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कोलकाता के बंगाली डॉन क्यों नहीं होते…… ?

यह संस्मरण किसी भाषा या किसी क्षेत्र की बुराई नहीं करता है, और न ही इस मकसद से लिखा गया है, यह हमारे मित्र के साथ हुई एक सुखद याद है, संस्मरण है, किसी विवाद का विषय न बनायें, कोई बंगाली भाई बुरा न माने।

    हम पहले जिस कंपनी में कार्यरत थे उसी में एक लड़का कोलकाता से आया था, और हमारे ही कमरे में ठहरा था, उसे उसका मामा छोड़ने आया था, बंगालियों में प्रथा होती है कि अगर लड़का पहली बार बाहर जा रहा होता है तो कोई बड़ा छोड़ने जाता है। ऐसा उसने हमें बताया। हमने उससे कहा कि भई ये कंपनी का गेस्ट हाऊस है यहाँ तुम्हारे अंकल नहीं रुक सकते हैं। तो वो ऐसे ही हमसे बहस करने लगा। हमने उसे समझा दिया बेटा न तुम रह पाओगे और न तुम्हारे साथ तुम्हारे मामा। चुपचाप रह लो और इनको जल्दी से घर भेज दो, तुम्हारे घर वाले इनके लिये परेशान हो रहे होंगे।

    जब उसके मामा चले गये तब तो उसने बहुत ही परेशान कर दिया, बोलता क्या था और हमें समझता क्या था, वो बंगाली बाबू कहता था, हम रोटी खाता है और चाय भी खाता है, बस हमारे तो दिमाग की दही कर रखी थी।

    एक दिन ऐसे ही शाम को किसी बात पर गुस्सा आ गया अरे भई हमें नहीं उसे वो भी हमारे ऊपर। अंट शंट बोलने लगा, अब बेचारे को थोड़ी बहुत हिन्दी आती थी और अंग्रेजी भी ज्यादा नहीं आती थी। वैसे भी जब इंसान को गुस्सा आता है तो अपनी मातृभाषा में या जिस भाषा पर उसका ज्यादा अधिकार होता है, उसी में गाली बकने लगता है, अंट शंट बकने लगता है। बस हमें भी गुस्सा आ गया। हम उस समय ११वें माले पर रहते थे, कह अब एक भी शब्द निकाला तो “जहीं से नीचे फ़ेंक देंगे, चिल्लाता हुआ नीचे जायेगा और धप की आवाज आयेगी”। तो बस इतना हमारा कहना था कि वह तो और आगबबूला हो उठा, बोलता है कि हम भी ऐसा ही कुछ कर सकता हूँ।

     तो मैंने उससे मसखरी में ही पूछ लिया अच्छा बता तेरे बंगाल से आज तक कितने डॉन हुए हैं, मैं जहाँ का रहने वाला हूँ वहाँ के मैं गिनाता हूँ, क्योंकि अपनी तो अकल ही घुटने में है (समझ गये न कि मैं कहाँ का रहने वाला हूँ)। बोल अब बोलती बंद क्यों हो गयी, अबे बंगाली तो होते ही सीधे हैं, केवल जबान चलानी आती है परंतु हाथ चलाने में दम गुर्दे चहिये होते हैं, बस बंगाली बाबू बिल्कुल शांत।

    हमारे बंगाली मित्र बोलते हैं कि यह तो हमें भी नहीं पता कि कोलकाता के बंगाली डॉन क्यों नहीं होते….?

