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इंसान और अविष्कार

इंसान जबसे इस दुनिया में आया है तब से ही वह अपने अविष्कार का लोहा मनवाते आया है, पहले नग्न रहते थे, फूल पत्ती खाते थे, धीरे धीरे अपने को ढंकने के लिये फूल पत्तियों का उपयोग किया और जो जानवर उनको परेशान करते थे, इंसान ने जाना होगा कि जब जानवर जानवर को मारकर खा सकता है और इंसान को भी मारकर खा सकता है तो इंसान ने भी जानवर को मारा होगा और अपने आप को बचाया होगा। स्वाद के लिये जब मांस को पकाया होगा तो उसमें ज्यादा स्वाद आया होगा। उसी तरह से कंदमूल को भी जब आग पर पकाया तो उसका स्वाद बेहतर लगा होगा। तो ये सब पहले अविष्कार थे, धीरे धीरे इंसान ने अपनी जरूरत के लिये और भी चीजों को सोच समझकर बनाया, जैसे चाकू, चूल्हा, पहनावा और जानवरों को आवागमन का साधन बनाकर यात्रा करना।

इंसान और अविष्कार
इंसान और अविष्कार

यह बात हुई पुरातन काल की, तो उस समय इंसान के पास कुछ था ही नहीं तो इंसान ने सबसे पहले अपनी जरूरत की चीजों पर काम करना शुरू किया, जिससे उसे सुविधा हो और कम मेहनत में ज्यादा काम करे, जिन भी नई चीजों को बनाया गया उसे अविष्कार ही कहा जायेगा, क्योंकि वह दुनिया में पहले से उपलब्ध नहीं थी और उस अविष्कार के उपयोग से हर कोई लाभांवित हुआ।

जब अपनी जरूरत की चीजें पा ली गईं तब सबसे पहले बचने वाले समय के उपयोग के लिये खेलों, नाटक, गाने, नृत्य, चित्रकारी आदि का अविष्कार हुआ। इन सब विधाओं के आने से न केवल इंसान की क्षमताओं का पता चला बल्कि इंसान कितना कल्पनाशील हो सकता है, यह भी निखर कर सामने आया। कई चीजों में इंसान को बहादुरी दिखानी होती थी, इससे इंसान के साहस और बहादुरता को और निपुण किया गया।

हर अविष्कार के पीछे कोई न कोई तकलीफ हमेशा ही जुड़ी होती है, जब तक इंसान को तकलीफ नहीं होती है तब तक वह किसी अविष्कार के लिये उद्यत नहीं होता, इंसान में आलस्य की भावना शायद जरूरत के अविष्कारों के बाद से ही ज्यादा जोर देने लगी होगी। पहले शारीरिक श्रम होता था और इसके लिये शारीरिक क्षमताओं पर ध्यान दिया जाता था, शारीरिक क्षमताओं वाला श्रम और खेल दुनिया सामने देख सकती थी तो उससे किसी एक इंसान को बहादुर या साहसी मान लिया जाता था जो कार्य कोई अन्य नहीं कर सकता था या फिर दूसरों के लिये कठिन होता था। अब शारीरिक श्रम की मात्रा कम हो गई है ऐसा कह सकते हैं, क्योंकि अब तो बहुत सी मशीने इंसान ने बना ली हैं।

अब मानसिक श्रम ज्यादा है, जिसमें कोई आपके पास बैठा व्यक्ति भी आपकी क्षमताओं का आंकलन नहीं कर सकता है, क्योंकि इसमें कई बार तो किसी को पता ही नहीं होता है कि कौन ज्यादा मानसिक श्रम कर रहा होता है। अब तो खैर जैसे जैसे हम तकनीक जगत में उन्नत होते जा रहे हैं, वैसे वैसे मानसिक श्रम को भी विभिन्न श्रेणियों में बाँटा जा रहा है।

शारीरिक श्रम के कार्यों में अधिक लोगों का जुड़ाव नहीं होता था, मतलब कि पहले ही आंकलन कर लिया जाता था कि इस कार्य के लिये कितने लोगों को श्रम लगेगा, उसमें भी अगर कोई अपने श्रम को बचाने के लिये अविष्कार कर ले तो उसे बेहतर माना जाता होगा। वैसे ही मानसिक श्रम में अपना समय और अच्छे से कार्य करने के लिये थोड़ा साहस अपने भीतर भरना होता है और हम नित नये अविष्कार कर सकते हैं। किसी को उन अविष्कारों के बारे में बतायें या न बतायें यह हमारे ऊपर निर्भर करता है।

डेशबोर्ड पर भगवान God on Dashboard

आज ऑफिस आते समय अचानक ही एक कार जिस पर एल (L) का स्टीकर कार पर लगा था याने कि कोई नया बंदा गाड़ी चला रहा थी और उसकी कार में सीट पर भी पॉलीथीन चढ़ी हुई थी, उस कार में पीछे के काँच और डेशबोर्ड दोनों पर भगवान चिपका रखे थे और उन पर ताजे फूल भी चढ़ाये हुए थे। आश्चर्य तब और हुआ जब उसके डेशबोर्ड पर दो भगवान याने कि गणेश जी और बाला तिरूपति दोनों को विराजित देखा और ऊपर काँच पर हनुमान लटकते नजर आये।

