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ये वॉचमेन को सारे बच्चे “मामा” क्यों बोलते हैं ? असुरक्षा की भावना पर एक प्रश्न … सभी के लिये …

    आज बाजार जाते समय हम जैसे ही अपनी बिल्डिंग से बाहर निकलने लगे तभी वॉचमेन के पास कोई बच्चा आया और मामा कहकर कुछ बात कहने लगा। तो हमारी पत्नी जी ने हमारी तरफ़ मुखतिब होते हुए बोला कि ये सारे बच्चे लोग वॉचमेन को मामा क्यों कहते हैं। अनायास ही हमारे मुँह से इसका क्या जबाब निकला होगा …

जरा अंदाजा लगाईये….






जिससे इनकी मम्मी सुरक्षित रहें !!!

बात मजाक की हो गई, (कृप्या महिला मंडल इस पर कोई बबाल न करे और आपसी पति पत्नी की नोंकझोंक मानकर भुला दे)

परंतु अगर मजाक की बात छोड़ दी जाये तो वाकई यह एक ज्वलंत प्रश्न है कि हम हमारे बच्चों को मामा बोलना क्यों सिखाते हैं, क्या यह हमारी असुरक्षा की भावना को कम करता है या कुछ और….. ?

पानी की विकराल समस्या और व्यक्तिगत रुप से पहल जरुरी, प्रतिबद्धता दिखाना पड़ेगी

    पानी याने कि जल हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है, पानी अगर समाज में सौहार्द और समृद्धि लाता है तो उसके उलट याने कि पानी न होने की दशा में पानी समाज का सौहार्द बिगाड़ता भी है और रही बात समृद्धि की तो बिना सौहार्द किसी समाज में समृद्धि नहीं आ सकती।

    जीवित प्राणियों की संख्या धरती पर दिनबदिन बड़ती ही जा रही है और साथ ही पानी की खपत भी, हम पानी की खपत करने में हमेशा से आगे रहे हैं परंतु पानी को बचाने में या पानी को कैसे पैदा किया जाये उसके लिये प्रयत्नशील नहीं हैं। अगर हम लोग इस दिशा में प्रयत्नशील नहीं हुए तो जिस भयावह स्थिती का सामना करना पड़ेगा वह कोई सोच भी न पायेगा।

    आज अगर लूट भौतिकतावादी वस्तुओं की है जो कि विलासिता की श्रेणी में आती हैं, अगर हम लोग पानी को बचाने में सफ़ल नहीं हुए तो पानी भी जल्दी ही विलासिता की श्रेणी में शुमार हो जायेगा। सब कहते हैं, नारा लगाते हैं जल ही जीवन है, जल बिन सब सून, जल अनमोल है। परंतु उपयोग करते समय शायद यह सब भूल जाते हैं और अपने अहम को संतुष्ट करने के लिये पानी का दुरुपयोग करते हैं।

    अपनी इच्छाशक्ति की कमी के चलते हुए ही हम पानी के दुरुपयोग को रोक नहीं पा रहे हैं, अगर आज भी ईमानदारी से जल के क्षरण को रोक लें । प्रण करें कि जितना पानी हम रोज उपयोग कर रहे हैं, उसे अनमोल मानते हुए बचायें और पूरे समाज के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करें। जितना पानी का उपयोग आज कर रहे हैं, कोशिश करें कि उसका आधा पानी में ही अपनी सारी गतिविधियों को समाप्त कर लिया जाये।

    नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब पानी के लिये तरसना होगा और ये पानी की टंकियां और पानी के पाईप हमारी धरोहर होंगी, हमारी आगे की पीढ़ियाँ पानी के उपयोग से वंचित हों। आज हमारे लिये उस भयावह स्थिती का अंदाजा लगाना बहुत ही कठिन है, क्योंकि हमारे पास पानी है। उस समय हो सकता है कि पानी केवल आर्थिक रुप से संपन्न लोगों की बपौती बनकर रह जाये और वे पानी को बेचकर उसके बल पर ही आर्थिक रुप से संपन्न हों, जैसे रेगिस्तान में पानी के कुओं से पानी बिकता है वैसे ही इस शहरी सभ्यता में भी पानी बिकने लगे। जो कि मानव सभ्यता के लिये बहुत बड़ा सदमा होगा।

