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पुनीत राजकुमार की असामयिक मृत्यु

कल कन्नड़ अभिनेता पुनीत राजकुमार की ह्रदयाघात से मृत्यु हो गई, उनकी उम्र केवल 46 वर्ष थी, मतलब कि बिल्कुल मेरी उम्र के थे। हालाँकि मैंने शायद उनकी एक ही फ़िल्म देखी थी, उनके भाई शिवा राजकुमार के साथ हमने बेटेलाल की एक फ़ोटो बैंगलोर एयरपोर्ट पर ली थी। कन्नड़ फ़िल्में न देखने के कारण हमें बहुत ज़्यादा कुछ पता नहीं हैं, परंतु एक बात देखी है कि दक्षिण भारत में अपने नेताओं के लिये ज़बरदस्त प्यार देखने को मिलता है, जिसकी मिसाल इसी बात से है कि कई अभिनेताओं व अभिनेत्रियों को राजगद्दी पर वर्षों तक बैठाये रखा।

कल जब बैंगलोर के फेसुबक पेज पर जहाँ कि पुनीत राजकुमार के बारे में जानकारी दी जा रही थी वहीँ कमेंट पढ़ रहा था, कई लोगों ने कमेंट में लिखा था कि वैक्सीन के बाद के साइड इफ़ेक्ट हैं, और वैक्सीन के बाद बहुत सी गंभीर बीमारियों का लोगों को सामना करना पड़ रहा है।वहीं मेरा मत भी यही है कि वैक्सीन लगने के बाद मेरे अपने ही कई परिचितों को मैंने खोया, इससे मैं कई दिनों तक टूटा रहा। वैक्सीन के इन साइड इफेक्टों की सरकार को या किसी स्वतंत्र एजेंसी को जाँच करनी चाहिये।

कल शाम को बाज़ार गये थे, तो वहाँ चौक पर पुनीत राजकुमार की फ़ोटो और कर्नाटक का झंडा शोक स्वरूप झुका रखा था। बैंगलोर में लगभग हर क्षैत्र में किसी एक चौक पर इवेंट के लिये जगह है, जहाँ लोकल लोग इकठ्ठे होकर कन्नड़ त्योहार मनाते हैं। वहीं आसपास अच्छे से सजाया भी जाता है। अब दो दिन बाद १ नवंबर को कर्नाटक राज्योत्सव है, जिसकी लगभग हर कंपनी में छुट्टी होती है उस दिन हर चौक पर सजाया जाता है, ऑटो टैक्सी पर फूलों की मालायें व उन पर कर्नाटक राज्य का झंडा लगाकर रैली भी निकालते हैं, साथ ही दिनभर ऐसे ही घूमते हैं। हमें भी अच्छा लगता है, क्योंकि इस तरह से त्योहारों को जब आनंददायक बनाया जायेगा, तब ही लोग इस तरह के इवेंट से जुड़ेंगे।

पुनीत राजकुमार की इस असामयिक मृत्यु पर हमें भी बहुत दुख हुआ, वे बहुत से ऐसे सामाजिक कार्यों में मदद करते थे, कई जगह चंदा देते थे, उनकी मदद से कई लोगों के जीवन चल रहे थे, वे अब अपने आपको अनाथ मान रहे हैं।

ज़िंदगी कितनी भी हो, छोटी या बड़ी बस उसका इंपेक्ट लोगों पर लंबे समय तक रहना चाहिये, वह भी अच्छे स्वरूप में, ऐसी कोशिश हर किसी को करनी चाहिये।

ब्लॉग लिखन में अनियमितता है तो टोका करें मित्रों

कल एक मित्र ने फेसबुक पर कहा कि आजकल फिर से ब्लॉग लिखना बंद कर दिया, दरअसल यह शिकायत बहुत से लोगों की है, मैं पहले अपने अनुभव या कुछ चिंतन मनन करता रहता था, लिख देता हूँ, पर यह सब आज नहीं हो पा रहा है। ऐसा नहीं कि प्रक्रिया स्थगित हो गई है, इसके पीछे केवल और केवल मेरी थोड़ा सा आलसीपन है। इस आलसीपन को भगाने के लिये मैंने अपने ट्रेड भी शेयर करना शुरू किया था, परंतु सुबह 9 से शाम 9 बजे तक कंप्यूटर में आँखें गढ़ाये इतनी थकान हो जाती है कि उसके बाद और उसके पहले कुछ भी कंप्यूटर पर करने की इच्छा ही नहीं होती।

ब्लॉग पर लिखना एक शांत दिमाग से होता है, जब तक दिमाग अशांत है लिखना मुश्किल हो जाता है, बहुत दिनों से कोशिश भी कर रहा हूँ कि अब नियमित रहूँ, परंतु केवल इसी चक्कर में ब्लॉग लेखन व साथ ही यूट्यूब चैनल पर भी कंटेंट नहीं डाल पा रहा हूँ, अब फिर से कोशिश करेंगे, वो एक कविता भी है कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

आजकल दिमाग कहीं न कहीं किसी न किसी चक्रव्यूह को तोड़ने में ही फँसा रहता है, दिमाग भी इन जालों को समझ समझकर तोड़ने में थक तो जाता ही है। और ब्लॉग लिखना या कुछ भी अपने मन को लिखना हमेशा ही सुकून देता है, ऐसा लगता ही नहीं कि हम कोई काम कर रहे हैं, बल्कि यह थकान मिटाता है तथा अपने आपको ऊर्जा से भरने वाला भी होता है। कि हमने अपने मन की बात, दिल की बात कहीं लिख दी है, अब वो हर कोई पढ़ सकता है जो हमारे मानसिक तार से तार जोड़ पा रहा होगा।

