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मुंबई से उज्जैन यात्रा बाबा महाकाल की चौथी सवारी और श्रावण मास की आखिरी सवारी 3 (Travel from Mumbai to Ujjain 3, Mahakal Savari)

    जब हमने उज्जैन जाने का कार्यक्रम बनाया था तभी यह सोच लिया गया था कि बाबा महाकालेश्वर की चौथी सवारी और जो कि श्रावण मास की आखिरी सवारी भी होगी, के दर्शन अवश्य किये जायेंगे।
    सायं ४ बजे महाकाल की सवारी महाकाल मंदिर से निकलती है जो कि गुदरी चौराहा, पानदरीबा होते हुए रामघाट पहुँचती है, फ़िर रामानुज पीठ, कार्तिक चौक, गोपाल मंदिर, पटनी बाजार होते हुए वापिस महाकाल मंदिर शाम ७ बजे पहुँचती है।
    बाबा महाकाल अपनी प्रजा के हाल जानने के लिये नगर में निकलते हैं, और प्रजा तो उनकी भक्ति में ओतप्रोत पलकें बिछाये इंतजार करती रहती है। पूरा उज्जैन शहर बाबा महाकाल में रमा रहता है। आसपास से गाँववाले पूरी श्रद्धा के साथ उज्जैन शहर में डेरा डाले रहते हैं। उज्जैन में महाकाल की भक्ति की बयार बहती है, हवा से भी केवल महाकाल का ही उच्चारण सुनाई देता है।
    इस बार मैंने अपने मोबाईल से कुछ फ़ोटो और वीडियो लिये हैं, आप भी बाबा महाकाल की सवारी के दर्शन कीजिये और जय महाकाल बोलिये ।
फ़ोटो –
Mahakal Savari Gopal Mandir
गोपाल मंदिर पर श्रद्धालुओं का जत्था
at Mahakal Savari Ujjain Vivek Rastogi and Harsh Rastogiगोपाल मंदिर पर हम अपने बेटेलाल के साथ
वीडियो –

 

 

गोपाल मंदिर का एक दृश्य

 

 

 

 

इन वीडियो मॆं पूरी महाकाल की सवारी का आनंद लिया जा सकता है।
जय बाबा महाकाल
ऊँ नम: शिवाय !

मुंबई में यात्रियों का बदला १२ अगस्त को ऑटो और टेक्सीवालों से (Revenge of the Commuters)

    क्या आपको कभी किसी ऑटो या टेक्सीवाले ने मना किया है, हमें तो रोज ही ऑटो और टेक्सीवाले मना करते हैं, और हम मन मसोस कर रह जाते हैं, क्योंकि इनके खिलाफ़ कोई भी कार्यवाही नहीं की जाती है।

    पर आज जब मुंबई मिरर पढ़ा तो लगा कि हम यात्री भी कुछ कर सकते हैं, अगर हम ही इनकी ऑटो और टेक्सियों में बैठने से मना कर दें तो ……

    जी हाँ १२ अगस्त को मुंबई में सभी यात्रियों से अपील की गई है कि ऑटो और टेक्सियों का उपयोग न करें, जिससे इनको भी यात्रियों की ताकत का पता चले।

    इस अभियान के लिये मीटरजाम नाम का अंतर्जाल भी बनाया गया है। जिससे यात्रियों में जागरुकता जगायी जा सके।

    अभी तक लगभग ६०० लोगों ने अपने को पंजीकृत करवा कर अभियान को समर्थन दिया है। और फ़ेसबुक पर लगभग ८४४ लोगों ने समर्थन दिया है।

इस अभियान को जयदेव रुपानी, रचना बरार और अभिषेक कृष्णन चला रहे हैं।

पूरी खबर पढ़ने के लिये यहाँ चटका लगाईये।

अंधेरी में ज्ञान पाने के लिये मुंबई के २ २ मिनिट की कीमत बारिश के बीच जद्दोजहद …. विवेक रस्तोगी