“ऐ मिडम इधर का सेठ किधर है, अपुन के भाई को बात करने का है”

     कभी कभी कुछ पुरानी यादें चाहे अनचाहें अपने आप जहन में आ जाती हैं, और उसमें हास्य का पुट भी होता है तो गंभीरता भी। ऐसी ही एक बात हमें हमारे पढ़ाई के समय की याद आ गई, हम कम्प्यूटर कोर्स कर रहे थे और उस समय कम्प्यूटर कोर्स करना एक फ़ैशन जैसा था कि अगर कॉलेज में पढ़ने वाले ने कोर्स नहीं किया तो उसका जीवन ही बेकार है या बेचारा अनपढ़ ही रह गया। हालांकि जॉब के तो दूर दूर तक अते पते नहीं थे कि इस कोर्स करने से क्या फ़ायदा होने वाला है, परंतु कम्प्यूटर संस्थानों का शायद वह स्वर्णिम युग था, खूब पैसा कमाया सारे संस्थानों ने उस स्वर्णिम काल में।

    हम भी एक नामी संस्थान में डिप्लोमा कोर्स कर रहे थे, और फ़ीस इतनी कि सुनकर अच्छे अच्छे फ़न्ने खाँ को पसीना आ जाये, और जॉब के नाम पर कोई ग्यारण्टी नहीं। हमारे जूनी उज्जैन के कुछ इलाके हैं जो कि अपने आप में बहुत प्रसिद्ध हैं जैसे कि सिंहपुरी, तोपखाना, गुदरी इत्यादि। उस जमाने में तो इन इलाकों के नाम से ही दहशत टपकती थी, हालांकि सिंहपुरी विद्वत्ता के लिये भी प्रसिद्ध है और रहा है।
    
    सिंहपुरी पंडितों की बस्ती है जहाँ अभिवादन की परंपरा भी निराली है, अगर दूसरे से हाल पूछना है तो पूछेंगे देवता कई हालचाल हैं, आशीर्वाद तो हैं नी मालवी भाषा के साथ, वहीं इस इलाके में सिंह लोगों का भी निवास था जो कि कर्म से सिंह थे याने कि धर्म से सिंह और धर्म की रक्षा हेतु हमेशा तत्पर ।

    हमारे संस्थान में एक लड़की पढ़ती थी जो कि किसी सिंह की बहन थी और संस्थान ने उससे कुछ वादा किया होगा कि कम फ़ीस लेंगे या कुछ ओर हमें ज्यादा जानकारी नहीं है, तो संस्थान में उस लड़की का कुछ विवाद चल रहा था। हमारी क्लास का समय सुबह ७ बजे होता था हम हमारी क्लास में अध्ययन कर रहे थे और हमारी क्लास जो कि बिल्कुल मुख्य द्वार के सामने थी, जहाँ से हम मुख्य द्वार की सारी गतिविधियों पर नजर रख सकते थे।

    माधव कॉलेज स्टाईल (ये भी बतायेंगे किसी ओर पोस्ट में) में १०-१२ लड़के धड़धड़ाते हुए संस्थान में घुस आये और सोफ़े पर धँस गये और जो वहाँ बैठे थे उन्हें उठाकर संस्थान से बाहर जाने का इशारा कर दिया गया तो बेचारे चुपचाप बाहर निकल गये। और एक चमचा स्टाईल का बंदा हाथ में हथियार लहराते हुए संस्थान में किससे बात करनी है उसे ढूँढ रहा था कि उसे एक केबिन में एक मैडम दिखाई दीं तो वहीं चिल्लाकर बोला ऐ मिडम इधर का सेठ किधर है, अपुन के भाई को बात करने का है। फ़िर मैडम ने जैसे तैसे उन सबको शांत किया और सर को बुलाकर लाईं और बंद केबिन में कुछ शांतिवार्ता हुई, और वापिस से सिंह लोग माधव कॉलेज स्टाईल में बाहर निकल गये।

पर सिंहपुरी के सिंहों का वाक्य आज भी जहन में गूँजता है तो बरबस ही उसमें हमें हास्य का पुट मिलता है।

