Category Archives: खानपान

₹80 में नार्थ कर्नाटका थाली, जिसे जोलड़ा रोटी उटा भी कहते हैं।

लोग कहते हैं कि इधर सबसे सस्ती थाली मिलती है या उधर, पर मैंने बैंगलोर से सस्ती थाली कहीं नहीं खाई, मात्र ₹80 में नार्थ कर्नाटका थाली मिलती है, जिसे जोलड़ा रोटी उटा (oota) मील कहते हैं। oota का मतलब कन्नड़ में भोजन होता है।

इसमें पतली पतली ज्वार की 2 रोटी, 1 सब्जी, 1 दाल, चटपटी चटनी, स्प्रोउट सलाद, दही, चावल और सांभर मिलता है, साथ ही प्याज व तली हुई हरी मिर्च। सब्जी, दाल, चटनी व सांभर अनलिमिटेड होता है।

रोटी व चावल की मात्रा इतनी होती है कि आराम से एक व्यक्ति का पेट भर जाता है, क्योंकि चावल की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, हम 2 लोग जाते हैं तो एक थाली का चावल लौटा ही देते हैं।

साथ ही अगर ज्वार रोटी और चाहिये तो भी ₹20 की और मिल जाती है। इन रेस्टोरेंट्स के नाम बसवेश्वरा काना वाली के नाम से होते हैं, कुछ ब्राह्मिन के नाम से भी होते हैं। पर जो स्वाद बसवेश्वरा रेस्टोरेंट्स में मिलता है, वह ब्राह्मिन में नहीं मिलता। हमारे घर के पास कम से कम 5-6 रेस्टोरेंट हैं। पर अधिकतर लोग इनको एक्सप्लोर ही नहीं कर पाते, क्योंकि उनको पता ही नहीं होता।

क्या आपके शहर में ₹80 में या इससे कम में थाली मिलती है?

#bengaluru

सुबह घूमना क्यों चाहिये?

सुबह घूमना क्यों चाहिये?

सुबह घूमने के कई फायदे होते हैं जो हमारी तनाव से मुक्ति दिलाते हैं। निम्नलिखित हैं कुछ मुख्य फायदे:

  1. सुबह की सैर से शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है और एनर्जी लेवल बढ़ता है।
  2. सुबह की सैर तनाव को कम करती है और मन को शांति देती है।
  3. सुबह की सैर शरीर के अक्सर इस्तेमाल होने वाले जोड़ों को स्ट्रेच करती है जिससे जोड़ों के दर्द का निवारण होता है।
  4. सुबह की सैर दिन की शुरुआत में मानसिक तनाव से राहत दिलाती है जिससे दिनभर की दुविधाओं का सामना आसान होता है।
  5. सुबह की सैर से सुबह की शुरुआत में धूप और ताजगी मिलती है जो शरीर को फायदेमंद होता है।
  6. सुबह की सैर नए जगहों का दौरा करने का मौका देती है जिससे व्यक्ति को नए दृश्य देखने का मौका मिलता है।

इसलिए, सुबह घूमना आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है।

उसल पोहा इंदौर

मालवा आओ और पोहे न खाओ तो बस आपका मालवा आना बेकार है, कई जगह पोहा जलेबी के साथ खाते हैं तो कई जगह उसल के साथ, आज हम इंदौर हैं, तो पलासिया पर हेड साहब के उसल पोहे खाये गये, जिसमें पोहे के ऊपर प्याज, छोले और चटपटी तरी व नमकीन, चटपटापन कम करने के लिये ऊपर से दही भी डाल सकते हैं।

पहले हम जेल रोड, इंदौर में उसल खाने जाया करते थे, वो जबरदस्त मिर्ची वाले उसल होते थे।

अगर कभी आयें तो इंदौर में उसल को मिस न करें।

indore

pohe

सूखे का अचार (आम)

सूखे का अचार

100 कैरी में 10 कैरी बराबर नमक लें। पहले काटकर अचार की फाँक जैसा काट लें फिर नमक लगाकर दो दिन के लिये सूखने दें। फिर कैरी को निचोड़कर धूप में फैला दें।