क्यों हमारा मन अशांत होता है जब कोई अपना हमसे रुठ जाता है… एक विश्लेषण… क्यों हमारी कार्य क्षमता अपने आप खत्म हो जाती है…

    यह बात में कई सालों से सोच रहा हूँ कि हमारा मन क्यों अशांत होता है जब कोई अपना हमसे रुठ जाता है। या कोई अपना बीमार होता है या उसे कोई परेशानी होती है।

    हमें कोई परेशानी नहीं होती है परंतु फ़िर भी मन अशांत रहता है किसी कार्य में मन नहीं लगता है, स्वस्थ्य होते हुए भी शरीर अस्वस्थ्य जैसा लगने लगता है, दिल तो बैठ ही जाता है और किसी अनहोनी की आशंका से हमेशा धाड़ धाड़ हथौड़ा बजता रहता है।

    हमारी कार्य करने की क्षमता अपने आप खत्म हो जाती है, भूख लगनी बंद हो जाती है, नींद नहीं आती है, सिर भारी रहने लगता है, उल्टी जैसा होता है और भी पता नहीं क्या क्या, सभी नहीं लिख पाऊँगा।

    प्यार किसी अपने से हो यह जरुरी नहीं, जहाँ आत्मिक जुड़ाव होता है वहाँ पर भी यही होता है, वो आत्मिक जुड़ाव किसी इंसान से भी हो सकता है, किसी भौतिकवादी वस्तु से भी हो सकता है।

    जिससे हम आत्मिक रुप से जुड़े होते हैं, जिससे हम सच्चा प्यार करते हैं, जिसे हम खुश देखना चाहते हैं, जो हमारी रग रग में बसा होता है, जिसे हमारा रोम रोम पुकारता है। यह सब उसके लिये होता है, क्योंकि कहीं न कहीं हमें कुछ खोने का डर होता है।

    और जैसे ही वह डर खत्म हो जाता है, सब अपने आप ठीक हो जाता है, कार्य करने की क्षमता आ जाती है जोश के साथ कार्य करने लगते हैं, जोर से भूख लगने लगती है, गहरी नींद आती है।

आपके साथ भी ऐसा होता है क्या …..

हाँ हम भी इन्सान हैं, अपनी कमजोरियों को सुनना हमें भी अच्छा नहीं लगता बुरा लगता है

हाँ हम भी इंसान हैं भले ही किसी से भी कितना भी प्यार करें पर बुरा तो लगता है भले ही वह बोले हमें या दुनिया का कोई ओर व्यक्ति।

कोई भी अपनी कमजोरियों को सुनना पसंद नहीं करता है और अपनी कमजोरियों को सब छुपाते हैं मैं कोई भगवान तो नहीं हूँ जो अपनी कमजोरियों के सामने आने पर असहज महसूस न करुँ। गुस्सा आना तो स्वाभाविक है, और ऐसे कितने लोग होंगे जो ऐसी परिस्थिती में अपने ऊपर काबू रख पाते होंगे। शायद कोई नहीं।

बढ़ती महत्वाकांक्षाएँ रिश्तों में दरारें भी ला सकती हैं और अपनापन खत्म भी कर सकती हैं, इंसान को अपनी इच्छाएँ सीमित ही रखनी चाहिये कि अगर कोई इच्छा अगर पूरी भी न हो तो ज्यादा दुख न हो।

हमने तो अपने जीवन के शुरुआत से कभी भी अपनी इच्छाओं की अभिव्यक्ति ही नहीं की, जो मिलता गया बाबा महाकाल का आशीर्वाद से होता गया। और आज भी केवल उतनी ही चीजों की जरुरत महसूस होती हैं, जो कि जिंदा रहने के लिये बहुत जरुरी होती हैं। क्योंकि विलासिता का जीवन न हमें रास आया और भगवान न करे कि हमें विलासिता देखनी भी पड़े।

सभी बुराईयों की शुरुआत की लकीर विलासितापूर्ण जीवन से ही शुरु होती है, जब इंसान की आँखों पर पट्टी बँध जाती है, और वह केवल और केवल अंधे होकर भागता रहता है, जो कि उसका है ही नहीं, केवल क्षणिक सुख के लिये।

न साथ कुछ लाये हैं न लेकर जायेंगे, खाली हाथ आये थे, खाली हाथ जाना है, फ़िर भी इस नश्वर संपत्ति का मोह, वो भी इतना अधिक नहीं होना चाहिये, अपने मन की इस गंदगी को अपने मन के खोह में ही छिपाकर रखना चाहिये, ऐसी खोह में जिसे कोई देख न सके।

केवल अपने पास इतना रखना चाहिये कि अपनी जिंदगी आराम से निकल जाये, ज्यादा मोह भी बुराई की जड़ है। हमेशा अपनी हद में रहना चाहिये, जिससे आप को पता रहे कि आप किसी का मन नहीं दुखा रहे हैं, और अपनी मर्यादा की सीमा का उल्लंघन भी नहीं कर रहे हैं।

क्या खोया क्या पाया अपनी अभी तक की जिंदगी में…. अपना खुद का निजी हिसाब किताब..