“पत्नि कौन है”, “पति कौन है” एक वाक्य में एस.एम.एस. द्वारा अभिव्यक्ति

    आज सुबह उठने के बाद मोबाईल में झांका तो पाया एक एस.एम.एस. हमारा इंतजार कर रहा है, जो कि सही मायने में “पत्नि कौन है”, “पति कौन है” एक वाक्य में अभिव्यक्ति है।

    हमने भी मनन किया, कब ? (आज सुबह घूमते समय आज कान में कानकव्वा न लगाकर सोचने के लिये समय दिया और इसलिये कानकव्वे द्वारा सुनने वाला लेक्चर भी आज मिस हो गया )और पाया कि वाकई बात तो सही है।

“पत्नि कौन है” – पत्नि वो है जो पति को टोक टोक कर उसकी सारी आदतें बदल दे और फ़िर कहे “तुम पहले जैसे नहीं रहे।”

“पति कौन है” – पति वो है जो पत्नि को टोक टोक कर उसकी आदतें बदलना चाहता है और फ़िर कहे “तुम कभी बदल नहीं सकतीं।”

क्या यह एक वाक्य की अभिव्यक्ति सही है, आप भी अपने विचार बैखोफ़ होकर लिखें, अपनी पत्नि या पति से !!!

बिजनेस वर्ल्ड के ५ अप्रैल के अंक के साथ माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस और टूल्स की मुफ़्त डीवीडी

कल हमने बिजनेस वर्ल्ड का ५ अप्रैल का अंक लिया तो साथ में मिली माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस और टूल्स की मुफ़्त डीवीडी।

निम्न सॉफ़्टवेयर उपलब्ध हैं इस डीवीडी में –
१.  माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस २०१०
२. शेयर पाईंट २०१०
३.  माइक्रोसॉफ़्ट प्रोजेक्ट २०१०
४.  माइक्रोसॉफ़्ट विसियो २०१०
५. विन्डोज एक्स पी एस.पी. ३
६.  माइक्रोसॉफ़्ट सिक्योरिटीज एसेन्शियलस
७. इंटरनेट एक्सप्लोरर ८
८. विन्डोज लाईव एसेन्शियलस

आज ही अपनी प्रति खरीद लें और अपना कम्प्य़ूटर अपडेट कर लें।

खुशखबरी !!! संसद में न्यूनतम वेतन वृद्धि के बारे में वेतन वृद्धि विधेयक निजी कर्मचारियों के लिये विशेषकर (About Minimum Salary Increment Bill)

    वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने एक विधेयक पारित किया है जो कि २०१०-२०११ वित्त वर्ष से प्रभावी होगा, जिसमें यह कहा गया है कि सभी निजी कंपनियाँ अपने कर्मचारियों को हर छ: माह में कम से कम ८ % की वेतनवृद्धि देनी होगी।  यह सब हुआ एक याचिकाकर्ता की याचिका से जिसमें यह कहा गया था कि निजी कंपनियों में काम के घंटे बढ़ते ही जा रहे हैं और समय से ज्यादा कार्य करने पर किसी सुविधा और भत्ते का भुगतान नहीं किया जाता है। इस विधेयक में यह भी कहा गया है कि सभी कर्मचारियों के लिये हर साल कम से कम २५ आकस्मिक छुट्टी प्रदान की जायें।
    सभी निजी कंपनियों की सूचि नीचे दी गई है जिनको इस विधेयक के कार्यांवयन के पहले दौर में लाया गया है, अगर आपकी कंपनी भी इस सूचि में है तो कृप्या यह ब्लॉग लिंक अपने मित्रों, सहयोगियों को भेजकर उनको भी इस बारे में जागरुक करें।

टकलापुराण और टकले होने के फ़ायदे रोज ४० मिनिट की बचत

    पिछले महीने हम तिरुपति बालाजी दर्शन करके आये थे तो बालाजी को अपने बाल दे आये थे, और तब से हमने सोचा कि अब बस ऐसे ही रहेंगे मतलब गंजे याने कि टकले। पहले कुछ अजीब सा लगा पर अब सब साधारण सा लगने लगा है।