आजकल सुबह ध्यान वापस से करने की कोशिश कर रहा हूँ, परंतु नहीं हो पा रहा है, कहीं सुना भी है पढ़ा भी है कि ध्यान पर अभ्यास निरंतर होना चाहिये, जो कि कम से कम रोज एक घंटा होना चाहिये, जब हमारे पास ध्यान का 10 हजार घंटों का अनुभव होगा, तब हम उचित रूप से ध्यान का लाभ ले पायेंगे, यह बरसों की साधना है, जिसे एक दिन, एक महीने या एक वर्ष में नहीं पाया जा सकता है। वैसे तो हर कार्य के लिये साधना की जरूरत होती है, कोई भी कार्य बेहद सरल नहीं होता है, जब तक किसी काम में हाथ न डालो तब तक सब सरल लगता है, जटिलतायें तो तभी पता चलती हैं जब उसक कार्य को करना शुरू करते हैं।

पहले भी लिखना बेहद आसान नहीं था, अब भी नहीं है, दिल की बात लिखने में ज्यादा समय नहीं लगता, टाईपिंग की रफ्तार बहुत बढ़िया है, बस मन होना चाहिये, जिसके लिये बहुत समय लगता है। कोशिश करेंगे कि सुबह थोड़ा समय निकालकर अब रोज ही कुछ न कुछ ब्लॉग लिखें। कोशिश यह भी करेंगे कि शाम को अपने शेयर बाजार के ट्रेड भी शेयर करें, यह हमारे लिये डायरी का काम भी करेगी, साथ ही कोई सीखना चाहेगा तो उसके लिये सीखने की कुछ सामग्री उपलब्ध होगी। विस्तार से ट्रेडिंग के बारे में उसकी मनोस्थिती के बारे में लिखना बोलना संभव नहीं, क्योंकि यह बहुत ही जटिल विषय है और शायद हम उसे अच्छे से लिखने में सक्षम नहीं हैं। क्योंकि यह विषय हमने अनुभव से सीखा है, कहीं किसी कक्षा में नहीं सिखाया गया, तो यह भी नहीं पता कि इस बारे में लिखना भी कैसे शुरू करें।

अंत में एक बात कहना चाहूँगा कि अगर ब्लॉग न लिख पायें तो जैसे भी हो टोका मारते रहें, फेसबुक पर मित्र हैं तो फेसबुक पर, ट्विटर पर हैं तो ट्विटर पर, या यहीं टिप्पणी पर, जब कहीं लिखा दिखता है कि मैं कुछ नहीं कर रहा हूँ, तो मेरे दिमाग के सेल एक्टिव होकर मुझसे वह काम करवा लेते हैं।

वैसे यह ब्लॉग पोस्ट सुबह 7 बजे छत पर ध्यान के बाद दरी पर बैठकर लिखी गई है।

पूर्वाग्रह होना अच्छा या बुरा

पूर्वाग्रह होना अच्छा या बुरा कैसा होता है, यह सभी लोग सोचते हैं क्योंकि यह एक बहुत अच्छी आदत नहीं, बल्कि बुरी आदत है। पहले अगर यह समझ लें कि पूर्वाग्रह क्या होता है तो बेहतर होगा, हम किसी के बारे में पहले से ही उसके आचरण, व्यवहार या कार्य के प्रति कोई भावना बना लें, वह पूर्वाग्रह कहलाता है। कई बार हम बिना मिले ही किसी के बारे में पढ़कर उसके बारे में सोच समझ लेते हैं, परंतु जब हम बात करते हैं, या मिलते हैं तो पूर्वाग्रह से ग्रसित होते हैं और कई बार हमारा पूर्वाग्रह गलत साबित होता है।

पूर्वाग्रह को हम घर में ही देख सकते हैं, अगर घर में दो बच्चे हैं एक अगर जल्दी समझ जाता है और ढंग से काम भी कर लेता है तो हम उसे होशियार की उपाधि दे देते हैं वहीं दूसरा बच्चा अगर उसी कार्य को देरी से समझकर करता है तो हमें उसे बेवकूफ या देर से समझनेवाले की उपाधि दे देते हैं। अगली बार कोई भी कार्य हो तो हम पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर पहले बच्चे को ही कहेंगे, जबकि हर व्यक्ति की अपनी विशेषता होती है, हो सकता है कि वह दूसरा बच्चा किसी ओर चीज में अच्छा हो जहाँ पहला बच्चा अच्छा न कर पाये।

पूर्वाग्रह हम लगभग हर रिश्ते में देख सकते हैं अपनी प्रोफेशनल लाईफ़ में भी देख सकते हैं, कई बार पूर्वाग्रह हम किसी की एक बात को पकड़कर बैठ जाते हैं और उसके आधार पर हम किसी भी व्यक्ति के साथ एक अजीब तरह का व्यवहार करने लगते हैं। यह भी तो हो सकता है कि जो आपको पूर्वाग्रह हो वह सही न हो, और उस व्यक्ति ने कार्य सीख लिया हो या फिर अपना व्यवहार ठीक कर लिया हो। परंतु हम मौक़ा ही नहीं देते, और हमेशा इस तरह के संवाद सुनने को मिलते हैं –

“मैंने तो पहले ही कहा था कि इसके बस की बात नहीं”

“मैंने तो पहले ही कहा था कि ये कुछ कर ही नहीं सकता”

“मुझे लगा ही था कि ये कुछ गड़बड़ कर सकता है”

“सोच ही रहा था कि अगर यह कार्य उसको देता तो सही प्रकार से हो जाता”

“काम देने के पहले ही लग रहा था कि तुम बहुत ढीले हो”

“तुम तो बेवकूफ हो बेवकूफ ही रहोगे, पता नहीं कब काम करना सीखोगे”

और भी पता नहीं क्या क्या संवाद हम अपने दैनिक जीवन में सुनते ही रहते हैं, कुछ संवाद शायद आपको अपनी याददाश्त में भी आ जायें और आप अपनी यादों में खो जायें।

कहने का मतलब केवल इतना ही है कि पूर्वाग्रह से ग्रसित न होकर हम एक बार ग़लत करने पर, उन्हें समझायें कि कैसे इस कार्य को अच्छे से कर सकते थे, या क्या गलती कर दी। और हमेशा ही दूसरा, तीसरा, चौथा …. मौक़ा देते रहें। नहीं तो सभी लोग वह कार्य कर ही नहीं पायेंगे, भले यह निजी जीवन की बात हो या प्रोफेशनल जीवन की।