नमक वाला पानी कटी हुई कैरी एकदम सोख लें ( एक टब में नमक लगा कर रखना चाहिए और उसको थोड़ा बहुत हिलाना चाहिए )

मसाले –

सरसों का तेल – 2 चम्मच (Table Spoon) पहले गर्म करें, और ठंडा होने के बाद मिलायें।

हल्दी – 250 ग्राम

लाल मिर्च – 100 या 200 ग्राम जितना तीखा चाहिये।

सौंप – 250 ग्राम

धनिया – 250 ग्राम

अजवायन, मैथी इन चारों को सेंक लेना है मतलब कि भून लेना है।

राई – 200 ग्राम

सरसों हर्र, बहेड़ा, आंवला, जावित्री, जायफल, तेजपत्ता, काली मिर्च 50 ग्राम, बड़ी इलायची 50 ग्राम, दखिनि मिर्च 50 ग्राम, काला नमक, सादा नमक, सेंधा नमक, लौंग नग 50, छोटी हरड़, बड़ी हरड़ ये सब मसाले पीसकर मिलाकर अचार में मिलाकर धूप में रख दें।

अचार की रेसिपी ट्विटर मित्र @giri1pra द्वारा शेयर की गई है।

समय बहुत भयावह है, संयम रखें, ज़बान और दिमाग़ पर भी

समय बहुत भयावह है, संयम रखें। सबका नंबर आयेगा, अगर अब भी न सुधरे तो। कुछ दिन अपनी ज़बान पर लगाम दो, अपने फेफड़ों को मज़बूत करो, ठंडी चीजें मत खाओ पियो, ज़बान का स्वाद यह गर्मी के लिये रोक लो, इस गर्मी अपने शरीर को थोड़ा कष्ट दे लो। आप जितनी ज़्यादती अपने फेफड़ों के साथ करोगे, ऐन वक़्त पर फेफड़े आपको दगा दे जायेंगे। कोशिश करें कि साधारण तापमान का ही पानी पियें, ठंडे पानी को, बर्फीले शर्बत को न पियें। फेफड़ों को ज़्यादा तकलीफ़ न दें।

केवल फेफड़े ही नहीं, जितनी ज़्यादा काम आप अपने शरीर के अंगों से करवायेंगे, उतना ही ज़्यादा समस्या है। कुछ लोग इस बात को हँसी में लेंगे, पर दरअसल उन्हें पता ही नहीं कि हम प्लेट प्लेट भर खाना खाने वाले इंसानों को मुठ्ठीभर खाना ही ऊर्जा के लिये काफ़ी होता है। खाने में ऊर्जा नहीं होती, यह हमारे मन का वहम है। जैसे सुबह हम कहते हैं कि नाश्ता नहीं किया तो ऊर्जा कहाँ से आयेगी, पर वहीं दिन का खाना या रात का खाना खाने के बाद आप शिथिल क्यों हो जाते हो। जब भी कुछ खाओ तो उस हिसाब से तो हमेशा ही ऊर्जा रहनी चाहिये। पर यह तर्क भी लोगों को समझ में नहीं आता।

जब भूख लगे तभी खाओ, यह नियम ज़िंदगी में बना लेंगे तो हमेशा खुश रहेंगे। हम क्या करते हैं कि खाने के समय बाँध लेते हैं, सुबह ८ बजे नाश्ता करेंगे, ११ बजे फल खायेंगे फिर १ बजे दोपहर का भोजन करेंगे, ४ बजे शाम का नाश्ता करेंगे, ७ बजे खाना खायेंगे। कुछ लोग तो शाम को दो बार भी नाश्ता कर लेते हैं और फिर कहते हैं आज तो कुछ खाया नहीं फिर भी पेट भरा हुआ है, अब रात का खाना थोड़ा ओर देर से करेंगे। इस तरह हमने अपना हाज़मा भी बिगाड़ रखा है, और अपनी जीवनशक्ति के साथ हम खिलवाड़ करते हैं।