    जब हम वापिस मुंबई आये और अपने पास वाले ए.सी. सैलून में गये और बोले कि जरा हेड क्लीन शेव कर दीजिये पहले तो सैलून वाला हमें प्रश्न भरी दृष्टि से देखता रहा फ़िर वापिस से उसने पूछा कि क्या करना है तो हम शुद्ध हिन्दी में बोले टकली करनी है, याने कि हेड क्लीन शेव

    वो अपना सिर खुजाते हुए अपने सैलून के मालिक से मुखतिब हुआ और आँखों में ही उससे पूछा कि क्या अजीब ग्राहक है और कैसे इन भाईसाहब की टकली करुँ। तो वह खुद आ गया और फ़िर हमारे सिर पर पहले तो पानी का स्प्रे किया और फ़िर जिलेट का फ़ोम हाथ में लेकर पूरे सिर पर लगा दिया और फ़िर उस्तरे में नया आधा ब्लेड लगाकर पूरे सिर की शेव करना शुरु कर दिया, एक बार और यही प्रक्रिया दोहराई गई, फ़िर आफ़्टर शेव लगाया तो थोड़ी से जलन हुई पर अच्छा लगा। उसी समय हमारी ही बगल में एक मोटे से थुलथुल से नौजवान जो कि लगभग ४० वर्ष के होंगे, हमारे टकलापुराण को देख रहे थे और अपनी भैया वाली भाषा में बोले भाई साहब आपको देखकर हमें भी इन्सपीरेशन मिल रही है कि कम बाल होने पर बालों को सँवारने से अच्छा है कि उन्हें गायब ही कर दिया जाये।

    कोई जान पहचान वाला मिले तो वो पूछते ही रह जायें आल इज वेल, तो हम कहते कि जी हाँ आल इज वेल, यह तो हमारी नयी हेयर स्टाईल है। तो अब तक हम तीन बार सैलून पर टकलापुराण करवा चुके हैं और गंजे होने के फ़ायदे पर विश्लेषण बता रहे हैं –

  1. १.  १.  रोज सुबह उठने के बाद १० मिनिट की बचत, क्योंकि जब सोकर उठते हैं तो हमेशा बाल बेतरतीब ही रहते थे और सुबह की सैर पर जाने के पहले बाल धोकर फ़िर सुखाकर अच्छे से कंघी करना पड़ते थे।
२. 

  1. २.  २. नहाते समय शैम्पू की बचत और नहाने के बाद बाल सुखाने का समय, तेल की बचत और कंघी न करना। इन सबका समय हुआ लगभग १५ मिनिट।

  1. .३ ३. फ़िर दिनभर २-४ बार कंघी करना और बालों के प्रति चिंतित रहना कि कैसे हो रहे हैं, लगभग १० मिनिट की बचत।

  1. ४. ४.  शाम को घर पहुँचकर वापिस से बालों को सँवारने का समय लगभग ५ मिनिट।

  1. ५. ५.  हर १५-२० दिन में बालों को रंग करना क्योंकि बाल सफ़ेद हो गये हैं, बचत लगभग १ घंटा ।

तो तो आप ही बताईये कुल मिलाकर अगर टकले रहकर ४० मिनिट की बचत होती है तो कैसा है, आप भी इस बात पर ध्यान दीजिये और अपने अनुभव बताईये।

रपट आ चुकी है कुछ चीजें ठीक नहीं है पर अधिकतर चीजें ठीक हैं, मानवीय संवेदनाएँ मर चुकी हैं…. क्या ??