    आज अंधेरी में जागोइन्वेसटर पाठक मिलन था, समय तय किया गया था सुबह १० बजे से दोपहर २ बजे तक । क्लास रुम का जितना भी खर्च आना था वह सबको साझा करना था। सही मायने में वित्तीय प्रबंधन शिक्षा के लिये यह मुंबई में शुरु किया गया एक प्रयास है। जागोइन्वेस्टर.कॉम ब्लॉग मनीष चौहान लिखते हैं।

   तो सुबह ९ बजे घर से निकल पड़े थे क्योंकि अंधेरी पहुँचने में पुरे ४५ मिनिट का अनुमान लगाया था। ९ बजे नहीं निकल पाये हम निकल पाये ९.०५ बजे घर से और हाईवे तक पैदल बस स्टॉप पर ९.०८ बजे पहुँच गये। वहाँ जाकर बोरिवली स्टेशन की बस पकड़ी, हमारा अनुमान था कि लगभग ९.१७ बजे तक हम बोरिवली स्टेशान पहुँच जायेंगे।

    बोरिवली से कांदिवली ३ मिनिट, कांदिवली से मालाड ४ मिनिट, मलाड से गोरेगांव ४ मिनिट, गोरेगांव से जोगेश्वरी ६ मिनिट और जोगेश्वरी से अंधेरी लगभग ३ मिनिट लगता है, याने कि बोरिवली से अंधेरी २० मिनिट लगते हैं।

  और फ़िर हमें टिकट भी लेना था क्योंकि हम रोज लोकल ट्रेन में तो जाते नहीं हैं, हमारे पास रेलकार्ड है, जिसे कि रेल्वे स्टेशन पर लगे टर्मिनल से फ़टाफ़ट टिकट लिया जा सकता है। हमने रिटर्न टिकट लिया मतलब बोरिवली से अंधेरी जाने का और वापस बोरिवली आने का।

    फ़िर वहीं लगे उद्घोषणा टीवी पर देखा कि ९.२१ की चर्चगेट स्लो तीन नंबर प्लेटफ़ॉर्म और ९.२५ की चर्चगेट फ़ास्ट दो नंबर प्लेटफ़ार्म पर थी। हम फ़टाफ़ट दौड़ते हुए २-३ प्लेटफ़ॉर्म पर पहुँचे और ब्रिज से ही देखा कि ९.२१ की ट्रेन तो नदारद थी लगा कि चली गई परंतु भीड़ देखकर और इंडिकेटर पर ९.२१ का समय देखकर अंदाजा लगाया  कि ट्रेन लेट है। हमें तो अंधेरी तक ही जाना था तो हम ९.२५ की लोकल में चढ़ लिये।

  सेकंड क्लॉस के डिब्बे में बहुत दिन बाद चढ़े थे, अरे लोकल में ही बहुत दिनों बाद चढ़े थे और पीक समय था पर शनिवार होने के कारण चढ़ने को मिल गया था। अंदर घुसते ही पीछे से धक्का पड़ा और आवाज आई “अंदर दबा के चलो …. ” “भाईसाहब जरा धक्का मारकर !!!”, हम हाथ में छाता और अपनी किताब कापी पकड़े भीड़ में दुबके खड़े थे, जो गेट पर खड़े थे वो हर स्टॆशन पर दरवाजे की जनता का बराबर तरीके प्रबंधन कर रहे थे, “ए कांदिवली वालों को चढ़ने दे रे, जगह दे रे…”, “ऐ मालाड चलो आओ रे, ऐ इस तरफ़ से नहीं चढ़ने का” “ चल दबाके अंदर होले…”

    फ़िर जोगेश्वरी निकला और हम भी गेट के पीछे की भीड़ में लाईन में खड़े हो लिये और आगे वाले से पूछ कर आश्वस्त हो लिये “अंधेरी….” तो उसने धीरे गर्दन “हाँ” में हिला दी, और बाहर बारिश अपने पूरे जोरों से शुरु हो चुकी थी, ऐसी बारिश मुंबई के लिये थोड़ी अच्छी नहीं होती क्योंकि मुंबई में बारिश का पानी भर जाता है।