Car Dashboard India
Car Dashboard India

अचानक ही मुझे ध्यान आया कि जब मैंने भी कार ली थी और मेरा ड्राईवर जिससे मैंने कार सीखी थी वो कार डेकोर के पास लेकर गया था और मुझे भगवान डेशबोर्ड पर लगाने के लिये कहा था, तो मैंने कहा कि मेरे भगवान इस दुकान पर नहीं मिलेंगे वो तो केवल उज्जैन में ही मिलते हैं और मेरे पास एक छोटी सी तस्वीर है मैं उस तस्वीर को ही कार को माईलोमीटर के पास रखकर काम चला लूँगा, और जब भी उज्जैन जाऊँगा तब वहाँ से महाकाल भगवान डेशबोर्ड पर लगाने वाले ले आऊँगा।

मैंने इसके बाद ध्यान से देखना शुरू किया तो पाया कि लगभग 90 प्रतिशत गाड़ियों में डेशबोर्ड पर भगवान विराजमान हैं, अगर डेशबोर्ड पर नहीं हैं तो वे किसी न किसी प्रकार से गाड़ी मैं मौजूदगी बनाये हुए हैं, या तो वे बैकमिरर पर लटके हुए हैं या फिर तस्वीर की शक्ल में विराजमान हैं। किसी ने डेशबोर्ड पर छोटे भगवान लगा रखे हैं तो किसी ने बड़ा मंदिर भी लगा रखा है, पर सभी धर्मों के चालकों ने अपने अपने भगवान गाड़ियों में लगा रखे हैं।

मुझे कभी गाड़ी में भगवान लगाने का सिद्धान्त ही समझ नहीं आया, पता नहीं कब क्यों और कहाँ से यह अवधारणा आई। अगर ऐसा ही होता तो कार खरीदते समय ही कार कंपनी डेशबोर्ड पर भगवान आपकी पसंद के अनुसार फिट करके दे देते। पहले के राजा लोग अपने रथ पर कोई ध्वज फहराते थे और शायद भगवान उनके ध्वज पर ही रहते थे। जैसे पुराने जमाने में लोग बैलगाड़ी वगैराह में जाते थे तब उनकी गाड़ी में या तो जगह नहीं होती थी या उनको पता नहीं था, परंतु मैंने कभी बैलगाड़ी में भगवान को नहीं देखा, शायद बैल को ही भगवान रूप मान लिया जाता होगा। चार पहिया कोई भी हो, मैंने अधिकतर गाड़ियों में भगवान को देखा है, बसों में तो अगरबत्ती भी जलाई जाती है।

शायद इसके पीछे की भावना यही होती होगी कि इतनी बड़ी मशीन एक इंसान ही चला रहा है तो भगवान आप कृपा रखना और कई लोग गाड़ी चलाने के पहले भगवान का नाम लेते हैं और उतरते समय भगवान का धन्यवाद भी करते हैं। मशीने कभी भी किसी भी कारण से खराब हो जाती हैं और ये मशीनें बहुत तेज चलती हैं तो वैसे ही दुर्घटना भी खतरनाक होती है। हो सकता है कि आने वाले समय में रॉकेट में भी भगवान विराजमान हों, विमान का हमें पता नहीं। आप भी अपने आस पास देखें और समझें कि भगवान आखिर डेशबोर्ड पर विराजमान क्यों होते हैं।

महाकाल में वीआईपी दर्शन VIP Darshan in Mahakal

वैसे मैं महाकाल की व्यवस्था पर लिखने से हमेशा ही बचता हूँ, क्योंकि लगता है कि इससे लोगों की आस्था कम होती है।

परंतु फिर भी इस पर आज लिख रहा हूँ, मैं हमेशा ही महाकाल में वीआईपी दर्शन करता हूँ, पहले इसका शुल्क 151 रूपये था और अब सुविधाओं के नाम पर इसे बढ़ाकर 250 रूपये कर दिया गया है। वीआईपी दर्शन इसलिये करता हूँ, कि इसमें दिया गया धन का दुरूपयोग नहीं हो सकता है, इसका हिसाब ऑडिट वगैराह में देखा जाता है, अगर दान पात्र में हम दान देते हैं तो हमें कोई सुविधा नहीं मिलती है एवं अगर पंडे पंडितों को सीधे देते हैं तो वह उनकी जेब में जाता है।

वीआईपी दर्शन का टिकट लेने के बाद वहीं पर जूते चप्पल स्टैंड पर हमने जूते उतारे, यहाँ पता चला कि अब ये जूता चप्पल स्टैंड केवल वीआईपी दर्शन के टिकट वालों के लिये ही है। दर्शन करने के बाद जब महाकाल से बाहर आने की बात आई तो पता चला कि बाहर जाने का एक ही रास्ता है, और वहाँ पर पैर न जलें इसके लिये कोई व्यवस्था नहीं है। हालत यह है कि मुझे और मेरे परिवार को अभी तक पैरों में जलन की तकलीफ सहन करना पड़ रही है।

