Monthly Archives: November 2010

विद्यालयों में बच्चों को सजा देना कितना उचित ? मुझे भी अपने बेटे की चिंता हो रही है… क्या आपको है..? (Molestation in School)

आज बुद्धु बक्से पर एक शो देख रहा था, जिसमें एक बच्चे के अभिभावक बैठे हुए थे, उनकी लड़की जो कि मात्र १२ वर्ष की थी, ने विद्यालय में मिली सजा से आत्महत्या कर ली। अभिभावकों ने बताया की उनकी बेटी को किसी कारण से शिक्षक ने मारा पीटा और बेईज्जती की जिससे उनकी बेटी विद्यालय जाने को भी तैयार नहीं थी। परंतु उन्होंने समझा बुझाकर विद्यालय भेजा और उसने आकर दोपहर में घर पर आत्महत्या कर ली।

जब अभिभावकों ने विद्यालय में जाकर विरोध दर्ज करवाया तो प्रबंधन का रवैया भी रुखा ही रहा और आरोपी शिक्षक पर कोई कार्यवाही नहीं करने की बात की, और उल्टा उनकी बेटी और उनको भला बुरा कहा।

विद्यालयों को बच्चों के प्रति संवेदनशील होना चाहिये, किसी भी सजा का उनके मन पर क्या असर होता है, यह भी विद्यालय को सोचना चाहिये। पढ़ाने वाले शिक्षक पुरानी पीढ़ी के और पढ़ाने का तरीका भी पारंपरिक होता है, जब कि बच्चे आधुनिक परिवेश में रहकर उन चीजों से नफ़रत करते हैं। आज की बाल पीढ़ी बहुत जागरुक है, और पहले से बहुत ज्यादा संवेदनशील भी। आज के बच्चों को बहुत ही व्यवहारिक तरीके से समझाना चाहिये।

क्या विद्यालय पर प्रशासन कोई जाँच करता है, निजी विद्यालय अपने बच्चों को कैसे पढ़ा रहे हैं, उनके साथ कैसा बर्ताव कर रहे हैं, कैसे उनको व्यवहारिक शिक्षा दे रहे हैं। निजी विद्यालय आर.टी.आई. (Right for Information) के अंतर्गत आते हैं, पर फ़िर भी पारदर्शितापूर्ण जानकारी उपलब्ध नहीं होती है।

विद्यालयों के इस असंवेदनशील रवैये से आजकल के अभिभावक कैसे निपटें ? अगर किसी को जानकारी हो तो कृप्या बतायें, जिससे सभी अभिभावक जागरुक हों।

[मेरा बेटा भी पिछले दो दिनों से विद्यालय न जाने की जिद कर रहा है, कुछ भी पूछो तो बोलता है कि “क्या बेईज्जती करवाने जाऊँ”, कल मैंने बहुत प्यार से पूछा तो कोई भी कारण स्पष्ट नहीं हुआ, और विद्यालय में पूछने पर भी कुछ पता नहीं चला, अब विद्यालय का वह वक्त जो मेरे बेटे और विद्यालय के शिक्षकों के मध्य गुजरता है, और उस वक्त में वाकई क्या हो रहा है, मुझे पता ही नहीं है, और इसलिये मेरी भी चिंता बड़ती जा रही है, पर अब कुछ तो तरीका ईजाद करना ही होगा।]

मैंने आजतक कितनी रिश्वत दी उसका हिसाब (जितना याद आया)