    जैसे ही अंधेरी स्टेशन आया तो आवाज आई “ऐ चल उड़ी मार उड़ी…” और जब तक ट्रेन स्टेशन पर रुकती तब तक तो हम भी प्लेटफ़ॉर्म पर थे। बारिश पूरे जोरों पर थी, हमने एक ओर पाठक से ९.४५ पर मिलना तय किया था, अंधेरी स्टेशन के एक्सिस बैंक के ए.टी.एम. के पास, वो हैं आशुतोष तिवारी जो कि हिन्दी ब्लॉगर भी हैं उनका ब्लॉग है मेरी अनुभूतियाँ । जोरों की बारिश में हम चल दिये अपने गंतव्य की ओर।

    वहाँ जाकर ४ घंटॆ कैसे निकल गये पता ही नहीं चला, गजेन्द्र ठाकुर जो कि सी.एफ़.पी. भी हैं, उन्होंने म्यूचयल फ़ंड पर इतनी अच्छी जानकारियाँ जुटाई थीं, कि समय का पता ही नहीं चला। अब अगली मीटिंग का दिन २८ अगस्त का है जिसमें एस.आई.पी., एस.टी.पी और एस.ड्ब्ल्यू.पी. पर जानकारी साझा की जायेगी।

ऑटो की हड़ताल , किराये में बढ़ौत्तरी और हम आम आदमी… मुंबई में विवेक रस्तोगी

    सुबह ९ बजे तक सब ठीक था, परंतु एकाएक सीएनबीसी आवाज पर एक न्यूज फ़्लेश देखा कि मुंबई में ऑटो की हड़ताल, फ़िर हम दूसरे न्यूज चैनलों पर गये परंतु कहीं भी कुछ नहीं आ रहा था।  अपने सहकर्मी के साथ रोज ऑटो में जाते थे उसका फ़ोन आया कि आ जाओ हम घर से निकले तो वो अपनी मोटर साईकिल पर आया हुआ था, हम उसकी मोटर साईकिल पर लद लिये। सड़कों पर दूर दूर तक ऑटो और टेक्सियाँ कहीं दिखाई नहीं दे रही थीं।

    पर आज कमाल की बात हुई कि हम केवल १० मिनिट में ही ऑफ़िस पहुँच गये जो कि रोज से लगभग आधा है, और तो और बसें भी अपनी पूरी स्पीड से चल रही थीं, ऐसा लगा कि ये ऑटो और टेक्सी वाले ही ट्राफ़िक न्यूसेंस करते होंगे, तभी तो कहीं भी कोई ट्राफ़िक नहीं, ऐसा लग रहा था कि हम मुंबई नहीं कहीं ओर हैं, और इस शहर में ऑटो और टेक्सियों की पाबंदी है।

    सी.एन.जी. गैस की कीमत ३३% बढ़ायी गई है, और ऑटो यूनियनों की मांग थी कि बेस फ़ेयर १.६ किमी के लिये ९ रुपये से बढ़ाकर १५ रुपये कर दिया जाये और उसके बाद प्रति किमी ५ से बढ़ाकर ६.५० रुपये कर दिया जाये। तो मांग मान ली गई और बेस फ़ेयर ९ रुपये से बढ़ाकर ११ रुपये कर दिया गया और उसके बाद प्रति किमी. ५ से बढ़ाकर ६.५० रुपये कर दिया गया है। सीधे सीधे २५% की ऑटो किराये में बढ़ौत्तरी कर दी गई है। अभी तक हमें एक तरफ़ के ४० रुपये लगते थे अब ५० रुपये लगेंगे, याने कि महीने के ५०० रुपये ज्यादा खर्च होंगे।

    अब सरकार को कन्वेन्स एलाऊँस ८०० से बढ़ाकर २००० रुपये कर देना चाहिये जिससे आयकर में ही कुछ राहत मिले।

