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Swing Trading Ideas

मेरी किताबें, पॉडकास्ट और Swing Trading Ideas

नववर्ष पर पहली ब्लॉग पोस्ट है, सोचा तो था कि जल्दी पोस्ट करेंगे, परंतु लगातार व्यस्तता के चलते यह रह ही गया। नववर्ष पर किताबें पढ़ने का प्रण लिया है, तो अभी तक हम नववर्ष में १० किताबें पढ़ चुके हैं –

नाम हैं –

  • Trading Nifty and BankNifty Options
  • टोपी शुक्ला
  • राहुल सांकृत्यायन विविध प्रसंग
  • Mastering Options Short Strangles Trading
  • How to find a Jackpot call in Option
  • More profit from Nifty options
  • Nifty BankNifty Interaday Options Buying Single Successful Strategy
  • Trend Trading with Nifty & Bank Nifty
  • The Secret of Trading Bank Nifty Future
  • Secret No Loss BankNifty Options Strategy

कुछ पॉडकास्ट भी सुने जिसमें सबसे बेहतरीन लगे 2 जो कि पढ़ाकू नितिन पॉडकास्ट से हैं

किताबों के सैकडों पन्नों से अपने काम की चीज कैसे निकाली जाये – Episode 22

बादशाहों के दरबार से निकली ‘किस्सागोई’ की दिलचस्प कहानी – Episode 20

आप ये गूगल करके सुन सकते हैं, किताबें हमने अमेजन किंडल पर पढ़ी हैं, व हमारे पास किंडल अनलिमिटेड सब्सक्रिप्शन है, तो आप वहाँ पर भी पढ़ सकते हैं।

आजकल मैं वीकली स्ट्रेटेजी बना रहा हूँ, स्विंग ट्रेडिंग की, देख लीजिये अगर समझ आये तो, नहीं तो कमेंट करके पूछ लीजियेगा –

शेयर बाज़ार में टिप्स से नहीं सीखकर काम करिये

कई लोगों का मेरे INBOX में हमेशा यही मैसेज रहता है कि क्या टिप है, कुछ शेयर के नाम बता दीजीये, और कम ही लोग यह पूछते हैं कि शेयर बाज़ार को कैसे सीखें, समझें।


टिप पूछने वाले तो खैर अपने पैर पर ख़ुद ही कुल्हाड़ी मार रहे होते हैं, क्योंकि उनको ही नहीं पता है कि वे क्या ख़रीदने वाले हैं अपनी उस रक़म से जो कि उन्होंने दिन रात काम करके, परिवार के समय के साथ समझौता करके, किसी न किसी अपनी इच्छा को मारकर, किसी ऐसे व्यक्ति के कहने पर कहीं भी पैसा लगाने को तैयार रहते हैं जिन्हें वे मार्केट एक्सपर्ट समझते हैं। यहाँ शेयर बाज़ार में ऐसा कोई नहीं जो कि हमेशा ही लाभ में होता हो, सभी को घाटा होता है, यह भी एक व्यापार ही है।

बस हमें अपने लाभ को घाटे से ज़्यादा रखना होता है, तो हम शेयर बाज़ार में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। नहीं तो जो रक़म गाढ़ी कमाई की है उसे बाज़ार में आकर गँवा देंगे। बाज़ार में कोई भी एक्सपर्ट नहीं है, शेयर बाज़ार सर्वोपरि है, भगवान है, कब क्या हो जाये कोई भी प्रिडिक्ट नहीं कर सकता है।

मैं ख़ुद उतने वर्षों से बाज़ार में रहते हुए, सीखने के लिये लालायित रहता हूँ, जो तरकीबें आज से १० साल पहले काम करती थीं, वे अब काम नहीं करती, बाज़ार में काम करने का तरीक़ा, बाज़ार का ट्रेंड बदलता रहता है, और जब सीखेंगे तभी कुछ अच्छा कर पायेंगे।

बाज़ार को सीखने के लिये रोज़ समय देना होता है, मैं आज भी लगभग रोज़ २ घंटे बाज़ार को सीखने के विश्लेषण करने के देता हूँ, तभी आज थोड़ा बहुत सफल हो पाता हूँ। बाज़ार ऐसी जगह है जहाँ सभी तरह के लोग हैं कोई ट्रेडर है तो कोई निवेशक, सबकी अपनी अपनी ज़रूरत और सीखने की अपनी प्रक्रिया होती है। सीखना एक लंबी प्रक्रिया है, फिर उसे प्रेक्टिस करके, बैकटेस्ट करके ही कुछ सफलता हाथ लग सकती है।

