इस बार स्वतंत्रता दिवस पर यह कितने ही लोगों से सुना कि जो संकल्प लिया है वह पूरा करेंगे – 2047 तक विकसित भारत।
मैंने पूछना चाहा पर ऐसा लगा कि जबाब कोई नहीं देना चाहता, बस लोग भी जुमला पसंद हो गये हैं।
विकसित भारत में क्या जनता भी आती है, या इस विकसित भारत का मतलब केवल अर्थव्यवस्था से कि हम नम्बर 1 बन जायेंगे, पर 80 क्या उस समय हम 100 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देंगे।
कैसा होगा विकसित भारत, इसकी संकल्पना में जनता कहीं है या केवल जनता से टैक्स वसूल कर विकसित भारत बनना है।
जनता के लिये, विकसित भारत के लिये क्या क्या जतन किये जा रहे हैं, उसका कहीं उदाहरण नहीं मिला।
नये सरकारी स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय खोले जा रहे हैं।
नये सरकारी चिकित्सालय खोले जा रहे हैं।
नये सरकारी परिवहनों को उतारा जा रहा है, उनकी देखभाल ठीक से हो रही है।
नये एयरपोर्ट्स तक सार्वजनिक परिवहनों की बढ़िया पहुँच है।
सड़कों पर ट्रैफिक नियंत्रण के लिये, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाया जा रहा है।
नौकरियों के लिये युवाओं को भरपूर रोजगार के मौके मिल रहे हैं।
व्यापार को खोलने की जरूरी प्रक्रिया में क्या पारदर्शिता लाई जा रही है, कोई टाईम लिमिट सेट की गई है।
स्वच्छ हवा, स्वच्छ जल के लिये क्या किया जा रहा है।
बिजली 24 घण्टों मिले, इसके लिये क्या किया जा रहा है।
यह तो बहुत थोड़े से बिंदु हैं, इनकी सूची बहुत लंबी है, पर ऐसा कुछ हो रहा है जिससे लगे कि हम विकसित देश बन पायेंगे, अब केवल 22 साल ही बचे हैं 2047 आने में, 2024 तो गिन ही नहीं रहे क्योंकि लगभग निकल ही चुका है।
भारतीय बाजारों से पैसा भारत के बाहर के बाजारों में जा रहा है। यह रकम बहुत बड़ी है।
सेकेंडरी मार्केट – बाजार में 3 बड़े निजी बैंक जो एडवाइजर का भी काम करते हैं, उनकी सलाह है कि अपने पोर्टफोलियो का 20% विदेशी बाजारों में लगायें, वहीं 3 वर्ष पूर्व उनकी सलाह 0% की थी।
प्राइवेट मार्केट – भारत से सैकड़ों स्टार्टअप विदेश जा रहे हैं।
क्या असर पड़ेगा –
भारत $5 ट्रिलियन इकोनॉमी करना चाहता है किस्से भारत विश्व की तीसरी बड़ी इकोनॉमी बन जाये।
लेकिन भारत बहुत से मोर्चों पर असफल है, जैसे बढ़िया टैलेंट, कैपिटल, एंटरप्राइज, और यह एक बहुत बड़ी मुश्किल है।
हमारा सारा टेलेंट, पैसा और स्किल्स बाहर देशों में जा रहा है, उन देशों की इकोनॉमी को उन्नत, कुशल और समृद्ध बनाने में लगा हुआ है।
भारत के लिये यह सर से पानी गुजरने जैसा है और इस नकसीर को यहीं रोकना होगा, वरना तो बहुत देर हो चुकी होगी।
अमेरीका ही क्या कई अन्य देश व्यवस्थित ढंग से लालच देकर पूरे विश्व से अच्छे टैलेंट को चुरा रहे हैं। कितने ही अमेरीका के पॉपुलर पॉडकास्ट लगातार जॉब एक्ट, इमिग्रेशन एक्ट, स्पेशल परपज वीसा पर बातें करते हैं।
हो यह रहा है कि ये कुछ देश विश्व के हर कोने से टैलेंट को अपने यहाँ जगह दे रहे हैं, मतलब की पूरे विश्व के टैलेंट को चूस रहे हैं। भारत के बहुत ही गंभीरता से इस बारे में सोचना होगा और सबसे पहले टैलेंट को चिह्नित करके उनको अपने ही देश में अपने देश की उन्नति के लिये स्वीकार करना होगा।
राष्ट्रवादी और कट्टर देशभक्त होकर अमेरिका पर ऊँगली उठाना बहुत आसान है कि अमेरिका हमारा पूरा टैलेंट चुरा कर ले जाता है। असली प्रश्न तो यह है कि – भारत ऐसा होने कैसे दे रहा है। गाँधी जी ने भी कहा था कि अगर आप किसी पर ऊँगली उठाते हो तो वो एक ही होती है, परंतु तीन ऊँगलियाँ ख़ुद की तरफ़ उठती हैं।
भारत से पैसा बाहर जाने से रोकने के लिये म्यूचुअल फंड जो कि विदेशी बाज़ारों में निवेश करते हैं उनकी विदेशी मुद्रा की लिमिट ख़त्म हो चुकी है और नया पैसा इस तरह के फंड्स विदेश नहीं जा पा रहे हैं। पर यक़ीन मानिये यह पैसा है, पैसा पानी जैसा होता है, अगर पैसे को बाहर जाना है तो वह अपने तरीक़े ढूँढ लेगा, और बाहर के बाज़ारों में बह जायेगा।
स्टार्टअप को स्केल अप करने के लिये बड़े फंड की ज़रूरत है पर भारत में बड़े बिज़नेस घराने इस तरफ़ बहुत ज़्यादा एक्टिव नहीं हैं। Web3 मीटिंग दिल्ली, बैंगलोर या मुंबई में नहीं हुई यह हुई दुबई में और इसमें 75% प्रतिभागी भारतीय थे बाक़ी के रशिया और यूरोप के थे। अधिकतर स्टार्टअप या तो दुबई में जा चुके हैं या जाने की प्रोसेस में हैं। Web3 इंटरनेट का अगला वर्शन कहा जा रहा है, और उसके लिये दुबई में इसका प्लेटफ़ॉर्म तैयार है जो कि डिसेंट्रलाईज होगा और ब्लॉकचैन पर चलेगा। जबकि भारत में स्टार्टअप अभी भारतीय सरकारी व्यवस्था और उनके नियामकों से जूझ ही रहे हैं, जहाँ नियम कभी भी बदल जाते हैं और उसका किसी को अता पता नहीं होता है। भारत में हर तरफ़ टैक्स की मार भी है।
दरअसल यह बदलाव शुरू हुआ है नवंबर 2021 से, जब क्रिप्टोकरंसी के लिये क्रिप्टो बिल में ज़्यादा टैक्स और कठिन नियमों के चलते दुबई या किसी और देश जा रहे हैं, अब प्रश्न यह नहीं होता है कि “क्या तुम जा रहे हो?” बल्कि प्रश्न होता है कि “कब जा रहे हो?”
