मेलबार्न आज से तीन वर्ष जाने के कार्यक्रम लगभग तय था, किंतु अंतिम क्षणों में हमारा जाना नहीं हो पाया, तब हमने बहुत सी चीजों को बारे में पता किया था, कि मेलबोर्न में कहाँ फ्लेट लेना है, मेलबोर्न में रहने पर कितना खर्चा आयेगा, मेलबोर्न में भारतीय तरीके का भोजन तैयार करने की सामग्री कहाँ मिलेगी, इत्यादि। साथ ही यह भी पता लगाया था कि क्या क्या चीजें घूमने के लिये हैं, मेलबोर्न में पर्यटक कहाँ कहाँ जाना चाहते हैं।
हमें ये तीन पर्यटन स्थल बहुत ही अच्छे लगे थे, और हम इन जगहों पर घूमने जाना चाहते थे –
Hot air balloon – गर्म गुब्बारे में घूमने का अपना ही मजा है, और बादलों के बीच जब बिना किसी दीवार के हम आसमान में होंगे तो उसका रोमांच जबरदस्त होगा ।
The Great Ocean Road – यह 220 कि.मी. का जबरदस्त हाईवे है, जिसका अधिकतर रास्ता समुद्र के किनारे बना हुआ है, और कुछ रास्ता घने जंगलों के मध्य से भी गुजरता है, इस पर लंबी ड्राईव का आनंद ही कुछ और होना चाहिये।
City circle tram – उस समय मैं गूगल की त्रिआयामी मैप सुविधा का लाभ लेकर मेलबोर्न घूमा करता था, जहाँ मेरा ऑफिस होना था, उसके सामने ट्राम की पटरियाँ देखकर सुखद लगा था, कि यह अनुभव भी एक अलग ही तरह का होगा, हमने कभी भी ट्राम में बैठने का आनंद नहीं उठाया था, तो अब उठाना चाहते हैं।
पाठकों आपके लिये एक सवाल जिसके सर्वोत्तम उत्तर को मिलेगा मेलबोर्न पर्यटन केन्द्र की और से एक गिफ्ट वाऊचर, आज ही बतायें Which of these places would you want to visit in Melbourne and why?”.
जवानी अल्हड़ होती है, अल्हदा होती है, सुना तो बहुत था पर जिया अपने ही में । जवानी में वो हर काम करने की इच्छा होती है जो सामाजिक रूप से बुरे माने जाते हैं, और उस समय वाकई वे सब काम कर भी लिये जाते हैं, अपने किये पर छोभ, पछतावा कुछ नहीं होता है, बस अपनी मनमर्जी का किये जाओ । कोई टोके तो बहुत ही बुरा लगता है, जल्दी ही बुरा मान जाते हैं, काम सारे गलत करेंगे पर रोकना टोकना किसी का मंजूर नहीं है, जैसे अपनी ही सरकार हो और खुद ही उस सरकार के पैरोकार हैं।
पिता जी का ट्रांसफर अभी नये शहर में हुआ ही था और हमने उस नये शहर में अपना पहला कदम कॉलेज की और बढ़ाया। अब नया शहर था तो न कोई दोस्त था और न ही कोई हमदम, तो कॉलोनी में ही कुछ आस पड़ोस के लड़कों से दोस्ती हो गई, पिताजी को ऑफिस में उनके सहकर्मियों ने चेताया भी कि आपका लड़का गलत लड़कों के साथ रहता है, और यह खबर हमारे पास भी आ गई थी, हमारे ही मन मस्तिष्क के द्वारा, हमें उनके साथ रहते ही समझ आ गया था कि ये जो हरकतें करते हैं, वह सब हम नहीं कर पायेंगे और हमारा रास्ता जुदा होगा। पर गर्मियों की छुट्टियों में तो हमें कोई नया दोस्त नहीं मिलता, पर हमने उनके साथ रहना कम कर दिया।
कॉलेज शुरू हो चुका था, जवानी का खून उबाल मार रहा था, नये दोस्त मिले। सबके अपने अपने शौक होते हैं, वैसे ही साधारणतया कॉलेज में दोस्ती होती है, ऐसे ही हमारी भी कई दोस्तियाँ शौक के मुताबिक हो गईं, और कुछ मनचले दोस्त भी थे जो हर समय केवल हँसाते और गुदगुदाते थे। अब तक हम कॉलेज में अच्छे खासे रम चुके थे, हमने कॉलोनी के दोस्तों के साथ लगभग अपना नाता तोड़ ही लिया था, क्योंकि हमें अब अपने कॉलेज के दोस्त मिल गये थे। पर यह उन कॉलोनी के दोस्तों को रास नहीं आया।