    आज डी.एन.ए. में एक आलेख आया है कि आम आदमी जन्म से मृत्यु तक भारत में लगभग १ लाख ६९ हजार रुपये की रिश्वत देता है जो कि भारत के हर हिस्से में अलग हो सकती है। तो मैंने भी अभी तक अपने हाथों से दी गई रिश्वत जो कि अपने खुद के कार्य करने के लिये दी, उसका हिसाब लगाना जरुरी समझा कि कम से कम पता तो चले कि हमने अभी तक कितनी रिश्वत दी है।
१. दो घर के लोगों के मनपसंद जगह ट्रांसफ़र करवाये – २५,००० रुपये
२. पहली बार पासपोर्ट बनवाने पर पुलिस को ५० रुपये दिये चाय पानी के
३. एक और स्थानांतरण में १०,००० रुपये की रिश्वत दी।
४. एक और जगह ४०,००० रुपये की रिश्वत दी (नाम नहीं बता सकता और न ही जगह)
५. मुंबई में गैस का कनेक्शन लेने के लिये १५०० रुपये का चूल्हा ६५०० में खरीदा।
६.रेल्वे में टीसी को कई बार सीट लेने के लिये रिश्वत दी है शायद १०,००० या उससे भी ज्यादा दे चुके होंगे।
७. एक और बार पुलिस को ५०० रुपये की रिश्वत दी।
८. एक और जगह २५,००० की रिश्वत दी (नाम नहीं बता सकता और न ही जगह)
९. यातायात पुलिस को २०० रुपये की रिश्वत
अभी तो इतना ही याद है, और याद आता है तो ९ नंबर के आगे बड़ाता जाऊँगा, या फ़िर कभी वापिस से रिश्वत देनी पड़ी तो यहाँ जरुर लिखूँगा।
आजतक की रिश्वत में दी गई रकम होती है लगभग १,१५,७०० रुपये की रिश्वत दे चुका हूँ। क्या आपने कभी हिसाब लगाया है ?
मेरे पास अतिरिक्त ५०० रुपये हैं, जिस रिश्वतखोर को चाहिये वह संपर्क करे ।


रिश्वत की रकम १,१६,४०० रुपये

१०.  ठाणे से मुंबई घर का सामान लाते समय ३५०० रुपये की रिश्वत मांगी गयी थी परंतु केवल २०० रु. की रिश्वत में काम बन गया। 


११. म.प्र.गृह निर्माण मंडल में ५०० रुपये दिये थे।

किसी भी कार्य को शुरु करने के पहले अपने अवयवों की ऊर्जा को एकत्रित करना होता है।

   मानव ऊर्जा हम जब भी कोई नया कार्य शुरु करते हैं, तो उसके बारे में अच्छे और बुरे दोनों विचार हमारे जहन में कौंधते रहते हैं, हम उस कार्य को किस स्तर पर करने जा रहे हैं और उस कार्य में हमारी कितनी रुचि है, इस बात पर बहुत निर्भर करता है। सोते जागते उठते बैठते कई बार केवल कार्य के बारे में ही सोचना उस कार्य के प्रति रुचि दर्शाता है।

     नया कार्य शुरु करने के पहले अपने सारे अवयवों की ऊर्जा एकत्रित करना पड़ती है, और फ़िर कार्य के प्रति ईमानदार होते हुए उस कार्य से जुड़े सारे लोगों के बारे में और उसके प्रभावों के बारे में निर्णय लेकर कार्य को शुरु करना चाहिये।

    हरेक कार्य के सामाजिक प्रभाव होते हैं, और हरेक कार्य के तकनीकी पहलू होते हैं जो कि मानव जीवन पर बहुत गहन प्रभाव डालते हैं।

    पर सबसे जरुरी चीज है अपने अवयवों की संपूर्ण ऊर्जा एकत्रित करके कार्य की शुरुआत अच्छे से की जाये और उसके अंजाम तक पहुँचाने के लिये भी अपनी संपूर्ण ऊर्जा का उपयोग करना चाहिये।

कुछ पुराने गाने (के.एल.सहगल) …. पता नहीं आज ऐसे ही सुनने का मन कर गया..

आज सुबह कुछ पुराने गाने सुनने का मन कर गया, देखिये सुनिये…

१. गम दिये मुस्तकिल.. सहगल..

२. जब दिल ही टुट गया … सहगल..