अब तो यूट्यूब चैनल हैं सीखने के लिये, मैं अमूमन जब सीखता हूँ, तो मुझे १ घंटे के वीडियो को ख़त्म करने में ही ४ घंटे से ज़्यादा वक़्त लग जाता है, क्योंकि मैं साथ ही प्रैक्टिस भी करता जाता हूँ। शेयर बाज़ार जितना आसान है, उतना ही मुश्किल। बस एक बात अपनी जोखिम क्षमता को ज़रूर परख लें, और शेयर बाज़ार लत है, रोज़ ट्रेड नहीं करने की आदत भी डालनी चाहिये, मार्केट ट्रेंड के साथ कभी कभी ट्रेड करके अपने पैसे को मात्र ४-५ घंटे में १०-११ गुना भी बनाया जा सकता है, बस आपकी स्टडी अच्छी होनी चाहिये, और सबसे बड़ी बात कि अपनी स्टडी पर ख़ुद को ही कॉन्फ़िडेंस होना चाहिये।

शेयर बाज़ार में रोज़ नई चीजें कैसे सीखें

शेयर बाज़ार में लोगों का interest जब से lockdown लगा है, तब से कुछ ज्यादा ही हुआ है। इसी कारण से कोई भी ब्रोकर हो उनके यहाँ रिकार्डतोड़ DMAT account खुल रहे हैं। पर समस्या यह है कि लोगों को पैसा बनाने के लिये टिप चाहिये होती है, सीखने वाले न के बराबर हैं। टिप बहुत बुरी बीमारी है, टिप से व्यक्ति को अपनी risk ही पता नहीं रहती। किसी और के कहने पर अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा अंधी दौड़ के लिये लगाता जाता है।

खैर ज़्यादा भाषण नहीं, तो मुख्य बात यह है कि शेयर बाज़ार में रोज़ नई चीजें कैसे सीखें, यहाँ तक कि बुनियादी बातें, Share market terms कैसे जानें। उसके लिये बहुत ही बढ़िया तरीका है कि आप यूट्यूब पर जाकर आपको जो सीखना है वह सीखना शुरू करें, फिर जो terms आपको समझ न आती हों तो उन terms को लिखकर सर्च करें, इस प्रकार कड़ी से कड़ी जोड़कर आप बहुत सी चीजों को सीख सकते हैं।

मुझे शेयर बाज़ार में काम करते हुए 20 वर्ष से ज़्यादा हो गये, पर अब भी बहुत सी नई चीजें उनके बीच के co-relation पता चलते हैं, तो बच्चे जैसा सीखने के लिये मचल जाता हूँ, और फिर पागलों की तरह की वीडियो देखता रहता हूँ, ब्लॉग पढ़ता हूँ, ट्विटर पर ढूँढता हूँ, साथ ही अपनी कॉपी रखता हूँ, और जो भी महत्वपूर्ण बिंदु होते हैं, उन्हें लिखता जाता हूँ, अगर data उपलब्ध होता है तो हाथों हाथ उन सबकी back testing भी कर लेता हूँ, तथा अगले दिन से paper trade में शामिल कर लेता हूँ।

केवल इसी हैबिट के कारण मुझे पिछले एक महीने से इतना फ़ायदा हुआ कि अब एक डील में weekly expiry के दिन लेता हूँ और Friday बाजार बंद होने के पहले या Monday morning में ही मुझे मेरी लगायी मार्जिन रकम का 1.5 – 2% का रिटर्न मिल जाता है, जिसके लिये मुझे बारबार बाजार भी नहीं देखना होता है। मैं अपना ऑफिस के काम में व्यस्त रहता हूँ, बस किसी एक ब्रेक में डील देख लेता हूँ, जब भी मुझे 1.5-2% के आसपास का फायदा होता है, मैं निकल लेता हूँ। महीने का 8% जो कि साल का 96% याने कि लगभग पैसा दोगुना एक साल में हो जायेगा। अभी तक मेरा profit 2% हर सप्ताह के हिसाब से पिछले 3 सप्ताह से हो रहा है, जिसकी पेपर ट्रेडिंग मैंने लगभग 1 महीना की, फिर मुझे confidence आ गया, क्योंकि मैं बहुत सारे ifs and buts जानता था, अगर trade गलत हो गई तो उसके adjustments भी करना जानता हूँ।