मुझे जब भी भूख लगती है, तो सबसे पहले मैं बहुत सारा पानी पीकर चेक करता हूँ कि वाक़ई मुझे भूख लग रही है या फिर दिमाग़ खाने का झूठा सिग्नल भेज रहा है, क्योंकि दिमाग़ को तो ज़बान ने कह दिया कि कुछ खाने का इंतज़ाम करो बढ़िया सा, जिसमें बढ़िया स्वाद हो, ताकि यह समय बहुत अच्छा निकले, तो दिमाग़ को खाने का झूठा सिग्नल भेजा जाता है, परंतु अगर मन अपना वश में रखें और स्वादग्रंथियों को पानी का एक लीटर स्वाद चखने को मिल जाये, फिर पेट भी सिग्नल भेजता है, कि अब कुछ ओर रखने के लिये जगह नहीं है, यहाँ मामला फ़ुल है। तो बस ज़बान निराश हो जाती है और चुपचाप रहकर कुछ ओर समय का इंतज़ार करती है। उस समय ज़बान फिर नाटक करेगी, ज़बान कसैली या स्वादहीन हो जायेगी, जिससे आर्टीफीशियली दिमाग़ को लगेगा, इससे शरीर को तकलीफ़ हो सकती है तो दिमाग़ भी सिग्नल देगा, कुछ तो खा लो, भले चुटकी भर कोई चूरण खा लो, ये ज़बान बहुत परेशान कर रही है।

पूरी प्रक्रिया यही है, लिखने को तो बहुत कुछ है, परंतु अब अगले ब्लॉग में, अगर इन स्वाद ग्रंथियों ओर शरीर के इन अवयवों पर कंट्रोल कर लिया तो हम ज़्यादा सुरक्षित हैं। हालाँकि इसके लिये दिमाग़ को वैसा ही पढ़ने लिखने के लिये साहित्य भी देना होगा, साथ ही अपने आसपास का वातावरण भी ऐसा हो सुनिश्चित करना होगा।

DVT

मेरी चाय फिर से शुरू होना, और DVT के बारे में

बहुत मुश्किल से मेरी चाय छूटी थी, वह भी लगभग ३ वर्ष तक, ३ वर्ष तक मैंने दूध की चाय नहीं पी, दूध के बने उत्पादों को छोड़ दिया था, मतलब हालत यह थी कि घर में पनीर की सब्ज़ी बेटेलाल बनाते थे और हम केवल फ़ोटो खींचकर ही संतुष्ट हो लेते थे, फिर कोरोना आया तब भी हमने अपने ऊपर बहुत कंट्रोल रखा, चाय पीने की इच्छा होती थी, तो लेमन टी पी लेते थे, या गरम पानी ही पी लेते थे।

दूध के पदार्थ का सेवन करने से कोलोस्ट्रॉल में वृद्धि होती है, वैसे ही तेल वाली चीजें खाने से ट्राईग्लिसराईड बढ़ता है, तो सोचा कि ये जो ह्रदय में जाकर जमता है, जाता तो केवल एक ही जगह से वह है हमारा मुँह और स्वादग्रंथी जीभ, तो बहुत कोशिशों के बाद हम कामयाब हुए, हम यक़ीन रखते हैं कि केवल संभाषण ही नहीं करना है, उस पर अमल भी करना है, ऐसे ही दौड़ लगाने की बढ़िया से आदत लग गई थी, पर कुछ निजी समस्याओं के चलते धीरे धीरे वह भी छूट गई, बहुत ग़ुस्सा आता है अपने आप पर, जब अच्छी आदतें छूट जाती हैं।

अब हालत यह है कि लगभग सब चीजें वापिस से चालू हो गई हैं, हाँ चाय अब सुबह और शाम दो बार ही पी रहे हैं, परंतु बारबार चाय पीते याद यही आता है कि सीधे हम २ चम्मच शक्कर पी रहे हैं, कोलोस्ट्रॉल की इतनी मात्रा धमनियों में जा रही है, तेल का खाना खा रहे हैं तो ग्लानि खाते समय भी होती है, पर सच बताऊँ तो इस आमोद प्रमोद के चक्कर में मन की जीत हो रही है, जीभ पर बिल्कुल भी क़ाबू नहीं रहा। एक समय था जब कैरियर की शुरूआत की थी तब दिन में 8-10 चाय तो आराम से हो जाती थी, साथ ही चाय के बाद पान खाने की आदत भी बन गई थी।