३. बाबुल मोरा .. सहगल..

४. इक बंगला बने न्यारा … सहगल..

५. मेरे सपनों की रानी … सहगल…

६. दुख के अब दिन .. सहगल..

७. ऐ दिल ऐ बेकरार झूम… सहगल..

८. उस मस्त नजर पर पड़ गयी जो नजर… सहगल..

९. हाय किस बात की मोहब्बत … सहगल..

१०. ऐ कातिब ए तकदीर.. सहगल..

११. चाहे बर्बाद करेगी.. सहगल..

पामेला के आने से अच्छे अच्छों की जवानी हरी हो जायेगी ..।

यह पोस्ट कल शाम लिखनी थी पर समय आज मिला ।

हुआ दरअसल यह कि हम शाम को घर आये तो बिल्डिंग के बाहर कुछ जवान लड़के लड़्कियों का झुँड खड़ा था, शायद स्कूल या कॉलेज का था। हम उनके पास से निकले तो उनकी पहले से ही बहस चल रही थी, तभी एक लड़की की आवाज सुनाई दी कि “पामेला के आने से अच्छे अच्छों की जवानी हरी हो जायेगी”।

हमने भी सुना था कि पामेला बिगबोस में आ रही हैं और धमाल हैं, पर इन लड़कियों में भी इतना क्रेज ! हम तो बहुत ही शर्मीले किस्म के हैं, तो शर्मा गये।

फ़िर मन ही मन सोचने लगे कि जवानी हरी कैसे होती है ?

वो पोर्नसाईट का एड्रेस बता ना.. (How to open porn site ..?)

    मैं कम्प्यूटर क्षैत्र में पिछले १४ वर्षों से जुड़ा हुआ हूँ और लगभग पिछले १२ वर्षों से इंटरनेट का उपयोग कर रहा हूँ। जब हमने इंटरनेट का उपयोग करना शुरु किया था तब यह विलासिता की चीज समझी जाती थी, क्योंकि उज्जैन में डायल अप नहीं था और इंदौर से एस.टी.डी. पर डायल अप करना पड़ता था।

    मैं बहुत पहले से इंटरनेट का उपयोग कर रहा हूँ इसलिये मेरे मित्र जो कि इस क्षैत्र में नहीं थे, उन्हें लगता था कि हम कम्प्यूटर में महारथी हैं, खैर थे भी, अच्छी अच्छी समस्याओं को सुलझा देते थे, पुराने लोग अभी भी बहुत अच्छॆ से जानते हैं, और उसी के बल पर आज हम अपने कैरियर को बना पाये हैं।

    नंगी वाली साईट के कुछ वाक्ये मेरे साथ हुए, होते रहे, लोगों की माँग होती थी कि पोर्नसाईट बताओ, कि तुम कम्प्यूटर के जानकार हो तो बताओ, जैसा कि मैंने बताया है उस समय विलासिता की चीज होती थी इंटरनेट,

१.

एक सी.ए. जो कि व्यावहारिक मित्र थे, हमें अपने कार्यालय बुलाया कि कुछ काम है, हम भी पहुँच गये शाम के समय, उनके एक और मित्र बैठे हुए थे जिनके कारण शायद हमें वहाँ बुलाया गया था, उनको जानकारी थी कि नेट पर बहुत सारी पोर्नसाईट हैं पर उस पर जाते कैसे हैं, वह पता नहीं था, हमें अपनी समस्या की जानकारी दी गई। और सबसे बड़ी बात उन लोगों को कम्प्यूटर भी चलाना नहीं आता था।

हम सन्न !!, क्योंकि इस मामले में तो अपने को कोई अनुभव ही नहीं था, और याहू (उस समय इसी सर्च इंजिन का उपयोग करते थे, गूगल तो बाद में आया) पर लगे पोर्न शब्दों (sex) की बौछार करने, जो कुछ आता उन्हें साईट ओपन करके बताते जाते। और अपने ऊपर शर्मिदा भी होते जाते, खैर उन्हें भी लग गया कि पोर्न साईट खोलना कोई हँसी मजाक नहीं है। तो हमें विदा कर दिया गया और धन्यवाद दिया गया कि आपने फ़िर भी बहुत दर्शन करवा दिया।

२.