आज कुछ नई बातें MACD, Elliot Waves पर सीखीं, back testing भी करी, अब कल से paper trade करेंगे, अगर यह समझ आ गया तो बस मजा ही आ जायेगा।

शेयर बाज़ार जुआँ सट्टा नहीं है, बहुत सी चीजें technicals पर चलती हैं, बहुत सी नहीं, इसलिये सीखना बहुत है, मेरा तो यही मानना है कि शेयर बाज़ार में आकर मुनाफ़ा कमाना दूर की बात है, पहले आप जो पैसा बाज़ार में लगाने के लिये लाये हैं, पहले उसे बचाना सीख लें, अगर वह सीख लिया तो profit तो झक मारकर आयेगा।

पुनीत राजकुमार की असामयिक मृत्यु

कल कन्नड़ अभिनेता पुनीत राजकुमार की ह्रदयाघात से मृत्यु हो गई, उनकी उम्र केवल 46 वर्ष थी, मतलब कि बिल्कुल मेरी उम्र के थे। हालाँकि मैंने शायद उनकी एक ही फ़िल्म देखी थी, उनके भाई शिवा राजकुमार के साथ हमने बेटेलाल की एक फ़ोटो बैंगलोर एयरपोर्ट पर ली थी। कन्नड़ फ़िल्में न देखने के कारण हमें बहुत ज़्यादा कुछ पता नहीं हैं, परंतु एक बात देखी है कि दक्षिण भारत में अपने नेताओं के लिये ज़बरदस्त प्यार देखने को मिलता है, जिसकी मिसाल इसी बात से है कि कई अभिनेताओं व अभिनेत्रियों को राजगद्दी पर वर्षों तक बैठाये रखा।

कल जब बैंगलोर के फेसुबक पेज पर जहाँ कि पुनीत राजकुमार के बारे में जानकारी दी जा रही थी वहीँ कमेंट पढ़ रहा था, कई लोगों ने कमेंट में लिखा था कि वैक्सीन के बाद के साइड इफ़ेक्ट हैं, और वैक्सीन के बाद बहुत सी गंभीर बीमारियों का लोगों को सामना करना पड़ रहा है।वहीं मेरा मत भी यही है कि वैक्सीन लगने के बाद मेरे अपने ही कई परिचितों को मैंने खोया, इससे मैं कई दिनों तक टूटा रहा। वैक्सीन के इन साइड इफेक्टों की सरकार को या किसी स्वतंत्र एजेंसी को जाँच करनी चाहिये।

कल शाम को बाज़ार गये थे, तो वहाँ चौक पर पुनीत राजकुमार की फ़ोटो और कर्नाटक का झंडा शोक स्वरूप झुका रखा था। बैंगलोर में लगभग हर क्षैत्र में किसी एक चौक पर इवेंट के लिये जगह है, जहाँ लोकल लोग इकठ्ठे होकर कन्नड़ त्योहार मनाते हैं। वहीं आसपास अच्छे से सजाया भी जाता है। अब दो दिन बाद १ नवंबर को कर्नाटक राज्योत्सव है, जिसकी लगभग हर कंपनी में छुट्टी होती है उस दिन हर चौक पर सजाया जाता है, ऑटो टैक्सी पर फूलों की मालायें व उन पर कर्नाटक राज्य का झंडा लगाकर रैली भी निकालते हैं, साथ ही दिनभर ऐसे ही घूमते हैं। हमें भी अच्छा लगता है, क्योंकि इस तरह से त्योहारों को जब आनंददायक बनाया जायेगा, तब ही लोग इस तरह के इवेंट से जुड़ेंगे।

पुनीत राजकुमार की इस असामयिक मृत्यु पर हमें भी बहुत दुख हुआ, वे बहुत से ऐसे सामाजिक कार्यों में मदद करते थे, कई जगह चंदा देते थे, उनकी मदद से कई लोगों के जीवन चल रहे थे, वे अब अपने आपको अनाथ मान रहे हैं।

ज़िंदगी कितनी भी हो, छोटी या बड़ी बस उसका इंपेक्ट लोगों पर लंबे समय तक रहना चाहिये, वह भी अच्छे स्वरूप में, ऐसी कोशिश हर किसी को करनी चाहिये।