एक दिन हर शाम के समय सूरज जैसे रोज ढलता है, वैसे ही ढलने की कगार पर था, लालिमा चारों और फैली हुई थी, कॉलोनी के दोस्त लोग बाहर सड़क पर क्रिकेट खेल रहे थे, पर उनके मनोमस्तिष्क में क्या चल रहा है, हम उससे अनजान थे, हमें हमारी साईकिल के हैंडल पर हाथ रखकर रोक लिया गया, और किसी भी बात को लेकर झगड़ा करना था, सो बात करना शुरू कर झगड़ा शुरू कर दिया गया, बात अब हाथापाई तक आ चुकी थी, जितने पड़े उससे ज्यादा हमने भी दिये, बस अंतर यह था कि उनके लिये जबाबी हमला अप्रत्याशित था, क्योंकि कोई भी उनके खिलाफ कभी भी कुछ बोला नहीं था, और विरोध नहीं किया था। हम अकेले थे और वे पूरी क्रिकेट टीम थी, देखा कि अब अकेले ऐसे लड़ना मुश्किल होगा, तो सामने के घर में पेलवान के घर में दो हाकियाँ टंगी रहती थीं, दौड़कर उन्हें उतारा और उससे अकेले ही पूरी क्रिकेट टीम से भिड़ लिये, पर थोड़ी ही देर में कॉलोनी में आग की भाँति खबर फैल गई और लोग इकट्ठे होने लगे तो पूरी क्रिकेट टीम मौके से भाग ली।
अब घर तो जाना ही था, शाम की सच्चाई हम नहीं बताते तो कोई और जाकर हमारे घर पर बताता तो और बात बिगड़ जाती, घर में इस झगड़े को लेकर पता नहीं क्या रूख अपनाया जाता। सो हमने सोचा कि बेहतर है कि सच्चाई घर पर बता दी जाये और हमने घर पर जाकर सच्चाई अपने पापा मम्मी को बता दी, मन से बहुत बड़ा बोझ उतर चुका था, क्योंकि सारी दुनिया भले गलत समझे पर अगर पालक हमारी भावनाओं को समझ जायें तो हमें दुनिया में और कुछ नहीं चाहिये। केवल इसके लिये ही किनले का यह विज्ञापन अच्छा लगता है, जहाँ पिता अपनी बेटी की गलती को माफ कर, उसे खुश कर देता है और बेटी को धर्मसंकट से निकाल लेता है और पिता के आँख के आँसू सारी कहानी बयां कर ही रहे हैं।
आमतौर पर शेविंग करना भी एक शगल होता है, कोई रोज शेविंग करता है और कोई एक दिन छोड़कर, कुछ लोग मंगलवार, गुरूवार और शनिवार को शेविंग नहीं करते हैं । शेविंग करने से चेहरा अच्छा लगने लगता है और अपना आत्मविश्वास भी चरम पर होता है। केवल शेविंग करने से ही कुछ नहीं होता उसके बाद और पहले भी बहुत सारी क्रियाएँ होती हैं, जो शेविंग के कार्यक्रम को सम्पूर्ण करती हैं।
शेविंग न करने से कुछ बड़े बड़े नुक्सान भी हो जाते हैं, यहाँ एक किस्सा बयान करना जरूरी है, जो कि हमारे सामने हमारे ही कार्यालय में हमने घटित होते देखा हुआ है। एक प्रोग्रामर था जो कि जबरदस्त प्रोग्रामिंग करता था, केवल उनका रहन सहन और बात करने के सलीका उनकी लिये नकारात्मक था, पर कई बार बात करने के बाद हमने सोचा कि चलो इन्हें कुछ सिखाया जा सकता है और हमने ओर हमारे कुछ सहकर्मियों ने उन्हें कपड़े पहनने के सलीकों के बारे में समझाया और उन्होंने सीख भी लिया।
पर केवल कपड़े पहनने से कुछ नहीं होता, समस्या जस की तस थी क्योंकि वे रोज शेविंग करके नहीं आते थे, कहते थे कि शेविंग अपने से रोज नहीं होती है, केवल आलस्य के प्रमाद में वे रोज बेतरतीब कार्यालय आते थे, उनका काम जबरदस्त था, जब वर्ष के आखिर में रेटिंग की बारी आई तो हर किसी को अच्छे मूल्यांक मिलने की उम्मीद होती है, उनकी टीम को भी उनके अच्छे मूल्यांक की उम्मीद थी, पर जब मूल्यांक उन्हें बताये गये तो वे सामान्य थे जबकि काम में उनकी दक्षता बहुत अच्छी थी, तो उनके प्रबंधन ने उन्हें बोला कि “जाओ पहले अपना चेहरा शीशे में देखकर आओ”, तो उसे मजाक लगा। परंतु प्रबंधन ने उन्हें कहा कि यह मजाक नहीं है, तो वह प्रोग्रामर शीशे में चेहरा देखकर आया तो प्रबंधन ने उनसे पूछा कि आपने शीशे में क्या देखा, वह बोला कि कुछ खास नहीं, तब प्रबंधन ने कहा कि आपका सब कुछ ठीक है, एक बात को छोड़कर कि आप आकर्षक नहीं दिखते हैं, आप कभी कभी शेविंग करते हैं, जो कि कंपनी की कार्यशर्तों की प्रमुख शर्तों में एक है, इसलिये आपको साधारण मूल्यांक दिया गया है।
