सक्षम नहीं हुआ है कि वातानुकुलित कोच में यात्रा कर सके वह तो सामान्य शयनयान में ही यात्रा करता है, फिर भले ही लालूजी ने “गरीब रथ” चला दिये हों, पर फिर भी मध्यमवर्गीय समाज की सोच वही रहेगी, वह भी सोचेगा क्यों आदत बिगाडें भले ही आप आरक्षण करवा लें परंतु आज भी कुछ मार्गों पर दुर्भाग्यपूर्ण स्थिती है कि कोई और ही आपकी सीट पर कब्जा किये मिलेगा, बेचारे टी.सी. का चेहरा देखकर ऐसा लगेगा कि यह तो उसके लिये भी चुनौती है उसके पास अधिकार तो कहने मात्र के लिये हैं टी.सी. की मेहनत और कर्त्तव्यता किसी को नहीं दिखती बस सभी लोग उसकी कमाई को देखते हैं तो अरे भैया कुछ पाने के लिये कुछ खोना तो पडता ही है भ्रष्टाचार व कार्य में अनियमितता तो सरकारी तंत्र का पर्याय बन गई है, और हमारी रेल भी तो सरकारी है रेल विभाग में भ्रष्टाचार के सामान्य दैनिक उदाहरण जो कि लगभग सभी के साथ बीतते हैं …
१. R.P.F. के सिपाही ने एक व्यक्ति को पटरी पार करने के जुर्म में पकडा और कहा मजिस्ट्रेट सजा सुनायेंगे, पर ये क्या सिपाही थाने पहुँचा तो अकेला, क्योंकि वह व्यक्ति तो इनकी जेब गर्म करके जा चुका था
२. रेल विभाग की खानपान सेवा चाय लीजिये ५ रु., खाना ३५ रु., चिप्स १२ रु., कोल्डड्रिंक २२ रु., की और टैरिफ कार्ड मंगाओ तो पता चलता है कि पेंट्री मैनेजर आता है और कहता है साब बच्चे से गलती हो गई क्योंकि सभी में २‍ या ३ रु. तक ज्यादा ले रहे हैं अच्छी कमाई करते हैं ये खानपान वाले भी
३. शादी का सीजन है और आरक्षण उपलब्ध नहीं है, वैसे तो आफ सीजन में भी नहीं मिलता, अगर हम आरक्षण खिडकी पर पूछेंगे तो जबाब मिलेगा वेटिंग है और वहीं खडे एजेन्ट से कहेंगे तो वह नजरों में आपको तोलकर आपकी कीमत बता देगा जो कि १०० से ८०० रु. तक होती है पर ३०० रुपये शायद सबका फिक्स रेट है और आपको आरक्षित सीट का टिकट मिल जायेगा भगवान जाने रेल विभाग ने कैसा साफ्टवेयर बनवाया है कि उसमें भी सेटिंग है
४. रेल का जनरल टिकट ले लिया और फिर पहुँच गये सीधे रेल पर तो आरक्षण के लिये मिलिये टी.सी. महोदय से, वो कहेंगे सीजन चल रहा है, सेवा पानी करना पड़ेगी और बेचारे वेटिंग वाले वेट करते रह जाते हैं अगला आदमी सेवापानी करके सीट पर काबिज हो जाता है
यह तो महज कुछ ही उदाहरण हैं, हमारी रेल अगर समय पर आ जाये तो गजब हो जाये, आती है हमेशा लेट और अब तो आदर हो गई है, और तो और खुद रेल विभाग को नहीं पता होता कि कितनी लेट है २० मिनिट कहते हैं आती है २घंटे में
हे भगवान मैं थक गया लिखते लिखते पर रेल की महिमा ऐसी है कि खत्म ही नहीं होती, यही तो है हमारी रेल संस्कृति …….