दुनिया ही ख़त्म हो गई तो क्या होगा

मन में हमेशा ही ऐसा कुछ चलता रहता है कि वैसे भी किसी के होने या न होने का बहुत ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ता, बस जब तक कोई हमारे आसपास है, तब तक सब ठीक है, परंतु जब वह व्यक्ति हमारे जीवन में नहीं है तो हम उसके बिना रहना सीख लेते हैं। धीरे धीरे हमें आदत पड़ जाती है, और दरअसल होता भी इसलिये है कि जब तक वह व्यक्ति हमारे आसपास रहता है, हमें उसकी अहमियत पता नहीं होती, न ही उस व्यक्ति का महत्व पता लगता है। परंतु अचानक ही अगर वह व्यक्ति हमेशा के लिये हमारे से दूर हो जाये तो बहुत तकलीफ़ होती है, क्योंकि तब हमें अचानक ही लगता है, कि अब बहुत से कार्य जो बन जाते थे, वे अब बहुत मुश्किल होंगे। साथ रहने से हमारे मन में जुड़ाव तो रहता ही है।

कई बार सोचता हूँ कि अगर मान लो कि दुनिया ही ख़त्म हो गई तो क्या होगा, और ख़ासकर तब क्या होगा जब सब ख़त्म हो जायें और कोई 1-2 लोग ही इस पृथ्वी पर जीवित बचें, तो वे लोग कैसे अपना भरण पोषण करेंगे, क्योंकि इस धरती पर जो कुछ था, सब कुछ ख़त्म, याने कि बिजली, इंटरनेट, घर कुछ भी नहीं। जरा दो मिनिट सोचकर देखिये जहाँ आप अभी यह पोस्ट पढ़ रहे हैं, तो या तो आप सोफ़े पर हैं, या बिस्तर पर या कहीं बैठे हुए हैं, कुल मिलाकर मतलब आराम में हैं, वहीं एकदम से आप कहीं जंगल या पहाड़ या मैदान में अकेले हैं, दूर दूर तक दुनिया में कोई नहीं है। तब कैसे अपने महत्वपूर्ण कार्य भी कर पायेंगे।

आग कैसे लगायेंगे, खाना कैसे बनायेंगे, पॉटी कहाँ जायेंगे, कैसे नहायेंगे, न आपको पास गूगल होगा ढूँढने के लिये न यूट्यूब होगा वीडियो देखकर सीखने के लिये, न कोई कार होगी कहीं जाने के लिये, न कोई रेस्टोरेंट होगा। यह दुनिया अचानक ही भयावह लगने लगेगी, आपको बस ऐसा लगेगा कि यह दुःस्वप्न जितना जल्दी ख़त्म हो, उतना अच्छा है, बस सोचकर देखिये और बस अपने रोंगटे न खड़े होने दें।

जीवन बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिये हर चीज, हर व्यक्ति को सम्मान दें, भले आपको चीजें पसंद हो या नापसंद परंतु आपके कहना का ढंग सलीके भरा होना चाहिये। कई मुश्किल बातें केवल अपने व्यवहार के कारण बहुत ही आसान हो जाती हैं। यह सोचकर इस धरती पर न रहें, कि आप अहसान कर रहे हैं, बल्कि यह धरती आप पर अहसान कर रही है, ऐसा सोचेंगे तो यह आपके फ़ायदे के लिये ही होगा।

मूल स्वभाव का निर्माण

ललित जी की टिप्पणी थी पिछली पोस्ट – स्वभाव परिवर्तन में –

मूल स्वभाव का निर्माण कैसे होता है और कब तक होता है? क्या हमारे स्वभाव के निर्माण में दूसरे लोगों का भी प्रभाव होता है? माता पिता परिवार और परिवेश हमारे स्वभाव के लिए कुछ उत्तरदायी होते है? ये प्रश्न पढ़ने के बाद पैदा हुए सो उनुत्तरित रह गये । फिर कभी इनपर भी प्रकाश डालिएगा। धन्यवाद ।

मैं इतना तो विद्वान नहीं और न ही इतनी समझ परंतु फिर भी हमने जो आज तक पढ़ा, लिखा, देखा, सुना उसके आधार पर कुछ बातें रख सकते हैं –