    आप सभी लोगों ने मुझे इतना संबल दिया मैं तो अभिभूत हो गया इतना प्रेम मिला और आप सभी की दुआओं और आशीर्वाद की बदौलत मैं आज बिल्कुल ठीक महसूस कर रहा हूँ। पाबला जी ने तो फ़ोन पर ही मुझे इतना हँसाया कि मैं तो सोचता ही रह गया कि जिनसे आज तक मिला नहीं, उनसे इतना अच्छा रिश्ता, जरुर यह “राज पिछले जनम का” में ही पता चलेगा, कि सभी ब्लॉगर्स से इतना अपनापन क्यों है।
    कुछ चीजें ठीक नहीं हैं पर अधिकतर चीजें ठीक हैं, मतलब कि अब जो थोड़ी सी समस्या बची है वो भी नियमित दिनचर्या के बीच ठीक हो जायेगी। तो अब सुबह नियमित सुबह घूमने जाना और व्यायाम हम अपनी दिनचर्या में शुरु कर रहे हैं, पोस्टों की संख्या अब कम होने लगेगी, कोशिश करेंगे कि नियमित लिखें और टिपियायें भी। समय प्रबंधन कुछ ओर बेहतर तरीके से करना पड़ेगा। जिससे सभी गतिविधियों के लिये समय निकाल पायें और पर्याप्त समय दे पायें।
मानवीय संवेदनाएँ मर चुकी हैं…. क्या ??
    आज थोड़ी देर के लिये कहीं बाहर गया था बहुत ही व्यस्त मार्ग था, और सभी लोग अपने अपने ऑफ़िस जाने की आपाधापी में भागे जा रहे थे। तभी किसी चारपहिया वाहन ने एक पैदल यात्री को टक्कर जोर की मार दी, पर भगवान की दया से तब भी वह पैदल यात्री बच गया परंतु उसके बाद जो हुआ वह बहुत बुरा हुआ।
    चारपहिया वाहन का चालक ने किसी चीज से उस पैदल व्यक्ति के ऊपर आघात कर दिया और उसके सिर से खून बहने लगा। बस फ़िर क्या था जाम हो गया और वाहनों की दोनों ओर से लाईन लग गयी, कुछ पैदल यात्री उसका साथ देकर चालक को जुतियाने लगे। जब तक हम पहुँचे तब तक केवल जाम था, सब घटित हो चुका था और हमें किसी चलते हुए पैदल यात्री ने सड़क पार करते हुए यह कथा सुनाई। क्या हमारी मानवीय संवेदनाएँ वाकई मर चुकी हैं… क्या ??? हो गया है हमें.. कि दूसरे के खून को देखकर हमें कुछ होता ही नहीं है।

होली अपने बेटे के साथ -[ कुछ मेरे बारे में ]- यायावर सी जिंदगी से थक गया हूँ – मेरी कविता …. विवेक रस्तोगी

यह होली मेरी दूसरी होली होगी जो मै अपने बेटे के साथ मनाऊँगा| इसके पहले होली हमने मनाई थी साथ में ३ साल पहले आज मेरा बेटा ५ साल का हो चुका है| इस वर्ष पता नहीं कि वह होली खेल भी पायेगा कि नहीं क्योंकि अभी अभी बुखार से उठा है पिछले २०-२५ दिनों से उसकी तबियत ज्यादा ही खराब थी| अभी भी उसकी तबियत ठीक नहीं है और मुझे उसकी बहुत ही चिंता हो रही थी| पर मैं इधर चेन्नई मैं था और मजबूरी का मारा इधर ही काम कर रहा था, सोच रहा हूँ कि ऐसा कब तक चलेगा, कब तक नौकरी करता रहूँगा और इस तरह घूमता रहूँगा |

बस अब मैं सेवानिवृत्ति चाहता हूँ, और अपना जीवन आध्यात्मिक गतिविधियों में समर्पित करना चाहता हूँ | अपने खुद के लिए कुछ करना चाहता हूँ कब तक इन सांसारिक मोह माया के पीछे भागता रहूँगा|

यायावर सी जिंदगी से थक गया हूँ
आओ देखो अभी तक कैसे
मैं जी रहा हूँ
मेरे जीने के लिये
और भी मकसद हैं
केवल भूख मारना ही नहीं
और भी बहुत कुछ जो
मैं पाना चाहता हूँ
देना चाहता हूँ |

खैर अभी तक जो सोचा वो नहीं हुआ अब देखते हैं शायद हो जाये और हर वर्ष होली अपने बेटे के साथ खेल पायें| बाबा महाकाल के साथ होली खेल पायें और मन में बड़ी इच्छा है कि बांके बिहारी जी के यहाँ खेल पायें होली |

तो ये था अभी का चिट्ठा, अब शुरू होगा धमाल “होली” का |