आप भी टिप्पणी करके अपने विचार रखिये।

मानव प्रजाति के लिये शताब्दी का सबसे कठिन समय है

मार्च 2020 से मानव प्रजाति के लिये शताब्दी का सबसे कठिन समय है, यह कोरोना आया था लगभग नवंबर 2019 में और अब जून 2021 भी लगभग ख़त्म ही होने को आया है। यह डेढ़ साल सदियों के जैसा बीता है, शुरू में तो बहुत मज़ा आया, कि घर पर ही रहना है कहीं नहीं जाना है। पर धीरे धीरे यह भी कठिन होता गया। सब अपने आप में सिमट गये, नहीं यह कहना ठीक नहीं होगा कि सिमट गये, दरअसल समाज की भी यह अपनी मजबूरी थी अपने आपको सिमटने की। नहीं तो सभी को कोई न कोई नुक़सान हो सकता था।

सिमटने के चक्कर में हमारे मानसिक अवस्था पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा, मुझे लगता नहीं कि कोई भी इन प्रभावों से बच पाया होगा। जो निडर बनकर घूमते रहे कि हम स्वस्थ हैं हमें कोरोना नहीं होगा, सबसे पहले कोरोना ने उन्हें ही शिकार बनाया। फिर मौतें कम होने लगीं तो लोग बिना किसी डर के फिर से घूमने लगे और हमने अपने कई दोस्तों, परिचितों और रिश्तेदारों को मौत के मुँह में जाते देखा, पता नहीं इस वर्ष तो मैं कितनी बार और कितनी देर तक कई बार रोया हूँ, आज भी उनके चेहरे यकायक ही आँखों के सामने आ जाते हैं, और वे मुझसे अपनी ही आवाज़ों में बात करने लगते हैं, कभी कभी लगता है कि मैं पागल हो गया हूँ, परंतु ऐसा नहीं है, पता नहीं भाग्य को यही मंज़ूर था या उनकी थोड़ी सी लापरवाही से ऐसा हुआ।

कई मित्र ऐसे थे, जिनके लिये कार्य ही सर्वोपरि था, वे रोज़ ही अपने कार्यस्थल जाने में कोई देरी नहीं करते थे, परंतु कभी उन्होंने अपने परिवार के बारे में नहीं सोचा, यह दुख होता है। वे लोग बड़े स्वार्थी थे, हमारी इतनी बातें होती थीं, मिलकर, कॉ़ल पर, व्हाट्सऐप पर, ऐसा कुछ बचा नहीं जहाँ, अपने लोगों से बात नहीं होती थी, मैं बस अपने लोगों से यही कहता था, यहाँ तक कि जब मौक़ा मिलता जो अपरिचित थे, उनको भी कहने से नहीं चूकता था, कि परिवार अंततः आपके साथ रहेगा, अगर आपको कुछ हो गया तो कार्यस्थल पर तो सारे काम कोई ओर सँभाल लेगा, परंतु आपकी कमी परिवार में कोई पूरी नहीं कर पायेगा। जिस परिवार को आप सबसे आख़िरी प्राथमिकता पर रखते हो, वही हमेशा आपके काम आयेगा। कुछ दोस्तों को जब वे अपने अंतिम समय में अस्पताल में साँसों के लिये लड़ रहे थे, शायद बात समझ में भी आई, परंतु बस वह वक़्त समझने का नहीं था।

अंतिम वक़्त में कोई कितना भी समझ ले, अच्छा बुरा सब समझ ले, परंतु जो जीवन में खो गया वह खो गया। इतने लोगों के जाने के बाद अब मैं आत्मा को ढूँढने लगा हूँ, कई फ़िल्म, डाक्यूमेंट्री देखीं, किताबें पढ़ीं, और भी पढ़ रहा हूँ, कई बार लगता है कि यह सब बस कहने की बात है, अगर इस दुनिया में सभी तरह के लोग हैं ओर कोई बुरा है कोई अच्छा है, तो क्या वाक़ई कहीं इस सबका इंसाफ़ भी होता होगा। धरती पर इतनी जनसंख्या हो गई, भगवान भी इतनी आत्माओं का प्रोडक्शन करने में थक गये होंगे, शायद उनके यहाँ भी अब जगह न होगी। सब जगह किसी एक निश्चित संख्या में ही लोग रह सकते हैं। क्या वाक़ई मरने के बाद भी कोई दुनिया होती है, क्यों हम इतने सीधा सादा जीवन अपने किसी न किसी उसूल पर बिता देते हैं, क्यों कोई ग़लत कार्य करने के बाद अपने मन और दिमाग़ पर बोझ बना लेते हैं, इसका जवाब तो खैर मेरे पास नहीं। आत्मा और परमात्मा को कोई साफ़ उत्तर कहीं नहीं है, बस एक ही चीज मिली कि ख़ुद को ढूँढे पर सही तरीक़ा बताने वाला कोई है नहीं।

इस लंबे समय में घर के दौरान यह समझ में आया कि हम सामाजिक हैं अगर हमें अकेले ही रहने को लिये छोड़ दिया जाये तो हम पागल हो जायेंगे, हमें अपने आसपास लोग चाहिये, उनका अहसास चाहिये, हमारे जीवन में हर तरह का रस होना चाहिये। जीवन जीने के लिये अपना नहीं, साथ रहने वाले और साथ चलने वाले लोगों का खुश होना ज़रूरी है।

इस लंबे समय में कई नये कार्य हाथ में लिये, पर शायद ही कोई कार्य लगातार कर पा रहा हूँ, ऐसा लगता है कि करना तो सब कुछ चाहता हूँ परंतु क्यों करूँ? इसका उत्तर नहीं मिल रहा। दिमाग़ चलने बंद हो गया, मैं लोगों को किसी काम के लिये हाँ कह देता हूँ, यह भी कह देता हूँ कि मैं बहुत आलसी हूँ, परंतु सही बात तो यह है कि मैं आलसी नहीं हूँ अगर गोया आलसी होता तो इतना लंबा हिन्दी में यह बकवास या क़िस्सा लिख नहीं रहा होता, मैं कहीं कुछ ढूँढने में व्यस्त हूँ, जो मुझे मिलने से बहुत दूर है। मैं क्या ढूँढ रहा हूँ वह मुझे साफ़ है, पर कैसे और कहाँ से मिलेगा यह मुझे पता नहीं, न ही मैं लोगों से पूछना चाहता हूँ और न इस बारे में बताने चाहता हूँ।