    पूरा मुंबई बिना ऑटो और टेक्सी के बहुत ही अच्छा लग रहा था, अगर इनको हटा दिया जाये और बेस्ट अपनी बसें बड़ा दे तो ज्यादा अच्छा है।

    शाम को ऑफ़िस से निकले तो फ़िर ऑटो की तलाश शुरु की, क्योंकि हमारे सहकर्मी को कुछ काम था तो पहले आधे घंटे तक तो ऑटो ही नहीं मिला फ़िर सोचा कि चलो बस से बोरिवली जाते हैं और फ़िर वहाँ से अपने घर तक की बस मिल जाती है, तो थोड़े इंतजार के बाद ही सीधे घर के ओर की ही बस मिल गई। बस के पिछले दरवाजे पर लटकते हुए अगले स्टॉप पर अंदर हो पाये। फ़िर थोड़ी देर में ही बस लगभग खाली जैसी थी, तो हमने कंडक्टर से पूछा ये रोज ऐसी ही खाली आती है क्या ? वो बोला कि आज खाली है ऑटो के हड़ताल के कारण लोग ऑफ़िस नहीं जा पाये।

    खैर हम घर पहुँचे तो टीवी पर खबर देखी कि दिल्ली में तो लूट ही मच गई है, पहले २ किमी के लिये २० रुपये और फ़िर २ किमी. के बाद ६.५० रुपये कर दिया गया है। शायद अब दिल्ली में ऑटो वाले मीटर से चलें।

    खैर अपन तो आम जनता है और हमेशा से अपनी ही जेब कटती है और हम कुछ बोलते नहीं हैं, बोल भी नहीं पाते हैं। बस हमेशा लुटने को तैयार होते हैं, और हम कर भी क्या सकते हैं।

एक मुलाकात अलबेला खत्री जी के साथ मुंबई में

Albela Khatri & Vivek Rastogi    यह चेहरा आपने बुद्धु बक्से पर कई बार देखा होगा अरे मेरा नहीं जो मेरे साथ हैं, ये हैं अलबेला खत्री जी, प्रसिद्ध हास्य व्यंग्य कवि और हास्य इंटरटेन्मेन्ट व्यक्तित्व।

Albela Khatri & Vivek Rastogi Mumbai प्लेट की तरफ़ मत देखिये उसका माल तो हम हजम कर चुके हैं। 🙂

    अलबेला जी से बहुत सारी बातें हुईं, भाषा के उपयोग पर भी बहुत सी चर्चा हुई, अगर आज के साहित्यकार आज से ६० वर्ष पहले उपयोग होने वाली हिन्दी लिखेंगे तो शायद ही आज की पीढ़ी पढ़ना पसंद करेगी और अगर करेंगे भी तो कुछ चुनिंदा लोग।

    भाषा वह होनी चाहिये जो कि सबको आसानी से समझ में आ जाये । भाषा ज्यादा क्लिष्ट होने पर पाठक या श्रोता कम या गायब हो जाते हैं।

    वहीं पर हमारी मुलाकात हुई शंभू शिखर जी से भी वे भी हिन्दी ब्लॉगर हैं और लॉफ़्टर ३ में आ चुके हैं।

    जितनी देर हम अलबेला जी के साथ रहे मुंबई में बारिश पुरजोर बरस रही थी, बाहर मुंबईवासी बारिश से तरबतर हो रहे थे और हम ब्लॉगरस में। साथ ही फ़ोन पर हमारी बात हुई पाबला जी से, और वे भी हमारी मुलाकात का हिस्सा बने।

जन्मदिन पर दिनचर्या उज्जैन में [दाल बाफ़ले, मिठाई, बाबा महाकाल के दर्शन, रामघाट पर झम्मकलड्डू] भाग २

    जबेली का नाश्ता पूरा होने के बाद हमसे पूछा गया कि अब खाने में क्या पसंद करेंगे हम तो बस इंतजार ही कर रहे थे कि हमसे पूछा जाये और हम झट से कहें “दाल बाफ़ले”। बस हमने झट से कह दिया “दाल बाफ़ले”।