जब वापिस जूते चप्पल लेने पहुँचे तो वहाँ पर सहायक प्रशासनिक अधिकारी का कार्यालय दिखा, हम पहुँचे वहाँ कि हमें शिकायत पुस्तिका दें, हमें शिकायत करनी है, तो हमें कहा गया कि यहाँ शिकायत पुस्तिका नहीं है, आपको 3 मंजिला महाकाल के प्रशासनिक भवन में जाना होगा। अधिकारी तो वहाँ थे नहीं, परंतु उनके बात करने के अंदाज से यह जरूर लगा कि बहुत से वीआईपी टिकट वाले लोग वहाँ आकर शिकायत करते हैं, परंतु शिकायत पुस्तिका के अभाव में बात सही जगह तक नहीं पहुँच पाती है। वहाँ बैठे सारे लोग अपने मोबाईल में सिर घुसाये मिले।

बाबा महाकाल के हम भक्त हैं, और महाकाल में प्रशासन के नाम पर लूटने वाले लोग और मानवीयता को शर्मसार करने वाले प्रशासनिक अधिकारी जो कि अपने अपने ए.सी. केबिन में बैठकर सुस्ताते रहते हैं, उम्मीद है कि वे भी महाकाल के भक्त होंगे और भक्तों की तकलीफ को समझेंगे। शिकायत पुस्तिका केवल महाकाल प्रशासनिक कार्यालय में ही क्यों उपलब्ध है, यह तो वीआईपी दर्शन के दरवाजे पर भी उपलब्ध होनी चाहिये, जहाँ टिकट मिलते हैं उस काऊँटर पर भी उपलब्ध होनी चाहिये।

वीआईपी काऊँटर पर लिखा हुआ है कि कार्ड से भी भुगतान स्वीकार किया जाता है, परंतु जिस समय हम पहुँचे तो काऊँटर क्लर्क किसी और को बैठाकर कहीं चला गया था और उन सज्जन को कार्ड की स्वाईप मशीन ही नहीं मिल रही थी, और हमें यह भी कहा कि उन्हें कार्ड की स्वाईप मशीन का उपयोग करना ही नहीं आता है। समझ नहीं आता कि महाकाल प्रशासन हर जगह महाकाल भक्तों से शुल्क वसूलने में लगा है, जैसे कि भस्मारती पर अब ऑनलाईन 100 रूपये और ऑफलाईन 10 रूपये का शुल्क वसूला जा रहा है। परंतु भक्तों को सुविधाओं के नाम पर केवल असुविधा ही मिल रही है।

महाकाल केवल अब वीआईपी लोगों के लिये ही सुविधाजनक है, सामान्य भक्त के लिये प्रशासन सारी मानवीय मूल्यों को भूल चुका है। उम्मीद है कि मेरी यह शिकायत महाकाल प्रशासक और उज्जैन कलेक्टर तक जरूर पहुँचेगी।

रोजमर्रा की 5 चीजें जिनका उपयोग हमें तुरंत बंद कर देना चाहिये।

रोजमर्रा की 5 चीजें जिनका उपयोग हमें तुरंत बंद कर देना चाहिये।

ऐसी 5 चीजें जिनका उपयोग हम रोज करते हैं, हमें उनका उपयोग बंद कर देना चाहिये।

  1. प्लास्टिक स्ट्रॉ एवं चम्मच – अभी तक प्राप्त जानकारी से पता चलता है कि समुद्र में प्राप्त 80 प्रतिशत कबाड़ा प्लास्टिक का होता है, जिसमें प्लास्टिक स्ट्रॉ भी शामिल है। प्लास्टिक स्ट्रॉ की जगह काँच की स्ट्रॉ का उपयोग करें, काँच की स्ट्रॉ खरीदें, उपयोग करें, धोयें और वापिस से उपयोग करें, इससे आप कार्बन फुटप्रिट्स में को कम करने में मदद ही करेंगे। साथ ही अपने घर में बड़े लोगों को समझायें कि मसालदानी वगैराह में प्लास्टिक की चम्मच की जगह, लकड़ी की चम्मच का उपयोग करें, लकड़ी की चम्मच ज्यादा दिन भी चलेगी।

    प्लास्टिक स्ट्रॉ एवं चम्मच
    प्लास्टिक स्ट्रॉ एवं चम्मच
  2. माईक्रोबीड्स वाले टूथपेस्ट या त्वचा की रक्षा करने वाले उत्पाद – अधिकतर टूथपेस्ट वाली कंपनियाँ अपनी पैकिंग में माईक्रोबीड्स वाले ऐसे तत्वों का उपयोग करती हैं जिन्हें प्राकृतिक तरीके से नहीं सड़ाया जा सकता या नष्ट नहीं किया जा सकता है। इससे ही लगभग 8 टन कचरा समुद्र में पहुँचता है। इस तरह के उत्पाद को खरीदने के पहले उनकी सामग्री को पढ़ लें और पर्यावरण अनुकूल उत्पाद ही उपयोग करें।

