परेशानी ऐसी चीज है, अगर किसी समस्या को बड़ी मानोगे तो बड़ी होगी, छोटी मानोगे तो छोटी, और न मानोगे तो न होगी। बस यह हमारा दिमाग़ है जो किसी भी कठिनाई को समस्या मान लेता है और फिर उस समस्या का समाधान न मिलने पर उसे परेशानी का नाम देकर अपने दिमाग़ में चिंता रूपी कीड़ा पाल लेता है। फिर वह कीड़ा दिन रात दिमाग़ में घूमता रहता है और बिना किसी बात के वह छोटी सी कठिनाई जो लगती है, पर दरअसल कई बार होती भी नहीं है, कीड़ा दिमाग़ में अपना भौकाल बनाये रखता है।
हमें वह कीड़ा उस कठिनाई से निपटने के लिये कोई समाधान न सुझाता है, परंतु उसकी जगह हमें वह कीड़ा नकारात्मक विचार हमारे ज़हन में भर देता है, कि अगर ऐसा हो गया तो, वैसा हो जायेगा, फिर वैसा और फ़लां को पता चल गया तो बस हो गया काम। इस तरह से हम अपनी कोई छोटी सी कठिनाई को पहले समस्या फिर परेशानी बना लेते हैं। कई बार हम अगर किसी बात को इग्नोर कर दें तो बहुत सी बातें कठिनाई नहीं बनतीं, जब कठिनाई नहीं होगी तो न समस्या होगी न परेशानी होगी।
कई कठिनाइयाँ समय के साथ अपने आप ही लुप्त हो जाती हैं और कई समय के साथ बढ़ती हैं, तो हमें पहले कठिनाई का प्रकार समझकर विश्लेषण कर लेना चाहिये, वह भी साफ़ मन व दिमाग़ से, पहली बात तो यह कि कठिनाई को कठिनाई न मानें, जीवन है तो कठिन तो होगा ही, कठिन होगा तो समस्या व परेशानी भी आनी ही हैं। इसलिये बेहतर है कि अपने दिमाग़ व मन को साफ़ रखें तथा जीवन की सोच को साधारण रखें।
दरअसल 99% समय होता यह है कि हम फ़ालतू की कोई बात दिल या दिमाग़ में धर लेते हैं और ख़ुद ही परेशानी बना लेते हैं। क्यों? क्योंकि हमारा दिमाग़ वाक़ई बहुत फ़ालतू होता है, एक साथ हज़ारों चीजें सोच सकता है और जिस चीज में उसे मज़ा आता है, वही बातें दिमाग़ के कोनों से टकराकर लौटकर वापिस आती है, तो इस फ़ालतू दिमाग़ को सबसे पहले आराम दें, अपने मन को तटस्थ रखें, इसके लिये थोड़ा सा ध्यान लगाकर बहुत जल्दी सफलता पाई जा सकती है। फ़ालतू की चीजों में अपना समय न गँवायें, कुछ अच्छा देखें, कुछ अच्छा पढ़ें, नई चीजें सीखें, देखें, भले न समझ आयें परंतु जब एक बार कुछ करने की इच्छा पर आपने विजय पा लिया तो, आप अपने एक नये रूप को जल्दी ही धरातल पर देखेंगे।