स्टार्टअप जब काम करना शुरू करते हैं तो वे आधुनिक तकनीक पर काम करते हैं और वह तकनीक सरकारी अमले को समझाना लगभग असंभव ही होता है और स्टार्टअप को भारतीय नियमों में बँधकर काम करना होता है, जबकि वे तकनीक विश्व के लिये बना रहे होते हैं, जब स्टार्टअप शुरू होते हैं तो प्रोसेस में कई चीजें ऐसी होती हैं कि उन्हें भी नहीं पता होता कि उन चीजों के लिये भारत में सरकार से बार बार हर चीज के लिये परमीशन लेना होगा। अगर किसी ने डिजिटल एसेट्स का ही काम शुरू कर दिया तो उस पर भारत में 30% टैक्स हो और 1% टीडीएस भी। हर स्टार्टअप के अपने प्रोटोकॉल होते हैं और उन्हें ही पता नहीं होता है कि वाक़ई क्या लीगल है और क्या नहीं, आप कोई NFT का उपयोग करना चाहते हैं, या डिजिटल कॉइन लाँच करना चाहते हैं, यह सब तो स्टार्टअप शुरू करते समय पता नहीं होता है।
वैसे भी ऐसा क्यों हो रहा है तो आप ट्विटर पर क्या ट्रेंड कर रहा है, अपने टीवी खोलकर सामने देख लीजिये, या फिर अख़बारों के मुख्य पेज ही देख लें, फिर शायद यह प्रश्न नहीं पूछें।
इनसाईडर ट्रेडिंग शेयर बाज़ार में अनुचित व अवैध प्रेक्टिस है, जहाँ अधिकतर शेयर निवेशकों को बेहद घाटा है क्योंकि उनके पास वह जानकारी नहीं है जो कि कंपनी के लोगों के पास होती है।
इसका मतलब यह है कि कंपनी के अंदर की किसी महत्वपूर्ण जानकारी से बहुत सारा पैसा बनाया जा सकता है जिससे शेयर बाज़ार में हो रहे शेयर के कारोबार में सही नहीं ठहराया जा सकता है।
इनसाईडर ट्रेडिंग क्या है?
भारत में सेबी जो कि शेयर बाज़ार की नियामक संस्था है के द्वारा इनसाईडर ट्रेडिंग को हतोत्साहित किया जाता है क्योंकि इस प्रकार की ट्रेडिंग प्रेक्टिस अनुचित है, और साधारण निवेशकों के साथ यह बेईमानी है।
शेयर बाज़ार में सूचिबद्ध शेयरों, प्रतिभूतियों (जैसे बांड, शेयर, स्टॉक ऑप्शन्स) में होने वाले कारोबार वाली कंपनियों में कोई भी ऐसी ख़बर जिससे कंपनी की कार्यप्रणाली, किसी बड़े निर्णय की पहले से जानकारी होना, व उससे फ़ायदे या नुक़सान का आँकलन कर उसमें ट्रेडिंग करना इनसाईडर ट्रेडिंग कहलाता है। इस जानकारी को नॉन-पब्लिक इंफर्मेशन कहा जाता है। जिससे कंपनी के अंदर का कोई भी व्यक्ति जिसे उन नॉन-पब्लिक इंफर्मेंशन की जानकारी होती है वह फ़ायदा होने की स्थिति में शेयर बाज़ार से ख़रीद लेता है, घाटा होने की स्थिति में शेयर पहले बेच देता है।
साधारण से शब्दों में अगर कहा जाये तो यह समझिये कि जिस जानकार व्यक्ति के पास कंपनी की अंदरूनी जानकारी है वह फ़ायदे में है और साधारण शेयरधारकों के पास वह जानकारी नहीं है। वह जानकार व्यक्ति कार्पोरेट ऑफ़िसर, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर, एम्पलोई या वह जिसे इस नॉन-पब्लिक इंफर्मेंशन तक पहुँच है, हो सकता है।
इनसाईडर ट्रेडिंग के उदाहरण –
हम यहाँ तीन प्रकार के उदाहरण से समझेंगे –
१. किसी कंपनी के CEO के वकील को एक गोपनीय मीटिंग में यह पता चलता है कि अगले कुछ दिनों में ही CEO एकाऊँटिंग फ़्रॉड के कारण पकड़ा जायेगा।
इस परिस्थिती में वकील उस कंपनी के शेयरों को बाज़ार में बेच देगा, क्योंकि उसे पता है कि CEO के पकड़े जाने की ख़बर आने के बाद कंपनी के शेयर का भाव गिरेगा।
२. मान लीजिये कि मेरा कोई दोस्त किसी कंपनी में महत्वपूर्ण पद पर है और उसके पास बेहद महत्वपूर्ण जानकारी है कि उसकी कंपनी को बहुत बड़ा फ़ायदा होने वाला है, वह यह जानकारी मुझसे साझा करता है।
तो मैं उस कंपनी के शेयर उस समय बाज़ार भाव से बहुत ज़्यादा मात्रा में ख़रीद लेता हूँ, जब दो दिन के बाद वह ख़बर आम जनता को पता चलेगी तो उस शेयर का भाव बहुत बढ़ जायेगा।
मान लीजिये कि शेयर का भाव उस समय 400 रुपये चल रहा है और मैं उस कंपनी के 1000 शेयर ख़रीद लेता हूँ, तो मेरा निवेश 4,00,000 रूपये का हो जाता है।
अब उस कंपनी की ख़बर बाज़ार में आ जाती है और उस ख़बर से जो कि नये उत्पाद लाँच की ख़बर है, और उस तरह का उत्पाद बाज़ार में था ही नहीं, और उस उत्पाद की ज़रूरत भारत में लंबे समय से है तो कंपनी के शेयरों का भाव तेज़ी से बढ़ने लगेगा।
2-3 सप्ताह में ही कंपनी के शेयर का भाव 600 रुपये हो जाता है और मैं उन शेयरों को बेच देता हूँ, जो कि 600 रुपये के हिसाब से 1000 शेयरों का 6,00,000 रूपये हो जाता है। मेरा लाभ मात्र 2-3 सप्ताह में 40% हो जाता है, जो कि 2,00,000 रूपये होता है।
३. कोई व्यक्ति सरकारी अफ़सर है और उसे किसी नये क़ानून व नियम के बारे में पहले ही पता चल जाता है और उस नियम से ऑटो कंपनियों को बहुत फ़ायदा होने वाला है, और वह गोपनीय तरीक़े से ऑटो कंपनियों के बहुत सारे शेयर ख़रीद लेता है, क्योंकि उसे पता है कि जैसे ही यह क़ानून व नियम लागू होंगे, शेयर के भाव बहुत बढ़ जायेंगे।
इनसाईडर ट्रेंडिंग Illegal क्यों है?