    माईक्रोबीड्स वाले टूथपेस्ट
    माईक्रोबीड्स वाले टूथपेस्ट
  3. स्टीरोफोम उत्पाद – पॉलीस्टीरीन से बनने वाले ये उत्पाद, पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक जो का नॉन बॉयोडिग्रेडेबल है और उसके स्वास्थ्य पर नुक्सान ज्यादा हैं। स्टीरोफोम आधारित उत्पाद कटोरी, प्लेटों का उपयोग हम लोग अपनी पार्टियों में करते हैं। इसकी जगह हमें पर्यावरण अनुकूल उत्पादों याने कि बाँस, पेड़ की छाल या फिर पत्तों का उपयोग करना चाहिये।

    स्टीरोफोम
    स्टीरोफोम
  4. लकड़ी की चॉपस्टिक – खाना खाने के आनंद के लिये हम लोग लकड़ी की चॉपस्टिक का उपयोग करते हैं, परंतु हर साल लगभग 5.70 करोड़ (ग्रीनपीस के अनुसार आँकड़े) चॉप्स्टिक का उपयोग किया जाता है, सोचिये कि कितने सारे पेड़ इसके लिये काटने पड़ते हैं। इन चॉप्सिटकों का उपयोग न करें और इसकी जगह स्टील के काँटे या चम्मच का ही उपयोग करें।

    लकड़ी की चॉपस्टिक
    लकड़ी की चॉपस्टिक
  5. पॉलीथीन के थैले – प्लास्टिक के ये थैले नष्ट नहीं होते हैं, उनको ऐसे ही कचरे के साथ कचरा क्षैत्र में जमीन में दबा दिया जाता है और जब कचरे को नष्ट करने के लिये जलाया जाता है तो इससे जहरीली गैसें निकलती हैं और जो कि प्रदूषण भी बड़ाती हैं। कपड़े या जूट का थैला खरीदें जिसे कि बार बार उपयोग किया जा सके और प्लॉस्टिक थैले के लिये मना कर दें। इससे कम से कम थोड़ी बहुत तो हमारे फेफड़ों और धरती को राहत मिलेगी।

    पॉलीथीन के थैले
    पॉलीथीन के थैले

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दौड़ना क्यों (अपने लिये) ?

दौड़ना क्यों (अपने लिये) ?

बहुत अहम सवाल है, आखिर दौड़ना क्यों, सवाल का ऊपर ही जबाब दिया है जी हाँ अपने लिये, और किसी के लिये नहीं केवल अपने लिये। कल रात को हाथ की कलाई और पैर के घुटनों में थोड़ा दर्द था, ये हड्डी वाला दर्द भी हो सकता है, परंतु हमने रात को हाथ पैरों की तेल से मालिश की और सुबह सब ठीक हो गया। रात को ही मन था कि सुबह दौड़ना है भले 4,5,6,7,8,9 या 10 किमी, पर दौड़ना है, लक्ष्य कम से कम 4 किमी का और अधिकतम 10 किमी दौड़ने का निर्धारित किया था ।

दौड़ना क्यों
दौड़ना क्यों

सुबह उठा तो दौड़ने की बिल्कुल इच्छा नहीं थी परंतु फेसबुक पर एक रनर के द्वारा शेयर किया गया फोटो ध्यान आ गया और उसको ध्यान में रखकर दौड़ने के लिये तैयार हो गया। उस फोटो में संदेश था कि क्यों घर में बैठकर बोर हो रहे हो, चलो थोड़ा प्रकृति में और दौड़कर आयें, जिससे शरीर भी ठीक रहे। दौड़ने के लिये बहुत सारे फेक्टर कार्य करते हैं, अगर आप सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं तो ट्विटर, फेसबुक, स्त्रावा पर रनर्स को अपना दोस्त बनायें, वे सभी अपने अनुभव साझा करते रहते हैं, जिससे आपको दौड़ने के बारे में बहुत कुछ पता चलता रहेगा और दौड़ने के लिये हमेशा ही तैयार रहेंगे।

अकेले दौड़ना वाकई बहुत मुश्किल कार्य होता है, इसके लिये या तो आप अपने साथ किसी और को भी दौड़ायें, परंतु थोड़े दिनों बाद ही ये युक्ति भी काम नहीं आयेगी, क्योंकि दोनों के दौड़ने की रफ्तार कम ज्यादा होगी तो साथ रहेगा जरूर, परंतु दौड़ नहीं पायेंगे। अपने स्मार्ट फोन का उपयोग करें और साथ में कुछ सुनते जायें, गाने सुनने का शौक है तो गाने सुनते जायें, पॉडकॉस्ट भी डाउनलोड करके सुन सकते हैं। मेरी आदत दौड़ते हुए पॉडकॉस्ट सुनने की है, मुझे लगता ही नहीं कि मैं दौड़ भी रहा हूँ, ऐसा लगता है कि कोई मुझसे बात कर रहा है, या मैं किसी और ही चीज में व्यस्त हूँ, और दौड़ना केवल एक प्रक्रियाभर है। गाने सुनते हुए दौड़ना मेरे लिये बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि गाने बदलते रहते हैं और उनके स्वर दौड़ने की प्रक्रिया को बाधित करते हैं। पॉडकॉस्ट अपनी पसंद के डाउनलोड कर सकते हैं, मुझे फाईनेंस, लाईफ स्टाईल, फैक्ट्स, पर्सनलिटी इम्प्रूवमेंट इत्यादि के चैनल बहुत पसंद हैं। मेरा सबसे पसंदीदा चैनल है टैड रेडियो ऑवर।