दीवाली पर उज्जैन अपने घर गये हुए थे तभी एक बहुत पुराने मित्र का फ़ोन आया, हमने सोचा दीवाली की बधाई का फ़ोन होगा, परंतु जब बात की तो पता चला कि उनको पोर्नसाईट देखनी है, और पता नहीं है कि कैसे देखते हैं।

हमने उनको बोला कि भई गूगल करो sex शब्द् को, तो बहुत कुछ मसाला मिल जायेगा, और कोई विशेष साईट का तो हमको पता नहीं है क्योंकि हमें कभी इन साईट से पाला नहीं पड़ा है। तो हमारे मित्र बिफ़र उठे अरे क्या इत्ते सालों से तुम कम्प्यूटर में हो और इतना भी नहीं पता है, तो हमने उनको समझाने की कोशिश की, यहाँ बहुत सारी विधाएँ होती हैं, और पोर्नसाईट भी एक विधा है, जिसमें हम पारंगत नहीं हैं। यहाँ हमारे मित्र को हमें गूगल की स्पैलिंग भी बताना पड़ी।

खैर अपना काम न बनते देख हमारे मित्र ने अपनी मित्रता वाले अच्छे अच्छे उच्चारणों से नवाजा, अब ठहरे लंगोटिया यार तो हम कुछ बोल भी नहीं सकते।

    वाकये तो और भी हुए परंतु सभी को लिखना थोड़ा ठीक नहीं होगा, ये दो मुझे याद आये तो लिख दिये, क्योंकि पहली और आखिरी घटना कभी भूले से नहीं भूलती।

    जो लोग कम्प्यूटर का उपयोग नहीं जानते हैं, और मानवीय मन है जो विपरीत लिंग के आकर्षण में बंधा होता है। जब वे बारबार मीडिया में इस बात को पढ़ते हैं कि नेट पर बहुत पोर्न साईट हैं और सबकुछ आलू जैसा मिल रहा है। तो बस उनके मन की जिज्ञासा बड़ना स्वाभाविक हैं, और वे शर्म के कारण हर किसी से पूछ नहीं सकते, तो जो बहुत करीबी मित्र होते हैं, उनसे ही पूछने की हिम्मत कर पाते हैं।

    फ़िर सबकी अपनी अपनी रुचि होती है, और पोर्नसाईट का कोई हमसे आज भी पूछे तो हम किसी साईट का नाम नहीं बता सकते, लगता है कि एक दो साईट का पता करना ही होगा नहीं तो मित्रों द्वारा ऐसे ही गलियाते रहेंगे।

वाह आटा मैगी.. गिल्की की सब्जी… यम्मी यम्मी (Chalo Meggiatic ho jaye..)

    आज बहुत दिनों बाद आटा मैगी खाई, आज शाम को ऑफ़िस से घर पहुँचे तो खाना तैयार था, और खाने में थी गिल्की की सब्जी और रोटी, गिल्की हमें बहुत अच्छी लगती है, बस उसमें मसाला अच्छा होना चाहिये। पहले घर में अच्छी मसाले वाली सब्जियाँ ही बनती थीं पर जब से स्वास्थ्य की समस्या हुई तब से कम मसाले वाली सब्जियाँ बनना शुरु हो गईं और गिल्की, लौकी सादी बनने लग गईं, कुछ दिन तो सादी सी गिल्की और लौकी अच्छी लगी परंतु फ़िर अपना दिमाग फ़िर गया। और गिल्की और लौकी से नाता तोड़ दिया। वैसे एक बात बता दें कि हमें सारी सब्जियाँ और दालें बेहद पसंद है, कोई सब्जी ऐसी नहीं कि हम नहीं खाते।