उस प्रोग्रामर को बाद में शेविंग का महत्व पता लगा और उसे शेविंग न करने का बहुत बड़ा जुर्माना भी अपने कैरियर के एक वर्ष में अच्छे मूल्यांक न मिलने के रूप में सहना पड़ा।
This post is a part of #WillYouShave activity at BlogAdda in association with Gillette”
उस प्रोग्रामर ने तत्काल ही फ्लिपकार्ट से शेविंग किट के रूप में कुछ चीजें मँगवा लीं।
बच्चों केसाथ छुट्टियों पर जाना ही बेहद सुकूनभरा अहसास होता है, और बच्चे छुट्टियों कोअपनी शैतानी और असीमित ऊर्जा से छुट्टियों को यादगार बना देते हैं। बच्चों को कितना भी बोलो पर वे कहीं पर भी और कभी भी चुपचाप नहीं बैठ सकते, पता नहीं उनकी इस असीमित ऊर्जा को स्रोत क्या होता है। बच्चे अपनी मस्ती से छुट्टियों में जादू भर देते हैं और ये यादें हमेशा अंतर्मन में ऐसे रहती हैं कि अभी ही उन्होंने मस्ती की हो। बच्चे वे सब कर लेते हैं, जो हम बड़े झिझक के कारण नहीं कर पाते हैं।
मैंने कुछ दिनों के लिये छुट्टियों पर गोवा जाने का कार्यक्रम बनाया था, तो हमारे बेटेलाल ने पहले ही अपनी सूचि बनाना शुरू कर दी थी, कि गोवा से क्या क्या लाना है और अपने दोस्तों के साथ मिलकर नेट पर ढ़ूंढ़ते थे कि कहाँ कहाँ घूमना है, कहाँ खाना अच्छा है और कैसे घूमना है। पूरे प्लेन में केवल यही उत्साहीलाल लग रहे थे, कि जैसे गोवा केवल इनके घूमने के लिये ही बनाया हो, और बाकी सब तो झक मारने जा रहे हैं। बेटेलाल की छुट्टियों का उत्साह देखते ही बनता था। मुझसे कैमरे से फोटो खींचना, वीडियो बनाना सब सीख लिया था।
Calangute beach Goa
Evening Snaks at Marriott Goa
Fort Aguada in Goa
Goa Marriott Swimming pull
Harsh at Marriott Room Goa
on the wall of Marriott of Goa
गोवा हम रिसॉर्ट में पहुँचे तो वहाँ के स्वागत को देखकर ही अचंभित थे, और जब हमें गोवा की वाईन के बारे में जानकारी दी जा रही थी तो एक बंदा ट्रे में बीयर लेकर आया तो सबसे पहले बीयर हाथ में लेकर चीयर्स करने लगे कि मैं भी बड़ों की कोल्डड्रिंक पियूंगा, तो बेयरे ने कहा कि आप के लिये दूसरी बोतल है आप यह वाली मत लें, तब जाकर हमारी साँसों में साँस आई।
जब हमें कमरा दिखाया जा रहा था, तो कहने लगे कि हम यहीं रहते हैं, यहाँ कितना अच्छा लग रहा है, तरणताल में पड़े रहो और समुँदर का नजारा देखते रहो, और बेटेलाल कोई भी ट्यूब लेकर तरणताल में मौज करने के लिये उतर पड़ते, हम बाहर से ही देखते रहते तो एक दिन बोले अब अंदर आकर तो देखो कितना मजा आता है, हम तरणताल में उतरे तो वाकई अनुभव मजेदार था।
अगले दिन समुद्रतट पर घूमने गये थे, तो बेटेलाल बहुत उत्साहित थे, हालांकि मुँबई में रहने के दौरान कई बार समुद्रतट के मजे ले चुके थे, पर हमें बोले कि गोवा की तो बात ही कुछ और है, और कपड़े उतार कर निकर में ही रेत और पानी के मध्य मस्ती के आलम को जबरदस्त माहौल बनाया और कुछ ही देर में अपने ही हमउम्र बच्चों के साथ वहाँ मस्ती का आनंद उठाने लगे। हमने कभी ऐसी मस्ती का माहौल नहीं देखा था, बेटेलाल हमसे उनके साथ आने की जिद करने लगे तो हम भी उनकी मस्ती में सारोबार हो, रेत और समुँदर के पानी में डूब लिये ।
बेटेलाल को तो बस हर जगह कैसे मजे लें, इसमें विशेषज्ञता हासिल है। और उनकी इसी मस्ती से भारी पल भी मस्ती के रंग में रंग जाते हैं। यह यात्रा और अनुभव क्लबमहिन्द्रा के टैडी
ट्रैवलॉग के लिये लिखा गया है।