प्रेम अपनी जगह है और संसार की व्यवहारिकता अपनी जगह है, कहते हैं कि मरने के बाद लोगों की बुराई नहीं करनी चाहिये, मैं बरसों से लोगों को समझा रहा हूँ कि हमेशा अपने परिवार के बारे में सोचो, वे ही हैं तुम्हारे पीछे, वे तुमसे किसी टार्गेट की उम्मीद नहीं करते, अगर किसी दिन बिना रोटी लिये घर आओगे न तो वे तुमसे उस दिन की रोटी नहीं माँगेंगे, वे बिना रोटी के भूख सहन करके सो जायेंगे, वे आपको ओर परेशान नहीं करेंगे, क्योंकि आप पहले से परेशान हैं, परंतु क्या वाक़ई आप अपने परिवार को मन से दिल से अपना पाये, या यह सब सोच पाये, नहीं तो कृप्या सोचिये।

मैं कोई नहीं होता किसी पर दबाव डालने वाला, बस विनती ही कर सकता हूँ, क्योंकि यह सदी का सबसे कठिन समय है, कब यह काल विकराल का रूप धर लेगा, किसी को पता नहीं।

old mon rum

किचन में रम की फुल बोतल रखें

व्यस्तता के चलते और घर वाला लेपटॉप बेटेलाल की पढ़ाई में बराबर व्यस्त था, तो ब्लॉग लिखने का समय ही नहीं मिल पाया। ऑफिस के लेपटॉप पर अधिकतर चीजें ब्लॉक होती हैं, सिक्योरिटी होना भी बहुत ज़रूरी है।

Trading लगातार चल रही है, पर लिख नहीं पा रहे, दिनचर्या बहुत व्यस्त हो गई है, घर पर ही रहते हुए भी समय निकालना बेहद कठिन प्रतीत होने लगा है।

समय कठिन है इस पर हमने कुछ फ़ेसबुक स्टेट लिखे थे – यहाँ भी लिख दे रहे हैं, जिससे सनद रहे – साथ ही दोस्तों के कमेंट भी कॉपी कर देते हैं –

इच्छाओं के रहते प्राण चले जायें तो वह हुई मृत्यु

ओर प्राण के रहते इच्छाएँ चली जाएं तो वह हुई मुक्ति।

किसी ने कहा है

कल मैं चालाक था इसलिये दुनिया बदलना चाहता था

आज मैं बुद्धिमान हूँ इसलिये अपनेआप को बदल रहा हूँ।

किचन में रम की फुल बोतल रखें, हम नहीं रख पाये अब तक लॉक डाउन लग गया।एक ढक्कन खुद पियें, एक ढक्कन सब्जी में मसाला पकने के बाद डालें, स्वाद बहुत बढ़िया आयेगा।सर्दी जुकाम हो तो एक ढक्कन रम को थोड़े गर्म पानी में मिलाकर पी लें।रम Old Monk ही उपयोग में लें, मिलिट्री वाली xxx मिल जाये तो बल्ले बल्ले।

  • AradhanaExactly…बेकिंग में भी यूज होती है
  • Aradhanaऔर यहाँ तो ठंड के कारण बराबर रखनी पड़ती है

Indu Puri Goswamiअरे वाह! पहले क्यों नही बताया? आज चार पांच पैग लगा ही लेती हूं , इतना काफ़ी है? या एक दो और चलेगा? 😜😜😜😜

  • Vivek RastogiIndu Puri Goswami एक ढक्कन बस, पैग तक नहीं जाना है
  • Indu Puri GoswamiVivek Rastogi Babu! डर गए?😀
  • Ali M SyedVivek Rastogi अब ढक्कन वाली लिमिट से क्या ? वो हर दिन चार पांच लगाने से इंकार तो नहीं कर रही हैं 
  • Ali M SyedIndu Puri Goswami नमस्कार , काहे डरेंगे कौन सा आप उनके कोटे की पीने वाले हो 
  • Indu Puri GoswamiAli M Syed सर जी! प्रणाम 🙏 कैसे हैं आप?
  • Ali M Syedजी। ठीक हूं । आपको अक्सर याद करता हूं । आज के गुनाहगार विवेक रस्तोगी माने जायें 😁

Indu Puri GoswamiAli M Syed sir! आप जैसा शख्स मुझे याद करे यह मेरे लिए सम्मान की बात है,🙏