आज ऐसे ही अपनी बीती हुई जिंदगी का मतलब निजी हिसाब किताब कर रहे थे। तो हमने पाया कि बहुत कुछ हमने खोया है और बहुत कुछ पाया है।

और शायद जो खोया है अब हमें मिल भी नहीं सकता है और जो हमने पाया है कभी भी हमसे छिन सकता है या खो सकता है, शायद यह सभी के साथ होता है।

जो खोया है वह है हमने अपनों के करीब रहने का सुख, खुद के लिये समय और परिवार के लिये नितांत निजी समय, पर अपने खुद में इतना उलझ गये हैं कि ये सब बेमानी हो गया है। और जो मिला वो है अपने आप की दुनिया, नेट की दुनिया, जिसे हम कभी भी खो सकते हैं। वैसे तो इस नश्वर शरीर का भी कोई भरोसा नहीं है, परंतु प्यार तो हो ही जाता है।

इसीलिये तो भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है इस दुनिया को “दुखालयम”, मतलब कि दुखों का घर। इस भौतिक दुनिया में दुखों के बिना जीवन संभव नहीं है।

खैर हमने खोया भगवान की भक्ति को भी, पर फ़िर भी उनके प्यारे भक्तों के मधुर धुनों और बातों को सुनते रहते हैं, नेट से शायद हमने सबसे अच्छी चीज यही पायी है। हम भले ही कितनी दूर हों पर भगवान की मधुर बातें उनके चर्चाकारों द्वारा की गई हमारे पास सभी जगह उपलब्ध हैं।

शायद बाहरी तौर पर केवल इतना ही प्रकट कर सकते हैं, क्योंकि और ज्यादा हम बताना नहीं चाहते हैं। खोते तो सभी हैं और पाते भी सभी हैं, हम कोई अनोखे थोड़े ही हैं, ये तो बस माया का खेल है। अगर कुछ बताना चाहें अपने खोये पाये के बारे में तो अवश्य टिप्पणी में बतायें।

दिल और मन का विश्लेषण, आपके ऊपर क्या हावी रहता है, दिल या मन। दिल तो पागल है दिल दीवाना है / मन तो पागल है मन दीवाना है… (An Analysis of your Internal thoughts..)

    दिल जो केवल वही बात मानने को तैयार होता है जो कि व्यक्ति आत्मिक रुप से ग्रहण कर सकता हो, और उससे किसी को दुख नहीं पहुंचता हो, जो दिल चाहता है वह अगर उसे नहीं मिलता हो तो भी वह संतुष्ट रहता है कि चलो शायद अपना नहीं था।

     मन जो केवल वही बात मानता है जिसे मन चाहता है, जो कि व्यक्ति बाहरी रुप से ग्रहण करता है, फ़िर उससे किसी को कितनी भी चोट लगती हो उससे मन को कोई फ़र्क नहीं पड़ता है, अगर चाही वस्तु मन को नहीं मिली तो हमें बहुत बुरा लगता है और असंतुष्ट असहज रहता है। मन जो चाहता है हासिल करना चाहता है, फ़िर चाहे वह बुरा हो या भला, इससे मन को कोई फ़र्क नहीं पड़ता है।

    जब हम कहते हैं कि अपने दिल के बात बताऊँ तो वह एक सच्ची बात होती है, परंतु जब हम मन की बात करते हैं तो वह हमारे ऊपरी आवरण के अहम को संतुष्ट को करने वाली बात करते हैं।