जीवन संघर्ष का एक और नाम है, जिसमें हमें हर चीज सीखनी पड़ती है, फिर भले ही वह चाव से हो या मजबूरी में । हाँ एक बात है कि जब हमें कोई चीज नहीं आती तो हमें ऐसे लगता है कि यह चीज सीखना कितना दुश्कर कार्य है और हमें उस चीज को सीखने में, जीवन में उतारने में अपने अंदर के डर से सामना करना पड़ता है। जो भी अपने अंदर के डर से जीत गया बस वही अपने जीवन में किसी भी कार्य में सफल हो पाया है। ऐसे ही माऊँटेन ड्यू का डर के आगे जीत है स्लोगन याद आ जाता है।
हमें बैंगलोर में कभी भी कार की जरूरत महसूस नहीं हुई, वहाँ हम बाईक से ही काम चलाते थे, और बैंगलोर के व्यस्त यातायात में हमें ऐसा लगता था कि जो सफर हम बाईक से ऑफिस का 40 मिनिट में करते थे वही सफर कार से 2 घंटे में होता, तो हमने सोचा कि बाईक से ही काम चलाते हैं, पर हाँ कार को चलाते हुए लोगों देखकर उनकी हिम्मत की मन ही मन दाद देता था। सोचता था कि जब मुझे बाईक चलाने में इतना डर लगता है, तो कार चलाने के लिये इनको कितना डर लगता होगा।
जब मैं इस वर्ष गुड़गाँव आया तो देखा कि मेरा ऑफिस हाईवे पर पड़ता है और बाईक से आना जाना बिल्कुल सुरक्षित नहीं है, तो कार लेना अब हमारी मजबूरी बन गया था, पर हमें चलानी आती नहीं थी और कार की जरूरत बहुत ज्यादा महसूस होने लगी थी ।
डर के आगे जीत है का तमिल वीडियो
हमने ड्राईविंग स्कूल से कार चलानी सीखी, पहले दिन हमारे ट्रेनर ने हमें जैसे ही ड्राईविंग सीट पर बैठने को कहा हमारा डर हम पर हावी होने लगा और हाथ काँपने लगे, तो ट्रेनर ने कहा कि आज और कल दो दिन आप केवल स्टेयरिंग व्हील और एक्सीलेटर पर ही चलाओगे, जब गाड़ी पहली बार शुरू की तो डर हम पर हावी हो रहा था, ऐसा लग रहा था कि जब केवल स्टेयरिंग व्हील और एक्सीलेटर सँभालने में ही इतनी मशक्कत है तो गियर बदलना, क्लच और ब्रेक कैसे करेंगे । साथ ही पीछे और बगल से आने वाले वाहनों का भी ध्यान रखना पड़ता है।
तीसरे दिन से हमें ब्रेक भी सँभालने को दे दिया तो अब हमें स्टेयरिंग व्हील, एक्सीलेटर और ब्रेक तीनों चीजें सँभालना भारी पड़ने लगा, पर फिर भी हिम्मत को बाँधकर रखा और अपने डर को अपने पर हावी नहीं होने दिया। पाँचवे दिन से हमें गियर और क्लच भी सँभालने को दे दिया गया, अब हमें पूरी गाड़ी को अपने नियंत्रण में रखने की जिम्मेदारी थी, और केवल तीसरे गियर तक चलाने की परमीशन थी, हमने भी अपने डर को काबू में रखा और सोचा कि अगर डर गये तो कार कैसे चलायेंगे, 15 दिन हमने कार सीखी और सोलहवें दिन हमने अपनी कार की डिलीवरी ली और पहले ही दिन 40 किमी चलाई, दूसरे दिन ही कार एक जगह मोड़ते समय ठुक गई, पर हमने सोचा कि अभी डर गये तो कभी कार नहीं चला पायेंगे, हमने कार चलाना जारी रखा और सड़क के ऊपर कार चलाने के डर को मात दे दी अब तक हम कार लगभग 5500 किमी चला चुके हैं, जिसमें यमुना एक्सप्रेस हाईवे पर दो बार सफर के मजे भी ले चुके हैं, अधिकतम रफ्तार हमने 130 को छुआ है।
हम तो यही कह सकते हैं कि हिम्मत बाँधकर रखो तभी डर के आगे जीत है ।
दोस्तों के साथ कॉलेज के दिनों के बिताये दिन कुछ अलग ही होते हैं, कोई किसी की बात का बुरा नहीं मानता और फिर बाद में भले ही कोई कितना बड़ा आदमी बन जाये पर कॉलेज के दिनों के साथियों से तो पुराने अंदाज और पुराने तरीके से ही बात की जाती है। कुछ लोग बदल जाते हैं और वे लोग दोस्त कहलाने के लायक नहीं होते, उनसे हाथभर की दूरी बनाये रखे जाना चाहिये कि जिससे वक्त पड़ने पर उनको गले लगाने की जगह, लप्पड़ या लात रसीद की जा सके। जिससे उनको उनका पूरा खानदान याद आ जाये ।