Ashish Shrivastavaकितने ढक्कन से एक पैग बनता है

  • Prashant PriyadarshiAshish Shrivastava एक ढक्कन यूँ तो ढक्कन ही होता है, लेकिन 5 ml आता है उसमें अमूमन। एक पेग 30 ml का। 😁
  • Anurag Pandeyशायद तीन 😜
  • Anurag PandeyPrashant Priyadarshi हम 10ml समझ रहे थे। 😁
  • Prashant Priyadarshiअब जो गर दुनिया का सबसे बड़ा ढक्कन हो तो कुछ नहीं कह सकते।
  • Ashish ShrivastavaAnurag Pandey तुमने कितने ढक्कन लगा लिए ?
  • Prashant PriyadarshiAnurag Pandey इरू को दवा पिलाने के चक्कर में थोड़ा आइडिया लग गया है। 🙂
  • Anurag Pandeyहम सब जानते हैं। 😁
  • Ashish Shrivastavaहमारी संगत में अखण्ड बेवड़े रहे है। वो पैग नही, पौवा , अद्धा और खम्बे में गिनते थे
  • Prashant Priyadarshiकिसी जमाने में एक पौवा में आधा बोतल बीयर मिला कर हम भी पिये हुए हैं। 😅😅
  • ActiveAnurag PandeyTVF का एक वीडियो था first drink with father… उसी में ये 30ml 60ml स्माल पैग लार्ज पैग जाने थे। बाकी हम भी दवा वाले ढक्कन से नापकर गणित लगाए थे।
  • Prashant PriyadarshiAnurag Pandey बाप के सामने वो कैसे सहम कर पीता है। 😂😂😂
  • Ashish Shrivastavaवैसे पैग वाले ग्लास मस्त लगते है, कई बार खरीदने का मूड भी बना लेकिन
  • Prashant PriyadarshiAshish Shrivastava हम बीयर वाला एकदम शानदार मग खरीद कर रखे हुए हैं। बीयर बस एक बार पिये हैं उससे, बाकी टाइम बटर मिल्क के लिए यूज में आता है। 😅😅
  • Ashish Shrivastavaबियर मग तो बहुउपयोगी है।
  • Prashant Priyadarshiहाँ। बीच में पापा को नारियल पानी भी बियर मग में पिलाते थे। 😂😂वैसे मेरे पास जो मग है उसकी कीमत तकरीबन 750 की एक पड़ी थी।
  • Prashant Priyadarshiऔर है वो एकदम परफेक्ट। 650 ml ही आता है उसमें 🙂
  • ActiveVivek RastogiPrashant Priyadarshi लो उतने में तो 5 बीयर आ जातीं
  • Madhavi Pandeyमेरे पतिदेव रोज़ 200-400 ₹ मांगते हैं बियर के लिए, शर्त ये कि मैं भी साथ दूँ। इसी चक्कर में बेचारे आज तक शुरू भी नहीं कर पाए 😆
  • ActiveVivek RastogiMadhavi Pandey साथ दीजिये, ये तो गलत बात है
  • Madhavi PandeyVivek Rastogi बेचारे भले मानस ने आज तक इसी उम्मीद में हाथ नहीं लगाई इन चीजों को कि बीवी के साथ ही शुरू करना है और बीवी को सुकून कि एक टास्क कम है जीवन में 
सोनू सूद

काश हमारा हर अभिनेता सोनू सूद होता

हम लोग बचपन से फ़िल्में देखकर बड़े हुए, फिर टीवी के धारावाहिक देखे, फ़िल्मों और धारावाहिकों से हमारे मन और व्यवहार पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इतने अभिेनेता अभिनेत्री हमारे फ़िल्म जगत में हैं, टीवी जगत में हैं, उनसे कई बार हम लोग इतनी चीजें सीखे। परंतु असल ज़िंदगी में वे लोग हमें सिखाने में असफल रहे। काश कि हमारा हर अभिनेता अभिनेत्री सोनू सूद जैसा बल रखता, मदद करने की इच्छा अंदर से होती है। अगर अभिनेता लोग अपने सेलिब्रिटी स्टेटस का उपयोग करते हैं तो बहुत से संसाधनों को जुटाना बहुत आसान हो जाता है।

दरअसल एक बात ओर है कि मदद करने की इच्छा सभी की नहीं होती, पर बस केवल एक ही अभिनेता सोनू सूद ही क्यों आगे आया, यह समझ से परे है, अभिनेता जो कि फ़िल्म स्क्रीन पर विलेन की भूमिका निभाता है, विलेन जो कि हमारे जीवन में बुरा कार्य करते हैं, पर असल जीवन में वही विलेन वाक़ई हीरो है, और बाक़ी के सारे हीरो, हीरोईन असल ज़िंदगी में विलेन लगने लगे हैं।

ये जो पर्दे के हीरो हैं वे केवल सरकार के पक्ष में ही हमेशा ट्विटर हो या समाचार का माध्यम हो, बोलते हैं। आज जब जनता के लिये बात करोगे तभी जनता को ख़ुशी होगी, केवल सरकार का पक्ष हमेशा रखने से तो किसी समस्या का समाधान नहीं होने वाला, इस तरह से असल में आप हीरो हीरोईन लोग विलेन का रोल अदा कर रहे हैं। देखते हुए लग रहा है कि आप जनता को प्यार नहीं करते, अपने चाहने वालों को नहीं चाहते, आपके लिये केवल पॉवर और पैसा ही सबकुछ है। आपके पास जो कुछ है वह चला न जाये उससे डरते हैं।

बस यही चाहत थी कि काश हमारा हर अभिनेता सोनू सूद होता, वह तो किसी फ़िल्मी ख़ानदान से भी नहीं है, अपने दम पर फ़िल्मों में अपना कैरियर बनाया, शायद सोनू सूद ही खरा सोना है। काश कि हमारे भारत में ऐसी आपदा के समय में हर क्षैत्र से सोनू सूद आते और सरकार की इस कमी को पूरा करते।

सोनू सूद के ट्वीट छोटे होते हैं परंतु ऊर्जा से भरे होते हैं, जिस तरह से वे लोगों की मदद करते हैं, उससे बहुत आशा बंधती है –

कुछ ट्वीट यहाँ बताता हूँ –

sonu sood@SonuSood·दिल टूटा है .. हौंसला नहीं।

Can’t sleep.. In the middle of night when my phone rings, all I can hear is a desperate voice pleading to save his/her loved ones. We are living in tough times but tomorrow is going to be better, just hold your reigns tight. Together we will win. Just we need some more hands.