    अगर दिल की बात पूरी नहीं होती है तो हमें बुरा नहीं लगता है, कि चलो कोई बात नहीं कहकर अपना दिल बहला लेते हैं। परंतु अगर मन की बात पूरी नहीं होती है तो गहरी टीस हमेशा मन के किसी कोने में पलती रहती है और धीरे धीरे अहम के रुप में परिवर्तित होती जाती है।

    दिल और मन कहने को हम एक रुप में ही कहते हैं, परंतु दोनों के कर्म और सोच बिल्कुल अलग हैं, दिल अगर साधु प्रकृति का है तो मन दुष्ट प्रकृति का है।

    दिल और मन का विश्लेषण कैसा लगा, आपके ऊपर क्या हावी रहता है, दिल से बताईयेगा मन से नहीं।

    तभी तो मैं कहता हूँ कि दिल तो पागल है दिल दीवाना है / मन तो पागल है मन दीवाना है…

काश कि हम पतले ही रहते मोटे न होते, और अब ….. हाल बुरा है…. और क्या जबाब दें अपनी इस मोटी चर्बी की बेशर्मी का !!!

पता नहीं कि हम मोटे हैं या स्वस्थ्य, किस श्रेणी में रखे जाते हैं, पर हाँ सभी लोग जिसे भी जब भी मौका लगता है भाषण जरुर पिला डालता है कि भाई बहुत हैल्थी हो गये हो, लगता है कि खाते पीते घर के हो।

हम भी हमारे पुराने दिन याद करते हैं जब कभी हम पतले हुआ करते थे, कभी हमारी कमर का नाप २८-३० इंच का हुआ करता था, और अब ज्यादा नहीं है पर फ़िर भी बताने में शर्म आती है। सोचते हैं कि काश कुछ ४-६ इंच कम हो जाये।

सोचते भी हैं कि रोज खूब चलें, दौड़ें, जिम मॆं जायें, ये करें वो करें, ये न खायें और कुछ ऐसा खायें जिससे किसी तरह से पतला हुआ जा सके पर हे भगवान !!! कुछ नहीं हो रहा है। कुछ भी शुरु करो तो अपने मन के सातों घोड़ों को काबू में रखना मुश्किल होता है, और समय निकालना भी। क्योंकि चर्बी चढ़ाने के लिये समय हमें बहुत मिल जाता है परंतु कम करने के लिये समय निकालना बहुत मुश्किल होता है, दुनिया का सबसे बड़ा सत्य यही है। शायद सभी लोग मेरी बात से सहमत भी होंगे। हम पीना चाहते हैं, जीना चाहते हैं, खाना चाहते हैं, परंतु कैसे मोटे होकर !!!!

सोचते भी हैं शुरु भी करते हैं परंतु कुछ दिन करने के बाद सब वही ढ़ाक के तीन पात, थोड़े दिन सुबह घूमने गये पूरे जोश के साथ फ़िर वो जोश और जुनून उतर गया और आ गये वापिस अपनी वाली पर, फ़िर जिम जाना शुरु किया फ़िर वो भी बंद कर दिया, अब ये हालत है कि कोई पूछता है कि भई नया क्या शुरु किया है, तो अपनी बगलें झाँकने लगते हैं। अब तो हम यही बोलने लगे हैं हाँ सुबह ५-७ किलोमीटर घूम लेते है और दौड़ भी लेते हैं, उठने के पहले। 🙂

अब और क्या जबाब दें अपनी इस मोटी चर्बी की बेशर्मी का। शायद मोटे लोग ओह !!!! माफ़ कीजियेगा हैल्थी लोग ही कुछ नया नुस्खा बताकर मेरी मदद करेंगे और अपनी भी।

चैन्नई में भी कम लूट नहीं है.. लुटने वाला मिलना चाहिये..