मूल स्वभाव वस्तुतः हमारे सामाजिक परिवेश से बनता है, वैसे यह कहना भी ग़लत है कि सामाजिक परिवेश से बनता है क्योंकि जिनका परिवेश अच्छा होता है उनका भी मूल स्वभाव कई बार देखने में आता है कि क्रोध वाला या ख़राब आदतों वाला होता है। सामाजिक परिवेश से व्यक्ति केवल आचार विचार, रहन सहन के तौर तरीक़े सीखता है, भले सामाजिक परिवेश बढ़िया हो, परंतु जिस चीज या आदतों को उससे छुपाकर रखा जाता है वह अंततः कहीं न कहीं व्यक्ति explore कर ही लेता है।

स्वभाव के निर्माण में बहुत हद तक हमारे परिवार याने कि जो हमेशा ही साथ रहते हैं, मतलब माता पिता भाई बहन या कोई और रिश्ता हो, ज़िम्मेदार होते हैं, किसी को ज़्यादा प्यार मिलने से वह उद्दंड हो जाता है, वहीं अगर किसी एक बच्चे को वो सब न मिले जो घर के अन्य बच्चों को मिल रहा हो, याने कि उपेक्षित हो, तो उसका मूल स्वभाव अलग तरह से बनेगा, यहाँ किसी की त्रुटि नहीं है, वरन यह मानवीय स्वभाव है, हम किसी को पसंद ओर किसी को नापसंद करते हैं। परंतु इससे जो चीजें हमारे अंदर विकसित होती हैं, वे धीरे धीरे ढलती जाती हैं, जिससे वह हमारे मूल स्वभाव में आ जाता है।

एक उदाहरण से समझने की कोशिश करें कि अगर किसी व्यक्ति को हम हमेशा ही उपेक्षित करें, ढंग से बात न करें, उस पर हमेशा ही हर कोई क्रोध करता रहे तो उसका मूल स्वभाव या तो बहुत उग्र होगा, जिससे वह अपने को बचा सके, दरअसल वह अपने बचाव के लिये ढाल बनायेगा, तब दुनिया उसे बदतमीज़ या उद्दंड कहेगी। वहीं अगर वह विपरीत दूसरे स्वभाव को अपना ले, कि चुपचाप लोगों की बातें सुन ले, हमेशा सिर झुकाकर सारी बातें सुन ले, और सोच ले कि उसकी क़िस्मत में यही है कि लोग उसे सुनायेंगे, तो उसका मूल स्वभाव ही हमेशा ही दब्बू वाला रहेगा। वह किसी भी बात का विरोध नहीं करेगा।

बस यही जरा सी बात हमें जुदा करती है, मूल स्वभाव को समझना बेहद दुश्कर कार्य है, पर मुझे लगता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने मूल स्वभाव के लिये ख़ुद ज़िम्मेदार होता है, कोई किसी को मूल स्वभाव बना नहीं सकता है, सबको अपना भला बुरा समझ आता है। यह अलग बात है कि किसी को भला भी बुरा लगता है और किसी को बुरा भी भला लगता है। कहीं न कहीं कोई बहुत ही महीन रेखा इस छोटी सी बात को बहुत बड़ी बनाती है। हम हमेशा ही किसी न किसी से कोई न कोई चीज सीखाकर अपने अंदर वह पनपने देते हैं, भले वह आदत हो या कुछ और, भले वह बुरी बात हो या अच्छी। बस हमें अच्छी लगनी चाहिये।

मानोगे तो परेशानी है, नहीं तो सब सामान्य है

परेशानी ऐसी चीज है, अगर किसी समस्या को बड़ी मानोगे तो बड़ी होगी, छोटी मानोगे तो छोटी, और न मानोगे तो न होगी। बस यह हमारा दिमाग़ है जो किसी भी कठिनाई को समस्या मान लेता है और फिर उस समस्या का समाधान न मिलने पर उसे परेशानी का नाम देकर अपने दिमाग़ में चिंता रूपी कीड़ा पाल लेता है। फिर वह कीड़ा दिन रात दिमाग़ में घूमता रहता है और बिना किसी बात के वह छोटी सी कठिनाई जो लगती है, पर दरअसल कई बार होती भी नहीं है, कीड़ा दिमाग़ में अपना भौकाल बनाये रखता है।