अधिकतर देशों में इनसाईडर ट्रेडिंग मतलब कि गोपनीय जानकारी के आधार पर लाभ कमाने वाली गतिविधियों को Illegal माना जाता है और इस प्रकार की ट्रेडिंग को आपराधिक कृत्य के तौर पर देखा जाता है।
१. आम निवेशकों के साथ धोखा –
यह वाक़ई उन आम निवेशकों के साथ धोखा है जिन्हें इस गोपनीय जानकारी का पता नहीं होता है और वे घाटा में रहते हैं। वहीं जिनके पास वह गोपनीय जानकारी होती है वे लोग उस जानकारी से बहुत से पैसा बना लेते हैं।
२. नैतिक रूप से ग़लत है
इनसाईडर ट्रेडिंग को नैतिक रूप से ग़लत कार्य माना जाता है और शेयर बाज़ार में इस तरह के कार्य को अनैतिक माना जाता है, क्योंकि उस कंपनी के सभी शेयरधारकों को ट्रेडिंग में बराबर का अवसर नहीं मिल पाता। वह जानकारी उनके पास बाद में आती है।
३. लोगों का विश्वास डगमगाता है
इनसाईडर ट्रेडिंग से शेयर बाज़ार में कंपनी के प्रति विश्वास डगमगाता है, कम हो जाता है।
क्या आप किसी ऐसे खेल को खेलना पसंद करोगे जहाँ धोखेबाज़ी है, नहीं न, क्योंकि आपको पता है कि इस कंपनी के लोग धोखेबाज़ हैं और गोपनीय जानकारी के आधार पर अपना फ़ायदा बना लेते हैं, जिससे आम निवेशक को हमेशा ही फ़ायदा नहीं होता है, उल्टा नुक़सान ही होता है तो आम निवेश इस तरह की कंपनियों के शेयरों से दूर ही रहता है। जिससे कंपनी की छवि ख़राब होती है।
इनसाईडर ट्रेडिंग एक जुर्म है और इस पर सज़ा के साथ साथ ही जुर्माने का भी प्रावधान है।
किसका झंडा (Flag) विश्न में सबसे ऊँचा फहराया जाता है? Which flag is hoisted long?
सारी लड़ाईयाँ केवल बंदूकों और तोपों से नहीं लड़ी जाती हैं, और खासकर जबकि यह भारत और पाकिस्तान के बीच की बात हो। पिछले कुछ महीनों से भारत और पाकिस्तान के बीच झंडे की ऊँचाई पर तनातनी चल रही है, भारत के बाघा अटारी सीमा पर झंडे की ऊँचाई इसका कारण है।
भारत के बाघा अटारी सीमा पर झंडा फहराने के 8 महीने बाद, पाकिस्तान ने अपने 70वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 14 अगस्त को भारत के झंडे से 50 फिट ऊँचा झंडा फहराया।
पाकिस्तान के इस झंडे को दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा झंडा माना जा रहा है, साथ ही विश्व में आठवाँ ऊँचा झंडा है। पाकिस्तान सेना के प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मध्यरात्रि में बाघा अटारी सीमा के पास यह झंडा फहराया।
8 मार्च 2017 को जब भारत ने 350 फिट ऊँचा झंडा बाघा सीमा पर फहराया, यह झंडा 20 किमी दूर लाहौर से भी देखा जा सकता था। पाकिस्तान ने ऊँचे झंडे पर भारत के बीएसएफ से आपत्ति दर्ज करवाई कि यह जासूसी करना का एक तरीका है और इस झंडे में जासूसी कैमरे लगे हैं, जो कोई देख नहीं सकता है। जिससे भारत पाकिस्तान की खुलाआम जासूसी करेगा। परंतु, भारत ने जबाब दिया कि हमने झंडा फहराने से कोई भी नियम नहीं तोड़ा है और पंजाब के मंत्री अनिल जोशी ने बड़ा बयान दिया कि यह हमारे भारत का झंडा है और अपनी सरजमीं पर हमें इसे फहराने से कोई नहीं रोक सकता।
फिर भी, तिरंगा याने कि भारत के झंडे को कई बार उतारना ही पड़ा, इसका कारण बाघा सीमा पर बहुत तेज चलने वाली हवायें हैं, जिससे एक महीने में 4 बार झंडा फट चुका था। कहा जा रहा है कि ऊँचा झंडा बनाने वालों ने बाघा सीमा पर चलने वाली तेज गति से चलने वाली हवाओं को ध्यान में रखकर झंडा नहीं बनाया था। बाद में जुलाई 2017 में पाकिस्तान ने कहा कि वह भी 400 फीट ऊँचा झंडा स्वतंत्रता दिवस पर फहरायेगा। अफवाह है कि इस झंडे को जिस टॉवर पर फहराया गया है, उस पर हाई रिजोल्यूशन कैमरे लगे हैं जो कि भारतीय सीमा के अंदर तक जासूसी कर सकते हैं।
सुरक्षा सूत्रों के अनुसार कहा जा रहा है कि चीन ने इस झंडे को प्रायोजित किया है, जिसकी कीमत लगभग 7 करोड़ रूपये आई है। कहा यह भी जा रहा है कि इसके ऊपर हाई रिजोल्यूशन कैमरे लगा रखे हैं जो कि न केवल अटारी तक जूम करके देख सकते हैं बल्कि अमृतसर के पास भारतीय सेना का खसास कैंट और बीएसएफ के हैडऑफिस तक जासूसी कर सकता है। इस टॉवर को इस तरह से बनाया गया है कि कम से कम एक दर्जन पाकिस्तानी जवान इस पर खड़े हो सकते हैं और भारतीय सीमा की जासूसी कर सकते हैं।