जब भी बातें करते हैं तो माँ बहन और गद्दी के विशेषणों के बिना बात ही नहीं होती है, पर दोस्तों से बात करने का मजा भी तब ही है और जब तक विशेषण न हो, लगता ही नहीं कि पक्के दोस्त हैं, यकीन मानिये जितनी ज्यादी नंगाई दोस्तों के साथ हो, उतनी ही पक्की दोस्ती होती है। फुल ऑन देसी हिन्दी भासा में पता नहीं कहाँ कहाँ के किस्से कहानी कहते थे। और पता नहीं कभी मालवी भाषा तो कभी निमाड़ी भाषा और कभी भोपाली जुमलों का इस्तेमाल विशेषण के रूप में किया जाता, उन सबमें विशेष रस आता था, आज भी उन्हीं दोस्तों के साथ उन विशेषणों के द्वारा विशेष रस का आनंद लिया जाता है, बस अब अंतराल कम नहीं बहुत कम हो गया है।
भोपाली विशेषणों में तो आनंद ही कुछ और है, कई बार तो प्योर भोपाली विशेषणों के लिये आज भी पुराने घनिष्ठ दोस्तों को फोन लगाकर पान खिलवाकर वे विशेषण सुनने के आनंद ही कुछ और होते हैं, एक हमारे मित्र थे वे तो साली, भाभी और पता नहीं कहाँ कहाँ के रिश्तों के साथ रस लेकर किस्से कहानियों को जोड़ देते थे। आज भी कई बार कहीं कोई अपना कॉलेजियाना यार मिल जाता है तो पता नहीं कहाँ से पुराने जुमले जुबान पर से फिसल पड़ते हैं, और पुराने दिनों की यादें वीडियो बनकर नंगी आँखों में उभर आती है, सारी की सारी वीडियो फिल्म बनकर सामने हमारी मुख गंगा से बह निकलती है। और वीडियो भी देसी जबान में बोला जाता है तो आज भी हम लोग हँस के चार हो जाते हैं।
जीवन के इन चार दिनों में वैसे ही रिश्तों की बागडोर सँभालना मुश्किल होता है और अगर जीवन में कहीं न कहीं हलकट अंग्रेजी भाषा में कहें चीप न बनें तो आप जीवन के आनंद में सारोबार हो ही नहीं सकते । आत्मीयता भी तभी आती है, जब दोस्तों के बीच कोई दुराव छुपाव नहीं हो, बस दोस्ती के बीच में कुछ और न लाया जाये और अपने दोस्त के लिये हमेशा एक आवाज पर खड़ा हो जाया जाये तो इससे बेहतरीन बात और कोई हो ही नहीं सकती है।
बहुत दिनों से घूमने का कार्यक्रम बना रहे थे, बैंगलोर और मुँबई इतने समय रहकर आ गये परंतु आलस कहें या समय न मिल पाना कहें, घूमने नहीं जा पाये, अब गुड़गाँव आ गये हैं, यहाँ भी आये हुए 6 महीने हो आये हैं, परंतु यहाँ आकर कार खरीद लेने से कहीं भी घूमना फिरना आसान हो गया है, दो बार तो आगरा, मथुरा और एक बार वृन्दावन हो आये हैं, और खैर दिल्ली तो मौका लगते किसी भी दिन निकल पड़ते हैं।
अब वहाँ घूमने जाने की ज्यादा इच्छा भी नहीं रही जहाँ बहुत ज्यादा चहल पहल रहती हो और दिमाग को शांति नहीं मिलती है, अब सोचा है कि कहीं प्राकृतिक स्थानों पर जाकर मानसिक शांति पाई जाये। तब हमने एयरबीएनबी की वेबसाईट पर जाकर उन जगहों पर रहने की जगह ढ़ूढ़ने के लिये यह वेबसाईट बहुत काम आई।
हमने सोचा कि किसी ग्रामीण क्षैत्र में भी हमे पर्यटन करना चाहिये, जहाँ हम अपने ग्रामीण जीवन की झलक ले सकें तो हमें यह जगह बहुत ही अच्छी लगी । Banni Khera -Farm Stay & activities बन्नीखेड़ा गुड़गाँव के पास रोहतक में है और किसी भी सप्ताहांत में जाया जा सकता है, यहाँ पर साईकिलिंग, खेती और भी बहुत सी गतिविधियाँ हैं, और प्रकृति के बीच भी है।
हमें हिमाचल प्रदेश हमेशा से ही लुभाता रहा है, जैसा कि नाम से ही पता चलता है यहाँ हिम का आँचल है, और हिम याने कि बर्फ किसे अच्छी नहीं लगती, सभी को अच्छी लगती है, बादल बहुत ही नीचे पहाड़ों में भ्रमण करते हैं, चीड़ के ऊँचे ऊँचे वृक्ष और तेज हवाओं से उनसे आती आवाजें हमेशा से ही लुभाती रही हैं, जैसे पहले फिल्मों में हीरो हीरोइन इन्हीं पेड़ों के चारों और घूमकर गाना गाते थे, हमें जगह पसंद आयी कोटघर, धरती पर स्वर्ग KOTGARH,heaven on earth.