    पिछले ३-४ वर्ष में शायद ३-४ बार ही गिल्की और लौकी खाई होगी, उसके पहले जब मसाले वाली सब्जी बनती थी तो उसमें थोड़ी सी दही मिलाकर खाने का स्वाद ही अलग होता था। और साथ में अपने उज्जैन के प्रसिद्ध सेव खाने का आनन्द ही कुछ ओर होता था। अब तो उज्जैन के सेव कभी कभार ही नसीब होते हैं।

    आज शाम को गिल्की की सब्जी खाने में देखकर तो अहा ! आत्मा ही खुश हो गई, और भूख से ज्यादा खाना खा गये। फ़िर अभी १० बजे भूख लगने लगी तो समझ ही नहीं आया कि अब क्या करना चाहिये, तो याद आया कि चलो थोड़ा मैगियाटिक हो जाया जाये। भले ही मैगी वाले दावा करते हैं कि २ मिनिट में मैगी बन जाती है, परंतु हमें तो इतने साल हो गये बनाते हुए, आज तक दो मिनिट में बना नहीं पाये हैं। बस फ़िर क्या था झट से ४ वाला आटा मैगी पैकिट रखा था वह हमारी घरवाली द्वारा बनाकर पेश कर दिया गया।

    चैन्नई हवाईअड्डे पर भी मैगी कंपनी का काऊँटर है, जहाँ ६० रुपये की मैगी मिलती है वह भी केवल एक और यहाँ उतने से कम में ४, वाह हवाई अड्डे पर क्या लूट मची है, और लोग लुट भी रहे हैं। पर लोग भी क्या करें स्वाद और भूख के चक्कर में मैगियाटिक हो जाते हैं।

पासपोर्ट बनवाने के चक्कर में घनचक्कर… सरकारी दफ़्तर… वेबसाईट पर कानून कुछ ओर और दफ़्तरों में कुछ और ?

    हमें यकायक सूझी कि चलो अपना खत्म हो चुका पासपोर्ट का नवीनीकरण करवा लिया जाये। पहले हमने पासपोर्ट की आधिकारिक वेबसाईट पर जाकर जानकारी ली और फ़िर कुछ चीजों में संशय था तो एक एजेन्ट घर के पास ही है, उसके पास चले गये कि आपसे पासपोर्ट बनवायेंगे बताईये क्या क्या लगेगा, तो सबसे पहले उसने अपनी फ़ीस बताई जो कि लगभग २००० रुपये थी और पासपोर्ट की अलग १००० रुपये, और तमाम तरह के कागजात भी बोले गये। हम तो हक्के बक्के रह गये कि वेबसाईट पर तो इतना सब कुछ नहीं दे रखा है फ़िर यह नये कागजात कहाँ से आ गये।

नवीनीकरण की प्रक्रिया में लगने वाले कागज वेबसाईट के अनुसार

१. पुराना पासपोर्ट

२. एड्रेस प्रूफ़ (कोई भी एक और राशन कार्ड के साथ एक और पते का सबूत)

यह पासपोर्ट की आधिकारिक साईट पर दे रखा है –

a) Proof of address (attach one of the following):

Applicant’s ration card, certificate from Employer of reputed companies on letter head, water /telephone /electricity bill/statement of running bank account/Income Tax Assessment Order /Election Commission ID card, Gas connection Bill, Spouse’s passport copy, parent’s passport copy in case of minors. (NOTE: If any applicant submits only ration card as proof of address, it should be accompanied by one more proof of address out of the above categories).