भारत का झंडा (तिरंगा)
360 फीट ऊँचाई
लागत 2.43 करोड़ रूपये और 1.25 लाख रूपये प्रति झंडे की कीमत
जेद्दाह में झंडा फहराने के विश्व में सबसे ऊँचा बिना किसी सहारे के स्तम्भ है जो कि सन 2014 में बनाया गया था। इसकी ऊँचाई 171 मीटर (561 फीट) है। झंडा फहराने के स्तम्भ को बनाने में 500 टन स्टील का उपयोग हुआ है, केवल झंडे का वजन ही 570 किलो है। झंडे का आकार 162×108 फीट का है।
दुशान्बे का झंडा फहराने का स्तम्भ, तजाकिस्तान
दुशान्बे का झंडा फहराने का स्तम्भ विश्व का दूसरा ऊँचा स्तम्भ है। यह पैलेस ऑफ नेशन्स के ठीक सामने दुशान्बे में है। इसकी ऊँचाई 154 मीटर (541 फीट) है।
राष्ट्रीय ध्वज स्कवेयर, अजरबैजान
पहले यही ध्वज सबसे ऊँचा था और इसी के नाम पर सबसे ऊँचा ध्वज होने का कीर्तिमान था। इसकी ऊँचाई 162 मीटर है, और इसकी बनाने की शुरूआत 30 दिसंबर 2007 को अजरबैजान के राष्ट्रपति द्वारा की गई थी।
पन्मुनजोम का झंडा फहराने का स्तम्भ, उत्तर कोरिया
जब दक्षिण कोरिया ने दाइसोंग-डोंग में 323 फीट ऊँचा झंडा फहराने का स्तम्भ बनाया, तब उत्तर कोरिया ने जबाब में उससे ऊँचा स्तम्भ बनाया। पन्मुनजोम स्तम्भ उत्तर कोरिया के किजोंग-डोंग में 525 फीट ऊँचा है और लंबे समय तक इसे विश्व का सबसे ऊँचा झंडा होने का गौरव प्राप्त था।
अश्बागात का झंडा फहराने का स्तम्भ, तुर्कमेनिस्तान
अश्बागात का स्तम्भ बिना किसी सहारे के खड़ा हुआ विश्व का पाँचवे नंबर का स्तम्भ है। इसकी ऊँचाई 436 फीट है, यह तुर्कमेनिस्तान में 2008 में बनाया गया था।
राघदान का झंडा फहराने का स्तम्भ, जॉर्डन
राघदान का झंडा फहराने का स्तम्भ जॉर्डन के अम्मान में 416 फीट ऊँचाई का है, और यह स्टील से बना हुआ है। यह राघदान पैलेस के रॉयल घराने अल-मैक्वार में फहराया हुआ है। इसे 10 जून 2003 को फहराया गया था, और इसे राजधानी के 20 किमी दूर से भी देखा जा सकता है।
सूचना क्रांति के इस आधुनिक युग में #DigitalIndia सपना नहीं होना चाहिये, सूचना क्रांति को अपना काम करने का हथियार बनाना चाहिये। हमें वैश्विक स्तर पर मुकाबले में खड़े रहना है तो हमें हर जगह सूचना क्रांति का उपयोग करना होगा और पूरा भारत डिजिटलइंडिया करना होगा।
सरकारी तंत्र के कार्य संसाधन को मानवीय से हटाकर सबसे पहले डिजिटाईज करने की जरूरत है, सही जानकारी या फाईलें अधिकारियों के पास पहुँच ही नहीं पाती हैं और न ही उन्हें पता होता है कि कितनी फाईलें उनके अनुमोदन या स्वीकृति का इंतजार कर रही हैं। जब सारे कार्य डिजिटाईज हो जायेंगे तो उन्हें भी पता होगा कि कितनी फाईलें लंबित हैं और उनको स्वीकृति में लगने वाले समय के हिसाब से कम से कम सरकारी अधिकारी अपने भरपूर समय कार्य को दे पायेंगे।
मॉडल कुछ ऐसा बना सकते हैं DigitalIndia
जनता अपने फॉर्म ऑनलाईन ही भरे और या तो अपने कागजात सत्यापित कर स्कैन करके अपलोड करे या फिर पहचान पत्र का कोई पासवर्ड हो जिससे वह अपने आई.डी. को सत्यापित कर सके।
ग्राहक सेवा केन्द्र में ग्राहक सेवा ऑपरेटर हर चीज को वेरीफाय कर ले, और अगर किसी और दस्तावेज की जरूरत है तो उसकी डिमांड जनरेट कर दे, जिससे ईमेल और एस.एम.एस. से उसके पास तत्काल सूचना मिल जाये।
अगर सारे दस्तावेज जाँच लिये गये हों तो वह फाईल ग्राहक सेवा ऑपरेटर अगले पढ़ाव याने कि उस डिपार्टमेंट के सक्षम अधिकारी की क्यू में लगा दे, अधिकारी के पास तत्काल ही डेशबोर्ड पर नोटिफिकेशन चला जाना चाहिये। जैसे ही सक्षम अधिकारी सारी सूचना को वैरीफाय कर दे तो परिचय पत्र तत्काल अपने आप ही जनरेट हो जाना चाहिये।
परिचय पत्र जनरेट करने के बाद सिस्टम सॉफ्टवेयर खुद ही ऑटोमेटेड प्रोसेस से आवेदक के ईमेल पते पर भेज दे और मोबाईल पर एस.एम.एस. भेज दे।