जैसा कि आमतौर पर सभी शहरों में होती है लूट वैसी ही लूट चैन्नई में भी है, अब अभी समझ नहीं पा रहे हैं कि लूट कम है कि ज्यादा है, हमें तो ये पता है कि लूट, लूट ही होती है, चाहे वह कम हो या ज्यादा।
यहाँ पर ऑटो मीटर से चलाने का रिवाज ही नहीं है, हमें अपने गंतव्य तक जाने के लिये रोज ही मगजमारी करना पड़ती है, रोज इन ऑटो वालों से उलझना पड़ता है, जितनी दूरी का ये लोग यहाँ ८० रुपये मांगते हैं, उतनी दूर मुंबई में मीटर से मात्र १५-१८ रुपये में जाया जा सकता है।
अब और देखते हैं कि कौन कौन लूट मचा रहा है, क्योंकि टैक्सी वालों के भाव भी बहुत ज्यादा हैं, प्रीपैड टैक्सी अगर २८० रुपये लेती है तो बाहर अगर आप टैक्सी से मोलभाव करने जायेंगे तो वो ८५० रुपये से कम में नहीं मानेगा।
चारों तरह लूट मची है, लूट सके तो लूट !!!!

कल सूर्यग्रहण था और ग्रहण का पहला प्रकोप हमारी शर्ट पर निकला, तो शायद हम बच लिये… “बांके बिहारी लाल की जय”

   कल सदी का सबसे लंबा सूर्य ग्रहण था, शायद वैसे जैसा कि महाभारत में हुआ था क्योंकि दोपहर को ही सन्ध्याकाल जैसी स्थिती निर्मित हो गई थी।

   हम ग्रहण काल में घर से निकले ऑफ़िस जाने के लिये और बड़े इत्मिनान से ऑटो को हाथ देकर रोकने लगे। कई ऑटो रुके पर कोई उस तरफ़ जाने को तैयार ही नहीं था (ये तो रोज की बात है ), एक ऑटोवाले ने सहमति दी तो हम जैसे ही उसमें बैठने लगे पता नहीं कैसे हमारी शर्ट की ऊपरी जेब ऑटो के मीटर में उलझ कर फ़ट गयी, और हम हतप्रभ से अपनी शर्ट को देखने लगे।

   वैसे भी मन तो शंकालू ही होता है सोचा कि चलो ग्रहण की शुरुआत हो चुकी है अपने ऊपर अब बेटा दिनभर के लिये तैयार हो जाओ, पता नहीं दिन कैसा जाने वाला है। फ़िर क्या था ऑटो से उतरे वापिस घर आये और शर्ट बदल कर वापस चल दिये। क्योंकि अपनी तो पहले की हिस्ट्री भी खराब है ग्रहण के दिनों की, हाँ यह पहला सूर्य ग्रहण था और अभी तक जितने भी बड़े बदलाव या नुक्सान हुए थे वो चंद्र ग्रहण से हुए थे। हो सकता है कि हम खुद ही उस समय लापरवाह हो गये हों और हमारी शर्ट फ़ट गयी हो।

   पर हाँ दिनभर काफ़ी अच्छा गया, और तो और जिन कार्यों के न होने की उम्मीद थी वे कार्य भी हो गये। लगता है कि शनि शर्ट पर ही था। 🙂

   यह तो सब जीवन में चलता ही रहता है, और जीवन इन्हीं उतार-चढ़ाव का नाम है, इनके बिना जीवन अधूरा है।

   पर फ़िर भी मन में यह तसल्ली रही कि चलो इस बार ग्रहण से अपन बच लिये, कोई नई समस्या या जिंदगी में नई पेचिदगियाँ नहीं आईं और सब मस्त रहा। सब मुरलीवाले की माया है। इसलिये हम तो हमेशा “बांके बिहारी लाल की जय” कह लेते हैं।

फ़ोरेनरों को उनके देश से पढ़ा के भेजा जाता है कि “भारतीय चोर होते हैं”, और वे खुद…

    क्या आपने कभी सुना है कि भारत का वीसा मिलने के बाद फ़ोरेनरों के लिये उनका दूतावास एक मोडरेशन क्लास लेता है और उसमें भारत में बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में बताया जाता है और लगभग यह वाक्य हर बार दोहराया जाता है “कि भारतीय चोर होते हैं..”, और वे खुद..