    फ़िर बाफ़ले का आटा बाजार से लाया गया और दाल और बैंगन के भुर्ते की तैयारी की जाने लगी साथ में चावल ये हमारे मालवा का विशेष भोजन है, जिसके लिये हम हमेशा भूखे ही रहते हैं, बाफ़ले का घी जो कि बाफ़ले की रग रग में घुसा हुआ था, हमारे हाई बी.पी. और बड़े हुए कोलोस्ट्रॉल को मुँह चिढ़ा रहा था।

    फ़िर हाथ से मीड़कर बाफ़ले में दाल मिलाकर मजे में अपनी देसी स्टाईल से खाने का आनंद लेने लगे, आज पेट के साथ साथ आत्मा भी तृप्त हो रही थी। आत्मा और मन आनंदित हो रही थी, दिल प्रफ़ुल्लित हो रहा था बाफ़ले के हर गस्से के साथ। अब ज्यादा बात नहीं करेंगे नहीं तो सभी ब्लॉगर्स हमसे अभी यहीं दाल बाफ़ले बनवा लेंगे। 🙂

    कार्यक्रम बनाया गया कि पहले कुछ जरुरी खरीददारी की जाये फ़िर मिठाई ली जाये और फ़िर महाकाल और रामघाट चला जाये। मिठाई में हमने बंगाली मिठाई और काजूकतली ली दोनों ही हमें बेहद पसंद हैं, भले ही डॉक्टर ने मना किया हो परंतु कभी कभी तो उनकी मनाही को ताक पर रखा जा सकता है और मिठाई आनंद लेकर खाई जा सकती है। 😉

    फ़िर समान घर पर रखकर चल दिये हम बाबा महाकाल के दर्शन करने के लिये, अपनी बाइक पर, पुराने उज्जैन की गलियों से निकलते हुए हमें सालों पुरानी यादें ताजा होने लगीं। जब महाकाल घाटी पहुँचे तो पता चला कि एकाकी मार्ग घोषित कर दिया गया है, तो हमने अपने पुराने रास्ते जो कि चौबीस खंबा माता मंदिर के पास से होकर महाकाल जाता है, उससे महाकाल पहुँचे और बाबा के दर्शन बड़े मजे में हुए। हम बाबा महाकाल के दर्शन करने के लिये रात को शयन आरती के पहले ही जाना पसंद करते हैं, क्योंकि उस समय एक तो भीड़ भी नहीं रहती और फ़िर आराम से दर्शन हो जाते हैं, शाम की ठंडक भी रहती है। बाबा महाकाल के दर्शन करने के बाद वहीं महाकाल प्रांगण में चल दिये हम बाबा बाल विजय मस्त हनुमान के दर्शन करने के लिये। सालों पहले हम बाबा महाकाल और बाल विजय मस्त हनुमान की आरती में रोज शामिल होते थे, सब बाबा का प्रताप है और आशीर्वाद है।

    बाबा के दर्शन करने के बाद रामघाट चल दिये, रामघाट से भी बहुत ही गहरा लगाव है मेरा, रामघाट ऐतिहासिक और पौराणिक है। अभी तो खूब चहल पहल थी पर आज से सालों पहले यही रामघाट सुनसान रहता था और घाट भी कच्चा ही था हम साईकिल से लगभग रोज ही रामघाट जाते थे। बड़ा अच्छा लगा कि रामघाट पर चहल पहल रहने लगी है। वहाँ झम्मकलड्डू वाला खड़ा था, जो कि हमारी और हमारे बेटे की पहली पसंद है, हमने लिया काला खट्टा और बेटेलाल ने लिया पंचरंगा, जिसे शुद्ध हिन्दी में बर्फ़ का गोला भी कहा जाता है। आजकल तो रामघाट पर बोटिंग भी हो रही है। चलो अच्छा है कि हमारा उज्जैन प्रगति पर है, सिंहस्थ आने को केवल सात वर्ष बाकी है।