उपरोक्त मॉडल के फायदे होंगे कि सरकारी स्तर पर फिर से किसी भी सूचना को डिजिटाईज नहीं किया जायेगा, जिससे कोई भी काम पेडिंग नहीं होगा, और आवेदक को लॉग के जरिये पता भी रहेगा कि उसके कार्य की कितनी प्रगति हुई है, जिससे सरकारी कार्यॆं मे जनता के सामने सरकार की पारदर्शिता भी आयेगी। जिन लोगों के पास कंप्यूटर की पहुँच नहीं है या कंप्यूटर चलाना नहीं आता है, उन लोगों के लिये सरकार निजी कंपनियों के सहयोग से एक एक कंप्यूटर लगाकर छोटे छोटे सेन्टर शहरों एवं गाँवों में कई स्थानों पर खोल सकती है जिसके लिये आवेदक को नाममात्र की फीस चुकानी होगी।
इसके लिये सरकार को क्लाऊड एवं एनालिटिक्स तकनीक का सहारा लेना होगा, क्लाऊड के जरिये अथेंटिकेशन के बाद सीमित या असीमित जानकारी प्राप्त कर सकता है। क्लाऊड प्राईवेट हो या पब्लिक, उसके हर यूजर का अथेंटिकेशन हो और लॉग जनरेट होते रहना चाहिये, जो कि सुरक्षा के लिये बेहद ही अहम है। सक्षम अधिकारियों को जो कि हर जानकारी को एक्सेस कर सकते हैं उनके लिये आर.एस.ए. टोकन कोड के जरिये लॉगिन करने का प्रावधान होना चाहिये, जिससे कि कोई भी उनके लॉगिन को हैक न कर पाये।
ई-गोवर्नेंस में चार चाँद लग जायेंगे अगर हर चीज ऑनलाईन हो जायेगी, किसी चीज के खोने का डर नहीं, हम अपना परिचय पत्र या कोई भी आई.डी. अपने मोबाईल पर रखकर चल सकते हैं, जिससे पर्यावरण की रक्षा तो होगी ही और साथ ही परिचय पत्र जारी करने की गति तेज होगी, लागत कम हो जायेगी एवं सबके समय की बचत होगी। ई-गोवर्नेंस में DigitalIndia के लिये इन्टेल कंपनी भारत सरकार की मदद कर रही है।
खुशी मतलब कि जब हम दिल से, आत्मा से, अंतरतम से प्रसन्न होते हैं, जिसके मिलने से हमारे रोयें रोयें खड़े हो जाते हैं और ऐसा लगता है कि दुनिया का सारा आनंद हमें मिल गया है। हम इस अवस्था को तभी प्राप्त होते हैं जब ऐसी कोई चीज हमें मिल जाये जिसकी बिल्कुल भी उम्मीद नहीं हो या फिर जितनी उम्मीद हो उससे ज्यादा मिल जाये। आजकल हर चीज में प्रसन्नता ढ़ूँढ़ी जा सकती है। फिर भले ही वह चीज पैसे से खरीदी जा सकती हो या न खरीदी जा सकती हो या फिर कोई अपना जो बहुत दूर हो वह एकदम से हमारे सामने आकर हमें अकस्मात ही झटका दे दे।
ऐसी खुशी चेहरे से ही बयां हो जाती है, और भाव चेहरे के ऐसे होते हैं कि हम उस ताज्जुब, विस्मय, आश्चर्य, अचरज, अचम्भे, घबराहट और हैरत भरे चेहरे को एकदम से पहचान सकते
हैं, जब हम किसी को भी आश्चर्यजनक परिस्थितियों में डालते हैं तो खुद हमें ही पता नहीं होता है कि इस वातावरण को कैसे बदला जाये, खुद हम भी उस आनंद के अतिरेक के क्षण में आनंदित हो पता नहीं किसी नये अनुभव की सैर करते हैं। वातावरण में इतनी ऊर्जा होती है कि उस क्षण को हम कई बार तो गई वर्षों तक याद कर करके जीते हैं, और हमेशा यह क्षण हमारे तात्कालिक वातावरण को ऊर्जावान बना देते हैं। और वह क्षण हम कई वर्षों तक जीवित रखते हैं, इस प्रकार एक लम्हे की उम्र हम कई गुना बड़ा देते हैं।
जब मैं भारत के बाहर मासिक ट्रिप पर रहता था तो भारत आने में मुझे लगभग 12 घंटों की यात्रा करनी होती थी, और मैं हर बार अपने बेटेलाल के लिये कोई न कोई ऐसी चीज ले जाता था कि वह मेरे आने का हमेशा इंतजार करता रहता था, हालांकि मेरे आने जाने की तारीखें बिल्कुल ही निश्चित होती थीं पर मैंने कभी भी पहले नहीं बताया कि मैं आ रहा हूँ और हमेशा घरवाली को भी बोल रखा था कि मेरे आने की तारीखों का बेटेलाल से जिक्र न करे, क्योंकि अगर बेटेलाल को पता रहता था तो वह फोन कर करके दम निकाल देता था, कि डैडी अब और कितनी देर लगने वाली है, आपका प्लेन थोड़ी और तेजी से नहीं उड़ सकता क्या या फिर टैक्सी वाले भैया को बोलो कि और तेज चलाये।
मेरे घर पहुँचने का समय हमेशा ही सुबह होता था और तब वह सोकर उठा नहीं होता था, और मैं बेटेलाल के बगल में ही लेटकर धीरे से उसको प्यार करता था, तो बेटेलाल आनंदातिरेक