हमें वह कीड़ा उस कठिनाई से निपटने के लिये कोई समाधान न सुझाता है, परंतु उसकी जगह हमें वह कीड़ा नकारात्मक विचार हमारे ज़हन में भर देता है, कि अगर ऐसा हो गया तो, वैसा हो जायेगा, फिर वैसा और फ़लां को पता चल गया तो बस हो गया काम। इस तरह से हम अपनी कोई छोटी सी कठिनाई को पहले समस्या फिर परेशानी बना लेते हैं। कई बार हम अगर किसी बात को इग्नोर कर दें तो बहुत सी बातें कठिनाई नहीं बनतीं, जब कठिनाई नहीं होगी तो न समस्या होगी न परेशानी होगी।

कई कठिनाइयाँ समय के साथ अपने आप ही लुप्त हो जाती हैं और कई समय के साथ बढ़ती हैं, तो हमें पहले कठिनाई का प्रकार समझकर विश्लेषण कर लेना चाहिये, वह भी साफ़ मन व दिमाग़ से, पहली बात तो यह कि कठिनाई को कठिनाई न मानें, जीवन है तो कठिन तो होगा ही, कठिन होगा तो समस्या व परेशानी भी आनी ही हैं। इसलिये बेहतर है कि अपने दिमाग़ व मन को साफ़ रखें तथा जीवन की सोच को साधारण रखें।

दरअसल 99% समय होता यह है कि हम फ़ालतू की कोई बात दिल या दिमाग़ में धर लेते हैं और ख़ुद ही परेशानी बना लेते हैं। क्यों? क्योंकि हमारा दिमाग़ वाक़ई बहुत फ़ालतू होता है, एक साथ हज़ारों चीजें सोच सकता है और जिस चीज में उसे मज़ा आता है, वही बातें दिमाग़ के कोनों से टकराकर लौटकर वापिस आती है, तो इस फ़ालतू दिमाग़ को सबसे पहले आराम दें, अपने मन को तटस्थ रखें, इसके लिये थोड़ा सा ध्यान लगाकर बहुत जल्दी सफलता पाई जा सकती है। फ़ालतू की चीजों में अपना समय न गँवायें, कुछ अच्छा देखें, कुछ अच्छा पढ़ें, नई चीजें सीखें, देखें, भले न समझ आयें परंतु जब एक बार कुछ करने की इच्छा पर आपने विजय पा लिया तो, आप अपने एक नये रूप को जल्दी ही धरातल पर देखेंगे।

बातों को ख़त्म करना सीखें

किस बात पर हमें कितना ध्यान देना है, यह हमें पता होना चाहिये, नहीं तो हम केवल फ़ालतू की बातों में ही अपने आपको लगाये रहेंगे और जीवन के कुछ महत्वपूर्ण पलों को ऐसे ही निकाल देंगे, अगर हमें प्राथमिकता पता होगी तो ही हमें किसी बात का महत्व भी पता होगा। कई बार हम किसी बात से बहुत ही परेशान होते हैं, और बाद में पता चलता है कि उस बात का उतना importance था ही नहीं, या उतनी चिंता करने की कोई बता ही नहीं थी। हम अगर किसी बात से परेशान हैं तो सबसे पहले हमें यह ठोक बजाकर पता कर लेना चाहिये कि उस बात से हमारा कितना सारोकार है।

चिंतित होना मानवीय स्वभाव है और कई बार हम छोटी छोटी बातों को ही अपने दिल दिमाग़ में पाल लेते हैं जिससे वह बात या समस्या हमें बहुत बड़ी लगने लगती है, हम फिर हर चीज को बड़ा करके देखने लगते हैं, जिससे हम अपना सुकून खो देते हैं, रातों की नींद ग़ायब हो जाती है, दिन का आराम ग़ायब हो जाता है, हम काम तो कर रहे होते हैं परंतु काम में मन नहीं लगता है, बस वे कुछ दिन या कुछ सप्ताह ऐसे ही बीत जाते हैं, और फिर यकायक ही वह बात अपने आप ही ख़त्म हो जाती है या उसकी Importance हमारे जीवन से ख़त्म हो जाती है, परंतु बाद में हम कभी इस बात का विश्लेषण नहीं करते कि हमें किन बातों का चिंतन करना चाहिये, और किन बातों को दिमाग़ में बैठने देना चाहिये।

मैंने इसके लिये अपने जीवन में सिंपलीकरण किया हुआ है, जब भी कोई बाद दिलो दिमाग़ को परेशान करे, तो उसके बारे में विस्तार से सोचो, कि उससे कितना बुरा हो सकता है या कितना अच्छा हो सकता है, खैर अच्छी वाली बातों से तो हम परेशान होते ही नहीं उससे तो हम खुश भी नहीं होते, क्योंकि कोई ऐसी बात भी है जो परेशान कर रही होती है। मुझे सोचने के बाद पता चलता है कि इस बात पर अपने आपको परेशान करने का कोई औचित्य ही नहीं है। बस उसके बाद हम उन बातों को सोचने से मुक्त हो जाते हैं।