Will be done. Your baby is our responsibility. – इस तरह की ट्वीट से विश्वास ओर बढ़ता है।

15 अगस्त को देशभक्ति दिखाने वालों के लिए संदेश ; देश के लिए कुछ करने और देशभक्ति दिखाने का इससे ज़रूरी समय कभी नहीं आएगा

सिनेमा हाल में टिकट्स की ब्लैक होते हुए देखा था। अब जान बचाने के लिए दवाइयों और ऑक्सीजन की ब्लैक होते देख रहा हूं।

मुट्ठी खोल के तो देख.. शायद तेरी हाथ की लकीरों में किसी की जान बचाना लिखा हो।

प्लेटफार्म पर राजनीति होती है। और जमीन पर काम

मोटापा कम कैसे करें

मोटापा कम कैसे करें

जब पिछला ब्लॉग लिखा तो बहुत से मित्रों का आग्रह था कि मोटापा कम कैसे करें, इस पर भी लिखें। दरअसल मैं अपने ही मोटापे से बहुत परेशान हूँ, शायद यह मेरे शरीर की प्रकृति है कि थोड़ी सी खानपान में ढ़ील दो और मोटापा वापिस से शरीर पर हावी होने लगता है। जब मोटापा शरीर पर चढ़ता है तो बहुत सारी तकलीफ़ें भी साथ में लेकर आता है, जैसे कि उच्चरक्ताचाप, मधुमेह, मुझे उच्चारक्ताचाप है, जब मैं अपनी ज़बान पर कंट्रोल रखता हूँ तब कई बार तो डॉक्टर ने ख़ुद ही मेरी बीपी की दवाई बंद कर दी थी। पर वजन बढ़ने पर फिर से बीपी की दवाई शुरू हो जाती है। खर्राटे शुरू हो जाते हैं। दिनभर अपना पेट ऐसा लगता है कि फूले ही जा रहा है, कुल मिलाकर कोई बहुत अच्छा नहीं लगता है।

मोटापा कंट्रोल करना इतना मुश्किल भी नहीं पर उतना आसान भी नहीं। मैं अपना तरीक़ा बता सकता हूँ कि मैंने कैसे मोटापे को कंट्रोल किया था।

खानपान पर संयम –

क्या नहीं खाना है – डेयरी उत्पाद बिल्कुल भी नहीं लेने हैं, दूध, दही, घी, पनीर।

डब्बाबंद पोलीथीन वाली चीजें नहीं खानी है – चिप्स, नमकीन, मिठाई, बिस्कुट

खाना क्या है – सलाद, फल, अंकुरित खाने में 70% कच्चा याने कि सलाद 30% पका हुआ।

पेट को साफ़ करने के लिये – एक महीने तक तीन समय पानी से एनिमा लेना है।

शरीर को हल्का रखने के लिये – दिन में कम से कम दो बार यानि कि सुबह और शाम नहाना है, हो सके तो तीन बार याने कि दोपहर में भी नहाना है।

16 घंटे का व्रत रोज़ रखना है, जिसमें पानी भी नहीं पीना है, कुछ खाना भी नहीं है। मतलब अगर शाम 8 बजे खाना खा लिया फिर उसके बाद अगले दिन दोपहर 12 बजे तक कुछ नहीं खाना पीना है। इसे आजकल की आधुनिक भाषा में इंटरमिटेंट फास्टिंग भी कहा जाता है।

दोपहर 12 बजे पहले थोड़ा थोड़ा पानी पियें, फिर अगर हो सके तो हरी पत्तियों के रस का सेवन करें लगभग 300ml, उसमें पालक, धनिया, पुदीना, एक नींबू, 4 आँवले डालना है, इस रस में आप हर वो पत्ती डाल सकते हैं जिसका फल हम खा सकते हैं, जैसे कि आम, अमरूद, चीकू, सहजन फली की पत्तियाँ इत्यादि।

फिर जब भी भूख लगे आप फलों का सेवन करें, मौसमी फलों का उपयोग करें, जो भी बाज़ार में सबसे सस्ते मिलते हैं वही मौसमी फल होते हैं। जैसे अभी खरबूज, तरबूज़ का मौसम है, फिर आम का मौसम आ रहा है। फल जितना खा सकते हैं उतना खायें कोई रोक टोक नहीं, केवल केले व चीकू पर संयम रखें क्योंकि इनमें शक्कर की मात्रा ज़्यादा होती है और 12 महीने उपलब्ध होते हैं।

दोपहर को फलों के बाद आप भरपूर मात्रा में सलाद का सेवन करें, जैसे ककड़ी, गाजर, टमाटर (टमाटर के बीज निकाल दें), शिमला मिर्च इत्यादि।स्वाद न आये तो हरी चटनी बनाकर रखें और उसके साथ खायें। नींबू निचोड़े सकते हैं।

शाम को फिर से फल या सलाद खा सकते हैं, रात्रि भोजन में 70% सलाद और 30% पका हुआ, उस 30% में भी आधे से अधिक भाग आपका पकी हुई सब्ज़ी व दाल का होना चाहिये, केवल एक या दो रोटी या फिर थोड़े से चावल साथ में लें।

दिनभर पानी पीते रहें, कम से कम 3 लीटर पानी पीना है।

शुरू में आपको कच्चे फलों व सलाद में स्वाद नहीं आयेगा, क्योंकि हमें हर चीज में शक्कर या नमक या मसाले डालकर खाने की आदत हो गई है।पर धीरे धीरे स्वाद ग्रंथियों को अपना ओरिजनल स्वाद याद आ जायेगा। हमने अपनी ज़बान को तला गला मसाले वाला खिलाखिलाकर इतना ख़राब कर दिया है कि हमें फल व सब्ज़ियों में स्वाद ही नहीं आता। जब आप यह शुरू के 15 दिन करेंगे तो आपको ख़ुद ही सब्ज़ियों के स्वाद का पता चलने लगेगा। आपको सलाद व फल अच्छे लगने लगेंगे। पेट कम खाने में ही भर जायेगा।

इससे वजन तो आश्चर्यजनक रूप से कम होगा ही, साथ ही आप अपनी नींद की क्वालिटी में सुधार देखेंगे, दिनभर इतनी ऊर्जा आपके पास आ जायेगी कि आपको ख़ुद ही आश्चर्य होगा। आपका मन अपने कार्य में अच्छे से लगेगा।

इन सबका लाभ लेते हुए अगर सुबह 30 मिनिट का ध्यान करें तो वह सोने पर सुहागा होगा।

यह पढ़ना जितना आसान है, इसे करना उतना ही कठिन। कुछ प्रश्न हों तो कमेंट में पूछियेगा।