हो उठते थे, उनकी ऊर्जा स्फूर्ति और ताजगी देखते ही बनती थी, बिल्कुल वैसी ही ताजगी जैसे कि कोको कोला पीने के बाद आ जाती है, मन खुशियों से झूम उठता है, हमारे बेटेलाल को भी कोको कोला बहुत पसंद है, और हम आते समय हमेशा ही उनके लिये एक कोको कोला ले आते थे, बेटेलाल की खुशी दोगुना हो जाती थी।
हम जीवन मे संघर्ष करते हैं, अपने लिये और अपने परिवार के लिये । सब खुश रहें, सब जीवन के आनंद साथ लें । जब हम संघर्ष करते हैं तब और जब हम संघर्ष कर किसी मुकाम पर पहुँच जाते हैं तब भी घर जाने का अहसास ही तन और मन में स्फूर्ती भर देता है। घर जाने का मतलब कि हम हमारी कामकाजी थकान से रिलेक्स हो जाते हैं और अपने लिये नई ऊर्जा का
संचार करते हैं। घर पर अपने परिवार से मिलने की खुशी हमेशा ही रहती है।
मैंने जब से नौकरी करनी शुरू की तब से ही हमेशा मेरे काम में घूमना शामिल रहा, कभी ज्यादा दिनों को लिये तो कभी कम दिनों के लिये तो कभी सुबह जल्दी जाकर देर रात तक वापिस घर आना। नौकरी के शुरूआती दिनों में जब मेरी शादी नहीं हुई थी तब भी मैं घर जाने पर बहुत खुश होता था। घर जाने का सुकून कुछ और ही होता था, माँ पिताजी को देखकर ही
सारी थकान मिट जाती थी, उनके साथ मिलकर उनकी हँसी, उनकी डाँट, उनका प्यार सबमें अपना अलग ही अपनापन लगता था। घर पहुँचने का इंतजार इसलिये भी रहता था कि बाहर कोई बड़ी उपलब्धि प्राप्त हुई तो सबसे पहले घर पर परिवार के साथ बाँटने में ही मजा आता था। मेरे बगीचे के पौधे और उनके फल फूलों के बीच मैं अपने आप को सातवें आसमान पर पाता था।
जब शादी हुई तो भी नौकरी में यात्राएँ चलती ही रहीं और अब घर आने के लिये घरवाली जो कि हमारे जीवन में सबसे अच्छी दोस्त भी होती है, उसके साथ ज्यादा समय बिताने के लिये भी और बहुत सी बातें साझा करने के लिये भी मन उतावला रहता था। ऐसा लगता था कि बस अभी पंख लग जायें और अभी मैं घर पहुँच जाऊँ, कई बार मैं बहुत से उपहार लेकर घर जाता था, तो भी ऐसा लगता था कि बस उपहार खरीदते ही घर पहुँच जाऊँ और झट से उपहार घर पर सबको दे दूँ।
जैसे जैसे जिम्मेदारियाँ बढ़ती गईं अपने कैरियर में भी आगे बड़ते गये, देश के साथ ही विदेश की भी यात्राएँ होने लगीं, अब कुछ हजार किमी की जगह कई हजार किमी दूर हवाईजहाज में बैठकर आना जाना होता था और परिवार के साथ केवल वीडियो चैटिंग पर ही बात किया करते थे, देख सकते थे पर वह अहसास नहीं होता था जो घर पर होता था, जब भी मैं वापिस भारत अपने घर के लिये निकलता था, तो बस ऐसा लगता था कि अब मेरी सारी थकान मेरे बेटे की हँसी से ही मिट जायेगी, मेरा बेटा मेरी गोद में आकर मुझे बहुत सारा प्यार करेगा, और फिर डैडी डैडी आवाज लगाकर बस मेरे आगे पीछे घूमता रहेगा। फिर मेरे साथ अपने गेम्स खेलने की जिद भी करेगा और मैं बेटे के साथ इन सारी बातों को यादकर ही खुश हो लेता था, घर जाने की खबर ही मन में स्फूर्ति भर देती है। आज भी शाम के घर पहुँचने का इंतजार इसलिये ही होता है कि घरवाली और बेटा, मैं दोनों के खिलखिलाते चेहरे देखकर ही सारे दिन की थकान छूमंतर हो जाती है।
कचरा फैलाने के मामले में हम भारतीय महान हैं । और कचरा भी हम इतनी बेशर्मी और बेहयाई से फैलाते हैं जबकि हमें पता है कि यही कचरा हम सबको परेशान कर रहा है इसलिये हम सबको बड़े से बड़े पुरस्कार से सम्मानित किया जाना चाहिये, कम से कम इसकी शुरूआत गली से करनी चाहिये या घर कहना ही बेहतर होगा, जब हमारा घर साफ सुथरा होगा, तभी गली, मोहल्ले, सड़कें और उनके किनारे साफ होंगे।