काम में मन भी तब लगेंगे, जब आप लगाना चाहेंगे, अगर फ़ालतू की बातों में अपने आपको फँसाकर रखेंगे तो जीवन बहुत मुश्किल है। अगर आपने कोई निर्णय एक बार ले लिया तो उसमें ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं कि इसका आगे क्या प्रभाव होगा, कितना नुक़सान होगा, किसको कितना बुरा लगेगा, यह सब तो जीवन में चलता ही रहेगा। इन सब बातों से ज़्यादा महत्वपूर्ण आपका अपना स्वास्थ्य है, जो इससे प्रभावित होगा।

बुनियादी सुविधाओं में स्वास्थ्य, शिक्षा व भोजन

अब जब हम ख़बरें पढ़ते हैं तो विश्वास ही नहीं होता है कि सरकार हमारे लिये याने जनता के लिये क्या इतना सा नहीं कर सकतीं, जहाँ इतना सारा पैसा पता नहीं कैसी कैसी योजनाओं में खर्च किया जाता है वहीं कुछ पैसा क्या जनता के लिये नहीं लगाया जा सकता था। कुछ बुनियादी सुविधायें जो कि हर जन को मिलनी ही चाहिये वे भी उपलब्ध नहीं है, हम बहुत ही निम्नतम स्तर पर जी रहें हैं। बुनियादी सुविधाओं में स्वास्थ्य, शिक्षा व भोजन ही आता है।

स्वास्थ्य के लिये तो एक बढ़िया सी स्वास्थ्य पॉलिसी को रोल आउट किया जा सकता है, किया भी था, परंतु इस कोरोना के काल में उनके बारे में जानने पर पता चला कि जो बीमा लिया भी गया था, वह किसी काम का नहीं था, बीमा कंपनियों ने यह कहकर टरका दिया कि इसके लिये अस्पताल जाने की ज़रूरत ही नहीं थी, इसके लिये आपका इलाज घर पर ही हो जाता, तो बीमा कंपनियों ने बड़े सवाल खड़े कर दिये हैं डॉक्टरों के निर्णय पर, अस्पताल में भर्ती होना या न होना, हमारे नहीं डॉक्टर के कहने पर निर्भर होता है। क्यों सरकार इसका जबाब नहीं दे रही। और यह समस्या केवल सरकारी अस्पतालों के बीमा निराकरण केसों में ही है, जैसा कि रिपोर्ट में बताया जा रहा है, वहीं निजी अस्पतालों के बीमा केस पास हो रहे हैं।

शिक्षा का स्वरूप ही बदल गया है, कहाँ कक्षा में शिक्षा होती थी, और अब कहाँ ऑनलाइन, पहले जो शिक्षक बच्चों व अभिभावकों को कहते थे कि मोबाईल व लेपटॉप से बच्चों को दूर रखें, आँखें ख़राब होती हैं, दिमाग़ ठिकाने नहीं रहता। अब वही शिक्षक ऑनलाइन पढ़ने के लिये प्रेरित कर रहे हैं। जो अभिभावक मोबाईल या लेपटॉप की क़ीमत ही अफोर्ड नहीं कर सकते हैं, उनके लिये बहुत कठिन समय है, अब हर किसी के लिये तो सोनू सूद आ नहीं सकता और न ही हर किसी की कहानी वाईरल हो सकती है।

इस कोरोनो काल में सरकारों को ह्रदय द्रवित होना चाहिये, व समझना चाहिये कि सरकार जनकल्याण के लिये होती है व कि किसी कंपनी की तरह प्रॉफिट में लाने के लिये। सरकार को तो इस समय चीजों को सस्ता कर देना चाहिये, हर जगह जहाँ लोगों की सुविधाओं के लिये काम हो रहा है, वहाँ त्वरित निर्णय लेते हुए कठोर नियम लागू कर देना चाहिये, जिससे जनता को न स्वास्थ्य के लिये परेशान होना होगा, न शिक्षा के लिये भागना होगा न ही भोजन के बिना रहना होगा। ऐसा नहीं है कि काम नहीं हो रहा, परंतु जितना हो रहा है वह नाकाम है, यह वक़्त मीटिंग करने का नहीं है, सरकारी अमले को सड़क पर उतर कर एक्शन लेने का वक़्त है।