    घर वापिस लौटते समय महफ़ूज भाई का फ़ोन आया परंतु हम ज्यादा बात नहीं कर पाये क्योंकि हम बाजार में थे और फ़िर घर पहुँचकर बात करना ही भूल गये और थकान में चूर होकर शरीर निढ़ाल हो गया था।

    फ़िर वापिस से आज याने कि चार अप्रैल को मुंबई प्रस्थान कर रहे हैं, और फ़िर मुंबईया लाईफ़ में एन्ट्री करने जा रहे हैं। ये सुकून भरे क्षण हमेशा याद रहते हैं, अपने मम्मी पापा के साथ और उज्जैन में बिताये हुए….

उज्जैन यात्रा वृत्तांत, प्लेटफ़ार्म पर हॉट पीस…

    तीन दिन की छुट्टियों में हम चले उज्जैन, और उसके बने कुछ वृत्तांत और संस्मरण।

    घर से बाहर निकले ऑटो पकड़ने के लिये, और सड़क पर खड़े होकर ऑटो को हाथ देने का उपक्रम करने लगे, दो तीन ऑटो वालों ने मीटर होल्ड पर किया था, मतलब साईड में किया हुआ था जिससे पता चलता है कि ऑटो वाला घर जा रहा है और सवारी को लेकर नहीं जायेगा। और कुछ ऑटो वाले जो कि सवारी की तलाश में थे और मीटर डाऊन नहीं था वे रुककर हमेशा पूछेंगे कहाँ जाना है, गंतव्य बताओ तो जाने को तैयार नहीं और चुपचाप अपनी गर्दन से नहीं का इशारा करके चुपके से निकल लेंगे। पर मुंबई में अगर आपके पास सामान है तो ऑटो वालों को पता रहता है कि ये सवारी या तो एयरपोर्ट जायेगी या रेल्वे स्टेशन। सामान साथ में रहने पर ऑटो मिलने में ज्यादा आसानी रहती है,  जो भी ऑटो चालक उधर जाने का इच्छुक रहता है चुपचाप आ जाता है। तो हम चल दिये बोरिवली स्टेशन अपनी ट्रेन पकड़ने के लिये, वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे से नेशनल पार्क होते हुए बोरिवली स्टेशन पहुँचे। तो देखा कि बोरिवली का प्लेटफ़ार्म नं ६ बनकर तैयार हो चुका है।

    मुंबई में रहकर अगर आप लोकल ट्रेन में सफ़र नहीं करते हैं, तो बहुत ही भाग्यशाली हैं या नहीं यह तो अपने मनोविज्ञान पर निर्भर करता है, क्योंकि लोकल ट्रेन का सफ़र भी जिंदगी का एक अहम हिस्सा होता है। बहुत दिनों बाद लोकल ट्रेन और उसमें फ़ँसे लदे फ़दे लोगों को देखकर कुछ अजीब सा लग रहा था हमारी आँखों को !!

    और हम भी जैसे ही स्टेशन की सीढ़ियों पर चढ़े हम भी मुंबई की उस खास जीवनशैली का हिस्सा हो गये केवल अंतर यह था कि हमारे पास सामान था, जिससे साफ़ जाहिर हो रहा था कि हम लोकल ट्रेन नहीं पकड़ने वाले हैं, हम कहीं लंबी दूरी की ट्रेन पकड़कर जाने वाले हैं। सीढ़ियों पर चढ़ते समय देखा कि सीढ़ियाँ जहाँ से शुरु हो रही थीं वहीं पर कुछ कारीगर टाईल्स शुद्ध सीमेन्ट से लगा रहे थे, और सीढ़ियों पर जहाँ यात्रियों के पैर नहीं पड रहे हैं वहाँ बारीक रेत इकठ्ठी हो चुकी थी और सब उस रेत को रौंदते हुए अपने गंतव्य की ओर चले जा रहे थे।