उत्तराखंड में किसी गाँव में गाँववालों के साथ उनके मध्य रहना एक अलग ही अनुभव होगा यह सोचकर हमने लखवार जो कि देहरादून से मात्र दोसौ किमी. की दूरी पर है, का चयन किया। यहाँ पहाड़ों के मध्य देहाती परिवेश में रहने का लुत्फ उठाने के लिये A House in the Himalayas हमें हिमालय के पास लखवार बेहद जम रहा है।
शिमला जाना किसे अच्छा नहीं लगता और ऊपर से यह हिमाचल प्रदेश की राजधानी भी है, शिमला की मॉल रोड बहुत प्रसिद्ध है, बस यहाँ सीजन में जाओ तो हर चीज महँगी मिलती है, हमें सोलन में यह जगह Shimla Affordable Luxury Flat Solanरहने के लिय जमी क्योंकि यह एक तो हाईवे पर ही है और हैरीटेज पार्क यहाँ से मात्र 7 किमी है, कसौली 31 और शिमला केवल 45 मिनिट का रास्ता है।
अगर हिमाचल में प्रकृति के बीच में न रहे तो वाकई हिमाचल घूमना अधूरा है, हिमाचल और हिमालय के प्राकृतिक वातावरण में अगर साहसिक कार्यों मेंहिस्सा न लो तो यात्रा अधूरी ही होती है, वहाँ हमें यह Camp Roxx- Adventure Camp निजी कैम्प बहुत ही पसंद आया जिसमें कि उनका रूकने से लेकर खाने पीने एवं पर्यटन की छोटी से छोटी बातों का ध्यान रखा जाता है, यह नहान और शिमला के मध्य है, और कांगोजोड़ी जंगल में है।
आप भी एयरबीएनबी से मेरे रैफरल से जुड़ सकते हैं और विश्व के बेहतरीन रहने के स्थानों को चयन कर सकते हैं।
5 नवंबर 2014 को केन्द्रीय मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद ने लगभग 2,375 करोड़ रूपयों की सहायता 23 केन्द्रीय सहकारी बैंकों को देने की टीवी पर घोषणा की। केन्द्रीय सहकारी बैंकों का जाल पूरा भारत में विस्तारित है। इन 23 केन्द्रीय सहकारी बैंकों में से 16 बैंकें उत्तर प्रदेश, 3 जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र में, 1 पश्चिम बंगाल में हैं । मंत्री जी का कहना है कि यह कदम छोटे निवेशकों के हितों के लिये उठाया गया है । एक कैबिनेट मीटिंग में इतनी बड़ी राशि जो कि भारत की जनता की मेहनत की गाढ़ी कमाई से टैक्स के रूप में सरकार के पास आती है, से देना निश्चित किया गया । इसमें कुछ हास्यासपद नियम बैंकों के लिये बनाये गये हैं, जैसे कि 15 प्रतिशत की विकास दर होना चाहिये, खराब ऋणों को 2 वर्ष में आधा वसूल कर लेंगे। इन दोनों का होना लगभग नामुमकिन है, क्योंकि केन्द्रीय सहकारी बैंकें राजनैतिक हितों को भी साधती हैं।
एक बड़े अखबार के मुताबिक तो 45 सहकारी बैंकों के ऊपर भारतीय रिजर्व बैंक अर्थदंड भी लगा सकता है, जिसमें से 23 सहकारी बैंकों के पास तो बैंकिंग का लाइसेंस भी नहीं है और 4 प्रतिशत पूँजी-पर्याप्तता का अनुपात जो कि लगभग 2100 करोड़ रूपये होता है, वह भी नहीं है। ये 23 सहकारी बैंके वही लगती हैं, जिनका उद्धार हमारे द्वारा दिये गये टैक्स के पैसे से होना है।
सरकार का यह निर्णय बहुत ही असंवेदनशील और उनके काम करने के तरीके का खौफनाक नमूना है, सरकार द्वारा ऋणों के वापस न आने के कारणों को अनदेखा करना निश्चित ही चिंता का विषय है। केन्द्रीय सहकारी बैंकों में राजनैतिक घुसपैठ और उनके द्वारा प्रबंधन में मनमानी करना किसी से छुपा नहीं है और यही कारण है कि अशोध्य ऋणों (Irrecoverable loans) की ज्यादा संख्या का कारण राजनैतिक व्यक्ति का ऋण से जुड़ा होना है, जो कि जानबूझकर बकायादार (Wilful Defaulters) रहते हैं।