इतिहास जब लिखा जाता है तब इतिहासकार की कलम किसी को नहीं छोड़ती, यह सत्य हमेशा ही देखा जा सकता है, तो दंभ करने की ज़रूरत नहीं।

स्वभाव परिवर्तन

स्वभाव परिवर्तन क्यों होता है, यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, और यह निर्भर करता है हमारे भाव पर, कि हम उस समय किस भाव में जी रहे हैं, ग़ुस्से में हैं या प्यार में हैं या अनमने हैं। हम इन भावों पर नियंत्रण भी तभी सीखते हैं जब हम दोस्तों, परिवार और समाज के बीच रहते हैं। हमें अपने भाव पर नियंत्रण रखना होता है, भले कोई परिस्थिती हो। कुछ लोग बहुत ही ज़्यादा मारपीट या ऊँची आवाज़ में बात करने लगते हैं या एक ही परिस्थिती में रहकर, उनका मूल स्वभाव ही बदल जाता है।

दरअसल बहुत से लोग परिवर्तन स्वीकार ही नहीं कर पाते, स्वभाव हमेशा ही भाव से बनता है, अगर हम वातावरण को देखकर अपने आपको उसके अनुकूल बना लें तो शायद जीवन बहुत आसान होता है, परंतु अगर हम प्रतिकूल परिस्थितियों में ही रहने की आदत डाल लेते हैं, और हमेशा ही अपने दिमाग़ को विषम परिस्थितियों में रखते हैं तो हम अपने मूल स्वभाव को बदल नहीं सकते।स्वभाव हमेशा ही ध्यान रखें कि आपकी मानसिक मूल भावनाओं को प्रदर्शित करते हैं। जिससे कोई भी एकदम पता लगा सकता है कि ये किन परिस्थितियों में रह रहे हैं।

हर व्यक्ति में हमेशा ही कई तरह के स्वभाव होते हैं, जैसे कि मूल स्वभाव और एक दिखाने वाला स्वभाव। मूल स्वभाव की बात करें तो वह कहीं बदलता ही नहीं, हमेशा आप उसी भाव से प्रक्रिया देते हैं, यदि ग़ुस्से वाला स्वभाव है तो हमेशा ही आपका ग़ुस्से वाला रूप ही दिखेगा, वहीं अगर आपका मूल स्वभाव ही प्यार का है, तो भी आप चाहकर भी बहुत ग़ुस्से में भी अपने प्यार वाले स्वभाव को बदल नहीं पायेंगे, आपने कई लोगों को देखा होगा कि बहुत ग़ुस्से में भी चाहकर भी ग़ुस्सा नहीं कर पाते, और बातों को सहज ढंग से रखते हैं, वहीं कुछ लोग छोटी सी बात पर भी सबकुछ बिगाड़ लेते हैं, बहुत ग़ुस्सा करते हैं।दिखाने वाला स्वभाव वह है जब आपको वाक़ई किसी को कोई ओर रूप दिखाना है तो आपको एक नया चेहरा ओढ़कर अपना ग़ुस्सा या प्यार दिखाना पड़ता है, यह केवल समाज के लिये होता है, परिवार में हमेशा ही आप व्यक्ति के मूल स्वभाव को देखेंगे, अगर किसी का मूल स्वभाव पता करना हो तो, उसका पारिवारिक रूप देखना चाहिये।

मूल स्वभाव के उलट व्यक्ति बहुत दिनों तक अपने नये चेहरे वाले स्वभाव को ओढ़कर नहीं रख सकता, क्योंकि वह स्वभाव उसका है ही नहीं।

स्वभाव कैसे बदलें –

अपने स्वभाव पर ध्यान दें, अपने आपको तोलें और पूछें कि क्या मेरा कहने का भाव या व्यवहार दूसरों के प्रति सही है, अगर न समझ आये तो सोचिये कि अगर जैसा आपका मूल स्वभाव है, वही दूसरों का आपके प्रति हो तो आपको कैसा लगेगा, मेहनत का काम है, परंतु इसी प्रकार से आप अपने अंदर प्रगति ला सकते हैं। स्वभाव को बदलना बेहद दुश्कर कार्य है, क्योंकि यह आपकी मूल पहचान छीन लेगा।