अपने लिये दौड़ने से आप दिनभर खुश रहते हैं, आपको अपना वजन कम लगने लगता है। भूख खुलकर लगती है, अपने खुद के ऊपर गर्व होने लगता है कि जो अधिकतर जनता नहीं कर सकती वो आप कर सकते हैं। जब किसी कठिन चढ़ाई या घूमने के लिये जाते हैं तो आपका यह स्टेमिना आपके बहुत काम आता है। इस बार मैं घूमने गया तो 4-5 घंटों तक चलने और खड़े होने पर मुझे किसी भी प्रकार से थकान का अनुभव ही नहीं हुआ। रोज कम से कम 35 मिनिट तेज वॉक या दौड़ना चाहिये। चलने की जगह दौड़िये, दौड़ना बहुत आसान है, मेरी पिछली पोस्ट दौड़ना कैसे शुरू करें को पढ़कर समझ सकते हैं कि कैसे दौड़ा जाये। 35 मिनिट इसलिये कि रोज हमें हमारे दिल को जो कि धड़कता है उसकी रफ्तार 140 पल्स तक ले जानी चाहिये, हमारे दिल याने ह्रदय की धड़कने की सामान्य गति 60-100 पल्स प्रति मिनिट होती है। दौड़कर हम कॉर्डियो व्यायाम करते हैं, जिससे दिल अपने भरपूर रफ्तार से धड़कने को परख लेता है, और यह व्यायाम हमें रोज ही करना चाहिये।

दौड़ना शुरू करें, दौड़ना आपके जीवन में खुशियाँ भर देगा।

दौड़ना कैसे शुरू करें। (How to Start Running)

दौड़ना कैसे शुरू करें। (How to Start Running)

दौड़ना तो हर कोई चाहता है परन्तु सभी लोग लाज शर्म के कारण और कोई क्या कहेगा, इन सब बातों की परवाह करने के कारण दौड़ नहीं पाते हैं। दौड़ना चाहते भी हैं तो कुछ न कुछ बात उनको रोक ही देती है, और दौड़ने के पहले हम तेज चलने लगते हैं, कि ऐसे ही स्टेमिना बनेगा और दौड़ पायेंगे। कई बार हम दौड़ इसलिये नहीं पाते क्योंकि हमें झिझक होती है कि हमारे पास दौड़ने वाले जूते नहीं हैं, टीशर्ट और लोअर नहीं है, दौड़ने का समय नहीं है इत्यादि इत्यादि। यकीन मानिये ये सब बहाने हैं, और अगर आप दौड़ना चाहते हैं तो एक उत्साहवर्धन करने वाले व्यक्ति की और आपके अपने आत्मविश्वास, लगन और मेहनत की कमी है।

मैं लगभग पिछले 10 वर्षों से दौड़ने की कोशिश में लगा हुआ था, परन्तु बहुत सारी चीजों के कारण संभव नहीं हो पाता था, जैसे कि मैं थक जाता हूँ, मैं दौड़ नहीं सकता, मेरी साँस फूल जाती है, मेरे पैर दर्द करने लगते हैं, मेरे पैर सही नहीं पड़ते हैं।

दौड़ना बहुत आसान है, दौड़ने का मतलब यह नहीं है कि लगातार दौड़ना है, थक जायें तो थोड़ा पैदल चल लें या अपने दौड़ने की गति सुविधानुसार धीमी कर लें। लगभग सभी यही समझते हैं कि दौड़ना मतलब कि केवल दौड़ते ही रहना, तो यह गलत भ्रांति है। जो लोग 10,21 या 42 किमी भी दौड़ते हैं वे भी जब तक पूरी तरह से प्रेक्टिस न हो लगातार नहीं दौड़ सकते हैं।

दौड़ना कैसे शुरू करें –

सबसे पहले दौड़ने का मन बनायें और अपने आप को दौड़ने के लिये मानसिक तौर पर तैयार करें। सुबह का समय सबसे बेहतर है दौड़ने के लिये, इसलिये कोशिश करिये कि सुबह जल्दी उठिये और पाँच या साढ़े पाँच बजे तक घर से दौड़ने के लिये निकल जाये। सुबह पंछियों के कलरव को ध्यान से सुनें, जीवन का संगीत सुनाई देगा, सुबह की हवा आपको ताजगी का अहसास करवायेगी।