इसके परिणाम स्वरूप, सहकारी बैंकों पर नियंत्रण ठीक न होना और दीवालिया होना व्यवस्था के लिये चेतावनी है। बदकिस्मती से अधिकतर लोगों को इन बैंकों के खराब नियंत्रण के बारे में पता ही नहीं होता है, जो कि अक्सर ही छोटे निवेशकों को अधिक ब्याज दरों से लुभाते हैं। मजे की बात यह है कि इन केन्द्रीय सहकारी बैंकों में बैंकिंग से संबंधित निर्णयों में राजनैतिक हित हावी रहते हैं, और सरकार के नियमों के मुताबिक सभी बैंकों में एक लाख रूपयों तक के निवेश को DICGC (Deposit Insurance and Credit guarantee Corporation) द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाती है। जिसमें ये केन्द्रीय सहकारी बैंकें भी शामिल हैं।
यहाँ पर यह उद्घृत करना जरूरी है कि केतन पारिख के द्वारा 2000-2001 में माधवपुरा मर्केंटाइल सहकारी बैंक में की गई धोखाधड़ी के बाद पहले की भाजपा सरकार एन.डी.ए. के शासनकाल (1999-2004) में भारतीय रिजर्व बैंक को लचीला रुख अपनाने के कहा और DICGC (Deposit Insurance and Credit guarantee Corporation) को अपने नियमों को शिथिल करने के लिये कहा गया। माधवपुरा मर्केंटाइल सहकारी बैंक के प्रबंधन ने घोटालेबाज केतन पारिख को 1000 करोड़ रूपयों को ऋण सारे नियम ताक पर रख कर बैंक को बर्बाद कर दिया। जबकि DICGC (Deposit Insurance and Credit guarantee Corporation) के नियमों के मुताबिक निवेश पर किये गये बीमा का भुगतान केवल बैंक के दीवालिया होने की स्थिती में ही किया जा सकता है। उस समय भाजपा के बड़े शक्तिशाली नेता को शांत करने के लिये माधवपुरा मर्केंटाइल सहकारी बैंक की स्थिती को अपवादस्वरूप बताकर हजारों करोड़ों रूपयों को भुगतान कर दिया गया। और उस समय की लगभग समाप्त सी हो चुकी मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भी कोई विरोध नहीं किया। वाकई भारत के वित्तीय निवेशकों के लिये वह दिन बहुत ही बुरा होगा अगर वापिस से इस तरह का कोई बड़ा सहकारी बैंक घोटाला सामने आता है और भाजपा सरकार ने पहले ही इन केन्द्रीय सहकारी बैंकों को आश्रय देने का निर्णय ले लिया है बनिस्बत कि इन केन्द्रीय सहकारी बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंकों के सीधे सरल और स्पष्ट नियंत्रण और निरीक्षण में दिया जाता।
हमारे पैसों से इन केन्द्रीय सहकारी बैंकों को मदद देना सरकार के अच्छे शासन प्रणाली और साफ सुथरे प्रबंधन के संकेत नहीं हैं और उस सुधार बदलाव के भी जिसका वादा हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी किया था।
जी हाँ मैं भी आम आदमी हूँ, जो आम आदमी कहता है वह मुझे सीधे दिल पर लगता है, क्योंकि वे वाकई वही बातें करते हैं जो मुझ जैसे आम आदमी की जरूरत हैं। आजकल हल्ला काट रहे हैं कि केजरीवाल बिजनेस क्लाम में सफर कर दुबई गये, मैं ज्यादा गहराई में न जाते हुए केवल इतना कहना चाहूँगा कि अगर मुझे भी कोई अन्य बिजनेस क्लास का टिकट देगा तो मैं मना नहीं करूँगा, और खुशी खुशी बिजनेस क्लास का सफर तय करूँगा। हालांकि एक बार मैं भी एक बार एयर लाईंस की गलती के कारण बिजनेस क्लास में दुबई से मुँबई तक सफर कर चुका हूँ। पर अगर इकोनोमी में भी मुझे टिकट खरीद कर सफर करना हो तो कम से कम सौ बार सोचना पड़ता है। अगर केजरीवाल के किसी सम्मान के लिय बुलाया गया है तो या तो टिकट उन्होंने दिया है या फिर उनके किसी दोस्त ने स्पांसर किया है, तो इस बात पर हल्ला क्यों ?
क्या हमारे विपक्षी दलों के नेता जो आरोप प्रत्यारोप भी बिजनेस क्लास में सफर नहीं करते हैं ? या वे यह नहीं देख पा रहे हैं कि आम आदमी कैसे विलास कर सकता है, भले ही वह स्पांसर हो ?