इस बार यह चाय की आदत जनवरी २०२१ से फिर से लगी, पहले पापा अस्पताल में एडमिट थे, तो कोरोना के चक्कर में बाहर का खाना शुरू हुआ, चाय भी पी फिर एक सप्ताह के बाद घरवाली को एक सप्ताह के लिये एडमिट करवाया तो न न करते चाय, पका खाना, तेलीय खाना, नाश्ता सबकुछ की आदत लग गयी। पापा को कंजस्टिव हार्ड फेलियर हुआ था, ३ दिन सीसीयू में रहने के बाद अब ठीक हैं, घरवाली को DVT (Deep vein thrombosis) होने का पता चला, और दोनों ही खतरनाक सीरियस वाली बीमारियाँ हुईं, दिमाग का बिल्कुल दही हो गया। पापा अब बढ़िया से हैं।

घरवाली की तकलीफ़ देखते नहीं बनती, पहले एक महीना तो पूरे बिस्तर पर ही रहने को बोला था डॉक्टर ने, अब कहा है कि आराम के साथ साथ धीमे धीमे काम भी करो, अब इलाज २ वर्ष का है, DVT एकदम से नहीं होता, और पकड़ भी तभी आता है जब यह अपने पीक पर पहुँच जाता है, पहले पैरों में सूजन होती थी, फिर उतर जाती थी, कभी इस बारे में ध्यान ही नहीं दिया, फिर जब अक्टूबर से चलना भी मुश्किल हो गया तो डॉक्टर के चक्कर लगाये, डॉक्टर ने दर्द कम करने की दवाई दी, एक्स-रे भी करवाया, पर पता न चला, जब पैरों के लिंफ नोड्स में सूजन आई तब अल्ट्रासाउंड करवाने पर पता चला कि ये तो DVT है, याने कि अंदरूनी रक्तवाहिकाओं में रक्त का थक्का जम गया है, फिर डॉक्टर मित्र से सलाह की तो पता चला कि इस बीमारी के लिये हमारा प्राथमिक डॉक्टर कॉर्डियो वेस्कुलर सर्जन होना चाहिये, जिससे पता चल जाये कि यह रक्त का थक्का कहीं ह्रदय की ओर तो नहीं बढ़ रहा है।कॉर्डियो वेस्कुलर सर्जन ने इको कॉर्डियोग्राम करवाया तो वहाँ कोई समस्या नहीं मिली। और बताया कि आपके जो इंटर्नल सर्जन ने इलाज बताया है वही इलाज करना है, इलाज था कि पहले ४ दिन अस्पताल में भर्ती होकर खून के पतला होने के इंजेक्शन लगवाने थे, ओर फिर २ वर्ष तक ब्लड थिनर की टेबलेट चलेंगी।

DVT होने की कई वजहें होती है, एक मुख्य वजह यह समझ आई कि जिनका T3 एन्जाईम कम होता है, यह एन्जाईम शरीर में खून को पतला करने का काम करता है, वहीं विटामिन K जो कि खून गाढ़ा करता है, जैसे की हरे पत्तियों की सब्ज़ियाँ, बहुत ज़्यादा लेने पर यह समस्या पैदा हो जाती है, एक ही जगह ज़्यादा देर खड़े रहने से भी ये समस्याएँ होती हैं, जैसे कि सर्जन और शिक्षकों को ये बीमारियाँ बहुत आम हैं, तो उनको पैरों में Stocking पहनने चाहिये, जिससे रक्त का प्रवाह बना रहता है।

तो खैर यहीं से हमारा चाय, नमकीन, बिस्कुट, बाज़ार का नाश्ता सब कुछ चालू हो गया, अब फिर से कंट्रोल करने की शुरूआत करनी है। देखते हैं कि कितनी जल्दी सफल हो पाते हैं।