हमारे यहाँ घर में कई लोगों की आदत होती है कि रात में या सुबह कचरा घर में कहीं भी डाल दिया कि अब झाड़ू तो लगेगी ही तो साफ हो जायेगा, जबकि दो कदम पर ही कचरापेटी रखी है, वहाँ तक जाने की जहमत नहीं उठायेंगे। वैसे ही हम भारतीयों को नाक बहुत आती है और कुछ लोग तो उसका सेमड़ा भी उदरस्थ करने में माहिर होते हैं, जो उदरस्थ नहीं कर पाते वे सबसे पहले अपने बैठने के स्थान पर नीचे हाथ डालकर वह नाक का सेमड़ा चिपका देंगे या फिर उँगलियों के बीच सेमड़े को इतना घुमायेंगे कि वह कड़क हो जाये और फिर वे आसानी से उसे सम्मान के साथ बिना किसी को बोध हुए कहीं भी फेंक देंगे। इसलिये भी मैं कभी भी सार्वजनिक स्थानों जैसे कि थियेटर, फिल्म हॉल, बस, ट्रेन और हवाईजहाज में अपने हाथ सीट के नीचे ले जाने से कतराता हूँ।
हमारे घर में कचरापेटी के अलावा भी बहुत सी जगहें कचरा डालने के लिये माकूल महसूस होती हैं, जैसे कि पलंग पर बैठे हैं और टॉफी खा रहे हैं, तो उसका रैपर फेंकने कौन कचरापेटी तक जायेगा, तो टॉफी का रैपर मोड़कर गोली बनाकर वहीं गद्दे के नीचे फँसा दिया, अगर गद्दा उठ पाने की स्थिती में नहीं है तो फिर पलंग के पीछे ही रैपर को सरका दिया, अगर वह जगह भी नहीं है और पास में ही कहीं कोई अलमारी रखी है तो उसके पीछे सरका दिया, वहाँ पर भी जगह नहीं मिली तो आखिरकार सबकी आँख बचाकर कचरा जमीन पर अपनी चप्प्ल या पैर के पास फेंका और धीरे से पलंग के नीचे सरका दिया। यह व्यवहार अपने सार्वजनिक जीवन में लगभग हर जगह देख सकते हैं।
गुड़गाँव से दिल्ली धौलाकुआँ होते हुए हाईवे से जाते हैं, तो लगता है कि शायद यह सड़क विश्वस्तर की तो होगी ही, पर जब उस पर चलते हुए पुराने ट्रक और बस दिखते हैं जो कि प्रदूषण फैलाते हुए अपनी बहुत ही धीमी रफ्तार से बड़े जाते हैं, इनमें से कई बस ट्रक में से तेल निकल रहा होता है, और कई सभ्य लोग अपनी बड़ी बड़ी गाड़ियों में सफर कर रहे होते हैं, पर अधिकतर ये कार वाले लोग इतने असभ्य हो जाते हैं कि कहीं भी किधर से भी पानी की खाली बोतल फेंक देंगे या फिर कोई चिप्स का पैकेट, इच्छा होती है कि अगर इनके घर का पता मेरे पास होता तो मैं उनको यही कचरा उनके घर पर वापस से सम्मान के रूप में देने जाता, कि भाईसाहब आप अपना यह कचरा कल हाईवे पर छोड़ गये थे।
यह पोस्ट इंड़ीब्लॉगर के हैप्पी अवर के लिये लिखी गई है, जो कि टाईम्स ऑफ इंडिया के लिये है, ज्यादा कचरा कैसे फैलायें, इसके लिये आप यहाँ भी क्लिक करके देख सकते हैं http://greatindian.timesofindia.com/
बहुत दिनों से घूमने का कार्यक्रम बना रहे थे, बैंगलोर और मुँबई इतने समय रहकर आ गये परंतु आलस कहें या समय न मिल पाना कहें, घूमने नहीं जा पाये, अब गुड़गाँव आ गये हैं, यहाँ भी आये हुए 6 महीने हो आये हैं, परंतु यहाँ आकर कार खरीद लेने से कहीं भी घूमना फिरना आसान हो गया है, दो बार तो आगरा, मथुरा और एक बार वृन्दावन हो आये हैं, और खैर दिल्ली तो मौका लगते किसी भी दिन निकल पड़ते हैं।
अब वहाँ घूमने जाने की ज्यादा इच्छा भी नहीं रही जहाँ बहुत ज्यादा चहल पहल रहती हो और दिमाग को शांति नहीं मिलती है, अब सोचा है कि कहीं प्राकृतिक स्थानों पर जाकर मानसिक शांति पाई जाये। तब हमने एयरबीएनबी की वेबसाईट पर जाकर उन जगहों पर रहने की जगह ढ़ूढ़ने के लिये यह वेबसाईट बहुत काम आई।
हमने सोचा कि किसी ग्रामीण क्षैत्र में भी हमे पर्यटन करना चाहिये, जहाँ हम अपने ग्रामीण जीवन की झलक ले सकें तो हमें यह जगह बहुत ही अच्छी लगी । Banni Khera -Farm Stay & activities बन्नीखेड़ा गुड़गाँव के पास रोहतक में है और किसी भी सप्ताहांत में जाया जा सकता है, यहाँ पर साईकिलिंग, खेती और भी बहुत सी गतिविधियाँ हैं, और प्रकृति के बीच भी है।
हमें हिमाचल प्रदेश हमेशा से ही लुभाता रहा है, जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहाँ हिम का आँचल है, और हिम याने कि बर्फ किसे अच्छी नहीं लगती, सभी को अच्छी लगती है, बादल बहुत ही नीचे पहाड़ों में भ्रमण करते हैं, चीड़ के ऊँचे ऊँचे वृक्ष और तेज हवाओं से उनसे आती आवाजें हमेशा से ही लुभाती रही हैं, जैसे पहले फिल्मों में हीरो हीरोइन इन्हीं पेड़ों के चारों और घूमकर गाना गाते थे, हमें जगह पसंद आयी कोटघर, धरती पर स्वर्ग KOTGARH,heaven on earth.