समय बहुत भयावह है, संयम रखें, ज़बान और दिमाग़ पर भी

समय बहुत भयावह है, संयम रखें। सबका नंबर आयेगा, अगर अब भी न सुधरे तो। कुछ दिन अपनी ज़बान पर लगाम दो, अपने फेफड़ों को मज़बूत करो, ठंडी चीजें मत खाओ पियो, ज़बान का स्वाद यह गर्मी के लिये रोक लो, इस गर्मी अपने शरीर को थोड़ा कष्ट दे लो। आप जितनी ज़्यादती अपने फेफड़ों के साथ करोगे, ऐन वक़्त पर फेफड़े आपको दगा दे जायेंगे। कोशिश करें कि साधारण तापमान का ही पानी पियें, ठंडे पानी को, बर्फीले शर्बत को न पियें। फेफड़ों को ज़्यादा तकलीफ़ न दें।

केवल फेफड़े ही नहीं, जितनी ज़्यादा काम आप अपने शरीर के अंगों से करवायेंगे, उतना ही ज़्यादा समस्या है। कुछ लोग इस बात को हँसी में लेंगे, पर दरअसल उन्हें पता ही नहीं कि हम प्लेट प्लेट भर खाना खाने वाले इंसानों को मुठ्ठीभर खाना ही ऊर्जा के लिये काफ़ी होता है। खाने में ऊर्जा नहीं होती, यह हमारे मन का वहम है। जैसे सुबह हम कहते हैं कि नाश्ता नहीं किया तो ऊर्जा कहाँ से आयेगी, पर वहीं दिन का खाना या रात का खाना खाने के बाद आप शिथिल क्यों हो जाते हो। जब भी कुछ खाओ तो उस हिसाब से तो हमेशा ही ऊर्जा रहनी चाहिये। पर यह तर्क भी लोगों को समझ में नहीं आता।

जब भूख लगे तभी खाओ, यह नियम ज़िंदगी में बना लेंगे तो हमेशा खुश रहेंगे। हम क्या करते हैं कि खाने के समय बाँध लेते हैं, सुबह ८ बजे नाश्ता करेंगे, ११ बजे फल खायेंगे फिर १ बजे दोपहर का भोजन करेंगे, ४ बजे शाम का नाश्ता करेंगे, ७ बजे खाना खायेंगे। कुछ लोग तो शाम को दो बार भी नाश्ता कर लेते हैं और फिर कहते हैं आज तो कुछ खाया नहीं फिर भी पेट भरा हुआ है, अब रात का खाना थोड़ा ओर देर से करेंगे। इस तरह हमने अपना हाज़मा भी बिगाड़ रखा है, और अपनी जीवनशक्ति के साथ हम खिलवाड़ करते हैं।

मुझे जब भी भूख लगती है, तो सबसे पहले मैं बहुत सारा पानी पीकर चेक करता हूँ कि वाक़ई मुझे भूख लग रही है या फिर दिमाग़ खाने का झूठा सिग्नल भेज रहा है, क्योंकि दिमाग़ को तो ज़बान ने कह दिया कि कुछ खाने का इंतज़ाम करो बढ़िया सा, जिसमें बढ़िया स्वाद हो, ताकि यह समय बहुत अच्छा निकले, तो दिमाग़ को खाने का झूठा सिग्नल भेजा जाता है, परंतु अगर मन अपना वश में रखें और स्वादग्रंथियों को पानी का एक लीटर स्वाद चखने को मिल जाये, फिर पेट भी सिग्नल भेजता है, कि अब कुछ ओर रखने के लिये जगह नहीं है, यहाँ मामला फ़ुल है। तो बस ज़बान निराश हो जाती है और चुपचाप रहकर कुछ ओर समय का इंतज़ार करती है। उस समय ज़बान फिर नाटक करेगी, ज़बान कसैली या स्वादहीन हो जायेगी, जिससे आर्टीफीशियली दिमाग़ को लगेगा, इससे शरीर को तकलीफ़ हो सकती है तो दिमाग़ भी सिग्नल देगा, कुछ तो खा लो, भले चुटकी भर कोई चूरण खा लो, ये ज़बान बहुत परेशान कर रही है।

पूरी प्रक्रिया यही है, लिखने को तो बहुत कुछ है, परंतु अब अगले ब्लॉग में, अगर इन स्वाद ग्रंथियों ओर शरीर के इन अवयवों पर कंट्रोल कर लिया तो हम ज़्यादा सुरक्षित हैं। हालाँकि इसके लिये दिमाग़ को वैसा ही पढ़ने लिखने के लिये साहित्य भी देना होगा, साथ ही अपने आसपास का वातावरण भी ऐसा हो सुनिश्चित करना होगा।

कोरोना काल में मदद केवल धन से ही नहीं, अपने समय से भी कर सकते हैं

कोरोना के इस काल में अगर आप दान देना ही चाहते हैं, तो केवल किसी को सही राह दिखाकर सहायता को भी दान समझ सकते हैं, दवाइयाँ, ऑक्सीजन, अस्पताल में बिस्तर सबकी अपनी एक सीमित मात्रा है, अगर हम थोड़ा समय निकालकर फ़ोन करके, ट्वीटर के ज़रिये भी कुछ मदद कर पायें तो वह भी एक बड़ी मदद होगी। नकारात्मकता को हटाना ही होगा, कोरोना मरीज़ों से फ़ोन पर बात करके उनकी जीवटता को बढ़ाना भी मदद ही होगी, कहने का अर्थ यही है कि जितनी मदद अपनी जगह से कर सकते हों, करें। पीछे न हटें, और जो यह मदद रूपी दान आप कर रहे हैं, उसके लिये किसी को कुछ बताने की ज़रूरत नहीं। बस आप मदद करते चलें।