लखनवी समोसे

लखनवी समोसे

लखनवी समोसे
लखनवी समोसे

जब से लॉकडाऊन लगा है, तब से हम यूट्यूब पर ज्यादातर वीडियो खाने पीने व ट्रेवलिंग के वीडियो बहुत देखने लगे हैं। खाने पीने के वीडियो ज्यादा देखने का एक मूल कारण यह भी है कि लॉकडाऊन के चलते बाहर का खाना लगभग बिल्कुल ही बंद है। बेटेलाल अपनी परीक्षा के बाद बोर होने लगे थे, तो खाना बनाने में रूचि जागृत हुई, हम उन्हें रसोई में जाने की इजाजत नहीं देते थे, परंतु सोचा कि चलो अब लॉकडाऊन के चलते अपनी देखरेख में रसोई में काम करने की इजाजत दे देते हैं।

.
हम तो वैसे कई प्रकार के वीडियो देखते हैं जैसे कि एक्सेल के फंक्शन को उपयोग करने के तरीके, पॉवरपॉईंट प्रेजेन्टेशन को किन तरीकों से ओर बेहतर बनाया जा सकता है, नई चीजों को सीखना, जैसे कि टैब्ल्यू, पॉवर बीआई इत्यादि।
.
खैर हम आते हैं अपने लखनवी समोसे पर, फोटो नहीं खींच पाये, कल रात को ही यूट्यूब पर रनवीर बरार शेफ के चैनल से सीखा था, रनवीर लगता है कि हमउम्र ही होंगे, पर उनका बोलने का तरीका, खाना बनाने का सिखाने का तरीका, बिल्कुल ही अलग अंदाज है। हमें बहुत अच्छा लगता है उनका देसी तरीका जब वे खाने के मसालों के बारे में बताते हैं या फिर उस डिश से जुड़ी कोई कहानी, या उसकी दास्तान सुनाते हैं। देखिये खाने में कोई धर्म नहीं होता है, इसलिये खाने को खाने की दृष्टि से ही सोचना व देखना चाहिये, यह रनवीर का कहना है। एक बात ओर हर वीडियो में वे कहते हैं, ध्यान से देख लीजिये, या समझ लीजिये यह गड़बड़ी हो जायेगी ओर फिर आप कहेंगे कि रनवीर ने यह तो बताया ही नहीं, तो रनवीर ने आपको यह बता दिया है। तो सबकी अपनी अपनी सिग्नेचर टोन या वाक्य होते हैं, यह रनवीर का सिग्नेचर वाक्य है।
.
लखनवी समोसे में नजाकत होती है, मिर्च नहीं होती है, उबले हुए आलू लेने हैं, हाथ में ही चाकू से छोटो छोटे टुकड़ों में काट लेना है, क्योंकि लखनवी समोसे हैं, नजाकत का हर समय ध्यान रखना है। फिर एक पैन में एक चम्मच घी, जीरा, सौंफ, बारीक कटी हुई अदरक, कूटा हुआ सूखा हरा धनिया डाल लें और फिर इसमें कटे हुए आलू मिला लें, अच्छे से आलुओं को चला लें, ऊपर से थोड़ा सा अजवाईन, स्वादानुसार नमक मिला लें। तो यह तो तैयार हो गया लखनवी समोसे का  मसाला।
.
अब बारी आती है समोसे की परत बनाने की, तो उसके लिये मैदा, थोड़ा अजवाईन व मौन के लिये घी, थोड़ा नमक और इसे मलना है बर्फ के ठंडे पानी से। समोसे का आटा थोड़ा सख्त रखें, आटा होने के बाद थोड़ी देर कपड़े से ढ़ँककर छोड़ दें।
.
बस अब आटे से चकले पर रोटियों जैसे बेल लें और उसे बीच से काटकर किनारों पर थोड़ा पानी लगाकर समोसे के आकार में ढ़ालकर थोड़ा थोड़ा आलू का मसाला भरते जायें, ध्यान रखें समोसे छोटे बनायें। जब सारे समोसे भर जायें तब मीडियम तेज आँच पर समोसों को तल लें, ध्यान रखें कि अगर ज्यादा तेज गर्म तेल होगा तो समोसे पर फफोले पड़ जायेंगे। समोसे पर फफोले न पड़ें इसके लिये तेल बहुत ज्यादा तेज गर्म न हो, समोसे तलने में समय ज्यादा लगेगा।
.
समोसे तैयार हो जायें तो इन लखनवी समोसे को आप हरी व लाल मीठी चटनी के साथ परोसें।
.
हम अपनी जबान पर कंट्रोल करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, परंतु घर के घर में अब 10 महीने हो गये हैं, कुछ तो एक्साईटेड होना चाहिये, तो खाने पीने में ही सही।
.
बताईये आप घर में बंद होकर बोर तो हो ही रहे होंगे, आप कैसे इस समय का सदुपयोग कर रहे हैं, व नया क्या सीख रहे हैं।