विपक्षी दल आम आदमी पर पता नहीं कैसे कैसे आरोप लगाते रहते हैं, अभी सुबह ही एक केन्द्रीय सरकार के दल के एक नेता जी को बोलते सुना कि अगर बाहर से चुनाव लड़ने के लिये पैसा आयेगा तो फिर ये लोग बाहर के लोगों के लिये ही कार्य करेंगे ना कि भारत के लोगों के लिये, तो बहुत
ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है, अभी जब लोकसभा के लिये चुनाव हुए थे तब भी भारत की बड़े दलों को बहुत सारा चंदा मिला था, तो वे अपने सोर्स बताने में क्यों कोताही बरत रहे हैं, अगर वे आम आदमी के जैसे वाकई ईमानदार हैं तो वे भी ऐसा करके बताये, जनता ने तो केवल एक अच्छी मछली के नाम पर वोट डाला है, पर अब देश को भुगतना तो पूरे तालाब की गंदी मछलियों को पड़ रहा है। अगर हमारे प्रधानमंत्री जी भारत के बाहर से निवेश ला रहे हैं तो भारतीय सरकार भी तो विदेशी निवेशकों के हितों को ध्यान रखते हुए कार्य करेगी, तो अपनी बातों को छुपाते हुए क्यों दूसरे पर आरोप जड़ा जा रहा है।
सुबह का सुहाना दिन शुरू ही हुआ था, और हम सब्जी लेने पहँच गये सब्जीमंडी, वहाँ जाकर सुबह सुबह हरी हरी ताजी सब्जियाँ देखकर मन प्रसन्न हो गया, सब्जी वाले बोरों में से सब्जियाँ निकाल रहे थे, और साथ ही उनकी फालतू की बची हुई डंडियाँ अपने ठेले के पास फेंकते जा रहे थे, हमने कहा भई ये कचरा ऐसे क्यों फेंक रहे हो, तो जवाब मिला कि और क्या करें, फिर ऐसे ही कचरे को कचरा साफ करने वाला ठेले में भरकर ले जायेगा, एकदम हममें मोंटू की आत्मा घुस गई, क्योंकि सामान्यत: हम कुछ भी कहने से बचते हैं, हमने कहा पता है तुम लोगों की इसी आदत के कारण लोग मॉल में सब्जी खरीदने जाते हैं, सब्जीमंडी जाना बंद कर दिया है, लोगों को सब्जीमंडी आना पसंद नहीं है क्योंकि तुम लोग ही इसे स्वच्छ नहीं रखते हो, क्या तुम लोग इस अतिरिक्त कचरे को ठीक ढ़ंग से ठिकाने नहीं लगा सकते हो, जिससे कि लोग वापिस से सब्जीमंडी में आना शुरू कर दें, क्यों नहीं आप लोग अपने पास एक बड़ा बंद ढक्कन का कचरे का डिब्बा नहीं रखते हैं, जिससे गंदगी तो कम से कम अपने पैर नहीं पसारेगी और लोगों को स्वच्छता मिलेगी, जिससे लोग सब्जीमंडी में आना शुरू हो जायेंगे, आपका भी धंधा अच्छा चलेगा और लोगों को भी फायदा होगा, उन्हें बात जँची और जब हम अगले सप्ताह सब्जीमंडी में गये तो कहीं भी गंदगी नहीं मिली, और देखा कि लोग भी अब धीरे धीरे सब्जीमंडी की ओर आने लगे हैं । तो देखा मोंटू के बोलने का कमाल !!
सीन – 2 – ट्रेन में
काफी दिनों बाद में किसी लंबी यात्रा पर निकला। रात का समय था, लंबा सुहाना सफर शुरू ही हुआ था, कि रात्रीभोजन का समय हो चुका था, लोग अपने साथ लाया खाना या फिर पेंट्री से मँगाया गया खाना आनंदमय तरीके से खा रहे थे, मैंने सोचा कि यह संपूर्ण सामाजिक दृश्य है, किसी कूपे में कोई मिन्नत कर करके अपना खाना किसी और को भी खिला रहा है, तो कोई शांत बैठा खा रहा है और किसी कूपे में सब खाना खा रहे हैं, परंतु किसी को किसी से कोई वास्ता ही नहीं है, पर ट्रेन में बैठे हरेक व्यक्ति में एक समानता है, सब कचरा खिड़की से बाहर फेंककर हमारे भारत को अस्वच्छ कर रहे हैं, तभी मेरे अंदर मोंटू की आत्मा घुस आयी और लोगों से कहा कि आप खाना खाकर भारत को अस्वच्छ क्यों कर रहे हैं, तो लोगों का जवाब था कि उन्हें या तो पता ही नहीं है कि कचरे का करना क्या है और अगर पता भी है तो आलस के मारे कोई कचरे के डब्बे तक जाना नहीं चाहते, मैंने पूछा कि क्या आप घर पर भी जहाँ खा रहे होते हैं तो पास की खिड़की से बचा हुआ खाना ऐसे ही फेंक देते हैं, लोग वाकई समझ रहे थे और कचरे के डब्बे की ओर बड़ रहे थे।
मोंटू स्ट्रेप्सिल का एक कैम्पेन है जिसके लिये यह पोस्ट लिखी गई है, मोंटू हमारे भीतर के अच्छे आदमी को बोलने को कहा गया है, कहीं भी कुछ गलत होते देखें तो एकदम से मोंटू #AbMontuBolega बन जायें, चुप न रहें। http://www.abmontubolega.com/ पर इस कैम्पेन के बारे में ज्यादा जानकारी ले सकते हैं, आप मोंटू के इस कैम्पेन में Strepsils के Facebookऔर Twitter पेज पर भी अधिक जानकारी ले सकते हैं।