सौ कदम गिनकर चलें और फिर पचास कदम गिनकर ही दौड़ें, पचास कदम दौड़ने के बाद सौ कदम चलें, ऐसे करके सात दिनों तक यही दोहरायें। सात दिनों में आप पायेंगे कि आप पचास कदम आराम से दौड़ने लगे हैं। एक सप्ताह बाद से याने कि आठ से पंद्रह दिन तक सौ कदम पैदल चलें और सौ कदम दौड़ें याने कि केवल 50 कदम दौड़ने में बढ़ायें। और इसी तरह दौड़ने के कदम हर सप्ताह बढ़ाते जायें, बीच में जब भी आपको लगे कि आपको थकान लग रही हैं, आराम चाहिये, दौड़ते नहीं बन रहा है तो पैदल चलने लग जाइये।

सबसे पहले अपने दिमाग से यह निकाल दें कि दौड़ना मतलब कि दौड़ते ही रहना, जब भी आपको लगे कि आपका शरीर अब दौड़ नहीं पा रहा है तो आप पैदल चलना शुरू कर दें। यह भी ध्यान रखें कि दौड़ने में थकान मतलब कि मानसिक थकान होती है, शारीरिक थकान भी होती है, पर मानसिक थकान आपको थका देती है और कहती है कि बस बहुत हुआ, अब नहीं दौड़ो, जबकि शारीरिक थकान में आपको मानस को मजा आता है, आपका शरीर कहेगा कि बस अब मत दौड़ो पर आपको दौड़ के बाद की थकान से आपको मानस को मजा आयेगा।

जब आप दौड़ना शुरू करेंगे तो यह भी सोचेंगे कि बहुत ही कम लोग दौड़ते हैं, पर यह ध्यान रखें कि जो भी कार्य आप करते हैं या करने की शुरूआत करते हैं, उससे संबंधित गतिविधियाँ दिखाई देने लगती हैं, या लोग दिखने लगते हैं। पहले जब मैंने दौड़ना शुरू किया था, तब केवल मैं अकेला ही दौड़ता हुआ दिखाई देता था, पर मैंने देखा धीरे धीरे बहुत से लोग दौड़ रहे हैं। यह हो सकता है कि पहले मुझे ये लोग दिखाई नहीं देते थे, परंतु अब दिखाई देते हैं। पर अब यह देखकर खुशी होती है कि जो लोग पैदल चलते थे, वे हमें देखकर दौड़ने लगे हैं, यह संख्या एकदम से नहीं बढ़ी, धीरे धीरे बढ़ी, अब कम से कम रोज ही 10 लोगों को दौड़ते हुए देखना सुखद लगता है जो कि पहले पैदल चलते थे।

दौड़ने के पहले क्या करें-

दौड़ने के पहले कुछ हल्का फुल्का व्यायाम कर लें, जिससे शरीर गर्म हो जाये। सुबह उठने के बाद एक या दो केला खा लें, पानी पी लें। बहुत ज्यादा पानी भी न पियें। दौड़ने जाने के पहले ही निवृत्त हो लें। थोड़ा सा एनर्जी ड्रिंक पी लें।

दौड़ते समय क्या करें –

दौड़ते हुए बहुत पसीना निकलता है जिससे शरीर में पानी की कमी हो जाती है, इसलिये दौड़ते समय पानी घूँट घूँट पीते रहें, जिससे शरीर में पानी की कमी न हो। अगर पाँच किमी से ज्यादा दौड़ रहे हैं तो एनर्जी ड्रिंक जरूर पी लें, पारले जी बिस्किट भी खा सकते हैं।

दौड़ने के बाद क्या करें –

दौड़ने के बाद एकदम से रूके नहीं, बैठे नहीं, थोड़ी दूर पैदल चलते रहें या फिर धीमी गति से दौड़कर शरीर को ठंडा होने दें। कूल डाऊन व्यायाम करें, जिससे आपके शरीर की माँसपेशियों को मजबूती मिलेगी और यह आपके शरीर के लिये बहुत अच्छा भी होगा क्योंकि दौड़ने के बाद आपका शरीर गरम होता है और शरीर का हर अंग अपने अधिकतम उपयोग की स्थिती में होता है। खूब पानी पियें और 10-15 मिनिट में ही नाश्ता कर लें। केला जरूर खा लें, इससे आपकी सोडियम की कमी पूरी हो जायेगी, जो कि दौड़ में पसीने के साथ आपके शरीर से निकल गया होता है। 35-40 मिनिट में ही नहा लें।

थकान कैसे दूर करें –

जब लंबी दूरी की दौड़ पूरी करते हैं तो अच्छी खासी थकान हो जाती है, उसके लिये शरीर को आराम की भी जरूरत होती है। आप पैरों की तेल से मालिश कर लें, पैरों को ठंडे पानी में डुबोकर रखें। पैरों को किसी से दबवा लें। जिस दिन सुबह दौड़कर आयें उस दिन दोपहर को 2-3 घंटों की नींद जरूर लें। जिससे पैरों के टूटे हुए टिश्यू को जुड़ने में मदद मिलेगी।