    फ़िर हम पहुँचे बोरिवली के प्लेटफ़ार्म नंबर ४ पर जहाँ कि अवन्तिका एक्सप्रेस आती है। हमारा कोच इंजिन से पाँचवे नंबर पर था जो कि सबसे आगे होता है, हम भी कोच ७ के पास रुक लिये और अपने परिवार को वहीं बेंच पर टिक जाने के लिये बोला, और हम खड़े होकर इधर उधर देखने लगे। क्योंकि उज्जैन जाने वाली ट्रेन में कोई न कोई पहचान का मिल ही जाता है, पर वहाँ भीड़ जयपुर की भी थी जो कि अवन्तिका के ५ मिनिट पहले आती है, और विरार, वसई रोड और भईन्दर की लोकल ट्रेन सरसराट मुंबईकरों से लदी फ़दी चली जा रही थीं। जो लोग पहली बार मुंबई आये थे और जो लोग विरार कभी इन लोकल ट्रेन में नहीं गये थे वो दाँतों तले ऊँगलियों को चबा रहे थे।

    हमारे बेटेलाल ने हमसे फ़रमाइश की हमें टॉफ़ी चाहिये, तो हम उसको ले चले एक स्टॉल की ओर, जहाँ बहुत सारी प्रकार की टॉफ़ियाँ थी, जहाँ बेटेलाल ने एक चुईंगम और कुछ और टॉफ़ियों को अपने कब्जे में किया और हमारी तरफ़ मुखतिब होकर बोले “डैडी पैसे दे दो”। फ़िर वापिस से प्लेटफ़ार्म पर अपने कुछ समय की जगह पर आ गये और वापिस से इंतजार की प्रक्रिया शुरु हो गई।

    इतने में जयपुर एक्सप्रेस चली गई और अवन्तिका एक्सप्रेस की लोकेशन लग गयी, यात्री अपनी अपनी लोकेशन की ओर दौड़ने लगे और एकदम पूरे प्लेटफ़ार्म पर अफ़रा तफ़री जैसा माहौल हो गया। हम भी अपनी लोकेशन पर पहुँचकर ट्रेन का आने का इंतजार करने लगे। हमारे कोच में सब नौजवान पीढ़ी के लोग ही थे, चारों ओर जवानियों से घिरे हुए थे, ऐसा लग रहा था जैसे हम कॉलेज में आ गये हैं, दरअसल इंदौर और उज्जैन जा रहे थे ये सारे नौजवान जो कि मुंबई में बहुराष्ट्रीय कंपनियों में कार्य करते थे। इतने में ही वहीं पर एक हॉट पीस आ गया मतलब कि एक लड़की जो कि मॉडल जैसी लग रही थी, छोटी सी ड्रेस पहनी हुई थी और साथ का लड़का वह भी मॉडल लग रहा था, बल्ले शल्ले अच्छे थे। तो हमारी घरवाली बोली कि जिस भी कंपार्टमेंट में यह जा रही होगी उसके तो सफ़र में चार चाँद लग जायेंगे। सबकी निगाहें वहीं लगी हुई थीं, इतने में ट्रेन आ गई और हम अपने समान के साथ ट्रेन में लद लिये। और जब ट्रेन चलने लगी तो हमारी घरवाली ने बताया कि वो हॉट पीस तो किसी को छोड़ने आयी थी, न कि यात्रा करने। हमने सोचा कि चलो अच्छा है कम से कम हमें किसी ओर कंपार्टमेंट से ईर्ष्या करने का मौका नहीं मिला।

    फ़िर खाना खाने के बाद हम भी सो लिये और सुबह ७.१० बजे ही उज्जैन पहुँच गये।

इंजीनियरिंग का नायाब नमूना – बांद्रा वर्ली सी लिंक (Bandra Worli Sea Link, Mumbai)

आज इंजीनियरिंग का नायाब नमूना – बांद्रा वर्ली सी लिंक (Bandra Worli Sea Link, Mumbai) राष्ट्र को समर्पित होगा। और मुंबई के लिये एक और लेंडमार्क, मुंबईवासियों का गौरव।