गाजर का हलवा

गाजर का हलवा बचपन से ही बहुत पसंद है। गाजर के हलवे के लिये हम हमेशा ही सर्दियों का इंतजार करते थे, सर्दियों में गरमा गरम गाजर का हलवा स्वादिष्ट लगता है, कहते हैं कि गाजर खाने से खून भी बढ़ता है और आँखों की रोशनी भी बढ़ती है। हलवा तो वैसे भी कोई भी हो, हमेशा ही मुँह में पानी ले आता है। यह अलग बात है कि हलवे को बनाने में बहुत समय लगता है और इसमें जबरदस्त कैलोरी भी होती हैं।

.
गाजर के हलवे के लिये बढ़िया सी लाल मोटी वाली गाजरें लाई जाती हैं और फिर उन्हें छीलकर बारीक कस लिया जाता है, बारीक कसने के बाद, हम उन्हें शुद्ध देसी घी में कसी हुई गाजर को हल्का सा भून लेते हैं, इससे स्वाद अच्छा आता है, सुना है कि हलवाई लोग ऐसे ही बनाते हैं। फिर जितने किलो गाजर ली जाती है लगभग उतना ही फुल क्रीम गाय का दूध लिया जाता है, अगर 2 किलो गाजर ली गई है तो 2 लीटर दूध लिया जायेगा।
.
दूध को उबाल लगाने के बाद, इसमें धीरे धीरे भुनी हुई गाजर डाल दी जाती है, और फिर गैस को मीडियम या हाई फ्लैम पर रखकर लगातार चलाते रहना होता है, जिससे गाजर बर्तन के तले से न लग जाये, और ऊपर दूध बर्तन की दीवार पर न जल जाये। इस प्रक्रिया को लगभग 2 घंटे लगते हैं। जब दूध पूरा जल जाये तब अपने हिसाब से शक्कर डाल दीजिये, हम 1 किलो गाजर में 100 ग्राम शक्कर डालते हैं, जो कि बिल्कुल सही लगती है।
.
शक्कर डालने के बाद फिर से हलवे को चलाना होता है, जब तक कि पूरा पानी जल न जाये। एक अलग बर्तन में शुद्ध देसी घी में कटे हुए काजू, बादाम को रोस्ट कर लीजिये, केवल हल्के से, जिससे ये मेवे जल न जायें। इसके बाद इस काजू बादाम के तड़के को गाजर के हलवे में मिला दीजिये। गाजर के हलवे को गार्निश करने के लिये खोपरे के बूरे का इस्तेमाल किया जा सकता है। फ्रिज में रखने पर यह हलवा आराम से कई दिन चल जाता है। तो बनाते रहिये खाते रहिये।

घी तेल में डूबा नाश्ता खाना आप भी खाते हैं, देखते हैं?

आजकल हम लोगों की ज़बान ज़्यादा ही ललचाने लगी है, हम घी तेल खाने पीने के मामले में बहुत ही ज़्यादा प्रयोगधर्मी हो गये हैं, हमें बहुत सी चीजें जो बाहर मिलती हैं वे घर में बनाना चाहते हैं। इस ललचाने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है हमारे सोशल नेटवर्किंग ने जैसे कि फ़ेसबुक, यूट्यूब इत्यादि वेबसाइट्स ने। जब भी आप भारतीय व्यंजनों को बनाने जाते हैं या कैसे बनाते हैं, देखते हैं तो हमेशा ही आपको उसमें घी या तेल का अधिकतर उपयोग देखने को मिलता है। इतना घी या तेल हमारी सेहत के लिये अच्छा नहीं होता है, एक प्रकार से यह भी कह सकते हैं कि हम लोग घी और तेल के मामले में मानसिक बीमार हो चुके हैं।