३. शादी का प्रमाणपत्र

    हम तीनों चीजें साथ में लेकर गये फ़िर भी दो दिन धक्के खाने के बाद भी पासपोर्ट अधिकारी कहते हैं कि एड्रेस प्रूफ़ एक ओर चाहिये हमने कहा कि वेबसाईट पर तो एक ही प्रूफ़ की आवश्यकता बताई गई है, जो कि हम साथ में लाये हैं, तो बोलते हैं कि वहीं बनवा लो, यहाँ तो यह कागज भी चाहिये। हम बेरंग वापिस आ गये।

वहाँ लाईन में खड़े लोगों से बतियाया तो पता चला कि कागजात के ऊपर जितनी बहस इनसे करो ये लोग केस उतना ही खराब कर देते हैं, यहाँ तो पूरी तरह से इनकी दादागिरी चलती है। वह भी सभ्य भाषा में…

    अगर एड्रेस प्रूफ़ दो चाहिये तो वेबसाईट पर भी लिखना चाहिये कि उसके बिना काम नहीं होगा। हाँ मानते हैं कि पासपोर्ट बनाने की प्रक्रिया बहुत संवेदनशील है, पर इसके लिये ही तो पोलिस वेरिफ़िकेशन भी होता ही है।

    वहाँ पर बहुत सारे लोगों से बातें हुई जो कि हमारी तरह ही पासपोर्ट की लाईन में लगे हुये थे, तो पता चला कि अगर सीधे आओ तो कम से कम ये लोग ३-४ चक्कर तो लगवाते ही हैं, फ़िर ऑनलाईन पासपोर्ट का आवेदन क्यों पासपोर्ट की आधिकारिक वेबसाईट पर रखा गया है, यह समझ में नहीं आया, सीधे सीधे लिख देना चाहिये कि एजेन्ट के द्वारा आओ तो काम जल्दी हो जायेगा।

    अगर पासपोर्ट के कागजात की प्रक्रिया पूर्ण हो भी जाये तो उसके बाद पोलिस वेरिफ़िकेशन में भी पोलिस की जेब गरम किये बिना आपका काम नहीं होता है, वे लोग फ़ाईल ही दबा देते हैं।

    पासपोर्ट कार्यालय में भीड़ देखकर और काम करने वालों को देखकर बेहद गुस्सा आ रहा था, या तो ऑनलाईन सेवा से कम लोगों को बुलाना चाहिये या फ़िर और भी लोगों को कागजात को जाँचने के लिये लगाना चाहिये, और जो भी कागजात की कमी है वह एक बार में ही बता देना चाहिये, असल में होता यह है कि जब काऊँटर पर अधिकारी कागजात जाँचते हैं तो जहाँ भी पहला कागजात अपूर्ण पाया जाता है, वे अधिकारी वहीं रुक जाते हैं आगे के कागजात की जाँच ही नहीं करते हैं।

    सरकारी दफ़्तर की मनमानी का शिकार आखिर हम हो ही गये हैं। पासपोर्ट नवीनीकरण की प्रक्रिया इतनी जटिल बनाई हुई है जिसे कि सरल बनाने की आवश्यकता है, क्योंकि पहले ही पासपोर्ट है। अब इच्छा है कि विदेश मंत्रालय से संपर्क करके इसके बारे में ज्यादा जानकारी ली जाये। और भी कोई तरीका हो तो बतायें। क्या आर.टी.आई. दायर की जा सकती है ?

जीवन का उद्देश्य क्या है ? (Confusing…)

    आखिर इस जीवन का उद्देश्य क्या है, कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है। यह प्रश्न मेरे अंतर्मन ने मुझसे पूछा तो मैं सोच में पड़ गया कि वाकई क्या है इस जीवन का उद्देश्य… ?