उत्तराखंड में किसी गाँव में गाँववालों के साथ उनके मध्य रहना एक अलग ही अनुभव होगा यह सोचकर हमने लखवार जो कि देहरादून से मात्र दोसौ किमी. की दूरी पर है, का चयन किया। यहाँ पहाड़ों के मध्य देहाती परिवेश में रहने का लुत्फ उठाने के लिये A House in the Himalayas हमें हिमालय के पास लखवार बेहद जम रहा है।
शिमला जाना किसे अच्छा नहीं लगता और ऊपर से यह हिमाचल प्रदेश की राजधानी भी है, शिमला की मॉल रोड बहुत प्रसिद्ध है, बस यहाँ सीजन में जाओ तो हर चीज महँगी मिलती है, हमें सोलन में यह जगह Shimla Affordable Luxury Flat Solanरहने के लिय जमी क्योंकि यह एक तो हाईवे पर ही है और हैरीटेज पार्क यहाँ से मात्र 7 किमी है, कसौली 31 और शिमला केवल 45 मिनिट का रास्ता है।
अगर हिमाचल में प्रकृति के बीच में न रहे तो वाकई हिमाचल घूमना अधूरा है, हिमाचल और हिमालय के प्राकृतिक वातावरण में अगर साहसिक कार्यों मेंहिस्सा न लो तो यात्रा अधूरी ही होती है, वहाँ हमें यह Camp Roxx- Adventure Camp निजी कैम्प बहुत ही पसंद आया जिसमें कि उनका रूकने से लेकर खाने पीने एवं पर्यटन की छोटी से छोटी बातों का ध्यान रखा जाता है, यह नहान और शिमला के मध्य है, और कांगोजोड़ी जंगल में है।
आप भी एयरबीएनबी से मेरे रैफरल से जुड़ सकते हैं और विश्व के बेहतरीन रहने के स्थानों को चयन कर सकते हैं।
5 नवंबर 2014 को केन्द्रीय मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद ने लगभग 2,375 करोड़ रूपयों की सहायता 23 केन्द्रीय सहकारी बैंकों को देने की टीवी पर घोषणा की। केन्द्रीय सहकारी बैंकों का जाल पूरा भारत में विस्तारित है। इन 23 केन्द्रीय सहकारी बैंकों में से 16 बैंकें उत्तर प्रदेश, 3 जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र में, 1 पश्चिम बंगाल में हैं । मंत्री जी का कहना है कि यह कदम छोटे निवेशकों के हितों के लिये उठाया गया है । एक कैबिनेट मीटिंग में इतनी बड़ी राशि जो कि भारत की जनता की मेहनत की गाढ़ी कमाई से टैक्स के रूप में सरकार के पास आती है, से देना निश्चित किया गया । इसमें कुछ हास्यासपद नियम बैंकों के लिये बनाये गये हैं, जैसे कि 15 प्रतिशत की विकास दर होना चाहिये, खराब ऋणों को 2 वर्ष में आधा वसूल कर लेंगे। इन दोनों का होना लगभग नामुमकिन है, क्योंकि केन्द्रीय सहकारी बैंकें राजनैतिक हितों को भी साधती हैं।
एक बड़े अखबार के मुताबिक तो 45 सहकारी बैंकों के ऊपर भारतीय रिजर्व बैंक अर्थदंड भी लगा सकता है, जिसमें से 23 सहकारी बैंकों के पास तो बैंकिंग का लाइसेंस भी नहीं है और 4 प्रतिशत पूँजी-पर्याप्तता का अनुपात जो कि लगभग 2100 करोड़ रूपये होता है, वह भी नहीं है। ये 23 सहकारी बैंके वही लगती हैं, जिनका उद्धार हमारे द्वारा दिये गये टैक्स के पैसे से होना है।
सरकार का यह निर्णय बहुत ही असंवेदनशील और उनके काम करने के तरीके का खौफनाक नमूना है, सरकार द्वारा ऋणों के वापस न आने के कारणों को अनदेखा करना निश्चित ही चिंता का विषय है। केन्द्रीय सहकारी बैंकों में राजनैतिक घुसपैठ और उनके द्वारा प्रबंधन में मनमानी करना किसी से छुपा नहीं है और यही कारण है कि अशोध्य ऋणों (Irrecoverable loans) की ज्यादा संख्या का कारण राजनैतिक व्यक्ति का ऋण से जुड़ा होना है, जो कि जानबूझकर बकायादार (Wilful Defaulters) रहते हैं।
इसके परिणाम स्वरूप, सहकारी बैंकों पर नियंत्रण ठीक न होना और दीवालिया होना व्यवस्था के लिये चेतावनी है। बदकिस्मती से अधिकतर लोगों को इन बैंकों के खराब नियंत्रण के बारे में पता ही नहीं होता है, जो कि अक्सर ही छोटे निवेशकों को अधिक ब्याज दरों से लुभाते हैं। मजे की बात यह है कि इन केन्द्रीय सहकारी बैंकों में बैंकिंग से संबंधित निर्णयों में राजनैतिक हित हावी रहते हैं, और सरकार के नियमों के मुताबिक सभी बैंकों में एक लाख रूपयों तक के निवेश को DICGC (Deposit Insurance and Credit guarantee Corporation) द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाती है। जिसमें ये केन्द्रीय सहकारी बैंकें भी शामिल हैं।
यहाँ पर यह उद्घृत करना जरूरी है कि केतन पारिख के द्वारा 2000-2001 में माधवपुरा मर्केंटाइल सहकारी बैंक में की गई धोखाधड़ी के बाद पहले की भाजपा सरकार एन.डी.ए. के शासनकाल (1999-2004) में भारतीय रिजर्व बैंक को लचीला रुख अपनाने के कहा और DICGC (Deposit Insurance and Credit guarantee Corporation) को अपने नियमों को शिथिल करने के लिये कहा गया। माधवपुरा मर्केंटाइल सहकारी बैंक के प्रबंधन ने घोटालेबाज केतन पारिख को 1000 करोड़ रूपयों को ऋण सारे नियम ताक पर रख कर बैंक को बर्बाद कर दिया। जबकि DICGC (Deposit Insurance and Credit guarantee Corporation) के नियमों के मुताबिक निवेश पर किये गये बीमा का भुगतान केवल बैंक के दीवालिया होने की स्थिती में ही किया जा सकता है। उस समय भाजपा के बड़े शक्तिशाली नेता को शांत करने के लिये माधवपुरा मर्केंटाइल सहकारी बैंक की स्थिती को अपवादस्वरूप बताकर हजारों करोड़ों रूपयों को भुगतान कर दिया गया। और उस समय की लगभग समाप्त सी हो चुकी मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भी कोई विरोध नहीं किया। वाकई भारत के वित्तीय निवेशकों के लिये वह दिन बहुत ही बुरा होगा अगर वापिस से इस तरह का कोई बड़ा सहकारी बैंक घोटाला सामने आता है और भाजपा सरकार ने पहले ही इन केन्द्रीय सहकारी बैंकों को आश्रय देने का निर्णय ले लिया है बनिस्बत कि इन केन्द्रीय सहकारी बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंकों के सीधे सरल और स्पष्ट नियंत्रण और निरीक्षण में दिया जाता।
हमारे पैसों से इन केन्द्रीय सहकारी बैंकों को मदद देना सरकार के अच्छे शासन प्रणाली और साफ सुथरे प्रबंधन के संकेत नहीं हैं और उस सुधार बदलाव के भी जिसका वादा हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी किया था।