दौड़ने के लिये हमें कठिन व्यायाम भी करने चाहिये, जिससे हमारे हाथ, पैरों, कंधे और जाँघ की माँसपेशियाँ मजबूत हों और वे हमारे दौड़ने में सहायक हों। जब माँसपेशियाँ मजबूत होंगी तो आप तेजी से दौड़ पायेंगे या धीमे धीमे ज्यादा दूरी तक दौड़ पायेंगे।

अभी दौड़ने पर बहुत चर्चा बाकी है, तो आगे इसी विषय पर लिखने की कोशिश जारी रहेगी। अनुभवी लोग अपने सुझाव दें जिससे हम नये दौड़ने वालों के लिये कोई परेशानी न हो।

चीनी समान का बहिष्कार

भारतियों पहले कामचोरी छोड़ो, काम करना सीखो और घर में अपने समान के लिये इतनी जगह बनाओ, सस्ती चीजों को उपलब्ध करवाओ, ये चीनी समान का बहिष्कार करने से कुछ नहीं होगा, चीन नहीं तो कोरिया या फिर कहीं और का समान खरीदोगे।

चाईना के समान का बहिष्कार करने वालों पहले यह सुनिश्चित करो कि भारत की तकनीक की रीढ़ चीन समान पर न हो, बताओ कि कौन सी चीज मैक इन इंडिया है –

  1. राऊटर
    2. मोडेम
    3. लेन केबल
    4. एडाप्टर
    5. डिश
    6. मोबाईल
    7. मोबाईल टॉवर में लगने वाला समान
    8. कैमरे
    9. द्रोन

और भी बहुत कुछ समान होगा। घर पर उपयोग किये जा रहे समान –

  1. टीवी
    2. फ्रिज
    3. वाशिंग मशीन
    4. लेपटॉप
    5. मोडेम
    6. मोबाईल
    7. गेम्स (सोनी, माइक्रोसॉफ्ट)
    8. कार में लगने वाले समान
    9. बाईक में लगने वाले समान
    10. किचन में बहुत से समान

महफूज भाई का कहना है कि –

ज़र्रे ज़र्रे में इंडिया के चाइना है…

काजल कुमार जी का कहना है –

मैं तो सभी पर Made in India लिख कर ही प्रयोग करता हूं जी

हमने लिखा –

हम use in india करते हैं जी

दिवांशु निगम लिखते हैं –

जिसके ऑप्शन इंडिया में उपलब्ध हैं, उसमें तो करना शुरू करें , बाकी भी होगा । धीरे धीरे ही होगा ।

दूसरी बात, आज के युग में कोई देश अकेले सब कुछ नहीं बना सकता । एक दुसरे पर निर्भरता रहती ही है । चीन की भी है पर उसे झटका लगना ज़रूरी है ।

यहाँ तो बड़ी मुश्किल से कुछ मिलता है जो मेड इन चीन ना हो , पर कोशिश कर रहे हैं । अगर हम थोड़ा भी कर पाए तो बहुत होगा ।

बाकी सब कुछ इंडिया में बनने का वेट करते रहे तो शायद अगले कई सदियों तक करेंगे ।

अपने अपने सोचने का तरीका है । बीते दिनों रविश कुमार मेरी जैसी सोच वालों को महामूरख कह दिए । शायद वो महात्मा गांधी को भी कह देते जब तक पूरे देश में पहनने के बराबर खादी ना बना पाओ तब तक विदेशी कपड़ों का बहिष्कार मत करो ।

मजेदार बात ये भी है कि बात बात पर पतंजलि प्रोडक्ट्स का विरोध करने वाले भी आजकल यही ज्ञान दे रहे हैं । सब माया है

और इस पर हमने प्रतिक्रिया दी –

कृप्या ऑप्शन बतायें, हम तो कोशिश हमेशा करते हैं कि भारतीय कंपनियों के ही उत्पाद खरीदें, पर धीरे धीरे लगभग सभी जगहों पर विदेशी कंपनियों का कब्जा होता जो रहा है, यहाँ तक कि मॉल में खरीदने की जगह हम सामान छोटी दुकान से खरीदने शुरू कर दिये, परंतु यह भी दीगर बात है कि हम अमेजन के डिस्काऊँट को इग्नोर तो नहीं कर सकते तो जो भी पैक आईटम हैं वो ग्रोसरी अमेजन से ही मँगाते हैं। हमारी देशी कंपनी फ्लिपकार्ट ग्रोसरी वाले मामले में फेल हो गई और उन्होंने ग्रोसरी स्टोर बंद ही कर दिया।

पतंजलि के उत्पाद ही सबसे पहले अमेजन पर खाली होते हैं, तो इससे भी पता चलता है कि पतंजलि के उत्पादों की माँग बहुत ही ज्यादा है।

पतंजलि के आऊटलेट्स पर उनके खुद के उत्पाद उपलब्ध नहीं हैं, बहुत मारामारी है, हम नवदर्शनम का आटा खाते हैं, सबसे बढ़िया आटा है, परंतु यहाँ उपलब्धता की बहुत मारा मारी है। केवल मेक इन इंडिया से कुछ नहीं होगा, उसकी सप्लाय भी अच्छी करना होगी और इसके लिये सरकार को ही कोई अच्छा इनिशियेटिव लेना चाहिये।