    सबसे पहले मैं बता दूँ कि मैं मानसिक और शारीरिक तौर पर पूर्णतया स्वस्थ हूँ और मैं विषाद या उदासी की स्थिती में भी नहीं हूँ, बहुत खुश हूँ। पर रोजाना के कार्यकलापों और जीवन के प्रपंचों को देखकर यह प्रश्न अनायास ही मन में आया।

    थोड़ा मंथन करने के बाद पाया कि मुझे इस प्रश्न का उत्तर नहीं पता है, कि जीवन का उद्देश्य क्या है, क्या हम निरुद्देश्य ही जीते हैं, हम खाली हाथ आये थे और खाली हाथ ही जाना है।

    जैसे कि मैंने बचपन जिया फ़िर पढ़ाई की, मस्तियाँ की फ़िर नौकरी फ़िर शादी, बच्चे और अब धन कमाना, और बस धन कमाने के लिये अपनी ऐसी तैसी करना। थोड़े वर्ष मतलब बुढ़ापे तक यही प्रपंच करेंगे फ़िर वही जीवन चक्र जो कि मेरे माता-पिता का चल रहा है वह होगा और जिस जीवन चक्र में अभी मैं उलझा हुआ हूँ, उस जीवन चक्र में उस समय तक मेरा बेटा होगा।

    यह सब तो करना ही है और इसके पीछे उद्देश्य क्या छिपा है, कि परिवार की देखभाल, उनका लालन पालन, बच्चों की पढ़ाई फ़िर अपनी बीमारी और फ़िर सेवानिवृत्ति और फ़िर अंत, जीवन का अंत। पर फ़िर भी इस जीवन में हमने क्या किया, यह जीवन तो हर कोई जीता है। समझ नहीं आया।

    यह सब मैंने अपने गहन अंतर्मन की बातें लिख दी हैं, मैं दर्शनिया नहीं गया हूँ, केवल व्यवहारिक होकर चिन्तन में लगा हुआ हूँ, और ये चिन्तन जारी है, जब तक कि जीवन का उद्देश्य मिल नहीं जाता है।

इंडिब्लॉगर पर वोट कैसे दें ? (Tutorial for Voting on Indiblogger)

    मैंने पिछली पोस्ट [आखिर हिन्दी ब्लॉगर वोट देने में इतने कंजूस क्यों हैं ?] लिखी थी तो कुछ ईमेल और टिप्पणियों से मुझे लगा कि बहुत सारे ब्लॉगर्स को पता ही नहीं है कि इंडिब्लॉगर में वोट कैसे दिया जाता है।

    इंडिब्लॉगर में वोट देने के लिये पहले अपने ब्लॉग को इंडिब्लॉगर पर साइन अप  करवाना होता है, फ़िर मानवीय प्रक्रिया से इसे अनुमोदित किया जाता है।

    इसमें आप पहले इंडिब्लॉगर की साईट पर जायें फ़िर साईन इन करें और फ़िर इंडिवाईन पर चटका लगायें और बायीं तरफ़ Trending Topics में प्रतियोगिताओं की जानकारी दी होती है। जैसे कि अभी नया टॉपिक है ३ जी लाईफ़ ब्लॉगर कॉन्टेस्ट, पर चटका लगायें, तो आपको इस प्रतियोगिता की सारी प्रविष्टियाँ दिखने लगेंगी।

    फ़िर जिस पोस्ट को वोट देना हो उस पोस्ट के नीचे बटन दिखाई देगा [View post to Promote] । इस पर चटका लगाने से पोस्ट नई विन्डों में खुल जायेगी, उसे पढ़ने के बाद वापिस इंडिब्लॉगर वाली विन्डो में जाइये। [View post to Promote] वाला बटन अब [Promote This Post] हो जायेगा, अब इस बटन पर चटका लगाईये, तो वोट के नंबर बढ़ जायेंगे और [Promoted] लिखा हुआ आ जायेगा। बस हो गया आपका वोट।

    आप सीधे इन लिंकों पर चटका लगाकर भी साईन इन करने के बाद वोट दे सकते हैं।

प्यार में बहुत उपयोगी है ३ जी तकनीक (Use of 3G Technology in Love..)

पति की मुसीबत ३ जी तकनीक से (Problems of Husband by 3 G Technology)