यह सब अब कहने की बात है कि घी और तेल के बिना कुछ अच्छा नहीं लगता, लोग दरअसल यह नहीं जानते हैं कि तेल घी और मसाला दोनों अलग अलग चीजें हैं, मसाले अधिकतर प्राकृतिक हैं और तेल घी को परिष्कृत करके निकाला जाता है, तथा इनसे हमारा कोलोस्ट्रोल व ट्राईग्लिसराईड बढ़ता है, जो कि आगे चलकर ह्रदयाघात के लिये महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अगर आपको भी घी तेल वाला फोबिया है तो कोई आपको कुछ नहीं कर सकता है। घी तेल के बिना भी आप खाना बना सकते हैं, बढ़िया से मसाले डालिये, मसालों का टेस्ट ज़बरदस्त होता है, व बिना घी तेल के मसालों का स्वाद ज़्यादा अच्छा आता है।

मैं भी कई बार बहुत से वीडियो देखता हूँ कि कोई नई चीज कैसे बनायी जाये, परंतु जैसे ही शुरूआत में कोई भी रसोइया घी तेल से शुरूआत करता है, मैं वीडियो बंद कर देता हूँ, ठीक है पहले लोगों को पता नहीं था, पर कम से कम अब तो लोगों को इनके नुक़सान पता है, पहले लोगों की उम्र ५०-६० से ज़्यादा नहीं होती थी, अब ७०-८० तो साधारण है, पहले लोग बिना तकलीफ़ के ही अपनी उम्र पूरी कर भगवान के पास चले जाते थे, क्योंकि चिकित्सकीय सुविधायें सर्वसुलभ नहीं थीं, पर अब लोग लंबा जीते ज़रूर हैं, परंतु बहुत सी तकलीफ़ें झेलकर, क्योंकि अब एक से एक चिकित्सकीय सुविधायें उपलब्ध हैं व सर्वसुलभ हैं।

तेल में डूबा नाश्ता खाना अगर आप भी खाते हैं, देखते हैं तो यह अपने आपके लिये एक बहुत ही कठिन घड़ी है, फ़ैसला लेने के लिये, अगर आप अब भी फ़ैसला नहीं ले पाये तो ध्यान रखिये कभी फ़ैसला नहीं ले पायेंगे। फ़ास्ट फ़ूड भी अच्छा नहीं है, खाने के लिये फल और सब्ज़ियाँ हैं, कच्चा खाने की आदत डालिये, नहीं खाते बने तो उनका रस बनाकर पीने की कोशिश करें, कोशिश करें कि रस ताज़ा ही पी लें, और हाँ एक बात और ध्यान रख लें, कि जैसा आप अपनी मशीन याने कि पेट को देंगे वह उतनी ही कुशलता से काम करेगी। अपनी जीवनशैली बदलिये व स्वस्थ्य जीवनशैली की और अग्रसर होइये, जिससे आपका परिवार आपको हँसी ख़ुशी देख सके। याद रखिये एक व्यक्ति घर में बीमार होता है तो पूरा घर ही बीमार हो जाता है। ऐसी घड़ी न आने दें, कम से कम अपनी तरफ़ से यह कोशिश तो कर ही सकते हैं।

पाचन क्रिया को खत्म करने वाली चार चीजें

आपकी खाने की आदत, सोने की आदत और पानी पीने की आदत यह सब आपकी पाचन क्रिया से सीधे संबंधित हैं, तो इन पर ध्यान रखिये और इनको ठीक करिये।

जितना हम समझते हैं पाचन क्रिया इतनी आसान नहीं है। हम लोग अधिकतर पाचन क्रिया को यह कहकर अनदेखा कर देते हैं कि यह तो यह तो ज्यादा वजन के कारण हो रहा है या फिर हमारे कम वजन के कारण हो रहा है। दरअसल पाचन क्रिया हमारी आदतों से सीधे संबंधित है कि हम अपने शरीर को कैसे रखते हैं। Continue reading पाचन क्रिया को खत्म करने वाली चार चीजें