हमारे लगभग हर पुरातन ग्रंथों में कहा गया है कि कोई भी कार्य स्वार्थवश व भौतिक लाभ से प्रेरित की आकांक्षा से किया जाता है तो वह सात्विक नहीं होता, रजोगुणी हो जाता है। कार्य तो सभी करते हैं परंतु केवल करने का हेतु जो भी मन में होता है, अगर उसमें कुछ लालच होता है, तो ही उसका गुण बदल जाता है। इसलिये हमें सिखाया जाता है कि अपना मन भी शुद्ध रखना है। अपने मन को भटकने नहीं देना है, अपने किसी भी कार्य को दंभपूर्वक न करें, न ही उसमें किसी सम्मान, सत्कार व पूजा की आकांक्षा रखें। वहीं अगर कोई कार्य आप बहुत अच्छा कर रहे हैं, परंतु उसका मंतव्य किसी को पीड़ा पहुँचाना, किसी को नीचा दिखाना या किसी को हानि पहुँचाना है तो आपकी इच्छा तामसी हो जाती है। केवल इच्छा मात्र से ही परिणाम बदल जाता है, गुण बदल जाता है।

अगर कोई भी कार्य आप कर रहे हैं तो कोशिश करें कि अपना मन साफ़ रखें, अपने मन में किसी के लिये बुराई न हो, न ही किसी के बारे में अहित सोचें, तभी वह कार्य सात्विक हो पायेगा। जहाँ दंभ, सम्मान, सत्कार व पूजा कराने की प्रवृत्ति आ जाती है, तो यह राजसी गुण हो जाता है। जिसे रजोगुण भी कहा जाता है।

आजकल दान देना कोई बहुत आसान कार्य नहीं है, क्योंकि यह सभी को भारी पड़ता है। ध्यान रखें कि जब दान देते हैं तो परोपकार की मंशा से, कर्तव्य समझकर, बिना किसी लाभ की भावना के, सही जगह व सही स्थान और सही व योग्य व्यक्ति को दिया जाता है, वही दान सात्विक माना जाता है। वैदिक साहित्य में अविचारपूर्ण दान की संस्तुति नहीं है। वहीं जो दान लाभ की भावना से, कर्मफल की इच्छा से या अनिच्छापूर्वक किया जाता है, दान का गुण बदल जाता है, ऐसा दान रजोगुणी कहलाता है। दान कभी स्वर्ग जाने के लिये दिया जाता है, तो कभी अत्यंत कष्ट से तथा कभी इस पश्चात्ताप के साथ कि मैंने इतना व्यय क्यों किया, कभी कभी अपने वरिष्ठजनों के दबाव में आकर भी दान दे देते हैं। तो ऐसे दान राजस गुण युक्त होते हैं।

वहीं जो दान किसी अपवित्र स्थान, अनुचित समय में, किसी अयोग्य व्यक्ति को या बिना समुचित ध्यान व आदर के साथ दिया जाता है, ऐसा दान तामसीगुण से प्रभावित माना जाता है।किसी ऐसे व्यक्ति या संस्था को दिया गया दान, जो कि मद्यपान व द्यूतक्रीड़ा में संलग्न हो, उन्हें दान नहीं देना चाहिये।इससे ग़लत कार्यों को प्रोत्साहन मिलता है।

क्रूरता का काल

यह क्रूरता का काल चल रहा है, इतने परिचितों की मौत की ख़बर ने अंदर तक हिलाकर रख दिया है, दिल मायूस है, लगता है कि कैसे अब उनका परिवार बिना उनके रहेगा। परंतु सत्य तो यही है कि किसी के बिना दुनिया रुकती नहीं है। कलियुग का सबसे बड़ा फ़ायदा ही यह है कि हम ज़्यादा दिन किसी बात को ध्यान नहीं रख पायेंगे, काल हमारी बुद्धि हर लेगा, हमारी याददाश्त कमजोर कर देगा। हमेशा ही कई लोगों से जीवन में ऊर्जा मिलती है, परंतु जब वे चले जाते हैं तो एक प्रकार सा मन में नकारात्मकता तो आ ही जाती है।

अब समय आ गया है कि जब हम अपना मोह त्यागें, और मज़बूत बनें क्योंकि कोई भरोसा ही नहीं कब कौन चला जायेगा, पता नहीं कौन इस वक़्त अपनी ज़िंदगी के लिये साँसों को थामे मौत से लड़ रहा होगा। पता नहीं मौत को इतना क़रीब से देखकर व्यक्ति अंतिम पल में कैसा महसूस करता होगा, सारे रिश्तेनाते, घरबार, पैसे, गहने सब यहीं छूट जायेगा। जिस पल व्यक्ति इस शरीर को छोड़ेगा, और उस पल जो उसके पास होंगे, वे लोग शायद ही उस पल को आजीवन भूल पायेंगे।

मुझे याद है जब एक मित्र के भाई की मृत्यु के बाद हम श्मशान में थे, तो एक मित्र ने मुझसे कहा था देख भई क्या है ये संसार, जब तक उन भैया के अंदर जान थी, साँसें ले रहे थे, तब तक वे इस दुनिया के लिये कुछ थे, पर अब कुछ नहीं, थोड़े समय बाद राख में बदल जायेंगे, कहने को वे अपने जीवन में बहुत कुछ थे, पर मरते समय कुछ काम न आया। मरने के बाद कोई तो ऐसा शहर होगा जहाँ आत्माओं को बसाया जाता होगा, शायद ये आत्मा कहीं अपने ही घर में किसी फूल की ख़ुशबू बन जाती है, या फिर किसी फूल का रूप ले लेती हो, पता ही नहीं चलता, यह एक अनसुलझी पहेली है।

बेहतर यह है कि हम अपने जीवन को ऐसे जियें कि जिसमें हम दूसरे को अपने स्वार्थवश कोई परेशानी में न डालें। जब हम मुसीबत में होते हैं तो कोई एक मदद का हाथ कहीं अनजाने में आता है, वह कोई परोपकारी आत्मा होती है। हम बस इतना ही ध्यान रखें कि इन सीमित संसाधनों में दूसरों की भी परेशानी समझें और निःस्वार्थ भाव से जितना हो सके उतनी एक दूसरे की मदद करें। मदद न कर सकें तो रोने के लिये कम से कम अपना कंधा तो आगे बढ़ा ही सकते हैं।