कमल शर्मा जी का कहना है –

चीन को झटका देने के लिए पहले देश में अच्‍छी क्‍वॉलिटी की चीजें बनाओ और वह भी सस्‍ते प्राइस पर। भारतीय कंपनियों ने सदैव लूटा। स्‍कूटर तक लड़की के जन्‍म लेने के समय बुक करवाना पडता था और शादी के समय मिल पाता था। तत्‍काल चाहिए तो कंपनियां ही लूटती थी। यह तो एक उदाहरण मात्र है। पी वी नरसिंहाराव ने अर्थव्‍यवस्‍था को खोला और विदेश से कंपनियां भारत आई तो क्‍या स्‍कूटर और क्‍या कार..सब कुछ धड़ाधड मिलने लगा और देसी कंपनियों एंटी डम्पिंग से लेकर विदेशी कंपनियों को भगाने की गुहार लगाती है। कामचोर कर्मचारी निजीकरण से डरते हैं और निजी वाले विदेशी से।

यारों का यार हमारा सरदार

दोस्त बहुत हैं पर गहरे दोस्त कम ही होते हैं, एक के बारे में लिखो तो दूसरे दोस्तों को बुरा लग सकता है, परंतु हम फिर भी अपने एक गहरे दोस्त के बारे में लिखते हैं, हमें पता है कि हमारे अन्य गहरे दोस्त हमारी बातों को ध्यान से पढ़ेंगे और हमें और ज्यादा प्यार करेंगे। अन्य दोस्तों की मैं कह नहीं सकता हूँ जिसमें से कुछ लोग तो बुरा भी मान जायेंगे और कुछ हौसलाफजाई करेंगे। Continue reading यारों का यार हमारा सरदार

कला, साहित्य और राजनीति

कला, साहित्य और राजनीति तीनों पृथक कलायें हैं परन्तु इसके घालमेल से व्यक्ति सफलता के चरम शिखर तक जा पहुँचता है। संघर्ष हर कोई करता है, योग्यता भी हर किसी में होती है। निसंदेह कुछ लोगों को छोड़कर जो कि अपवाद होते हैं। परन्तु जो केवल एक ही चीज पकड़कर आगे बढ़ता है वह हमेशा ही संघर्ष करता रहता है। यह विचार कुछ लोगों में गफलत जरूर पैदा कर सकता है।

वैसे ही जब मैं किसी एक और विचार को सुन रहा था, जब एक वरिष्ठ साहित्यकार जो कि किसी बड़े सम्मान से नवाजे जा चुके थे और उन्होंने अपना घर पर पार्टी का आयोजन किया, तो सबसे पहले उनके घर पर एक बड़ी साहित्यकारा नेत्री पहुँच गईं, और उन दोनों की गुफ्तगू चल रही थी, साहित्यकार महोदय मद्यपान और धूम्रपान कर रहे थे, और सामने के सोफे पर ही नेत्री बैठी थीं। एक बात हमें बहुत मुद्दे की लगी, जब नेत्री ने कहा कि यह मुकाम आपने बहुत संघर्ष से पाया है, तब साहित्यकार महोदय कहते हैं कि नहीं आप गलत हैं, असल में आज जिस मुकाम पर मैं हूँ केवल अपनी चालाकी के कारण, तो नेत्री जी उनकी बात से असहमत थीं, तो साहित्यकार महोदय ने उनको कहा कि आप क्या सभी लोग असहमत होंगे परंतु सच यही है कि मैं केवल अपनी चालाकी के कारण यहाँ तक पहुँचा। Continue reading कला, साहित्य और राजनीति

जख्म इतना भी गहरा न दिया करो

कुछ लाईनें जो ट्विटर पर लिख दी थीं, तो सोचा कि अपने ब्लॉग पर लिख दें ताकि सनद रहे कि हमने ही लिखी थीं –

 

ये भी मत सोचकर मतवाला होना कि,

हवा तुम्हारे कहने से ही चलेगी,

कभी हमारे बारे में भी सोचना,

कि तुम्हें पता न हो हम तूफानों में ही खेलते हैं।

 

जब से मैं जंगली जैसा रहने लगा हूँ,

मेरे नाखून ही मेरे हथियार हैं,

अब मुझपे झपट्टा मारने के पहले,

सौ बार सोच जरूर लेना।

 

तेरे हर सवाल का जबाब हम देंगे,

तेरे हर दर्द का जबाब हम देंगे,

जब हम तुझे दर्द देंगे तो निशां रह जायेंगे,

दर्द से सारी जिंदगी तड़पते रहोगे।

 

जख्म इतना भी गहरा न दिया करो कि,

हम खुद ही कुरेद के नासूर बना लें,

ताकि याद रख सकें कि,

एक दिन तुमसे बदला लेना है।

 

वक्त का क्या है,

वक्त की अपनी चाल है,

हमारा क्या है,

हमारी चाल वक्त बिगाड़ता है।

 

अभी मैं भले तुम्हें कोयला लगता हूँ पर,

ध्यान रखना हीरा कोयला ही बनता है।