    हम कल का टाईम्स ऑफ़ इंडिया आज सुबह पखाने में पढ़ रहे थे क्योंकि हमारा समाचार पत्र थोड़ा लेट आता है और हमको सुबह उठकर एकदम प्रेशर बन जाता है, तो कुछ समाचार वहीं पर इत्मिनान से पढ़ लेते हैं।

    तो उसमें एक खबर थी कि वकील अपना फ़ोन एटीएम में भूल गया और फ़ोरेनर ने उसे उठा लिया।

   हाईकोर्ट वकील एटीएम में पैसे निकालने गया और अपना कीमती ब्लैकबैरी मोबाईल एटीएम के ऊपर ही भूल गया, जब १५ मिनिट बाद उसे ध्यान आया कि मोबाईल तो एटीएम में ही भूल गया हूँ, लेकिन वापिस आने पर मोबाईल वहाँ नहीं मिला। उन्होंने पहले पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई और फ़िर एचडीएफ़सी बैंक के वीडियो क्लिप देखने पर पता चला कि उनके बाद तीन फ़ोरेनरों ने एटीएम का उपयोग किया था और उसमें से एक उनका मोबाईल उठा कर ले गया मतलब कि चोरी की। वकील ने एचडीएफ़सी बैंक के चैन्नई ऑफ़िस से जानकारी निकाली तो पता चला कि चोर आस्ट्रेलिया का है। वहीं से उनको उसका नाम और बैंक एकाऊँट नंबर भी मिल गया जब मोबाईल को ट्रेस किया गया तो पता चला कि अभी वह दिल्ली में है, उससे ईमेल पर अपील भी की है कि मोबाईल वापिस दे दे और आस्ट्रेलियन दूतावास को भी ईमेल कर शिकायत कर दी गई है, पर अभी तक कुछ नहीं हुआ है, कोलाबा पुलिस मामले की छानबीन कर रही है।

    तो इस बात से ये तो साबित हो गया कि मुफ़्त की चीज सभी को अच्छी लगती है, चोरी के कीटाणु सभी में होते हैं बस किसी के एक्टीवेट होते हैं किसी के नहीं।

पूरा समाचार आप यहाँ पढ़ सकते हैं।

ये कैसी शादी के बाद की आजादी, जो कुछ करना है वो पर्दे की पीछे करें, सार्वजनिक न करें।

अभी परसों ही में ट्रेन में यात्रा कर रहा था तो जिस केबिन में मेरी सीट थी, उस केबिन में एक परिवार जो कि नागपुर से सफ़र कर रहा था और उनका एक ६ साल का बेटा भी था। साइड लोअर व साइड अपर में एक नवविवाहित दंपत्ति थे। जो कि सबके सामने बड़ी ही अभद्र हरकतें कर रहे थे, खुलेआम एक दूसरे को चूम रहे थे और अश्लीलता की हरकतें कर रहे थे। परंतु बोले कौन ! क्योंकि कोई भी बोलना नहीं चाहता, मैं भी नहीं। क्योंकि इन लोगों को समझाने का कोई मतलब ही नहीं है।

जो परिवार मेरे पास बैठा था वो भी कनखियों से ये सब देख रहा था और बच्चे को अपने में बिजी रख रहे थे ताकि वो उनकी हरकतों पर ध्यान न दें परंतु वो बच्चा तो बड़ी गौर से वही सब देख रहा था और कुल मिलाकर वातावरण प्रदूषित हो रहा था। उस परिवार के सज्जन मुझसे बोले ये लोग क्यों थर्ड एसी में आये यही सब करना था तो सेकंड एसी में जाते कम से कम वहाँ पर्दा रहता है जो भी करते ये लोग उस पर्दे के पीछे कम से कम हमें तो दर्शक नहीं बनना पड़ता वो भी जबरदस्ती।

इस परिस्थिती ने वाकई यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि अगर आप शादी के बाद घूमने (हनीमून) जा रहे हो तो बाहर नैतिकता से रहें और जो कुछ करना है वो पर्दे की पीछे करें, सार्वजनिक न करें।